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Fantasy ब्रह्माराक्षस

parkas

Well-Known Member
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303
अध्याय तिरेपन

मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था

तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया

जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया

और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी


जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए

जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे

क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे

तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे

तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा

लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था

जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया

शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे

मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे

मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया

मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो

शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी

मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था

शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी

शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा

मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव

इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये


तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी

और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा

वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया

जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले

और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे

लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था

मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते

और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi badhiya update diya hai VAJRADHIKARI bhai....
Nice and beautiful update...
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin adhbhut update … sachai ki jeet ke liye Bhadra ne pahle yuddh khatam kiya or shayad apne bete hone ka farz nibhane ke liye ud chala … 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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अध्याय तिरेपन

मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था

तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया

जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया

और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी


जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए

जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे

क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे

तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे

तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा

लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था

जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया

शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे

मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे

मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया

मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो

शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी

मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था

शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी

शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा

मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव

इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये


तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी

और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा

वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया

जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले

और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे

लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था

मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते

और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था

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आज के लिए इतना ही

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Bohot badhiya update bhai👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
Bhadra ne saare asuro ko lapet diya😅 sapt astra dharak ya fir ye kaho ki maha dharak ban gaya. Ab kumar k sath jake apne ma baap ko chudayega. Kyu ki ab bhadra ke pas taqut ki kami nahi hai.
Awesome update and superb writing ✍️. 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻❣️❣️❣️🔥🔥🔥🔥
 

park

Well-Known Member
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Nice and superb update....
अध्याय तिरेपन

मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था

तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया

जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया

और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी


जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए

जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे

क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे

तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे

तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा

लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था

जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया

शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे

मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे

मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया

मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो

शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी

मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था

शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी

शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा

मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव

इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये


तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी

और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा

वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया

जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले

और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे

लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था

मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते

और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update....
 

kas1709

Well-Known Member
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मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था

तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया

जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया

और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी


जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए

जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे

क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे

तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे

तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा

लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था

जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया

शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे

मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे

मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया

मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो

शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी

मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था

शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी

शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा

मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव

इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये


तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी

और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा

वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया

जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले

और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे

लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था

मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते

और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था

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आज के लिए इतना ही

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Nice update...
 

sunoanuj

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VAJRADHIKARI next update kab tak aayega … last update ne utsukta bahut badha dii hai ki ab kya hoga … 👏🏻👏🏻👏🏻
 

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अध्याय चौवन

जहाँ एक तरफ पुरा अच्छाई का पक्ष अपने जीत का जश्न मना रहे थे तो वही दूसरी तरफ एक जगह और थी जहाँ पर कोई जश्न मना रहा था और वो लगातार हँसे जा रहा था और वो शक्स कोई और नही बल्कि शिबू ही था

जब मेने उसकी शक्तियाँ यानी उसका सिंहासन और तलवारों को पूरी तरह जाग्रुत कर के उनकी शक्तियों को काबू कर लिया था उसी वक्त शिबू को भी इस बारे में पता चल गया था कि किसी ने उसकी शक्तियों को अपने अधीन कर लिया है

और वो भली भाँति जानता था कि ये भद्रा यानी मेरे सिवा कोई और नही हो सकता और वो इसका मतलब भी समझ गया था और इसका अर्थ था की मुझे मेरे अस्तित्व का पूर्ण बोध होना

इसी कारण के वजह शिबू हँसे जा रहा था और जब त्रिलोकेश्वर ने उसके हँसने का कारण पूछा तो शिबू ने अपनी हँसी को रोक कर वो अपने कैद के दरवाजे के पास आया और बुलंद आवाज़ मे बोलने लगा

शिबू:- सब लोग तैयार हो जाओ आज हमारे आजादी का दिन है तुम सबके राजकुमार आ रहे है हमे आज़ाद करने

शिबू की बात सुन कर उस गुफा में हर तरफ शोर मचने लगा था और इसी शोर के बीच में किसी के चिल्लाने की आवाज आने लगी जो कोई और नही बल्कि दमयंती थी जिसके आँखों में आँसू थे और चेहरे पर क्रोध

दमयंती :- शांत हो जाओ तुम सब ये झूठी उम्मीदों से कुछ नहीं होगा

शिबू :- नही महारानी ये कोई झूठी उम्मीद नही है मे महसूस कर पा रहा हूँ की कुमार ने मेरी सारी शक्तियों को अपने काबू में कर लिया है और इसका अर्थ साफ है कि कुमार को अपने अस्तित्व का ज्ञान हो गया है

दमयंती:- तो कहाँ है वो अगर उस ज्ञान है उसके अस्तित्व का तो वो आ क्यों नही रहा है हमे बचाने के लिए और आपने या सब बाते उस वक़्त भी करी थी जब वो पहली बार आपके सिंहासन पर विराजा था

शिबू (शांत)....

दमयंती :- लेकिन क्या हुआ कुछ नही ये सब आपने उस वक़्त भी कहा था जब मेरा पुत्र अपने जीवन और मृत्यु से लढ रहा था और आपकी बात का भरोसा करते हुए जिन शक्तियों को हमने इस कैद मे इतनी मुश्किल से जाग्रुत किया था उन सभी शक्तियों को दांव पर लगाकर मै उसके मस्तिष्क मे अपना प्रतिरूप को भी दिखाया था

शिबू (शांत) .....

दमयंती :- लेकिन हुआ क्या कुछ नही बल्कि वो इस वजह से इतना कमजोर हो गया कि वो मृत्यु मुख में जा पहुंचा बताओ अगर वो सब जान गया है तो आया क्यों नही वो यहाँ बोलो क्यों नही आया वो क्या उसे हमारी चिंता नहीं है या वो हमे प्रेम नही करता बोलो क्यों नही आया वो

इतना बोलते हुए वो जमीन पर बैठकर रोने लगी तो वही त्रिलोकेश्वर उसे संभालने का प्रयास कर रहा था तो शिबू को समझ नही आ रहा था कि वो अब क्या बोले आज तक वो जिस दमयंती से बात करता था वो ब्रम्हराक्षस प्रजाति की महारानी थी लेकिन आज उसे वहा एक बेसहारा माँ दिखाई दे रही थी

जो केवल अपने पुत्र के सहारे का इंतज़ार कर रही थी परंतु नियति उसके पुत्र को उसके पास भेज ही नहीं रही थी तो वही दमयंती की बाते सुनकर और उसकी हालत देखकर हर तरफ सन्नाटा छा गया था

कि तभी उस सन्नाटे को चिरते हुए किसी के रोने की आवाज सुनाई देने लगी तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे युद्ध के मैदान से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था और जब मैने उसका चेहरा देखा तो वो कोई और नही बल्कि प्रिया थी

उसे देखकर मैने उसे वापस भेजना चाहता था लेकिन मे जानता था कि अगर मे उसके साथ बात करने के लिए रुकता तो जरूर मेरा बहुत सा समय व्यर्थ जाता इसीलिए मैने अपने शक्तियों के मदद से अपनी उड़ने की गति को बढ़ा दिया

जिसके बाद में वायु गति से उड़ रहा था और जब मैने पीछे मुड़ कर देखा तो मुझे एक झटका लगा क्योंकि प्रिया भी मेरे जितने ही तेज उड़ रही थी जिस कारण प्रिया जल्द ही मेरे पास पहुँच गयी

प्रिया :- तुम जितनी चाहे उतनी गति बढ़ा दो लेकिन मे तुम्हारा पीछा नही छोड़ूंगी मै मन की गति से उड़ सकती हूँ इसीलिए तुम जितनी गति बढ़ाओगे उतनी ही गति से मे तुम्हारा पीछा करूँगी

मै :- प्रिया वहा पर खतरा हो सकता हैं मे अपने जीवन का सबसे बड़े अभियान पर जा रहा हूँ और वहा पर अगर तुम चलोगी तो शायद मेरा सच मेरा असली रूप को जानकर मुझसे नफरत करने लगो

प्रिया :- तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया भद्रा मे तुमसे टाइम पास वाला नही बल्कि शिद्दत वाला प्यार करती हूँ और तुम्हारी कोई भी बात मेरे प्यार को नफरत मे बदल नही सकती समझे

मै :- लेकिन प्रिया

प्रिया (बात को बीच मे काटते हुए) :- भद्रा अगर तुम्हे मेरे प्यार पर भरोसा नही है तो ठीक है तुम्हे भरोसा दिलाने के लिए मे तुम्हे एक वचन देती हूँ

मै :- वचन

प्रिया :- हा मे कोई ज्ञानी नही हूँ लेकिन जितना मैने सुना हैं उसके हिसाब से दो प्रेमियों के बीच का सबसे पावन जोड़ होता है गठबंधन का और उस वक़्त दोनों साथ फेरों के रूप मे सात वचन देते है तो आज मे तुम्हे वही वचन देती हूँ कि चाहे परिस्थिति कितनी ही विकट क्यों न हो जाए चाहे तुम अच्छे हो या बुरे चाहे मे मृत्यु शैया पे ही क्यों न पहुँच जाऊ परंतु मे तुम्हे कभी अकेला नही छोड़ूंगी

प्रिया की ऐसी बातें सुनकर मे समझ गया कि प्रिया वापस नही जायेगी और उसकी बाते एक तरह से मेरे दिल को भी छु गयी थी

मै :- (भावुक हो कर) ठीक है फिर आज मे भी तुम्हे एक वचन देता हूँ कि तुम पर होने वाला हर वार पहले मुझसे टकरायेगा जब तक मे जीवित रहूँगा तब तक मृत्यु शैया तो दूर की बात बल्कि तुम्हारे उपर एक आँच भी नही आने दूंगा अब चलो जल्दी

इतना बोलके मैने अपनी गति और भी तेज कर दी मायासुर ने उन सबको धरती लोक के दूसरे छोर पर जहाँ मनुष्य तो दूर कोई पशु पक्षी भी न ही ऐसी जगह पर उसने अपनी माया से वो गुफा रूपी कैद बनाई थी

जो कहाँ थी ये मे भी नही जानता था मे बस शिबू की शक्तियां जो मुझे दिशा दर्शाती उसी दिशा मे पूरी गति के साथ उड़ते हुए जा रहा था

और जैसे ही मैने उस गुफा में प्रवेश किया तो वैसे ही इस बात का पता मायासुर को लग गया की कोई बिना उसके अनुमति के गुफा मे प्रवेश कर रहा है परंतु वो अपने किसी अन्य अभियान में व्यस्त था

इसीलिए वो स्वयं न आके अपने कुछ सिपाहियों को भेजा उस पता नही था की गुफा में प्रवेश करने वाला मे ही हूँ नही तो वो स्वयं आता शायद अभी तक उसके पाप का घडा भरा नही होगा इसीलिए बार बार मेरे चंगुल से बच
रहा है

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आज के लिए इतना ही

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