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Bahut hi badhiya update diya hai VAJRADHIKARI bhai....अध्याय तिरेपन
मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया
जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी
जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और
इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था
तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया
जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया
और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी
जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए
जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे
क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे
तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे
तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा
लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था
जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया
शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे
मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे
मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया
मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो
शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी
मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था
शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी
शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा
मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव
इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये
तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी
और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा
वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया
जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले
और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे
लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था
मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते
और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया
महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है
मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे
इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था
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आज के लिए इतना ही
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Bohot badhiya update bhaiअध्याय तिरेपन
मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया
जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी
जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और
इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था
तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया
जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया
और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी
जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए
जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे
क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे
तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे
तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा
लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था
जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया
शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे
मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे
मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया
मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो
शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी
मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था
शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी
शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा
मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव
इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये
तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी
और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा
वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया
जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले
और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे
लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था
मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते
और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया
महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है
मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे
इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था
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आज के लिए इतना ही
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Nice and superb update....अध्याय तिरेपन
मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया
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जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और
इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था
तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया
जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया
और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी
जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए
जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे
क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे
तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे
तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा
लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था
जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया
शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे
मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे
मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया
मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो
शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी
मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था
शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी
शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा
मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव
इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये
तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी
और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा
वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया
जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले
और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे
लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था
मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते
और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया
महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है
मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे
इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था
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आज के लिए इतना ही
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Nice update...अध्याय तिरेपन
मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया
जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी
जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और
इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था
तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया
जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया
और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी
जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए
जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे
क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे
तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे
तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा
लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था
जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया
शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे
मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे
मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया
मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो
शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी
मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था
शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी
शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा
मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव
इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये
तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी
और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा
वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया
जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले
और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे
लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था
मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते
और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया
महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है
मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे
इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था
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आज के लिए इतना ही
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