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Romance भंवर (पूर्ण)

Zoro x

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22 जनवरी दोपहर के 2 बजे, धड़ाम से एक किराए के कमरे का दरवाजा खुलता है और काया सबसे पहले अंदर। दरवाजा खुलने से उस छोटे से कमरे में लेटी हुई लिसा उठकर खड़ी हो जाती है। पल जैसे थाम गया हो लिसा और काया के बीच। दोनो की नजरे एक दूसरे से मिलने लगी और दोनो अपने एक कदम बढ़ाकर होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगे। काया, लिसा के दोनो गाल को पकड़े, किसी मासूक की तरह उसे चूम रही थी।


तभी ऐमी वैभव के आंख को अपने हाथ से ढकती… "शर्म करो पीछे 3 लोग खड़े है।"


काया अपने हाथ के इशारे से उन्हें बाहर जाने बोली। दोनो हंसते हुए वैभव को लेकर बाहर आ गए और दरवाजा सटाकर वहीं सीढ़ियों पर बैठ गए, लगा थोड़ा प्यार जाता कर बाहर आ जाएंगे।


तभी बाहर टननननन .. टूननननननन.. छननननननन.. खटटटटटटट.. आव आराम से.. जैसी साफ और जोरदार आवाज बाहर आने लगी। ऐमी और अपस्यु वैभव को वहां से लेकर भागते हुए कहने लगे.. "हम घर फाइनल करके कॉल करते है।"…


4 फरबरी 2015.. काया के इक्छा अनुसार उसकी शादी में पुरा परिवार शरीक होने आया था। कैथोलिक रीति रिवाज से शादी थी, इसलिए चर्च को पूरा सजा दिया गया था और गेस्ट पुरा भरे पड़े थे। लिसा के पिता सोमेश दत्त अपने पत्नी और बेटे के साथ शादी में शरीक हुआ था। अपस्यु और ऐमी बेस्ट फ्रेंड के किरदार में थे, जहां ऐमी लिसा के साथ आती वहीं वैभव सबसे आगे सूट-बुट पहने और पीछे से काया अपस्यु के बाजू में हाथ देकर चली आ रही थी।


नंदनी और सोमेश दत्त दोनो आस पास बैठे थे और दोनो ही परिवार को दूल्हे के बारे में नहीं पता था। नंदनी को बस इतना पता था कि काया की शादी में उसका भी एक परिवार हो और लिसा की भी यही ख्वाहिश थी कि उसकी शादी में कोई आए की नहीं आए उसके पापा जरूर आने चाहिए। अपने पिता के बहुत करीब थी वो।


नंदनी, सोमेश से कहती… "इनकी शादी जल्दी हो जाती है। लगता है कि पहले काया की शादी होगी फिर लसीता की।


सोमेश, लिसा को आते देखा, जो जाकर काया के सामने खड़ी हो गई।… "नहीं बहनजी लगता है दोनो की शादी साथ में होगी, लेकिन दूल्हा कहीं नजर नहीं आ रहा।"


तभी पादरी अपना कार्यक्रम शुरू कर देता है। सोमेश खुश होते .. "लगता है शादी की रस्म शुरू हो गई है, कुछ देर में दूल्हे को बुलाएंगे।"..


इतने में ही दोनो एक दूसरे को अंगूठी पहनते है और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगते है। सोमेश दत्त बेहोश। घर पर बड़ा ही आक्रोशित माहौल। बस कोई खुलकर कह नहीं पा रहा था कि शादी मतलब छोड़ा छोड़ी का इंटरकोर्स, ना की छोड़ी छोड़ी का कुछ भी। बस सब ये शादी को गलत गलत बोले जा रहे थे और लिसा मज़े लेती पूछ रही थी कि क्या गलत है।


अंत में उसकी मां ने कह ही दिया, शादी मतलब वंश बढ़ना। बच्चा कहां से लाएगी। इसपर पहले से पका हुए जवाब था वैभव। फिर एक बार सब चुप। अब आगे क्या कहे। तभी काया हर किसी हाथ जोड़कर, सबसे विनती करती हुई कहने लगी… "इतना मत सोचिए कि ये गलत है वो गलत है। हमारी भावनाएं जुड़ी है और हम अलग नहीं रह सकते।"..


ना पचने वाला रिश्ता मंजूर करके सब वहां से वापस चले गए और अपस्यु ने दोनो का 1 वीक का हनीमून पेरिस में रखवा दिया। सब तो चले गए बस सौरव रह गया, जो बेचारा अपनी कलिका को ढूंढ़ते हुए आया था।


उसकी बेबसी पर तरस खाते हुए अपस्यु उसे लेकर सबसे पहले युक्रेन पहुंचा, जहां श्रेया अपनी टीम के साथ फसी थी। कंगाल और बदहाल सी हालत में, लेकिन उन चारो ने अपनी मेहनत से मक्का को वहां लहरा दिया था। हाथ से खेत कोरकर खेती करना मुश्किल होता है, लेकिन फिर भी 500 स्क्वेयर मीटर में लंबा चौड़ा फसल उगा रखा था।


उन चारो को दूर से ही एक कार आती हुई दिखाई दी, जो बड़ी तेजी के साथ उनके पास से गुजरी और एक किनारे के फसल को रौंदकर चली गई। चारो के सीने में ऐसा दर्द उठा मानो किसी ने उनके बच्चे को घायल करके भाग गया हो।


वो कार वापस आयी और इस बार फसल के बीचों बीच रौंदने आ रही थी। जैसे ही उन चारो ने ये नजारा देखा, चारो हाथ पकड़ कर अपनी फसल के आगे खड़े हो गए। कार तेजी में बिल्कुल उनके करीब आयी। चारो ने टक्कर की सोच कर अपनी आखें मूंद ली। अचानक ही हैंड फुट ब्रेक सब एक ही बार में लगे और व्हील क्राउच करती हुई बिल्कुल उनके इंच भर के फासले से दाएं मुड़ गई।


उनकी बेकाबू धड़कने जब सामान्य हुई तब सामने से उसे अपस्यु खड़ा नजर आया। श्रेया, जेन, प्रदीप, और गुफरान चारो अपने कमर में खोसी छोटी सी चाकू लेकर उनके पीछे दौरे… "ओ पगलाए लोग मुझे मार दोगे तो यहां से निकलोगे भी नहीं। रुक जाओ यार।"


लेकिन चारो गालियां देते हुए उनके ओर भागने लगे। बहुत दौड़ने के बाद चारो थककर एक जगह बैठ गए… "मूर्खो बस इतना ही स्टम्ना रहा। खेती कर रहे हो यार, कुछ तो स्टमना दिखाओ।"..


चारो एक साथ हाथ जोड़ते… "नीचे कंटेनर ने 4 आदमी के लिए उतना खाना नहीं था कि रोज 2 वक़्त का खाकर गुजर कर सके, इसलिए 1 वक़्त के खाने पर जिंदा है। हां कभी कोई जानवर हाथ लग गया फिर पार्टी होती है।"


अपस्यु:- इस से अच्छा 200 किलोमीटर पैदल ही चल देते, 4-5 दिन में पहुंच जाते।

प्रदीप:- पहुंचकर क्या भीख मांगते। तुमने हमें यहां ज़ीरो करके छोड़ दिया जिसका कोई अस्तित्व नहीं। काम भी उन्हीं को मिलता है जिनकी पहचान हो।


श्रेया:- कुत्ते, यहां हमे नंगा करवाते शर्म नहीं आयी तुम्हे?


अपस्यु:- सबक था जो मुझे लगता है अब तक सीख चुकी होगी। चलो 2 महीने का करावश खत्म हुआ।


जेन:- सब कुछ तो खतम हो गया। तुम्हारा शो यहां चलाया तो गया था, अब जाकर क्या करेंगे..


अपस्यु:- यहां भी तो मैंने सब कुछ खत्म कर दिया, तो क्या जिंदगी रुक गई। चारो अपना घर बसाओ और मेहनत से आगे बढ़ो। अब चलो उठो। इतना प्यारा फसल लगाई हो मेहनत से, तो क्या अपनी मेहनत से मुकाम हासिल नहीं कर सकते। टैलेंट तो है तुम चारो में।


गुफरान:- सही कहा भाई। वैसे भी जैसे जैसे खुद के मेहनत का फसल बड़ा होते देखा ना तब समझ में आया कि किसी के मेहनत का पैसा छीनने का दर्द क्या होता होगा।


अपस्यु चारो को लेकर सौरव के साथ वहां से निकल गया। रास्ते में सौरव अपना गुस्सा दिखते… "कलिका के पास जाना था यहां क्यों ले आए।".


अपस्यु:- मेरी दोस्त लिसा को यहां किसी एक लड़की से अपने साथ हुए धोक का बदला लेना है। यहां तुम दोनों में से तो किसी एक ने उसके साथ सेक्स भी किया है।


जेन:- हीहीहीही… बहुत ऊंची चीज है लिसा, प्रदीप को ब्वॉयफ्रैंड तो बनाई लेकिन ओरल से ऊपर कभी आने नहीं थी। उसका सर हमेशा उसके कमर के नीचे ही रहा कभी उसने आगे बढ़ने ही नहीं दी इन्हे..


श्रेया प्रदीप को आखें दिखती… "जेन क्या कह रही है, तुम लिसा के साथ सेक्स करना चाहते थे।"..


प्रदीप:- सॉरी बेबी.. वो तो तब की बात थी ना, जब हम मिशन पर थे।


श्रेया:- मिशन माय फुट, मै भी तो थी, अपस्यु भी तो था। हमारे बीच में कहां कुछ हुए था। ठरकी..


गुफरान:- आज प्रदीप तो गया..


जेन:- तुम्हे बहुत मज़ा आ रहा है ना सुनने में।


सौरव:- बंद करो अपनी अपनी बकवास। यहां क्या बात किया था मैंने और कहानी को कहां से कहां पहुंचा दी। चुपचाप कलिका के पास चलो।


फ्रांस का सहर पेरिस.. अपस्यु सौरव को लेकर एक होटल की रिसेप्शन पर आया। वहां उसने अपना कार्ड दिखाया और रिसेप्शन से उसे एक चाभी दे दी गई। जैसे ही अपस्यु के आने की सूचना मिली, किसी कमरे के बाहर खड़े 2 गार्ड वहां से चले गए और अपस्यु, सौरव को लेकर उस कमरे में दाखिल हुआ।


सामने कलिका को देखकर वो रुक नहीं पाया और उसे गले से लगाते हुए उसके होंठ चूमने लगा। कलिका ख़ामोश, उसने कोई प्रतिक्रिया दिए बिना सौरव से अलग हो गई, और अपस्यु को देखती हुई पूछने लगी….


"जब सब को जेल में डलवा दिए फिर मुझे यहां क्यों लाकर रखा। दिल में दर्द उठा था क्या की जेल में जैसे मेरे भाइयों के साथ हो रहा होगा वैसे ही मेरे साथ दिन रात लोग लगे ना रहे और नोचते ना रहे।"..


अपस्यु:- हां कह सकती हो, सौतेली ही सही, बहन तो हो। मेरे लिए ये शब्द ही काफी है। वो भी भाई ही है। दर्द कहीं ना कहीं थोड़ा सा है उनके लिए भी। लेकिन उसकी सजा काया ने तय की थी, जिसके लिए मेरे दि क में कुछ ज्यादा ही दर्द है। तुम्हे मैंने नहीं बाहर रखा है, तुम्हारी किस्मत ने बाहर रखा है। सौरव को तुममें अच्छाई दिखी, और तुम उसकी किस्मत से बाहर हो। मै अब चलता हूं। कम से कम इसे धोका मत देना।


कलिका:- रुको..


अपस्यु:- हां कहो क्या है?


कलिका अपस्यु से लिपटकर रोती हुई… "तुम्हे पता था ना हमे मौका मिलेगा तो हम तुम्हे मार देंगे। मेरे भाई जिस दिन जेल से बाहर आएंगे वो तुमसे बदला लेंगे, इसके बावजूद तुमने हमें जिंदा क्यों छोड़ दिया।"


अपस्यु:- पता नहीं बस कभी ख्याल नहीं आया कि किसी को मारना भी है।


कलिका:- तुम 7 साल से हमारे पीछे थे और हमे भनक तक नहीं। कुछ बातें है जो मुझे समझ में नहीं आ रही। क्या तुम मुझे उसका जवाब दे सकते हो।


अपस्यु:- शायद हां, शायद ना.. वो तो सवाल पर डिपेंड करता है।


कलिका:- हम्मम ! ठीक है तुम्हारी मर्जी.. मुझे ये बताओ की कैसे आखिर जगह बदले जाने पर भी तुम जीत गए और हम हार गए। मिश्रा बंधु का पीछा करके भी तुम हम तक नहीं पहुंच सकते थे, क्योंकि बहुत ही सिक्रेट कॉन्टैक्ट था और यदि जान भी जाते तो भी हमारे प्लान का कैसे पता चला।


अपस्यु:- "श्रेया के कारण। मै दिल्ली ऐसे ही नहीं आया हूं। होम मिनिस्टर हमारे हुक्म का इक्का था। हम शुरू से कॉन्टैक्ट में थे, बस दिखाने के लिए हमे अपने रिश्ते को नया अंगेल देना परा। उन्होंने है बताया था कि सात्त्विक आश्रम और लोकेश के बीच जंग शुरू हो चुकी है। सही समय है अपने काम को अंजाम देने का।"

"मै लोकेश पर फोकस किए था और मिश्रा परिवार से नजदीकियां बाना रहा था। उन्हें झांसे में लेने और खुद को काम का आदमी साबित करने के लिए मैंने होम मिनिस्टर का सहारा लिया और उसे मेरा फैन बनने के लिए कहा।"

"मै अपनी बजी चल चुका था, तुम्हीं लोग बीच में श्रेया को प्लॉट करके मुझसे लोकेश को खत्म करवाना चाहते थे। बस श्रेया के साथ मुझे एक ही परेशानी थी कि वो घर में घुस चुकी थी और मां कहीं भावना में आकर सब सच ना बता दे। इसलिए मां को उसकी सच्चाई बताकर उन्हे भी ड्रामा करने बोल दिया।"

"बस ऐसे ही एक रात वो दारू पिलाकर मुझसे मेरे राज उगलवाने आयी थी और मैंने उसे सुलाकर उसके अंदर मस्त एक नॉन ट्रेस वाला माईक, उसके जिस्म में फिट कर दिया। अब मेरी किस्मत या तुम्हारी बदकिस्मती, मेरा सर्विलेंस वहीं कर रही थी और कंप्यूटर रूम की सारी बातें मुझतक पहुंच रही थी।"

"वहीं से तो पता चला था कि तुम युक्रेन के ईस्ट बॉर्डर पर अपने 450 लोगों को रखी हो। मैंने भी उनके तम्बू वाले एरिया की खुदाई करवाई दी। कुल 1200 लोग काम कर रहे थे वहां नीचे, दिन रात। जबसे यहां तुम्हारे लोग पहुंचे थे।"


कलिका:- हम तो खुद से ही बेवकूफ बन गए। वैसे ये पैसे का क्या चक्कर था? बैंक वाले आए, पुलिस आयी लेकिन वहां सबने पैसों के कंटेनर को छोड़ दिया।"


अपस्यु:- 24 दिसंबर की रात को तुम लोगो को धुएं से बेहोश कर दिया था और रात को हो पैसा गायब। और रही बात मेरे कंटेनर की तो जब कभी बैंक में चोरी ही नहीं हुई तो हमारे कंटेनर में असली यूरो कहां से आ गए।


कलिका:- व्हाट्, जो पैसा चोरी नहीं हुआ उसकी सजा काट रहे मेरे भाई। आखिर कैस, कैसे फिर बैंक प्रबंधन ने चोरी कि बात कबूल की.. पुलिस और मीडिया को कैसे मैनेज किया। और वो 6 किलोमीटर में जो धुआं हुआ था, 60 कंटेनर अलग अलग जगह जाना..

अपस्यु:- हां वो सब हुआ था पर बैंक में चोरी नहीं हुई थी, बल्कि बैंक के सीईओ के साथ एक प्यारा और फेयर डील हुई थी। 300 बिलियन की चोरी करना क्या हलवा है। बीएनपी बैंक वालो को मैंने लालच दिया था कि 100 बिलियन हम तुझे 5 साल के लिए इस्तमाल करने देंगे। बदले में चोरी कि अफवाह उड़ाओ और फ्रेंच पुलिस को मैनेज करो, रही बात चोर की, तो 25 दिसंबर तक बहुत से लोग अपनी गिरफ्तारी और चोरी कबूल करने के लिए पगलाए होंगे। वहीं कबूल करवाना, उसके पास के हथियार जब्त करना और नाम कमाना। ऑन पेपर चोरी हुई, ऑन पेपर पैसे भी वापस आ गए। बीच ने लटकने वाले लंबा लटक गए।


कलिका:- मास्टर स्ट्रोक, नीलू ने सच ही कहा था, वो दुश्मन को अपने से 1000 गुना ज्यादा ताकतवर समझ कर चलता है। कैलकुलेशन की चूक अब समझ में आ रही है। तुम हम जैसों से 1000 गुना ज्यादा क्षमता वाले हो। और इस लेवल पर होने के बाद तुम प्लान करते हो की दुश्मन तुमसे 1000 गुना ज्यादा आगे है। कहां से तुम्हारी प्लांनिंग के आगे हमारी प्लांनिंग टिकती।


अपस्यु:- ठीक है अब सारी बात क्लियर हो गई है तो मै जाऊं।


कलिका:- रुको एक मिनट..


अपस्यु:- अब क्या है..


कलिका:- थोड़ी देर बैठकर मेरे साथ बातें करो ना.. प्लीज।


सौरव को लगा कि शायद इनको अकेला छोड़ना ही बेहतर होगा इसलिए अपस्यु को इशारे में बैठने के लिए बोलकर वो वहां से चला गया। अपस्यु कुछ देर ख़ामोश बस बैठा रहा…… "बैठ गया.. मुझे भी एक बात समझ में नहीं आ रही। उस दिन एंगेजमेंट में तुमने मुझे लिटल ब्रदर क्यों कहा था?"


कलिका:- बस ऐसे ही मन किया।


अपस्यु:- यकीन नहीं हुआ, फिर से पूछता हूं, उस दिन लिटल ब्रदर क्यों कही थी।


कलिका:- "बहुत छोटी थी मै जब तुम पैदा हुए थे। पहली बार मैंने तुम्हे गुरु निशी के आश्रम में देखी थी। मै भी रहती थी वहां लेकिन तुम्हारे आने के 1 महीने बाद मै चली गई थी। तुम्हे जब भी देखती तो बस मन करता बाहों में भरकर चेहरे को चूमती रहूं। इकलौती इंसानी भावना जो मेरे जहन में बसी हुई है आज तक। उसके अलावा कुछ नहीं।"

"बाकियों के लिए जों भी हो, पर दिल से मैंने कभी नहीं चाहा की तुम्हे कुछ हो। उस दिन एंगामनेट में जब तुम्हे देखी, तो बचपन की वहीं भावना जाग गई। ऐसा लगा मेरा क्यूटी सा छोटकी ब्रदर मेरे सामने है। यही कारन था कि खुद को रोक नहीं पाई।"

"फिर तस्वीरों ने उस दिन का हादसा देखी, जब तुम मां को बेनकाब कर रहे थे। लगा कि यार इसकी जगह कोई भी होता तो अबतक सबको मार चुका होता, इतने धैर्य के साथ कौन आगे बढ़ता है। फिर ख्याल आया, आज तक ये लड़का इतने बड़े गेम टिका ही केवल अपने धैर्य की वजह से है, वरना जिनके पीछे ये पड़ा था उन सब के खाते में कई मर्डर दर्ज है, जिनके बच्चे बदला लेने के ख्याल से तो आए और अपना मर्डर करवाकर लिस्ट केवल लंबी कर गए। खैर छोड़ो बिते वक़्त की बातें।"


अपस्यु:- हां छोड़ना ही बेहतर है।


कुछ देर तक दोनो ख़ामोश रहे। बस कुछ सोचते, फिर कलिका इस खामोशी को तोड़ती… "तुम्हारी पसंद काफी अच्छी है, तुम्हारी प्रेसनलिटी और कैरेक्टर से मैच करती, ऐमी। ब्यूटीफुल, क्यूट, हॉट, सेक्सी और मै उसे खिताब देना चाहूंगी मोस्ट डेंजरस गर्ल की। तुम दोनो साथ हो तो तुम्हे हरा पाना लगभग नामुमकिन। उसे साथ नहीं लाए।


अपस्यु:- वो पेरिस में ही है, लेकिन अपने दोस्तों के साथ। जहां तुम फसी थी, तुम्हे ढूंढते हुए श्रेया भी वहां फंस गई थी। उसे वहां से निकालकर यहां आ रहा हूं।


कलिका, अपस्यु को बड़े ही ध्यान से देखती… तुम चन्द्रभान रघुवंशी के बेटे बिल्कुल नहीं हो। ना ही उसके जैसा तुम्हारा दिमाग है। तुम केवल अपनी मां के बेटे हो, जो अच्छे लोगो के बीच पाला है। हां लेकिन अच्छे और दुनिया के खतरनाक लोग। चन्द्रभान रघुवंशी के तो बच्चे हम सब है।


दोनो गहरी श्वांस लेते कुछ पल के लिए फिर ख़ामोश हो गए। अपस्यु कलिका के ओर देखते उसका हाथ थाम लिया… "आगे क्या करोगी।"


कलिका:- 1000 करोड़ है बचे मेरे पास, वापस जाकर अपनी इमेज बनाऊंगी।


अपस्यु:- और पैसे चाहिए हो तो मुझसे ले लेना।


कलिका:- हाहाहाहा… शायद तुम्हारे लिए अच्छी दिख रही हूं अपस्यु, लेकिन मुझमें अच्छाई ढूंढने की कोशिश मत करो।


अपस्यु:- वादा कर दो बस किसी का बुरा नहीं करोगी, मै तुम्हे अच्छाई करने कह भी नहीं रहा।


कलिका:- मेरा इकलौता रिश्तेदार तुम और एक जिससे अब तक मिली नहीं वो है आरव, जब तक तुम दोनो मुझसे मिलते रहोगे एहसास रहेगा कि मेरा भी एक परिवार है और मेरे ये दोनो भाई मुझसे रिश्ता तोड़ लेंगे, जब मै किसी के साथ बुरा करूंगी, बस इस ख्याल से किसी का बुरा नहीं करूंगी।


अपस्यु:- और सौरव..


कलिका:- मेरे भाई हम दोनों को पता है कि पॉलिटीशियन और बिना किसी का बुरा किए ऊपर आए हो। उन्हें कोई आपत्ती नहीं होगी यदि मै किसी के साथ बुरा करती हूं तो। हां लेकिन तुम्हे या आरव को देखती रहूंगी तो किसी के साथ बुरा करने की इक्छा नहीं होगी।


अपस्यु:- ठीक है अब मै चलता हूं। सौरव अच्छा लड़का है, उसका थोड़ा ख्याल रखना।


कलिका:- यार इतने अच्छे लोगो के बीच रहने की आदत नहीं। फिर भी जिसकी वजह से जान बची है उसे मै अपनी जान बनाकर रखूंगी।


अपस्यु:- ठीक है अब तुम दोनों यहां से इंडिया वापस चली जाओ। बिजनेस सेटअप के लिए पैसे चाहिए तो बता देना, है मेरे पास।


कलिका अपस्यु के चेहरे पर अपना हाथ रखती उसके चेहरे को गौर से देखती हुई… "अपना ख्याल रखना और वक़्त मिले तो कॉल करते रहना। मेरे पास प्रयाप्त पैसा है। यें पैसा नहीं भी होता तो भी मै ज़ीरो से शुरू कर लेती। तुझे साल भर बाद पैसे चाहिए हो तो बेझिझक मांग लेना। वादा है कोई ब्लैक की कमाई नहीं, सब व्हाइट पैसा होगा।


अपस्यु:- ठीक है अब मैं चलता हूं दीदी तुम भी अपना ख्याल रखना।


कलिका दीदी सुनकर लगभग रो दी बस आशु बाहर नहीं आया। उसने हक से अपस्यु को अपने बाहों में की और उसका चेहरे चूमती हुई कहने लगी… "मेरा क्यूटी सा छोटकी ब्रदर।"..


जाते वक़्त दोनो के चेहरे पर सुकून भारी स्माइल थी। अपस्यु वहां से बाहर निकाला सौरव उसे जाते हुए रिसेप्शन पर मिल गया। अपस्यु उसे अलविदा कहते हुए वहां से चला…


जून 2015…


दक्षिण प्रशांत महासागर एक छोटा सा टापू। बिल्कुल शांत और चारो ओर हरियाली। नीले सागर की उजली रेत उस जगह को मनमोहक बाना रही थी। टापू के एक किनारे छोटा सा बोट था और टापू के पूर्वी खाली भाग में एक छोटा सा 4 सीटर प्लेन। हरे नारियल के पेड़ के बीच एक प्यारा सा कॉटेज बाना हुआ था और कॉटेज के 100 मीटर आगे बीच साइड डबल बेड लगा हुआ था, जिसके चारो ओर पतले उजले पर्दे और ऊपर उसी पर्दे की छत बनी हुई थी।


उसी के कुछ दूर आगे दो लकड़ी के बेड सन बाथ लेने के लिए लगे हुए थे, जिसपर लैदर के गद्दे लगे थे। शानदार हवा चल रही थी। अपस्यु लकड़ी की बेड पर लेटे, पीछे से सर पर टेका लगाए, नारियल पानी पीते हुए खिली धूप का मज़ा ले रहा था।


तकरीबन 50 मीटर आगे बीच थी। उस बीच से ऐमी अपने बाल को झटकती हुई समुद्र से नहाकर चली आ रही थी। लाल डोरी वाली वो ब्रा पैंटी पहने, पुरा बदन चमकता हुआ। अपस्यु अपने आंखो के आगे ठंडे नजरे ले रहा था।


ऐमी धीरे-धीरे आगे बढ़ती शॉवर के ओर पहुंची और पुरा बदन साफ करने के बाद आकर लड़की की बेड पर उल्टी लेट गई। अपस्यु ऊपर से लेकर नीचे तक उसके बदन का नजारा लेने लगा।… "बेबी सन क्रीम लगा दो जारा।" ..


अपस्यु यह सुनकर मुकुराय। ब्रा के नॉट को खोलकर उसने अपने दोनो हाथ पर सन क्रीम मला और हाथ आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर से नीचे तक लाया। हाथ जब कमर तक पहुंची, तब अपस्यु पैंटी की नॉट को दोनो ओर से खोलकर उस ऊपर से निकालकर साइड कर दिया और फिर पूरे खुले बैंक के कर्व पर आहिस्ते से हाथ फेरते हुए सन क्रीम लेशन लगाने लगा।


ऐमी सीधी घूम गई और अपस्यु को देखती हुई… "4 महीने से सुबह साम यहां सेक्स किए जा रहे हो, बोर नहीं हुए क्या।"..


अपस्यु, मुसकुराते हुए…. "क्यों तुम्हे अब मज़ा नहीं आ रहा है क्या?"


ऐमी, गहरी श्वांस लेती… "सोचती हूं अब मज़ा धीरे धीरे कम हो जाएगा, पर अब तक तो नहीं हुआ, लेकिन.."..


अपस्यु, ऐमी को सवालिया नजरो से देखते उसके कमर के नजदीक बैठ गया। ऐमी के होंठ पर अपना होंठ रखते… "लेकिन क्या स्वीटी।"..


ऐमी:- कुछ नहीं छोड़ो।


अपस्यु:- हे, क्या हुआ.. घर की याद आ रही..


ऐमी:- वीडियो कॉल हो जाती है तो उतना नहीं अखरता, वो बात नहीं है।


अपस्यु:- फिर बात क्या है?


ऐमी:- यहां अब बोर हो गई हूं। चलो चलते है यहां से।


अपस्यु:- मै समझता हूं हमे कहां जाना है। लेकिन उसके लिए अभी हम तैयार नहीं है। जाएंगे तो जरूर, लेकिन कुछ तैयारी पुख्ता करने के बाद। हम जिसके पीछे है, वो भूत है। दि डेविल वर्सेज घोस्ट"


"एक बार फिर वही भंवर होगा लेकिन इस बार गेम अलग है। वो हमसे कई गुना ज्यादा तेज है। वो पैसे और जिस्म के भूखे नही, बस ताकत और तादात बढ़ाने में विश्वास रखते है। अब तक हर कॉन्टिनेंट में उसने अपनी छाप छोड़ी है, सबको सिर्फ़ एक नाम पता है रिजिलिएंट, लेकिन अब तक जितनो ने उसका सामना किया, उसमे से केवल एक ही बच पाया है, और तुम जानती हो वो कौन है। इसलिए गेम शुरू करने से पहले, उसके बारे में जानना जरूरी है कि हम किसके सामने खड़े है। फिर शुरू करेंगे भंवर.. दि गेम ऑफ शैडो"
आपकी यह रचना बहुत ही शानदार लाजवाब दिलचस्प रोमांटिक एक्शन से भरपूर थीं नैन भाई
कहानी खत्म हो गई लेकिन फिर भी सस्पेंस खुला नहीं
ये रिजिलिएंट कोन
इनसे टकरा कर कोन अकेला बचा था
ये परछाई का क्या मतलब हैं
ये पैसों और जिस्म के भुखे नहीं इस बात का क्या मतलब हैं नैन भाई
ये अपनी ताकत और संख्या कैसे बढ़ाते हैं नैन भाई

साची का क्या हूआ
ध्रूव का क्या हूआ

बहुत कुछ जो अधुरा लग रहा हैं इस मनमोहक कहानी में नैन भाई
 

Sanju@

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"हेल्लो.. साची.. हेल्लो" और कॉल डिस्कनेक्ट हो गया।………

रात में तकरीबन 12.30 बजे, अपस्यु हॉस्पिटल के मुख्य द्वार पर खड़ा इंतजार ही कर रहा था…. स्कूटी सड़क के किनारे लगी और साची साइड स्टैंड पर उसे खड़ी कर अपस्यु की ओर चली अा रही थी…. "हाय !!!!!"

चेहरे की रौनक और उस चेहरे पर ये किया मेकअप कातिलाना था, और ऊपर से ये हल्के गुलाबी रंग के होंठ.. उफ्फ !!… कानो की बड़ी-बड़ी बालियां, जब-जब गालों से टकराती ऐसा लगता जैसे कोई होंठ प्यार से इन गालों को स्पर्श कर रहा हो। गहरे नीला रंग का लहंगा जिसपर सुनहरे रंग की जड़ी का काम किया गया था, कमर पर ऐसे बंधी थी कि नजरें कमर के उस हिस्से पर जम जाए। हाथ की उंगलियां फरफरा उठे मात्र एक स्पर्श के लिए।

ऊपर बंधी वो तंग चोली जो कमर से लेकर ऊपर तक के अाकर को ऐसे निखार रहा हो मानो एक कोई गृतवाकर्षण है जो अपनी ओर खींच रहा हो। उसपर से पीछे का वो लगभग बैकलेस नजारा जो कमर कि गहराई से शुरू होकर ऊपर की ओर आती जो बीच में मात्र चोली कि चौड़ी पट्टी से ढकी थी, मन को विचलित कर रही थी। ऊपर बंधी डोरियां जब कंधो के बीच से पीठ पर टकराती, दिल में जलन पैदा कर जाती। काश मैं ही डोरी बन जाता।

"तुम्हारे लिए ही इतनी मेहनत की है। कहो तो मैं बैठ जाती हूं, तुम आराम से निहारते रहना।"… चेहरे पर खुशी और आखों में शरारत, साची अपनी ही अदा से अपस्यु को चिढाती हुई कहने लगी।

"इतनी रात में इतना बन संवर निकली हो, ऊपर से स्कूटी लेे अाई, किसी ने रोका नहीं।" अपस्यु अपने बेईमान नजरों को चुराते हुए बोला।

"तुम उसकी चिंता छोड़ो, चालो वॉक करते-करते बातें करते हैं।" चेहरे पर एक अलग ही खुशी और होठों पर अलग ही मुस्कान..

"पता नहीं तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है लेकिन इस बदले रूप को देखकर मैं बहुत ही संशय (कॉफ्यूजन) में पर गया हूं।"… अपस्यु कदम से कदम मिलाते हुए अपनी बात कही।

"देखो… कैसी लग रही हूं मै".. साची 2 कदम आगे जाकर सामने खड़ी हो गई और दोनों हाथ फैलाकर खुद को दिखाने लगी।

"आज पक्का तुमने कोई नशा किया है जो ऐसी हरकतें कर रही हो।"… अपस्यु ने हंसते हुए कहा…

"खुल कर जीना और बिंदास होकर अपनी बात कहना भी तो एक नशा ही है"
….. शरारत भरी मुस्कान के साथ साची ने जवाब दिया।

अपस्यु:- वैसे तुम्हे कुछ जवाब चाहिए था ना।

"वो फोन पर चाहिए था, लेकिन तुम्हे देखने के बाद मेरा अब मूड बदल गया है।"… साची अपनी खुशी का इजहार करती हुई वहीं सड़क पर अपनी बाहें फैला कर गोल-गोल घुमती हुई जवाब दी।

अपस्यु:- बात क्या है साची ..

"बात जो तुम समझकर भी समझना नहीं चाहते अपस्यु".. बिल्कुल सामने खड़े हो इंच भर फासले की दूरी से अपनी बात कहती साची।

अपस्यु उसके बांह को पकड़ कर उसे झकझोरते हुए…. "साची तुम्हे हुआ क्या है"

"मुझे किस करो, फिर मै बताऊंगी"… साची, अपस्यु के आखों में झांकती हुई कहने लगी।

"तुम्हारा आज पक्का दिमाग खराब हो गया है"… साची को किनारे कर, अपस्यु दो कदम आगे बढ़ते हुए कहने लगा।

"ए… ए… रूको रुको.. जो भी बातें करनी है मेरे सामने खड़े होकर मेरी आखों में आखें डाल कर कहो।" साची झटककर अपस्यु के आगे बढ़ती हुई, उसका रास्ता रोककर कहने लगी।

"मेरी आखों में आई फ्लू हो गया है। आखों में आखें डाल कर मैं बात नहीं कर सकता।"… अपस्यु फिर आगे बढ़ते हुए जवाब दिया।

"ये कैसे आज मुर्गी कि तरह, नहीं सॉरी, मुर्गे की तरह "पक-पक" करते इधर से उधर फुदक रहे हो। एक जगह खड़े होकर बात करों ना।" .. साची फिर उसका रास्ता रोकते कहने लगी।

"तुम्हारा भेजा आज सटक गया है साची"… अपस्यु गंभीर होते हुए कहा।

"ओह हो !! बेबी थोड़ा सीरियस दिख रहे है, क्या बात हो गई जानू"… साची ने उसके गालों पर उंगली फिराती हुई कहने लगी।

" हाय कितनी प्यारी और दिलकश लग रही है, जी करता है अभी बाहों में भर लूं"… अपस्यु साची के अदा पर फिदा होते हुए सोचने लगा…

"मेरी आखों में देख कर कहो जो भी अभी सोच रहे हो"… साची सभी फासले मिटाती अपस्यु के बिल्कुल करीब अा चुकी थी।

इतने करीब की श्वास चेहरे से टकराने लगे थे। होंठ बिल्कुल रत्ती भर फासले से दूर थे। नज़रे इतनी करीब थी कि अब एक दूसरे के आखों में झांकने के सिवाय कहीं और नहीं देखा जा सकता था। किनारे से दोनों की उंगलियां एक दूसरे को स्पर्श कर रही थी। साची के वक्ष, अपस्यु के सीने पर ऐसे स्पर्श होने लगी कि दोनों के सीने में एक चुभन सी पैदा कर रही थी, जो उन्हें श्वास लेने से रोकने लगे। अपने श्वास की कमी को पूरा करने के लिए दोनों अंदर तक पूरी श्वास खींच रहे थे। नजरें अब बोझिल सी होने लगी थी और वो धीरे-धीरे बंद होती जा रही थी। कमर का वो हिस्सा जहां अपस्यु की उंगलियां स्पर्श करने के लिए व्याकुल थी अब दोनों हाथों से थामे था। होंठ जैसे सुख चुके थे और वो करीब आते हुए एक दूसरे के होठों को सौम्या स्पर्श दे रहे थे…

"तेरे बिना तेरे बिना, दिल नइयो लगदा, मेरा दिल नइयो लगदा"

उफ्फ !… और साची अपने सीने पर हाथ रखकर, चौंकने के कारण अचानक से तेज हुई धड़कन को हंसती हुई काबू में करने लगी। अपस्यु भी मुस्कुराते हुए अपने सिर पर एक हाथ मारा और अपनी श्वास सामान्य करने लगा।

साची अपना फोन उठाते…. "हां मम्मी, कहिए"
अनुपमा:- शादी से सब लौट आए बेटा तू कहां रह गई।
साची:- मां पनौती ही पनौती लगी थी। वहां तबीयत बिगड़ी और रास्ते में गाड़ी।
अनुपमा:- अरे ! कहां है बेटा, हम अा रहे हैं।
साची:- चिंता नहीं कीजिए मम्मी, अपस्यु है साथ मेरे।
अनुपमा:- अपस्यु ? वो कहां मिल गया तुझे…

साची:- एक तो मैं अकेली लड़की रात के 12.30 बजे वीराने में फस गई थी, उसकी आपको चिंता नहीं, बस अपस्यु के नाम से चौंक रही है। उसकी बहन कुंजल हॉस्पिटल में है और मेरी स्कूटी उसी हॉस्पिटल के थोड़े पीछे खराब हो गई। जब मैं स्कूटी खींच कर ला रही थी तभी अपस्यु मिल गया। और कुछ जानना है, या नहीं यदि शक दूर करना है तो अा जाओ यहीं।

अनुपमा:- कितनी झल्ली है तू साची। उसके सामने ही सबकुछ बोल दी पागल। सुनेगा तो क्या सोचेगा।
साची:- सॉरी मम्मी, ये तो सोची ही नहीं।
अनुपमा:- पागल, दे उसे फोन…
साची अपस्यु के ओर फोन बढ़ती हुई कहने लगी…. "लो मम्मी तुमसे बात करेंगी"
अपस्यु :- जी आंटी नमस्ते।
अनुपमा:- हां नमस्ते बेटा। माफ़ करना बेटा उसमे थोड़ी समझदारी कि कमी है। मैंने उससे बस चिंता में पूछी और उसने ना जाने क्या-क्या कह दिया।
अपस्यु :- कोई बात नहीं है आंटी। आप को इतना सोचने कि कोई जरूरत नहीं।
अनुपमा:- थैंक्स बेटा। साची कह रही थी तुम्हारी बहन हॉस्पिटल में एडमिट है। कोई चिंता का विषय तो नहीं।
अपस्यु :- नहीं आंटी कोई चिंता की बात नहीं है। वो आज कल की लड़कियों में फ़ैशन सा नहीं अा गया है जीरो फिगर वाला बस उसी का चक्कर है सब।

अनुपमा:- बताओ ! मैं सोचती थी मेरे घर का ही ये हाल है यहां तो सब पगलाई है। पता नहीं लकड़ी वाला फिगर पाकर, कौन सा तीर मार लेंगी। मैं इतनी मोटी हो गई हूं, लेकिन आज भी मेरे हसबैंड की शायरी इसी फिगर को देखकर निकलती है। ये लोग भी ना केवल दिखावे में जी रही हैं। ओह ! सॉरी बेटा मै भी ना तुम्हे बस सुनाए ही जा रही हूं।

अपस्यु :- कोई बात नहीं आंटी, आप को सुनने के बाद लगता है किसी दिन पूरा सुन लूं।

अनुपमा:- बहुत प्यारी बातें करते हो बेटा। अच्छी परवरिश हुई हैं तुम्हारी। अच्छा सुनो बेटा रात बहुत हो गई है क्या तुम साची को घर तक छोड़ दोगे।
अपस्यु :- जी बिल्कुल आंटी। बस 5 मिनट का तो रास्ता है।

कॉल डिस्कनेक्ट हुआ और अपस्यु ने साची को उसका फोन देते हुए कहा… "तो मैडम शादी अटेंड करने गई थी।

साची, अपस्यु को ध्यान से देखती हुई…. "आज की बात अधूरी रह गई, यहां से फुर्सत हो जाओ फिर हम इस अधूरी बात को पूरा करेंगे। और हां सही कहा था तुमने जो मज़ा आमने-सामने की बातों का है वो फोन कॉल पर कभी नहीं हो सकती। अब चले सर"

साची, अपस्यु के साथ कार में बैठ गई। दोनों के बीच पूरे रास्ते खामोशी ही रही लेकिन बार-बार एक दूसरे को देखना और देख कर प्यार से मुस्कुरा देना अपनी अलग ही छाप छोड़ रही थी, जिसमें शायद शब्दों का कोई काम ही नही। अनुपमा पहले से ही बाहर खड़ी थी, उसने अपस्यु को अपना आभार व्यक्त की और दोनों मां-बेटी अंदर चले गए।

कुंजल को वहां 2 दिन और रुकना पड़ गया। डिस्चार्ज से पहले डॉक्टर ने खुद मुलाकात कि अपस्यु से और उन्होंने समझते हुए कहा…. "आने वाला एक महीना बहुत ही भारी होगा कुंजल के लिए। वो खुद तो कोशिश कर ही रही है लेकिन ऐसे केस में फैमिली कि बहुत इंपॉर्टेंस होती है इसलिए इसका अच्छे से ख्याल रखना। दवाई टाइम से देते रहना और केस अगर ना संभले तो बेहतर होगा रेहबिलेशन सेंटर भेज देना।"

अपस्यु ने डॉक्टर को धन्यवाद कहा और हॉस्पिटल से निकलने से पहले अराव को सूचित कर दिया। अपस्यु और कुंजल कुछ ही देर में घर के दरवाजे पर थे। कुंजल ने जैसे ही हॉल में अपना कदम रखा .. बूम-बूम धमाके की आवाज हुई .. चारो ओर लाल हरी चमकीली बारिश होने लगी.. सामने लगी बड़ी सी स्क्रीन पर कुंजल की प्यारी तस्वीर आने लगी। उसपर बड़े और बोल्ड अक्षोरों में लिखा आने लगा…. "Welcome Back, The Real Hero Of This House"

अगले कुछ दिनों तक सबने जैसी छुट्टी ले रखी हो, कोई घर से बाहर ही नहीं निकला। सुबह के 4 बजे से दिन शुरू होता, वर्कआउट फिर से अपनी रूटीन में शुरू हो चुकी थी। उसके बाद सरा दिन फैमिली के साथ मस्ती मज़ाक और ढेर सारी बातें। इस बीच अराव और लावणी की थोड़ी बहुत बातें होती रही, उसने भी खुशी के साथ ये कह दी थी "अभी पूरा समय उधर ही देना"। लेकिन हॉस्पिटल के उस रात के बाद साची ने अबतक अपस्यु से एक बार भी संपर्क नहीं किया था।

रविवार की सुबह थी, वर्कआउट के बाद तीनों भाई बहन हॉल में ही हल्ला-गुल्ला मचा रहे थे। आपस में इतने मशगूल थे कि किसी को घर की घंटी भी नहीं सुनाई दी। नंदनी ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने कुछ मेहमान थे। कुछ जाने पहचाने चेहरे तो कुछ अनजान चेहरे… "जी हम अंदर अा सकते हैं क्या?"
साची कितनी प्यारी और मासूम लगती है, जैसे आधी रात को चाँद खूबसूरत दिखता है, मुझे उसका अंदाज, चेहरा, बात करने का तरीका, नखरे और सब कुछ पसंद है। साची के चेहरे की खुशी देखकर खुश हो गया, न जाने क्यों मेरे चेहरे की मुस्कान अपने आप चली जाती है।वे एक दूसरे के करीब हैं और मेरी सांसें भारी हो रही थीं। प्यार में बोला गया झूठ भी प्यारा होता है।
दोनो एक दूसरे की आंखों में देखकर खुद को व्यक्त करते हैं, वाह! आपने अपनी कहानी सुनाने का तरीका बेहतरीन है। मैं प्रार्थना करता हूं कि कुंजाल जल्द से जल्द ठीक हो जाएं और यह अनजान मेहमान कौन है
 

Sanju@

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"मैं भी कुछ नहीं भूल पा रहा रे। इस देश का टॉप वकील अपने बेटे और पत्नी को इंसाफ नहीं दिला सका.. कुछ नहीं भुला मै। नहीं भुला की कैसे उस आश्रम को आग लगा दिया गया… 120 बच्चे जिंदा जला दिए गए… मेरी पत्नी जलकर मर गई… तुम्हारी मां जलकर मर गई… नन्हा सा था तो मेरा बेटा.. कितनी प्यारी मुस्कान थी… तोतली बोली उसके कानों में अब भी गूंजती है मेरे … सुन.. तू सुन ना।"… सिन्हा जी भावनाओ में बहते चले गए…

अपस्यु:- आप यहां आराम से बैठ जाओ सर। एक पेग मुझे भी दो। यार खुद तो इमोशनल होते ही हो मुझे भी इमोशनल कर देते हो। आज मै भी कुछ नए और कुछ पुराने गम में पीना चाहता हूं।

सिन्हा:- तू मेरा सच्चा साथी है.. लेे पी…


अपस्यु, एक पेग पूरा पीते हुए… "कुछ ना हुआ मुझे और पिलाओ"… जबतक आरव लौट कर आया तब तक अपस्यु भी गले तक पी चुका था.. दोनों बहुत ही मशरूफ थे बात करने में।

सिन्हा:- अच्छा सुन सहायता करने का वक़्त अा गया है… मैंने जो मदद के बदले मदद कि बात की थी ना..

अपस्यु:- हां कहिए ना सर…

सिन्हा:- तेरे चिल्ड्रंस केयर गया था कुछ दिन पहले। मुझे ना वहां से एक को गोद लेना है… सुन सुन सुन .. प्लीज तू मुझे मना मत करना .. लेे तेरे पाऊं परता हूं…

अपस्यु:- बस, बस .. आप टल्ली हो गए हो, कल बात करते हैं।

सिन्हा:- ना, मै नहीं टल्ली हुआ हूं… तू कल से मिलेगा नहीं.. प्लीज देख हां कर दे।

अपस्यु:- मुझे सोचने दो इस बारे में..

सिन्हा:- बेवड़ा कहीं का, पूरी बॉटल गटक गया फिर भी सोचेगा मेरी बात पर।

"यूं समझिए अपना एक हिस्सा देने का वादा कर रहा हूं अभी… प्लीज मेरा भरोसा मत तोड़ना। .. कल अाकर वैभव को के जाइएगा।"…

सिन्हा:- आए शातिर … मतलब तुझे सब पता है हां..

अपस्यु:- वो बिना बाप के बच्चे नहीं है सर … जिम्मेदारी उठाई है तो ख्याल रखना पड़ता है वरना अनाथालय के नाम पर कई फोटो खिंचवाने वाले और बच्चे गोद लेकर पब्लिसिटी बटोरने वाले मिल जाते है।

सिन्हा जी खुशी से अपस्यु के गाल चूम रहे थे, इतने में कॉन्फ्रेंस हॉल में ऐमी भी पहुंच गई… "आज फिर दोनों टल्ली है।"

आरव:- छोड़ दो दोनों को.. कुछ देर आपस में गम बाटेंगे। कभी-कभी तो दोनों की भावनाएं जागती है।

ऐमी:- हां तो मैंने कब माना किया है। अब ये दोनों पूरा सहर घूमेंगे… एक मैटर फसाएगा तो दूसरा सलटाएगा।

आरव:- हाहाहा… पार्टी ड्रेस कहीं निकल रही थी क्या…

ऐमी:- हां यार दोस्तों के साथ पब जा रही थी।

आरव:- दोस्त या बॉयफ्रेंड..

ऐमी:- आरव एक बात बता, 15 मिनट तू गाली नहीं खाता तो तेरे पीछे कीड़े काटने लगते है क्या?

आरव:- बदतमीज लड़की..

ऐमी:- बेहूदा लड़का..

आरव:- मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है।

ऐमी:- बोलिए सर..

आरव:- ऐसे रिएक्ट क्यों कर रही हो, सुन तो लो पहले…

ऐमी:- सुनना क्या है तू फिर बकवास करेगा…

आरव:- मै क्या बोल रहा था तू पब जा ही रही है.. इन्हे भी साथ लेती चली जा..

ऐमी, प्रतिक्रिया में चिल्लाती हुई कहने लगी…. "नो वे"

"ऐ दोनों चिल्ला क्यों रहे हो। पूरा मैटर बताओ।"…. सिन्हा जी दोनों को अपने पास बुलाते, जवाब तलब करने लगे….

ऐमी धीरे-धीरे आगे भी बढ़ रही थी और आरव से विनती भी करते जा रही थी…. "प्लीज नो.. मत बताना आरव"..

ऐमी:- कुछ नहीं डैड, मै तो बस एेवे ही…

अपस्यु:- बापू.. लगता है कहीं जा रही थी। तैयार होकर अाई है…

(आरव, ऐमी के कानों के पास धीरे से बोला… लेे बज गई तेरी बैंड)

सिन्हा जी:- मेरा राजा बेटा कहीं पार्टी करने जा रही है.. चल हम भी चलते है। थोड़ी देर खुली हवा में हमदोनों भी घूमेंगे…

अपस्यु:- बापू इसके शक्ल पर लिखा है ये हम दोनों को नहीं के जाने वाली।

सिन्हा जी और अपस्यु दोनों साथ में जोड़-जोड़ से हसने लगे और अपस्यु बोला… "ठीक है यूं गो.. हम दोनों यहां है… क्यों बापू"…. "हां रे अपस्यु सही कहा"… फिर से दोनों हसने लगे…

ऐमी गुस्से में दोनों को देखती हुई…. "आरव तूने मुझे कॉल लगा कर यहां क्यों बुलाया।"

आरव, अपस्यु के ओर इशारा करते हुए… "इसने मुझे कहा था कॉल लगने"..

ऐमी:- अब सर को तो मै कुछ कह भी नहीं सकती … वरना अभी कहने लगेंगे.. तुम्हे अपने पापा को घर ले जाने के लिए कॉल लगवाया था… क्यों सर यहीं बात है ना…

अपस्यु:- बापू ये बौत समझदार हो गई है, मै कह रहा हूं ये आप की तरह ही वकील बनेगी…

सिन्हा जी:- ना रे … मेरा बेटा मैजिशियन बनेगी …

ऐमी:- हद है.. डैड मैजिशियन नहीं म्यूजिशियन।

सिन्हा जी:- जाओ घूमो तुम लोग .. हम कहीं नहीं जा रहे .. यहीं है।

फिर से दोनों के जोड़-जोड़ से हंसने की आवाज़। … "भाई प्लीज़ मुझे इस सिचुएशन से निकाल दे, प्लीज।"… ऐमी आरव से विनती करती…

आरव:- कोई फायदा नहीं। या तो प्लान कैंसल करके घर चली जाओ या फिर जहां जा रही थी वहां चली जाओ। अब थोड़े ना कुछ हो सकता है।

ऐमी:- मैं ही बेवकूफ थी जो तुम्हारे बातों में अा गई। मुझे समझ जाना चाहिए था कि अपस्यु भी बैठक लगा ही चुका होगा। मेरी शाम खराब कर दी तुमने आरव।

आरव:- वाह, मतलब पिए ये दोनों बिल मेरे नाम पर फाड़ रही हो…

ऐमी:- हुंह ! तुमने ही भरोसा दिलाया था ना आज अपस्यु नहीं पायेगा.. आओ और अपने पापा को यहां से अभी लेे जाना। इससे ती अच्छा होता ड्राइवर और गार्ड के साथ ही चले आते।

आरव:- अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

एमी:- हां ये भी सही है। चल चलते है।

आरव:- मैं नहीं जाता तेरे साथ। तेरी पार्टी है तू जान।

ऐमी, आरव का हाथ पकड़ कर खींचती हुई बाहर लेे जाते हुए… "मुझे फसा कर मज़े करेगा.. नोट पॉसिबल।"

आरव:- ना ना हाथ छोड़ मेरा, एक तो तेरा खरनाक ग्रुप ऊपर से दो खूंखार लोग और पीछे से पहुंचेंगे … मेरी चटनी हो जाएगी इनके बीच।

ऐमी:- तू ऐसे नहीं सुनेगा… गार्ड इस छछूंदर को उठा कर मेरे गाड़ी में डालो…

ऐमी पहले से अपनी कर स्टार्ट कर चुकी थी… 4 गार्ड ने मिलकर उसे कार में जाकर छोड़ आए और ऐमी वहां से सीधा पब निकल गई।

लगभग 15 मिनट बाद… "सुन छोटे चल जरा हमलोग भी घूम कर आए… हम भी थोड़ा पार्टी करेंगे। वो लोग क्या सोचते है मेरी उम्र हो गई है।"

अपस्यु:- क्या बात कर रहे हो, अभी तो आप पूरे जवान हो। चलो बापू हम भी पार्टी करे। उन्हें भी अपना जलवा दिखा ही देते हैं। वैसे भी यहां की दारू मुझे चढ़ी ना है.. चलो उधर ही चलकर मूड बनाएंगे।

दोनों लड़खड़ाते खड़े हुए… "सुन छोटे कीटी सु गए है दोनों।"… "बापू इतने बड़े वकील हो, फिर भी गलती। हमे देख कर जगह बदल दी होगी ऐमी ने, याद नहीं लास्ट टाइम क्या हुआ था"…

सिन्हा जी:- हां सही कहा, रुक जीपीएस चेक करने दे… सही कहा कार रेडिशन के पास खड़ी है। चल हम भी चलतें हैं।"..

अपस्यु और सिन्हा जी दोनों बाहर निकले उसके पीछे-पीछे सभी गार्ड और ड्राइवर भी बाहर आए।… "तुम लोग घर चले जाओ.. मैं छोटे के साथ जा रहा हूं।"… तभी उनमें से एक गार्ड… "लेकिन सर" बोला। सिन्हा जी उसे माना करते हुए अपस्यु के साथ निकल गए।

कुछ ही देर में पब के पास थे और जैसे ही पब के गेट पर पहुंचे वहां का बाउंसर दोनों को दरवाजे पर ही रोक लिया… "आप लोग अंदर नहीं जा सकते"

सिन्हा जी:- बैनचो मुझे मना कर रहा है।

अपस्यु:- बापू शांत बेचारा रूल फॉलो कर रहा है।

सिन्हा जी:- इनके रूल की मां का भो… शुस शूस शु्स.. नो अब्यूज..

तभी वो बाउंसर आगे आया और सिन्हा जी के कॉलर पकड़ने के लिए हाथ आगे ही बढ़ाया था कि अपस्यु उसके हाथ को पकड़कर… "आराम से खड़े हो जाओ पीछे। बापू के कॉलर को हाथ लगाना मतलब हमारी इज्जत पर हाथ डालना… 10000 की ड्यूटी के लिए लंबा फस जाओगे। जाओ अपने मैनेजर को बुला लाओ।"…

"अबे छोड़ इनके मैनेजर को .. बैनचो मालिक को ही इधर बुलाते है। चल बैठ छोटे यहीं पर"… दोनों वहीं सड़क के पर नीचे बैठ गए और नीचे बैठ कर सिन्हा जी ने पब के मालिक को फोन लगा दिया…

2 मिनट में ही वहां पर पब के मालिक की कार लग चुकी थी। सिन्हा जी के बुलाने पर वो खुद अा गए और वो बाउंसर पास खड़ा सिर झुकाए और हाथ जोड़े खड़ा था।

सिन्हा जी उस बाउंसर को एक थप्पड खींच कर मारते हुए …. "मैं तुझ से बड़ा हूं और बड़ों की इज्जत करना सीख। छोटे इसकी ड्यूटी मुझे पसंद आयी, लड़का मन लगा कर यहां काम कर रहा है… टिप देकर अंदर अा"…

अपस्यु उसे 10000 का टिप देते हुए… "तुमसे बहुत बड़े हैं यार थप्पड का फील मत करना… बापू को तुम पसंद आए। ये लो रखो"… अपस्यु उसे 10000 देकर अंदर चला आया।

अंदर आते ही वो सीधा पहुंचा सिन्हा जी के पास बार काउंटर पर… "और बापू ऑर्डर कर दिया"…. "हां छोटे तेरे लिए वो तेरी पसंदीदा कॉकटेल ऑर्डर कर दिया हूं। सुन छोटे वो साला लड़का कौन है जो ऐमी के साथ नाच रहा है।"…… दोस्त होगा बापू छोड़ो ना।"….… "ना ऐसे नहीं तू जा उसे एक थप्पड मार कर अा।"……. "आप को चढ़ गई है बापू, वो अपने दोस्तों के साथ आया है यार … बेचारे को बेइज्जती फील होगी"…. "तूने उसे थप्पड नहीं मारा मुझे फील हुआ और ये बैनचो गाना कौन सा बज रहा है। जा ये गाना बदलवा कर अा।"

इधर आरव जो ऐमी की फ्रेंड के साथ नाच रहा था… "जे छोड़ा मुझे छोड़ कर यहां नाच रहा है, इसे तो मै अभी बताता हूं।" अपस्यु, आरव की कुछ फोटो चुपके से खींचने लगा, और साथ ही साथ लावणी के मोबाइल पर भी ट्रांसफर करता जा रहा था"…. तभी उसे कुछ ऐसा दिखा जो नहीं दिखना चाहिए था। उसने एक बार सिन्हा जी के ओर देखा… वो सामने बार काउंटर पर ऑर्डर से रहे थे….

"सुनो बापू, तुम्हे थप्पड देखना था ना।"…. "हां छोटे अभी देखनी है मुझे।"…… अभी दिखता हूं।"…... "ये हुई ना बात, अच्छा छोटे एक्शन से पहले जरा वो गाना बाजवा देना।….. "कौन सा गाना बापू"… "अरे वही जो कुछ दिन पहले तक ट्रेंड कर रहा था… तमंचे पे डिस्को"

अपस्यु ने एक बौंसर को पकड़ कर कुछ पैसे दिए और म्यूजिक बदलने के लिए बोल दिया। ऐमी के पास आकर उसका हाथ पकड़ा और उसे किनारे करते हुए, उसके जो सामने लड़का खड़ा था उसके सामने अपस्यु खड़ा हो गया। अपस्यु के हाव भाव देख कर वो समझ चुकी थी अब क्या होने वाला है…

ऐमी:- अपस्यु नहीं प्लीज, इग्नोर करो… वो नशे में है।

अपस्यु उसे आंख दिखाते…. "तुम नशे में तो नहीं थी ना ऐमी। कितनी बार तुम्हे एक ही बात समझता रहूंगा मै।

ऐमी:- अपस्यु प्लीज जाने भी दो।

अपस्यु:- जस्ट कीप क्वाइट ।

वो लड़का अब भी सर को घुमा-घुमा कर मदहोशी में नाच रहा था। अपस्यु अपनी बात कहकर वहीं सामने खड़ा रहा और उस लड़के को देख रहा था… वो लड़का , एक हाथ अपस्यु के कमर में डाला और दूसरा हाथ सीने के बाएं भाग में । अपस्यु फिर एक बार ऐमी को घुरा … जबतक वो लड़का बोलने लगा… "कुछ फील ना हो रहा बेबी।"

अपस्यु का गुस्से में खींच कर मारा गया एक तमाचा और उसके सिर को पकड़कर अपने घुटने पर दे मारा… उसके नाक से खून निकलने लगा। ये नजारा देखकर सिन्हा जी ग्लास टोस्ट करते हुए चिल्लाकर शाबाश कहे….

फिर तो जो ड्रामा वहां का शुरू हुआ, अपस्यु के सामने उसके 3-4 दोस्त आए और सभी को वो मारता चला गया। ग्लास कांच और अन्य सामान टूट रहे थे और सिन्हा जी ग्लास बढ़ा-बढ़ा कर एन्जॉय कर रहे थे। आरव किसी तरह अपस्यु को के जाकर बार काउंटर पर बिठाया। इधर बाउंसर ने जगह को जल्दी से साफ किया और उन मार खाए लड़कों को वहां से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अपस्यु फिर से बार काउंटर पर बैठ कर अपनी पसंदीदा कॉकटेल के पेग पर पेग चढ़ाए जा रहा था। 10 पेग वो चढ़ा चुका था और एक पेग सामने रखी थी….

सुबह-सुबह का वक़्त…. अपस्यु सिर पर अपना हाथ रखे उठ कर बैठा। "ओह बहुत ज्यादा हो गई रात को।"…. "इसे पी लीजिए थोड़ा आराम मिलेगा"… अपस्यु थैंक्स बोलकर ग्लास हाथ में ले लिया। केवल और केवल नींबू निचोड़ा हुआ जूस था वो। एक सिप में ही दिमाग फ्रेश हो गया। डकार आने शुरू हो गए। साथ ने आंख भी थोड़ी खुली… हैरानी से चारो ओर वो देखने लगा और कुछ ही दूर बिस्तर के आगे केवल टॉवेल में साची खड़ी थी और नीचे बिस्तर पर उसके कपड़े फैले पड़े थे…..
Nice uodate
 

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सुबह-सुबह का वक़्त…. अपस्यु सिर पर अपना हाथ रखे उठकर बैठा। "ओह बहुत ज्यादा हो गई रात को।"…. "इसे पी लीजिए थोड़ा आराम मिलेगा"… अपस्यु थैंक्स बोलकर ग्लास हाथ में ले लिया। केवल और केवल नींबू निचोड़ा हुआ जूस था वो। एक सिप में ही दिमाग फ्रेश हो गया। डकार आने शुरू हो गए। साथ में आंख भी थोड़ी खुली… हैरानी से चारो ओर वो देखने लगा और कुछ ही दूर बिस्तर के आगे केवल टॉवेल में साची खड़ी थी और नीचे बिस्तर पर उसके कपड़े फैले पड़े थे…..

अपस्यु, झटके के साथ बिस्तर पर लेटते हुए पूछने लगा…. "रात में कितने बजे आया मै इधर।"

साची बिस्तर से अपने कपड़े उठाकर पहनती हुई… "मुझे क्या पता, मैं तो गहरी नींद में थी, सुबह जब उठी तो पास में तुम सो रहे थे।

अपस्यु:- मुझे पता है तुम झूठ कह रही हो। अब बता भी दो…

साची की प्यारी हंसी वहां गूंजती हुई…. "एक किस दोगे तो बताती हूं।"

अपस्यु:- मैं लेटा हूं अाकर ले लो।

साची:- सर अपस्यु कब से इतना सबमेसिव हो गए।

अपस्यु बिस्तर से उठा और साची का हाथ मड़ोर कर उसे उल्टा घुमाते हुए, उसके कानों में कहने लगा….. "आज और कल की साची में बहुत फर्क दिख रहा है। यह एक अच्छी बात है। लेकिन सवाल अब भी वही है कल रात मै कितने बजे आया?"

साची हंसती हुई…. शर्म नहीं आती मुझे ऐसी हालत में जकड़ रखे हो।

अपस्यु:- मैं हालत पर नहीं हालातों पर ध्यान देता हूं। और जितनी शरारत तुम्हारी आखों में नजर आ रही है, वो सब मेरे भाई की करतूत है। अब बताओ रात को मैं कितने बजे यहां आया और हमदोनों के बीच क्या बात हुई।

साची:- हाथ छोड़ो ना, दुखता है।

अपस्यु, हाथ छोड़ते:- अब बताओ कल हमारे बीच क्या बात हुई।

साची खुलकर और खिल-खिलाकर हंसती, अपने हाथ हिलती हुई कहने लगी…. "जाओ नहीं बताती क्या कर लोगे"…

अपस्यु, कुछ सोच ही रहा था कि तभी साची उसके सामने आती हुई कहने लगी… "खुला बदन इतना ही पसंद अा रहा है तो क्या पूरा ही खोलकर दिखा दूं?"

अपस्यु:- बावली कहीं की, नहाने के बाद इतना समय लगता है क्या कोई कपड़े पहनने में। कॉलेज के लिए तैयार हो ना जल्दी वरना अनुपमा मिश्रा आती ही होगी। तब से खुद ब्रा-पैंटी में मंडरा रही हो और मुझे बेशर्म कह रही।

साची:- अच्छा दिल जल रहा है क्या इन कपड़ो में देखकर।

अपस्यु:- साची थोड़ा सा मज़ाक अच्छा लगता है। लेकिन लगातार एक ही बात पर मज़ाक करती रहोगी तो बातें इरिटेटिंग हो जाएगी।

साची:- अच्छा ठीक है मैं तैयार होती हूं।

अपस्यु, नींबू जूस पीते हुए पूछने लगा…. "रात की सभी बात को तुम सस्पेंस ही रखने वाली हो ना।"

साची:- हां बिल्कुल… कितने स्वीट हो तुम जानेमन।

अपस्यु:- हम्मम !!! अच्छा बस एक रिक्वेस्ट पूरी करोगी।

साची:- हाए । ऐसे रिक्वेस्ट पर तो जान ले लो। …

अपस्यु:- कल रात की बात मैंने कहां से शुरवात की थी वो बस बता दो।

साची:- मुझे याद नहीं।

अपस्यु:- कुछ ही समय पूर्व तो कह रही थी "ऐसे रिक्वेस्ट पर तो जान ले लो।" ….. अभी मुकड़ रही अपनी बातों से।

साची:- जान चाहिए तो ले लो कुछ ना कहूंगी। लेकिन यह नहीं बता सकती, कुछ और पूछो।

अपस्यु:- ठीक है कोई एक बात ही साझा कर दो।

साची:- ज़िन्दगी में थोड़ा टफ भी बनाना पड़ता है।

अपस्यु:- बहुत खूब, अब बताओ यहां से मै जाऊं कैसे।

"अब तक सो रही है क्या… कॉलेज नहीं जाना।"….. "तैयार हो रही हूं मम्मी, अभी अाई बाहर"… दरवाजे पर खड़ी होकर अनुपमा चिल्लाई जिसका जवाब साची ने दिया।

साची, अपस्यु के ओर देखती…. "सुबह का वक़्त और सब के सामने से निकालना… सोचिए अपस्यु जी सोचिए।

अपस्यु, आरव को कॉल लगाते हुए…. "मुझे यहां से अभी बाहर निकाल"

आरव:- तू वहीं अच्छा है… लावणी से मेरा झगड़ा करवाया ना .. अब तू वहीं फसा रह कमिने।

अपस्यु, आरव का कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद बहुत ही सोच में पर गया। कुछ देर सोचने के बाद वो उठकर खिड़की के पास गया और खिड़की को ध्यान से देखने लगा।… "नहीं यहां से निकालना संभव नहीं है जाना… सॉरी साची माफ़ करना"

साची आइने के सामने बैठकर अपनी बाल बना रही थी। उसे बातों मै उलझाकर अपस्यु ने सामने पड़े पीन को चुपचाप उठा लिया और अचानक से पूरा पीन साची के कंधे में घुसा दिया। साची की तेज चीख निकल गई।

उसकी आवाज़ काम करने वाली बाई ने सुनी और फिर सुनते-सुनते पूरे घर ने सुन लिया। अपस्यु वहीं दरवाजे के किनारे खड़ा हो गया। दौड़े-दौड़े सभी घरवाले "क्या हुआ, क्या हुआ" करते साची के कमरे पहुंच गए। सबने दरवाजा खोला और सीधा अंदर।

साची के आखों से आशु बह रहे थे और वो पिरा में अपने हाथ पीछे करके पीन निकालने की कोशिश कर रही थी। सब "क्या हुआ, क्या हुआ' कर रहे थे और सबसे पीछे अपस्यु खड़ा होकर वो भी "क्या हुआ, क्या हुआ" करने लगा।

साची:- पीठ में पीन चुभ गया।

अपस्यु चिंता जाहिर करते हुए, सबको किनारे करते आगे आया और झटके से पीन को बाहर निकलते हुए कहने लगा…. "अरे फौरन इलाज ना हुए तो टेटनस के साथ साथ सेप्टिक भी हो जाएगा। लावणी तुम इसके कॉपी-किताब लेकर कॉलेज चली आना। मैं इसे डॉक्टर से दिखा कर वहीं कॉलेज लेे आऊंगा।

अपस्यु साची का हाथ पकड़कर, उसके पूरे परिवार के बीच से उसे लेकर गया। … और सब देखते रह गए…. "ये कब आया"… लावणी के मुख से अनायास ही निकला, जिसे अनुपमा ने सुन लिया।

अनुपमा अपने मन में विचार करती…. "कब आया, हुलिया तो अजीब ही था। बाल बिखरे, ऐसा की रात में ठीक से सोया भी ना हो…. (धक धक, धक धक)… नहीं मै ही पागल हूं, ऐसा नहीं होगा, वो अपने घर से ही आया होगा। लेकिन ये तो सुबह 4 बजे उठ जाता है फिर इसका ये हुलिया.. कहीं ये रात में चोरी से यहां… नहीं-नहीं मैं भी ये क्या सोच रही हूं। लेकिन तब भी दोनों, जवान लड़की और जवान लड़का है।"

"बड़ी मां क्या हुआ, कहां खोई है।"… लावणी अनुपमा को हिलाती हुई पूछने लगी।

अनुपमा:- कुछ नहीं। तू साची के बुक्स लेे जा।

लावणी, साची का सरा सामान उठाने लगी, तभी बिस्तर पर अपस्यु का वॉलेट उसे परा मिल गया। वो चौंककर एक बार पीछे देखी फिर बड़ी सफाई से उसे किताब के बीच छिपाकर लेे जाने लगी…

"ऐ भूटकि सुन"… लावणी हड़बड़ा कर पीछे मुड़ी… "हां बड़ी मां"

अनुपमा उसके चेहरे के भाव को पढ़ती हुई… "क्या हुआ इतना घबराई क्यों है।"

लावणी:- वो बड़ी मां मै सोच रही थी, यदि दी को सैप्टिक हो गया तो बहुत परेशानी होगी ना।

(इसे कुछ तो पता है, मुझसे कुछ तो छिपा रही है ये)……. "तू इतना घबराई क्यों है, थोड़ी देर पहले तो नहीं घबराई थी".. अनुपमा थोड़े कड़े लहजे में जवाब तलब करती हुई।

लावणी:- बड़ी मां चिंता जब शुरू होगी तभी तो घबराहट आएगी।

अनुपमा:- हम्मम ! अच्छा साची को कॉल लगाकर पूछ किस हॉस्पिटल में गई है?

लावणी, साची से संपर्क करने के बाद…. "बड़ी मां वो लालजी हॉस्पिटल गए हैं।"

अनुपमा:- तू अपना फोन मुझे दे जरा…

लावणी ने जैसे ही अनुपमा को फोन दी, वो झट से अपने पास रखती हुई कहने लगी…. "5 मिनट रुक मै भी तुम्हारे साथ कॉलेज चल रही हूं।"

"इसपर तो आज पूरा काल मंडरा रहा है। भगवान थोड़ी नजर उधर भी डाल देना".. लावणी अपने मन में सोचती हुई चुपचाप वहां से निकल गई।

इधर साची का हाथ पकड़कर जब अपस्यु उसे लेे जा रहा था, वह उसकी हिम्मत और सूझ-बुझ की दीवानी हुई जा रही थी। अपार्टमेंट की पार्किंग में पहुंचकर अपस्यु ने साची को कार में कुछ समय इंतजार करने के लिए कहा और भागकर घर में पहुंचा।

नंदनी, अपस्यु को देखते ही गुस्से मै पूछने लगी… "रात भर कहां थे।"

अपस्यु:- मां लौटकर बताता हूं। अभी मै आप से ही मिलने आया था। अाकर पूरी बात बताता हूं।

अपस्यु, नंदनी से लिपटकर अपनी बात कहकर भागने लगा… नंदनी उसे पीछे से कुछ खा कर निकालने के लिए कहती रही लेकिन वो बाहर खाने का बोलकर निकल गया।

अपस्यु, साची को लेकर सिन्हा जी के बंगलो पहुंचा। सिन्हा जी दरवाजे पर ही कार में मिल गए। वो भी सुबह-सुबह किसी केस के सिलसिले में ऑफिस निकल रहे थे। कुछ औपचारिक बात होने के बाद सिन्हा जी ऑफिस निकल गए और अपस्यु साची को लेकर बंगलो के अंदर घुस गया।

"हम यहां क्यों आए हैं अपस्यु, मुझे लगा हम कहीं घूमने निकलेंगे। या फिर कोई रोमांटिक सफर होगा।" … साची मुस्कुराती हुई अपनी बात कही और अपस्यु को आंख भी मार दी।

अपस्यु:- साची वादा करो अभी, की आज तुम पूरा दिन मेरे साथ रहोगी, जबतक मै तुमसे ये ना कह दूं .. ये है पूरी कहानी।

साची, अपस्यु के गले में हाथ डालते बिल्कुल उस से चिपकती हुई कहने लगी… "मै तो पूरी उम्र तुम्हारे साथ रहूंगी और एक पूरी कहानी सुनने के बाद फिर से कोई नई कहानी बनाएंगे और ये सिलसिला पूरी उम्र चलता रहेगा।"

अपस्यु:- अच्छी बात है। लेकिन आज के लिए जो वादा मांग रहा हूं, उसके लिए तो हां कह कर स्वीकृति दे दो।

साची:- मतलब इतना कहने के बाद भी केवल आज के पीछे पड़े हो, ठीक है बाबा वादा किया। और कुछ ..

अपस्यु:- हां ! बस इतना ही की आगे जो भी होगा, उसपर ओवर रिएक्ट मत करना मैं सारी बातें समझा दूंगा।

साची, अपस्यु की इस आखरी बात पर कुछ देर तक सोचती रही, फिर उस बंगलो को ध्यान से देखने लगी… उसका खिला चेहरा थोड़े चिंता में डूबा नजर आने लगा। और साची अपनी इसी चिंता को जाहिर करती हुई कहने लगी….

"जबसे मुझसे गलतियां हुई है मैंने ये एक काम तो सबसे पहले छोड़ दिया है, वो है ओवर रिएक्ट करना। लेकिन बात क्या है अपस्यु, तुम मुझे यहां क्यों लाए हो? कहीं इनका बंगलो खाली हैं ये सोच कर तो नहीं लाए। सुनो शायद कुछ गलतफहमियां हुई है जिन्हे अभी बात करके दूर करनी होगी।"
"कल रात तुम मेरे पास जब आए, तब नशे कि हालत में मुझ से वो सब कह गए जो तुम्हारे दिल में मेरे लिए था। यहीं एक वजह है कि कल और आज की साची में तुम्हे बहुत फर्क नजर आया होगा। रही बात तुम्हारे पास आना और मेरा खुला व्यवहार करना तो आज के पहले कि कहानी कुछ और ही थी जिसका शायद तुम्हे कोई ज्ञान नहीं, और आज तो मै तुम्हे केवल चिढ़ा रही थी क्योंकि तुम पर मुझे पूरा यकीन जो है।"
"अगर तुम सुबह की बात सोचकर इस खाली बंगलो में लाए हो तो मै क्या कहूं इसपर। बस इतना ही कहना चाहूंगी, मेरे अंदर के संस्कार मुझे कभी इस बात की इजाज़त नहीं देगी। फिर भी तुम यदि इसी में खुश हो तो फिर मै गलत साबित हो जाऊंगी… आगे तुम्हारी मर्जी.. मै साथ हूं।"

"सो नाइस ऑफ यूं… बस अपनी बात याद रखना कोई ओवर रिएक्शन नहीं।".. अपस्यु अपनी बात कहकर इधर-उधर देखने लगा और साची अपस्यु को देखकर समझने कि कोशिश कर रही थी कि ये चाहता क्या है?
Update:-41 (B)



अपस्यु ने घर के नौकर से पता किया ऐमी कहां है? पता चला वो अभी तक सो रही थी। अपस्यु साची को लेकर सीधा उसके कमरे की ओर बढ़ा। साची को कुछ भी समझ में नहीं अा रहा था, अपस्यु करना क्या चाह रहा है। वो कुछ पूछना शुरू करती तो अपस्यु उसे इतना ही कहता बस देखती जाओ।

दोनों साथ-साथ उसके कमरे में पहुंचे, साची को सामने एक लड़की चादर ताने सोई हुई दिखी। ऐमी गहरी नींद में लेटि थी। अपस्यु कमरे में लगे चेयर पर साची को बैठने का इशारा किया। साची उसके इशारे पर बैठ तो गई लेकिन उसके दिमाग में अब काफी हलचल सी मच रही थी, फिर से एक भावना जो उसके अंदर कौंध रही थी लेकिन अपने सभी भावनाओ पर वो काबू रखती बस अपस्यु को ही देख रही थी।

अपस्यु, ऐमी के बिस्तर पर चढ़ गया। उसके कमर के दोनों ओर पाऊं रखकर बैठते हुए, उसके गर्दन पकड़कर जोड़-जोड़ से हिलाने लगा…. "आओओ … इतनी सुबह-सुबह क्यों पहुंचे। प्लीज अभी लैक्चर नहीं"..

अपस्यु उसके होंठ से होंठ लगा कर ऐमी को चूमते हुए… "उसपर बाद में बात करेंगे। उठ जाओ तुम्हारे कमरे में कोई गेस्ट है।"… इतना कहकर अपस्यु उसके ऊपर से हटा और अलमीरा से अपने कपड़े निकालकर सीधा बाथरूम में घुस गया।

ऐमी अंगड़ाई लेती उठकर बैठी, जब उसके शरीर के ऊपर से चादर हटा और अंगड़ाई लेकर वो उठ रही थी… साची उसे पहली बार करीब से पूरा देख रही थी। जब वो उठकर बिस्तर से बाहर आयी तब तो उसकी आंखें और भी फैल गई क्योंकि इस तरह की लुभावनी लिंगरी में वो किसी लड़की को पहली बार देख रही थी।

साची के ठीक सामने आएन था, जिसमे वो अपने पूरे बदन पर गौर कर रही थी और खुद को ऐमी से तुलना करके देख रही थी। … "क्या हुआ तुम मुझे इस तरह से घूर क्यों रही हो। कहीं तुम लेस्बियन तो नहीं।"... साची ना में अपना सिर हिलाती उसपर से अपनी नजरें हटा ली।

अजीब ही उलझन में साची थी। दिल तो खैर टूटा ही था, साथ ही साथ इतने सारे सवाल एक साथ उसके मन में अा रहे थे जिन्हें वर्णित करना संभव नहीं। क्या उस मनोदशा की भी कल्पना की जा सकती थी, जब अपने ही प्यार को किसी दूसरी लड़की के साथ चूमते पकड़ो। लेकिन यहां तो चूमते पकड़ा भी नहीं था उल्टा खुद अपस्यु उसे ये सब दिखा रहा था।

"ज्यादा मत सोचो वो खुद ही सारी बातें क्लियर कर देगा"… ऐमी अपने ऊपर कपड़े डालती हुई कहने लगी।

साची:- तुम..

ऐमी:- मैं ऐमी हूं, और तुम साची हो ना।

साची:- तुम मुझे जानती हो?

ऐमी:- हां बिल्कुल.. चाय लोगी या कॉफी..

साची:- एक सुकून की नींद, जो ना जाने कितनी रातों से मैं सोई नहीं और ना जाने कितनी रातो तक आए नहीं।

ऐमी:- विरह के सोक अवस्था। कीप इट अप डार्लिंग।

ऐमी के ऐसे रिप्लाई पर साची उसे ऐसी घुरी मानो वो उसका मुंह अभी नोच ले। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया देख कर ऐमी को हंसी अा गई। वह हंसती हुई कहने लगी…. "सॉरी यार, हम बेफिक्रे लोग है, जो मुंह में आया बक देते है। तुम्हारी भावना को ठेस पहुंचाना मेरा बिल्कुल भी मकसद नहीं था।"

इतने में अपस्यु भी तैयार होकर बाहर अा गया… "चले साची"..

अपस्यु, के ऐसे पूछने पर मानो उसके बदन में आग सी लग गई हो… वो अचानक ही फट पड़ी… लेकिन शायद अपनी अभिव्यक्ति के लिए उसे ज्यादा शब्द नहीं मिल रहे थे इसलिए वो धोखेबाज, स्काउंद्रल, और चंद शब्द बोल कर चिल्लाए जा रही थी। उसे भी थोड़े ना समझ में आ रहा था कि वो क्या भावना व्यक्त करे।

फिर शुरू हुई समझाने कि कोशिश, लेकिन क्या ऐसी स्तिथि में किसी भी लड़की को समझाया या चुप करवाया जा सकता था, कभी नहीं। अपस्यु को इस स्तिथि का अंदाज़ा था इसलिए अपस्यु और ऐमी ने मिलकर उसके मुंह पर टेप लगा दिया और हाथ-पाऊं बांध कर उसे गाड़ी में बिठा दिया।

कार जैसे ही उस बंगलो से आगे बढ़ी, अपस्यु अपना हाथ पीछे बढ़ाकर उसके हाथ कि रस्सियां खोल दिया। हाथ की रस्सी खुलते ही, साची ने सबसे पहले खुद को कैद से आजाद करवाया। फिर कुछ देर तक तक अंदर ही चिल्लाती रही फिर चिल्ला-चिल्ला कर खुद ही चुप हो गई।

उसके चुप होने के 2 मिनट बाद अपस्यु उससे कहने लगा… "मैंने कल तुम्हारी और कुंजल की लगभग बातें सुनी थी। तुम्हे बहुत सी बातें बतानी है लेकिन जबतक तुम कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं होगी तबतक मैं कुछ भी कर लूं तुम्हे समझा नहीं सकता।

साची, फिर से चिंख़ती हुई कहने लगी….. "इसमें समझना क्या है, तुम दोनों का अफेयर है और मेरे साथ तुम एक्स्ट्रा अफेयर कर रहे थे। सच ही कहा क्रेज़ी ने तुम धोखेबाज हो।

अपस्यु:- ठीक है तुम अपनी राय बनाए रखो। मै किसी तरह का उसमे छेड़-छाड़ नहीं करूंगा। बस एक ही बात कहता हूं.. मै धोखेबाज होता तो तुमने मुझे सामने से कई मौके दिए थे। इसके अलावा मै खुद तुम्हे ऐमी से मिलवाने लेे गया। आगे तुम्हारी सोच। आज का एक दिन तुमसे क्यों मांगा जरा इस बात पर भी गौर करना। तुम चाहो तो मुझे धोखेबाज समझ सकती हो या नहीं तो मै कैंटीन में मिल जाऊंगा। उतारो हम पहुंच चुके हैं।

साची कार से नीचे उतरकर कुछ कदम आगे चली और कुछ सोचकर वापस अपस्यु के पास पहुंची…. "एक बात बताओ, तुम किससे प्यार करते हो।

अपस्यु:- तुमसे

साची को एक बार फिर गुस्सा अा गई…. "और जो सुबह-सुबह तुम दोनों मुंह से मुंह चिपकाकर कर रहे थे वो भी बिना ब्रश किए यक्क .. वो क्या था फिर"..

अपस्यु:- हमारा कैज़ुअल रिलेशन…

"क्या……. कौन सा रिलेशन"… अपस्यु अपनी बात कहकर आगे निकल चुका था और साची उसे पीछे से पूछने लगी।

अपस्यु चलते चलते…. "अपनी क्लास खत्म करके कैंटीन अा जाना आज का पूरा दिन केवल तुम्हारे लिए रखा है। बाकी आना ना आना तुम्हारी मर्जी"

अपस्यु वहां से चला गया और साची, सिर्फ 5 मिनट पहले जिसके दिमाग में बॉम्ब फुट रहे थे, वो केवल इतना ही सोचने में लगी रही…. "जीवन में तरह-तरह के रिलेशन के बारे में सुनी, ये कैज़ुअल रिलेशन क्या होता है।"

दूसरी ओर अनुपमा भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो चुकी थी। लावणी पहले से अपनी स्कूटी को तैयार करके खड़ी थी। अनुपमा को देखती ही कहने लगी…. "बड़ी मां अब मै समझी आप 5 मिनट बोल कर आधा घंटे बाद क्यों अाई। खूबसूरत दिख रही है।"…

अनुपमा उसे एक थप्पड लगाती हुई कहने लगी… "हम कार से चलेंगे".. लावणी अपने गाल पर हाथ रखकर उसके पीछे चल दी।…

दोनों कार में बैठ चुके थे। लावणी अब भी अपने गाल पर हाथ रखे, सोचने लगी…. "मिर्गी उन दोनों को अाई है और बड़ी मां गुस्सा मुझ पर निकाल रही"..

"कुछ पूछ रही हूं बोलती क्यों नहीं"… अनुपमा लावणी को डांटती हुई पूछने लगी।

लावणी:- क्या पूछ रही थी बड़ी मां।

अनुपमा:- ना जाने कहां खोई रहती है ये लड़की। सपना गार्डन (वहीं गार्डन जहां से साची, अपस्यु से मिलने लालजी हॉस्पिटल आयी थी) और अपने घर के रास्ते में लालजी हॉस्पिटल पड़ता है क्या?

लावणी:- नहीं बड़ी मां, दोनों अलग डायरेक्शन में है।

"ओह मतलब उस रात भी ये तबीयत खराब का बहाना करके उसी से मिलने गई थी। इसके तो पड़ मै आज कतरूंगी।"… अनुपमा मन में ख्याल लाती।

लावणी:- बड़ी मां फोन दो ना।

अनुपमा ने लावणी को उसका फोन दे दी। लावणी ने जैसे ही अपना फोन चालू की स्क्रीन पर व्हाट्स ऐप मसेंजर खुला हुआ। ऐप को जब उसने मिनिमाइज किया तब पता चला, अनुपमा ने उसका पूरा फोन खंगाल लिया था। मन ही मन वो अपस्यु को धन्यवाद कर रही थी। कल रात यदि उसने वो फोटो नहीं भेजी होती, तो ना ही वो आरव से झगड़ा करती और ना ही वो उसके सभी मैसेज और फोटो डिलीट करके उसे ब्लॉक करती।

पहली जांच पड़ताल लालजी हॉस्पिटल। यहां वो दोनों आए थे। दूसरी जांच पड़ताल कॉलेज में। क्लास में बैठकर साची पढ़ रही थी। यहां भी सब कुछ क्लियर। इसी बीच जब अनुपमा लौट रही थी तब उसकी नजर अपस्यु पर पड़ी… अनुपमा ने अपना रास्ता बदल लिया और वो अपस्यु से बात करने उसके पास पहुंची…

अपस्यु जहां खड़ा था वहां के चारो ओर का माहौल देखकर लावणी का दिल डीजे के बूफर जैसे धड़कने लगा, लेकिन अब वो कर भी क्या सकती थी, बस अपस्यु ही सामने खड़ा दिख रहा था और वहीं उसका इकलौता सहारा था।

अपस्यु ने जब अनुपमा के साथ-साथ लावणी को भी आते देखा, तो लावणी के चेहरे का उड़ा रंग देखकर उसे हंसी आने लगी। खैर वो अपने हंसी पर काबू किया और अनुपमा को नमस्ते करते हुए कहने लगा, सुबह साची को डॉक्टर से दिखाना जरूरी लगा इसलिए आप लोगों से बिना पूछे उसे साथ ले आया। सॉरी आंटी।

अनुपमा:- कोई बात नहीं है बेटा, तुम उसके साथी हो और ये तो बड़ी खुशी की बात है कि तुम्हे भी उसकी चिंता है। थैंक यू सो मच…

(झूठी, पूरे रास्ते इंक्वायरी करती अाई है ये, अब सामने है तो थैंक यूं बोल रही).. लावणी

अपस्यु:- अरे इसमें थैंक्स जैसा क्या है, हम पड़ोसी है। एक ही कॉलेज में है। और आप की तो मेरी मां से अच्छी दोस्ती भी हैं। अब इन सबके बदले मैंने कुछ कर दिया तो इसमें थैंक्स जैसा क्या है।

(हां फेकू, बिस्तर पर वाला वॉलेट हाथ लग जाता ना तब ये सफाई देते। चार चप्पल लगाती बड़ी मां) लावणी..

अनुपमा:- बेटा तुम क्लास में नहीं हो। तुम और साची तो एक ही विषय पढ़ते हो ना।

अपस्यु:- अरे आंटी वो सुबह साची से एक नोट्स लेकर बस एक झलक देखना था, तो सोचा वो लेेकर देख लूं फिर आराम से तैयार होकर जाऊंगा कॉलेज, और इतने में ही ये सरा कांड हो गया… इसलिए साची को यहां छोड़ कर फिर तैयार होने गया था।

अनुपमा:- घर से तैयार होकर इतनी जल्दी अा भी गए।

अपस्यु:- अच्छा मज़ाक कर लेती है आंटी। नहीं मै घर नहीं गया था यहीं अपने दोस्त के पास जाकर उसके कपड़े उधार मांग लिए और वहीं तैयार हो गया।

(ओ पागल बस कर, तू भी जा इन्हे भी जाने दे। क्यों पकड़े है इन्हे। एक बार जाने दो बड़ी मां को फिर उस आरव को बताती हूं मै)

अनुपमा:- कितने सरल हो तुम अपस्यु। चलो बाय बेटा।

(शुक्र है.. बला टली).. लावणी

अपस्यु:- अरे कहां आंटी… आप पहली बार कॉलेज अाई है, एक चाय तो पीती जाइए।

(ओ बावरा, जाने दे ना बड़ी मां को… पागल कहीं का।)

अनुपमा:- नहीं बेटा जाने दो। चाय तुम्हारे घर पर कभी पिएंगे। चलो अब मै चलती हूं।

(हे ऊपरवाले तेरा लाख लाख शुक्रिया, बच गई आज तू लावणी)..

जैसे ही अनुपमा जाने लगी, अपस्यु लावणी को देखकर कहने लगा…. "अरे लावणी तुम यहीं थी। कबसे तुम्हे ही ढूंढ़ रहा था। ये देखो किसी ने यहां क्या लिखा है"…

लावणी तो पहले ही देख चुकी थी अब बारी थी अनुपमा की, जो ऊपर नजर उठा कर बड़े-बड़े बैनर में लिखा पढ़ रही थी…. "लावणी आई एम् सॉरी…. किसिंग इमोजी… आई लवयू बेबी ….. किसिंग इमोजी…. प्लीज मुझसे लाइब्रेरी के पास मिलो, तुम्हारे सारे गीले शिकवे दूर कर दूंगा।"

(बैनचो चुटिया कहीं का… फसा दिया साले ने)…. लावणी
Brilliant update... Great going
 

Sanju@

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Update:-42




लावणी तो पहले ही देख चुकी थी अब बारी थी अनुपमा की, जो ऊपर नजर उठा कर बड़े-बड़े बैनर में लिखा पढ़ रही थी…. "लावणी आई एम् सॉरी…. किसिंग इमोजी… आई लवयू बेबी ….. किसिंग इमोजी…. प्लीज मुझसे लाइब्रेरी के पास मिलो, तुम्हारे सारे गीले शिकवे दूर कर दूंगा।"

(बैनचो चुटिया कहीं का… फसा दिया साले ने)…. लावणी

अनुपमा उस बड़े-बड़े बैनर को पढ़ने के बाद गुस्से में आखें लाल पीली करती हुई लावणी के ओर देखने लगी…. "ये सब क्या है"… अनुपमा की तेज आवाज और लावणी सहम गई। उसके पाऊं कापने लगे और आखों से गंगा-जमुना बहने लगा।

अनुपमा:- इसकी तो मैं बाद में खबर लेती हूं, अपस्यु चल पहले प्रिंसिपल ऑफिस।

अपस्यु:- बिल्कुल आंटी चलो चलते हैं।

दोनों प्रिंसिपल ऑफिस के दरवाजे पर पहुंचे जहां दरवाजे पर खड़ा चपरासी उन्हें रोकते हुए कहने लगा…. "सर अभी मीटिंग में व्यस्त है, आप बाहर इंतजार कीजिए।"

अनुपमा मिश्रा, अब कहां रुकने वाली थी, धड़ाम से दरवाजा खोली और फाटक से अंदर। प्रिंसिपल अपने चेयर पर बैठकर सामने कुछ लोगों से बात कर रहा था। अनुपमा और अपस्यु को इस तरह बिना इजाज़त अंदर घुसते हुए देखकर, प्रिंसिपल ने चपरासी से कड़े लहजे में जवाब तलब किया।

चपरासी तो धीमे बोलना शुरू ही किया था लेकिन बीच में ही अनुपमा ने चिल्लाना शुरू कर दिया…. "आप ये कॉलेज चला रहे है या लवर्स पार्क। ऊपर से शिकायत करने आओ तो बाहर इंतजार करने के लिए बोला जाता है। क्यों करे इंतजार, आखिर आप की कोई जवाबदेही बनती है कि नहीं।"

प्रिंसिपल अपने सामने बैठे लोगों को बाद ने आने के लिए कहकर अनुपमा को शांत होकर पूरा मामला समझाने के लिए कहता है। अनुपमा पूरे गुस्से में अपनी बात कहकर प्रिंसिपल को घूरने लगती है।

प्रिंसिपल:- मैम आप का गुस्सा जायज है मै सारे मामलों की छान-बीन करके पूरा एक्शन लूंगा। आप निश्चिंत रहिए।

अनुपमा:- आप मेरे साथ चलकर अभी एक्शन लीजिए, तभी मेरा गुस्सा ठंडा होगा।

इधर अनुपमा जैसे ही प्रिंसिपल के ऑफिस के लिए अपस्यु के साथ निकली, लावणी दौड़ कर लाइब्रेरी के पास पहुंची। वहीं कोने में आरव उसका इंतजार कर रहा था।.. लावणी को देखते ही वो खुशी से नाचते हुए गाने लगा…. "आईये आप का इंतजार था।".. अराव लावणी को आते देख मुस्कुराते हुए गा रहा था और लावणी उसके पास पहुंचकर उसे एक थप्पड चिपका दी।

आरव:- बेबी मेरा दूसरा गाल बुरा मान जाएगा… एक बार प्यार से इनपर भी हाथ फेर दो ना।

लावणी उसकी ये अरमान भी पूरी करती हुई कहने लगी… "तुम दोनों भाई पागल हो, उसने रात वाली तुम्हारी हरकत मुझे बताई और तुम्हारी सुबह वाली हरकत बड़ी मां को दिखा दिया।"

आरव:- क्या मतलब तुम्हारा…

लावणी उसके बाल को अपने दोनो हाथों से जोड़-जोड़ से नोचती हुई कहने लगी… "तुमने जो बड़े-बड़े बैनर लगाकर ढिंढोरा पिटा है ना उसे तुम्हारे भाई ने मेरी बड़ी मां को दिखा दिया।"

आरव उसके पास आने लगा, लेकिन तभी लावणी उसे हाथ दिखाती हुई कहने लगी…. "आज से हमारा ब्रेकअप… तुम तो दूर ही रहना मुझसे… और तुम्हारे भाई की वजह से यदि मुझे कुछ सुनना परा ना तो तुम देख लेना, क्या करती हूं मै।"

लावणी पूरा आक्रोशित होकर वहां से निकली। …. "कमिना माहौल बना कर मज़े लूट रहा है, तूने अच्छा ना किया अपस्यु।"…. ख्यालों में ही गाली देते हुए उसने तुरंत कुंजल को कॉल लगा दिया। 1 मिनट में उसने कल रात से सुबह तक का सरा मामला समझाकर, 5 मिनट में ही उसे किसी तरह मामला सैटल करने के लिए बोल दिया।

थोड़े ही देर में अनुपमा सबको लेकर लाइब्रेरी के पास पहुंच गई…. "ये क्या है"… सामने एक टेबल पर केक रखा था और 4-5 लड़के लड़कियों ने जैसे ही सामने से लावणी को आते हुए देखा, सब एक स्वर में गाने लगे…. "सॉरी सॉरी सॉरी पकड़े दोनों कान क्या"

प्रिंसिपल:- वहां बैनर किसने लगवाया…

विन्नी आगे आकर कहने लगी…. "हम सब ने सर"

प्रिंसिपल:- और ऐसे बैनर लगाने का क्या मतलब है, तुमलोग समझाओगे मुझे।

कुंजल:- सर हमने अपने जूनियर को थोड़ा परेशान किया था ना इसके लिए उसे सरप्राइज देने और उसके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए ये प्लान किया था।

प्रिंसिपल:- मतलब तुम सब ने मिलकर रैगिंग की इस कैंपस में।

विन्नी:- सर थोड़ी सी छेड़-छाड़ कब से रैगिंग हो गई। क्या आपको अनुभव नहीं है कि रैगिंग क्या होती है। आप अपने जमाने से पहले तुलना कीजिए फिर कहिए।

क्रिश:- वैसे भी क्या उसने शिकायत कि है? पूछ लीजिए उससे की हमने रैगिंग की थी या थोड़ा सा मस्ती मज़ाक। उससे ज्यादा परेशान तो हमलोग आप को कर देते हैं कभी-कभी।

प्रिंसिपल:- बस-बस मुझे मत समझाओ, इनके गार्जियन आए हैं इन्हे समझाओ ये बात।

कुछ देर की बातचीत और कुंजल ने सरा मामला संभाल लिया। ये मैटर तो सलट गया लेकिन आरव और लावणी के बीच की कहानी फसा कर अपस्यु अपनी कहानी सुलझाने के इरादे से कैंटीन में बैठा साची का इंतजार कर रहा था।

"ये सब क्या था भाई, तुमने जान-बुझ कार आरव को फसाया"… कुंजल पास बैठते पूछने लगी।

अपस्यु:- अरे ऐसे झगड़ों को एन्जॉय करो। जरा मै भी तो देख लुं इनके रिश्ते की गहराई को। लवर्स है या केवल अब तक गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड पर ही अटके है।

कुंजल:- जानते हो एक बात भाई..

अपस्यु:- क्या ?

कुंजल:- आप ना खुद को इतना ऊंचा उठा लिए हो की बाकी सभी आपको अपने नीचे नजर आने लगे है। केवल आप ही सही हो। आप जैसा सोचते हो सब वैसा ही करे।

अपस्यु:- अरे .. किस बात से खफा है रे बच्चा… इतना गुस्सा।

कुंजल:- गुस्सा ना रहूं तो क्या करूं। खुद दूसरों के साथ क्या कर रहे हो इस बात की जानकारी भी है क्या? क्या आप को समझ में आता है कि आप के वजह से कोई सुसाइड भी कर सकती है?

अपस्यु:- कुछ सवालों के जवाब वक़्त देता है, इसलिए मै क्या कर रहा हूं वो खुद तुम्हे पता चल जाएगा।

कुंजल:- हुंह । इसे घमंड कहते है। "जो भी मै कर रहा… तू अभी बच्ची है… अभी नहीं समझ में आएगा"…. हर कहानी तो खुद के ही बात पर खत्म कर देते हो।

अपस्यु:- ओ.. ओ .. !! कुंजल इतना गुस्सा क्यों?

कुंजल गुस्से में उठकर चली गई। अपस्यु उसकी बातों को सोच कर बस मुस्कुराए जा रहा था। …. "जरूर मुझ पर ही हंस रहे होगे।"… साची सामने बैठकर पूछने लगी।

अपस्यु:- अरे मुकेश 2 कप कॉफी लाना तो।

अपस्यु, का ऐसा कहना था कि साची उसे हैरानी से देखने लगी। अपस्यु वहीं अपने मुस्कुराते अंदाज में साची से कहने लगा…. "मै आज तुम से अपना कुछ अनुभव साझा करने वाला हूं। यदि तुम अपनी यथावत स्तिथि (करेंट सिचुएशन) से बाहर निकलना चाहती हो तो मुझ पर भरोसा रखना और यदि कुछ कहूं तो मान लेना।"

साची:- अपस्यु अब तो तुमसे डर लगने लगा है। तुम्हारे अंदर मुझे कोई साइको दिख रहा है। जब से तुम मेरी ज़िन्दगी में आए हो ज़िन्दगी बदतर होते चली जा रही हैं क्यों कर रहे हो ऐसा।

अपस्यु:- अरे … धीरज रखो थोड़ा। अच्छा चलो मुझे मारो…

साची:- तुम पागल हो चुके हो अपस्यु। मै जा रही हूं।

अपस्यु:- सोच लो यदि अभी तुम यहां से गई तो मुझे ये सबको बताते देर नहीं लगेगी की मैं कल रात तुम्हारे साथ था।

साची वापस उसके पास पहुंचती, अपने हाथ के हाव-भाव और नजरों से नफरत बरसाती हुई कहने लगी…. "दिया मैने, तुमको आज का दिन लेकिन एक बार तुम्हारी कहानी खत्म होगी फिर तुम मुझे कभी परेशान नहीं करोगे।"

अपस्यु:- अच्छा फैसला, चलो अब खींच कर एक तमाचा मारो।

"बड़े ही शौक से"… और इतना कहकर साची ने पूरी ताकत झोंक दी उस थप्पड में। थप्पड मारने के बाद वो अपनी कलाई पकड़कर बैठ गई। कुछ बूंद आशु उसके आखों में थे, वो अपनी पलकें उठा कर पूछने लगी… "क्यों कर रहे हो ऐसा।"

अपस्यु, अब भी मुस्कुरा रहा था… "मैंने तुम्हारी भावनाओ को क्यों नहीं समझा, इस बात के लिए ये थप्पड था। …. चलो अब चलते हैं।

अपस्यु, साची का हाथ थामे उसे अपने साथ ले जा रहा था। संभवतः ये वो लम्हा तो बिल्कुल भी नहीं था जिसके ख्वाब कभी साची ने संजोए थे। अब तो बस चंद सवाल, मन के भीतर दबा कहीं प्यार और अपस्यु के लिए ढेर सारा नफरत ही अपस्यु के साथ चल रही थी।

कुछ ही पल में दोनों दिल्ली उत्तराखंड के हाईवे पर थे। कार लगभग 160 के गति से चल रही थी। इतने स्पीड को अनुभव करते ही साची का दिल जोड़ से धड़कने लगा… वो गति कम करने की अनुरोध करने लगी, इसे सुनकर अपस्यु ने गति बढ़ा कर 170 तक लेे गया। साची को अब और भी डर लगने लगा…

वो फिर से एक बार गति में परिवर्तन के लिए कहने लगीं। इस बार फिर से अपस्यु ने गति को बढ़ाकर 180 तक लेे गया। ऐसे ही साची अपने डर के कारण बार-बार मिन्नतें करती रही और कार की गति बढ़ते-बढ़ते 230 के पार चली गई। साची डर के मारे चीखती हुई, कार रोकने के लिए कहने लगी।

अपस्यु ने झटके वाला ब्रेक लिया। हंडब्रेक का इस्तमाल करते हुए कार को 180 डिग्री पर रोल किया। तकरीबन 10 फिट आगे जाकर कार पूरी तरह रुक चुकी थी। दरवाजा खुला और साची बाहर जाकर उल्टियां करने लगी। अपस्यु वहीं सड़क से कार को नीचे उतार कर उसके आने का इंतजार करने लगा…

15 मिनट तो साची को सामान्य होने में लग गए। एक बार जब वो सामान्य हुई तब उसने अपस्यु का चेहरा देखी, और मायूसी से पूछने लगी…. "आखिर मेरी गलती क्या है अपस्यु?"

अपस्यु:- यूं समझ लो, ये मैंने तुम्हे आखरी बार कष्ट दिया था, अब प्लीज थोड़ा आराम करो।

अपस्यु ने साची को जूस दिया पीने और कुछ देर कार में बिठाए रखा। अपस्यु को जब लगा अब सब ठीक है तब वो साची को लेकर सड़क के नीचे पेड़ों के बीच गया और वहीं नीचे बैठ गया। साची भी उसके साथ नीचे बैठ गई।

अपस्यु:- हो सके तो मुझे माफ़ कर दो केवल आज के लिए नहीं बल्कि हर वो दर्द के लिए, जो तुमने कुंजल के साथ साझा की थी।

साची:- अपस्यु अब मुझ में हिम्मत नहीं बची है किसी भी बात को समझने की। बस तुम कहते रहो मैं सुन रही हूं।

अपस्यु अब अपने पूरे लय में आते हुए कहने लगा…. "साची मै बहुत ही सरल शब्दों में अपनी बात रखता हूं। मैं पिछले 2-3 महीनों से ही लोगों के बीच रहने लगा हूं, इसलिए मुझे बहुत से इंसानी स्वभाव का ज्ञान ही नहीं था।

साची, हैरानी से उसे देखती:- मतलब..

अपस्यु:- मतलब यही की कल जितनी भी बातें तुमने कुंजल से कही, वैसी मेरी कोई फीलिंग थी ही नहीं। मै तो बस तुमसे इसलिए अनजान बन रहा था क्योंकि कैंटीन में अाकर जब तुमने मुझ से बिना किसी भाव के अपनी बात रखी, तो मुझे लगा अब तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई फीलिंग ही नहीं रही इसलिए मैंने भी उचित समझ कर बात को वहीं खत्म करने का फैसला किया। इसलिए शायद तुम्हारी दोस्ती भी कबूल नहीं थी क्योंकि हम जितने पास होंगे भावनाएं उतनी ही करीब खींचेंगी एक दूसरे को।

साची:- ये सरल भाषा है या पजल। तुम मुझे कंफ्यूज कर रहे हो।

अपस्यु:- हम दोनों ही एक दूसरे से आकर्षित और एक दूसरे को लेकर बहुत ही दुविधा में है। यहीं कन्फ्यूजन दूर करने तो यहां बैठकर बातें करने आए है।

"मै और ऐमी पिछले 12 सालों से साथ है। जैसा कि मैंने तुम्हे बताया मै 2-3 महीनों से ही लोगों के बीच रह रहा हूं इसलिए कुछ इंसानी स्वभाव को कभी मैंने जाना ही नहीं… जैसे कि जब दो लोग प्रेम में होते है तो उसके समतुल्य कोई तीसरा नहीं होना चाहिए। और हम दोनों के बीच ऐमी है।
"तुम्हारी भावनाएं सिर्फ इस बात को लेकर आहत हो जाती है कि कोई लड़की मुझे क्यों छलावा दे, या मै किसी दूसरी लड़की के पीछे क्यों जा रहा हूं। जबकि इस रिश्ते में तो एक लड़की बहुत पहले से मेरे साथ है, और बस यही वजह है कि मैं तुम्हारे साथ वो रिश्ता नहीं निभा सकता।"

साची:- तुम्हारे कहने का मतलब है कि तुम मुझसे भी प्यार करते हो और ऐमी से भी।

"हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते, बस हम दोनों कैज़ुअल रिलेशन में है।"….
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साची:- तुम्हारे कहने का मतलब है कि तुम मुझसे भी प्यार करते हो और ऐमी से भी।

अपस्यु:- हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते, बस हम दोनों कैज़ुअल रिलेशन में है।"….

साची:- अपस्यु, हम दोनों आज अपने सभी कन्फ्यूजन दूर करने बैठे है ना तो मेरे ज़िन्दगी का सबसे बड़ा कन्फ्यूजन अभी यहीं है… आखिर क्या है ये कैज़ुअल रिलेशनशिप। पहले इसे ही तुम क्लियर कर दो।


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12 जून 2011….


सुबह सुबह का वक़्त था… "खट खट खट"… अपस्यु ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने ऐमी खड़ी थी…. "ओह माय गॉड, ऐमी… वाउ"… अपस्यु के चेहरे पर खुशी और आश्चर्य के भाव साफ देखे जा सकते थे। ऐमी अपना सामान वहीं दरवाजे पर पटक दी और उछलकर अपस्यु के गले लगती…. "बहुत मिस की तुम्हे"… अपस्यु भी उसे अपने बाहों में समेटते हुए कहने लगा… "तुमने तो मुझे सरप्राइज ही कर दिया। नाचने को दिल कर रहा है।"

अपनी खुशियां जाहिर करते दोनों थोड़े देर तक गले लगे रहे। फिर ऐमी अलग होकर बाथरूम में चली गई फ्रेश होने, इधर जबतक अपस्यु नाश्ता बना चुका था। दोनों खाने कि टेबल पर साथ बैठे… "उम टेस्टी, क्या बनाया है सर खाने में, काफी लजीज है।"

अपस्यु::- दिख नहीं रहा है, फ्राइड आलू है।

ऐमी:- हां वो दिख रहा है लेकिन पहले तो कभी इतना टेस्टी नहीं लगा।

अपस्यु:- वो इसलिए क्योंकि पहले चीज के साथ फ्राई नहीं करता था। वैसे अचानक से मियामी (Miami, US) में क्या करने पहुंच गई, 18 जून को तो न्यूयॉर्क में तुम्हारे ग्रुप का शो है ना?

ऐमी:- उसकी बात मत करो, न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर ही डायरेक्टर के साथ झगड़ा हो गया और मै फ्लाइट पकड़कर इधर अा गई।

अपस्यु:- सबाश, वैसे झगड़ा हुआ किस बात पर था।

ऐमी:- इतनी डिटेल कौन पूछता है, ठीक से खाने भी नहीं दे रहे। मुझे बस यहां आना था सो मै अा गई।

अपस्यु:- अच्छा किया, वैसे भी मैं अब अकेला वापस नहीं जाऊंगा।

ऐमी खाना बीच में ही छोड़कर उठ गई और खुशी का इजहार करती वहीं उछलने लगी…. "सच में, वाउ, वाउ, वाउ। लेकिन ये तो गलत है अपस्यु, हमे बताया तक नहीं।

अपस्यु:- सोचा वहीं अाकर सरप्राइज दे दूं। भाई कैसा है?

ऐमी:- उस छछूंदर का नाम मत लो, मुझे बहुत तंग करता है।

अपस्यु:- हम्मम!

ऐमी:- बस, बस, बस .. इतनी गहरी सांसें लेकर अपनी फीलिंग दबाने की जरूरत नहीं है। काफी मस्त है और आज कल तो वो जिम्नास्टिक भी कर रहा है, वो भी युद्ध स्तर पर, तो काफी लचीला और फुर्तीला होते जा रहा है।

अपस्यु:- मै समझा नहीं?

ऐमी:- बुद्धू, मतलब वो मेरी फ्रेंड्स के बीच काफी मशहूर है, 3-4 गर्लफ्रेंड तो होगी ही लेकिन कुत्ता कुछ बताता नहीं है।

अपस्यु:- हाहाहा … और तुम्हारे कितने ब्वॉयफ्रैंड है।

ऐमी:- बस एक है, उसी से तो मिलने… मिलने नहीं मिलता आज कल…

अपस्यु:- पकड़ी गई हां। चलो अब पूरी कहानी बताओ…

ऐमी:- छिपाने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन तुम सवालों के पहाड़ खड़ा कर देते इसलिए मैं नहीं बताना चाह रही थी। फिलहाल मै एक चैन कि नींद लूंगी फिर आराम से शाम को सभी बातें बताऊंगी।

दिन के 1 बज रहे होंगे। अपस्यु अपना काम निपटाकर वापस पहुंचा था। जाकर देखा तो ऐमी अब भी सो रही थी। कुछ सोचते हुए उसने ऐमी का लैपटॉप निकला और उसे ऑन किया। सामने स्क्रीन पर पासवर्ड मांग रहा था और अपस्यु को पता था इसका पासवर्ड क्या होना चाहिए। 2 कोशिश और लैपटॉप खुल चुका था।

अब बस एक ही शंका थी वो भी ब्राउज़र खुलते ही दूर हो गई। एफबी पहले से लॉगिन था और अपस्यु फिर कुछ देर की छानबीन के बाद वहां भी पहुंचा, जिससे मिलने ऐमी पहुंची थी। 10 मिनट तक संदेशों का आदान प्रदान हुए, उसके पश्चात अपस्यु चैट को डिलीट करके, सबकुछ पहले जैसा वापस रख दिया।

शाम के तकरीबन 5 बजे ऐमी एक अच्छी नींद के बाद जाग रही थीं। फ्रेश होकर वो हॉल में पहुंची, जहां अपस्यु खुले बदन, नीचे लोअर पहन कर रस्सियां कूद रहा था। ऐमी को पहले के मुकाबले अपस्यु का बदन काफी आकर्षक लग रहा था। मेसोमोर्फ शरीर (mesomorph) जिसे किसी एथलीट के ढांचे में तैयार किया गया था। शरीर का आकार और उसका ढांचा अपस्यु को मनमोहक बना रहा था।

ऐमी उसके रूप आकर्षण में खींची हुई उसके साथ-साथ रस्सियां कूदने लगी। ऐमी उसके बदन को छूते हुए कहने लगी…. "काफी मेहनत कर रहे हो सर, सेक्सी बॉडी हां। देखकर मेरे होश उड़ रहे है।"

अपस्यु चुप-चाप अपनी रस्सियां कूदता रहा। ऐमी कुछ देर तक उसके साथ कूदती रही फिर उसकी सासें उखड़ने लगी और वो अाकर बैठ गई। कुछ देर बाद वो भी ऐमी के पास आकर बैठते हुए अपनी श्वास सामान्य करने लगा।

"इंप्रेसिव मिस्टर अपस्यु, 600 जंप की गिनती तो मैंने कर ली है।" ….. "कुल 3000 जंप 1000-1000 के 3 सेट सुबह शाम और रात।"…

"दोनों भाई एक जैसे ही हो, वैसे तुम्हारी यहां तो अनगिनत गर्लफ्रेंड होगी।"

अपस्यु:- और वो क्यों होगी भला…

ऐमी:- जब मै इतना अट्रैक्ट हो सकती हूं तो यहां की लड़कियां तो नोच डालती होंगी तुम्हे…

ऐमी अपनी बात कहकर जोड़-जोड़ से हंसने लगी। अपस्यु उसे हंसते हुए देखकर मुस्कुराने लगा। गम में लगातार रोती लड़की को यूं खुलकर हंसते देखने का अपना ही सुकून था।

दोनों 6 बजे के करीब शॉपिंग के लिए निकल रहे थे। ऐमी हल्के पीले रंग की शॉर्ट और उसपर टी शर्ट डाले हुई थी जो कंधे से पूरा खुला हुआ था। अपस्यु उसे देखते ही कहने लगा… "ये पहन कर अपने बॉयफ्रेंड पर बिजलियां गिराने जा रही है क्या?"

"खड़ूस मुझे देख कर ऐसा कह रहा है मतलब आज मै वाकई कमाल कि दिख रही हुं क्या?" .. और फिर से वही खिली सी मुस्कान को उसके चेहरे पर फ़ैल गई थी।

रात के तकरीबन 10 बजे ऐमी तैयार होकर हॉल में अाई। नीचे काले रंग की मिनी स्कर्ट, ऊपर व्हाइट कॉलर की टी-शर्ट और उसके ऊपर ब्लैक कलर की जैकेट। इन सब के अलावा जब वो इस परिधान के साथ आंखों पर हल्के पीले रंग की स्टाइलिश चस्मा लगा कर हॉल में अाई, अपस्यु खड़ा होकर उसे देखने लगा।

"क्यों होश उड़ गए ना।"… ऐमी अपने भृकुटी (eyebrow) चमकती हुई पूछने लगी।

अपस्यु उसके पास पहुंचकर उसके माथे को चूमते हुए उसे गले लगाते कहने लगा….. "मै बहुत खुश हूं, और हां तुम्हे ऐसे देखकर वाकई में मेरे होश उड़ गए। काफी प्यारी और खूबसूरत लग रही हो।"

ऐमी, अपने दोनो हाथ फैलाकर, अपने सिर को झुकाकर उसके तारीफों का अभिवादन की और अपने बॉयफ्रेंड से मिलने के लिए निकली। 10 बजे के करीब वो निकली और लगभग 10.30 बजे तक गुस्से में लाल-पीली होती हुई वो वापस अा रही थी। उसके पीछे-पीछे कोई लड़का भी चला अा रहा था। अपस्यु हॉल में ही बैठा हुआ था, ऐमी की हालत देख कर वो जोड़-जोड़ से हंसने लगा। वो आते ही सीधे अपने कमरे में घुस गई और उसके पीछे-पीछे वो लड़का भी अंदर जाने लगा…

"ओए खजूर, किधर जा रहा है।"… अपस्यु ने उसे रोकते हुए कहा..

लड़का:- Chill bro, she is my girlfriend.

अपस्यु, उसे ऊपर से नीचे तक देखा… "तू इंडियन है ना।

लड़का:- Yes bro

अपस्यु:- तू यहां जरा मेरे पास अा..

"Yo Bro" वो लड़का अपस्यु के पास आते हुए बोलने लगा। अपस्यु ने उसके बाल को पकड़ कर, उसके सर को गोल गोल घुमाते कहने लगा…. "साले निकम्मे, मै इधर बैठा हूं और तू उसके पीछे-पीछे उसके कमरे में जा रहा हैं। इतनी हिम्मत अाई कहां से अा गई बे।"

लड़का:- sorry bro, she misunderstood…

अपस्यु:- साले अंग्रेज, हिंदी ने बोल लेे.. वरना अभी सुताई कर दूंगा।

लड़का:- सॉरी ब्रो। वो थोड़ी सी मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई है। वहीं समझाने जा रहा था।

अपस्यु उसे धीमे हाथ का एक थप्पड मारते हुए…. "वो पूरी गीली होकर अाई है। अंदर कपड़े बदल रही होगी और तू साला उसके पीछे पीछे जा रहा है। चल यहां मुझे अपनी सफाई दे, मै उसे समझा दूंगा।

लड़का:- वो पागल हो गई है ब्रो।

फिर से एक थप्पड… "अबे तू मेरे सामने उसे पागल बोल रहा है, इतनी हिम्मत।"

लड़का:- you both are fucking freak. You asshole, motherfucker… go fuck yourself…

इतने में ऐमी अपने कपड़े बदल कर हॉल में पहुंच चुकी थी और इस प्रकार से जब वो गाली देती सुनी, नजर इधर-उधर दौड़ा कर देखने लगी। पास में ही फर्श साफ करने वाला डंडा रखा हुआ था। फिर क्या था वो लड़का गालियां दे ही रहा था कि ऐमी ने डंडा बरसाना शुरू कर दी। इतनी तेज उसके पीठ पर डंडे पड़े की वो छटपटा कर वहां से भागना ही सही समझा।

ऐमी गुस्से में डंडा वहीं फेककर, वो अपना लैपटॉप निकली और दूसरी कोई आईडी ओपन करके अपना लास्ट लॉगिन टाइम देखने लगी। जैसे ही उसने अपना लास्ट लॉगिन टाइम देखी, वहीं डंडा लेकर अपस्यु के पीछे दौड़ गई।

10 मिनट के भाग दौड़ के बाद अपस्यु हॉल में अाकर सोफे पर बैठ गया और ऐमी उसे मारने लगी। वो ऐमी को देख कर जोड़-जोड़ से हंस रहा था और ऐमी मारते-मारते थककर वहीं बैठ गई..… "कितनी दूर से आई थी मै अपने इंटरनेशनल ब्वॉयफ्रैंड से मिलने। सब बर्बाद कार दिया तुमने अपस्यु।"

अपस्यु उसकी बात सुनकर फिर से जोड़-जोड़ से हसने लगा। उसे हंसते देखकर ऐमी की भी हंसी निकल आईं। ऐमी हंसती हुई, उसके सीने से अपने सर को टीकाकर अपनी आखें मूंद ली और अपस्यु उसके बालों में हाथ डाल कर उसके सर को हल्का हल्का दबाने लगा…. "क्या मैसेज किया था उस खजूर को"

अपस्यु:- ज्यादा नहीं बस इतना ही लिखा था…. I love pull side party, specially someone lift me and through in.

ऐमी, थोड़ी सिकुरकर अपस्यु के और उपर आती हुई… "तभी उस गधे ने मुझे सीधा पुल में फेक दिया। सब लोग हंस रहे थे।"

अपस्यु:- तुझे वहां कोई देसी लड़का नहीं मिला जो इन विदेशियों को पकड़ने चली आईं। और पसंद भी आया तो मियामी का ही लड़का, इतने बड़े देश में कहीं और ढूंढ लेती अपना इंटरनेशनल बॉयफ्रेंड।

ऐमी:- ना मियामी में ही ढूंढना था, तुम्हे देखे साल भर से ऊपर जो हो चुका था।

अपस्यु वहीं सोफे पर बैठे उसके सर पर धीरे-धीरे हाथ फेरता रहा और ऐमी सुकून से सो गई। सुबह जब उसकी आंख खुली तब अपस्यु कहीं बाहर निकल रहा था। ऐमी उसे पीछे से टोकती हुई पूछने लगी….. "मुझे छोड़ कर कहां चल दिए सर।"

अपस्यु:- यहां से वापस निकलने की तैयारी ऐमी… बस एक दो जगह बताना रह गया है कि आज से मै नहीं आऊंगा।

ऐमी:- कितना वक़्त लगेगा।

अपस्यु:- मुश्किल से 1 घंटा लगना है ऐमी, जबतक तुम नहा धोकर आराम से नस्ता का लुफ्त उठाव तबतक मै काम ख़त्म करके आया।

सुबह के 10 बज रहे थे, ऐमी किचेन में बर्तनों को साफ करके रख रही थी। अपस्यु उसे पीछे के गले लगाते हुए, उसके गालों पर किस्स करते हुए कहने लगा..… "इस काम को तुम्हे करने की जरूरत नहीं"

ऐमी घूमकर सीधी हो गई और किचेन सलब पर अपने हाथ टीका कर अपस्यु को ध्यान से देखने लगी… "क्या हुआ, ऐसे क्या देख रही हो"… अपस्यु ने पूछा।

ऐमी:- इतने साल हो गए तुम्हे देखते हुए, परिस्थिति कोई भी हो तुम्हारे चेहरे की मुस्कान कभी गई नहीं। ना कहो कुछ चंद दिनों को छोड़कर।

अपस्यु:- हाहाहा.. तुम भी ना ऐमी, मेरे चेहरे की बनावट ही ऐसी है।

ऐमी:- किस्स मी..

अपस्यु:- क्या ?

ऐमी:- आई सैड किस्स मी..

अपस्यु थोड़ा आगे बढ़कर उसके गालों को चूम कर अलग हो गया… ऐमी ने फिर से दोबारा कहा… "किस्स मी, और इस बार बिल्कुल वैसा होना चाहिए जैसा हमने अपनी पहली मूवी में देखा था।"

अपस्यु:- मज़ाक कर रही हो क्या?

ऐमी आगे बढ़ी और एरिया ऊंची करती हुई, उसने अपस्यु के होंठ से होंठ लगाकर चूमती हुई अलग हुई। अपस्यु का हाथ पकड़ कर उसने अपने सीने से लगाया… "मेहसूस करो इन बढ़ी धड़कनों को"… फिर उसका हाथ, उसी के सीने पर रखती… "तुम्हारा दिल भी ठीक वैसे ही धड़क रहा है कि नहीं देखो।"

अपस्यु:- तुम समझना क्या चाह रही हो ऐमी?

ऐमी:- यहीं की कुछ इंसानी स्वभाव भी होता है… इसलिए कभी-कभी एन्जॉय भी करना चाहिए। हर वक़्त ये मुस्कान वाला फेस मास्क तुम्हारे अंदर डिप्रेशन पैदा कर देगा।
और इस तरह से शुरू हुई कैजुअल रिलेशनशिप की ओर पहला कदम.. जिसमे पहल की एमी ने... तो अपश्यु बेक़सूर था...
 

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साची:- तुम्हारे कहने का मतलब है कि तुम मुझसे भी प्यार करते हो और ऐमी से भी।

अपस्यु:- हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते, बस हम दोनों कैज़ुअल रिलेशन में है।"….

साची:- अपस्यु, हम दोनों आज अपने सभी कन्फ्यूजन दूर करने बैठे है ना तो मेरे ज़िन्दगी का सबसे बड़ा कन्फ्यूजन अभी यहीं है… आखिर क्या है ये कैज़ुअल रिलेशनशिप। पहले इसे ही तुम क्लियर कर दो।


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12 जून 2011….


सुबह सुबह का वक़्त था… "खट खट खट"… अपस्यु ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने ऐमी खड़ी थी…. "ओह माय गॉड, ऐमी… वाउ"… अपस्यु के चेहरे पर खुशी और आश्चर्य के भाव साफ देखे जा सकते थे। ऐमी अपना सामान वहीं दरवाजे पर पटक दी और उछलकर अपस्यु के गले लगती…. "बहुत मिस की तुम्हे"… अपस्यु भी उसे अपने बाहों में समेटते हुए कहने लगा… "तुमने तो मुझे सरप्राइज ही कर दिया। नाचने को दिल कर रहा है।"

अपनी खुशियां जाहिर करते दोनों थोड़े देर तक गले लगे रहे। फिर ऐमी अलग होकर बाथरूम में चली गई फ्रेश होने, इधर जबतक अपस्यु नाश्ता बना चुका था। दोनों खाने कि टेबल पर साथ बैठे… "उम टेस्टी, क्या बनाया है सर खाने में, काफी लजीज है।"

अपस्यु::- दिख नहीं रहा है, फ्राइड आलू है।

ऐमी:- हां वो दिख रहा है लेकिन पहले तो कभी इतना टेस्टी नहीं लगा।

अपस्यु:- वो इसलिए क्योंकि पहले चीज के साथ फ्राई नहीं करता था। वैसे अचानक से मियामी (Miami, US) में क्या करने पहुंच गई, 18 जून को तो न्यूयॉर्क में तुम्हारे ग्रुप का शो है ना?

ऐमी:- उसकी बात मत करो, न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर ही डायरेक्टर के साथ झगड़ा हो गया और मै फ्लाइट पकड़कर इधर अा गई।

अपस्यु:- सबाश, वैसे झगड़ा हुआ किस बात पर था।

ऐमी:- इतनी डिटेल कौन पूछता है, ठीक से खाने भी नहीं दे रहे। मुझे बस यहां आना था सो मै अा गई।

अपस्यु:- अच्छा किया, वैसे भी मैं अब अकेला वापस नहीं जाऊंगा।

ऐमी खाना बीच में ही छोड़कर उठ गई और खुशी का इजहार करती वहीं उछलने लगी…. "सच में, वाउ, वाउ, वाउ। लेकिन ये तो गलत है अपस्यु, हमे बताया तक नहीं।

अपस्यु:- सोचा वहीं अाकर सरप्राइज दे दूं। भाई कैसा है?

ऐमी:- उस छछूंदर का नाम मत लो, मुझे बहुत तंग करता है।

अपस्यु:- हम्मम!

ऐमी:- बस, बस, बस .. इतनी गहरी सांसें लेकर अपनी फीलिंग दबाने की जरूरत नहीं है। काफी मस्त है और आज कल तो वो जिम्नास्टिक भी कर रहा है, वो भी युद्ध स्तर पर, तो काफी लचीला और फुर्तीला होते जा रहा है।

अपस्यु:- मै समझा नहीं?

ऐमी:- बुद्धू, मतलब वो मेरी फ्रेंड्स के बीच काफी मशहूर है, 3-4 गर्लफ्रेंड तो होगी ही लेकिन कुत्ता कुछ बताता नहीं है।

अपस्यु:- हाहाहा … और तुम्हारे कितने ब्वॉयफ्रैंड है।

ऐमी:- बस एक है, उसी से तो मिलने… मिलने नहीं मिलता आज कल…

अपस्यु:- पकड़ी गई हां। चलो अब पूरी कहानी बताओ…

ऐमी:- छिपाने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन तुम सवालों के पहाड़ खड़ा कर देते इसलिए मैं नहीं बताना चाह रही थी। फिलहाल मै एक चैन कि नींद लूंगी फिर आराम से शाम को सभी बातें बताऊंगी।

दिन के 1 बज रहे होंगे। अपस्यु अपना काम निपटाकर वापस पहुंचा था। जाकर देखा तो ऐमी अब भी सो रही थी। कुछ सोचते हुए उसने ऐमी का लैपटॉप निकला और उसे ऑन किया। सामने स्क्रीन पर पासवर्ड मांग रहा था और अपस्यु को पता था इसका पासवर्ड क्या होना चाहिए। 2 कोशिश और लैपटॉप खुल चुका था।

अब बस एक ही शंका थी वो भी ब्राउज़र खुलते ही दूर हो गई। एफबी पहले से लॉगिन था और अपस्यु फिर कुछ देर की छानबीन के बाद वहां भी पहुंचा, जिससे मिलने ऐमी पहुंची थी। 10 मिनट तक संदेशों का आदान प्रदान हुए, उसके पश्चात अपस्यु चैट को डिलीट करके, सबकुछ पहले जैसा वापस रख दिया।

शाम के तकरीबन 5 बजे ऐमी एक अच्छी नींद के बाद जाग रही थीं। फ्रेश होकर वो हॉल में पहुंची, जहां अपस्यु खुले बदन, नीचे लोअर पहन कर रस्सियां कूद रहा था। ऐमी को पहले के मुकाबले अपस्यु का बदन काफी आकर्षक लग रहा था। मेसोमोर्फ शरीर (mesomorph) जिसे किसी एथलीट के ढांचे में तैयार किया गया था। शरीर का आकार और उसका ढांचा अपस्यु को मनमोहक बना रहा था।

ऐमी उसके रूप आकर्षण में खींची हुई उसके साथ-साथ रस्सियां कूदने लगी। ऐमी उसके बदन को छूते हुए कहने लगी…. "काफी मेहनत कर रहे हो सर, सेक्सी बॉडी हां। देखकर मेरे होश उड़ रहे है।"

अपस्यु चुप-चाप अपनी रस्सियां कूदता रहा। ऐमी कुछ देर तक उसके साथ कूदती रही फिर उसकी सासें उखड़ने लगी और वो अाकर बैठ गई। कुछ देर बाद वो भी ऐमी के पास आकर बैठते हुए अपनी श्वास सामान्य करने लगा।

"इंप्रेसिव मिस्टर अपस्यु, 600 जंप की गिनती तो मैंने कर ली है।" ….. "कुल 3000 जंप 1000-1000 के 3 सेट सुबह शाम और रात।"…

"दोनों भाई एक जैसे ही हो, वैसे तुम्हारी यहां तो अनगिनत गर्लफ्रेंड होगी।"

अपस्यु:- और वो क्यों होगी भला…

ऐमी:- जब मै इतना अट्रैक्ट हो सकती हूं तो यहां की लड़कियां तो नोच डालती होंगी तुम्हे…

ऐमी अपनी बात कहकर जोड़-जोड़ से हंसने लगी। अपस्यु उसे हंसते हुए देखकर मुस्कुराने लगा। गम में लगातार रोती लड़की को यूं खुलकर हंसते देखने का अपना ही सुकून था।

दोनों 6 बजे के करीब शॉपिंग के लिए निकल रहे थे। ऐमी हल्के पीले रंग की शॉर्ट और उसपर टी शर्ट डाले हुई थी जो कंधे से पूरा खुला हुआ था। अपस्यु उसे देखते ही कहने लगा… "ये पहन कर अपने बॉयफ्रेंड पर बिजलियां गिराने जा रही है क्या?"

"खड़ूस मुझे देख कर ऐसा कह रहा है मतलब आज मै वाकई कमाल कि दिख रही हुं क्या?" .. और फिर से वही खिली सी मुस्कान को उसके चेहरे पर फ़ैल गई थी।

रात के तकरीबन 10 बजे ऐमी तैयार होकर हॉल में अाई। नीचे काले रंग की मिनी स्कर्ट, ऊपर व्हाइट कॉलर की टी-शर्ट और उसके ऊपर ब्लैक कलर की जैकेट। इन सब के अलावा जब वो इस परिधान के साथ आंखों पर हल्के पीले रंग की स्टाइलिश चस्मा लगा कर हॉल में अाई, अपस्यु खड़ा होकर उसे देखने लगा।

"क्यों होश उड़ गए ना।"… ऐमी अपने भृकुटी (eyebrow) चमकती हुई पूछने लगी।

अपस्यु उसके पास पहुंचकर उसके माथे को चूमते हुए उसे गले लगाते कहने लगा….. "मै बहुत खुश हूं, और हां तुम्हे ऐसे देखकर वाकई में मेरे होश उड़ गए। काफी प्यारी और खूबसूरत लग रही हो।"

ऐमी, अपने दोनो हाथ फैलाकर, अपने सिर को झुकाकर उसके तारीफों का अभिवादन की और अपने बॉयफ्रेंड से मिलने के लिए निकली। 10 बजे के करीब वो निकली और लगभग 10.30 बजे तक गुस्से में लाल-पीली होती हुई वो वापस अा रही थी। उसके पीछे-पीछे कोई लड़का भी चला अा रहा था। अपस्यु हॉल में ही बैठा हुआ था, ऐमी की हालत देख कर वो जोड़-जोड़ से हंसने लगा। वो आते ही सीधे अपने कमरे में घुस गई और उसके पीछे-पीछे वो लड़का भी अंदर जाने लगा…

"ओए खजूर, किधर जा रहा है।"… अपस्यु ने उसे रोकते हुए कहा..

लड़का:- Chill bro, she is my girlfriend.

अपस्यु, उसे ऊपर से नीचे तक देखा… "तू इंडियन है ना।

लड़का:- Yes bro

अपस्यु:- तू यहां जरा मेरे पास अा..

"Yo Bro" वो लड़का अपस्यु के पास आते हुए बोलने लगा। अपस्यु ने उसके बाल को पकड़ कर, उसके सर को गोल गोल घुमाते कहने लगा…. "साले निकम्मे, मै इधर बैठा हूं और तू उसके पीछे-पीछे उसके कमरे में जा रहा हैं। इतनी हिम्मत अाई कहां से अा गई बे।"

लड़का:- sorry bro, she misunderstood…

अपस्यु:- साले अंग्रेज, हिंदी ने बोल लेे.. वरना अभी सुताई कर दूंगा।

लड़का:- सॉरी ब्रो। वो थोड़ी सी मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई है। वहीं समझाने जा रहा था।

अपस्यु उसे धीमे हाथ का एक थप्पड मारते हुए…. "वो पूरी गीली होकर अाई है। अंदर कपड़े बदल रही होगी और तू साला उसके पीछे पीछे जा रहा है। चल यहां मुझे अपनी सफाई दे, मै उसे समझा दूंगा।

लड़का:- वो पागल हो गई है ब्रो।

फिर से एक थप्पड… "अबे तू मेरे सामने उसे पागल बोल रहा है, इतनी हिम्मत।"

लड़का:- you both are fucking freak. You asshole, motherfucker… go fuck yourself…

इतने में ऐमी अपने कपड़े बदल कर हॉल में पहुंच चुकी थी और इस प्रकार से जब वो गाली देती सुनी, नजर इधर-उधर दौड़ा कर देखने लगी। पास में ही फर्श साफ करने वाला डंडा रखा हुआ था। फिर क्या था वो लड़का गालियां दे ही रहा था कि ऐमी ने डंडा बरसाना शुरू कर दी। इतनी तेज उसके पीठ पर डंडे पड़े की वो छटपटा कर वहां से भागना ही सही समझा।

ऐमी गुस्से में डंडा वहीं फेककर, वो अपना लैपटॉप निकली और दूसरी कोई आईडी ओपन करके अपना लास्ट लॉगिन टाइम देखने लगी। जैसे ही उसने अपना लास्ट लॉगिन टाइम देखी, वहीं डंडा लेकर अपस्यु के पीछे दौड़ गई।

10 मिनट के भाग दौड़ के बाद अपस्यु हॉल में अाकर सोफे पर बैठ गया और ऐमी उसे मारने लगी। वो ऐमी को देख कर जोड़-जोड़ से हंस रहा था और ऐमी मारते-मारते थककर वहीं बैठ गई..… "कितनी दूर से आई थी मै अपने इंटरनेशनल ब्वॉयफ्रैंड से मिलने। सब बर्बाद कार दिया तुमने अपस्यु।"

अपस्यु उसकी बात सुनकर फिर से जोड़-जोड़ से हसने लगा। उसे हंसते देखकर ऐमी की भी हंसी निकल आईं। ऐमी हंसती हुई, उसके सीने से अपने सर को टीकाकर अपनी आखें मूंद ली और अपस्यु उसके बालों में हाथ डाल कर उसके सर को हल्का हल्का दबाने लगा…. "क्या मैसेज किया था उस खजूर को"

अपस्यु:- ज्यादा नहीं बस इतना ही लिखा था…. I love pull side party, specially someone lift me and through in.

ऐमी, थोड़ी सिकुरकर अपस्यु के और उपर आती हुई… "तभी उस गधे ने मुझे सीधा पुल में फेक दिया। सब लोग हंस रहे थे।"

अपस्यु:- तुझे वहां कोई देसी लड़का नहीं मिला जो इन विदेशियों को पकड़ने चली आईं। और पसंद भी आया तो मियामी का ही लड़का, इतने बड़े देश में कहीं और ढूंढ लेती अपना इंटरनेशनल बॉयफ्रेंड।

ऐमी:- ना मियामी में ही ढूंढना था, तुम्हे देखे साल भर से ऊपर जो हो चुका था।

अपस्यु वहीं सोफे पर बैठे उसके सर पर धीरे-धीरे हाथ फेरता रहा और ऐमी सुकून से सो गई। सुबह जब उसकी आंख खुली तब अपस्यु कहीं बाहर निकल रहा था। ऐमी उसे पीछे से टोकती हुई पूछने लगी….. "मुझे छोड़ कर कहां चल दिए सर।"

अपस्यु:- यहां से वापस निकलने की तैयारी ऐमी… बस एक दो जगह बताना रह गया है कि आज से मै नहीं आऊंगा।

ऐमी:- कितना वक़्त लगेगा।

अपस्यु:- मुश्किल से 1 घंटा लगना है ऐमी, जबतक तुम नहा धोकर आराम से नस्ता का लुफ्त उठाव तबतक मै काम ख़त्म करके आया।

सुबह के 10 बज रहे थे, ऐमी किचेन में बर्तनों को साफ करके रख रही थी। अपस्यु उसे पीछे के गले लगाते हुए, उसके गालों पर किस्स करते हुए कहने लगा..… "इस काम को तुम्हे करने की जरूरत नहीं"

ऐमी घूमकर सीधी हो गई और किचेन सलब पर अपने हाथ टीका कर अपस्यु को ध्यान से देखने लगी… "क्या हुआ, ऐसे क्या देख रही हो"… अपस्यु ने पूछा।

ऐमी:- इतने साल हो गए तुम्हे देखते हुए, परिस्थिति कोई भी हो तुम्हारे चेहरे की मुस्कान कभी गई नहीं। ना कहो कुछ चंद दिनों को छोड़कर।

अपस्यु:- हाहाहा.. तुम भी ना ऐमी, मेरे चेहरे की बनावट ही ऐसी है।

ऐमी:- किस्स मी..

अपस्यु:- क्या ?

ऐमी:- आई सैड किस्स मी..

अपस्यु थोड़ा आगे बढ़कर उसके गालों को चूम कर अलग हो गया… ऐमी ने फिर से दोबारा कहा… "किस्स मी, और इस बार बिल्कुल वैसा होना चाहिए जैसा हमने अपनी पहली मूवी में देखा था।"

अपस्यु:- मज़ाक कर रही हो क्या?

ऐमी आगे बढ़ी और एरिया ऊंची करती हुई, उसने अपस्यु के होंठ से होंठ लगाकर चूमती हुई अलग हुई। अपस्यु का हाथ पकड़ कर उसने अपने सीने से लगाया… "मेहसूस करो इन बढ़ी धड़कनों को"… फिर उसका हाथ, उसी के सीने पर रखती… "तुम्हारा दिल भी ठीक वैसे ही धड़क रहा है कि नहीं देखो।"

अपस्यु:- तुम समझना क्या चाह रही हो ऐमी?

ऐमी:- यहीं की कुछ इंसानी स्वभाव भी होता है… इसलिए कभी-कभी एन्जॉय भी करना चाहिए। हर वक़्त ये मुस्कान वाला फेस मास्क तुम्हारे अंदर डिप्रेशन पैदा कर देगा।

Update:-43 (B)



ऐमी आगे बढ़ी और एरिया ऊंची करती हुई, उसने अपस्यु के होंठ से होंठ लगाकर चूमती हुई अलग हुई। अपस्यु का हाथ पकड़ कर उसने अपने सीने से लगाया… "मेहसूस करो इन बढ़ी धड़कनों को"… फिर उसका हाथ, उसी के सीने पर रखती… "तुम्हारा दिल भी ठीक वैसे ही धड़क रहा है कि नहीं देखो।"

अपस्यु:- तुम समझना क्या चाह रही हो ऐमी?

ऐमी:- यहीं की कुछ इंसानी स्वभाव भी होता है… इसलिए कभी-कभी एन्जॉय भी करना चाहिए। हर वक़्त ये मुस्कान वाला फेस मास्क तुम्हारे अंदर डिप्रेशन पैदा कर देगा।

अपस्यु:- और तुम्हे किसने कह दिया कि मै एन्जॉय नहीं करता। बस मुझे ये गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड सब फालतू की बातें लगती है।

ऐमी:- और सेक्स

अपस्यु:- इस पर तो कभी ख्याल भी नहीं गया।

ऐमी:- अच्छा, सच-सच बताना मियामी में तुम्हारा किसी लड़की के साथ फिजिकल रिलेशन रहा है क्या?

अपस्यु:- बिल्कुल भी नहीं। जब मुझे किसी लड़की में इंट्रेस्ट ही नहीं, तो रीलनशन तो बहुत दूर की बात है।

ऐमी:- पक्का यहीं कारण होगा, मुझे यकीन है।

अपस्यु:- खुद से क्या बोल रही हो, मुझे भी बताओ।

ऐमी:- सर अपस्यु क्या आप बताएंगे की मियामी बीच आप कितनी बार गए हैं, जिसका व्यू आप के खिड़की से भी मिल रहा है। यहां के पब में कितनी बार गए हैं, डिस्को कितनी बार गए और कितनी पार्टियां की है?

अपस्यु:- एक यही काम बचा है क्या करने को।

ऐमी:- ओह हो तो ऐसी बातें है। कोई नहीं, इंसानी स्वभाव के नए रूप से आप को आज जरा दर्शन करवाया जाए चलिए, चलते है।

अपस्यु:- कहां जा रहे है हम।

ऐमी:- तैयार हो जाओ हम बीच जा रहे हैं। और सुनो अंदर अंडरवियर मत डालना।

अपस्यु:- हट ये कैसी शर्त है।

ऐमी:- मुझ पर यकीन है ना…

अपस्यु:- हां..

ऐमी:- ठीक है फिर वैसा ही करो जैसा मैंने कहा।

बीच पर जाने के हिसाब से दोनों ने हल्के-फुल्के कपड़े अपने ऊपर डाले और निकल लिए। अपस्यु, ऐमी की बात मानते हुए नीचे अंडरवीयर नहीं पहना था। दोनों पहुंचे बीच पर। वहां के बार से दोनों ने एक-एक बियर ली और बीच पर घूमने लगे। यूं तो अपस्यु का ध्यान बहुत ही केंद्रित हुआ करता है और कोई भी चीज उसे भ्रमा नहीं सकती थी।

लेकिन साथ चल रही ऐमी की कमेंट्री पर जब अपस्यु मियामी बीच का नजारा देखता तो उसके अंदर भी भावनाएं जागृत हो जाती। अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे आए की अपस्यु किसी तरह झुक कर और अपने जेब में हाथ डालकर वहां से तेजी के साथ भागा। उसे भागते देख ऐमी को जोड़-जोड़ से हंसी आने लगी और वो अपस्यु को चिढाती हुई कहने लगी…. "अरे कहां भाग लिए… थरक अरमान जाग ही गए ना।"…

सुबह के इस वाक्ए के बाद फिर दोनों के बीच इस विषय में कोई चर्चा नहीं हुई। दोनों किसी गहरे दोस्त की तरह पूरा दिन बात करते और घूमते-फिरते निकाल दिए। वैसे भी, जब भी दोनों साथ होते तब उनके पास विषयों कि कमी नहीं थी बात करने के लिए।

रात के 10 बज रहे होंगे, ऐमी और अपस्यु एक साथ बिस्तर पर लेटे हुए थे। दोनों चीत परे छत को देखते हुए काफी समय से बात किए जा रहे थे। उसी बीच अपस्यु धीमे से कहा…. "सुबह की वो किस्स"….

ऐमी, अपस्यु के ओर करवट लेती उसके चेहरे को देखती हुई पूछने लगी… "सुबह की वो किस्स क्या अपस्यु"

"कोई शब्द नहीं मिल रहे की क्या कहूं, मै अपना अनुभव साझा नहीं कर सकता लेकिन अलग ही वो फीलिंग थी"… अपस्यु भी करवट लेते हुए ऐमी के ओर चेहरा घुमा कर कहने लगा। दोनों की नजरों से नजरें टकरा रही थी, होंठ करीब आते चले गए और आखें बंद होती चली गई।

दोनों एक दूसरे को चूमते हुए तेज-तेज सासें लेे रहे थे। हाथ एक-दूसरे के बदन पर रेंग रही थी और दोनों उस चुम्बन में डूबते चले जा रहे थे। बेहताशा चूमते हुए दोनों की सासें उखाड़ने लगी थी, दोनों अलग हुए तेज-तेज श्वास अपने अंदर भरते, उखड़ी श्वासों को सामान्य करने में लग गए। दोनों की नजरें फिर एक दूसरे से मिली और ऐमी की खिल- खिलाती हंसी, तेज चलती शवसों के साथ आने लगी और एक बार फिर वो अपस्यु के होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगी।

दोनों चूमते हुए बैठ गए और चूमते हुए एक दूसरे को स्मूच करने लगे। दोनों अपने इस लंबे चले चुम्बन को एक बार फिर तोड़ते हुए अलग हुए, और बड़ी ही तेजी के साथ एक दूसरे की टी शर्ट को निकाल कर फेंक दिए। ऐमी, अपस्यु की आखों में देखती हुई, उसके हाथ को अपने स्तनों के ऊपर रख कर मस्ती में अपने होंठ को दातों तले दबा ली।

स्तन को हाथ में लेने का ये पहला अनुभव था और काफी रोमांचित करने वाला अनुभव था। अपने दोनो हाथों का दबाव स्तनों पर धीरे-धीरे बढ़ाते हुए अपस्यु एक बार फिर, ऐमी के होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए उसे लिटा दिया।

लेटने के साथ ही अपस्यु ने ऐमी के शॉर्ट का बटन खोला। फिर अपने हाथों से उसका चेन को नीचे करते हुए शोर्ट्स को पैन्टी के साथ खिसकते हुए घुटनों के नीचे तक लाते हुए उसे निकाल दिया और खड़े होकर अपने पैंट उतार कर वापस ऐमी के ऊपर अा गया।

दोनों की श्वास तेज-तेज चल रही थी। होंठ से होंठ जुड़े हुए थे। अपस्यु अपना एक हाथ से उसके स्तन को पूरा पकड़े उसे मसल रहा था और दूसरा हाथ की उंगलियां ऐमी के हाथों की उंगलियों में फसा कर सर के ऊपर रखा था। इस स्तिथि में, लिंग का योनि के ऊपर पड़ने वाला स्पर्श, वासना की अलग उन्माद पैदा कर रही थी।

ऐमी अपने हाथ नीचे ले जाकर लिंग को अपने हाथों में ली। ये उसके लिए भी पहला अनुभव था और वो उत्तेजित होती हुई लिंग को योनि के ऊपर लाकर बड़ी तेजी से उसे ऊपर-ऊपर रगड़ने लगी। दोनों की श्वास काफी तेज और उत्तेजना चरम पर थी। लिंग को अपने योनि के प्रवेश पटल के थोड़ा अंदर डालती उसने चुम्बन को तोड़ते हुए अपस्यु के कंधे पर एक लव बाइट दी और उसके कानों में उखड़ी श्वास के साथ कहने लगी…. "जरा धीमे"

इतना कहकर ऐमी ने अपस्यु के कान के नीचे हिस्से को अपने मुंह में लेकर उसे गीला करती हुई चूमने लगी। इधर अपस्यु इंच दर इंच, धीरे-धीरे लिंग को योनि के अंदर डालते जा रहा था। हल्के दर्द के तैरते उत्तेजना में ऐमी के होटों के "आह्ह" निकल गई। धीरे-धीरे माहौल और भी ज्यादा उत्तेजित होता चला गया। चढ़ती श्वास के साथ धीमी निकलती सिसकारियां चारो ओर मादक माहौल बना रही थी। दोनों पसीने से तर हो चुके थे और एक आखरी झटके के साथ दोनों ने पहली बार अपने संभोग के चरम का भी आनंद लिया।

बदन बिल्कुल हल्का पड़ चुका था। आस-पास लेटकर दोनों श्वास को सामान्य करते, एक दूसरे की आंखों में देखकर हंसने लगे। … "ये अनुभव बिल्कुल रोमांचित करने वाला था। बहुत मज़ा आया।".. अपस्यु ऐमी की आखों में आखें डाल कर बोलने लगा। ऐमी भी प्रतिक्रिया ने मुस्कुराती हुई कहने लगी…. "मुझे भी बहुत मज़ा आया। ऐसा लग रहा है पूरी हो गई मै आज।"

अपस्यु उसे अपने आलिंगन में भरकर, प्यार से उसके होंठ को चूमा और अपने आखें मूंद ली। ऐमी भी उसके बाहों मै अपना सर डाले सो गई। आधी रात के करीब ऐमी की आखें खुल गई। वो अपस्यु को एक नजर देखी और अपने कपड़े समेटकर वहां से अपने कमरे में चली गई।

अगली सुबह फिर से सामान्य थी। ना तो उसमे बीती रात कि कोई चर्चा और ना ही कोई भावनात्मक सोच। फिर से वहीं घंटो बैठ कर बातें, घूमना-फिरना और दोनों की खिल- खिलाती हंसी।

17 जून रात के 8.30 बजे, ऐमी किचेन में खड़ी सलाद काट रही थी। अपस्यु पीछे से उससे चिपकता हुआ उसके कानों के नीचे किस्स किया। अपने दोनो हाथ उसके स्ट्रिप के अंदर डालकर, उसके स्तन को अपने हाथों से मसलते हुए अपने हाथ धीरे धीरे चला रहा था…. "आह.. सीईईईईईईईईईईईई … मेरे स्तनों से खेलना बंद करोगे।" .... अपस्यु अपने हाथ बाहर निकालकर एक कदम पीछे हट गया। ऐमी घूम कर अपस्यु के सामने हुई और शरारती मुस्कान दिखाती, उंगली के इशारे से अपने पास बुलाई।

अपस्यु अपने कदम बढ़ाता हुआ उसके पास पहुंचा और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगे। श्वास उखड़ी और हाथ पूरे बदन पर फिर रहे थे।वासना अपने पुरजोर पर थी और इसी क्रम मै ऐमी नीचे बैठकर, अपस्यु के लोअर को नीचे खिसका कर उसके लिंग को अपने हाथों में पकड़ ली। पहले तो उसने लिंग को अपने मुट्ठी में पकड़कर उसे आगे-पीछे, मस्ती में हिलाने लगी, फिर अपने मुंह में लेकर उत्तेजना से चूसने लगी।

अपस्यु की सासें पूर्ण रूप से चढ़ी हुई थी और उत्तेजना ऐसी हावी थी कि वो किचेन स्लैब को पकड़ कर अपनी आखें मूंद चुका था। कुछ ही पल बाद उसने ऐमी को बालों से पकड़ कर खड़ा किया और उसके होंठ से होंठ लगाकर उसके जीभ को चूसने लगा।

जल्द ही उसने ऐमी को कमर से पकड़ कर उठाया और किचेन स्लैब पर बिठाते हुए, उसके लोअर को खींच कर नीचे कर दिया और दोनों पाऊं को फैला कर योनि के बीच अपना सिर डाल दिया। वो योनि के किनारे से जीभ का पूरा स्पर्श देते हुए अपने जीभ को पूरा अन्दर तक डाल दिया।

जैसे ही अपस्यु जीभ से योनि के साथ खेलना शुरू किया, ऐमी के पूरे बदन में सुरसुरी दौड़ गई। वो अपस्यु के बालों को भींचती हुई, लंबी-लंबी सिसकारियां भड़ने लगी। कुछ ही देर में उसका बदन झटके खाने लगा। वो अपस्यु के बाल को खींचती उसके चेहरे को अपने चेहरे के करीब लेकर अाई। उसके होंठ को अपने दातों तले दबा कर काटती हुई उसे आखों से आगे बढ़ने का इशारा करने लगीं।

वो जिस्मों में उत्तेजना और जोश के उन झटकों का एहसास। हर झटके के साथ दोनों अलग ही रोमांच पर होते और पूरा बदन हिल जाता। दोनों अपने कामुक अवस्था का पूर्ण रोमांच उठाकर एक दूसरे से अलग हुए।

अगली सुबह दोनों में पहली बार इस विषय को लेकर बात हो रही थी। वो भी तब जब अपस्यु को लगा की "हम अपनी वासना में कुछ गलत तो नहीं कर रहे" इसलिए वो इस बदली परिस्थिति को रिश्ते का नाम देना चाहता था।

वहीं ऐमी अपने विचारों में स्पष्ट और उसकी सोच साफ थी।…. "कुछ शारीरिक जरूरतें और मन के अंदर छिपी वासना भी होती है जो जिस्म के भड़काव को स्थिर करती है। लोग इसे अफेयर का नाम देकर करते हैं। फिर ये अफेयर एक ही वक़्त में एक के साथ हो या अनेक के साथ, या फिर बदलते समय के साथ उनके पार्टनर बदल जाए। रिश्ते का नाम देकर भावना में तो किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं होता, रहेगी शारीरिक भूख ही और उसे मिटाना लक्ष्य। तो क्यों जरूरी है इस इसे कोई नाम देना। जिस वक़्त हमे अपना कभी जीवन साथी मिल जाए तो कम से कम हमे ब्रेकअप तो नहीं करना होगा।


अपस्यु, मुस्कुराते हुए उसके होटों को चूमते…. "थैंक्स, मैं थोड़ा बेचैन सा था कि कहीं छनिक सुख के लिए मै तुम्हे खो ना दू।"

ऐमी:- ऐसा भी होगा क्या इस जीवन में।

अपस्यु:- वो तो पता नहीं, लेकिन अब से ये तय रहा।

ऐमी:- क्या?

अपस्यु:- या तो कोई हमे ऐसा प्यार करने वाला मिल जाए जो हमारे रिश्ते को समझ सके और परख सके नहीं तो जब किसी अंजान से शादी करनी है तो हम आपस में बुरे है क्या?

इस बार ऐमी अपस्यु के होंठ चूमती…. वाउ, ये मुझे पसंद आया। लेकिन तुम्हे कोई भी प्यार करने वाली मिले, लेकिन मै तुम से लिपटना और तुम्हे चूमना नहीं छोड़ सकती, क्योंकि तुमसे खुशी के इजहार करते वक़्त मुझे भी पता ना मै तुम्हे कब चूम लूं।

अपस्यु:- ये तो मुझे भी पता है। सो आज से हम कैजुअल रीलेशन में रहेंगे।

ऐमी:- कैजुअल रिलेशन !!! ये कैजुअल रिलेशन क्या होता है ?
Update:-43 (C)






इस बार ऐमी अपस्यु के होंठ चूमती…. वाउ, ये मुझे पसंद आया। लेकिन तुम्हे कोई भी प्यार करने वाली मिले, लेकिन मै तुम से लिपटना और तुम्हे चूमना नहीं छोड़ सकती, क्योंकि तुमसे खुशी के इजहार करते वक़्त मुझे भी पता ना मै तुम्हे कब चूम लूं।

अपस्यु:- ये तो मुझे भी पता है। सो आज से हम कैजुअल रीलेशन में रहेंगे।

ऐमी:- कैजुअल रिलेशन !!! ये कैजुअल रिलेशन क्या होता है ?

अपस्यु:- ऐसा रिलेशन जिसमे सच्चा चाहनेवाला या चाहनेवाली मिलने पर ब्रेकअप ना हो बस हम अपने दायरे कायम कर ले।

एक रिश्ता जो दोनों में उत्तेजना के कारण कायम हुए, और दूसरा रिश्ता जो लंबे वक़्त से इनका चला अा रहा था। दोनों रिश्तों के बीच की कड़ी को इन लोगों ने कैजुअल रिलेशन का नाम दिया। क्योंकि दिलों के बीच प्रेमी-प्रेमिका की भावनाएं थी नहीं, और गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनना नहीं चाहते थे क्योंकि ब्रेकअप इन्हे चाहिए था नहीं।

खैर वक़्त अपने रफ्तार से ही चल रहा था। ऐमी और अपस्यु बिल्कुल पहले कि तरह ही अपना रिश्ता आगे बढ़ा रहे थे, एक गहरे दोस्त की भांति जो हर पल साथ निभाता चला जा रहा था। दोनों के बीच हुए फिजिकल रिलेशन के कारण इनके इस रिश्ते में रत्ती भर का भी बदलाव नहीं आया और ना ही ये कभी किसी रात के हुए सेक्स को सुबह चर्चा करते।

20 जून 2011…. अपस्यु और ऐमी दोनों साथ में भारत वापसी कर रहे थे। फ्लाइट टेक ऑफ किए लगभग 3 घंटे हो गए थे। ऐमी किसी गहरे ख्यालों में डूबी हुई थी…. "क्या हुआ अवनी को, आज इस प्रकार इतनी खामोश क्यों है।"

ऐमी फीकी मुस्कान अपने चेहरे पर लाती हुई कहने लगी…. "क्यों चिढ़ा रहे हो अपस्यु।"

अपस्यु:- अगर तुम्हे नहीं चिढ़ना है तो जरा बताओ कौन सी चिंता खाए जा रही है।

ऐमी, अपस्यु के ओर देखती गहरी श्वास ली और कहने लगी…. "किसी प्रकार की चिंता नहीं है, बस कुछ बातें दिमाग़ में अा रही थी, उसी बारे में सोच रही थी।

अपस्यु:- कौन सी बातें ऐमी।….

ऐमी…..

"जानते हो सर एक वक़्त था जब तुमने भी मौतें देखी और मैंने भी मौते देखी। देखा जाए तो मेरे सर पर मेरे डैड का हाथ था लेकिन तुम्हारे सर पर, उस विषय पर ना ही बात की जाए तो अच्छा है……. उस वक़्त हम सबकी दुनिया उजड़ी थी। मेरे पापा शराब में डूब गए थे, मै और आरव पूर्णतः सदमे में थे। कई रातों तक हम दोनों को तुमने अपने गोद में सुलाया था। कई बार जब रातों को मेरी नींद खुलती, तब तुम्हे वैसे ही बैठे-बैठे सोते हुए भी देखा है मैंने।

तुम्हारा तो कोई रिश्तेदार भी नहीं थे, या थे भी तो कभी सामने नहीं आए किंतु मेरे तो थे। कोई 2 दिन के लिए रुकते, तो पूछा करते थे ये लड़का कौन है जो हर वक्त अवनी के पास रहता है। उन्हें वो छोटी सी लड़की नहीं दिखती थी, जो सदमे में थी। बस सबको वो अंजान लड़का ही दिखता था। कोई दस दिन तक रुकता तो तुमसे नौकर की तरह काम करवाता। लेकिन किसी को भी यह नहीं दिखता की एक लड़का जो लगभग मेरी उम्र का था, वो हम दोनों बाप बेटी और अपने भाई का सहारा था। लोग आते रहे, तुम्हे ताने मारते रहे। तुम सबकी बातों को सुनकर भी अनसुना करते रहे, चेहरे पर वही चिर-परिचित मुस्कान।

खुद इतने दर्द में होते हुए भी हमे संभला, उस दर्द और सदमे से टूटे लोगों को उबड़ा। सर झुक जाता है सर.. आप के आगे ये सर झुक जाता है। अवनी को संभालने तो कोई रिश्तेदार नहीं आया लेकिन अवनी के साथ ये कौन लड़का है कह कह कर इस नाम से ही नफरत करवा दी उन लोगो ने।

अपस्यु:- बस रे बाबा बस। यूं समझ लो कि ज़िन्दगी एक साजिश है और आने वाला वक़्त उसका सस्पेंस। बीती बातें किसी कहानी की तरह होती है जिसमें दर्द, प्यार और ढेर सारे ड्रामा होते है। उन बीती कहानी को कभी कभी पढ़ लिया करो ताकि उनकी यादें धुंधली ना हो और ध्यान पूरा आने वाले वक़्त पर लगाओ। क्योंकि यदि हम अतीत में खोए रहे तो पता ना ज़िन्दगी कौन सी साजिश रच कर किस तरह का नया सस्पेंस हमारे सामने खोल दे। ये तो हो गई तुम्हारे उन ख्यालों का जवाब जिसमे तुम जबरदस्ती डूब रही थी लेकिन अब ये बात बताओ कि मुख्य मुद्दा क्या है, जो इतना सोचने पर तुम मजबुर हो गई।

ऐमी अपने चेहरे पर मुस्कान लाती…. चिंता सिर्फ इतनी है सर, एक लड़का उस लड़की से भी सच्चा प्यार कर लेता है जिसके 3-4 ब्वॉयफ्रैंड पहले से रहे हो। एक लड़के को इस बात से भी बहुत कम आपत्ति होती है कि उसकी लवर का कोई सच्चा दोस्त एक लड़का है। वो लड़का अपने प्रियसी को पूरे दिल से समझता है और उसके समझाए रिश्ते को वो पूरी ईमानदारी से निभाता है। लेकिन एक लड़की के साथ इसका उलट होता है। वो हर बात समझकर भी समझना नहीं चाहती। उसे पहले से यदि पता हो की उसके लवर का किसी लड़की के साथ ब्रेकअप हुआ है और वो किसी अन्य लड़की को देख भी ले, तो भी घूम फिर कर मुद्दा वही बनता है.. "तुम्हारी दूसरी लड़कियों के साथ चक्कर है।"… कितनी भी चाहने वाली लड़की क्यों ना मिले उसे अपने रिश्ते में कोई दूसरी ऐसी लड़की नहीं चाहिए जो उसके लवर टच भी करे। ऐसा नहीं को वो सच्चा प्रेम नहीं करती बस हम लड़कियों की भावना ही कुछ ऐसी होती है कि इन छोटी छोटी बातों से हर्ट कर जाती है।

"बस यही बातें खाए जा रही है, यदि तुम्हे कोई प्यार करने वाली मिल गई तो दायरे में फस कर कहीं मेरी कहानी सिसक कर ना रह जाए।"


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साल 2000 … नए मिलेनियम की शुरवात हो रही थी। बहुत ज्यादा तो याद नहीं उस वक़्त का, लेकिन हां लोग काफी हर्षित थे और चारो ओर न्यू ईयर से पहले की तैयारियां जोरों पर थी। मेरी प्यारी मां चाहती थी कि इस बार की मिलेनियम, हम सब एक साथ भारत में मनाएं।

मां की बात को मानकर हमारा पूरा परिवार यहां भारत आया हुआ था। पूरा एक महीना सब लोग रुके थे। मेरे माता पिता गुरु निशी के बहुत बड़े अनुयाई थे वो लोग अक्सर उनसे मिलने भारत आया करते थे। ये लम्हा मै कभी नहीं भूल सकता जब मेरे माता-पिता आश्रम पहुंचे थे और गुरुजी ने उनसे एक बेटा मांग लिया था।

मेरी मां राजी नहीं हुई, लेकिन पापा के समझाने पर वो मुझे यहीं छोड़ कर चले गए। साल 2000 के गर्मियों की बात होगी जब पहली बार ऐमी नैनीताल अपने पापा के साथ गुरुजी के आश्रम अाई थी। मै उस वक़्त तन्हा अकेला सा रहता था और तभी पहली बार मैंने ऐमी को देखा था। बहुत ही जिद्दी और हर बात पर नखरे करने वाली थी, जैसा मै अपने माता पिता के पास करता था।

लेकिन ये हमारी पहली मुलाकात नहीं थी। वो 2002 की गर्मियों की छुट्टी चल रही थी जब ऐमी यहां आश्रम अाई हुई थी। मै गुरु से छिपकर पहाड़ों पर चढ़कर, उजला और नीले रंग का बेहद लुभावना फूल तोड़ रहा था। ऐमी ने मुझे उस पहाड़ पर चढ़े देख लिया और वो इतनी तेज चिल्लाई की मै ऊपर से नीचे गिर गया।

इस झाड़ में फंसा, उस पत्थर से टकराया और आंख जब खुली तब दिए की रौशनी में पहली बार उसे मैंने अपने पास बैठे देखा। मेरी जब आंख खुली और मैंने कर्रहा, तब अवनी, हां उस वक़्त तक तो अवनी ही थी। तो जब मै कर्ररहा रहा था, तब अवनी को पहली बार सुना था…. "सुनो तुम जल्दी से वो फूल मुझे दे दो।"… हाहाहा.. तभी मैंने कहा था उस निशान कि अपनी एक फनी कहानी है।

यहां से हमारी बातें शुरू हुई। हालांकि बातें वही करती थी मै बस उसे सुनता रहता और "हां हूं" में जवाब दिया करता था। कभी-कभी तो ऐसा होता था कि वो मुझ से सवाल पूछती और मै उसपर भी "हां हूं" करता रहता। वो क्या हैं ना ऐमी 4 बातें बोला करती थी जिसमे से मुझे एक दो शब्द भी समझ में आ जाए तो बहुत बड़ी बात थी।

हर साल वो अपने छुट्टियों में आती और हम दोनों लगभग साथ ही रहा करते थे। ऐमी के साथ रहने का मुझे एक फायदा होता था, मुझे दिल्ली की भाषा सीखने के लिए मिल जाती। कमाल की बात तो ये थी कि उसी ने मुझे गाली देना भी सिखाया।

जैसा तुमने कहा था ना आज से हम दोस्त, या हम दोनों को प्यार है। शायद ही ऐसे शब्द हमने इस्तमाल किए होंगे कभी। इतने छोटे से मिल रहे थे और इतने लंबे समय से मिल रहे थे कि कभी इन बातों का ध्यान भी नहीं रहा।

2004 या 05 की बात है, ऐमी लैपटॉप का कीड़ा थी। तब मैंने मां से बोलकर एक लैपटॉप पैरिश से मंगवाया था। हुआ ये कि, जब मै उसे रैप किया हुआ लैपटॉप दे रहा था तब उसने भी मुझे लैपटॉप ही गिफ्ट किया था। हंसी तो तब अा गई जब दोनों एक ही मॉडल के लैपटॉप गिफ्ट कर रहे थे।

उन्हीं छुट्टियों में हम दोनों ने लैपटॉप पर साथ मे फिल्म देखा था। फिल्म के अंदर किसिंग सीन को देखकर हमने भी तय किया कि ये करके देखते है। हम दोनों ने एक दूसरे को किस्स किया। वो यक करती हुई मुझ से अलग हुई थी और कहने लगी… "कितना गन्दा था ये, कैसे करते हैं ये लोग फिल्म में।"

बस ऐसे ही हमारा वक़्त कट रहा था। कुछ खट्टी मीठी यादें हमने साथ में संजोए थे उन बचपन के, फिर शायद बचपन ही खत्म हो गया था। एक हादसे में हम दोनों की मां और ऐमी का छोटा भाई मर गया। ये 2007 की बात थी।

2007 से 2009 तक मै और ऐमी एक साथ सिन्हा सर के यहां ही रहे। चूंकि मै शुरू से ही अपने मां से दूर रहा था, शायद यह एक वजह थी की इस हादसे का असर मुझ पर से जल्दी ख़त्म हो गया, लेकिन आरव और ऐमी को उबरने में काफी समय लग गया। खैर वो दौड़ भी खत्म हो गया। हसी मज़ाक हमारे बीच फिर से शुरू होने लगी थी।

2009 के मध्य से लेकर शायद जून 2011 तक मै मियामी में रहा। फिर वापस भारत आया और अपने अध्यन के लिए भारतवर्ष के अन्य हिस्सों में मै भटकता रहा। इतने वर्षों में संपर्क के नाम पर मैंने बहुत कम ही उससे बात की होगी लेकिन बीच बीच में हम मिलते रहते थे। मै कहीं भी रहूं ऐमी को पता रहता था। गले लगाना और एक दूसरे को चूमना ये हमारे खुशी के इजहार करने का तरीका सा बन गया।

इन्हीं सब बातों को मध्य नजर रखते हुए हमने अपने रिश्ते को कैजुअल रिलेशन का नाम दिया। जब एक दूसरे के पास नहीं होते तो याद नहीं करते और जब पास होते है तो दिन कब बातों में निकल जाती पता भी नहीं चलता। उम्मीद है तुम हमारे रिश्ते को समझ चुकी होगी और शायद ये भी समझ में अा चुका होगा कि कैजुअल रिलेशन क्या होता है।

तुम कुछ निष्कर्ष पर पहुंचो, उससे पहले मै तुम्हे एक बात बता दूं। मै लगभग २-३ महीने से दिल्ली में हूं लेकिन उसे पता होने के बावजूद, ना तो वो मुझसे मिलने की कोशिश की और ना ही उसने फोन किया। इतने दिनों में केवल 2 मिनट की मुलाकात कुछ दिन पहले हुई थी, वो भी तब जब सिन्हा सर को मै कुछ जरूरी केस पेपर देने गया था। उसके बाद कल रात मुलाकात हुई थी। वो भी मुलाकात नहीं होती लेकिन मै और सिन्हा सर पिए हुए थे, तब वो अाई थी। और फिर आज सुबह मुलाकात हुई, जब मुझे लगा कि तुमसे किसी भी तरह का रिश्ता आगे बढ़ाने से पहले, मै तुम्हे अपने और ऐमी के रिश्ते के बीच की सच्चाई बता दूं।
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अपश्यु ने साची को अपने और एमी के रिश्ते की कैसे शुरुआत हुई कैसे kiss और sex हुआ अब देखते हैं इनके इस रिश्ते को साची समझ पाती है या नही
 

B2.

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Update-1

मैं पहली बार उसे देख रहा था। दिल में कुछ मीठा एहसास और मन में कतुहल सी थी। मेरा दिल बेईमान, नजरें उसपर से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी और मै बस उसे ही घुरे जा रहा था। शायद उसने ने भी मुझे पकड़ लिया लेकिन वो सामान्य रूप से ही अपना काम करती रही और काम ख़त्म होने के बाद चली गई।

उसके जाने के बाद भी, पता नहीं मैं कितनी देर तक उसे देखने की आश लगाए उस बालकनी में खड़ा रहा। फिर पीछे से आवाज़ आई, "चलो अपस्यु देर हो गई तो कैंटीन बंद हो जाएगी"

उस आवाज़ ने जैसे मेरा ध्यान भंग कर दिया हो, वहां से मै लौट तो आया किंतु मेरा हृदय वहीं रह गया। अब तो जैसे वो बालकनी ही मेरा पूरा संसार था। उसके देखने कि आश लिए मैं बालकनी में ही उसका इंतजार करता रहता। कभी एक क्षण तो कभी चंद मिनट कि वो झलकियां दिखा कर चली जाती।

मेरे बदले व्यव्हार को मेरा कमरा साझा करने वाला मेरा जुड़वा भाई आरव भी गौर कर रहा था किंतु वो भी अब तक इस मामले में मुझ से खुल कर बात नहीं कर रहा था। शायद उसे भी ज्ञात था कि इस उम्र का तकाजा ही यही है।

लगभग महीना समाप्त होने को आया था और मै आज भी बालकनी से चिपका उसी के दीदार में लगातार वहीं इंतजार करता रहता। अंत में एक दिन आरव ने ही अपनी चुप्पी तोड़ी…

"अपस्यु माजरा क्या है? घंटो यहीं बैठे रहते हो"

मैं (अपस्यु)- आरव, लगता है मेरा उस से कुछ पुराना नाता है। केवल उसी को देखने का मन करता है।

आरव:- "उसी को" मतलब किस को?

मै :- नाम तो नहीं मालूम लेकिन हां सामने के बंगलो की कोई लड़की है।

आरव:- ओह हो ! तो ऐसी बात है, अब आगे क्या?

मैं:- आगे क्या?

आरव:- वहीं तो मैं तुम से जानना चाह रहा हूं…. अब आगे क्या?

मै:- वहीं तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि मुझे कुछ पाता नहीं, अब आगे क्या करू?

आरव:- मैं तो केवल इतना ही कहूंगा कि आगे जो भी करना वो अपने पिछली ज़िन्दगी को याद रख कर ही करना। मैं मना तो नहीं कर रहा तुम्हे दिल लगाने के लिए लेकिन ये याद रखना भी जरूरी है कि हम इस शहर में अपनी मर्जी से आए नहीं अपितु लाए गए है।

आरव की बात सुनकर मैं खामोश हो गया और बालकनी से वापस अा कर अपने बिस्तर पर बैठ गया। आरव की बात सुनने के बाद एक पल में ही जैसे अब तक की सारी कहानी आंखों के सामने घूमती नजर आने लगी। मैं खामोश बैठा कई बातों का आकलन एक साथ करने लगा और मुझे इस तरह खामोश और उदास पा कर पहले आरव ने चिल्लाना शुरू किया और आगे मैंने भी पूरे जोश से उसका साथ दिया…

"हम मतवालों की टोली हैं, ना रुके है कभी, ना झुके हैं कभी और ना टूटे है कभी। मस्ती में आज फिर निकलेंगे मस्ताने दो, दीवाने दो।"

और कई अरसे बाद हमारी वहीं ज़हरीली हसी चारो ओर गूंज रही थी। लगभग रात के 11 बज रहे थे, हम दोनों भाई पूरे जोश के साथ रात्रि भ्रमण को निकाल पड़े। "डेविल ब्रदर्स" की फटफती यानी कि बुलेट अपने शानदार आवाज़ के साथ सड़क पर उतर चुकी थी।

फिर तो पुराना माहौल बन सा गया था.. दोनों भाई ने 2-2 पेग लगाया और काफी मस्ती के बाद अपने आशियाने कि ओर लौटने लगे। घर के नुक्कड़ पर हमारी फतफटी रुकी और जमाने बाद हमने अपना अपना पान लगवाया।

पान खाते हुए मैंने आरव को फ्लैट जाने के लिए बोल दिया और खुद पैदल ही वहां से लौटने लगा। अब इसे किस्मत कहूं या इत्तेफ़ाक, लेकिन कभी- कभी कुछ ऐसी घटना हो जाती है जो उम्मीद से परे होता है।

घर लौटने के क्रम में मुझे वो सामने से आती हुई दिखी। शायद वो खाना खाने के बाद टहलने निकली थी, उसके साथ कोई और भी थी किंतु उसपर ध्यान देना मैंने जरूरी नहीं समझा और उसी को एकटक निहारता रहा।

दिल का आलम तो पूछिए मत अंदर जो हो रहा था वो बयान नहीं किया जा सकता था। अजीब सी बेचैनी और दिल जोरों से धड़क रहा था। वो जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी मेरी धड़कने वैसे वैसे तेज हो रही थी। मेरे कदम जो अपने फ्लैट के ओर तेजी से बढ़ रहे थे वो मानो वहीं जम गए थे।

वो अपनी चाल से आगे बढ़ती मेरे करीब, और करीब पहुंच रही थी। उफ्फ…… ! जब वो मेरे करीब से गुजरी…… मैं बिल्कुल सुन पड़ गया.. अजीब मनोदशा जो आज से पहले मैंने कभी अनुभव ना किया हो। जैसे मैं किसी भंवर में हूं और उसमे फंसता चला जा रहा हूं….
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Update:-2

कॉलेज से लौट कर जैसे ही साची घर के अंदर पहुंची, अपना बस्ता हॉल में लगे डायनिंग टेबल के ऊपर रख कर सीधी अपने मा के गोद में अपना सर रख कर वो फूट- फुट कर रोने लगी। अनुपमा मिश्रा (साची की मां) को कुछ भी समझ में नहीं आया कि ये हो क्या रहा है और इधर साची लगातार रोए ही जा रही थी।

किसी तरह अनुपमा ने उसे शांत करा कर उस से रोने का कारण पूछा। तब साची सिसकती हुई किसी तरह बोली कि वो परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाई है। एक ही वक़्त पर अनुपमा मिश्रा को दूसरा झटका लगा था क्योंकि साची फेल होने वाली छात्रा तो कभी नहीं रही।

अब अनुपमा को समझते देर न लगी कि उसकी बेटी को शायद उसके फेल होने का गहरा सदमा लगा है और इसलिए वो इतनी व्याकुलता से रो रही है। अनुपमा ने उसे सांत्वना दिया और हौसले से काम लेने के लिए कहने लगीं लेकिन साची थी कि उसे रह रह कर रोना अा रहा था।

सांझ तक पापा मनीष मिश्रा भी लौट आए जो कि एक जिलाधिकारी थे। यूं तो साची अपने पिता के सम्मुख नहीं गई किंतु उसके बारे में अनुपमा ने सारी बात बता दी। मनीष की तो जान बसती थी अपनी पुत्री में इसलिए वो सारे काम छोड़ कर सीधा अपने बेटी के कमरे में गया, पीछे-पीछे अनुपमा भी पहुंची..

मनीष, साची के सिर पर अपना हाथ फेरते उस से पूछने लगा… "क्या हुआ मेरे शेर को, वो आज ऐसे लोमड़ी क्यों बन गई"

अनुपमा:- अरे ! ये कैसी मिसाल है?

मनीष मुस्कुराते हुए कहा… "कुछ नहीं बस माहौल हल्का कर रहा था, वैसे तुम बता रही थी कि साची तुम से लिपट कर खूब रोई, लगता है पापा के लिए आंसू ही नहीं बचे इसलिए तो ये रो नहीं रही"..

अनुपमा, मनीष की बातों से चिढ़ती हुई कहने लगी… "ये कैसी बातें कर रहे हैं आप। यहां बेटी परेशान है और आप है कि बेतुकी बात कर रहे हैं। मुझे यहां चिंता खाए जा रही है….

मनीष:- तुम बेकार में चिंता कर के दिल कि मरीज मत हो जाना क्योंकि शायद ये बॉटल साची अपने बैग में ही भूल गई थी इसलिए अभी नहीं रोई…

अब तक साची जो अपना सिर झुकाए नीचे परी थी वो अपना सिर उठा कर पापा के हाथ में परी ग्लिसरीन की सिसी को देखने लग जाती है…. जैसे ही उसने ये देखा, जल्दी से उठ खड़ी हुई और अपने स्कूटी की चाभी लेे कर बाहर भागी… और जाते जाते कहने लगी "पापा मुझ से इतनी जल्दी पीछा छुड़ाना आप के लिए मुश्किल होगा"…

इस से पहले की अनुपमा कुछ कह पाती या समझ पाती साची फुर्र हो चुकी थी और मनीष अपनी जगह पर बैठ कर हंस रहा था। अनुपमा इस बार गुस्से से मनीष की ओर देखती है…. मनीष को लगा कि अब ज्यादा देर यदि बात को राज रखा गया तो कहीं अनुपमा ना कोई ड्रामा शुरू कर दे इसलिए वो राज से पर्दा उठाते हुए कहने लगा… "तुम ऐसे हैरान मत हो, साची जन बुझ कर फेल हुई है"

अनुपमा:- जान बूझ कर ! लेकिन क्यों?

मनीष:- शायद उसमे हमारी बात सुन ली थी कि ग्रेजुएशन बाद उसके लिए लड़का भी ढूंढना है।

अनुपमा अपने सिर पर हाथ मरती:- क्या करूं मैं इस लड़की का? पढ़ लिख कर कहो कुछ बन जा तो कहती है मै अपनी मा की तरह गृहणी बनूंगी मुझे प्रतियोगिता परीक्षा के नाम पर सिर दर्द नहीं पालना और जब शादी की बात सोच रहे हैं तो ऐसी हरकते। मनीष ये आप के कारण ही इतनी बिगड़ गई है।

इतना कह कर अनुपमा खामोश हो गई और मनीष की ओर देखने लगी। मनीष भी अनुपमा की आंखों में देखने लगा। दोनों एक दूसरे की आंखों में कुछ देर तक देखते रहे और फिर दोनों हसने लगे। थोड़े खिंचा तानी के बाद माहौल थोड़ा रोमांटिक हो चला था और दोनों सुकून से एकांत का आनंद लेने लगे।

इधर साची सांझ को जो निकली तो सीधा रात को घर पहुंची। जैसे ही हॉल में वो पहुंची मनीष और अनुपमा भी वहीं बैठे थे। हालांकि इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं था, साची को पूर्वानुमान था कि उसके माता पिता हॉल में बैठे होंगे और उस पर तगड़े तानों की बौछार करने वाले हैं। फिर भी इस मेलो ड्रामा से बचने के लिए साची चुप-चाप अपने कमरे के ओर खिसकने लगी लेकिन तभी अनुपमा जोर से कहती है… "सोच रही है मेलो ड्रामा से कैसे बचुं… हां … भाग रही है, चल इधर अा"

"पता नहीं कौन देवता पूजती है मेरी मां, मेरी हर बात का ज्ञान इन्हे कैसे हो जाता है"… इतना सोचती हुई वो अपने मां से कहती है… "बिल्कुल नहीं मेरी प्यारी मां, कहिए ना क्या बात है?"

अनुपमा गंभीर होती हुई कहने लगी… "इतना मस्का लगाने की जरूरत नहीं है, आज का तेरा नाटक देख कर हमने तेरी शादी तय कर दी है।"

साची बड़ी अदा से इठलाती हुई कहने लगी….. "देदो, मेरे उनकी तस्वीर देदो…. आज रात उसे मैं अपने सिरहने तले रख कर उन्ही के सपने देखूंगी"

अनुपमा, साची को धीमे से धक्का देती हुई कहने लगी… "हट नौटंकी… कभी कभी मैं सोच में पड़ जाती हूं कि तुझ में किस के गुण अा गए?"

साची:- वो तय करना मेरा काम नहीं वो आप दोनों मिल कर तय करो। फिलहाल मेरी सजा बताओ।

मनीष:- साची बेटा मस्ती बहुत हो गई लेकिन ये जान बूझ कर फेल होना, मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। कोई समस्या है तो हम बैठ कर बात कर सकते थे लेकिन ये सब….

साची जो अब तक अपनी मां के गले पड़ी थी अब अपने पापा के गले लगती हुई कहने लगी…. "आई एम सो सॉरी पापा, मुझे लगा यदि मैंने जल्दी-जल्दी ग्रेजुएशन भी कर लिया तो कहीं आप लोग मेरी शादी ना करवा दो.. इसलिए ऐसा किया"

मनीष:- तुम ने हम से कहा कि तुम्हे प्रतियोगिता परीक्षाओं में कोई रुचि नहीं। हमने कभी कोई जोर जबरदस्ती की इस मामले में.. कभी नहीं। फिर तुम ने कहा कि तुम्हे साहित्य में रुचि है और तुम साहित्य से अपना ग्रेजुएशन करना चाहती हो.. हमने ये भी मान लिया… लेकिन आज जो हुआ उस से मेरा दिल टूटा है क्योंकि तुम्हारा लक्ष्य तो केवल शिक्षा पाना था, ना कि शिक्षा के माध्यम से किसी के अंदर नौकर बन कर उसकी नौकरी करना.. फिर तुम्हारा जान बूझ कर फेल होना बिल्कुल अनुचित है और शिक्षा के साथ बेईमानी भी…

साची जो मज़ाक-मज़ाक में कर चुकी थी, उसका अभी उसे दिल से अफसोस हो रहा था। अपने पापा के सामने खड़ी हो कर उसने अपने दोनो कान पकड़ लिए और शांत खड़ी हो गई… इस बार सच में उसके आंखों में आंसू थे जो उसकी आंखों से बह रहे थे।

अनुपमा "हाय मेरी बच्ची" कहती उसे खुद में समेट ली और उसके आंसू पोंछती हुई कहने लगी…. "तू जानती है तुझ में सब से बेस्ट क्या है"

साची:- क्या?

अनुपमा:- दुनिया में बहुत कम ऐसे बच्चे होते हैं जो अपने माता पिता से झुटे मुंह ही माफी मांग ले.. दिल से माफी मग्नी तो दूर की बात है… इसलिए तू मेरा बेस्ट बच्चा है।

मनीष:- हा हा हा… ये बात बिल्कुल सही कही अनुपमा… यहां तक कि मुझे याद नहीं कि तुमने अपने गलती के लिए मुझे से कभी माफी मांगी हो?

अनुपमा:- साची बेटा जरा किचेन से मेरी बेलन तो लेे अा…

और फिर तीनों हसने लगे। साची अपने मां के गोद में ही सिर डाले वहीं बात करते- करते सो गई… सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने देखा उसके मम्मी पापा दोनों सोफे पर ही लेटे हैं… साची उन दोनों का चेहरा देख कर थोड़ा मुस्कुराई और फिर धीमे से सॉरी कह कर एक सेल्फी लेे ली।

कुछ दिनों बाद पता चला कि मनीष को 5 साल के लिए फौरन एंबेसी में काम करने का मौका मिला है। हालांकि वहां परिवार लेे जाने का प्रावधान तो था किंतु मनीष के छोटे भाई राजीव के जिद के किसी की नहीं चली… हालांकि पहले भी कभी किसी की नहीं चली। तो ये तय हुआ कि मनीष जाएगा विदेश और साची और अनुपमा जाएंगी राजीव के पास, जो कि दिल्ली के लोकसभा सचिवालय में एक उच्च अधिकारी थे और एक शानदार सरकारी बंगलो में पिछले 12 सालों से दिल्ली में रह रहे थे….
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कुछ दिनों बाद पता चला कि मनीष को 5 साल के लिए फौरन एंबेसी में काम करने का मौका मिला है। हालांकि वहां परिवार लेे जाने का प्रावधान तो था किंतु मनीष के छोटे भाई राजीव के जिद के आगे किसी की नहीं चली… हालांकि पहले भी कभी किसी की नहीं चली। तो ये तय हुआ कि मनीष जाएगा विदेश और साची और अनुपमा जाएंगी राजीव के पास, जो कि दिल्ली के लोकसभा सचिवालय में एक उच्च अधिकारी थे और एक शानदार सरकारी बंगलो में पिछले 12 सालों से दिल्ली में रह रहे थे….

रविवार की वो सुबह थी जब राजीव अपने भाई को छोड़ने दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचा और वहां अपने भाई को विदा कर अपनी भाभी और भतीजी के साथ वापस अपने घर आता।

राजीव का परिवार पहले ही एयरपोर्ट पहुंच चुका था। राजीव थोड़े देर से निकला और अपने साथ एक लड़के को जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बिठा कर एयरपोर्ट लेे जा रहा था। जब राजीव एयरपोर्ट पहुंचा तो उसके साथ वो लड़का भी था, उस लड़के को देख मनीष पूछने लगा… "ये लड़का कौन है राजीव"

राजीव उसका परिचय देते हुए कहने लगा…. "ये एक गंदी परवरिश का नतीजा है भैय्या जो किसी परिचय के लायक नहीं"…

इस तरह के जवाब सुन कर सभी चौंक गए। वैसे भी मनीष अब फौरन एंबेसी में काम करने वाला था तो उसे छोड़ने के लिए पुलिस के कुछ अधिकारी भी पहुंचे हुए थे ऊपर से राजीव का भी बहुत रसूख था। राजीव के ऐसे कथन सुनते ही पुलिस के एक अधिकारी ने, उस लड़के का कॉलर पकड़ कर पूछने लगा… "क्या किया है बे, जल्दी जवानी फुट रही है क्या?"

उस जगह पर तो मानो जैसे माहौल ही बन गया था। मौके की नजाकत को देखते हुए दूसरे पुलिस अधिकारी ने, उसे एयरपोर्ट सिक्योरिटी रूम में ले कर चला गया। वहां पहुंचते ही 2 पुलिस वालो ने तो उसे पहले 3-4 थप्पड़ मारा और फिर जा कर राजीव से पूछा कि "सर ये कौन है, और किया क्या है?"

तभी मनीष भी थोड़े गुस्से के लहजे में पूछने लगा… "राजीव बता इसने किया क्या है?"

राजीव:- भैय्या ये मेरे घर के सामने रहता है, नाम है आरव। इस कुत्ते के बच्चे ने पहले मुझे फिर हमारे खानदान के बारे में अपशब्द कहे और बदतमीजी कि सो अलग।

मनीष:- हद करते हो राजीव, नया खून थोड़ा बदतमीज होता ही है। मै तो इस बात से हैरान हू की तुम इसे यहां ले कर आए, एयरपोर्ट पर। मतलब यहां हमारी फैमिली मीटिंग हो रही है, एंबेसी के कई लोग पहुंचे हुए है और मेरा भाई एक ऐसे अनजान लड़के को हमारे बीच लेे आया जो बदतमीज और नासमझ है। वाह भाई वाह… मुझे नहीं लगता कि तुम से ज्यादा बेवकूफ भी कोई होगा।

राजीव:- आप जो भी कह लो भैय्या लेकिन मैं इतना बेवकूफ नहीं की आप ने जो कहा उस बात पर मैं ध्यान ना दू। ये अगर मेरे बारे में कुछ कहता तो मैं सह लेता या अपने स्तर से देख लेता। लेकिन इसने हमारे मां और बाबूजी के बारे में बुरा-भला कहा। मैं अपना आप खो चुका हूं और यदि मैं फैसला करूंगा तो पता नहीं मैं क्या कर बैठूं? पिछले 3 दिनों से मैं खून के घूंट पी कर बैठा हूं। मैंने अब इसे आप के हवाले कर दिया, आप ही फैसला करो। और यदि नहीं , अब भी आप को ये लगता है कि इसको यहां लाना मेरी गलती है तो मुझे क्षमा कर दीजिए और इसका फैसला मैं खुद ही कर दूंगा।

राजीव की बातें सुन कर मनीष का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया और वो आरव का कॉलर पकड़ कर पीटने लगा। मनीष का आपा खोते देख अनुपमा बीच बचाव में आई और आरव को अपने पीछे लेती हुई, राजीव को फटकार लगाते कहने लगी…. "देवर जी, ये क्या तमाशा है। यदि इस लड़के ने कुछ कहा था या किया था तो वहीं समझ लेते। इसे यहां लाकर पूरे परिवार और इतने लोगों के बीच तमाशा खड़ा करने की क्या जरूरत थी"।

अनुपमा की बातें सुन कर जैसे दोनों भाई को होश आया और राजीव शांत होते हुए कहने लगा…. "नहीं भाभी, मैं कहीं कुछ कर ना दू इसलिए इसका फैसला करने भैय्या के पास लेे आया"

तभी वहां खड़ा एक पुलिस अधिकारी कहने लगा:- "आप सब यहां से जाइए सर इसकी खबर तो अब हम लेंगे"

मनीष:- ऐसे चार्ज में अंदर करना की इसकी जवानी जेल में ही बीते और जब भी ये खुद को देखे तो इसे पछतावा हो कि, आखिर इसने हमसे पंगा ही क्यों लिया।

अब तक आरव जो चुप चाप सब सुन रहा था, अपनी जानदार आवाज़ में कहता है…. "ओ सर आप का भाई पागल है और उस समय जो मैंने इसे कहा था ना कोई गलत नहीं कहा था… अब तो मुझे यकीन हो गया है कि ये पूरा खानदान ही पागल है। और रही बात मेरी जवानी को जेल में सड़ाने कि तो इतनी औकात किसी कि नहीं"।

बड़ी तेजी में और बिल्कुल जोरदार आवाज के साथ आरव ने अपनी बात कह दी। फिर क्या था माहौल और भी ज्यादा गरम हो गया। वहां मौजूद पुलिस वालों ने मनीष और उसके परिवार को किसी तरह वहां से हटा कर बाहर भेजा और आरव को थाने ले आए।

अंततः मनीष अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गया और और बाकी सारे लोग वापस घर को। एयरपोर्ट पर हुई गरमा-गरम बहस के बाद सब बिल्कुल शांत हो कर वापस लौट रहे थे। तभी इस शांति को अनुपमा भंग करती हुई राजीव से कहने लगी… "देवर जी आप ने जो एयरपोर्ट पर किया वो जरा भी समझदारी का काम नहीं था"

राजीव अनुपमा की बात को बीच में ही काटते हुए कहने लगा… "भाभी वो, उस लड़के ने"..

तभी अनुपमा गुस्सा दिखाती हुई कहने लगी… "बीच में मत टोकिये देवर जी, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई… यदि कोई हमारे बारे में कुछ गलत करता है या कहता है तो क्या उस बात को आप भरी सभा में उठाएंगे, ताकि जो लोग कुछ नहीं भी जानते हो वो भी जान जाए। आप दोनों भाई ऐस बर्ताव कर रहे थे जैसे कोई गली का आम आदमी करता हो। ना अपनी मर्यादा याद रही और ना ही अपने पोस्ट कि गरिमा। बेवकूफ आदमी, किसी बात का ख्याल ही नहीं रहा। आखिर उसने कहा ही क्या था, जो आप यदि फैसला करते तो उस बच्चे की जान ले लेते और दूसरे ने तो बिना पूरी बात जाने ही उसे जिंदगी भड़ जेल में सड़ाने के आदेश दे दिया….

"मैं बताती हूं बड़ी मां"… पीछे से राजीव की बड़ी बेटी लावणी कहने लगी… "हुआ ये था बड़ी मां कि ये और इसका एक भाई दोनों हमारे सामने के अपार्टमेंट में रहते है। बात 3 दिन पहले की है, जब रात को पापा और मैं टहलने के लिए निकले थे और उसी वक़्त ये लड़का दारू पी कर चला अा रहा था"…

अनुपमा:- हूं !! फिर क्या हुआ?

लावणी:- तो हुआ ये कि वो आते-आते पापा से टकरा गया। इस पर पापा बोले कि "देख कर चलो बेटा। तुम इतनी रात को नशे में घर कैसे जाओगे, तुम्हारी मां कुछ कहेगी नहीं क्या तुम्हे"? इस पर उस लड़के ने बड़ी बदतमीजी से कहा "मेरी मां कुछ भी कहे, तू काहे मेरा बाप बनने की कोशिश कर रहा है"। फिर क्या था इसी बात पर बहस शुरू हो गई। इसी दौरान बोलते-बोलते वो ये बोल गया कि "तेरी मां ने केवल 2 ही बच्चे जने, लगता है तेरे पापा में कुछ कमी थी इसलिए तेरी मां को सिर्फ 2 ही मौके मिले। वरना उस वक़्त के लोग तो बच्चों कि लाइन लगा देते थे"।

अनुपमा:- हरामजादे कहीं के !!! देवर जी आप ने उस लड़के के बारे में एयरपोर्ट पर सही ही बताया था। ऐसे गंदी परवरिश वाले लड़कों को तो जेल में सड़ना ही अच्छा है। मरने दो साले को।

बातों के दौरान ही सब घर पहुंचे और फिर बाकी बचे परिवार के लोगों से मेल मिलाप शुरू होने लगा। इधर आरव को जब पुलिस थाने ले कर पहुंची…. और उस पर क्या क्या चार्ज लगाए ये सोच ही रही थी कि तभी वहां सुप्रीम कोर्ट का एक वकील पहुंच गया।

और वो भी कोई ऐसा वैसा वकील नहीं, बल्कि अपने एक सलाह का मेहनताना लाखों में लेने वाला वकील। उस वकील को देख कर ही पूरे थाने के होश उड़ गए। अब चूंकि आरव को बड़े अधिकारियों ने गिरफ्तार किया था इसलिए तुरंत ही उन अधिकारियों तक सूचना पहुंची, और वो अधिकारी खुद भी भागे-भागे उस थाने में पहुंचे।लेकिन उस वकील के आने के बाद आरव को ना छोड़ने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।

आरव जब थाने से निकला तो वो बस यही सोच रहा था कि आज हुई घटना यदि अपस्यु को पता चली तो ना जाने क्या होगा। इन्हीं उधेड़बुन में जब आरव घर पहुंचा, तब उसने अपस्यु को बालकनी में पाया जो बालकनी से खड़ा हो कर साची को निहार रहा था….
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