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Romance भंवर (पूर्ण)

B2.

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Update:-5


लावणी कि इस बात पर सांची को थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी बातों से ऐसा लग नहीं रहा था कि आज जो बुक स्टोर में हुआ वह पहली बार हो रहा था…..

थोड़ी देर तक साची उसे शांत करती रही, फिर जब उसकी स्तिथि थोड़ी सी समन्या हुई तब साची ने उस से साफ शब्दों में पूछा "कि आखिर उसके और आरव के बीच चल क्या रहा है"

लावणी फिर गहरी सांस लेती हुई कहने लगी…. लगभग 15-20 दिन पहले की बात है, जब ये लोग सामने रहने आए थे। उसके अगले ही दिन जब मैं शाम को टहलने पार्क में गई तभी इस से मुलाकात हुई थी। मैं पार्क के बेंच पर बैठी थी और ये भी मेरे बिल्कुल करीब अा कर बैठ गया। मैं एक दम से चौंक गई, क्योंकि बेंच बिल्कुल खाली थी फिर भी ये मेरे करीब आ कर बैठ गया। इसी बीच जब तक मैं इस से कहती कि पूरी बेंच खाली है थोड़ा उधर खिसक कर बैठो की तब तक…

साची:- तब तक क्या लावणी..

लावणी:- दीदी मेरी बात समाप्त होने से पहले ही इसने मेरे गाल को चूम लिया।

लावणी की ये बात सुन कर साची बिल्कुल हैरान सी हो गई.. फिर से आगे बताने को कही….

लावणी अपनी बात आगे बढ़ाती हुई कहने लगी :- फिर दीदी ये जहां भी मुझ से मिलता मुझे अकेला देख कर उल्टी-सीधी बातें करता..

साची उसे बीच में ही रोकती हुई… "उल्टी-सीधी मतलब किस तरह की, पूरी बात बताओ"

लावणी:- वैसी ही दीदी जिस तरह कि आज किया था। यहीं की तुम से पहली नजर का प्यार है, तुम्हारे ऐसे वैसे सपने आते हैं। तुम्हरे शरीर पर कहां-कहां तिल हैं.. और भी गंदी- गंदी बातें। और जो 3 रात पहले घटना हुई थी ना पापा और इसके बीच। उस रात भी ये मुझे ही धक्का मारने कि कोशिश कर रहा था। अब दी सोचो ना कितना ढीठ है, मैं पापा के साथ थी तब भी ये मुझे धक्के मारने की कोशिश कर रहा था।

साची:- ढीठ तो है ही साथ ही पहुंच वाला भी है तभी तो ये जेल में ना हो कर बाहर घूम रहा है। इस से हमे संभल कर डील करना पड़ेगा। वैसे इसका भाई कैसा हैं।

लावणी:- उसे मैंने कभी इसके साथ नहीं देखा। पहले दिन ही जो इसे अपार्टमेंट के गेट पर देखी थी, उसके बाद आज देख रही हूं, वो भी जब आप ने इसे बालकनी में दिखाया।

साची:- एक भाई उचक्का है तो दूसरा ताका-झांकी वाला है। दोनों ही मुझे आवारा लगते हैं। खैर चल तू तैयार हो जा कॉलेज नहीं चलना क्या?

कॉलेज चलने कि बात पर लावणी थोड़े असमंजस में पड़ जाती है। तभी साची एक बार फिर कहती है "अब उठ भी जा, बैठे-बैठे क्या सोच रही है"।…… "दीदी, वो भी कॉलेज अा रहा है। मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं नहीं जाऊंगी कॉलेज"।

साची:- "जानती है लावणी जब मैं सीतापुर में थी ना तब रोज कॉलेज जाते समय, एक कुत्ता, मेरे स्कूटी के पीछे भौंकते हुए दौड़ता। जैसे ही वो भौंकता ना, मेरे दिल की धड़कनें तेज हो जाती और स्कूटी का एक्सेलेरेटर अपने आप ही बहुत तेज हो जाती। उस कुत्ते का डर मेरे दिल में इतना हो गया था कि मुझे उस रास्ते से गुजरने में भी डर लगने लगा"।

"फिर मैंने वो रास्ता ही बदल दीया। लेकिन दूसरा रास्ता मेन रोड से होते हुए, बड़ा घूम कर मेरे कॉलेज पहुंचता, ऊपर से उस रास्ते में जाम लगा रहता सो अलग। तो कभी-कभी मुझे ना चाहते हुए भी उस रास्ते से हो कर जाना पड़ता था। लेकिन आलम ये था कि उस रास्ते पर जाने के नाम से ही, मेरे चेहरे की हवाइयां उड़ने लगती थी। लगभग 4 महीने तक ऐसा ही चलता रहा"।

"फिर एक दिन मैंने ठान लिया… जो होगा सो देख लेंगे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वो कुत्ता मुझे कटेगा ही ना… मैं 14 इंजेक्शन लगवा लूंगी, पर आज तो इसे सबक सिखाए बिना नहीं छोडूंगी"।

"मैंने दृढ़ निश्चय किया। घर से निकलते वक़्त साथ में डंडा भी रखी लेकिन मैं जैसे-जैसे उस गली के ओर बढ़ रही थी, मेरी धड़कने वैसे-वैसे तेज हो रही थी। मैं खुद को हौसला तो देती रही थी कि "जो होगा सो देखा जाएगा".. लेकिन डर था कि जाने का नाम ही नहीं ले। तू विश्वास नहीं करेगी, वो कुत्ता जब मुझ पर भौंक रहा था ना तब वो सब कुछ भूल गई जो सोच कर घर से निकली थी। एक्सेलेरेटर खुद ही इतना तेज हो गया की, जब मैंने अपने डर पर काबू पाया तो पता चला कि मैं उस गली से बहुत दूर निकल आईं हूं"।

"और अगले 2-3 दिन तक ऐसे ही सब कुछ वैसा दोहराता रहा। घर से सोच कर निकलती आज तो मैं इस कुत्ते को सबक सिखा कर रहूंगी और गली तक पहुंचते पहुंचते सारी हिम्मत हवा हो जाती। लेकिन इस प्रक्रिया में जो एक बदलाव मुझ में आया, वो ये था कि मेरी धड़कने अब थोड़ी काबू में रहती थी और स्कूटी नियंत्रण में। और फिर 1-2 दिन बाद वो वक़्त भी आया जब मैं हिम्मत जुटा कर स्कूटी को ठीक उसी वक़्त रोकी जब वो कुत्ता भौंकना शुरू किया। पैर तो मेरे भौंक सुनते ही कांपने लगे थे किंतु हाथ में डंडा लिए मैं अपने स्कूटी से नीचे उतरी। और हुआ क्या, वो कुत्ता जो भौंकते हुए तेज़ी से स्कूटी के ओर दौड़ा चला अा रहा था, जैसे ही मैंने उसे मारने के लिए डंडा उठाया वैसे ही वो दुम दबा कर भाग गया"।

"बस इतनी सी है डर कि कहानी। अब तुम्हे फैसला करना है कि तुम क्या करोगी? क्योंकि आज तुम डर से कॉलेज नहीं जाओगी तो क्या कभी आगे कॉलेज जाओगी ही नहीं? तुम चाहो तो अपना कॉलेज भी बदलवा सकती हो, तो क्या वो उस कॉलेज में नहीं पहुंचेगा? तुम चाहो तो घर बैठ कर पढ़ाई कर लो कोई कॉलेज जाओ ही मत, फिर भी क्या तुम इस घर से कभी बाहर नहीं जाओगी, क्या केवल एक कॉलेज ही बचा है जहां वो तुम्हे परेशान कर सकता है? मैंने अपनी बात पूरी कर दी आगे तुम्हारी मर्जी, मैं जा रही हूं तैयार होने।

लावणी, साची की बात सुन कर हंसती हुई कहती है…. "ये तुम्हारे साथ सच में हुआ था या किसी इंस्पिरेशनल स्टोरी को चेंप दी"..

साची:- इंस्पिरेशनल स्टोरी में इतनी डिटेल नहीं होता है पागल। वहां तो लिख देते हैं डर का सामना करो डर भाग जाएगा लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता है। आप का डर आप पर हमेशा हावी ही रहता है चाहे कितना भी सामना करने का सोच लो। कितना भी सामना करने जाओ फिर भी डर लगता ही है वो तो वक़्त और हमारी आदतो के कारण सामना करते-करते डर बाहर निकल जाता है। अब छोड़ ये सब और चल जा कर तुम भी तैयार हो जाओ।

साची की बातों से लावणी में थोड़ा बदलाव तो आया। वो किसी तरह हिम्मत जुटा कर कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई। दोनों जब बाहर निकाल रही थी तब भी अपस्यु बालकनी में ही खड़ा था। लावणी को तो डर ही इतना लग रहा था कि उसे कुछ सूझ ना रहा था लेकिन साची दबी नजरों से उसे देख लेती है।

वो लावणी का ध्यान भटकाने के लिए कहती भी है कि "आज नहीं बोलेगी कुछ, उस बालकनी वाले लड़के के बारे में"… लेकिन लावणी ने तो जैसे उसकी बात को अनसुना ही कर दिया।

थोड़ी ही देर में दोनों दौलत राम कॉलेज के गेट के बाहर खड़े थे। कॉलेज के गेट पर खड़ी हो कर साची, लावणी से कहती है…… "देखो हम अा गए अपनी मस्ती की पाठशाला में। अब पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ मस्ती भी होगी"

साची की बात सुन कर लावणी एक फीकी मुस्कान दी, जिसमें डर और मुस्कान का मिलजुला संगम था। उसके इस फीकी हसी पर साची, लावणी के कंधे को हिलाती हुई कहने लगी… "चिल मार, इतना डरेगी तो जिएगी कैसे? मैं हूं ना, उस आरव के बच्चे ने यदि आज तुझे छेड़ा तो फिर समझो उसकी शामत आई। और हां प्लीज मैं तेरे पाऊं पड़ती हूं, यहां तू मुझे दीदी मत कहना"।

लावणी, साची की बात पर हां में हां मिलाते हुए अंदर चल देती है। दोनों वहां से अपने-अपने कक्षा के लिए प्रस्थान कर लेती है। लावणी को आरव का डर सता रहा था जो पूरा दिन उस पर हावी रहा, किंतु आरव का कहीं कोई अता-पता नहीं था…

ऐसे ही अगला 2-3 दिन बीता, जब आरव कॉलेज में कहीं नजर नहीं आया और ना ही कॉलोनी में कहीं दिखा। हां अपस्यु भले ही हर वक़्त बालकनी में दिख जाया करता था। असर तो सिर्फ पहले दिन का ही होता है, उसके बात तो सिर्फ रही-सही कहानी रह जाती है। वैसा ही कुछ लावणी के साथ हो रहा था। अब आरव का ख्याल भी उसके मन से निकल चुका था और दोनों बहने नियमित रूप से कॉलेज जाया करती थी…

लगभग महीना बीतने को आया था.. और इतने दिनों में आरव कभी नजर नहीं आया… फिर एक रात करीब डेढ़ बजे दोनों बहाने चुपके से अपने घर के बाहर आईं और रास्ता पकड़ कर नुक्कड़ तक जाने लगी.. दोनों अभी कुछ कदम ही चली होंगी की उधर से आरव अपनी फटफटी लिए सामने से आ रहा था।

आरव अपनी फटफटी दोनों बहनों के सामने रोका और उनसे पूछने लगा… "देर रात दोनों कहां सड़कों पर भटक रही हो, ये दिल्ली है तुम्हारा गांव नहीं" … दोनों बहनों ने कोई जवाब नहीं दिया और अपना रास्ता बदल कर आगे बढ़ गई। आरव भी अपने रास्ते आगे बढ़ गया और अपार्टमेंट के गेट पर अपस्यु का इंतजार करने लगा।

जब दोनों बहने थोड़ी और आगे बढ़ी तब सामने से उन्हें अपस्यु आता हुआ नजर आया। वो दोनो अपनी ही लय में चलती रही लेकिन अपस्यु के टेढ़े-मेढे लड़खड़ाते कदम धीरे-धीरे स्थिर मुद्रा में अा गए। दोनों बहने बिना कोई ध्यान भटकाए उसके पास से निकल गई और अपस्यु वहीं खड़ा रह गया….
Last update me to Bareilly ka jikr tha ar is me Sitapur 😅😅😅
Sachi Bareilly se ya Sitapur se delhi shift hue hai apni maa k sath
😅
Vase mast update hai Bhai ❤️🎉🎉🎉
 

B2.

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जब दोनों बहने थोड़ी और आगे बढ़ी सामने से उन्हें अपस्यु आता हुआ नजर आया। वो दोनो अपनी ही लय में चलती रही लेकिन अपस्यु के टेढ़े-मेढे लड़खड़ाते कदम धीरे-धीरे स्थिर मुद्रा में अा गए। दोनों बहने बिना कोई ध्यान भटकाए उसके पास से निकल गई और अपस्यु वहीं खड़ा रह गया….

आरव कुछ देर तक वहीं अपार्टमेंट के गेट पर अपस्यु का इंतजार करता रहा, लेकिन जब वो वापस नहीं लौटा तो आरव खुद आगे बढ़ कर देखने चला गया। आरव ने जब अपस्यु को देखा तो ऐसा लगा रहा था मानो कोई जोगी अपने ध्यान में लीन है। बिल्कुल स्थिर मुद्रा, चेहरे पर मुस्कान और नजरें ना जाने कहां पर टिकी थी, ना तो वो आसमान देख रहा था और ना ही धरती।

आरव उसे हिलाते हुए कहता है… "उठो रेे, कहां खोया है"…

अपस्यु अपने यथावत स्थिति में बिना किसी बदलाव के अपने मुख से साची स्तुति पढ़ने लगता है…. "नीले समंदर से भी गहरी उसके कटिले नैन, जैसे मृगनैनी हो कोई… वो उसका चहकता खिला सा चेहरा, देख कर दिल खिल जाए… तराशा हुआ बदन बिल्कुल हीरे जैसा.. जिसकी चमक आखों में बस जाए"

तभी आरव उसे ठीक पीछे घुमा देता है…. "इतना खो कर काहे इमैजिनेशन कर रहा है, लेे वो सामने से अा रही है उसे देख कर बोल"

अपस्यु की नजर फिर से वही नजारा लेे रही थी जो अब से थोड़ी देर पहले लिया था। उसके मुख से निकल रहे साची पुराण अनायास ही गायब हो गए और वो फिर से उसे देखने में लीन हो गया।

इस बार भी साची बिना कोई प्रतिक्रिया दिए चुपचाप अपने लय में चलती जा रही थी। जब वो दोनो बहने उन दोनों भाइयों से थोड़े दूरी पर थी, तभी आरव साची को सुनाते हुए कहने लगा… "ओ मैडम.. मेरा भाई पागलों कि तरह तुम्हारे लिए नजरें बिछाए है, कुछ नहीं तो कम से कम एक मुस्कान ही देती चली जाओ"…

अब स्तिथि ये थी कि साची और लावणी लगभग 4 कदम की दूरी पर… अपस्यु वहीं सुकून भरी मुस्कान अपने चेहरे पर लिए साची को देख रहा था और तभी आरव ने ये कमेंट पास कर दिया। अपस्यु बिना अपना नजर साची पर से हटाए, और अपने भावों में बिना किसी बदलाव के, अपना हाथ उठाया और एक तमाचा खींच कर जड़ दिया।

वो तमाचा इतना जोरदार था कि उसकी आवाज़ दोनों बहनों के कानों तक भी पहुंची। अब चूंकि लावणी भी वहां पर थी इसलिए आरव को ये अच्छा नहीं लगा। और इस पर वो अपनी प्रतिक्रिया देते हुए झुंझलाकर कुछ कहा…

अपस्यु बस चंद सेकेंड के लिए अपनी नजर साची से हटा कर आरव पर डाला। इस वक़्त के जो भाव थे वो बिल्कुल ही उलट थे.. आंखें इतनी बड़ी कि देख कर है लगे की इसमें हैवान बस्ता हो… जैसे किसी भूखे भेड़िए की आखें हो। उसने अपने होंठ पर उंगली लगा कर "सुसससससस" की आवाज़ निकाली और शांत रहने का इशारा किया। इसके तुरंत बाद वो पुनः अपने पिछले अवस्था में वापस लौटते हुए फिर से उसी संतोषजनक मुस्कान के साथ साची को देखने लगा…

आरव को थप्पड पड़ना और फिर उसे शांत करवाना, ये देख कर दोनों बहनों के मुख से अचानक ही हंसी फुट गई और दोनों हंसती हुई वहां से बड़ी तेजी में वापस अपने घर को चली गई… इधर एक बार फिर आरव ने झुंझलाते हुए कुछ कहा और इस बार भी उसी तेवर के साथ अपस्यु उसे शांत करते हुए अपने हाथ से घर के ओर जाने का इशारा किया।

इधर दोनों भाई घर पहुंच जाते हैं और उधर दोनों बहने… अपस्यु वापस लौट कर हॉल में बने एक केबिन में घुस जाता है और अपना कंप्यूटर स्टार्ट करने लगता है… इधर आरव अपना कपड़ा बदलते हुए अपस्यु से कहता है… "तू मुझे ऐसे मत मारा कर वरना अच्छा नहीं होगा"

अपस्यु, आरव की बातों को सुन भी रहा था और बड़ी तेजी के साथ कीबोर्ड पर खट्टर-पिट्टर भी कर रहा था…. "तू ये बता 15 दिनों से कहां गायब था"…

आरव चिल्लाते हुए… "मैंने क्या कहा वो तू सुन भी रहा है"

अपस्यु, खट्टर-पिट्टार करते हुए इंटर कि दबाता है और अपने रोलिंग चेयर को घुमा कर पीछे घूम जाता है…. "तुझ से कुछ पूछ रहा हूं, कहां था 15 दिन"

आरव:- कामिना सला, पूछ तो ऐसे रहा है जैसे तुझे कुछ पता ही ना हो। ये कंप्यूटर पर तू मेरे बारे में ही कुछ खिट्टिर-पिट्टीर कर रहा था ना…

अपस्यु:- मेरे साथ हो तो एक बात हमेशा याद रखना… अपना गटर जैसा मुंह बंद रखा कर और जो पूछा उसका सीधा सीधा जवाब दे…

अपस्यु के लगातार रूखेपन से आरव के दिल में टीस सी लगती है और ना चाहते हुए भी उसके आखों में आंशु अा जाते हैं। आरव को रोता देख अपस्यु उसके पास पहुंचकर उसके आशु पोछने लगता है। पहले तिरस्कार फिर प्यार, आरव को बहुत तेज गुस्सा अा गया और वो गुस्से में फुफकारते हुए अपस्यु को धक्का देता है और नजर इधर-उधर दौड़ा कर कुछ ढूंढ़ने लगता है…

पास में ही एक देशी डंडा पड़ा होता है, आरव उसे उठा कर अपस्यु की पिटाई करने लगता है। आरव रोते रहता है और पूरे दम से अपस्यु को पीटते रहता है। पीटते-पीटते उसका गुस्सा भी शांत हो जाता है और इधर अपस्यु बस उसके गुस्से को देख मुस्कुराता रहता है और मार खाता रहता है। "हो गया तेरा" इतना कहते हुए वो उठा और अपने फोरआर्म को देखने लगा। फोरआर्म बहुत ही मजबूत जगह होती है लेकिन आरव डंडा इतना तेज चला रहा था कि हाथों पर उसके निशान साफ देखे जा सकते थे।

आरव जो पहले अपने भाई के बातों के कारण रो रहा था, अब वो अपने द्वारा कि गई हरकत और भाई के हाथ पर डंडे के लाल निशान देखकर व्याकुलता से रो रहा था। अपस्यु उसे शांत करते हुए कहने लगा…. "इसलिए मैं हमेशा कहता हूं गुस्से पर काबू रखा कर, क्योंकि ये गुस्सा अक्सर बाद में अफसोस के सिवा कुछ नहीं देता है"।

आरव "सॉरी-सॉरी" करता हुआ अपने भाई की मरहम पट्टी कर रहा था और साथ में सिकायते भी, की वो अक्सर उसके साथ बुरा व्यव्हार करता है जिसकी वजह से वो और भी ज्यादा चिड़चिड़ा होता जा रहा है।

इस पर अपस्यु उसे जवाब देते हुए कहता है… "मैं तेरे साथ ये सब करना उस दिन छोड़ दूंगा जिस दिन मुझे पता चल जाएगा कि तूने सीख लिया है कहां गुस्सा करना चाहिए और कहां अपनी भावनाओ को काबू में रखना चाहिए। साथ ही साथ कितना गुस्सा दिखना चाहिए और कितना गुस्सा अंदर छिपा रहना चाहिए"

आरव, अपस्यु की बात सुन कर नतमस्तक हो जाता है और कहता है… "ये तेरे 12 साल के उस गुरुकुल का नतीजा है जो तू इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है। वरना है तो तू मेरा भाई ही, तू भी बिल्कुल मेरे जैसा ही होता, यदि तू उस गुरुकुल में ना गया होता"

अपस्यु:- जी सत्य वचन, चल अब सच-सच बता 15 दिनों से कहां था?

आरव:- साला हैकर, रात दिन तो तू मुझ पर ही नजर रखे रहता है, तुझे नहीं पता कि मैं कहां था?

अपस्यु:- अब तू होम सेक्रेटरी के ऑफिस के एक आईएएस (IAS) से पंगे लेगा तो ऐसे ही ना छिपता फिरेगा। किसी ने तुझ पर हाथ तो नहीं उठाया।

आरव:- वो माचो के बच्चे रशियन मेड गन लिए घूम रहे थे और तुझे क्या लगता है वो मुझे हाथ और लात से मारेंगे… मै उसके हाथ लगता तो तू अब तक मुझ से बात भी ना कर रहा होता। वैसे एक बात बता तू तो अपनी आयटम को सरा दिन निहारता रहता था फिर तुझे इतनी बात कहां से पता चली।

अपस्यु:- ये सब बातें कल पूछना फिलहाल मुझे नींद लग रही है और मैं जा रहा हूं सोने।

आरव:- अपस्यु सुन तो, भाई दर्द भी हो रहा है क्या?

अपस्यु:- तेरी कसम कोई दर्द नहीं है मानसिक रूप से। हां बाकी जो इस हाथ कि क्षति हुई है उसे दवा ठीक कर देगी। चल अब मैं जा रहा हूं सोने तू भी सो जा।

आरव:- अच्छा सुन, कल कॉलेज चलेगा क्या?

अपस्यु:- कॉलेज जा कर क्या ही करूंगा मै? नह, कोई इकछा नहीं।

आरव:- नहीं बस सोचा की बता दू, तेरी और मेरी वाली दोनों दौलतराम में ही पढ़ती है।

अपस्यु जिसपर नींद सवार हो रहा था, उसकी भोहें चौड़ी हो गई…. "क्या बोल रहा है तू, तुझे कैसे पता वो दोनो उसी कॉलेज में है"।

आरव:- जिसकी तू अभी गुणगान कर रहा था ना होम सेक्रेटरी का आईएएस (IAS) उसने भी मेरे साथ ही फॉर्म जमा किया था। मै हम दोनों का और वो उन दोनों बहनों का फॉर्म भड़ा था।

अपस्यु:- क्या बात कर रहा है? लेकिन इन दोनों बहनों को देख कर लगता तो नहीं कि इनका एडमिशन स्पोर्ट्स कोटा में हुआ होगा।

आरव:- तू समझा या फिर समझाऊं कैसे हुआ दोनों बहनों का एडमिशन।

अपस्यु:- हां समझ गया। जिसके घर में मच्छर मारने के लिए भी नौकर हो और वो खुद जाए फॉर्म भरने मतलब तो साफ ही है… अपना स्पोर्ट्स कोटा और उनका पैरवी कोटा।

और फिर दोनों भाई ठहाके लगा कर हसने लगे। उसके बाद दोनों चले गए सोने। इधर साची और लावणी चोरी से घर के अंदर घुसे और सीधे लावणी के कमरे में पैक हो गए…

लावणी:- दीदी मुझे ये सब ठीक नहीं लगता।

साची:- बुरा तो मुझे भी लग रहा है लेकिन क्या कर सकते है। वो दोनो मंत्री के बेटे है और छोटे पापा तो उन्हीं के आफिस में काम भी करते है। जब वो कुछ नहीं कर सकते फिर हमें तो ये सब करना ही होगा।

लावणी:- दीदी कब तक ऐसे डर के जिएंगे… वो डर निकालने वाली कुत्ते कि थेओरी पर काम क्यों नहीं करती?

साची:- ठीक है कल से वो भी कर के देख लेंगे। वैसे आज ये दोनों भाई एकदम से अचानक बाहर कैसे घूम रहे थे।

लावणी:- मेरी हालत तो ऐसी है कि मुझे तो ये दोनों भाई याद भी नहीं रहे।

साची:- मुझे भी…

लावणी:- वैसे दी जैसे आप के साथ कुत्ते वाली घटना हुई थी ना वैसे ही डर भागने का मुझे भी एक उपाय मिला है…

साची:- क्या ?

लावणी:- यदि आप किसी चीज से डरती हैं और उस से भी ज्यादा डरावना कुछ और मिल जाता है तो पहले जिस चीज से आप डरती थी उसका डर अपने आप ही खत्म हो जाता है। जैसे कि आज हुआ.. आरव को देख कर डर नाम की कोई चीज ही नहीं रही।

साची:- तो तू क्या चाहती है अब हम इस से भी कुछ ज्यादा डराने वाला को ढूंढना चाहिए।

लावणी:- बिल्कुल नहीं, वो तो बस मेरे साथ बीती डर भागने कि विधि मुझे पता चली तो आप के साथ साझा कर दी। वैसे दीदी एक बात बोलूं आप मुझे डांटेंगी तो नहीं?

साची:- अब बता ना, इतना बाउंड्री क्यों बना रही है?

लावणी:- पक्का ना, कसम खाओ मेरी…

साची:- अब तू बताएगी या मैं सोने जाऊं…

लावणी:- दीदी तुम उस अपस्यु को वहां उन से क्यों नहीं भिड़ा देती… ये लोग आपस में उलझे रहेंगे… और हमसे पीछा छूट जाएगा…

साची, लावणी की बात सुन कर कुछ सोचती है और फिर उसे सोने के लिए कह कर वहां से चली जाती है।
Jiska panga arav se hua ye mantri k ladke vahi to nahi kahi,,😅
Shandaar jabarjast lajawab update Bhai ❤️🎉🎉
 
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अपस्यु मंत्री जी से मिल कर लौट आया। सारी कहानी सामान्य हो चुकी थी। अपस्यु की फटफटी अपने रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी, की तभी अचानक पीछे से एक कार ने उसे जोरदार टक्कर मारी और ठीक उसी वक़्त जब अपस्यु हवा में था सामने से रफ्तार में अा रही बस ने उसे ठोका….

ना जाने कितनी देर तक खून से लथपथ शरीर सड़क पर पड़ी रही। लोग भीड़ लगा कर देखते तो रहे किंतु किसी ने भी उठा कर हॉस्पिटल नहीं पहुंचाया। रक्त बहता रहा सासें धीमी होती रही…

आरव, अपस्यु के कहे अनुसार 4 बजे के बाद वो जगह खाली कर दी। लावणी को भी पूरा होश अा चुका था और वो अपने चेतना में थी। दोनों बहने अपनी स्कूटी से अपने घर निकाल गई और आरव अपने फ्लैट।

रात बीत रही थी पर अपस्यु का कोई पता नहीं था। आरव की चिंता थोड़ी जायज भी थी क्योंकि जो लड़का कभी रात भर बाहर रहा नहीं आज पूरी रात गायब था। लेकिन आरव को ये भी ज्ञात था कि अगर वो बाहर है तो किसी ना किसी काम में जरूर होगा। फिर भी चिंता तो हो ही जाती है।

2 दिन बीतने को आए थे, अपस्यु का कोई पता नहीं। अगले दिन जब दोनों बहने कॉलेज पहुंची तब उनकी समस्या का भी समाधान हो चुका था लेकिन कॉलेज में ना उनको आरव दिखा और ना ही अपस्यु।

साची की नजरें भी अब अपस्यु के बालकनी पर टिकी रहती की कहीं एक बार अपस्यु दिख जाए तो उसे धन्यवाद कहा जा सके लेकिन वो हो तो ना बालकनी में दिखे।

2 दिन बीतने के पश्चात, जब अपस्यु घर नहीं लौटा, तब आरव बहुत ही चिंतित हो गया। फिर उसने अपस्यु का कंप्यूटर खोला, उसमे जीपीएस ट्रैकिंग वेबसाइट खोलकर अपस्यु के लोकेशन को देखने लगा। चिंता और दिल की धड़कने तब और भी ज्यादा बढ़ गई जब उसका लोकेशन किसी हॉस्पिटल का अा रहा था, और पिछले 2 दिनों से वो वहीं एक ही लोकेशन पर था।

आरव हड़बड़ी में अपने फ्लैट से निकला, नुक्कड़ तक पहुंच कर वो टैक्सी के लिए हाथ दिखाने ही वाला था कि उसके पास साची की स्कूटी रुकी। स्कूटी रोक साची ने पहला सवाल वही किया… "आरव तुम लोग कहां गायब हो गए उस दिन के बाद से"।

आरव:- सही वक़्त पर अाई हो, लावणी तुम घर चली जाओ हम जरा हॉस्पिटल हो कर आते हैं।

साची:- हॉस्पिटल.. क्या हो गया? सब ठीक तो है ना।

आरव:- तुम चलो रास्ते में तुम्हे सब बताता हूं।

लावणी स्कूटी से उतर गई और आरव उसपर सवार हो कर चल दिया हॉस्पिटल। रास्ते में उसने साची से सारी बातें साझा कर दी। साची भी थोड़े सकते में अा गई और उसने भी स्कूटी की रफ्तार थोड़ी बढ़ा दी।

कुछ समय पश्चात दोनों एक सरकारी हॉस्पिटल में थे। थोड़ी देर पूछताछ के बाद दोनों को अपस्यु के बारे में पता चला। वो बेसुध हो कर जेनरल वार्ड में परा हुआ था और सिर से लेे कर पाऊं तक पूरी पट्टियां लगी हुई थी।

उस क्षण आरव के ह्रदय में उठ रही पिरा को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। पास ही एक कंधा था और उसी कंधे पर सिर रख कर आरव अपने भाई को देखता रहा और आशुओं के धार बहाता रहा।

साची, ने उसे कई बार कहा भी, "आरव तुरंत अपने मम्मी पापा को खबर करो".. लेकिन आरव के आखों से बस आशुं निकलते रहे। सिसकती जुबान से आखिर में बस इतना निकला… "मेरे लिए मेरा भाई है और उसके लिए मैं। किसे पुकारू, किसे बुलाऊं"..

बहुत ही मार्मिक स्थिति थी। यूं तो सांची जाना नहीं चाहती थी लेकिन शाम हो रही थी और घर से भी बार-बार फोन अा रहा था, इसलिए ना चाहते हुए भी साची को वहां से जाना परा।

तकरीबन रात के 8.३० बजे वो खाना लेेकर पुनः वापस आयी। आरव वहीं अपस्यु के खटिए के नीचे उसका एक पाया पकड़ कर ना जाने कहां खोया था। साची उसे चेतना में वापस लाती हुई… "खाना खा लो"

साची को देखते ही एक बार फिर उसके आंसू निकाल आए। मानो जैसे किसी अपने को देख कर भावनाए जाग जाती हो। साची उसे किसी तरह चुप करा कर, अपस्यु का चेहरा दिखा कर हौसला देती… "अगर तुम हिम्मत हार गए फिर उसकी देखभाल कौन करेगा"… इन्हीं सब तरह की बातें सुनाकर उसे चुप करवाई और खाने के लिए भेज दी।

भाई की ऐसी हालत देख कर निवाला गले से कहां उतरे। फिर भी कुछ निवाला खाकर उसने टिफिन साची को दिया और साची उस टिफिन को लेेकर वहां से चली गई।

अगली सुबह जब डॉक्टर राउंड में आए तब आरव को देख कर गुस्से से कहने लगे… "इसकी इतनी हालत खराब है और तुम लोग कहां सो रहे थे 4 दिनों से"..

आरव:- सर मेरे भाई को क्या हुआ है वो ठीक तो हो जाएगा ना?

डॉक्टर उस पर चिल्लाते हुए…. "पहले तुम ठीक से खड़े राहो"

आरव:- सर मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है। प्लीज़ आप बताइए ना।

डॉक्टर:- देखो बेटा, तुम्हारे ऐसे पैनिक होने से तो तुम्हारा भाई ठीक नहीं होगा। अब हिम्मत रखो और इसकी सेवा करो।

आरव:- जी सर मै खूब सेवा करूंगा। इसे एक काम नहीं करने दूंगा। लेकिन मेरा भाई कुछ बोल क्यों नहीं रहा… अपस्यु… अपस्यु.. कुछ तो बोल भाई। मार लेे मुझे, डांट ही सही पर कुछ तो बोल।

आरव जेनरल वार्ड में डॉक्टर के सामने खड़े हो कर चिल्ला रहा था। तुरंत ही हस्पताल प्रशासन वहां पहुंच गई। लेकिन डॉक्टर के कहने पर किसी ने कुछ नहीं किया और सब वापस चले गए। डॉक्टर ने एक वार्ड बॉय को बुला कर आरव को उसके केबिन में लेे जाने के लिए बोले और फिर राउंड पर निकाल गए।

तकरीबन 1 घंटे बाद डॉक्टर साहब अपने केबिन में पहुंचे और आरव को बताने लगे… "देखो तुम्हारे भाई का सीरियस ऐक्सिडेंट हुआ था। कई जगह चोटें अाई हैं और कई हड्डियां टूट चुकी है। तुम्हारे ऐसे भावुक होने से या चिल्लाने से वो ठीक तो होगा नहीं। मेरी सलाह है की तुम धर्या बनाए रखो। समय के साथ वो धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। समझे"

आरव:- माफी चाहूंगा सर बताया ना इस वक़्त मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है।

डॉक्टर:- होता है, तुम्हारी जगह मै भी होता तो शायद मेरा भी यही हाल होता। लेकिन बेटा ये बताओ तुम्हारे अभिभावक कहां है?

आरव:- सर अब उसका इकलौता रिश्तेदार मैं ही हूं।

डॉक्टर:- ओह माफ़ करना मुझे। ठीक है तुम जाओ, मैं तुमसे अा कर मिलता रहूंगा। लेकिन कोई शोर मत करना वरना तुम्हे हस्पताल से निकाल दिया जाएगा। फिर तुम अपने भाई की सेवा नहीं कर पाओगे।

डॉक्टर से बात करके आरव को थोड़ी तसल्ली मिली और वो शांत मन से वहां से निकल कर सीधा अपने भाई के पास पहुंचा। जब वो अपस्यु के पहुंचा तब उसकी आंखें खुली हुई थी और नजरें इधर से उधर हो रही थीं।

अपस्यु को देख कर तो मानो आरव के चेहरे पर खुशी छा गई हो, वो अपस्यु के सर के पास बैठ कर उसके माथे को सहलाते हुए… "जल्दी उठ जा भाई, तेरे बिना पागल हो रहा हूं मैं"।

अपस्यु, ने इशारों से नजदीक आने के लिए कहा, फिर किसी तरह अपनी आवाज़ निकलते.. "कान इधर ला".. आरव अपना काम अपस्यु के मुंह के पास लेे गया.. "आज रात मुझे अपने फ्लैट पर पहुंचना है, मैं नहीं जानता तू क्या करेगा, कैसे करेगा, लेकिन तुझे ये करना है"…

आरव आश्चर्य से उसे देखते हुए… "आज ही तो तू होश में आया है ऊपर से ऐसी बातें कर रहा"।

अपस्यु:- मुझे तू बुलबाएगा ही। अरे होश तो उसी दिन आया था, बस शरीर में जान नहीं था। तब तू नहीं था ना इसलिए शायद। अब जैसा कह रहा हूं वैसा कर और हां किसी वार्ड बॉय को कुछ पैसे दे कर मेरी पूरी रिपोर्ट लेे लेना।

अपस्यु की बात आरव के समझ से परे थी। लेकिन अब भाई ने कहा था तो करना ही था। सब से पहले उसने 2 वार्ड बॉय को पकड़ा और दोनों को ₹10000 रुपया पहले पकड़ाया। रुपया देख कर ही वो खुश हो गए। फिर आरव ने उसे पूरी बात समझाई। उन दोनों को क्या मतलब था कि कोई कहां जा रहा। उन्होंने कितने आदमी और लगेंगे और एम्बुलेंस से लेकर फ्लैट के अंदर तक के पहुंचने का सारा गणित लगा कर ₹20000 और मांग लिए। आरव उन लोगों को ₹30000 थामते हुए बोलने लगा… "तुम्हारी पूरी पेमेंट हो गई। साथ में एक्स्ट्रा भी दिया, आज रात काम हो जाना चाहिए"

इधर वो वार्ड बॉय के साथ अपनी मुलाकात खत्म करके अा ही रहा था कि हस्पताल के बाहर साची मिल गई। साची ने सबसे पहले तो आरव को ऊपर से नीचे तक देखी और उसे देखकर यही कही… "लगता है अपस्यु को होश अा गया है"। आरव ने खुशी का इजहार करते हां में जवाब दिया फिर साची उसके हाथ में परी रिपोर्ट के बारे में पूछने लगी।

आरव ने प्रतिउत्तर में बताया कि उसके हाथ में अपस्यु की रिपोर्ट है। यूं तो मेडिकल रिपोर्ट पढ़ लेना कोई आम बात नहीं होती, गूगल भी करो तो भी ठीक से पता नहीं चल पाता कि क्या लिखा है। हां लेकिन आजकल सीधे-सीधे लाइन में 2-4 बातें लिख दी जाती है जिसे पढ़ कर कोई भी समझ सकता है। और साची उसी को देख रही थी। जब अपस्यु के शरीर के क्षति के बारे में उसने रिपोर्ट में पढ़ी तो उसके होश ही उड़ गए। कई हड्डियां टूटी, कई पसलियां टूटी.. और बाकी अंदर की तो रिपोर्ट समझ में ही नहीं अाई।

साची:- इसका तो बहुत बड़ा एक्सिडेंट हुआ है। काफी दर्द और तकलीफ में होगा।

आरव:- हां इसलिए तो उसे आज यहां से शिफ्ट करवा रहें हैं। यहां उतनी फैसिलिटी नहीं है ना।

साची:- हां ये सही किया, वैसे कहां लेे कर जा रहे हो।

आरव:- वेदांता में लेकर जा रहे है। वहां तो अनलोगों ने बस इतना ही कहा कि मरीज को छोड़ जाना बाकी किसी कि जरूरत नहीं।

साची:- हां अच्छा हॉस्पिटल है। अच्छा निर्णय लिया। अब बस अपस्यु जल्दी से ठीक हो जाए।

साची वहां से चली गई और आरव बकिं सारी तैयारियां करने लगा। शाम के 7 बजे वार्ड बॉय ने अपना काम कर दिया। उन्होंने अपस्यु को चुपके से निकालकर एम्बुलेंस में लोड करवा दिया। थोड़ी ही देर में अपस्यु अपने फ्लैट में था। आरव उसके लिए पहले से सब व्यवस्था कर रखा था। एक फोल्डिंग आरामदायक बेड जो हॉस्पिटल में लगा होता है और उसके साथ सारे जरूरी उपकरण, जैसे ऑक्सीजन सिलेंडर, हार्ट रेट चेक करने की डिजीटल मशीन। ऐसा लग रहा था जैसे हॉस्पिटल का छोटा सा सेटअप लगा रखा हो।

अपस्यु को जब उस पर लिटाया जा रहा था, तब सारा सेटअप देख कर अपस्यु मुस्कुरा दिया। उसने आरव को अपने पास बुलाया और उसे "थैंक यू" कह दिया। आरव ने हंस कर उसके थैंक यू का टेढ़ा जवाब दिया और वहां से जाने लगा। लेकिन अपस्यु ने उसे रोककर कुछ बातें समझाई और अपस्यु के कहे अनुसार वो करते हुए पूछने लगा… "तेरा ऐक्सिडेंट कैसे हुआ और ये समझ से परे है कि तू यहां अाकर, साबित क्या करना चाहता है"

"आरव, हम तो यहां आराम से काम करने आए थे लेकिन कुछ लोग जरा जल्दी में है जिन्हे हमारा आराम से काम करना अच्छा नहीं लग रहा। और ये ऐक्सिडेंट उनकी जल्दबाजी का नतीजा है। गलती मेरी है जो मैं थोड़ा लापरवाह हो गया। लेकिन कोई नहीं, उन्होंने अधूरी कोशिश की और मैं उन्हें दोबारा कोशिश करने का मौका नहीं दूंगा"
Accident ar jst mantri k bete ko pitne k baad??
ye neta ar kutte ki puch😂😂😂

Shandaar jabarjast lajawab update Bhai ❤️
 

andyking302

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Bohot hi khubhsurat katha thi
Jismey action, romance, sex, emotions, family Drama Sab mil raha tha ek gajal ki lekhni thi bhai jann,

Ismey se ek bat samj ayi ki dhairya banao ge to sabhi se sabhi mushkil badha bhi aram Se sulji ja sakti hey to, har insan mey dhairya hona chahiye..........


Aur bhai jann iska agla part Kab ane wala hey???

Aur ab jo arya ki story running chal rahi hey usmey jo apsyu dikhaya hey ohh our ismey jo hey ye dono ek hi hey kya???

Aur jo apsyu ne jis ghost ka jikar Kiya hey uske khilap ek jo bacha hey ohhh kya arya tha ya koi aur tha??

Aur ohh underworld valo ne bhi kaha tha ki iske piche jiska hath hey uske bare mey tum log nahi janete, aisa kon hey ohhh bhai???
 

nain11ster

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Bohot hi khubhsurat katha thi
Jismey action, romance, sex, emotions, family Drama Sab mil raha tha ek gajal ki lekhni thi bhai jann,

Ismey se ek bat samj ayi ki dhairya banao ge to sabhi se sabhi mushkil badha bhi aram Se sulji ja sakti hey to, har insan mey dhairya hona chahiye..........


Aur bhai jann iska agla part Kab ane wala hey???

Aur ab jo arya ki story running chal rahi hey usmey jo apsyu dikhaya hey ohh our ismey jo hey ye dono ek hi hey kya???

Aur jo apsyu ne jis ghost ka jikar Kiya hey uske khilap ek jo bacha hey ohhh kya arya tha ya koi aur tha??

Aur ohh underworld valo ne bhi kaha tha ki iske piche jiska hath hey uske bare mey tum log nahi janete, aisa kon hey ohhh bhai???

Bilkul Andy Bhai... Dhairya har samsya, dukh, dard ki ek common kunji hai. Dhairya aapko vichlit nahi hone deta. Jisme dhairya hai uska jivan sugamta se chalta hai.... Thankoo for your beautiful revooo... Chaliye aapke sawal par chalte hai...

Dono Apasyu ek hi hai.... Wahan jo aapne Apasyu dekha hai wah Delhi pahunchne se pahle wala Apasyu hai.... Abhi Aryamani ki kahani me jab Aryamani aur Apasyu ka sanyukt abhyash hua tha... Uske baad jo Apasyu kaha waqt aa gaya main bhi Delhi ja raha... Ye kahani usi ke baad ki hai...

Baki iska ek patr jiska naam bhul gaye wah patr Drishy hai... Ashk aur Drishy ki apni seperate kahani hai jiska naam hai “Kuch nahi tere bin”.... Yah kahani maine dusre forum par likhi thi yahan aapko pdf section me uski poori kahani mil jayegi...

Baki Aryamani ke baad hi uske aage ka part aayega... Kyonki fir dono ek sath honge... Bahut badi kahani nahi hai aur Aryamani ke bahut sare adhure part usme cover honge... So mai soch raha seperate thread par na shuru karke... Same thread par shuru karun .... Baki ek readers poll lunga... Dekhte hain kya mejority kahti hai...
 
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Adirshi

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread


Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread




Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :-XForum Staff

 
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Bilkul Andy Bhai... Dhairya har samsya, dukh, dard ki ek common kunji hai. Dhairya aapko vichlit nahi hone deta. Jisme dhairya hai uska jivan sugamta se chalta hai.... Thankoo for your beautiful revooo... Chaliye aapke sawal par chalte hai...

Dono Apasyu ek hi hai.... Wahan jo aapne Apasyu dekha hai wah Delhi pahunchne se pahle wala Apasyu hai.... Abhi Aryamani ki kahani me jab Aryamani aur Apasyu ka sanyukt abhyash hua tha... Uske baad jo Apasyu kaha waqt aa gaya main bhi Delhi ja raha... Ye kahani usi ke baad ki hai...

Baki iska ek patr jiska naam bhul gaye wah patr Drishy hai... Ashk aur Drishy ki apni seperate kahani hai jiska naam hai “Kuch nahi tere bin”.... Yah kahani maine dusre forum par likhi thi yahan aapko pdf section me uski poori kahani mil jayegi...

Baki Aryamani ke baad hi uske aage ka part aayega... Kyonki fir dono ek sath honge... Bahut badi kahani nahi hai aur Aryamani ke bahut sare adhure part usme cover honge... So mai soch raha seperate thread par na shuru karke... Same thread par shuru karun .... Baki ek readers poll lunga... Dekhte hain kya mejority kahti hai...
Sahi bade bhai jaisa apko thik lge vaise dusra prt shuru kro....

Katha bdi hogi tab hi mja ayega Aisa Mera kehna hey,, bki app dekho lo
 
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