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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai...अध्याय चौवन
जहाँ एक तरफ पुरा अच्छाई का पक्ष अपने जीत का जश्न मना रहे थे तो वही दूसरी तरफ एक जगह और थी जहाँ पर कोई जश्न मना रहा था और वो लगातार हँसे जा रहा था और वो शक्स कोई और नही बल्कि शिबू ही था
जब मेने उसकी शक्तियाँ यानी उसका सिंहासन और तलवारों को पूरी तरह जाग्रुत कर के उनकी शक्तियों को काबू कर लिया था उसी वक्त शिबू को भी इस बारे में पता चल गया था कि किसी ने उसकी शक्तियों को अपने अधीन कर लिया है
और वो भली भाँति जानता था कि ये भद्रा यानी मेरे सिवा कोई और नही हो सकता और वो इसका मतलब भी समझ गया था और इसका अर्थ था की मुझे मेरे अस्तित्व का पूर्ण बोध होना
इसी कारण के वजह शिबू हँसे जा रहा था और जब त्रिलोकेश्वर ने उसके हँसने का कारण पूछा तो शिबू ने अपनी हँसी को रोक कर वो अपने कैद के दरवाजे के पास आया और बुलंद आवाज़ मे बोलने लगा
शिबू:- सब लोग तैयार हो जाओ आज हमारे आजादी का दिन है तुम सबके राजकुमार आ रहे है हमे आज़ाद करने
शिबू की बात सुन कर उस गुफा में हर तरफ शोर मचने लगा था और इसी शोर के बीच में किसी के चिल्लाने की आवाज आने लगी जो कोई और नही बल्कि दमयंती थी जिसके आँखों में आँसू थे और चेहरे पर क्रोध
दमयंती :- शांत हो जाओ तुम सब ये झूठी उम्मीदों से कुछ नहीं होगा
शिबू :- नही महारानी ये कोई झूठी उम्मीद नही है मे महसूस कर पा रहा हूँ की कुमार ने मेरी सारी शक्तियों को अपने काबू में कर लिया है और इसका अर्थ साफ है कि कुमार को अपने अस्तित्व का ज्ञान हो गया है
दमयंती:- तो कहाँ है वो अगर उस ज्ञान है उसके अस्तित्व का तो वो आ क्यों नही रहा है हमे बचाने के लिए और आपने या सब बाते उस वक़्त भी करी थी जब वो पहली बार आपके सिंहासन पर विराजा था
शिबू (शांत)....
दमयंती :- लेकिन क्या हुआ कुछ नही ये सब आपने उस वक़्त भी कहा था जब मेरा पुत्र अपने जीवन और मृत्यु से लढ रहा था और आपकी बात का भरोसा करते हुए जिन शक्तियों को हमने इस कैद मे इतनी मुश्किल से जाग्रुत किया था उन सभी शक्तियों को दांव पर लगाकर मै उसके मस्तिष्क मे अपना प्रतिरूप को भी दिखाया था
शिबू (शांत) .....
दमयंती :- लेकिन हुआ क्या कुछ नही बल्कि वो इस वजह से इतना कमजोर हो गया कि वो मृत्यु मुख में जा पहुंचा बताओ अगर वो सब जान गया है तो आया क्यों नही वो यहाँ बोलो क्यों नही आया वो क्या उसे हमारी चिंता नहीं है या वो हमे प्रेम नही करता बोलो क्यों नही आया वो
इतना बोलते हुए वो जमीन पर बैठकर रोने लगी तो वही त्रिलोकेश्वर उसे संभालने का प्रयास कर रहा था तो शिबू को समझ नही आ रहा था कि वो अब क्या बोले आज तक वो जिस दमयंती से बात करता था वो ब्रम्हराक्षस प्रजाति की महारानी थी लेकिन आज उसे वहा एक बेसहारा माँ दिखाई दे रही थी
जो केवल अपने पुत्र के सहारे का इंतज़ार कर रही थी परंतु नियति उसके पुत्र को उसके पास भेज ही नहीं रही थी तो वही दमयंती की बाते सुनकर और उसकी हालत देखकर हर तरफ सन्नाटा छा गया था
कि तभी उस सन्नाटे को चिरते हुए किसी के रोने की आवाज सुनाई देने लगी तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे युद्ध के मैदान से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया
महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है
मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे
इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था और जब मैने उसका चेहरा देखा तो वो कोई और नही बल्कि प्रिया थी
उसे देखकर मैने उसे वापस भेजना चाहता था लेकिन मे जानता था कि अगर मे उसके साथ बात करने के लिए रुकता तो जरूर मेरा बहुत सा समय व्यर्थ जाता इसीलिए मैने अपने शक्तियों के मदद से अपनी उड़ने की गति को बढ़ा दिया
जिसके बाद में वायु गति से उड़ रहा था और जब मैने पीछे मुड़ कर देखा तो मुझे एक झटका लगा क्योंकि प्रिया भी मेरे जितने ही तेज उड़ रही थी जिस कारण प्रिया जल्द ही मेरे पास पहुँच गयी
प्रिया :- तुम जितनी चाहे उतनी गति बढ़ा दो लेकिन मे तुम्हारा पीछा नही छोड़ूंगी मै मन की गति से उड़ सकती हूँ इसीलिए तुम जितनी गति बढ़ाओगे उतनी ही गति से मे तुम्हारा पीछा करूँगी
मै :- प्रिया वहा पर खतरा हो सकता हैं मे अपने जीवन का सबसे बड़े अभियान पर जा रहा हूँ और वहा पर अगर तुम चलोगी तो शायद मेरा सच मेरा असली रूप को जानकर मुझसे नफरत करने लगो
प्रिया :- तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया भद्रा मे तुमसे टाइम पास वाला नही बल्कि शिद्दत वाला प्यार करती हूँ और तुम्हारी कोई भी बात मेरे प्यार को नफरत मे बदल नही सकती समझे
मै :- लेकिन प्रिया
प्रिया (बात को बीच मे काटते हुए) :- भद्रा अगर तुम्हे मेरे प्यार पर भरोसा नही है तो ठीक है तुम्हे भरोसा दिलाने के लिए मे तुम्हे एक वचन देती हूँ
मै :- वचन
प्रिया :- हा मे कोई ज्ञानी नही हूँ लेकिन जितना मैने सुना हैं उसके हिसाब से दो प्रेमियों के बीच का सबसे पावन जोड़ होता है गठबंधन का और उस वक़्त दोनों साथ फेरों के रूप मे सात वचन देते है तो आज मे तुम्हे वही वचन देती हूँ कि चाहे परिस्थिति कितनी ही विकट क्यों न हो जाए चाहे तुम अच्छे हो या बुरे चाहे मे मृत्यु शैया पे ही क्यों न पहुँच जाऊ परंतु मे तुम्हे कभी अकेला नही छोड़ूंगी
प्रिया की ऐसी बातें सुनकर मे समझ गया कि प्रिया वापस नही जायेगी और उसकी बाते एक तरह से मेरे दिल को भी छु गयी थी
मै :- (भावुक हो कर) ठीक है फिर आज मे भी तुम्हे एक वचन देता हूँ कि तुम पर होने वाला हर वार पहले मुझसे टकरायेगा जब तक मे जीवित रहूँगा तब तक मृत्यु शैया तो दूर की बात बल्कि तुम्हारे उपर एक आँच भी नही आने दूंगा अब चलो जल्दी
इतना बोलके मैने अपनी गति और भी तेज कर दी मायासुर ने उन सबको धरती लोक के दूसरे छोर पर जहाँ मनुष्य तो दूर कोई पशु पक्षी भी न ही ऐसी जगह पर उसने अपनी माया से वो गुफा रूपी कैद बनाई थी
जो कहाँ थी ये मे भी नही जानता था मे बस शिबू की शक्तियां जो मुझे दिशा दर्शाती उसी दिशा मे पूरी गति के साथ उड़ते हुए जा रहा था
और जैसे ही मैने उस गुफा में प्रवेश किया तो वैसे ही इस बात का पता मायासुर को लग गया की कोई बिना उसके अनुमति के गुफा मे प्रवेश कर रहा है परंतु वो अपने किसी अन्य अभियान में व्यस्त था
इसीलिए वो स्वयं न आके अपने कुछ सिपाहियों को भेजा उस पता नही था की गुफा में प्रवेश करने वाला मे ही हूँ नही तो वो स्वयं आता शायद अभी तक उसके पाप का घडा भरा नही होगा इसीलिए बार बार मेरे चंगुल से बच
रहा है
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आज के लिए इतना ही
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Nice updateअध्याय पचपन
अभी मे और प्रिया उस गुफा के अंदर पहुंचे ही थे की तभी हमारे सामने धरती से काला धुआ निकालने लगा जिसने देखते ही देखते पूरे 10 महाकाय असुरों का रूप ले लिया
जिन्हे देखकर प्रिया तुरंत सतर्क हो गयी थी तो वही मेरा क्रोध अपने चरम पर पहुँच गया था हर बितते पल के साथ मेरे कानों में मेरे माता पिता की चीख पुकार सुनाई दे रही थी
जिस कारण से मे अब अपना समय इन असुरों पर व्यर्थ करना नही चाहता था इसीलिए मैने अपना हाथ आगे किया और जल अस्त्र को जाग्रुत कर दिया और मेरे ऐसा करते ही मेरे हाथों से बहुत से नुकीले बर्फ के टुकड़े निकले
जो किसी बंदूक की गोलियों के समान उन सभी असुरों पर बरसने लगे जिससे उन असुरों को चीखने का भी समय नही मिला और सभी एक साथ किसी निर्जीव पुतले समान धरती पर गिरने लगे
और मे ये सब दुर्लक्ष करते हुए आगे बढ़ने लगा तो वही प्रिया मेरे क्रोध और ऐसे रूप को देखकर हैरत मे पड़ गयी थी लेकिन उसने मुझे अंदर जाते हुए देखकर तुरंत मेरे पीछे आने लगी और जैसे ही मे अंदर पहुँचा
वैसे ही मुझे शिबू की बात सुनाई देने लगी और अपने प्रजा का उत्साह देख मेरा क्रोध भी ठंडा हो गया था और मेरे चेहरे पर अपने लोगों का प्यार देखकर एक दिलकश सी मुस्कान छा गयी थी
परंतु वो मुस्कान ज्यादा देर तक टिक नही पायी मेरे कानों मे माँ की कही गयी हर एक बात ऐसे लग रही थी की मानो किसी ने गरम खौलता हुआ काँच मेरे कानों में डाल दिया था
अपनी माँ के दुख पीड़ा जानकर मेरे आँखों से भी आँसू आ कर बहने लगे जो देखकर प्रिया का सर उलझन से फटने के कगार पर आ गया था उसने आज तक मुझे कभी भी रोते हुए नही देखा था
तो वही मेरे बदलते हुई भावनाएं उस और उलझा रहे थे वो समझ नही पा रही थी कि आखिर मुझे हो क्या रहा है जहाँ प्रिया ये सब सोच कर और उलझन मे आ गयी थी
तो वही अब माँ के रोने की आवाज मुझसे और सहन नही हो रही थी माँ को रोता हुआ देखकर मुझे खुद पर भी क्रोध आ रहा था कि मेरे माता पिता इतने सालों से पीड़ा में थे
और मे वहा आराम से ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा था मुझे अब खुद से ही घिन आ रही थी और या सब सोचते हुए मेरे भी आँखों से आँसुओं की नदी बहने लगी और वैसे ही अवस्था में सबके सामने आ गया
मे :- (रोते हुए) अब शांत हो जो माँ अब मुझसे और सहन नहीं होगा आपने सही कहाँ माँ मे अच्छा बेटा नही बन पाया परंतु क्या आप अपने इस बेटे को अपनी सफ़ाई रखने का मौका नहीं देंगी आज तक तो मे खुद से ही अंजान था मे खुद नही जानता था कि मे कौन हूँ मेरी असली पहचान क्या है मेरा इस दुनिया में कोई अपना है भी या नही मे कुछ नहीं जानता था और जब मे आज अपने सच से अवगत हुआ तो मे तुरंत आपके पास आना चाहता था लेकिन मेरे कर्तव्यों ने मेरी जिम्मेदारियों ने मुझे आने से रोक दिया था और जैसे ही मे उन जिम्मेदारियों से मुक्त हुआ वैसे ही मै आप सब के पास आ गया और अगर आप अभी भी मुझे अपराधी मानती हैं तो आप मुझे सज़ा दे सकती हो परंतु ऐसा कभी मत बोलना की मुझे आपकी चिंता नहीं है या मै आपसे प्रेम नही करता बल्कि जब से मुझे सत्य का ज्ञान हुआ है तभी से मेरे मन में केवल आपके ही बारे में विचार है मेरे रोम रोम से आपकी ही आवाज आ रही हैं मे अपनी बातों का यकीन कैसे दिलाउ
इतना बोलकर मै उनके पास जाने लगा तो वही जो सब लोग मुझे वहा देखकर हैरान थे खुश थे वो सब भी मेरी बाते सुन कर मायूस हो गए थे
तो वही दूसरी तरफ अब तक जो कुछ भी हुआ था उससे तो प्रिया पहले ही हैरान परेशान थी तो अब मेरी बाते सुनकर मेरे आँखों से आँसुओं को लगातार बहते हुए देखकर वो और भी परेशान हो गयी थी
तो वही जब माँ ने मेरे आँखों मे ऐसे आँसू देखे तो उनके दिल मे भी एक तीस सी उठ गयी जिस वजह से वो रोने लगी तो वही उन्हे रोता देखकर मे तुरंत उनके सलाखों के पास पहुँच गया और उनके हाथ पकड़ लिए
मै :- बस मा अब रोने के दिन गए आपके अब मे आपको यहाँ से वापस खुले आसमान के नीचे ले जाऊंगा और आपको आपका साम्राज्य भी मिलेगा आप रोइये मत
माँ :- आज मुझे रो लेने दे मेरे पुत्र आज मेरे आँखों के आँसू किसी पीड़ा या दर्द से नही बल्कि खुशी मे निकल रहे हैं
फिर उसके बाद में उन सलाखों से दूर हो कर खड़ा हो गया और फिर मेने अपने नंदी अस्त्र को जाग्रुत कर के पूरी ताकत से उस कैद खाने की सलाखों को खीचना शुरू किया
जिससे सारे सलाखे टूट कर अलग हो गए और कुछ ही देर मे मेरे सारे प्रजाजन माता पिता और शिबू आजाद हो गए थे तो वही अब तक का सारा तमाशा देख कर प्रिया बहुत कुछ समझ गयी थी
लेकिन उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि जैसे अभी भी वो असमंजस मे जो देखकर मेने प्रिया को आश्रम में सबके सामने सब बताने का आश्वासन दिया और हम उस मायावी गुफा से निकल गए
और उस गुफा से बाहर निकलते ही मेने कालास्त्र के मदद से एक मायावी द्वार का निर्माण किया जो की सीधा कालविजय आश्रम के बाहर खुलने वाला था
तो वही दूसरी तरफ आज के युद्ध मे मेरी शक्तियां मेरी क्षमता सातों अस्त्रों और उनकी शक्तियों पर मेरी पकड़ देखकर सारे गुरु अभी तक हैरान परेशान थे उन्हे अब तक ये समझ नही आया था
कि कैसे एक मनुष्य सप्तस्त्रों की मिश्रित शक्तियों को इतने अच्छे से संभाल सकता हैं लेकिन उन सबके बीच महागुरु ही ऐसे एक शक्स थे जो मंद मंद मुस्कुरा रहे थे जो देखकर गुरु सिँह से अब ज्यादा रहा नही गया और वो महागुरु से इस पहेली का जवाब पूछने लगे
गुरु सिँह :- क्या बात है महागुरु आप भद्रा की ताकत देखकर हैरान नही है
महागुरु:- हैरान होना ही क्यों चाहिए तुम बताओ मुझे दिग्विजय भद्रा हम सब का शिष्य है बचपन से ही वो सातों अस्त्रों की शक्तियों से खेलता आ रहा है हम सब ने उसे बचपन से अस्त्रों को काबू करने की विद्या खेल के माध्यम से बताते आ रहे हैं क्योंकि हम सबने पहले ही कही न कही भद्रा हमारा उत्तराधिकारी मान लिया था और आज जब भद्रा हमारा शिष्य उस काबिल हो गया है की सप्तस्त्र की शक्तियों को इतनी सहजता से काबू कर सकता हैं तो हमे सब को खुश होना चाहिए न की उसकी काबिलियत और शक्तियों पर सवाल उठा कर उसका आत्मविश्वास को तोड़ना
महागुरु की बाते सुनकर सबके सर शर्म से झूक गए थे और उन्हे उनकी गलतियों का एहसास हो गया था तो वही महागुरु ki बात सुनकर गुरु वानर कुछ बोलना चाहते थे लेकिन इसे पहले कि वो कुछ बोल पाते उससे पहले ही महागुरु ने उन्हे रोक दिया
महागुरु :- तुम क्या पूछना चाहते हो वो मे जानता हूं गौरव तुम यही पूछना चाहते हो न की कोई मनुष्य सप्तस्त्रों की शक्तियों को कैसे काबू कर सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर गौरव (गुरुवानर) ने केवल हा मे अपनी गर्दन हिलाकर सम्मति दिखाई
महागुरु:- इस सवाल की उम्मीद थी मुझे लेकिन मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी की तुम ये सवाल पूछोगे तुम तो मुझसे भी ज्यादा अस्त्रों की जानकारी रखते हो तुम्हे ये बात तो ज्ञात हो गी की सप्तस्त्र कोई अलग अलग सात अस्त्र न होके एक ही महाशक्ति के सात भाग है और अगर वो सब एक ही शक्ति के सात भाग है तो वो जैसे पहले अलग हुए थे वैसे ही वापस जुड़ भी सकते है
महागुरु की बात इस बार सबके दिलों दिमाग में बैठ गयी और सबके सवाल भी खतम हो गए और अभी वो लोग कुछ ऐसे ही बाते कर रहे थे की तभी बाहर से उन्हे कुछ कोलाहल की आवाज आने लगी जी सुनकर सभी सतर्क हो गए और बाहर के तरह चल पड़े
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आज के लिए इतना ही
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Adhbhut bahut hi behtarin updates…अध्याय पचपन
अभी मे और प्रिया उस गुफा के अंदर पहुंचे ही थे की तभी हमारे सामने धरती से काला धुआ निकालने लगा जिसने देखते ही देखते पूरे 10 महाकाय असुरों का रूप ले लिया
जिन्हे देखकर प्रिया तुरंत सतर्क हो गयी थी तो वही मेरा क्रोध अपने चरम पर पहुँच गया था हर बितते पल के साथ मेरे कानों में मेरे माता पिता की चीख पुकार सुनाई दे रही थी
जिस कारण से मे अब अपना समय इन असुरों पर व्यर्थ करना नही चाहता था इसीलिए मैने अपना हाथ आगे किया और जल अस्त्र को जाग्रुत कर दिया और मेरे ऐसा करते ही मेरे हाथों से बहुत से नुकीले बर्फ के टुकड़े निकले
जो किसी बंदूक की गोलियों के समान उन सभी असुरों पर बरसने लगे जिससे उन असुरों को चीखने का भी समय नही मिला और सभी एक साथ किसी निर्जीव पुतले समान धरती पर गिरने लगे
और मे ये सब दुर्लक्ष करते हुए आगे बढ़ने लगा तो वही प्रिया मेरे क्रोध और ऐसे रूप को देखकर हैरत मे पड़ गयी थी लेकिन उसने मुझे अंदर जाते हुए देखकर तुरंत मेरे पीछे आने लगी और जैसे ही मे अंदर पहुँचा
वैसे ही मुझे शिबू की बात सुनाई देने लगी और अपने प्रजा का उत्साह देख मेरा क्रोध भी ठंडा हो गया था और मेरे चेहरे पर अपने लोगों का प्यार देखकर एक दिलकश सी मुस्कान छा गयी थी
परंतु वो मुस्कान ज्यादा देर तक टिक नही पायी मेरे कानों मे माँ की कही गयी हर एक बात ऐसे लग रही थी की मानो किसी ने गरम खौलता हुआ काँच मेरे कानों में डाल दिया था
अपनी माँ के दुख पीड़ा जानकर मेरे आँखों से भी आँसू आ कर बहने लगे जो देखकर प्रिया का सर उलझन से फटने के कगार पर आ गया था उसने आज तक मुझे कभी भी रोते हुए नही देखा था
तो वही मेरे बदलते हुई भावनाएं उस और उलझा रहे थे वो समझ नही पा रही थी कि आखिर मुझे हो क्या रहा है जहाँ प्रिया ये सब सोच कर और उलझन मे आ गयी थी
तो वही अब माँ के रोने की आवाज मुझसे और सहन नही हो रही थी माँ को रोता हुआ देखकर मुझे खुद पर भी क्रोध आ रहा था कि मेरे माता पिता इतने सालों से पीड़ा में थे
और मे वहा आराम से ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा था मुझे अब खुद से ही घिन आ रही थी और या सब सोचते हुए मेरे भी आँखों से आँसुओं की नदी बहने लगी और वैसे ही अवस्था में सबके सामने आ गया
मे :- (रोते हुए) अब शांत हो जो माँ अब मुझसे और सहन नहीं होगा आपने सही कहाँ माँ मे अच्छा बेटा नही बन पाया परंतु क्या आप अपने इस बेटे को अपनी सफ़ाई रखने का मौका नहीं देंगी आज तक तो मे खुद से ही अंजान था मे खुद नही जानता था कि मे कौन हूँ मेरी असली पहचान क्या है मेरा इस दुनिया में कोई अपना है भी या नही मे कुछ नहीं जानता था और जब मे आज अपने सच से अवगत हुआ तो मे तुरंत आपके पास आना चाहता था लेकिन मेरे कर्तव्यों ने मेरी जिम्मेदारियों ने मुझे आने से रोक दिया था और जैसे ही मे उन जिम्मेदारियों से मुक्त हुआ वैसे ही मै आप सब के पास आ गया और अगर आप अभी भी मुझे अपराधी मानती हैं तो आप मुझे सज़ा दे सकती हो परंतु ऐसा कभी मत बोलना की मुझे आपकी चिंता नहीं है या मै आपसे प्रेम नही करता बल्कि जब से मुझे सत्य का ज्ञान हुआ है तभी से मेरे मन में केवल आपके ही बारे में विचार है मेरे रोम रोम से आपकी ही आवाज आ रही हैं मे अपनी बातों का यकीन कैसे दिलाउ
इतना बोलकर मै उनके पास जाने लगा तो वही जो सब लोग मुझे वहा देखकर हैरान थे खुश थे वो सब भी मेरी बाते सुन कर मायूस हो गए थे
तो वही दूसरी तरफ अब तक जो कुछ भी हुआ था उससे तो प्रिया पहले ही हैरान परेशान थी तो अब मेरी बाते सुनकर मेरे आँखों से आँसुओं को लगातार बहते हुए देखकर वो और भी परेशान हो गयी थी
तो वही जब माँ ने मेरे आँखों मे ऐसे आँसू देखे तो उनके दिल मे भी एक तीस सी उठ गयी जिस वजह से वो रोने लगी तो वही उन्हे रोता देखकर मे तुरंत उनके सलाखों के पास पहुँच गया और उनके हाथ पकड़ लिए
मै :- बस मा अब रोने के दिन गए आपके अब मे आपको यहाँ से वापस खुले आसमान के नीचे ले जाऊंगा और आपको आपका साम्राज्य भी मिलेगा आप रोइये मत
माँ :- आज मुझे रो लेने दे मेरे पुत्र आज मेरे आँखों के आँसू किसी पीड़ा या दर्द से नही बल्कि खुशी मे निकल रहे हैं
फिर उसके बाद में उन सलाखों से दूर हो कर खड़ा हो गया और फिर मेने अपने नंदी अस्त्र को जाग्रुत कर के पूरी ताकत से उस कैद खाने की सलाखों को खीचना शुरू किया
जिससे सारे सलाखे टूट कर अलग हो गए और कुछ ही देर मे मेरे सारे प्रजाजन माता पिता और शिबू आजाद हो गए थे तो वही अब तक का सारा तमाशा देख कर प्रिया बहुत कुछ समझ गयी थी
लेकिन उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि जैसे अभी भी वो असमंजस मे जो देखकर मेने प्रिया को आश्रम में सबके सामने सब बताने का आश्वासन दिया और हम उस मायावी गुफा से निकल गए
और उस गुफा से बाहर निकलते ही मेने कालास्त्र के मदद से एक मायावी द्वार का निर्माण किया जो की सीधा कालविजय आश्रम के बाहर खुलने वाला था
तो वही दूसरी तरफ आज के युद्ध मे मेरी शक्तियां मेरी क्षमता सातों अस्त्रों और उनकी शक्तियों पर मेरी पकड़ देखकर सारे गुरु अभी तक हैरान परेशान थे उन्हे अब तक ये समझ नही आया था
कि कैसे एक मनुष्य सप्तस्त्रों की मिश्रित शक्तियों को इतने अच्छे से संभाल सकता हैं लेकिन उन सबके बीच महागुरु ही ऐसे एक शक्स थे जो मंद मंद मुस्कुरा रहे थे जो देखकर गुरु सिँह से अब ज्यादा रहा नही गया और वो महागुरु से इस पहेली का जवाब पूछने लगे
गुरु सिँह :- क्या बात है महागुरु आप भद्रा की ताकत देखकर हैरान नही है
महागुरु:- हैरान होना ही क्यों चाहिए तुम बताओ मुझे दिग्विजय भद्रा हम सब का शिष्य है बचपन से ही वो सातों अस्त्रों की शक्तियों से खेलता आ रहा है हम सब ने उसे बचपन से अस्त्रों को काबू करने की विद्या खेल के माध्यम से बताते आ रहे हैं क्योंकि हम सबने पहले ही कही न कही भद्रा हमारा उत्तराधिकारी मान लिया था और आज जब भद्रा हमारा शिष्य उस काबिल हो गया है की सप्तस्त्र की शक्तियों को इतनी सहजता से काबू कर सकता हैं तो हमे सब को खुश होना चाहिए न की उसकी काबिलियत और शक्तियों पर सवाल उठा कर उसका आत्मविश्वास को तोड़ना
महागुरु की बाते सुनकर सबके सर शर्म से झूक गए थे और उन्हे उनकी गलतियों का एहसास हो गया था तो वही महागुरु ki बात सुनकर गुरु वानर कुछ बोलना चाहते थे लेकिन इसे पहले कि वो कुछ बोल पाते उससे पहले ही महागुरु ने उन्हे रोक दिया
महागुरु :- तुम क्या पूछना चाहते हो वो मे जानता हूं गौरव तुम यही पूछना चाहते हो न की कोई मनुष्य सप्तस्त्रों की शक्तियों को कैसे काबू कर सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर गौरव (गुरुवानर) ने केवल हा मे अपनी गर्दन हिलाकर सम्मति दिखाई
महागुरु:- इस सवाल की उम्मीद थी मुझे लेकिन मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी की तुम ये सवाल पूछोगे तुम तो मुझसे भी ज्यादा अस्त्रों की जानकारी रखते हो तुम्हे ये बात तो ज्ञात हो गी की सप्तस्त्र कोई अलग अलग सात अस्त्र न होके एक ही महाशक्ति के सात भाग है और अगर वो सब एक ही शक्ति के सात भाग है तो वो जैसे पहले अलग हुए थे वैसे ही वापस जुड़ भी सकते है
महागुरु की बात इस बार सबके दिलों दिमाग में बैठ गयी और सबके सवाल भी खतम हो गए और अभी वो लोग कुछ ऐसे ही बाते कर रहे थे की तभी बाहर से उन्हे कुछ कोलाहल की आवाज आने लगी जी सुनकर सभी सतर्क हो गए और बाहर के तरह चल पड़े
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आज के लिए इतना ही
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