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Fantasy ब्रह्माराक्षस

VAJRADHIKARI

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Bhai hindienglish me likho
भाई मुझे अलग अलग चीज़े ट्राय करना पसंद है कि 2 हिंग्लिश मे लिखी है अब कुछ अलग इसे भी आप वैसा ही प्यार दे यही मेरी प्राथना है
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin shuruat… or sabse achee baat yeh devnagri main likhi aapne … Hindi main kahaani ke rochakta bahut jayada badh jaati hai 👏🏻👏🏻👌👌
 

VAJRADHIKARI

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Bhai jise
Rudra
Apne pyaare rishte stori likhe he aise likho ye language Samaj nahi AA Rahi he aagi ap ki marzi bhai
Bhai har baar kuch alag try karna chahiye aur waise bhi ye hindi hi hai jo hum har jagah bolte aur padhte aaye hai
 

VAJRADHIKARI

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अध्याय पहला

जैसे कि सबने पढ़ा कि कैसे अच्छाई को मिली नई शक्तियों के कारण अच्छाई के साथ देने वाले लोग अपने ही साथियों से ईर्ष्या करने लगे उन्हें अपने ही साथियों से जलन होने लगी जिसका फायदा बुराई का पक्ष लिया करता है

और इसी जलन का शिकार बना एक साधु और साध्वी का जोड़ा दोनों भी विवाहित थे और पूरे संसार के मायावी शक्तियों से पूर्णतः शिक्षित और जानकार थे और वो अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग केवल संसार के भलाई के लिए करते थे जिससे वो सब जगह पर प्रसिद्ध होने लगे लेकिन उनके आसपास के लोगों को यह अछा नहीं लगता था इसी के चलते उन्होंने एक षड्यंत्र का निर्माण किया और उन साधु साध्वी का रूप लेकर एक महान विद्वान साधु के यज्ञ स्थान पर संभोग क्रिया करने लगे

जिससे वो यज्ञ निष्फल हो गया और वो साधु क्रोधित हो गए लेकिन वो दोनों बहरूपिये वहां से भाग निकले लेकिन उस साधु ने उनका नकली चेहरा देख लिया था जिससे वह सीधे उन साधु साध्वी के घर जा पहुचे जहा वो दोनों अपने अजन्मे पुत्र के लिए प्राथना कर रहे थे

और जब उन्होंने उस साधु को अपने द्वार पर देखा तो वो आती प्रसन्न हो उठे परंतु उनका क्रोधित चेहरा देख कर डर गए और उनसे इस क्रोध का कारण पूछने लगे लेकिन उस साधु ने बिना कुछ कहे और बिना कुछ सुने उन्हें अक्षम्य श्राप दे दिया जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाती लेकिन उनके किए पुण्य कर्म के कारण उनकी मृत्यु नहीं हुई परंतु वो असुर रूप मे परावर्तित हो गए लेकिन उनके कर्मों और ज्ञान के वजह से वो ब्रम्हाराक्षस बन गए

और जब उन दोनों को इस षड्यंत्र का पता चला तो उन्होंने उन सभी साधुओं का अंत कर दिया और उन्हें भी अपने तरह ही ब्रह्माराक्षस का रूप लेने के लिए मजबूर कर दिया और तब से जो भी वेद पाठ करने वाला ज्ञानी विद्वान साधु या व्यक्ति कोई भी अक्षम्य अपराध करता वो ब्रह्माराक्षस का रूप लेने के लिए मजबूर हो जाते इसीलिए उनका स्थान पाताल लोक मे हो गया और उस दिन से वो दोनों साधु साध्वी पाताल लोक मे रहकर भी अच्छाई का साथ देते परंतु इस वजह से उनका पुत्र जिसने इस संसार मे कदम भी नहीं रखा था वो मृत्यु को प्राप्त हो गया और इस का पूर्ण दोष उन्हीं ज्ञानी साधु पर आया जिसने श्राप दिया था इसी कारण वह भी ब्रह्माराक्षस के रूप में परावर्तित हो गया

तो वही इस तरह पूरे संसार में इस बात का खुलासा हो गया और सभी साधु महात्मा अपने अपने दुष्कर्म की माफ़ी पाने के लिए उसका प्रायश्चित करने के लिए अलग अलग तरीके करने लगे लेकिन विधि के विधान और कर्मों के फल से कोई बच ना सका और इस तरह ब्रह्माराक्षस प्रजाति का निर्माण हुआ

तो वही इस सब के ज्ञात होते ही सप्तऋषियों ने एक आपातकालीन बैठक बुलायी और फिर सबने मिलकर फैसला किया कि हर 100 सालों में अस्त्रों की जिम्मेदारी वह अपने उत्तराधिकारी को देकर अपने कर्मों का दंड पाने के लिए मुक्त हो जाएंगे और तभी से यह नियम को लागू किया गया

तो वही उन साधु साध्वी जो अब ब्रह्माराक्षस प्रजाति के सम्राट और साम्राज्ञी के रूप मे थे वो भी उन सप्त अस्त्रों की सुरक्षा के लिए अपना योगदान देने लगे और इसी वजह से उन सप्तऋषियों ने मिलके अपनी सप्त शक्ति से उन दोनों को इंसानी रूप देने का फैसला किया लेकिन इसके लिए उन्हें उचित विद्या और मंत्र नहीं मिल पा रहा था इसी वजह से वो हर पल उन अस्त्रों की शक्ति को और अधिक जानने का प्रयास करते रहे और जब उन्हें उस मंत्र का पता चला तो उन्होंने तुरंत उसका इस्तेमाल उन दोनों पर किया लेकिन वो निष्फल हो गया जिससे सभी लोग निराश होकर अपने अपने नियमित कार्यों में लाग गए

और समय का पहिया अपनी गति से चलने लगा कई शतक गुजर गए सप्तर्षियों की कई पीढ़ियों को शस्त्र धारक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था परंतु जैसे जैसे संसार में पाप का साम्राज्य स्थापित होने लगा तो अस्त्रों ने भी अपने धारक के चुनाव को और अधिक कठिन और लगभग नामुमकिन बना दिया जिस वजह से कोई भी व्यक्ति अब धारक नहीं बन पाई और उनको उन अस्त्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई और उन अस्त्रों की शक्तियां ना होने के कारण सब चिंतित होने लगे क्यूंकि जब पाप का साम्राज्य स्थापित हुआ तब से लेकर अब तक बुराई के पक्ष ने असीमित मायावी शक्तियों को ग्रहण कर लिया था और वह महा शक्ति शाली हो गए थे इसी कारण से अब अस्त्रों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई थी तब उन्हीं दो साधु साध्वी ने जिनका नाम त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती था

उन्होंने अपने ग्यान और ब्रह्माराक्षस की शक्तियों के मदद से नए सप्तर्षियों को वो अलौकिक ग्यान और विद्या प्रदान की जिसका पता केवल देवता और असुरों को था और जब वह ग्यान सप्तर्षियों को प्राप्त हुआ तो बहुत से असुर और बुराई के पक्ष के अन्य साथी क्रोधित हो गए और उन्होंने उन दोनों के खिलाफ षडयंत्र रचना शुरू कर दिया जिसमें उनका साथ खुद ब्रह्माराक्षसोँ ने दिया लेकिन सब जानते थे कि उनपर सीधा हमला करने से वो सभी मारे जाते इसीलिए उन्होंने छल का सहारा लेना सही समझा

तो वही जब कलयुग का आरंभ हुआ तो असुरों को यह सही समय लगा और उन्होंने अपने सालों पुराना बदला लेने के लिए योजना बनाना शुरू कर दिया और फिर वो समय आया जब पूरे संसार में कलयुग का प्रभाव फैल गया और अच्छाई का पक्ष कमजोर पड़ने लगा लेकिन तभी उस वक़्त के सप्तर्षियों ने प्राचीन ग्रंथों में से कई सारी प्राचीन विद्या सीख ली जिनको प्राचीन काल में अस्त्रों की शक्तियों के आगे तुच्छ समझकर भुला दिया गया था उन्हीं शक्तियों मे उन सप्तर्षियों को कुछ ऐसे मंत्र मिले जिनसे उन अस्त्रों की शक्तियों को जागृत करके इस्तेमाल किया जा सकता था परंतु उन अस्त्रों के धारक की शक्तियों के आगे ये मंत्र तुच्छ समझे जाने जाते थे इसीलिए अब तक इनके बारे में जानकारी किसी को भी नहीं थी परंतु समय की मांग ने सबको ईन शक्तियों से मिला दिया था

१/०१/२००२

इस तारिक को एक बहुत ही विचित्र घटना घटीं इतिहास में पहली बार एक ब्रह्माराक्षस जन्म लेने वाला था यह बात हर जगह पर आग की तरह फैल गई क्यूंकि मृत्यु के बाद बहुत से ज्ञानी विद्वान लोग ब्रह्माराक्षस बने हुए थे लेकिन जिसका जन्म ही ब्रह्माराक्षस की रूप मे हुआ हो ऐसा यह पहला बालक था और उसके माता पिता कोई और नहीं बल्कि ब्रह्माराक्षस प्रजाति के सम्राट और साम्राज्ञी थे और जब एक ब्रह्माराक्षस ने सम्राज्ञी की हालत देखी तो उसने बताया कि जो बालक श्राप के प्रभाव से मारा गया था वो पुनर्जन्म लेने वाला है लेकिन इस बार वो बालक जन्म से ही ब्रह्माराक्षस होगा और वो सभी से ज्यादा शक्तिशाली होगा ये सब बताने वाला ब्रह्माराक्षस और कोई नहीं वही साधु था जिसने त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती को श्राप दिया था

ऐसे ही १ वर्ष बीत गया और वो समय आ गया जब साम्राज्ञी दमयन्ती अपने बालक को जन्म देने वाली थी लेकिन असुरों के छल से इस वक्त तक सम्राट और साम्राज्ञी दोनों बेहद कमजोर हो गए थे और जब दमयन्ती ने बच्चे को जन्म दिया तो वहां मौजूद सभी चकित रह गए क्यूंकि बालक इंसानी रूप मे था जिससे सब लोग निराश हो गए शिवाय सम्राट और साम्राज्ञी के क्यूंकि उन्हें एहसास हो गया था कि ये इंसानी रूप सप्तअस्त्रों की शक्ति का नतीज़ा है जिस शक्ति का इस्तेमाल उन दोनों को इंसानी रूप देने के लिए हुआ था परंतु सबको लगा कि वो निष्फल हो गई लेकिन असल मे वो शक्ति उन दोनों के शरीर में समा गई थी और अब वो पूर्ण शक्ति उस बालक के अंदर थी

अभी वो दोनों इस बात की खुशिया मना पाते उससे पहले ही उन पर आक्रमण हो गया जो कि उनके अपने साथियों ने किया था साम्राज्ञी तो बालक को जन्म देने वजह से और असुरों द्वारा किए गए छल से अत्याधिक कमजोर थी तो वही कमजोर तो सम्राट भी थे लेकिन उन्होंने अपनी बची हुई सभी शक्ति को एकत्रित कर के अपने पुत्र के लिए एक विशेष प्रकार के कवच का निर्माण किया जिससे उस बच्चे के शक्तियों का एहसास होना बंद हो गया और उन्होंने उस बालक को अपने जादू से कहीं दूर भेज दिया लेकिन इस सब के कारण वो बेहद कमजोर हो गए और इसी का फायदा उठाकर असुरों ने उन्हें कैद कर दिया और उनका हुकुम माने ऐसे ब्रह्माराक्षस को सम्राट घोषित किया गया

उन्होंने त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती को मारने का भी प्रयास किया परंतु ब्रह्माराक्षस को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र की जरूरत होती है जो उनके पास नहीं था और ना वो इतने सक्षम थे कि ब्रम्हास्त्र जैसी शक्ति का इस्तेमाल कर सके

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आज के लिए इतना ही

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