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Bahut hi badhiya update diya hai VAJRADHIKARI bhai.....अध्याय तीसरा
तो ऐसे ही समय गुजरता गया और जल्द ही वो बालक 5 साल का हो गया और तभी से राघवेन्द्र ने उस बालक को सब कुछ सिखाना शुरू किया छोटी छोटी जादुई कला से लेकर बड़े से बड़े मायावी हमले तक सब उसे सीखा दिया था तो वही जब भी आश्रम में बाकी गुरुओं मे से कोई भी आता (यहा गुरु का अर्थ अस्त्र धारक से है) तो वो सभी भी भद्रा को अलग अलग कला सीखते जिन मंत्रों से वो अपने अस्त्रों को इस्तेमाल करते वही मंत्र उन्होंने भद्रा को भी सीखा दिए थे जिससे अब वो तीनों ही आश्रमों मे गुरुओं के बाद सबसे शक्तिशाली योद्धा था
१/१/२०२४
आज उस हादसे के बाद 22 वर्षो का समय गुजर चुका था संसार में बहुत से बदलाव भी आए थे जैसे कि अभी आश्रम पहले से भी ज्यादा गुप्त और सख्त हो गए थे जब से आश्रम में सबको ब्रह्माराक्षसों पर हुए हमले के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी तब से सब लोग गंभीर हो गए थे यहा तक कि सारे गुरु भी बिना अति आवश्यक कार्य के आश्रम के तरफ देखते भी नहीं थे तो वही भद्रा के 15 साल पूरे होते ही राघवेन्द्र ने उससे वचन ले लिया कि जब तक प्राणों का संकट ना वो कोई मायावी विद्या इस्तेमाल नहीं करेगा और वहीं भद्रा राघवेन्द्र के कहने पर खुदका सर भी काट सकता है तो वह इस वचन के लिए कैसे मना कर पाता
जब भद्रा 21 बरस का हुआ तो राघवेन्द्र ने उसे शहर जाके वहां के तौर तरीकों को सीखने के लिए बोल दिया अभी बचपन से ही मायावी शक्तियों का अध्ययन करने से भद्रा का दिमाग इतना तेजी से विकास कर रहा था कि वह एक बार जो देख ले पढ़ ले या सिर्फ सुन भी ले तुरंत ही उसके दीमाग मे किसी तस्वीर की तरह छ्प जाता इसीलिए शहर आने के बाद वो शहर की रंगत मे रंग गया था पढाई की चिंता तो उसे थी ही नहीं क्यूँकी कॉलेज मे जो भी पढ़ाते उसने वो सब पहले ही ग्रंथों में पढ़ लिया था सिर्फ भाषा का अन्तर था बस टेक्नोलॉजी उसके लिए नयी थी जिसे भी उसने एक साल मे इस प्रकार सीख लिया था जैसे बचपन से ही सीखते आ रहा हो
वही शहर में रहते हुए उसके तीन दोस्त भी बने और उन्हीं के साथ वो पूरा दिन रहता है
1) केशव = ये भद्रा के ही क्लास में है और उसका सबसे पहला दोस्त यही है इसे दूसरों से पंगा लेने की आदत है har वक़्त किसी ना किसी से लड़ते रहता है
2) रवि = ये केशव के बचपन का दोस्त है लेकिन ये डरपोक किस्म का है इसे बस कोई घूर के देख ले तो ये डर जाए
3) प्रिया = ये शहर के बड़े व्यापारी की इकलौती बेटी है लेकिन बहुत सुलझी हुई है शहर के अंदर ही इसके पिता के 2 होटल्स है जिन मे से एक ये संभालती है और ये दिल ही दिल में भद्रा की दीवानी भी है बस इसने उसे बताया नहीं है ये बात केवल रवि और केशव को पता है
अब से कहानी भद्रा की जुबानी
आज भद्रा का 22 वा जन्मदिन था जिसके लिए उसके दोस्तों ने कुछ खास इन्तेजाम किए थे जिससे भद्रा अनजान था
आज सुबह जब मेरी नींद खुली तो मुझे खुदको अपना जन्मदिन याद नहीं था लेकिन हाँ नए साल के शुरू होने का उत्साह जरूर था जिसके बाद सबसे पहले मेंने अपनी दिनचर्या अनुसार ध्यान लगाकर अपने दिल दिमाग को शुद्ध करके शांत किया और फिर नहाने चला गया आज मुझे मेरे शरीर में कुछ बदलाव महसूस हुए थे जिनपर मेने ध्यान नहीं दिया क्यूंकि मुझे लगा था कि ये सब मेरे अन्दर की शक्तियों के वजह से हो रहा था
और जब मे घर से बाहर निकला तो मेरे घर के बाहर मेरे तीनों दोस्त मौजूद थे जिनको देख कर मे दंग रह गया क्यूंकि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि वो मेरे घर पर आए
में :- क्या बात है आज तुम तीनों की नींद जल्दी खुल गई मुझे लगा था कि आज भी मुझे तुम्हें लेने तुम्हारे घर आना होगा
केशव :- अच्छा है कि तुम्हें याद तो है कि आज क्या है
में :- इसमे क्या है ये तो सब को पता है कि आज नए साल का पहला दिन है
मेरी बात सुन कर उन तीनों ने भी अपना सर पीट लिया
में :- क्या हुआ अपना सर क्यु पीट रहे हो
रवि :- कुछ नहीं आओ तुम गाड़ी में बैठो
इतना बोलकर उन तीनों ने मुझे पकड़ कर गाड़ी में बिठा दिया और फिर प्रिया गाड़ी चलाने लगी हम तीनों को भी गाड़ी चलाना नहीं आती थी अभी मे गाड़ी में बैठ कर हमेशा की तरह गाने सुन रहा था कि तभी मेने ध्यान दिया कि हमारी गाड़ी कॉलेज से अलग रास्ते पर जा रही थी
में :- ये क्या कॉलेज का रास्ता तो पीछे रह गया
केशव :- हाँ आज हम कॉलेज नहीं जा रहे हैं आज कुछ अलग सोचा है
में :- अच्छा क्या सोचा है तुमने
रवि :- वो हम नहीं बतायेंगे तुम इंतजार करो
में :- ठीक है मत बताओ
ये बोलकर मे फिर से गाने सुनने लगा तो वही जब हम पहुचें तो मेने देखा कि ये प्रिया का ही होटल था जिसे वो उसके फ्री टाइम में संभालती थी अभी मे कुछ बोलता की तभी उन तीनों ने मेरे आखों के उपर पट्टी बाँध दी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले गए और जब हम अंदर पहुचें तो वहां जाने के बाद उन्होंने मेरे आखों की पट्टी खोली और जब मेने अपनी आखें खोली तो वहाँ पर पूरा होटल सजाया हुआ था और सामने प्रिया केशव और रवि तीनों के भी माता पिता मौजूद थे जिन्हें देख कर मेंने सबसे पहले उन सबके पैर छुए फिर उन सबके सामने खड़ा हो कर
में :- नए साल की आप सबको बहुत बहुत बधाई
मेरी बात सुनकर वो सभी दंग रह गए जिसके बाद केशव ने आकर मेरे सर पे मारते हुए कहा
केशव :- पागल आज तेरा जन्म दिन भी है
केशव की बात सुनकर सभी हसने लगे जिसके बाद सभी ने मिलकर मेरा जन्म दिन मनाया जिसके बाद सबने मुझे बहुत से तोहफे भी दिए सभी बड़े मुझे बहुत मानते थे
जिसके बाद हम सबने मिलकर खाना शुरू किया अभी हम खाना खाते की तभी मुझे याद आया कि शांति ने भी मुझे आज अपने घर पर बुलाया था ये याद आते ही मे वहाँ से निकलने वाला था कि तभी वहां प्रिया के पिता आ गए ये ज्यादा तर देश से बाहर ही रहते थे इनका नाम शान था
शान :- कहा चले birthday boy बिना हमसे मिले ही चल दिये
में :- नहीं ऐसा नहीं है सर वो मुझे नहीं पता था कि आप आने वाले हो
शान :- अरे कैसे नहीं आता जिसके वजह से मुझे लाखों का नुकसान हुआ उससे कैसे ना मिलता
प्रिया :- (अचानक से) पिताजी
में :- लाखों का नुकसान कैसे मे समझा नहीं
शान :- अरे तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी के लिए इसने नए साल की जो भी बुकिंग थी वो सब को मना कर दिया जिससे हमें सबको उनके पैसे रिटर्न करने पड़े
उनकी बात सुनकर मे दंग रह गया था बोलना तो मे चाहता था लेकिन वो हक्क नहीं था प्रिया मेरे लिए एक खास दोस्त लेकिन उसे इस नादानी के लिए उसके माता पिता के सामने परायों के सामने बोलने का अधिकार नहीं था
में :- माफ़ करना सर लेकिन अब ये आपका मेरे ऊपर उधार रहा जिसे मे जल्द ही चुका दूंगा
जिसके बाद मे उन सबके साथ ही बैठ गया क्यूँकी प्रिया के पिता अभीं आए थे और उनके आते ही तुरंत निकल जाना अच्छा नहीं लगता
रानी (प्रिया की माँ) :- (शान से) आप इतनी जल्दी कैसे आप तो किसी मीटिंग में जाने वाले थे
शान :- हाँ इस शहर के सबसे बड़े बिजनेस मैन शैलेश सिंघानिया से मिलने जाना था लेकिन उनके पास हम जैसे छोटे बिजनेस मैन को मिलने का समय कहा है
जैसे ही उन्होंने अपनी बात पूरी की वैसे ही मेरे दिमाग की घंटी बज उठी क्यूंकि वो जिस शैलेश की बात कर रहे थे वो कोई और नहीं बल्कि गुरु नंदी थे अब मुझे मेरा उधार चुकाने का तरीका मिल गया था फिर मे वहाँ से निकल गया शांति से मिलने
(यहा मे एक बात साफ़ कर देता हूं बचपन से ही मे और शांति दोस्तों के तरह ही एक दूसरे से मिलते थे जिससे में और वो एक दूसरे के साथ काफी खुल गए थे तो वही बाकियों को मेंने हमेशा अपने गुरुओं के रूप में ही देखा है इसीलिए उनसे मेरा व्यावहार गुरु शिष्य जैसा ही है लेकिन वो सभी मुझे अपने परिवार समान ही मानते हैं)
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय तीसरा
तो ऐसे ही समय गुजरता गया और जल्द ही वो बालक 5 साल का हो गया और तभी से राघवेन्द्र ने उस बालक को सब कुछ सिखाना शुरू किया छोटी छोटी जादुई कला से लेकर बड़े से बड़े मायावी हमले तक सब उसे सीखा दिया था तो वही जब भी आश्रम में बाकी गुरुओं मे से कोई भी आता (यहा गुरु का अर्थ अस्त्र धारक से है) तो वो सभी भी भद्रा को अलग अलग कला सीखते जिन मंत्रों से वो अपने अस्त्रों को इस्तेमाल करते वही मंत्र उन्होंने भद्रा को भी सीखा दिए थे जिससे अब वो तीनों ही आश्रमों मे गुरुओं के बाद सबसे शक्तिशाली योद्धा था
१/१/२०२४
आज उस हादसे के बाद 22 वर्षो का समय गुजर चुका था संसार में बहुत से बदलाव भी आए थे जैसे कि अभी आश्रम पहले से भी ज्यादा गुप्त और सख्त हो गए थे जब से आश्रम में सबको ब्रह्माराक्षसों पर हुए हमले के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी तब से सब लोग गंभीर हो गए थे यहा तक कि सारे गुरु भी बिना अति आवश्यक कार्य के आश्रम के तरफ देखते भी नहीं थे तो वही भद्रा के 15 साल पूरे होते ही राघवेन्द्र ने उससे वचन ले लिया कि जब तक प्राणों का संकट ना वो कोई मायावी विद्या इस्तेमाल नहीं करेगा और वहीं भद्रा राघवेन्द्र के कहने पर खुदका सर भी काट सकता है तो वह इस वचन के लिए कैसे मना कर पाता
जब भद्रा 21 बरस का हुआ तो राघवेन्द्र ने उसे शहर जाके वहां के तौर तरीकों को सीखने के लिए बोल दिया अभी बचपन से ही मायावी शक्तियों का अध्ययन करने से भद्रा का दिमाग इतना तेजी से विकास कर रहा था कि वह एक बार जो देख ले पढ़ ले या सिर्फ सुन भी ले तुरंत ही उसके दीमाग मे किसी तस्वीर की तरह छ्प जाता इसीलिए शहर आने के बाद वो शहर की रंगत मे रंग गया था पढाई की चिंता तो उसे थी ही नहीं क्यूँकी कॉलेज मे जो भी पढ़ाते उसने वो सब पहले ही ग्रंथों में पढ़ लिया था सिर्फ भाषा का अन्तर था बस टेक्नोलॉजी उसके लिए नयी थी जिसे भी उसने एक साल मे इस प्रकार सीख लिया था जैसे बचपन से ही सीखते आ रहा हो
वही शहर में रहते हुए उसके तीन दोस्त भी बने और उन्हीं के साथ वो पूरा दिन रहता है
1) केशव = ये भद्रा के ही क्लास में है और उसका सबसे पहला दोस्त यही है इसे दूसरों से पंगा लेने की आदत है har वक़्त किसी ना किसी से लड़ते रहता है
2) रवि = ये केशव के बचपन का दोस्त है लेकिन ये डरपोक किस्म का है इसे बस कोई घूर के देख ले तो ये डर जाए
3) प्रिया = ये शहर के बड़े व्यापारी की इकलौती बेटी है लेकिन बहुत सुलझी हुई है शहर के अंदर ही इसके पिता के 2 होटल्स है जिन मे से एक ये संभालती है और ये दिल ही दिल में भद्रा की दीवानी भी है बस इसने उसे बताया नहीं है ये बात केवल रवि और केशव को पता है
अब से कहानी भद्रा की जुबानी
आज भद्रा का 22 वा जन्मदिन था जिसके लिए उसके दोस्तों ने कुछ खास इन्तेजाम किए थे जिससे भद्रा अनजान था
आज सुबह जब मेरी नींद खुली तो मुझे खुदको अपना जन्मदिन याद नहीं था लेकिन हाँ नए साल के शुरू होने का उत्साह जरूर था जिसके बाद सबसे पहले मेंने अपनी दिनचर्या अनुसार ध्यान लगाकर अपने दिल दिमाग को शुद्ध करके शांत किया और फिर नहाने चला गया आज मुझे मेरे शरीर में कुछ बदलाव महसूस हुए थे जिनपर मेने ध्यान नहीं दिया क्यूंकि मुझे लगा था कि ये सब मेरे अन्दर की शक्तियों के वजह से हो रहा था
और जब मे घर से बाहर निकला तो मेरे घर के बाहर मेरे तीनों दोस्त मौजूद थे जिनको देख कर मे दंग रह गया क्यूंकि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि वो मेरे घर पर आए
में :- क्या बात है आज तुम तीनों की नींद जल्दी खुल गई मुझे लगा था कि आज भी मुझे तुम्हें लेने तुम्हारे घर आना होगा
केशव :- अच्छा है कि तुम्हें याद तो है कि आज क्या है
में :- इसमे क्या है ये तो सब को पता है कि आज नए साल का पहला दिन है
मेरी बात सुन कर उन तीनों ने भी अपना सर पीट लिया
में :- क्या हुआ अपना सर क्यु पीट रहे हो
रवि :- कुछ नहीं आओ तुम गाड़ी में बैठो
इतना बोलकर उन तीनों ने मुझे पकड़ कर गाड़ी में बिठा दिया और फिर प्रिया गाड़ी चलाने लगी हम तीनों को भी गाड़ी चलाना नहीं आती थी अभी मे गाड़ी में बैठ कर हमेशा की तरह गाने सुन रहा था कि तभी मेने ध्यान दिया कि हमारी गाड़ी कॉलेज से अलग रास्ते पर जा रही थी
में :- ये क्या कॉलेज का रास्ता तो पीछे रह गया
केशव :- हाँ आज हम कॉलेज नहीं जा रहे हैं आज कुछ अलग सोचा है
में :- अच्छा क्या सोचा है तुमने
रवि :- वो हम नहीं बतायेंगे तुम इंतजार करो
में :- ठीक है मत बताओ
ये बोलकर मे फिर से गाने सुनने लगा तो वही जब हम पहुचें तो मेने देखा कि ये प्रिया का ही होटल था जिसे वो उसके फ्री टाइम में संभालती थी अभी मे कुछ बोलता की तभी उन तीनों ने मेरे आखों के उपर पट्टी बाँध दी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले गए और जब हम अंदर पहुचें तो वहां जाने के बाद उन्होंने मेरे आखों की पट्टी खोली और जब मेने अपनी आखें खोली तो वहाँ पर पूरा होटल सजाया हुआ था और सामने प्रिया केशव और रवि तीनों के भी माता पिता मौजूद थे जिन्हें देख कर मेंने सबसे पहले उन सबके पैर छुए फिर उन सबके सामने खड़ा हो कर
में :- नए साल की आप सबको बहुत बहुत बधाई
मेरी बात सुनकर वो सभी दंग रह गए जिसके बाद केशव ने आकर मेरे सर पे मारते हुए कहा
केशव :- पागल आज तेरा जन्म दिन भी है
केशव की बात सुनकर सभी हसने लगे जिसके बाद सभी ने मिलकर मेरा जन्म दिन मनाया जिसके बाद सबने मुझे बहुत से तोहफे भी दिए सभी बड़े मुझे बहुत मानते थे
जिसके बाद हम सबने मिलकर खाना शुरू किया अभी हम खाना खाते की तभी मुझे याद आया कि शांति ने भी मुझे आज अपने घर पर बुलाया था ये याद आते ही मे वहाँ से निकलने वाला था कि तभी वहां प्रिया के पिता आ गए ये ज्यादा तर देश से बाहर ही रहते थे इनका नाम शान था
शान :- कहा चले birthday boy बिना हमसे मिले ही चल दिये
में :- नहीं ऐसा नहीं है सर वो मुझे नहीं पता था कि आप आने वाले हो
शान :- अरे कैसे नहीं आता जिसके वजह से मुझे लाखों का नुकसान हुआ उससे कैसे ना मिलता
प्रिया :- (अचानक से) पिताजी
में :- लाखों का नुकसान कैसे मे समझा नहीं
शान :- अरे तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी के लिए इसने नए साल की जो भी बुकिंग थी वो सब को मना कर दिया जिससे हमें सबको उनके पैसे रिटर्न करने पड़े
उनकी बात सुनकर मे दंग रह गया था बोलना तो मे चाहता था लेकिन वो हक्क नहीं था प्रिया मेरे लिए एक खास दोस्त लेकिन उसे इस नादानी के लिए उसके माता पिता के सामने परायों के सामने बोलने का अधिकार नहीं था
में :- माफ़ करना सर लेकिन अब ये आपका मेरे ऊपर उधार रहा जिसे मे जल्द ही चुका दूंगा
जिसके बाद मे उन सबके साथ ही बैठ गया क्यूँकी प्रिया के पिता अभीं आए थे और उनके आते ही तुरंत निकल जाना अच्छा नहीं लगता
रानी (प्रिया की माँ) :- (शान से) आप इतनी जल्दी कैसे आप तो किसी मीटिंग में जाने वाले थे
शान :- हाँ इस शहर के सबसे बड़े बिजनेस मैन शैलेश सिंघानिया से मिलने जाना था लेकिन उनके पास हम जैसे छोटे बिजनेस मैन को मिलने का समय कहा है
जैसे ही उन्होंने अपनी बात पूरी की वैसे ही मेरे दिमाग की घंटी बज उठी क्यूंकि वो जिस शैलेश की बात कर रहे थे वो कोई और नहीं बल्कि गुरु नंदी थे अब मुझे मेरा उधार चुकाने का तरीका मिल गया था फिर मे वहाँ से निकल गया शांति से मिलने
(यहा मे एक बात साफ़ कर देता हूं बचपन से ही मे और शांति दोस्तों के तरह ही एक दूसरे से मिलते थे जिससे में और वो एक दूसरे के साथ काफी खुल गए थे तो वही बाकियों को मेंने हमेशा अपने गुरुओं के रूप में ही देखा है इसीलिए उनसे मेरा व्यावहार गुरु शिष्य जैसा ही है लेकिन वो सभी मुझे अपने परिवार समान ही मानते हैं)
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय तीसरा
तो ऐसे ही समय गुजरता गया और जल्द ही वो बालक 5 साल का हो गया और तभी से राघवेन्द्र ने उस बालक को सब कुछ सिखाना शुरू किया छोटी छोटी जादुई कला से लेकर बड़े से बड़े मायावी हमले तक सब उसे सीखा दिया था तो वही जब भी आश्रम में बाकी गुरुओं मे से कोई भी आता (यहा गुरु का अर्थ अस्त्र धारक से है) तो वो सभी भी भद्रा को अलग अलग कला सीखते जिन मंत्रों से वो अपने अस्त्रों को इस्तेमाल करते वही मंत्र उन्होंने भद्रा को भी सीखा दिए थे जिससे अब वो तीनों ही आश्रमों मे गुरुओं के बाद सबसे शक्तिशाली योद्धा था
१/१/२०२४
आज उस हादसे के बाद 22 वर्षो का समय गुजर चुका था संसार में बहुत से बदलाव भी आए थे जैसे कि अभी आश्रम पहले से भी ज्यादा गुप्त और सख्त हो गए थे जब से आश्रम में सबको ब्रह्माराक्षसों पर हुए हमले के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी तब से सब लोग गंभीर हो गए थे यहा तक कि सारे गुरु भी बिना अति आवश्यक कार्य के आश्रम के तरफ देखते भी नहीं थे तो वही भद्रा के 15 साल पूरे होते ही राघवेन्द्र ने उससे वचन ले लिया कि जब तक प्राणों का संकट ना वो कोई मायावी विद्या इस्तेमाल नहीं करेगा और वहीं भद्रा राघवेन्द्र के कहने पर खुदका सर भी काट सकता है तो वह इस वचन के लिए कैसे मना कर पाता
जब भद्रा 21 बरस का हुआ तो राघवेन्द्र ने उसे शहर जाके वहां के तौर तरीकों को सीखने के लिए बोल दिया अभी बचपन से ही मायावी शक्तियों का अध्ययन करने से भद्रा का दिमाग इतना तेजी से विकास कर रहा था कि वह एक बार जो देख ले पढ़ ले या सिर्फ सुन भी ले तुरंत ही उसके दीमाग मे किसी तस्वीर की तरह छ्प जाता इसीलिए शहर आने के बाद वो शहर की रंगत मे रंग गया था पढाई की चिंता तो उसे थी ही नहीं क्यूँकी कॉलेज मे जो भी पढ़ाते उसने वो सब पहले ही ग्रंथों में पढ़ लिया था सिर्फ भाषा का अन्तर था बस टेक्नोलॉजी उसके लिए नयी थी जिसे भी उसने एक साल मे इस प्रकार सीख लिया था जैसे बचपन से ही सीखते आ रहा हो
वही शहर में रहते हुए उसके तीन दोस्त भी बने और उन्हीं के साथ वो पूरा दिन रहता है
1) केशव = ये भद्रा के ही क्लास में है और उसका सबसे पहला दोस्त यही है इसे दूसरों से पंगा लेने की आदत है har वक़्त किसी ना किसी से लड़ते रहता है
2) रवि = ये केशव के बचपन का दोस्त है लेकिन ये डरपोक किस्म का है इसे बस कोई घूर के देख ले तो ये डर जाए
3) प्रिया = ये शहर के बड़े व्यापारी की इकलौती बेटी है लेकिन बहुत सुलझी हुई है शहर के अंदर ही इसके पिता के 2 होटल्स है जिन मे से एक ये संभालती है और ये दिल ही दिल में भद्रा की दीवानी भी है बस इसने उसे बताया नहीं है ये बात केवल रवि और केशव को पता है
अब से कहानी भद्रा की जुबानी
आज भद्रा का 22 वा जन्मदिन था जिसके लिए उसके दोस्तों ने कुछ खास इन्तेजाम किए थे जिससे भद्रा अनजान था
आज सुबह जब मेरी नींद खुली तो मुझे खुदको अपना जन्मदिन याद नहीं था लेकिन हाँ नए साल के शुरू होने का उत्साह जरूर था जिसके बाद सबसे पहले मेंने अपनी दिनचर्या अनुसार ध्यान लगाकर अपने दिल दिमाग को शुद्ध करके शांत किया और फिर नहाने चला गया आज मुझे मेरे शरीर में कुछ बदलाव महसूस हुए थे जिनपर मेने ध्यान नहीं दिया क्यूंकि मुझे लगा था कि ये सब मेरे अन्दर की शक्तियों के वजह से हो रहा था
और जब मे घर से बाहर निकला तो मेरे घर के बाहर मेरे तीनों दोस्त मौजूद थे जिनको देख कर मे दंग रह गया क्यूंकि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि वो मेरे घर पर आए
में :- क्या बात है आज तुम तीनों की नींद जल्दी खुल गई मुझे लगा था कि आज भी मुझे तुम्हें लेने तुम्हारे घर आना होगा
केशव :- अच्छा है कि तुम्हें याद तो है कि आज क्या है
में :- इसमे क्या है ये तो सब को पता है कि आज नए साल का पहला दिन है
मेरी बात सुन कर उन तीनों ने भी अपना सर पीट लिया
में :- क्या हुआ अपना सर क्यु पीट रहे हो
रवि :- कुछ नहीं आओ तुम गाड़ी में बैठो
इतना बोलकर उन तीनों ने मुझे पकड़ कर गाड़ी में बिठा दिया और फिर प्रिया गाड़ी चलाने लगी हम तीनों को भी गाड़ी चलाना नहीं आती थी अभी मे गाड़ी में बैठ कर हमेशा की तरह गाने सुन रहा था कि तभी मेने ध्यान दिया कि हमारी गाड़ी कॉलेज से अलग रास्ते पर जा रही थी
में :- ये क्या कॉलेज का रास्ता तो पीछे रह गया
केशव :- हाँ आज हम कॉलेज नहीं जा रहे हैं आज कुछ अलग सोचा है
में :- अच्छा क्या सोचा है तुमने
रवि :- वो हम नहीं बतायेंगे तुम इंतजार करो
में :- ठीक है मत बताओ
ये बोलकर मे फिर से गाने सुनने लगा तो वही जब हम पहुचें तो मेने देखा कि ये प्रिया का ही होटल था जिसे वो उसके फ्री टाइम में संभालती थी अभी मे कुछ बोलता की तभी उन तीनों ने मेरे आखों के उपर पट्टी बाँध दी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले गए और जब हम अंदर पहुचें तो वहां जाने के बाद उन्होंने मेरे आखों की पट्टी खोली और जब मेने अपनी आखें खोली तो वहाँ पर पूरा होटल सजाया हुआ था और सामने प्रिया केशव और रवि तीनों के भी माता पिता मौजूद थे जिन्हें देख कर मेंने सबसे पहले उन सबके पैर छुए फिर उन सबके सामने खड़ा हो कर
में :- नए साल की आप सबको बहुत बहुत बधाई
मेरी बात सुनकर वो सभी दंग रह गए जिसके बाद केशव ने आकर मेरे सर पे मारते हुए कहा
केशव :- पागल आज तेरा जन्म दिन भी है
केशव की बात सुनकर सभी हसने लगे जिसके बाद सभी ने मिलकर मेरा जन्म दिन मनाया जिसके बाद सबने मुझे बहुत से तोहफे भी दिए सभी बड़े मुझे बहुत मानते थे
जिसके बाद हम सबने मिलकर खाना शुरू किया अभी हम खाना खाते की तभी मुझे याद आया कि शांति ने भी मुझे आज अपने घर पर बुलाया था ये याद आते ही मे वहाँ से निकलने वाला था कि तभी वहां प्रिया के पिता आ गए ये ज्यादा तर देश से बाहर ही रहते थे इनका नाम शान था
शान :- कहा चले birthday boy बिना हमसे मिले ही चल दिये
में :- नहीं ऐसा नहीं है सर वो मुझे नहीं पता था कि आप आने वाले हो
शान :- अरे कैसे नहीं आता जिसके वजह से मुझे लाखों का नुकसान हुआ उससे कैसे ना मिलता
प्रिया :- (अचानक से) पिताजी
में :- लाखों का नुकसान कैसे मे समझा नहीं
शान :- अरे तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी के लिए इसने नए साल की जो भी बुकिंग थी वो सब को मना कर दिया जिससे हमें सबको उनके पैसे रिटर्न करने पड़े
उनकी बात सुनकर मे दंग रह गया था बोलना तो मे चाहता था लेकिन वो हक्क नहीं था प्रिया मेरे लिए एक खास दोस्त लेकिन उसे इस नादानी के लिए उसके माता पिता के सामने परायों के सामने बोलने का अधिकार नहीं था
में :- माफ़ करना सर लेकिन अब ये आपका मेरे ऊपर उधार रहा जिसे मे जल्द ही चुका दूंगा
जिसके बाद मे उन सबके साथ ही बैठ गया क्यूँकी प्रिया के पिता अभीं आए थे और उनके आते ही तुरंत निकल जाना अच्छा नहीं लगता
रानी (प्रिया की माँ) :- (शान से) आप इतनी जल्दी कैसे आप तो किसी मीटिंग में जाने वाले थे
शान :- हाँ इस शहर के सबसे बड़े बिजनेस मैन शैलेश सिंघानिया से मिलने जाना था लेकिन उनके पास हम जैसे छोटे बिजनेस मैन को मिलने का समय कहा है
जैसे ही उन्होंने अपनी बात पूरी की वैसे ही मेरे दिमाग की घंटी बज उठी क्यूंकि वो जिस शैलेश की बात कर रहे थे वो कोई और नहीं बल्कि गुरु नंदी थे अब मुझे मेरा उधार चुकाने का तरीका मिल गया था फिर मे वहाँ से निकल गया शांति से मिलने
(यहा मे एक बात साफ़ कर देता हूं बचपन से ही मे और शांति दोस्तों के तरह ही एक दूसरे से मिलते थे जिससे में और वो एक दूसरे के साथ काफी खुल गए थे तो वही बाकियों को मेंने हमेशा अपने गुरुओं के रूप में ही देखा है इसीलिए उनसे मेरा व्यावहार गुरु शिष्य जैसा ही है लेकिन वो सभी मुझे अपने परिवार समान ही मानते हैं)
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आज के लिए इतना ही
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