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फ्लाइट में .. रात के 8 बजे….
तीनों बिजनेस क्लास से जा रहे थे और क्रिश इकॉनमी क्लास में था। इस चक्कर में क्रिश बार-बार उठकर विन्नी से मिलने बिजनेस क्लास में आ जाता, जिस वजह से वहां बैठे पैसेंजर काफी गुस्से में आते हुए उसकी शिकायत फ्लाइट क्रु से करने लगे।
मजबूरन माहौल को संभालने के लिए आरव ने क्रिश के पास वाली सीट पर बैठे एक सज्जन को बिजनेस क्लास में जाने का आग्रह किया और स्वयं उसकी जगह बैठ गया…. "अबे ओ घोंचू, पूरा 1 महीना छुट्टी पर है, फ्लाइट में ऐसी तुच्ची हरकत करते शर्म नहीं आती।"
क्रिश:- यार कॉलेज से दुकान और दुकान से घर, मेरे पप्पा ने कभी मुझे वक़्त ही नहीं दिया, जो मै अपनी विन्नी को घुमा भी सकु। आज पहली बार कहीं इतनी दूर जा रहा हूं, मेरी भी तो फीलिंग्स है यार। लेकिन यहां भी बिजनेस क्लास और इकॉनमी क्लास कि दीवार।
आरव:- किस चीज कि दुकान है तुम्हारी।
क्रिश:- दिल्ली में 4 रेस्टुरेंट की दुकान है।
आरव:- अबे रेस्टुरेंट को दुकान बोल रहा है…
क्रिश:- पप्पा कहते है, चाहे शॉपिंग मॉल हो या ऑनलाइन बाज़ार सब दुकान है और दुकान अपना इमान है।
आरव:- नाम क्या है तेरे पप्पा का।
क्रिश:- श्याम सुन्दर पटेल…
आरव:- तू गुजराती मानस है।
क्रिश:- हां
आरव:- अबे तेरे टोन से कभी पता ही नहीं चलता।
क्रिश:- इसी कारण से तो घर में रोज गालियां खाता हूं। मेरे पप्पा कहते है हॉस्पिटल में मेरा बेटा ही किसी ने बदल दिया।
आरव जोड़ जोड़ से हंसते हुए कहने लगा…. "शायद तेरे पप्पा का अनुमान सच हो।"
क्रिश:- क्या यार मज़ाक उड़ा रहे हो मेरा। ऐसा कुछ नहीं है, अब पैदा होने से लेकर आज तक मै दिल्ली में रहा। ऊपर से अपने धंधे के चक्कर में उन्होंने मेरी पूरी स्कूलिंग बोर्डिंग से करवाया। घंटा मै कुछ सीख पता। अब इनको कौन समझाए।
आरव:- अबे तू तो इमोशनल हो गया। अच्छा ये बता जब तू 4 रुपए के लागत का माल 400 में बेचता है फिर अपनी गर्लफ्रेंड का खर्चा क्यों नहीं उठाया। साले कंजूस….
क्रिश:- मै तो तैयार ही था लेकिन उसके भाई को देख कर मेरी फट जाती है। एक बार मैं और विन्नी कॉलेज में एक दूसरे का हाथ पकड़कर घूम रहे थे। विन्नी के भैय्या ने हमे देख लिया। बस इतनी सी बात के लिए मुझे कोपचे में लेे जाकर 2 थप्पड लगा दिए और जाते-जाते वार्निंग भी देते गए मुझे, हमेशा दूरी बना कर रखो।
आरव:- अच्छा सुन अब तो हमने तेरा काम कर दिया ना… तो तू 14 लाख दे देना, विन्नी के आने जाने का भाड़ा।
क्रिश:- क्या 14 लाख !!!.. मेरा तो आना-जाना सब 2 लाख 2 हजार का है।
आरव:- साले कंजर, जून का महीना, 5 दिन पहले बिजनेस क्लास की टिकट.. छुट्टियों के सीजन में 5 गुना तक कीमत वसूल कर लेते है ये एयरलाइंस वाले। वैसे एक बात बता, दोनों कितने साल से रिलेशन में हो..
क्रिश:- 4 साल से..
आरव:- हां तो तू राउंड फिगर 15 लाख दे देना।
क्रिश:- मेरा 4 साल का रिलेशन जान कर सीधा 1 लाख बढ़ा दिए…
आरव:- साले कंजर, अपने पप्पा के दुकान में बैठ कर तो तू उसे कॉफी पिलाता नहीं रोज, तो 200 रुपया रोज के कॉफी का पकड़ ले, फिर हफ्ते में एक दिन सिनेमा जाता उसका हफ्ते का 2000 पकड़ कर रख। फिर महीने में एक महंगी ट्रिप बनता, उसका 10000 पकड़। इसके अलावा ड्रेस और गिफ्ट का खर्च 10000 रुपया महीना मान ले। चल अब जोड़ कर बता कितना खर्चा आया 1 महीने का और इस हिसाब से महंगाई में 20% हर साल इजाफे के साथ 4 साल का खर्च कैलकुलेट कर।
क्रिश, आरव के ओर मुड़कर देखते हुए…. "आरव, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या?"
आरव:- अब तू मेरे गर्लफ्रेंड की इंक्वायरी क्यों कर रहा है।
क्रिश:- तुम्हारे घर मै पप्पा को भेजता हूं ना, जैसा दामाद वो ढूंढ़ रहे है तुम में वो सारे गुण है। मेरे परिवार के ओर से ये रिश्ता मै आज ही पक्का कर देता हूं।
आरव:- हट, तू दूर हट… साला उल्टी खोपड़ी…
साची का घर
"क्या हुआ दीदी आप के लिए तो वो मात्र एक आम लड़का था, तो फिर उसके लिए इतना सोच में डूबना क्यों?"… लावणी साची को अपने ख्यालों से बाहर निकालती हुई पूछने लगी।
साची:- उसकी जगह कोई भी होता तो उसके लिए भी मै इतना ही सोचती, कितनी बुरी तरह जला हुए था उसका पाऊं।
लावणी:- हां लेकिन किसी भी लड़के का पाऊं जला होगा इस व्याकुलता से तुम उसके घर नहीं जाती उसे देखने, वो भी रात में साढ़े ग्यारह बजे। उस वक़्त मै भी आप के पीछे ही बैठी थी, और मैंने सब देखा। कैसे आपने अपने नंगे पाऊं सड़क पर डाल कर चेक किया था।
साची:- मुझे इस बारे ने बात नहीं करनी।
लावणी:- मै भी आप से इस विषय पर बात नहीं करना चाहती। मै बस इतना कहना चाहती हूं कि नफरत आप को जलाती रहेगी। अगर किसी को चाहा है तो चाहते रहिए, ये चाहत और नफरत के साथ जिंदगी बेकार होते चली जाएगी।
साची:- तू एग्जैक्टली कहना क्या चाहती है?
लावणी:- दोनों भाई पैसे वाले है। पर्सनैलिटी तो किसी भी लड़की को आकर्षित कर ले, फिर भी कभी दोनों भाई को देखी हो कभी भी किसी लड़की को अपने खाली घर में लाया हो। ये दिल्ली है दीदी, उसकी जगह कोई और होता ना तो आप को वहां हर दूसरे या तीसरे दिन पर कोई नई लड़की दिख जाति।
साची:- तू उनकी अच्छाई गिना कर मुझे पिघलाने की कोशिश कर रही है। ये संभव नहीं।
लावणी:- आप ना तो इस पार हो ना उस पार। ना तो भूलकर आगे बढ़ना चाहती हो, और ना ही परिस्थिति को स्वीकार कर कोई विचार बना पा रही हो। तुम भी तो यहां बॉयफ्रेंड बनाने अाई थी। थोड़ा खुलकर जीने अाई थी, तो क्या जिसे बॉयफ्रेंड बनती उसके साथ लाइफलोग रिलेशन चलता। थोड़ा अपनी सोच का भी दायरा बढ़ाओ। जानती हो मुझे क्या लगता है, आप जितना ब्रेकअप से नहीं हताश है उससे कहीं ज्यादा आप को इस बात की इर्ष्या है कि वो किसी और लड़की के साथ वो क्यों है? भला लड़का था जो उसने सब पहले बताना सही समझा क्योंकि वो अपने रिलेशन उस लड़की से खत्म नहीं कर सकता था और ना ही आप को अंधेरे में रखना चाहता था। वरना यहां तो लड़के हो या लड़कियां सब कई रिलेशन एक साथ मेंटेन करते है, फीलिंग की किसे परवाह।
साची:- भुटकि, तू समर्टली खेल गई हां..
लावणी:- क्या हुआ दी, आप ऐसे शक्की नजरों से मुझे क्यों घूर रही है…
साची:- एक सोची समझी चाल, एक भाई से दूसरे बहन का रिश्ता खराब तो दूसरे भाई के साथ तेरे रिलेशन में कहीं कोई दरार ना अा जाए…
लावणी:- नहीं नहीं मेरा वो मकसद तो बिल्कुल भी नहीं था.. सॉरी दी लेकिन प्लीज मेरी बात को मेरे रिलेशन से मत जोड़ों…
साची:- हिहिहिहीही… डरपोक कहीं की.. वो गाना नहीं सुनी क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या। और हां थैंक्स.. बातों बातों में तुमने बहुत कुछ सीखा दिया। अभी छुट्टियों को एन्जॉय करते है और मै एक गैप लेती हूं। वापस लौटकर निपटेंगे हमसे टकराए, इस केजुअल रिलेशन वाले अपस्यु से…
लावणी:- ये हुई ना बात.. डॉट्स माह सट्रोंग दीदी।
साची… और तू प्यारी सी मेरी भूटकि। वैसे एक बात तो है, तू बिल्कुल हैंडपंप है। ऊपर से तो 4 फिट की नजर आती है लेकिन अंदर की गहराई का पता नहीं चलता।
लावणी:- अरे अरे अरे… मैं 5 फिट 5 इंच की हूं। बस आप लोगों से थोड़ी कम हाइट है, इसका मतलब ये नहीं कि 4 फिट का ही बोल दो…
जैसे पुरानी साची वापसी करने को तैयार थी। 15-20 दिन के ठहराव के बाद आज पहली बार वो खुल कर मुस्कुरा रही थी और लावणी के साथ नोक झोंक चल रहा था….
अपस्यु का घर….
दाएं पाऊं पर लेप लगाते हुए जब नंदनी ने 2 बार उन्हें पूछ लिया लेकिन फिर भी कोई जवाब ना आया, नंदनी पलटी और पीछे श्रेया खड़ी थी…
नंदनी:- तुम हो श्रेया, वो दोनों कहां गई…
श्रेया:- मै जब इधर अा रही थी तभी वो गई।
नंदनी:- कुछ बताई भी नहीं क्यों अाई थी, रुकी भी नहीं। जाने दो उनको, सभी गेस्ट खाना खा लिए।
श्रेया:- हां आंटी सबने खा लिया। क्या मै आप के गले लग सकती हूं।
नंदनी:- एक शर्त पर, यदि गले लग कर रोना नहीं है तब इजाज़त है वरना नहीं।
श्रेया, नंदनी के गले लगती कहने लगी… "आप बहुत स्वीट हो, आपने बहुत मदद की वरना आज मै भागते दौड़ते परेशान हो जाती"
नंदनी:- इतने सारे तो लोग है, और तुम्हारे दोनों भाई भी तो है.. सब मिलकर कर लेते।
श्रेया:- हां वो तो कर ही लेते सब मिलकर लेकिन मै क्या घर में बैठी रहती मुझे भी तो उनके साथ भाग दौड़ करनी परती ना।
नंदनी:- हाहाहाहा… हां सो तो मैंने भी देखा, यहां भी तुमने कम भागदौड़ नहीं की। चलो अब बैठकर तुम मेरे साथ खाना खा लो।
श्रेया नंदनी को कुर्सी बार बिठाते…. "आप यहीं बैठिए, मै निकलती हूं खाना।"…. श्रेया अपास्यु को खाने के लिए कहने गई….. "आंटी अपस्यु तो सो गया है, इसे जगा दूं।"
नंदनी:- आराम करने दो उसे श्रेया, रात को उठकर खा लेगा…
श्रेया, प्लेट लगाती…. "पक्का उठ कर खा लेगा क्या?"
नंदनी:- हां इस मामले में मेरा बेटा बहुत जागरूक है। अपने हेल्थ पर पूरा ध्यान देता है। वो उधर उस हिस्से में बड़ा सा पार्टीशन जो देख रही हो, वहां रोज ये अपने भाई बहन के साथ एक्सरसाइज करता है।
श्रेया:- ये तो अच्छी बात है आंटी। एक बात समझ में नहीं आयी, जब इतना हेल्थ कॉन्शस है फिर पाऊं में क्या लगाया है। मैंने दिन में ऑइंटमेंट और मेडिसिन दी तो थी।
नंदनी:- मत कहो बेटा। पता नहीं इसे तो जैसे डॉक्टर से ही नफरत है। अपने बैग में जड़ीबूटियां भरे रहता है और खुद ही अपना इलाज कर लेता है।
श्रेया:- अम्म .. आंटी ये असर भी करती है क्या?
नंदनी:- मुझे भी इसी बात का शक था लेकिन असर करता है। तुम सुबह खुद ही देख लेना।
श्रेया:- आंटी अगर आपके बेटे जैसे सब हो गए तब तो मेरा क्लीनिक खुलने से पहले ही बंद हो जाएगा।
हल्की फुल्की बातों का लुफ्त उठाते दोनों खा रहे थे। थोड़ी देर बाद दोनों कि सभा समाप्त हुई और श्रेया, नंदनी को सुभ रात्रि कहकर निकल गई। सुबह सुबह का वक़्त था। श्रेया ट्रे में चाय लिए अपने सभी गेस्ट को चाय दे रही थी। चाय देते हुए वो नंदनी के पास पहुंची… "आंटी चाय"..… "थैंक्स बेटा"…. "आंटी अपस्यु कहीं दिख नहीं रहा"….. "वो एक्सरसाइज कर रहा है।"..
श्रया, बाहर से ही नॉक करती… "क्या अंदर अा सकती हूं।"… "एक मिनट"… अपस्यु अपने ऊपर शर्ट डालते हुए दरवाजा खोला…. "आप है, आइए"…
श्रेया एक कप चाय अपस्यु को देती हुई, अपना अपने चाय के प्याले के साथ वहीं बैठ गई…. "सो इट्स डेस्टिनी हां।"..
अपस्यु:- हां कह सकते है।
श्रेया:- आप को ज्योत्षी होना चाहिए था।
अपस्यु:- ये तारों और ग्रहों की दिशा समझने के लिए पूरा एक जीवन भी कम पड़ जाएगा, मुझ से तो ना होगा।
श्रेया:- आप तो ऐसे बोल रहे है जैसे आपने कोशिश की थी।
अपस्यु:- जी कोशिश तो कभी नहीं किया, लेकिन एक महान ज्योत्षी से मुलाकात हुई थी। उनके अध्यन और विषय कि गहराई समझने के बाद बता रहा हूं।
श्रेया:- बहुत रोचक है आप। वैसे जरा अपना पाऊं दिखा सकते है क्या?
अपस्यु, अपना पाऊं ऊपर किया और श्रेया उसे देखने लगी…. "क्या बात है इसमें तो पहले से काफी सुधार है। इनफैक्ट ये तो कमाल हो गया, मेडिसिन से एक रात में इतना रिकवर होना थोड़ा मुश्किल था।
अपस्यु:- आप ने जो मेडिसिन दी थी उसमें से एंटीबायोटिक लिया था मैंने, बस ऑइंटमेंट की जगह अपना स्वदेशी उपचार किया।
श्रेया:- आप ने आयुर्वेद पढ़ा है क्या?
अपस्यु:- पढ़ा थोड़ा काम ही है पर कई तरह के जड़ी-बूटी का ज्ञान मुझे गुरुजी ने जबरदस्ती दे दिया था।
श्रेया:- कूल हां, मतलब आप गुरुकुल के छात्र रहे है।
अपस्यु:- जी कह सकते है।
श्रेया:- अच्छा लगा आप से मिलकर, चलती हूं बहुत सारे काम पड़े है।
श्रेया वहां से चल दी और अपस्यु अपने व्यायाम में लगा रहा। सुबह से 7.30 बज रहे होंगे जब कई सारे ड्राइवर्स की भीड़ अपस्यु के दरवाजे के बाहर थी, और नंदनी एक एक करके सबका इंटरव्यू ले रही थी।…. "मां अब ये सब क्या है।"…
नंदनी:- तू तो कल अपनी उस बेकाबू कार को वहीं सड़क पर खड़ी करके चला गया था, मैंने सोचा खुद से अंदर कर देती हूं लेकिन..
अपस्यु:- हाहाहा.. लेकिन आप ने ठोक दी… वैसे कहीं से टूटी-फूटी तो नहीं दिख रही आप।
नंदनी:- वाह बेटा, मतलब अपनी मां को टूटा-फूटा देखना चाहता है। मै तो नहीं टूटी लेकिन वो सरला जी की कार बुरी तरह डैमेज हो गई।
अपस्यु:- अब ये सरला कौन है…
नंदनी:- सरला मेरे लिए तेरे लिए आंटी.. 304 फ्लैट उन्हीं का है ना…
अपस्यु:- ओह !!! कोई ना, उनकी कार गारेज गई की नहीं।
नंदनी:- मैंने इतना ध्यान ही नहीं दिया, टक्कर हुई तो मैं इतना घबरा गई थी कि इन सब बातों पर ध्यान ही नहीं गया… तू जाकर उधर देख लेगा क्या? मै जबतक अपने लिए एक ड्राइवर रख लूं।
अपस्यु:- आप रहने दो मां, मै आप के लिए ड्राइवर देख लेता हूं, आप जाकर उधर पता लगा आओ।
नंदनी:- अब तुम मुझे आदेश दोगे। जैसा मै कहूंगी वहीं होगा।
अपस्यु:- ठीक है मां… जैसा आप चाहो.. मै ही जाता हूं..
नंदनी:- नहीं ! तुम ड्राइवर सिलेक्ट करो मै उधर जा रही हूं…
दोनों हसने लगे। नंदनी उधर चली गई और अपस्यु ड्राइवर को परखने लगा.. 20 लोगों में से उसने 2 को अलग किया… एक का नाम गुफरान था और दूसरे का प्रदीप… बाकी सबको कुछ पैसे देकर अपस्यु ने सबको वहां से विदा किया।