समीर अभी अआधाए रस्ते में ही था की उसका फ़ोन बज उठा उसने बाइक की सीड कम की और कॉल उठाया, दूसरी और नीतू थी लेकिन ट्रैफिक के कारन समीर आवाज़ पहचान नहीं पाया,
"हेलो कौन ?" उसने थोड़ा चिल्ला कर पूछा
"तुम समीर ही हो ना ?"
"कौन नीतू ? हाँ मैं समीर ही हूँ, बोलो क्या बात है ?" समीर ने आवाज़ पहचान कर पूछा
"शुक्र है तूने पहचाना तो, मुझे लगा तू भूल ही गया "
"अरे नहीं वो मोबाइल दूसरा लिया है इसलिए नंबर मिस हो गया था सबका, तुम बताओ कैसी हो ?
मैं भी ठीक ही हूँ, अच्छा मुझे तेरी आवाज़ ठीक से नहीं आरही है, बहुत शोर की आवाज़े आरही है , कहा है तू ?"
"अरे मैं बाइक पर हु किसी काम से फरीदाबाद आया था, तुम बोलो क्या बात है "
"तू कभी घर में भी रहता है या सारा दिन घूमता रहता है? चोर कोई खास बात नहीं थी बस ये पूछना था की कल तू मुझे कहा मिल सकता है ?"
"क्या काम था बताओ, मेरा कोई पक्का नहीं है कल का अभी "
"ओके तो कल मैं मयूर विहार की साइड आती हूँ, वहा थोड़ी देर के लिए मिले जइयो, ज़यादा टाइम नहीं लुंगी तेरा "
"तुम मयूर विहार क्या करने आरही हो ? क्या कुछ काम है तुम्हे या केवल मुझसे मिलने के लिए आरही हो ?" समीर को हैरत हो रही थी की आज अचानक इतने दिन के बाद कॉल और फिर मिलने के लिए सीधे उसी के एरिया में आना
"नहीं मुझे केवल तुमसे काम है, बस तुम मुझे बता दो वह कैसे आना है, मुझे रास्ता नहीं पता "
"तुमने इधर के साइड का कोनसा एरिया देखा हुआ है ? "
"मुझे उधर का कुछ नहीं पता, बस कनाट प्लेस तक का मालूम है मुझे "
"तो फिर ठीक है अगर केवल तुमको मुझसे मिलना है तो कल मैं ११ बजे के टाइम किसी काम से कनाट प्लेस में रहूँगा तुम वही मिल लेना मुझसे "
"हाँ ये ठीक रहेगा, लेकिन कनाट प्लेस में कहा मिलेगा तू मुझे ?"
"तुम कनाट प्लेस पहुंच कर मुझे कॉल करना मैं समझा दूंगा आगे का रास्ता "
"ओके फिर ठीक है कल मिलते है, अब मैं फ़ोन रख रही हूँ मुम्मा बुला रही है "
नीतू ने फ़ोन रख दिया, उधर समीर सरे रस्ते यही सोचता रहा की आखिर इस लड़को उस से क्यों मिलना है वह भी इतने दिनों के बाद, पुरे रास्ते में वो दिमाग लगता रहा लेकिन उसे कोई कारन समझ नहीं आया इसलिए उसने कल पर छोड़ दिया, वैसे भी कल उसे कनाट प्लेस में काम था ही वह से थोड़ा टाइम निकल कर उस से भी मिल लेगा।
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समीर जल्दी जल्दी तैयार होकर गयारह बजे से पहले ही कनाट प्लेस जा पंहुचा, उसने सोचा था की जल्दी से क्लाइंट से मीटिंग करके फ्री हो जायेगा उसके बाद नीतू से मिल लेगा, लेकिन अभी वो ऑफिस में घुस ही रहा था की नीतू का कॉल गया
"हाँ समीर, मैं सीपी पहुंच गयी हुई , अब कहा आऊं ?"
"अरे अभी तो ११ भी नहीं बजे और तुम पहुंच भी गयी, मैं भी तुमको ११ के बाद मिलने का बोला था "
"अरे आज कॉलेज बंक किया तो सीधा इधर ही आगयी, अब तू बता मैं क्या करू ?"
"कुछ नहीं अब तुम जहा चाहो वह घूमो, मैं भी सीपी में ही हूँ लेकिन एक मीटिंग के लिए जा रहा हूँ, मेरा वेट करो वह से फ्री होकर कॉल करता हूँ फिर आगे का देखेंगे "
"ओके ठीक है, जल्दी होना फ्री मुझे अकेले अजीब लगेगा यहाँ "
"हाँ आयी कैन अंडरस्टैंड, जस्ट गिव मी सम टाइम ओके "
नीतू ने ओके कह कर फ़ोन काट दिया
समीर ने अंदर जा कर जल्दी जल्दी मीटिंग ख़तम की और जल्दी से बहार आकर उसने नीतू कॉल किया
"हाँ मैं फ्री हूँ अब बताओ तुम कहा हो "
"मैं यहाँ पालिका में घूम रही हूँ, अब बताओ कहा आना है "
समीर ने जल्दी जल्दी उसे एक मक्डोनल्ड का पता समझाया जो पालिका के बिलकुल सामने था और खुद भी जल्दी से उस मक्डोनल्ड की ओर चल दिया
समीर हाथ में हेलमेट और पीट पर बैग संभाले जैसे ही अंदर घुसा उसे नीतू सामने एक टेबल पर बैठी नज़र आयी, डार्क नीले कलर के सूट में उसका गोरा चेहरा दमक रहा था, उसने मुस्कुराते हुए अपना हाथ हवा में उठा कर समीर का धयान अपनी और आकर्षित किया, सुबह का टाइम था इसलिए भीड़ नहीं थी, वो सीधा नीतू के पास पंहुचा और हेलमेट और बैग रख कर उसके सामने की सीट पर पसर कर बैठ गया।
समीर ने आराम से बैठने के बाद नीतू की ओर नज़र दौराई तो देखा की नीतू हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाये बैठी, समीर झेंप गया और जल्दी से सीधा होकर उस का हाथ अपने हाथो में लेकर हैंडशेक किया और वापस पसर गया
"हाँ तो नीतू, बताओ क्या हाल है तुम्हारे "
"मैं तो ठीक हूँ, तू बता हीरो कहा गायब था इतने दिनों से ?"
"हाहाहा मैं हीरो नहीं विलेन हूँ , तुमने सुना नहीं मुझे तृषा ने क्या क्या नहीं कहा है, उस से पूछो तो वो मुझे शकाल से भी बड़ा विलेन बोलेगी "
"हहह ये तो है यार, लेकिन असलियत में तो तू हीरो है जिसने अपने दोस्त के लिए क़ुरबानी दी "
"नाह, मैंने कोई क़ुरबानी वुबानी नहीं दी, मैंने तो बस इसलिए सब सुन लिया ताकि बात आगे न बढे, ऐसी बातों से केवल बदनामी होती है खास तौर से लड़कियों की, लड़का का तू कुछ जाता है नहीं "
"ये बात तो तूने सच कही है, वो तो भला हो आस्था की मम्मी का, वो बहुत समझदार है नहीं तो बात बढ़ भी सकती थी "
"हाँ सही कहा तुमने, खैर छोड़ो ये बताओ मुझे कैसे याद किया तुमने ?"
"हहह अरे अब तूने उस दिन के बाद तो किया नहीं तो मैंने सोचा की मैं ही तुझे याद कर लू"
"अच्छा किया, अब तुम्हे पता तो है इतनी भसड़ हो गयी थी तो मैंने सोचा की दूर रहने में भी भलाई है बस इसीलिए किसी को कॉल नहीं किया "
"हाँ मैं भी इसीसलिए चुप थी, मैं भी नहीं चाहती थी की तृषा को पता लगे कुछ "
"हाँ तो अब ठीक है वो ?"
"क्यों तुझे नहीं पता क्या ?"
"मुझे क्या पता होगा " समीर ने हैरानी से पूछा ?
"क्यों, तेरे दोस्त ने नहीं बताया तुझे ? तुम लड़के तो साडी बातें शेयर करते हो आपस में "
"हाँ करते है लेकिन मैं नहीं करता, और दूसरी बात अंकुश ने मुझे कुछ भी नहीं बताया क्यंकि उस दिन के बाद मैंने उसे बोल दिया था की वो मुझे तुम्हारे ग्रुप में किसी तरह से इन्वॉल्व न करे और न मुझे कुछ बताये "
"ओह्ह अगर ऐसा है तो फिर मान लेती हूँ की तुझे नहीं पता होगा "
"हाँ तो अब बताओ क्या बात है और मुझे क्या नहीं पता "
"अरे बाबा उस दिन के बाद तृषा और आस्था की लड़ाई हो गयी, आस्था ने तृषा से और मेरे से दोस्ती ख़तम कर दी और वो अब हमसे बात भी नहीं करती , अंकुश ने मुझे भी एक दो बार कॉल किया था लेकिन मैंने रूडली बात करि तो वो अब मुझसे बात नहीं करता और आजकल तृषा और अंकुश का रोमांस चल रहा है"
"ओह्ह वाओ, मुझे नहीं पता था, चलो ठीक ही है अगर उन्दोनो का चक्कर चल रहा है तो "
"हाँ जैसे उनकी मर्ज़ी, मैंने एक दो बार तृषा को समझाने की कोशिश भी की लेकिन अब वो मेरी बात नहीं सुनती है, इसलिए मैंने भी छोर दिया, सब अपने जीवन के खुद ज़िम्मेदार है "
"हाँ सही कहा, इसीलिए मैं भी ज्ञान नही बांटता अंकुश को, उसकी लाइफ है उसकी बंदी है जो मन आये करे मैं कयूं बेकार में उसके मामलात में अपनी टांग अड़ाउन"
"हाँ सही बात है, चल छोड़ अब उनकी क्या बात करना, ये बता तुझे बुरा तो नहीं लगा मेरा आज आना ?"
"अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे बुरा नहीं लगा बस हैरत हुई की अचानक कैसे ?"
"हाँ मैं कई दिन से सोंच रही थी लेकिन कल फिर हिम्मत करके कर दी कॉल मैंने "
"तो बताओ फिर अचानक मुझे याद कैसे किया तुमने ?"
"ये देने के लिए " कह कर नीतू ने अपने बैग से एक कार्ड निकाल कर सामने के सामने रख दिया, ये एक लाल रंग का खूबसूरत शादी का कार्ड था
"वाओ तुम शादी कर रही हो " समीर ने हैरत और ख़ुशी से चहकते हुए कहा
"हट पागल, दीदी की शादी है उसी का कार्ड देंगे के लिए आयी हूँ "
"ओह्ह अच्छा, मुझे लगा इतनी जल्दी शादी अभी ग्रेजुएशन तो कर लेती पहले "
"जी नहीं मुझे नहीं करनी शादी वादी, मेरी दीदी की शादी है तो उन्होंने बोला की अपने दोस्तों को भी बुला ले, अब मेरे कोई खास फ्रेंड तो है नहीं, हिना और तृषा तो फॅमिली फ्रेंड में है तो उनको तो घर वाले खुद इन्विते करेंगे, फिर जब मैंने अपने फ्रैंड्स के बारे में सोंच रही थी सबसे पहले मुझे तेरी याद आयी तो मैं आज कार्ड ले कर आगयी।
"ओह्ह अच्छा किया " समीर कार्ड को धयाँद से पढ़ते हुए बड़बड़ाया फिर सर उठा कर नीतू के आँखों में देखते हुए कहा
"क्या तुम्हारी फॅमिली और मेरी फॅमिली कनेक्टेड है क्या ?"
"क्यों ऐसा क्यों बोल रहा है " नीतू ने हैरत से पूछा ?
"एक मिनट रुक " कहते हुए समीर ने अपने बैग से एक कार्ड खींच कर निकला और नीतू के सामने रख दिया
ये एक सफ़ेद रंग का खूबसूरत डिज़ाइन वाला शादी कार्ड था,
" ये क्या है ?" नीतू ने हैरत से आंख फाड़ कर पूछा
"ये मेरी सिस्टर की शादी का कार्ड है "
"ओह्ह फिर "?
"फिर ये की डेट देखो, दोनों की शादी की डेट सेम है "
"अरे हाँ, दोनों की शादी की डेट १४ दिसंबर की है "
"हाहाहा हाँ मैं भी यही देख के चौंका था "
"क्या यार, अब न तू मेरे घर शादी में आसकता है और न मैं तेरे "
"वैसे मैं आसकता था तू नहीं आसक्ति थी क्यूंकि हम अपनी दीदी की शादी गाओं से कर रहे है, दिल्ली से नहीं "
"हाँ, चल कोई ना इस बहाने मिल लिए" नीतू ने समीर को कार्ड वापस करते हुए कहा
"नहीं तुम इसे रख लो, मैं इस पर तुम्हारे पापा का नाम लिख देता हूँ "
"अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, अच्छा क्या कुछ आर्डर करे, भूख लग रही है, मैं घर से नाश्ता करके नहीं निकली थी"
"अरे हाँ मैं तो बातों में भूल ही गया, रुको मैं ऑर्डर करके आया "
समीर ने उठकर खाने का आर्डर किया और वापिस नीतू के सामने आकर बैठ गया, उसने कार्ड उठा कर अपने बैग में रखा और अपना कार्ड नीतू को थमा दिया और चुप चाप नीतू के खूबसूरत गोर मुखड़े को ताकने लगा, नीतू कार्ड बैग में रख कर समीर की और पलटी तो समीर ने जल्दी से नज़रे घुमा ली, एक पल दोनों के बीच में ख़ामोशी रही फिर अचानक समीर को कुछ याद आया
"अच्छा नीतू एक बात सुनो, मैं पहले भी बताना चाहता था लेकिन मौका नहीं मिला"
"हाँ हाँ बता क्या बात है ? कोई सीक्रेट वाली बात है क्या ?"
"अरे नहीं बस ऐसे ही यार, बात ये है की जो मयूर विहार वाला मेरा फ्लैट है वो किराये का का है उस दिन अंकुश ने झूट बोलै था की हमारा खुद का है "
"तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, आधी दिल्ली किराये के माकन में रहती है "
"इसमें कोई प्रॉब्लम तो नहीं कोई बस ये की मैं अंकुश के जैसा आमिर नहीं हूँ और न ही मैं कॉलेज में पढाई करता हूँ, मैंने तुवेल्थ के बाद पढाई छोड़ दी थी और कंप्यूटर का कोर्स कर लिया था, अब मेरा छोटा सा बिज़नेस है उसी से कमाता हूँ और परिवार का खर्च चलता हूँ " समीर ने एक ही साँस में सब सच बता दिया मनो किसी बोझ को हल्का कर रहा हो
"अरे ये तो और अच्छी बात है, आखिर पढ़ाई करने के बाद भी तो कमाता ही, हाँ कोशिश करना की ग्रेजुएशन कम्पलीट हो जाये "
"थैंक्स यार, वो बस अंकुश ने कुछ झूठ बोल दिए थे तो वो मुझे अजीब फील होता था सोंच कर "
"वैसे तू अगर नहीं भी बताता तो मुझे आईडिया हो गया था की तू काम करता है कुछ "
"वो ऐसे की कई बार तू बात करते हु बोलता है की मीटिंग ेट्स में हूँ या जाना है तो इसका मतलब कोई प्रोफेशनल इंसान ही मीटिंग करेगा ना "
"हाँ यार, अब जो सच है वो मुँह से निकाल ही जाता है कभी न कभी "
"अच्छा ये बता तूने दीदी की शादी की शॉपिंग कर ली क्या "
"कपड़ो की शोप्पिंग मम्मी ने कर ली है, ज्वेलरी के पैसे मैं दे चूका हूँ, बस कुछ छोटी मोती चीज़ लेनी है बस, क्यों तुम क्यों पूछ रही हो "
"नहीं बस ऐसे ही अगर तुझे कुछ चाहिए तो बता मैं हेल्प कर सकती हूँ "
"नहीं ऐसी तो कुछ ऐसी चीज़ नहीं है, लेकिन तुम कैसे मेरी हेल्प कर सकती हो ?"
"अरे बुद्धू, मेरे पापा आर्मीमैन है "
"फौजी है तो " समीर को कुछ समझ नहीं आया
"अरे इडियट, मेरे पापा आर्मी में है तो हमें कैंटीन से सस्तो चीज़े मिल जाती है, मेरे रिलेटिव्स मेरे घर आते रहते है पापा से रेक़ुएस्ट करने चीप रेट पर सामान लेने के लिए "
"ओह्ह ऐसा क्या, मुझे नहीं मालूम था इस बारे में, अब तो ऑलमोस्ट साड़ी शॉपिंग हो चुकी है "
"अच्छा बोतल की शॉपिंग भी कर ली क्या ?"
"बोतल, कैसी बोतल ?"
"अरे दारू की बोतल मेरे भोले समीर, तू दारू नहीं पीता है क्या ?"
"ओह्ह नहीं मैं नहीं पीता, एक बार try की थी लेकिन उसकी महक से ही मेरा दिमाग फैट गया तो फिर कभी हिम्मत नहीं हुई हाथ लगनी की "
"बहुत अच्छा करता है, इस से दूर ही रहना "
'हाँ मैं तो न लागू इसको कभी हाथ, बाकि मैं चाचा जी से पूछूंगा अगर दारू की बोतल की ज़ररत होगी तो क्या तुम दिला पाउगी ?"
"तभी तो बोलै है तेरे से, अगर तुझे ज़रूरत होगी तो मैं तुझे दो बॉक्स दिलवा सकती हूँ, मेरे ख्याल से इतने में तेरी दीदी की शादी का काम हो जायेगा। "
"थैंक्स यार मैंने इस बारे में सोंचा ही नहीं था, अब मुझे याद आरहा है बारात वाले दिन लोग दारू की डिमांड करते है "
"हाँ जी, तू कार्ड में देख हमारे यहाँ शादी से एक दिन पहले कॉकटेल पार्टी है उस दिन दारू ही चलेगी, हम पहाड़ी में कोई भी त्यौहार या शादी विवाह बिना दारू की बॉटल्स के नहीं होती "
"ओह्ह ये जानकारी है "
"हाहाहा हमारे साथ रहेगा तो ऐसे ही नया सीखता रहेगा " नीचे ने हस्ते हुए कहा
इतने में उनका आर्डर आगया और दोनों ने खाने के बाद एक दूसरे को अलविदा कहा और अपने अपने घर की और चल दिए
आज पहली बार समीर को नीतू से मिलके अच्छा लगा था कुछ अलग था जिसको वो कोई नाम नहीं देसकता था लेकिन एक अच्छी फीलिंग उसके मन में उभर आयी थी नीतू के प्रति।