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Fantasy ब्रह्माराक्षस

Rusev

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अध्याय पचपन

अभी मे और प्रिया उस गुफा के अंदर पहुंचे ही थे की तभी हमारे सामने धरती से काला धुआ निकालने लगा जिसने देखते ही देखते पूरे 10 महाकाय असुरों का रूप ले लिया

जिन्हे देखकर प्रिया तुरंत सतर्क हो गयी थी तो वही मेरा क्रोध अपने चरम पर पहुँच गया था हर बितते पल के साथ मेरे कानों में मेरे माता पिता की चीख पुकार सुनाई दे रही थी

जिस कारण से मे अब अपना समय इन असुरों पर व्यर्थ करना नही चाहता था इसीलिए मैने अपना हाथ आगे किया और जल अस्त्र को जाग्रुत कर दिया और मेरे ऐसा करते ही मेरे हाथों से बहुत से नुकीले बर्फ के टुकड़े निकले


जो किसी बंदूक की गोलियों के समान उन सभी असुरों पर बरसने लगे जिससे उन असुरों को चीखने का भी समय नही मिला और सभी एक साथ किसी निर्जीव पुतले समान धरती पर गिरने लगे

और मे ये सब दुर्लक्ष करते हुए आगे बढ़ने लगा तो वही प्रिया मेरे क्रोध और ऐसे रूप को देखकर हैरत मे पड़ गयी थी लेकिन उसने मुझे अंदर जाते हुए देखकर तुरंत मेरे पीछे आने लगी और जैसे ही मे अंदर पहुँचा

वैसे ही मुझे शिबू की बात सुनाई देने लगी और अपने प्रजा का उत्साह देख मेरा क्रोध भी ठंडा हो गया था और मेरे चेहरे पर अपने लोगों का प्यार देखकर एक दिलकश सी मुस्कान छा गयी थी

परंतु वो मुस्कान ज्यादा देर तक टिक नही पायी मेरे कानों मे माँ की कही गयी हर एक बात ऐसे लग रही थी की मानो किसी ने गरम खौलता हुआ काँच मेरे कानों में डाल दिया था

अपनी माँ के दुख पीड़ा जानकर मेरे आँखों से भी आँसू आ कर बहने लगे जो देखकर प्रिया का सर उलझन से फटने के कगार पर आ गया था उसने आज तक मुझे कभी भी रोते हुए नही देखा था


तो वही मेरे बदलते हुई भावनाएं उस और उलझा रहे थे वो समझ नही पा रही थी कि आखिर मुझे हो क्या रहा है जहाँ प्रिया ये सब सोच कर और उलझन मे आ गयी थी

तो वही अब माँ के रोने की आवाज मुझसे और सहन नही हो रही थी माँ को रोता हुआ देखकर मुझे खुद पर भी क्रोध आ रहा था कि मेरे माता पिता इतने सालों से पीड़ा में थे

और मे वहा आराम से ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा था मुझे अब खुद से ही घिन आ रही थी और या सब सोचते हुए मेरे भी आँखों से आँसुओं की नदी बहने लगी और वैसे ही अवस्था में सबके सामने आ गया

मे :- (रोते हुए) अब शांत हो जो माँ अब मुझसे और सहन नहीं होगा आपने सही कहाँ माँ मे अच्छा बेटा नही बन पाया परंतु क्या आप अपने इस बेटे को अपनी सफ़ाई रखने का मौका नहीं देंगी आज तक तो मे खुद से ही अंजान था मे खुद नही जानता था कि मे कौन हूँ मेरी असली पहचान क्या है मेरा इस दुनिया में कोई अपना है भी या नही मे कुछ नहीं जानता था और जब मे आज अपने सच से अवगत हुआ तो मे तुरंत आपके पास आना चाहता था लेकिन मेरे कर्तव्यों ने मेरी जिम्मेदारियों ने मुझे आने से रोक दिया था और जैसे ही मे उन जिम्मेदारियों से मुक्त हुआ वैसे ही मै आप सब के पास आ गया और अगर आप अभी भी मुझे अपराधी मानती हैं तो आप मुझे सज़ा दे सकती हो परंतु ऐसा कभी मत बोलना की मुझे आपकी चिंता नहीं है या मै आपसे प्रेम नही करता बल्कि जब से मुझे सत्य का ज्ञान हुआ है तभी से मेरे मन में केवल आपके ही बारे में विचार है मेरे रोम रोम से आपकी ही आवाज आ रही हैं मे अपनी बातों का यकीन कैसे दिलाउ

इतना बोलकर मै उनके पास जाने लगा तो वही जो सब लोग मुझे वहा देखकर हैरान थे खुश थे वो सब भी मेरी बाते सुन कर मायूस हो गए थे

तो वही दूसरी तरफ अब तक जो कुछ भी हुआ था उससे तो प्रिया पहले ही हैरान परेशान थी तो अब मेरी बाते सुनकर मेरे आँखों से आँसुओं को लगातार बहते हुए देखकर वो और भी परेशान हो गयी थी

तो वही जब माँ ने मेरे आँखों मे ऐसे आँसू देखे तो उनके दिल मे भी एक तीस सी उठ गयी जिस वजह से वो रोने लगी तो वही उन्हे रोता देखकर मे तुरंत उनके सलाखों के पास पहुँच गया और उनके हाथ पकड़ लिए

मै :- बस मा अब रोने के दिन गए आपके अब मे आपको यहाँ से वापस खुले आसमान के नीचे ले जाऊंगा और आपको आपका साम्राज्य भी मिलेगा आप रोइये मत

माँ :- आज मुझे रो लेने दे मेरे पुत्र आज मेरे आँखों के आँसू किसी पीड़ा या दर्द से नही बल्कि खुशी मे निकल रहे हैं

फिर उसके बाद में उन सलाखों से दूर हो कर खड़ा हो गया और फिर मेने अपने नंदी अस्त्र को जाग्रुत कर के पूरी ताकत से उस कैद खाने की सलाखों को खीचना शुरू किया


जिससे सारे सलाखे टूट कर अलग हो गए और कुछ ही देर मे मेरे सारे प्रजाजन माता पिता और शिबू आजाद हो गए थे तो वही अब तक का सारा तमाशा देख कर प्रिया बहुत कुछ समझ गयी थी

लेकिन उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि जैसे अभी भी वो असमंजस मे जो देखकर मेने प्रिया को आश्रम में सबके सामने सब बताने का आश्वासन दिया और हम उस मायावी गुफा से निकल गए

और उस गुफा से बाहर निकलते ही मेने कालास्त्र के मदद से एक मायावी द्वार का निर्माण किया जो की सीधा कालविजय आश्रम के बाहर खुलने वाला था

तो वही दूसरी तरफ आज के युद्ध मे मेरी शक्तियां मेरी क्षमता सातों अस्त्रों और उनकी शक्तियों पर मेरी पकड़ देखकर सारे गुरु अभी तक हैरान परेशान थे उन्हे अब तक ये समझ नही आया था

कि कैसे एक मनुष्य सप्तस्त्रों की मिश्रित शक्तियों को इतने अच्छे से संभाल सकता हैं लेकिन उन सबके बीच महागुरु ही ऐसे एक शक्स थे जो मंद मंद मुस्कुरा रहे थे जो देखकर गुरु सिँह से अब ज्यादा रहा नही गया और वो महागुरु से इस पहेली का जवाब पूछने लगे

गुरु सिँह :- क्या बात है महागुरु आप भद्रा की ताकत देखकर हैरान नही है

महागुरु:- हैरान होना ही क्यों चाहिए तुम बताओ मुझे दिग्विजय भद्रा हम सब का शिष्य है बचपन से ही वो सातों अस्त्रों की शक्तियों से खेलता आ रहा है हम सब ने उसे बचपन से अस्त्रों को काबू करने की विद्या खेल के माध्यम से बताते आ रहे हैं क्योंकि हम सबने पहले ही कही न कही भद्रा हमारा उत्तराधिकारी मान लिया था और आज जब भद्रा हमारा शिष्य उस काबिल हो गया है की सप्तस्त्र की शक्तियों को इतनी सहजता से काबू कर सकता हैं तो हमे सब को खुश होना चाहिए न की उसकी काबिलियत और शक्तियों पर सवाल उठा कर उसका आत्मविश्वास को तोड़ना

महागुरु की बाते सुनकर सबके सर शर्म से झूक गए थे और उन्हे उनकी गलतियों का एहसास हो गया था तो वही महागुरु ki बात सुनकर गुरु वानर कुछ बोलना चाहते थे लेकिन इसे पहले कि वो कुछ बोल पाते उससे पहले ही महागुरु ने उन्हे रोक दिया

महागुरु :- तुम क्या पूछना चाहते हो वो मे जानता हूं गौरव तुम यही पूछना चाहते हो न की कोई मनुष्य सप्तस्त्रों की शक्तियों को कैसे काबू कर सकता हैं

महागुरु की बात सुनकर गौरव (गुरुवानर) ने केवल हा मे अपनी गर्दन हिलाकर सम्मति दिखाई

महागुरु:- इस सवाल की उम्मीद थी मुझे लेकिन मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी की तुम ये सवाल पूछोगे तुम तो मुझसे भी ज्यादा अस्त्रों की जानकारी रखते हो तुम्हे ये बात तो ज्ञात हो गी की सप्तस्त्र कोई अलग अलग सात अस्त्र न होके एक ही महाशक्ति के सात भाग है और अगर वो सब एक ही शक्ति के सात भाग है तो वो जैसे पहले अलग हुए थे वैसे ही वापस जुड़ भी सकते है

महागुरु की बात इस बार सबके दिलों दिमाग में बैठ गयी और सबके सवाल भी खतम हो गए और अभी वो लोग कुछ ऐसे ही बाते कर रहे थे की तभी बाहर से उन्हे कुछ कोलाहल की आवाज आने लगी जी सुनकर सभी सतर्क हो गए और बाहर के तरह चल पड़े

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आज के लिए इतना ही

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Nice update bro
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
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144
अध्याय छप्पन

इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी

ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे

आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी

जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था

जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा

तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे

तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था

तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था

जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे

विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो

विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)

मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है

विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है

जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी

और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे

लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी

क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी

जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे

हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी

तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया

और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया

जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए

और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी

मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया

मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर

मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ

मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी

जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई

और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी

और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे

गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा

इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था

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आज के लिए इतना ही

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Tri2010

Well-Known Member
2,007
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143
अध्याय छप्पन

इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी

ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे

आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी

जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था

जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा

तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे

तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था

तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था

जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे

विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो

विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)

मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है

विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है

जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी

और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे

लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी

क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी

जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे

हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी

तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया

और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया

जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए

और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी

मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया

मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर

मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ

मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी

जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई

और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी

और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे

गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा

इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था

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आज के लिए इतना ही

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111ramjain

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krish1152

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parkas

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इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी

ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे

आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी

जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था


जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा

तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे


तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था

तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था


जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे

विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो

विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)

मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है

विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है

जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी

और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे

लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी


क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी

जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे

हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी


तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया

और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया


जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए

और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी

मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया

मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर

मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ

मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी


जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई

और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी

और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे

गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा

इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai....
Nice and lovely update.....
 
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park

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अध्याय छप्पन

इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी

ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे

आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी

जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था


जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा

तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे


तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था

तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था


जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे

विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो

विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)

मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है

विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है

जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी

और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे

लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी


क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी

जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे

हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी


तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया

और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया


जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए

और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी

मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया

मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर

मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ

मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी


जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई

और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी

और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे

गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा

इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update.....
 

Gurdep

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अध्याय छप्पन

इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी

ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे

आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी

जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था


जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा

तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे


तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था

तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था


जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे

विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो

विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)

मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है

विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है

जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी

और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे

लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी


क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी

जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे

हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी


तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया

और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया


जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए

और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी

मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया

मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर

मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ

मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी


जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई

और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी

और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे

गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा

इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था

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आज के लिए इतना ही

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NICE UPDATE BHAI AMAZING AWESOME
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
21,905
57,948
259
अध्याय छप्पन

इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी

ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे

आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी

जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था


जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा

तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे


तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था

तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था


जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे

विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो

विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)

मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है

विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है

जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी

और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे

लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी


क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी

जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे

हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी


तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया

और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया


जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए

और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी

मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया

मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर

मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ

मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी


जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई

और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी

और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे

गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा

इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था

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आज के लिए इतना ही

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Awesome, super, amazing update vajradhikari baiya, ek taraf diwali manai ja rahi hai tobwahi asur lok me raja ko marwa ke mayasur ko samraat bana diya👍 bhadra apne pariwar or janta ko le kar kaal vijay aashram kenliye nikla tha???? Sare guru or maha guru kis visay pe charcha kar rahe hai?? Dekhne wali baat ye hogi ki bhadra ka. Agla kadam kya hoa?
Amazing writing
✍️
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻🔥🔥🔥🔥🔥🔥
 
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इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी

ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे

आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी

जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था


जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा

तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे


तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था

तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था


जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे

विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो

विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)

मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है

विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है

जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी

और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे

लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी


क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी

जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे

हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी


तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया

और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया


जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए

और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी

मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया

मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर

मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ

मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी


जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई

और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी

और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे

गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा

इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 
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