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Fantasy ब्रह्माराक्षस

kas1709

Well-Known Member
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173
अध्याय छिहत्तर

जब मे युद्ध क्षेत्र मे पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मेरा क्रोध इतना बढ़ गया कि मेरा ब्रामहारक्षस का रूप बाहर आ गया मेरे शरीर से वही भयानक ऊर्जा निकलने लगी

जिसे महसूस करके वहाँ सब दंग रह गए क्योंकि इससे पहले की वो मुझे देख पाते उससे पहले ही मे हवा से भी तेज गति से तुरंत प्रिया और माँ के पास पहुँच गया

फिर मैने तुरंत कामिनी और मोहिनी का गला पकड़ कर उन्हे हवा मे उठाने लगा वही ये सब इतनी जल्दी हुआ की वो दोनों समझ ही नही पा रहे थे की आखिर हुआ क्या है


उन्हे होश तब आया जब उनको अपने गर्दन के उपर दबाव महसूस हुआ जिसे महसूस करके जब उन दोनो ने अपने सामने देखा तो उन दोनों की चीख निकल गयी

जिसने वहाँ मौजूद सबका ध्यान अपने उपर खींच लिया और जब सबने उस दिशा मे देखा तो सारे हैरान हो गए क्योंकि अब मे पूरी तरह से ब्रामहारक्षस मे बदल गया था मेरा शरीर किसी हीरे की तरह चमक रहा था

और मेरे शरीर के कपड़े पूरी तरीके से काले थे मेरी कमर पर दो खंजर थे तो दूसरी तरफ दो तलवारे लटक रही थी मेरे पीठ पर एक गोल ढाल थी तो सबसे सर पर दो सिंग उगे हुए थे

जो की मेरे कपड़ो के तरह काले थे तो वही मेरे आँखों से खून आँसुओं की तरह बह रहे थे जब सबने मेरी आँखों पर गौर किया तो सबको और एक झटका लगा


क्योंकि मेरी आँखे पूरी तरह से लाल हो गयी थी जिसे देखकर सब डर के मारे कांपने लगे थी सिवाए ब्रामहारक्षस प्रजाति के तो वही कामिनी और मोहिनी दोनों की ही हालत पतली हो गयी थी

एक तो मेरे इस रूप को इतनी नज़दिक से देखकर वो पहले ही डर के मारे कुछ कर नही पा रहे थी उपर मेरे हाथों की मजबूत पकड़ उनके गर्दन पर कसती जा रही थी वो दोनों इतना डर गयी थी कि वो मुझे रोक भी नही पा रही थी

मै :- (गुस्से मे) इतनी शक्तिशाली हो गयी तुम दोनों जो मेरे परिवार पर आक्रमण करने की गुस्ताखी की

जब वहाँ मौजूद सबने मेरी आवाज सुनी तो सबके चेहरों पर ऐसे भाव आ गये थे की जैसे उनका दिल डर के मारे ही फट जायेगा इसके पीछे का कारण था

मेरी आवाज पहले से भी ज्यादा गहरी और गंभीर हो गयी थी जिसे सुनकर वहाँ खड़े सब के बदन पर रुएँ खड़ी हो गयी थी क्योंकि जब मैने पहले ये रूप धारण किया था

तब मैरी आवाज सिर्फ किसी शक्तिशाली राजकुमार जैसी थी लेकिन आज मेरी आवाज मे एक तरह की क्रूरता थी ऐसी क्रूरता जिसके बारे मे कभी किसी ने सोचा भी नही होगा

अभी मैने उन दोनों का गला पकडा हुआ था की तभी उनका शरीर निर्जीव होकर मेरे हाथों मे लटक गया था


मुझे भी पता नही था की वो दोनों मेरे द्वारा उनके गला घोंटने से मेरे है या मेरी आवाज से मरे है तो वही जब मायासुर ने मुझे देखा तो वो तुरंत मेरी असलियत समझ गया

उसने पहचान लिया था की असल मे त्रिलोकेश्वर और दमयंती का ही पुत्र हूँ और इसी लिए उसने अपने सभी सिपाहियों को सारे अच्छाई और सच्चाई के योद्धाओं को छोड़ केवल मेरे उपर हमला करने के लिए बोल दिया था

मेरा ये हैवानों वाला रूप देखकर कोई मेरे तरफ बढ़ना नही चाहता था लेकिन मायासुर उनका सम्राट था उसके खिल्लाफ़ वो लोग जा नही सकते थे

उनके पास उसकी बात सुनने के अलावा और कोई चारा नही था तो वही मैने उन सब को अपने पास आते देखकर महागुरु se युद्ध क्षेत्र मे मौजूद हमारे सभी सिपाहियों और योद्धाओं को वापस बुलाने के लिए कहा


इस वक्त मेरी आवाज मे इतनी क्रूरता थी की महागुरु मुझे मना कर ही नहीं सकते थे और जब उन्होंने सभी सेना को वापस बुलाया तो मे सीधा एक छलाँग मारकर असुरी सेना के बिचो बीच पहुँच गया था

वहाँ पहुँच कर मैने सीधा कुरुमा को बुला लिया और जैसे ही कुरुमा बीच युद्ध क्षेत्र मे प्रकट हुआ उस देखकर वहाँ मौजूद हर एक शक्स डर गया था वो सभी कुरुमा के रूप मे अपनी मौत को देख रहे थे

तो वही जब उन सातों महासुरों ने कुरुमा को देखा तो उनका खून मानो सुख गया था वो सभी जानते थे की कुरुमा क्या है कौन है वो किस शक्ति की सुरक्षा करता है सब ज्ञात था


और कुरुमा को अपने सामने देखकर डर के मारे पीछे हटने लगे थे तो वही जब मैने उन्हे मैने मैदान छोड़कर भागते हुए देखा तो मैने तुरंत अपने अजेय अस्त्र को जो एक तलवार रूप मे थी

(अजेय अस्त्र :- एक ऐसा अस्त्र जो सात हिस्सों जी बटा हुआ अस्त्र उसका हर एक भाग समान शक्तिशाली है इस अस्त्र को उसके मिश्रित रूप में इस्तेमाल करना नामुमकिन है उसे उसके 7 भागों मे विभाजित करके ही इस्तेमाल किया जा सकता हैं)

मैने अभी उस अजेय अस्त्र को उसके सात भागों मे विभाजित कर दिया और साथ मे ही मैने अपनी मायावी ऊर्जा के मदद से उन्हे छोटे खंजरों का रूप दे दिया जिससे वो किसी को दिखाई न दे

और जब मैने देखा की उन सातों महासुर और उस मैदान मे मौजूद सबका ध्यान मेरे कुरुमा पर था तो मैने इसी बात का फायदा उठाकर मैने तुरंत उन सातों खंजरों को महासुरों के तरफ फेक दिये जो जाके सीधा सातों महासुरों के दिल मे जा लगे

जब उनके शरीर मे वो खंजर लगे तब भी उनके अंदर जो अस्त्र अंश था वो खतम हो गया और अब वो सिर्फ मामूली असुर बन गए थे जिसके बाद युद्ध पुरा एक तरफा ही हो गया था

कुरुमा ने आधे से भी ज्यादा असुरी सेना को अपना भोजन बना लिया था तो वही उन सातों महासुरों को मैने अपने अस्त्र शक्तियों से ही खतम कर दिया था मुझे उनके पास भी नही जाने की जरूरत नही पड़ी थी

तो वही मायासुर तो मेरा असली रूप देखकर ही डर के भाग गया था जिसके बाद मैने और कुरुमा ने मिलकर बाकी बचे असुरी सैनिकों को ख़तम कर दिया था


जिसके बाद में और मेरे सभी साथी अपने आप ही आश्रम पहुँच गए जहाँ पर सप्त अस्त्रों की शक्ति के मदद से जीतनी भी तबाही मची थी उस पूरी तबाही को ठीक कर दिया गया था

जिसके बाद महागुरु ने अपने विशोशन अस्त्र से सारे जख्मी योद्धाओं का इलाज कर दिया था जिसके बाद हम सभी यानी मै सप्तगुरु मेरे माता पिता प्रिया और शिबू इस वक्त महागुरु के कक्ष मे मौजूद थे इस वक्त मे अपने भद्रा के रूप मे वापस आ गया था

महागुरु :- आज हम सब के लिए बड़ा ही शुभ दिन है क्योंकि आज हम सब ने हमको मिले हुए जिम्मेदारियों पर देवताओं और सप्तस्त्रों के द्वारा किये गए विश्वास को हमने अच्छे से निभाया है और ये सब बिना ब्रामहारक्षसों के सहयोग बिना नही हो पाता इसके लिए मे उन सबका शुक्रिया करता हूँ

त्रिलोकेश्वर :- नही आचार्य राघवेंद्र ये आप गलत कह रहे है भले ही इस युद्ध मे हम आपके साथ मौजूद थे लेकिन ये युद्ध को आप सबने केवल अपने बलबुते पर विजयी किया है

प्रिया :- वैसे भद्रा वो भेड़िया कौन था और तुम्हे कहाँ मिला और बिना किसी अस्त्र के इतने आराम से उन महासुरों ko मारने मै सफल कैसे हो गए

प्रिया की बात सुनकर सबने मेरे तरफ देखना शुरू कर दिया जैसे कि उन सबको भी इस सवाल का जवाब जानना था जिसके बाद मैने उन्हे मेरे प्रवास के बारे में सब कुछ बता दिया अब मे भी इन सबसे कोई सच छुपाना नही चाहता था


जिसके बाद सब कुछ हसी खुशी से निपट गया अभी मे अपने कमरे मे प्रिया और शांति के नग्न शरीर के नीचे दबकर बिना किसी चिंता के सो रहा था इस बात से अंजान की मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध (और इस कहानी का अंतिम युद्ध) मेरे तरफ पूरी गति से बढ़ते जा रहा है

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 

Gurdep

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अध्याय छिहत्तर

जब मे युद्ध क्षेत्र मे पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मेरा क्रोध इतना बढ़ गया कि मेरा ब्रामहारक्षस का रूप बाहर आ गया मेरे शरीर से वही भयानक ऊर्जा निकलने लगी

जिसे महसूस करके वहाँ सब दंग रह गए क्योंकि इससे पहले की वो मुझे देख पाते उससे पहले ही मे हवा से भी तेज गति से तुरंत प्रिया और माँ के पास पहुँच गया

फिर मैने तुरंत कामिनी और मोहिनी का गला पकड़ कर उन्हे हवा मे उठाने लगा वही ये सब इतनी जल्दी हुआ की वो दोनों समझ ही नही पा रहे थे की आखिर हुआ क्या है


उन्हे होश तब आया जब उनको अपने गर्दन के उपर दबाव महसूस हुआ जिसे महसूस करके जब उन दोनो ने अपने सामने देखा तो उन दोनों की चीख निकल गयी

जिसने वहाँ मौजूद सबका ध्यान अपने उपर खींच लिया और जब सबने उस दिशा मे देखा तो सारे हैरान हो गए क्योंकि अब मे पूरी तरह से ब्रामहारक्षस मे बदल गया था मेरा शरीर किसी हीरे की तरह चमक रहा था

और मेरे शरीर के कपड़े पूरी तरीके से काले थे मेरी कमर पर दो खंजर थे तो दूसरी तरफ दो तलवारे लटक रही थी मेरे पीठ पर एक गोल ढाल थी तो सबसे सर पर दो सिंग उगे हुए थे

जो की मेरे कपड़ो के तरह काले थे तो वही मेरे आँखों से खून आँसुओं की तरह बह रहे थे जब सबने मेरी आँखों पर गौर किया तो सबको और एक झटका लगा


क्योंकि मेरी आँखे पूरी तरह से लाल हो गयी थी जिसे देखकर सब डर के मारे कांपने लगे थी सिवाए ब्रामहारक्षस प्रजाति के तो वही कामिनी और मोहिनी दोनों की ही हालत पतली हो गयी थी

एक तो मेरे इस रूप को इतनी नज़दिक से देखकर वो पहले ही डर के मारे कुछ कर नही पा रहे थी उपर मेरे हाथों की मजबूत पकड़ उनके गर्दन पर कसती जा रही थी वो दोनों इतना डर गयी थी कि वो मुझे रोक भी नही पा रही थी

मै :- (गुस्से मे) इतनी शक्तिशाली हो गयी तुम दोनों जो मेरे परिवार पर आक्रमण करने की गुस्ताखी की

जब वहाँ मौजूद सबने मेरी आवाज सुनी तो सबके चेहरों पर ऐसे भाव आ गये थे की जैसे उनका दिल डर के मारे ही फट जायेगा इसके पीछे का कारण था

मेरी आवाज पहले से भी ज्यादा गहरी और गंभीर हो गयी थी जिसे सुनकर वहाँ खड़े सब के बदन पर रुएँ खड़ी हो गयी थी क्योंकि जब मैने पहले ये रूप धारण किया था

तब मैरी आवाज सिर्फ किसी शक्तिशाली राजकुमार जैसी थी लेकिन आज मेरी आवाज मे एक तरह की क्रूरता थी ऐसी क्रूरता जिसके बारे मे कभी किसी ने सोचा भी नही होगा

अभी मैने उन दोनों का गला पकडा हुआ था की तभी उनका शरीर निर्जीव होकर मेरे हाथों मे लटक गया था


मुझे भी पता नही था की वो दोनों मेरे द्वारा उनके गला घोंटने से मेरे है या मेरी आवाज से मरे है तो वही जब मायासुर ने मुझे देखा तो वो तुरंत मेरी असलियत समझ गया

उसने पहचान लिया था की असल मे त्रिलोकेश्वर और दमयंती का ही पुत्र हूँ और इसी लिए उसने अपने सभी सिपाहियों को सारे अच्छाई और सच्चाई के योद्धाओं को छोड़ केवल मेरे उपर हमला करने के लिए बोल दिया था

मेरा ये हैवानों वाला रूप देखकर कोई मेरे तरफ बढ़ना नही चाहता था लेकिन मायासुर उनका सम्राट था उसके खिल्लाफ़ वो लोग जा नही सकते थे

उनके पास उसकी बात सुनने के अलावा और कोई चारा नही था तो वही मैने उन सब को अपने पास आते देखकर महागुरु se युद्ध क्षेत्र मे मौजूद हमारे सभी सिपाहियों और योद्धाओं को वापस बुलाने के लिए कहा


इस वक्त मेरी आवाज मे इतनी क्रूरता थी की महागुरु मुझे मना कर ही नहीं सकते थे और जब उन्होंने सभी सेना को वापस बुलाया तो मे सीधा एक छलाँग मारकर असुरी सेना के बिचो बीच पहुँच गया था

वहाँ पहुँच कर मैने सीधा कुरुमा को बुला लिया और जैसे ही कुरुमा बीच युद्ध क्षेत्र मे प्रकट हुआ उस देखकर वहाँ मौजूद हर एक शक्स डर गया था वो सभी कुरुमा के रूप मे अपनी मौत को देख रहे थे

तो वही जब उन सातों महासुरों ने कुरुमा को देखा तो उनका खून मानो सुख गया था वो सभी जानते थे की कुरुमा क्या है कौन है वो किस शक्ति की सुरक्षा करता है सब ज्ञात था


और कुरुमा को अपने सामने देखकर डर के मारे पीछे हटने लगे थे तो वही जब मैने उन्हे मैने मैदान छोड़कर भागते हुए देखा तो मैने तुरंत अपने अजेय अस्त्र को जो एक तलवार रूप मे थी

(अजेय अस्त्र :- एक ऐसा अस्त्र जो सात हिस्सों जी बटा हुआ अस्त्र उसका हर एक भाग समान शक्तिशाली है इस अस्त्र को उसके मिश्रित रूप में इस्तेमाल करना नामुमकिन है उसे उसके 7 भागों मे विभाजित करके ही इस्तेमाल किया जा सकता हैं)

मैने अभी उस अजेय अस्त्र को उसके सात भागों मे विभाजित कर दिया और साथ मे ही मैने अपनी मायावी ऊर्जा के मदद से उन्हे छोटे खंजरों का रूप दे दिया जिससे वो किसी को दिखाई न दे

और जब मैने देखा की उन सातों महासुर और उस मैदान मे मौजूद सबका ध्यान मेरे कुरुमा पर था तो मैने इसी बात का फायदा उठाकर मैने तुरंत उन सातों खंजरों को महासुरों के तरफ फेक दिये जो जाके सीधा सातों महासुरों के दिल मे जा लगे

जब उनके शरीर मे वो खंजर लगे तब भी उनके अंदर जो अस्त्र अंश था वो खतम हो गया और अब वो सिर्फ मामूली असुर बन गए थे जिसके बाद युद्ध पुरा एक तरफा ही हो गया था

कुरुमा ने आधे से भी ज्यादा असुरी सेना को अपना भोजन बना लिया था तो वही उन सातों महासुरों को मैने अपने अस्त्र शक्तियों से ही खतम कर दिया था मुझे उनके पास भी नही जाने की जरूरत नही पड़ी थी

तो वही मायासुर तो मेरा असली रूप देखकर ही डर के भाग गया था जिसके बाद मैने और कुरुमा ने मिलकर बाकी बचे असुरी सैनिकों को ख़तम कर दिया था


जिसके बाद में और मेरे सभी साथी अपने आप ही आश्रम पहुँच गए जहाँ पर सप्त अस्त्रों की शक्ति के मदद से जीतनी भी तबाही मची थी उस पूरी तबाही को ठीक कर दिया गया था

जिसके बाद महागुरु ने अपने विशोशन अस्त्र से सारे जख्मी योद्धाओं का इलाज कर दिया था जिसके बाद हम सभी यानी मै सप्तगुरु मेरे माता पिता प्रिया और शिबू इस वक्त महागुरु के कक्ष मे मौजूद थे इस वक्त मे अपने भद्रा के रूप मे वापस आ गया था

महागुरु :- आज हम सब के लिए बड़ा ही शुभ दिन है क्योंकि आज हम सब ने हमको मिले हुए जिम्मेदारियों पर देवताओं और सप्तस्त्रों के द्वारा किये गए विश्वास को हमने अच्छे से निभाया है और ये सब बिना ब्रामहारक्षसों के सहयोग बिना नही हो पाता इसके लिए मे उन सबका शुक्रिया करता हूँ

त्रिलोकेश्वर :- नही आचार्य राघवेंद्र ये आप गलत कह रहे है भले ही इस युद्ध मे हम आपके साथ मौजूद थे लेकिन ये युद्ध को आप सबने केवल अपने बलबुते पर विजयी किया है

प्रिया :- वैसे भद्रा वो भेड़िया कौन था और तुम्हे कहाँ मिला और बिना किसी अस्त्र के इतने आराम से उन महासुरों ko मारने मै सफल कैसे हो गए

प्रिया की बात सुनकर सबने मेरे तरफ देखना शुरू कर दिया जैसे कि उन सबको भी इस सवाल का जवाब जानना था जिसके बाद मैने उन्हे मेरे प्रवास के बारे में सब कुछ बता दिया अब मे भी इन सबसे कोई सच छुपाना नही चाहता था


जिसके बाद सब कुछ हसी खुशी से निपट गया अभी मे अपने कमरे मे प्रिया और शांति के नग्न शरीर के नीचे दबकर बिना किसी चिंता के सो रहा था इस बात से अंजान की मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध (और इस कहानी का अंतिम युद्ध) मेरे तरफ पूरी गति से बढ़ते जा रहा है

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आज के लिए इतना ही

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NICE UPDATE BHAI THANKS AMAZING AWESOME FANTASTIC UPDATE
 

dhparikh

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अध्याय छिहत्तर

जब मे युद्ध क्षेत्र मे पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मेरा क्रोध इतना बढ़ गया कि मेरा ब्रामहारक्षस का रूप बाहर आ गया मेरे शरीर से वही भयानक ऊर्जा निकलने लगी

जिसे महसूस करके वहाँ सब दंग रह गए क्योंकि इससे पहले की वो मुझे देख पाते उससे पहले ही मे हवा से भी तेज गति से तुरंत प्रिया और माँ के पास पहुँच गया

फिर मैने तुरंत कामिनी और मोहिनी का गला पकड़ कर उन्हे हवा मे उठाने लगा वही ये सब इतनी जल्दी हुआ की वो दोनों समझ ही नही पा रहे थे की आखिर हुआ क्या है


उन्हे होश तब आया जब उनको अपने गर्दन के उपर दबाव महसूस हुआ जिसे महसूस करके जब उन दोनो ने अपने सामने देखा तो उन दोनों की चीख निकल गयी

जिसने वहाँ मौजूद सबका ध्यान अपने उपर खींच लिया और जब सबने उस दिशा मे देखा तो सारे हैरान हो गए क्योंकि अब मे पूरी तरह से ब्रामहारक्षस मे बदल गया था मेरा शरीर किसी हीरे की तरह चमक रहा था

और मेरे शरीर के कपड़े पूरी तरीके से काले थे मेरी कमर पर दो खंजर थे तो दूसरी तरफ दो तलवारे लटक रही थी मेरे पीठ पर एक गोल ढाल थी तो सबसे सर पर दो सिंग उगे हुए थे

जो की मेरे कपड़ो के तरह काले थे तो वही मेरे आँखों से खून आँसुओं की तरह बह रहे थे जब सबने मेरी आँखों पर गौर किया तो सबको और एक झटका लगा


क्योंकि मेरी आँखे पूरी तरह से लाल हो गयी थी जिसे देखकर सब डर के मारे कांपने लगे थी सिवाए ब्रामहारक्षस प्रजाति के तो वही कामिनी और मोहिनी दोनों की ही हालत पतली हो गयी थी

एक तो मेरे इस रूप को इतनी नज़दिक से देखकर वो पहले ही डर के मारे कुछ कर नही पा रहे थी उपर मेरे हाथों की मजबूत पकड़ उनके गर्दन पर कसती जा रही थी वो दोनों इतना डर गयी थी कि वो मुझे रोक भी नही पा रही थी

मै :- (गुस्से मे) इतनी शक्तिशाली हो गयी तुम दोनों जो मेरे परिवार पर आक्रमण करने की गुस्ताखी की

जब वहाँ मौजूद सबने मेरी आवाज सुनी तो सबके चेहरों पर ऐसे भाव आ गये थे की जैसे उनका दिल डर के मारे ही फट जायेगा इसके पीछे का कारण था

मेरी आवाज पहले से भी ज्यादा गहरी और गंभीर हो गयी थी जिसे सुनकर वहाँ खड़े सब के बदन पर रुएँ खड़ी हो गयी थी क्योंकि जब मैने पहले ये रूप धारण किया था

तब मैरी आवाज सिर्फ किसी शक्तिशाली राजकुमार जैसी थी लेकिन आज मेरी आवाज मे एक तरह की क्रूरता थी ऐसी क्रूरता जिसके बारे मे कभी किसी ने सोचा भी नही होगा

अभी मैने उन दोनों का गला पकडा हुआ था की तभी उनका शरीर निर्जीव होकर मेरे हाथों मे लटक गया था


मुझे भी पता नही था की वो दोनों मेरे द्वारा उनके गला घोंटने से मेरे है या मेरी आवाज से मरे है तो वही जब मायासुर ने मुझे देखा तो वो तुरंत मेरी असलियत समझ गया

उसने पहचान लिया था की असल मे त्रिलोकेश्वर और दमयंती का ही पुत्र हूँ और इसी लिए उसने अपने सभी सिपाहियों को सारे अच्छाई और सच्चाई के योद्धाओं को छोड़ केवल मेरे उपर हमला करने के लिए बोल दिया था

मेरा ये हैवानों वाला रूप देखकर कोई मेरे तरफ बढ़ना नही चाहता था लेकिन मायासुर उनका सम्राट था उसके खिल्लाफ़ वो लोग जा नही सकते थे

उनके पास उसकी बात सुनने के अलावा और कोई चारा नही था तो वही मैने उन सब को अपने पास आते देखकर महागुरु se युद्ध क्षेत्र मे मौजूद हमारे सभी सिपाहियों और योद्धाओं को वापस बुलाने के लिए कहा


इस वक्त मेरी आवाज मे इतनी क्रूरता थी की महागुरु मुझे मना कर ही नहीं सकते थे और जब उन्होंने सभी सेना को वापस बुलाया तो मे सीधा एक छलाँग मारकर असुरी सेना के बिचो बीच पहुँच गया था

वहाँ पहुँच कर मैने सीधा कुरुमा को बुला लिया और जैसे ही कुरुमा बीच युद्ध क्षेत्र मे प्रकट हुआ उस देखकर वहाँ मौजूद हर एक शक्स डर गया था वो सभी कुरुमा के रूप मे अपनी मौत को देख रहे थे

तो वही जब उन सातों महासुरों ने कुरुमा को देखा तो उनका खून मानो सुख गया था वो सभी जानते थे की कुरुमा क्या है कौन है वो किस शक्ति की सुरक्षा करता है सब ज्ञात था


और कुरुमा को अपने सामने देखकर डर के मारे पीछे हटने लगे थे तो वही जब मैने उन्हे मैने मैदान छोड़कर भागते हुए देखा तो मैने तुरंत अपने अजेय अस्त्र को जो एक तलवार रूप मे थी

(अजेय अस्त्र :- एक ऐसा अस्त्र जो सात हिस्सों जी बटा हुआ अस्त्र उसका हर एक भाग समान शक्तिशाली है इस अस्त्र को उसके मिश्रित रूप में इस्तेमाल करना नामुमकिन है उसे उसके 7 भागों मे विभाजित करके ही इस्तेमाल किया जा सकता हैं)

मैने अभी उस अजेय अस्त्र को उसके सात भागों मे विभाजित कर दिया और साथ मे ही मैने अपनी मायावी ऊर्जा के मदद से उन्हे छोटे खंजरों का रूप दे दिया जिससे वो किसी को दिखाई न दे

और जब मैने देखा की उन सातों महासुर और उस मैदान मे मौजूद सबका ध्यान मेरे कुरुमा पर था तो मैने इसी बात का फायदा उठाकर मैने तुरंत उन सातों खंजरों को महासुरों के तरफ फेक दिये जो जाके सीधा सातों महासुरों के दिल मे जा लगे

जब उनके शरीर मे वो खंजर लगे तब भी उनके अंदर जो अस्त्र अंश था वो खतम हो गया और अब वो सिर्फ मामूली असुर बन गए थे जिसके बाद युद्ध पुरा एक तरफा ही हो गया था

कुरुमा ने आधे से भी ज्यादा असुरी सेना को अपना भोजन बना लिया था तो वही उन सातों महासुरों को मैने अपने अस्त्र शक्तियों से ही खतम कर दिया था मुझे उनके पास भी नही जाने की जरूरत नही पड़ी थी

तो वही मायासुर तो मेरा असली रूप देखकर ही डर के भाग गया था जिसके बाद मैने और कुरुमा ने मिलकर बाकी बचे असुरी सैनिकों को ख़तम कर दिया था


जिसके बाद में और मेरे सभी साथी अपने आप ही आश्रम पहुँच गए जहाँ पर सप्त अस्त्रों की शक्ति के मदद से जीतनी भी तबाही मची थी उस पूरी तबाही को ठीक कर दिया गया था

जिसके बाद महागुरु ने अपने विशोशन अस्त्र से सारे जख्मी योद्धाओं का इलाज कर दिया था जिसके बाद हम सभी यानी मै सप्तगुरु मेरे माता पिता प्रिया और शिबू इस वक्त महागुरु के कक्ष मे मौजूद थे इस वक्त मे अपने भद्रा के रूप मे वापस आ गया था

महागुरु :- आज हम सब के लिए बड़ा ही शुभ दिन है क्योंकि आज हम सब ने हमको मिले हुए जिम्मेदारियों पर देवताओं और सप्तस्त्रों के द्वारा किये गए विश्वास को हमने अच्छे से निभाया है और ये सब बिना ब्रामहारक्षसों के सहयोग बिना नही हो पाता इसके लिए मे उन सबका शुक्रिया करता हूँ

त्रिलोकेश्वर :- नही आचार्य राघवेंद्र ये आप गलत कह रहे है भले ही इस युद्ध मे हम आपके साथ मौजूद थे लेकिन ये युद्ध को आप सबने केवल अपने बलबुते पर विजयी किया है

प्रिया :- वैसे भद्रा वो भेड़िया कौन था और तुम्हे कहाँ मिला और बिना किसी अस्त्र के इतने आराम से उन महासुरों ko मारने मै सफल कैसे हो गए

प्रिया की बात सुनकर सबने मेरे तरफ देखना शुरू कर दिया जैसे कि उन सबको भी इस सवाल का जवाब जानना था जिसके बाद मैने उन्हे मेरे प्रवास के बारे में सब कुछ बता दिया अब मे भी इन सबसे कोई सच छुपाना नही चाहता था


जिसके बाद सब कुछ हसी खुशी से निपट गया अभी मे अपने कमरे मे प्रिया और शांति के नग्न शरीर के नीचे दबकर बिना किसी चिंता के सो रहा था इस बात से अंजान की मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध (और इस कहानी का अंतिम युद्ध) मेरे तरफ पूरी गति से बढ़ते जा रहा है

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 

Shanu

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Mast update Bhai 😊 ☺️
 

RAAZ

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अध्याय पचहत्तर

मे जब कालविजय आश्रम पहुंचा तो मे हैरान रह गया क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी

ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था

जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा

और जब मैने सब सुना तो मेरे आँखों में खून उतर आया था मुझे क्रोध उन असुरों से ज्यादा खुद पर आ रहा था क्योंकि वहाँ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मे भी था

क्योंकि अगर मैने अपना अभियान थोड़ा जल्दी खतम कर लिया होता तो आज ये सब नही होता महागुरु और बाकी सब को इस तरह युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश नही करना पड़ता


ये सब सोचकर मैने अपनी ऊर्जा को एकत्रित किया और फिर मैने एक और मायावी द्वार प्रकट किया और चला गया सीधा युद्ध क्षेत्र के अंदर

और जब मे वहाँ पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मे हैरान रह गया मेरा क्रोध सातवे आसमान पर पहुँच गया मेरे सामने नजारा ही कुछ ऐसा था

कुछ देर पहले

इस वक़्त दोनों पक्ष ही पक्ष एक दूसरे के सामने थे जहाँ दमयंती त्रिलोकेश्वर और शिबू को देखकर मायासुर पूरी तरह से हैरान था

क्योंकि वो अपने पाताल लोक के राज को संभालने और इस युद्ध की तैयारी मे इतना मशगुल हो गया था की उसे इस बात का पता ही नही चला की ये तीनो अपनी पूरी प्रजा के साथ उसकी कैद से आज़ाद हो गए है


और आज जब उसने इनको अपने सामने युद्ध मे देखा तो वो दंग रह गया था लेकिन उसने जल्द ही खुद पर काबू पा लिया था या फिर ऐसा भी कह सकते हो की उसके अंदर के हैवान और अहंकार दोनों ने मायासुर की सुध बुद्ध हर ली थी

इसीलिए तो उसने बिना ये जाने की उनको कैद से आज़ाद किसने और क्यों कराया बिना ये सोचे की आगे युद्ध का अब क्या अंजाम होगा सीधा अपने सभी सिपाहियों को आक्रमण का आदेश दे दिया

और उसके आदेश देते ही उसकी सेना और साथ मे ही महासुरों की सेना ने भी आक्रमण बोल दिया तो वही अपने शत्रु को अपनी तरफ इतनी तेजी से बढ़ते देख कर सत्य पक्ष ने भी अपने हत्यारों पर अपनी पकड़ कस ली थी

और अपने कदमों को अपने शत्रु की तबाही के और बड़ा दिये थे उसी के साथ महागुरु ने अपने धनुष से तीरों की वर्षा करना आरंभ कर दिया था ये एक निर्णायक युध्द था


इसीलिए यहाँ केवल शत्रु पक्ष की तबाही ही हर एक योध्दा का संकल्प था और इसी संकल्प के चलते जिन मानवों पर महासुरों ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग किया था

वो सब भी इस महायुद्ध के यज्ञ मे अपने प्राणों की आहुति डाल रहे थे महागुरु aur बाकी के गुरुजन जहाँ अपने सप्त अस्त्रों का इस्तेमाल न करके वो केवल महागुरु द्वारा मिले अस्त्रों का ही केवल इस्तेमाल कर रहे थे

जिसे देखकर मायासुर और सभी महासुर उन्हे कमजोर समझ रहे थे और इसी वजह से महासुरों ने भी शांति से ये मुकाबला देखने का विचार त्याग कर वो सब भी इस युद्ध मे अपनी शक्तियों का जौहर दिखाने का ठान लिया

जिसके चलते अपने शक्तियों का जौहर दिखाने सबसे पहले ज्वालासुर मैदान मे उतारा उसने आते ही अच्छाई के पक्ष के उपर अपने अग्नि शक्ति से आक्रमण किया


लेकिन उसकी अग्नि किसी को कुछ हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही गुरु अग्नि उस भयंकर अग्नि के सामने आकर खड़े हो गए और जैसे ही वो अग्नि उनके पास पहुंची वैसे ही गुरु अग्नि ने अपने अग्नि अस्त्र को जाग्रुत किया

जिसके वजह से जैसे ही वो अग्नि उनसे टकराई तो अग्नि अस्त्र ने तुरंत उस वार को अपने अंदर समा लिया और जैसे ही उनके शरीर से अग्नि अस्त्र की ऊर्जा प्रवाहित होने लगी

तो उस ऊर्जा को महसूस करके मायासुर और सभी महासुरों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी और इससे पहले की वो लोग संभल पाते

उससे पहले ही महागुरु ने अपने कालास्त्र का इस्तेमाल करके असुरों की सारी सेना के मस्तिष्क में ऐसा भ्रम बना दिया जिससे वो सभी अपने शत्रुओं को छोड़कर अपने साथियों पर ही आक्रमण करने लगे थे

और जब मायासुर ने ये देखा तो उसने तुरंत ही अपनी माया की मदद से सभी सिपाहियों के मस्तिष्क से उस भ्रम को निकाल दिया और फिर उस मैदान मे शुरू हुआ एक महायुद्ध एक असल महायुद्ध अब तक जो चल रहा था वो तो जैसे एक तरह का शक्ति प्रदर्शन चल रहा था


लेकिन जब उन्हे सप्त अस्त्रों की उपस्थिति का एहसास हुआ तो अब महासुरों ने भी युद्ध को अब गंभीरता से लेना आरंभ कर दिया था हर किसीने अपने अपने प्रतिध्वंधि को चुन लिया था अब उस युद्ध क्षेत्र मे कुछ इस तरह से मुकाबला शुरू हो गया था

गुरु नंदी == गजासूर

गुरु जल == विशांतक

गुरु वानर == केशासुर

गुरु अग्नि == ज्वालासुर

गुरु सिँह == बलासुर

गुरु पृथ्वी (शांति) == महादंश

महागुरु == क्रोधासुर

प्रिया और दमयंती :- कामिनी और मोहिनी

शिबू :- मायासुर

त्रिलोकेश्वर पूरी सेना के साथ असुरी सेना से उलझ रहा था

हर कोई अपने प्रतुध्वंधि को खतम करने के इरादे से युद्ध कर रहा था दोनों ही तरफ मुकाबला बराबरी का चल रहा था

तो वही जब मायासुर ने युद्ध को अपने हाथ से निकलता महसूस किया तो उसने हर बार की तरह छल कपट से युद्ध करना आरंभ कर दिया और शिबू के दिमाग मे ऐसा भ्रम निर्माण हुआ

जिससे उसे अपने सामने 10 मायासुर दिखने लगे थे जिससे वो हैरान हो गया था और उसे समझ नही आ रहा था की इन मेसे कौन असली है और कौन नकली और इसी मे उलझ कर उसने सभी मायासुर पर अंधा धुंध वार करना शुरू कर दिया


जिससे मायासुर को तो कुछ हानि नही पहुँच रही थी लेकिन वो हर बार शिबू के पीछे आकर उसपर आक्रमण कर देता जिससे शिबू को गहरी चोटे भी आई थी अपनी योजना को सफल होते देख अब मायासुर बिन्धास्त हो गया था

लेकिन उसकी ये चाल ज्यादा देर न चल सकी वो अपने घमंड मे शायद ये भूल गया था कि वो और शिबू दोनों भी एक ही गुरु के शिष्य है

जैसे ही शिबू को मायासुर के इस छल का पता चला उसने तुरंत ही आक्रमण करना रोक दिया और अपने मन को शांत कर के उसने असली मायासुर का पता लगाने का प्रयास किया

और जैसे ही मायासुर ने शिबू पर वार करने का प्रयास किया वैसे ही उसकी भनक शिबू को लग गयी और उसने मायासुर के वार करने से पहले ही उस पर पलट वार कर दिया

जिससे मायासुर कुछ कदम पीछे की और खिसक गए तो वही चोटिल होने के वजह से शिबू भी बेहोश हो गया था

तो वही महासुरों से युद्ध करते वक्त अब सभी गुरुओं को थोड़ी परेशानी होने लगी थी जो स्वाभाविक थी वो सभी केवल मामूली अस्त्र धारक थे मामूली मानव थे उनके शरीर की कुछ बंधने थी

वो इस महान शक्ति स्त्रोत का उस तरह इस्तेमाल नही कर पा रहे थे जैसे भद्रा या कोई अन्य महा धारक कर पाते तो वही सभी गुरुओं की इस कमजोरी को सभी महासुरों ने देख लिया

जो देखकर सारे महासुरों ने भी अपनी संपूर्ण ऊर्जा का इस्तेमाल किया जिससे अब सभी गुरुओं के लिए परेशानी और बढ़ गयी थी जिससे अब सभी गुरुओं को बहुत चोटें भी आई थी

जिन्हे देखकर प्रिया और दमयंती का ध्यान भटक रहा था जिसका फायदा उठा कर मोहिनी और कामिनी ने भी उन दोनों पर प्राणघाती आक्रमण किया जिससे वो दोनों भी गंभीर रूप से चोटिल हो गयी थी और ये वही समय था जब भद्रा ने युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश किया था

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आज के लिए इतना ही

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Yudh nirnayak. More per aa gaya hai aur ab bhadra ke pass kuch back up bhi nahi hai jabki burai ki shakti apne charam per hai magar burai hamesha bhool jati hai ki acchai woh jawala hai jiski choti si lau bhi apne dushmano ka sampoorna vinainash haetu kafi hai jaisay Surya ki matr ek Kiran hi pure andhkar ko nigal leti hai.
 

VAJRADHIKARI

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Yudh nirnayak. More per aa gaya hai aur ab bhadra ke pass kuch back up bhi nahi hai jabki burai ki shakti apne charam per hai magar burai hamesha bhool jati hai ki acchai woh jawala hai jiski choti si lau bhi apne dushmano ka sampoorna vinainash haetu kafi hai jaisay Surya ki matr ek Kiran hi pure andhkar ko nigal leti hai.
Bhai aap kaise kah rahe ho uske pass backup nahi hai uske pass kuruma hai uska brahmarakshas wala roop hai saptastron ki Shakti hai aur kya hi chahiye mere pass ye teen shaktiya ho me Jake sidha kisi ko bhi utha kar patak du chahe woh insaan ho ya dewta tridev ke alawa kisi me Shakti nahi hogi mujhe rokne ki ha agar saamne pratham pujya aa Jaye toh baat aur hogi
 

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अध्याय सतहत्तर (अंतिम युद्ध)

अभी भद्रा अपने कमरे मे प्रिया और शांति के नग्न शरीर के नीचे दबकर बिना किसी चिंता के सो रहा था इस बात से अंजान की उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध मेरे तरफ पूरी गति से बढ़ते जा रहा है

आज के युद्ध मे जैसे ही मायासुर ko भद्रा की असलियत का पता चला वैसे ही उसने युद्ध क्षेत्र से अपने कदम पीछे ले लिया और अपनी दुम दबाकर भाग उठा और और सीधा वो पहुँच गया कालि के पास

ये कालि कोई और न होके वही गद्दार है जिसने असुरों की गुलामी स्वीकार करके अपने ही सम्राट अपने ही प्रजाति को धोख़ा दिया था ये है ब्रामहारक्षस प्रजाति का नया सम्राट

जिसने असुरों के साथ मिलकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती को मारने का प्रयास किया था और जब असुरो द्वारा उन्हे कैद कर लिया तो इसने असुरों की गुलामी कर त्रिलोकेश्वर का सम्राट पद ले लिया

और इतने सालों तक ब्रामहराक्षस प्रजाति पर राज करने से इसे ऐसा लगने लगा था की से कोई हरा ही नही सकता और इसी के चलते उसके मन मे घमंड पैदा हो गया था

और जब उसने सुना की उसका सालों पुराना शिकार त्रिलोकेश्वर और दमयंती का बेटा वापस आ गया है

तब उसके मन में अपना राज पाठ गंवाने का भय और अपने शिकार की खबर उसका शिकार करने की इच्छा और सबसे ज्यादा उसका घमंड जिसने क्रोध के रूप को धारण कर लिया था

जो उसके चेहरे साफ दिखाई दे रहा था और इन्ही सब कारणों की वजह से कालि ने अपने विश्वसनिया सैनिकों और योद्धाओं की टुकड़ी लेकर चल पड़ा कालविजय आश्रम की तरफ गुप्त हमला करने

तो वही मायासुर की सारी असुरी सेना तो खतम हो गयी थी इसीलिए अब मायासुर के पास इन ब्रामहारक्षसों की सेना के अलावा कोई भी और असुरी सैनिक नही था

और जब उसे लगा की इसके अलावा और कोई रास्ता नही है तो उसने गुरु शुक्राचार्य की उस खास सैन्य दल को भी इस युद्ध मे सम्मलित कर लिया जिन्हे शुक्राचार्य ने देवासुर युद्ध के लिए संभाल के रखा था

उस सैन्य दल को वरदान था की कोई भी सात्विक शक्ति उनका अंत नही कर शक्ति चाहे वो सप्त अस्त्र ही क्यों न हो और इसी कारण से मायासुर ने उस दल को भी अपने साथ युद्ध मे सामिल किया था

उसके पास सैन्य शक्ति केवल इतनी ही थी तो वही अस्त्रों के नाम पर केवल उसकी मायावी शक्तियाँ और शुक्राचार्य द्वारा दी ही तलवार यही थे

तो वही कालि ने भी इतने सालों से ब्रामहराक्षसों पर राज करने के साथ ही एक ऐसी शक्ति का निर्माण किया था जिसका इस्तेमाल केवल कोई उसके जैसा महाशक्तिशाली ब्रामहारक्षस ही कर सकता है

और उस शक्ति के मदद से वो किसी भी ब्रामहाराक्षस को बिना ब्रम्हास्त्र के भी खतम कर सकता था अब वो दोनों पृथ्वी लोक के सीमा तक पहुँच गए थे और वो अभी आगे बढ़ते

की तभी न जाने कहा से एक तीर सीधा आकर उनके पैरों के पास की जमीन पर लगा जिससे वो वही रुक गए और हमला करने वाले को ढूँढने लगे और जब वो हमलावर उनके सामने आया तो उसे देखकर उन दोनों को झटका लगा क्योंकि वो कोई और नही अपना भद्रा ही था (भद्रा के रूप में)

कुछ समय पहले

अभी मे अपने कमरे मे आराम से सो रहा था कि तभी मुझे कुछ अजीब सा एहसास होने लगा जिससे मेरा दम घुट रहा था इसीलिए मे अपने कमरे से निकल कर बाहर आ गया

जहाँ पर खुले आसमान के नीचे अब मुझे थोड़ा बेहतर लग रहा था लेकिन फिर भी दिल मे कुछ बुरा बहुत ही बुरा होने का एहसास हो रहा था इसीलिए मे वही ध्यान मे बैठकर इसके पीछे की वजह ढूँढने लगा

और कुछ ही देर ऐसे ध्यान लगाने के बाद मुझे वो वजह भी दिखने लगी थी मुझे पृथ्वी लोक की सीमा पर मुझे कालि और मायासुर उनकी सेना के साथ दिख रहे थे

जिन्हे देखकर मेरे चेहरे पर शैतानी मुस्कान छा गया जिसके बाद मे बिना किसी को पता लगे हुए तुरंत वहाँ से निकल गया और जाने से पहले मैने आश्रम के चारों तरफ एक कवच लगा दिया

और उस कवच के उपर मैने एक ऐसे चक्रव्युव की रचना की जिसमे कदम रखते ही वो सब वही हालत होगी जो हर सुबह (peak hours me) लोकल पकड़ने वाले की होती हैं

(If you not understand this so search on google central railway in peak hours 🙄🙄🙄)

और अभी इस वक़्त मे अपने भद्रा वाले अवतार मे ही मायासुर और कालि के सामने खड़ा था और जब मायासुर ने कालि को मेरा परिचय बताया तो कालि मेरा इंसानी रूप देखकर मुझे कमजोर समझने लगा

उसके घमंड ने उसके आँखों पर इस कदर पट्टी बांध कर रखी थी उसने ये तक नही सोचा कि अगर मे कमजोर होता तो मायासुर उसके पास ऐसे बीच युद्ध से भागते न आता लेकिन हम कर भी क्या सकते है सच कहा है किसीने विनाश काले विपरीत बुद्धि

कालि :- (मेरा मजाक उड़ाते हुए) कितनी बुरी बात है ब्रामहराक्षसों का राजकुमार इतना कमजोर है ऐसे मे क्या होगा हमारे अगली पीढ़ी का

मे :- अगर तुम्हे मे इतना ही कमजोर लग रहा हूँ तो आओ आगे बढ़ो लढो मुझसे पता चल जायेगा

कालि :- आज तेरी मौत पक्की है लड़के तुझे मारकर तेरी माँ को मैं अपनी रखैल बनाकर रखूँगा

अब उसने ये बोलकर सारी सिमाये लाँघ दी थी और अब मेरा भी क्रोध काबू से बाहर हो गया था जिससे अब मेरा कुमार वाला रूप बाहर आ गया था जो देखकर मायासुर और बाकी सारे सैनिक डर रहे थे तो वही कालि के चेहरे पर मुस्कान छा गयी थी

मे (गुस्से मे) :- आज तूने तेरी सारी सिमाये लाँघ दी है कालि आज तु नही बचेगा

मेरा बोलना अभी पुरा होता की उससे पहले ही कालि ने मेरी तरफ एक आग का गोला फेक दिया जिससे बचने के लिए मे बाजू मे हट गया जिससे मेरा संतुलन बिगड़ गया

और मे जमीन पर गिर गया और जैसे ही मै गिरा वैसे ही वो कालि दौड़ते हुए मेरे तरफ बढ़ने लगा और इससे पहले मे कुछ कर पाता उसने तुरंत मेरे पेट मे लात मार दी जिसके कारण मे 5 कदम दूर जा गिरा

कालि :- क्या हुआ कुमार सारी हेकड़ी निकल गयी मैने सही कहा था बड़ा कमजोर है तू अब तेरे आँखों के सामने मे तेरे माँ का वस्त्र हरण ना किया तो मेरा नाम भी कालि नही

उसकी ये बात सुनकर अब मेरा दिमाग खराब हो गया था मैने तुरंत कुरुमा को बाहर बुलाया जिसे देखकर अब कालि की भी हट गयी थी मैने कुरुमा को सभी सैनिकों के तरफ भेज दिया

और मे खुद अब कालि के तरफ बढ़ने लगा अभी मै कुछ करता की तभी उस कालि ने फिर से एक और अग्नि गोले हमला किया लेकिन इस बार मै उस गोले के सामने मै खुद आ गया

और जैसे ही वो गोला मुझसे टकराया वैसे ही वो मेरे अंदर समा गया ये देख कर वो कालि दंग रह गया मायासुर ने अभी तक कालि को सप्तस्त्रों के बारे मे बताया नही था जिसके बाद मैने आगे बढ़कर एक लात सीधा कालि को मार दी जिसे वो सीधा 10 कदम दूर जाके गिर गया

मैं :- कालि आज तेरा और तेरे घमंड दोनों का अंतिम दिन है तेरे घमंड के वजह से तुमने आज तक कितने ही बड़े पाप किये है और उपर से तुमने जो भी अपशब्द मेरे मा के लिए इस्तेमाल किये है उसके बाद तुम्हारा तुम्हे खतम करना ही मेरी सर्वोत्तम जिम्मेदारि है

कालि :- तुम मेरा अंत करोगे बच्चे अपने प्राणों से प्रेम नही हैं क्या तुम्हे क्या लगा है मेरा एक हमला रोक लिया तो क्या तुम मुझे मारने के लिए सक्षम बन जाओगे आओ तुम्हारा ये अहंकार भी आज उतार दु

इतना बोलके वो तेजी से मेरे तरफ बढ़ने लगा ये देखकर मे भी तैयार हो गया और जैसे ही वो मेरे पास पहुँचा तो उसने तुरंत एक विद्युत तरंग सी हमला किया

लेकिन मे उससे बच गया और तुरंत मैने उसके उपर एक ऊर्जा प्रहार किया जिसे वो बचा गया फिर से हम दोनों मे युद्ध आरंभ हो गया लेकिन इस बार भी ना वो मुझे हरा पा रहा था और ना मे उस हरा पा रहा था लेकिन तभी मैने एक आग का गोला बनाकर उसकी तरफ भेज दिया जिससे वो उड़ कर दूर जाके गिरा

जिसके बाद वो फिर से खड़ा हो गया और अपने बाये हाथ को उपर की तरफ कर दिया जिससे उसके हाथ मे एक चमचमाती हुई तलवार आ गयी जिसे देखकर मेरे मन मे अजीब सा डर निर्माण होने लगा

क्योंकि ये तलवार वही तलवार थी जिससे किसी भी ब्रामहाराक्षस को खतम करने की ताकत रखती है जिसके बारे मे मुझे कुरुमा ne बता दिया था और जैसे ही कालि के हाथो मे वो तलवार आई

तो वो तुरंत ही भागते हुए मेरे तरफ बढ़ने लगा जो देख कर मैने तुरंत ही अपनी आँखे बंद कर के ध्यान लगाने लगा और अपने दिल और दिमाग की सारी सीमाओं को तोड़ कर उन्हे एक कर दिया

और जब मेने अपनी आँखे खोली तो मुझे अपने सामने की हर चीज धीमी लगने लगी बिल्कुल वैसे ही जैसे मुझे उस तीसरे पडाव को पार करते हुए दिखाई दे रहे थे और ऐसा होते ही मुझे कालि कछुए से भी धीमा दिखाई दे रहा था

जिसके बाद मे वहाँ से आगे बढ़कर उसके पास गया और उसके हाथ से वो तलवार बिल्कुल उसी तरह निकाल ली जैसे किसी 2 महीने बच्चे के हाथ से पानी की बोटेल छिनना और जैसे ही वो तलवार मेरे हाथ मे आई

मैने तुरंत उसकी गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी जिसके बाद मैने सब फिर से पहले के जैसा कर दिया और जब कुरुमा से लढते हुए मायासुर ने ये देखा तो वो एक बार फिर से वहाँ से भागने लगा

तो वही अब तक कुरुमा ने सारे असुरों को और ब्रामहारक्षसों को जिंदा निगल लिया था जो देखकर उसकी और फट गयी थी जिसके बाद वो जैसे ही भागने का प्रयास करता मे उसके सामने आ कर खड़ा हो गया

और अपनी तलवार से सीधा उसकी भी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया और जब ये खबर शुक्राचार्य को पता चली तो उसका क्रोध इतना बड़ा की उसने अपने सभी शक्तियों का स्मरण करके धरती पर हमला बोलने का तय किया

उन्होंने आज तक बहुत कोशिशे की थी की वो सप्तस्त्र उनके हो हो जाए लेकिन उनके हाथो मे केवल हार ही लगी उन्होंने हर तरह के षड्यंत्र रचे लेकिन उनका कोई भी षड्यंत्र उन्हे सप्तस्त्र नही दिला सका

जिस वजह से उन्हे मानसिक आघात पहुँचा था और इसी आघात के साथ उन्होंने पुरे विश्व मे अकाल प्रलय लाने का प्रयास किया लेकिन उस प्रलय को रोकने के लिए स्वयं प्रभु काशीनाथ आदिदेव बीच मे आगये और क्रोधवश आके उन्हे उनके ग्रह यानी शुक्र ग्रह मे सदा सदा के लिए कैद कर दिया

तो वही दूसरी तरफ उन दोनों को मारने के बाद मै आश्रम लौट आया और फिर अगले दिन मे माँ बाबा को साथ लेकर ब्रामहराक्षसों के लोक पहुँच गया और फिर वहाँ पर मेरे पिताजी का राज्याभिषेक करने का तय किया लेकिन पिताजी ने उसके लिए मना कर दिया और फिर उन्होंने उनके बदले मुझे सम्राट बनाया
गया जिसके बाद हम सब का जीवन हसी खुशी से कटने लगा

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THE END

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sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin updates… ek or kahaani purnata ko prapt hui … VAJRADHIKARI adbbhut kahani thi mitr …. 👏🏻👏🏻👏🏻
 
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