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Adultery भटकइयाँ के फल

andyking302

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फिर अल्का और सत्तू उठ गए, समान समेटकर दोनों नीचे आये, सत्तू ने नीचे उतरते वक्त एक बार फिर अल्का को सीढ़ियों पर बाहों में भरकर चूम लिया, किसी तरह दोनों ने अपने को संभाला और सत्तू फिर चुपके से बाहर आ गया, अल्का दबे पांव अपने कमरे में चली गयी समान रखा, नथनी उतारकर संभाल कर रखी और साड़ी बदली और पलंग पर लेट गयी, नींद अब भी आंखों से कोसों दूर थी, वो छुवन वो अहसाह अलग ही सनसनी बदन में पैदा कर रही थी, मंद मंद मुस्कुराते हुए जैसे ही उसने अपनी योनि को छुआ, मखमली योनि पूरी तरह गीली हो चुकी थी, मुस्कुराते हुए वो बस न जाने कब तक "मेरे भैया...ओ मेरे सैयां" बुदबुदाते हुए धीरे धीरे सो गई।


अब आगे-----

Update- 11

सुबह सब उठे, सत्येन्द्र थोड़ी देर तक सोता रहा, जैसे ही वो उठा उसने देखा कि सब उठ गए हैं अल्का द्वारा बांधी राखी को बड़े प्यार से चूमकर वह पूरी बाजू चढ़ाकर उसे छुपाता हुआ उठने लगा कि तभी उसे किरन की बात याद आयी और उसने तकिया उठा कर देखा तो उसके नीचे एक कागज था, उसने झट से वह कागज उठा लिया और कुर्ते की जेब में रखने लगा तो फिर उसे ध्यान आया कि रात को तो सोते समय उसने टीशर्ट पहना हुआ था अब ये कुर्ता किसी ने देख लिया तो पूछेगा जरूर, मुझे यह रात को ही उतार देना चाहिए था, वह उठकर घर में गया अपने कमरे में जाकर कपड़े बदले, बाहर आ गया , किरन और सौम्या सुबह सुबह मिलकर बर्तन धोने में लगी थी, अल्का रसोई में सबके लिए नाश्ता बना रही थी, सत्येंद्र के बाबू पशुओं को चारा डाल रहे थे, जैसे ही वो बाहर आया।

सौम्या- रात को कहीं गए थे क्या कुर्ता पहन के देवर जी (इतना कहकर सौम्य हंसने लगी)

किरन भी अपने भाई को देखकर मुस्कुरा ही रही थी।

सत्तू ने बात को संभालते हुए बोला- अरे भाभी माँ वो रात को गर्मी लग रही थी न तो कुर्ता ही पहन कर सो गया।

सौम्या- अच्छा दातुन वगैरह करके आओ, नाश्ता अल्का ने तैयार कर दिया है, सब नाश्ता कर लेते हैं, फिर अपने अपने काम में लगेंगे आज बहुत काम है।

सत्येन्द्र फ्रेश हुआ और कुछ ही देर में सब लोग बरामदे में बैठे थे, अल्का और किरन चाय-नाश्ता लेकर आई, प्लेट्स टेबल पर रखकर खाट पर बैठ गयी, सब नाश्ता करने लगे, सत्तू ने सबकी नजर बचा के अल्का को दिखाते हुए हाँथ उठा के राखी को चूमा तो अल्का मुस्कुरा उठी। सत्येंद्र कभी अल्का को देखता कभी सौम्या को तो कभी किरन को।

सत्येंद्र के बाबू- चलो ठीक है नाश्ता तो हो गया अब मैं निकलता हूँ, आज कई जगह जाना है, आते आते शाम हो जाएगी।

अल्का- बाबू जी खाना बना देती हूं, खाना खा के जाइये।

इंद्रजीत- नही बहू देर हो जाएगी मैं निकलता हूँ।

किरन ने इशारे से सत्तू को बोला कि तकिए के नीचे कुछ रखा था मैंने।

सत्तू ने भी इशारे से उसे आश्वस्त कर दिया कि मैंने ले लिया है।

सब अपने अपने कामों में लग गए, सत्तू खेत में गया और उसने वहां एक पेड़ के नीचे बैठकर वो कागज खोला जो किरन ने उसके लिए लिखा था, अपनी बहन किरन की लिखी बातों को वो पढ़ने लगा।

" मेरा मन कभी कभी बस इसलिए उदास हो जाता है कि मैं इतनी खुशकिस्मत नही जितनी और भाभियाँ होती हैं, जितनी अल्का भाभी और सौम्या भाभी हैं, जिस तरह अल्का भाभी और सौम्या भाभी के जीवन में देवर का प्यार, हंसी मजाक शामिल है या किसी भी स्त्री के जीवन में उसके देवर का साथ शामिल होता है मेरी किस्मत में कहां, भाई तुम तो जानते हो कि मेरा कोई देवर नही है, तेरे जीजा जी एकलौते हैं, जब मायके आती हूँ तो तुम्हें और भाभियों को हंसी ठिठोली करते देख मेरा मन कहीं न कहीं मुझसे ये कहता है कि काश मेरा भी कम से कम एक देवर होता, ये रिश्ता ही बहुत उमंग भरा होता है, देवर अपनी भाभी का एक बहुत गहरा दोस्त होता है, जिससे वो अपने दिल की हर बात कह सकती है, पर मेरी किस्मत में ये कहाँ, बस यही बात थी, मैं ये कभी किसी से कहती नही क्योंकि लोग न जाने क्या क्या सोचेंगे कि देवर के लिए तरस रही है, पर हाँ मैं तरसती तो हूँ, ससुराल बिना देवर के सूना सूना लगता है और कभी कभी जीवन भी, और ये भी सत्य है कि जीवन में सब कुछ नसीब नही होता, और कोई बात नही है बस यही बात थी"

सत्तू अपनी बहन के मन का दुख जानकर परेशान हो गया काफी देर वो खेतों में टहलता रहा कि तभी उसको गांव का एक आदमी उसके घर की तरफ जाते हुए दिखा तो उसने उससे कहा- काका मेरे घर की तरफ जा रहे हो क्या?

काका- हां बेटा, बताओ क्या काम है?

सत्तू- मेरी बहन किरन को बोल देना की तेरा भाई ट्यूबेल पर तुम्हें बुला रहा है कुछ काम है खेत का।

काका- ठीक है बेटा जाके बोल देता हूँ।

सत्येंद्र खेत में बने ट्यूबेल में चला गया, थोड़ी देर में किरन आयी, ट्यूबेल के अंदर गयी, अपने भाई को अपना इंतज़ार करता देखा हल्का सा मुस्कुरा दी, वो समझ गयी कि सत्तू ने वो कागज पढ़ लिया है।

सत्तू- इतने दिनों तक ये मन की बात तुमने मुझसे छुपा कर रखी न।

किरन- बताती भी तो कैसे? क्या ये सब कहने लायक बातें हैं पर तुमने विवश कर दिया तो कहना पड़ा भैय्या, जीवन में कभी कभी कुछ खालीपन ऐसे होते हैं जिसको भरा नही जा सकता।

सत्तू- क्यों नही भरा जा सकता, अपने भाई को क्या तुमने इतना असहाय समझ रखा है कि वो अपनी बहन के जीवन की एक छुपी हुई इच्छा को पूरी कर उसके दुख को हटा नही सकता।

किरन सत्तू की तरफ देखने लगती है, कुछ देर बाद- कुछ इच्छाएं ऐसी होती है जिसको पूरा नही किया जा सकता, अब तुम क्या देवर बन जाओगे क्या? जो कमी है वो तो रहेगी न।

सत्तू- तो इसमें बुराई क्या है?

किरन आश्चर्य से सत्तू की तरफ देखने लगी।

सत्तू- हां हां....इसमें क्या बुराई है, अगर कुछ बदलने से मेरी बहन की उदासी के बादल छट सकते हैं तो मैं क्यों नही बन सकता?

किरन बड़े आश्चर्य से- पागल तो नही हो गया है, भाई है तू मेरा....तू मेरा देवर बनेगा? किसी को पता चल गया तो?

सत्तू थोड़ा नजदीक आकर- और अगर किसी को न पता चले तो? तो क्या बनाओगी मुझे अपना देवर?

किरन थोड़ा लजा कर- तू भाई है मेरा?

सत्तू और नजदीक आ गया और हल्का सा फुसफुसाकर बोला- अगर मैं वचन दूँ की जीवन भर किसी को कानो कान पता नही चलेगा..... तो बनाओगी मुझे अपना देवर?

सत्तू के इस तरीके से किरन के रोएँ खड़े हो गए वो एक टक उसकी आँखों में देखने लगी, चहरे पर उसके शर्म की लालिमा साफ दिख रही थी, फिर उसके मुँह से हल्के से निकला- लेकिन तू मेरा भाई है?

सत्तू अब तक अपना मुँह किरन के कान तक ला चुका था, उसके कान में उसने धीरे से कहा- क्या भाई बहन की खुशी के लिए उसका देवर नही बन सकता?

जैसे ही सत्तू की गर्म सांसे किरन के कानों से टकराई वो गनगना गयी, और होने वाले रोमांच में आंखें बंद करके वो धीरे से बोली- बन सकता है, पर किसी को पता न चले.

सत्तू- किसी को कुछ पता नही चलेगा, हम खूब मस्ती करेंगे।

"मस्ती" शब्द सुनकर किरन और भी सनसना सी गयी, उसकी सनसनाहट को सत्तू ने जैसे ही बखूबी महसूस किया, उसने किरन को खींचकर अपनी बाहों में भर लिया- "ओह मेरी भाभी"

किरन तो मानो बेसुध सी हो चुकी थी, आज पहली बार उसके सगे भाई ने इस कदर उसे गले लगाया था, वो उसकी बाहों में "मेरे प्यारे देवर जी" बोलते हुए समाती चली गई।

काफी देर तक दोनों एक दूसरे को "मेरी प्यारी भाभी" और "मेरे देवर जी" बोल बोल कर मदहोश होते रहे, दोनों के लिए ही ये एक नया रोमांच था, किरन ने कभी सोचा नही था कि वो इस कदर अपने ही सगे भाई की बाहों में समाएगी, इतना रोमांच तो उसे अपने पति के साथ भी नही आया था, ये दुगना आनंद ईश्वर उसकी झोली में एकाएक डाल देंगे इसकी उसे उम्मीद नही थी। वही हाल सत्तू का था, अपनी सगी बहन को आज पहली बार बाहों में इस कदर भरकर वो भी संतुलन खो बैठा था, दोनों एक दूसरे की बदन की खुश्बू को महसूस कर बहक से रहे थे, पर जल्द ही किरन ने खुद को संभाला और लजाते हुए बड़े प्यार से अपने भाई की आंखों में देखने लगी, सत्तू भी उसकी आँखों में देखने लगा।

किरन- तू मुझे इतना प्यार करता है कि मेरी खुशी के लिए मेरा देवर बन गया, कितनी भाग्यशाली हूँ मैं जो मुझे ऐसा भाई मिला जो मेरा भाई भी है और मेरा देवर भी।

सत्तू- कोई भी भाई अपनी बहन को उदास नही देख सकता, तो मैं तो अपनी इस बहन से बहुत प्यार करता हूँ, तो क्या मैं तुमको उदास देख सकता था...कभी नही मेरी भाभी।

किरन- ओह! मेरे देवर जी

किरन अपने भाई से खुद ही कस के लिपट जाती है और सत्येन्द्र के हाँथ उसके बदन पर कसते चले जाते है, किरन का लज़्ज़ा के मारे बुरा हाल भी होता जा रहा था, पर अतुल्य रोमांच में वो डूबती जा रही थी।

सत्तू ने धीरे से जैसे ही किरन की गर्दन पर एक चुम्बन लिया, किरन झट से सत्तू की आंखों में देखने लगी, उसके होंठ हल्का कंपन कर रहे थे, वो सत्तू की आंखों को पढ़ने की अभी कोशिश कर ही रही थी कि सत्तू ने धीरे से बड़े ही कामुक तरीके से अपनी तर्जनी उंगली किरन के हल्का थरथराते होंठों पर फेरी, किरन लजा कर अपने भाई से लिपट गयी और धीरे से बोली- भाभी के साथ ये सब करते हैं, ऐसी मस्ती करोगे अपनी भाभी के साथ?

सत्तू कुछ देर चुप रहा फिर धीरे से बोला- ठीक है अगर मेरी भाभी नही चाहेगी ऐसी मस्ती तो नही करूँगा, जैसी मस्ती वो चाहेगी वैसा ही करूँगा?

दोनों एक दूसरे की बाहों में कुछ देर समाये रहे, एक चुप्पी सी छाई रही, फिर किरन धीरे से बोली- मैंने ऐसा तो नही कहा देवर जी की मैं नही चाहूंगी।

ये सुनते ही सत्तू ने कस के किरन को थोड़ा और दबोच कर बाहों में भर लिया जिससे उसकी हल्की सी आह निकल गयी, सत्तू ने किरन की गर्दन पर जैसे ही हल्का सा चूमा, एक बिजली सी उसके बदन में दौड़ गयी, उसने जल्दी से सत्तू के होंठों पर उँगली रखते हुए बोला, ऐसी मस्ती यहां नही मिलेगी मेरे देवर जी, कोई आ जायेगा देख लेगा तो।

सत्तू- तो कहां मिलेगी ऐसी मस्ती मेरी भाभी, कब मिलेगी, अपने देवर को ऐसे न तड़पाओ।

आज अपने सगे भाई के मुँह से ये सुनकर किरन मारे शर्म के लजा गयी, आंखों में देखने लगी, अपने भाई की मंशा वो जान चुकी थी की उसका भाई उसके साथ क्या करना चाहता है, चाहती तो वो भी यही थी पर सेफ जगह और बहुत तसल्ली से, जल्दबाजी में नही, इसलिए उसने धीरे से कहा- ऐसी मस्ती मेरे देवर को मेरे ससुराल में मिलेगी, वहां बहुत कम लोग हैं, केवल सास और ससुर बस, जानते तो हो ही न।

सत्तू- तो वहां ले चलूं मैं अपनी भाभी को, मौका निकाल के।

किरन धीरे से शर्माते हुए बोली- ह्म्म्म

किरन का ग्रीन सिग्नल पाकर सत्तू तो मानो सातवें आसमान में था, उसने अपने होंठ किरन के होंठों पर रख दिये, किरन की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, दोनों बहन भाई, देवर भाभी बनकर एक दूसरे तो चूमने लगे, आज पहली बार सत्येन्द्र अपनी सगी बहन के होंठों को इस कदर चूम रहा था, किरन को भी विश्वास नही था कि सत्येन्द्र एकाएक अपने होंठ उसके होंठों पर रख देगा, पर इतना आनंद उसे आज तक नही मिला था, कुछ देर दोनों एक दूसरे को चूमते रहे, फिर किरन ने जैसे तैसे खुद को संभालते हुए धीरे से बोला- कोई आ जायेगा, अब जाने दे।

सत्तू- तुझे तेरी ससुराल ले चलूं, बहुत प्यास लगी है।

किरन ने फिर सत्तू की आंखों में देखा और शर्मा कर बोली- ले चल न।

सत्तू- तू ही कोई बहाना लगा न भाभी, मेरी शादी से पहले एक बार तेरी ससुराल चलते हैं।

किरन- सोचती हूँ कुछ....पर अब छोड़ न मुझे मेरे देवर जी....जाने दे कोई देख लेगा।

सत्तू ने किरन को छोड़ दिया किरन ने अपना सूट ठीक किया और सत्तू को देखते हुए मुस्कुरा कर बाहर चली गयी।
शानदार bhai
 
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andyking302

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Update- 12

किरन के घर आने के बाद सत्येंद्र भी कुछ देर बाद घर आ गया, किरन तो मानो जैसे आज मिली खुशी को समेट ही नही पा रही थी, उसके चेहरे पर हल्की शर्म, लालिमा और नए अहसाह से उठ रही मुस्कुराहट साफ देखी जा सकती थी, जिसको वह छुपाने का भरकस प्रयास तो कर ही रही थी, पर जब जब सत्तू सामने आता तो उसे देखकर मुस्कुरा ही पड़ती।

सत्तू को तो दोगुनी उत्तेजना हो रही थी, अल्का ने तो उसे राखी बांधकर जो भाई बनाया था उसकी उत्तेजना परम आनंददायक तो थी ही और ऊपर से उसकी सगी बहन अब उसकी भाभी बन गयी थी।

यही सब सोचते हुए जैसे ही वो अपने घर में कमरे में गया, अल्का उसके पास आई और इधर उधर देखकर धीरे से बोली- भैया....ओ मेरे भैया जी।

सत्तू ने पलटकर जैसे ही देखा अल्का को खींचकर अपनी बाहों में भर लिया।

अल्का इधर उधर देखते हुए थोड़ा कसमसा कर बोली- कोई देख न ले भैया, थोड़ा सब्र रखो, दीदी बार बार घर के अंदर आ जा रही हैं, और अम्मा भी।

सत्तू ने सब अनसुना कर दिया और जल्दी से अल्का के रसभरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये, अल्का की आँखें बंद हो गयी, उसने कुछ देर सत्येन्द्र को अपने होंठों का रस पिलाया, तभी किसी के आने की आहट हुई तो दोनों झट से अलग हो गए।

अल्का- देवर जी, अपने कपड़े दे दो क्या धोना है, मैं धोने जा रही थी कपड़े।

(अल्का ने एक आंख मारते हुए सत्तू से कहा)

सत्तू- हां भौजी ये लो, ये सब धो डालो।

(सत्तू ने कुछ कपड़े अल्का को देते हुए कहा)

तभी सत्तू की अम्मा घर में सामने जाते हुए दिखी, अल्का ने झट से सत्तू के कान हल्का सा पकड़े और बोली- अभी अम्मा देख लेती तो....थोड़ा सा भी सब्र नही है...मेरे भैया को।

सत्तू- कैसे सब्र होगा, जब इतनी रसीली बहन हो पास में।

अल्का शर्मा गयी, सत्तू के T Shirt का कॉलर पकड़ के बोली- इसको भी उतार के दो इसको भी धोना है।

सत्तू ने झट से अल्का के सामने ही पहनी हुई T Shirt उतार दी, अल्का ने सत्तू के ऊपरी नग्न बदन को मुस्कुराकर निहारते हुए वो T Shirt जैसे ही ली, उसकी जेब में रखा वो कर्म का कागज फर्श पर गिर पड़ा, ये कागज इस T Shirt में तब से पड़ा हुआ था जब सुखराम के यहां से आते वक्त सत्तू ने रास्ते में इसे पढ़ा और फिर इसको जेब में रख लिया था, तभी से ये जेब में पड़ा ही था, और इत्तेफ़ाक़ देखो न इसपर किसी की नज़र पड़ी और एक दो दिन में जो हुआ सत्तू उसमें इतना खो गया कि उसको अपने कर्म का ध्यान ही नही रहा, अब जब कागज T Shirt से निकलकर जमीन पर गिरा, तो सत्तू उसको देखकर चौंक गया, सत्तू के उठाने के पहले ही अल्का ने वो कागज उठा लिया, पर वो स्वयं ही सत्तू को देते हुए बोली- ये कैसा कागज है? देखो अभी कपड़ो के साथ धुल जाता न, क्या है ये?

सत्तू- है मेरी बहना कुछ बताऊंगा बाद में।

अल्का- ऐसा क्या है इसमें, बहुत पुराना सा कागज है ये।

सत्तू- अब तुम भी थोड़ा सब्र रखो मेरी बहना, बताऊंगा।

अल्का मुस्कुराती हुई कपड़े लेकर चली गयी, सत्तू का तो माथा ठनक गया, इतना लापरवाह वो कैसे हो सकता है, अगर ये कागज किसी और के हाँथ लग जाता तो। कागज में लिखी सारी बातें उसके दिमाग में घूम गयी, कर्म भी समय से पूरा करना था, घर की कोई भी स्त्री अब नही बची थी जो उस कर्म के दायरे में न आती हो, ये क्या इत्तेफ़ाक़ था, क्या ये होनी थी जो उसने उसकी सगी बहन को उसकी भाभी बनवा दिया, स्वयं उसके मुंह से, उस वक्त उसे न तो उस कागज का ध्यान था और न ही उसमें लिखे कर्म का, ये सब क्या हो रहा था, ये सब उसने भावनाओं में बहकर या न जाने क्या था उसमे बंधकर ये सब कर डाला, उसे खुद भी यकीन नही हो रहा था, पर इतना तो जरूर था कि कोई तो है जो उसका रास्ता बना रही है और ये कोई और नही "होनी" ही है।

सत्तू उस कर्म के बारे में सोचने लगा, उसको ये कर्म वक्त रहते पूरा भी करना था।

उस कागज को उसने फिर भी फाड़ा नही, अपने ही कमरे में छुपाकर रख दिया, ये सोचकर कि जब कर्म पूरा हो जाएगा तो इसको जला देगा।

दोपहर के वक्त सौम्या ने आवाज लगाई- अल्का...... किरन।

दोनों एक साथ- हाँ.... भौजी., हाँ.....दीदी

सौम्या- दोनों जा के खेत से शाम के लिए थोड़ा चार इकठ्ठा कर लो गायों और भैंसों को देने के लिए..... अब बाबू तो हैं नही और अम्मा भी व्यस्त हैं दूसरे काम में.....तुम दोनों ही चली जाओ।

सत्तू उस वक्त किसी काम से अपने मित्र के यहां गया हुआ था।

सत्तू जब आया तो देखा घर में केवल सौम्या भाभी ही थी।

सत्तू- भाभी मां, कहाँ गए हैं सब?

सौम्या- आ गए देवर जी....अल्का और किरन तो खेत में गए हैं और अम्मा पड़ोस में गयी हुई है किसी काम से।

सत्येंद्र सौम्या के कमरे में आ गया, उस वक्त वो नहा कर आई थी और आईने के सामने कंघी कर रही थी, महरूम रंग की साड़ी में सौम्या गज़ब ढा रही थी, जैसा नाम था उसका वैसी वो थी भी, गोरा गोरा भरा हुआ बदन, चौड़े नितंब, मोटे मोटे दोनों स्तन, अभी अभी बस नहा कर आई ही थी और श्रृंगारदान के सामने बैठकर गीले बालों को सुखा रही थी, गीले बालों से टपककर पानी सौम्या के ब्लॉउज को पीठ पर और साइड से हल्का हल्का भिगो चुका था, ब्लॉउज भीगने पर साइड से गोरी गोरी चूची हल्का हल्का ब्लॉउज के ऊपर से ही चमक रही थी, जिसपर सत्तू का ध्यान जाते ही वो कुछ देर वहां देखता रहा, सौम्या इस बात से बेखबर हाँथ उठा उठा कर कभी बालों को कंघी करती कभी थोड़ा झटक झटक कर बाल सुखाती, झटकने से मोटे मोटे दूध कलश और हिल जाते, जिसे देखकर सत्तू बेसुध सा हो रहा था, अपनी भाभी माँ को उसने पहले कभी ऐसे नही देखा था, पर इस कर्म ने तो उसका उसके घर ही सभी स्त्रियों के प्रति सोच ही बदलकर रख दिया था, जबकि उसकी खुद की शादी होने वाली थी, सब कुछ उसको मिलता, पर उसकी जो सोच अब बदल गयी थी वो उसके अधीन हो चुका था।

सत्तू ने सौम्या से पूछा- कब तक आएंगे सब भाभी माँ?

सौम्या ने कंघी करते हुए पलटकर सत्तू की ओर देखते हुए कहा- अभी अभी तो गए हैं, वक्त तो लग ही जायेगा आने में सब को......बैठ न खड़ा क्यों है....जब से आया है बस खड़ा खड़ा मुझे ही देखे जा रहा है, अपनी भाभी माँ को आज पहली बार देख रहा है क्या?

सत्तू पास में ही बेड पर बैठ जाता है- नही भाभी माँ, देख तो मैं आपको बचपन से रहा हूँ पर न जाने क्यों आज आपको बस देखने का मन किये जा रहा है।

सौम्या जोर से हंसते हुए बोली- अच्छा तो ये बात है....तो देख ले तू अपनी भाभी माँ को.....कहाँ भागी जा रही हूं मैं?....रुक पानी लाती हूँ तेरे लिए......कहाँ गया था तू?......मुझे बता कर जाया कर.....अम्मा भी पूछ रही थी?

सत्तू- अच्छा मेरी भाभी माँ..... अब से बिना आपको बताए मैं कहीं नही जाया करूँगा.....मैं जानता हूँ आप मेरी बहुत फिक्र करती हैं।

सौम्या कंघी करके उठी और सत्तू के बगल से जाते हुए उसके सर पर बालों को हल्का सा सहलाते हुए, ये बोलते हुए उसके लिए पानी लाने निकली की "ये हुई न मेरे देवर वाली बात"।

सत्तू पहले तो बेड के किनारे बैठा था पर फिर वो सिरहाने पर टेक लगा कर ठीक से दोनों पैर ऊपर करके बैठ गया।

सौम्या उसके लिए पानी लायी और उसके बगल में ही बेड पर बैठ गयी।

सत्तू- बच्चे कहाँ गए हैं?

सौम्या- किरन और अल्का के साथ खेत में गए हैं जिद करके......पर आज मेरे देवर जी ऐसे क्यों पूछ रहे हैं बार बार.....ह्म्म्म.....हम दोनों ही घर में हैं बाबा कोई नही है.....लो पानी पियो पहले।

सत्तू ने पानी पिया और सौम्या को देखने लगा।

सौम्या भी उसको देखते हुए बगल में बैठे बैठे हल्का हल्का उसके बालों पर हाँथ फेरती रही फिर बोली- कितना बड़ा हो गया न तू......शादी होने वाली है तेरी.....ये मेरा देवर देखते देखते कितनी जल्दी इतना बड़ा हो गया।

सत्तू थोड़ा उदास हो गया, सौम्या ने भांप लिया और बोली- क्या हुआ, चेहरे पर ये उदासी क्यों, तुम्हें तो खुश होना चाहिए, नई दुल्हनिया आने वाली है जीवन में.... ह्म्म्म

सत्तू- उदास न होऊं तो और क्या करूँ? इस जवानी ने मेरा बचपन तो छीन लिया न, मेरा वो हक़ तो छीन ही लिया न जब मैं बेधड़क अपनी भाभी माँ की गोद में समा जाता था, न किसी का डर होता था न किसी बात का संकोच, आखिर समय ने कुछ दिया है तो कुछ छीना भी तो है न, अगर पाने वाली चीज की खुशी से खोने वाली चीज का दुख कहीं ज्यादा गहरा हो तो पाने वाली चीज में वो सुख नही रह जाता..भाभी माँ, सोचो न एक वक्त वो होता था जब मैं निसंकोच आपकी गोदी में समा जाता था और आप मुझे प्यार कर लेती थी, पर आज....क्या मैं ऐसा कर सकता हूँ.....नही न.....क्या फायदा ऐसा बड़ा होने से जिसने मुझे मेरी भाभी माँ छीन ली।

ये सुनते ही सौम्या के आंसू छलक आते हैं, वो एक टक सत्तू की आंखों में देखने लगती है, सत्तू की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं।

सौम्या झट से बेड पर चढ़कर सत्तू के बगल में बैठते हुए उसे गोदी में लेकर अपने गले से लगा लेती है, वो रुआँसी सी हो गयी थी, सत्तू की भी आँखे छलक आयी थी।

सौम्या- मुझे माफ़ करदे सत्तू......तू मुझे इतना miss करता है......मैं कितनी गंदी हूँ न....मैं अपने देवर को कैसे भूल सकती हूं.....तू चाहे कितना भी बड़ा हो जाये तू मेरा वही प्यारा सा सत्तू है, ऐसा नही है कि मैं तुझे याद नही करती या तुझे गोद में लेकर प्यार नही करना चाहती पर यही सोचकर रह जाती थी कि कोई देख न ले, कोई क्या सोचेगा, आज तुझे उदास देखकर मुझे खुद पर शर्म आ गयी कि मैं कैसे बदल सकती हूं, नही मेरे सत्तू मैं बदली नही हूँ मैं वही हूँ, वही तेरी सौम्या भाभी।

सत्तू ने सौम्या के गालों पर बहते आंसू को पोछा और बोला- मैं भी तो कितना गंदा हूँ न, देखो न कैसे मैंने अपनी प्यारी सी भाभी को रुला दिया।

सौम्या- नही सत्तू....तूने मुझे रुलाया नही है......बल्कि तूने तो भटकी हुई अपनी भाभी को दुबारा पा लिया है।

सत्तू- मैं तुम्हें कहीं खोने ही नही दूंगा.....तुम ही खो जाओगी तो मैं जीऊंगा कैसे?

सौम्या- मेरे बिना तू नही रह पाएगा....अगर मुझे कुछ हो गया तो....

सत्तू ने तुरंत सौम्या के लबों पर उंगली रखते हुए बोला- ये क्या बोले जा रही हो.....मर जाऊंगा मैं आपके बिना.....मेरी जीवनदायनी हो तुम, तुमने मुझे पाल पोषकर बड़ा किया है....आपके बिना मैं रह पाऊंगा क्या?.......आपको पता है पालने वाला जन्म देने वाले से भी कहीं बड़ा होता है।

ये सुनते ही सौम्या आत्मविभोर होकर सत्तू से लिपट जाती है, दोनों एक दूसरे को कस के बाहों में भर लेते हैं। सौम्या के एक बार फिर से आंसू छलक आते हैं वो बस सत्तू के कान में धीरे से बोलती है- मुझे माफ़ करदे सत्तू।

सत्तू- भाभी....मेरी भाभी माँ.... ये क्या बोल रही हो तुम.....अब ऐसा मत बोलना की "मुझे माफ़ कर दे" तुम्हारी कोई गलती थोड़ी है, तुम्हारी जगह कोई भी दुसरी औरत होती तो वो भी यही करती, अब इन प्यारी प्यारी आंखों से आंसू नही आने चाहिए, जिसने मुझे जीवन दिया उसकी आँखों में आंसू मैं बर्दाश्त नही कर सकता।

(सत्तू ने सौम्या के आंसू पोछते हुए कहा, दरअसल सौम्या बहुत मार्मिक हृदय की थी, झट से उसकी आँखों में आंसू आ जाते थे, अल्का की तरह वो बहुत चंचल और बातूनी नही थी, उसका स्वभाव अलग था, सुन्दरता में वो किसी भी तरह से किसी से भी कम नही थी, हाँ इतना जरूर था कि उसका बदन भरा हुआ था जो कि उसकी सुंदरता को और चार चांद लगा देता था)

सौम्या सत्तू को अच्छे से बाहों में लेकर बेड पर बैठ जाती है, सत्तू अब इस गमहीन माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए ऐसी ऐसी बातें करने लगता है कि सौम्या खिलखिला कर हंस पड़ती है, सारा माहौल बदल जाता है, दोनों कभी हंसते, कभी एक दूसरे की आंखों में देखते, सौम्या बीच बीच में सत्तू को दुलारती, कभी उसके माथे को चूमती, कभी बालों में उंगलियां फेरती, बचपन की बहुत सारी बातें करते हुए सौम्या ने बीच में कहा- रुक बाहर का दरवाजा बंद करके आती हूँ, कहीं कोई आ न जाये।

सत्तू- खुला ही रहने दो न भाभी, बंद करके रखोगी तो किसी को भी शक होगा।

सौम्या ने सत्तू की को देखा और बोली- शक.....अगर होता भी है तो होने दो....अब नही सोचना मुझे इस बारे में कुछ भी। वैसे मैं बस हल्का सा दरवाजा सटा कर आती हूँ।

सत्तू- तुम रुको भाभी मैं करके आता हूँ।

सौम्या फिर बेड पर लेट ही गयी और सत्तू बाहर का गेट हल्का सा सटा कर आ गया, आकर देखा तो सौम्या बाल खुले करके बेड पर लेटी सत्तू को ही निहार नही थी, उसकी आँखों में देखता हुआ वो भी बेड पर उसकी बगल में लेट गया, सौम्या खुद ही और नज़दीक आ गयी और देखते ही देखते न जाने कब दोनों ने एक दूसरे को बाहों में भर लिया, अभी तक सौम्या को sensation नही हुआ था पर अब जैसे ही लेटकर सत्तू ने उसे बाहों में भरा उसे एक अजीब सा अहसाह हुआ, भले ही सत्तू को वो एक बेटे की तरह देखती आयी थी पर अब वो बड़ा हो चुका था, और काफी अरसे बाद ही इस तरह वो उसके साथ लेटी थी, चाहे जो भी हो था तो वो एक पुरुष ही, इससे पहले अभी कुछ देर पहले ही जब बैठकर वो उसे बाहों में लिए थी तब तक भी उसे ऐसी फीलिंग नही आई थी, पर जिस कदर वो लेटकर एक दूसरे में समाये थे वो केवल एक देवर भाभी का वात्सल्य प्रेम नही था उसमे कुछ मिक्स था जिससे अब उसका बदन सनसना गया था, जिस कदर सत्तू ने उसे आगोश में भरा था, वो कुछ अलग सा था, और इस अलग से अहसाह को महसूस करते ही सौम्या की लगभग एक साल से दबी हुई पुरूष स्पर्श की इच्छा जागृत हो उठी, दिल के किसी कोने में वो अपने बेटे जैसे सत्तू को एक पुरूष के रूप में स्वीकार करके हल्का लजा सी गयी, पर उसने जरा भी सत्तू को ये अहसाह नही होने दिया की उसके इस तरह स्पर्श से उसे कैसा महसूस हुआ है, अपना सिर उसने सत्तू के सीने में छुपा लिया।

सत्तू- भाभी जब मैं छोटा था तो ऐसे ही सोता था न आपके पास।

सौम्या मुस्कुराते हुए- नही ऐसे तो नही सोते थे।

सौम्या कहकर हंसने लगी

सत्तू- क्या? ऐसे नही सोता था.....क्या भाभी ऐसे ही तो सोता था।

सौम्या- ऐसे नही एक बच्चे की तरह सोते थे......समझे।

सत्तू- तो क्या अब बच्चे की तरह नही सो रहा हूँ?

सौम्या हल्का सा शर्मा कर- नही......जी बिल्कुल नही......ऐसे सो रहे हो जैसे कोई मर्द अपनी.......

कहते हुए सौम्या शर्मा कर उसके सीने में छुप सी गयी।

सत्तू को को मन ही मन बहुत खुशी हो रही थी।

सत्तू- जैसे कोई मर्द.....आगे....मैं समझ नही भाभी....बता तो दो।

सौम्या ने सिर उठा के सत्तू को देखा फिर बोली- जैसे कोई मर्द अपनी बीवी के साथ सोता है.....जब तू छोटा था तो ऐसे थोड़ी सोता था।

सत्तू- भाभी.....अब जहां तक मुझे याद है मैं तो आपसे ऐसे ही लिपट कर सोता था।

सौम्या- हाँ पर अब वो छोटा बच्चा अब बच्चा थोड़ी न रहा।

सत्तू- तो अजीब लग रहा है मेरी भाभी माँ को।

सौम्या का चेहरा अब शर्म से लाल हो गया वो सत्तू के सीने में फिर दुबक गयी।

सत्तू- पता है भाभी माँ कैसी लग रही हो।

सौम्या धीरे से- कैसी?

सत्तू- जैसे कि मेरी बच्ची हो तुम, एक छोटी सी बच्ची की तरह कैसे दुबकी हुई हो।

सौम्या मंद मंद मुस्कुरा उठी फिर बोली- हाँ तो अभी तक तुम मेरे बेटे जैसे, मेरे बच्चे जैसे थे और....लो अब मैं भी तुम्हारी बच्ची बन जाती हूँ।

सत्तू- हां क्यों नही.....जब आपने मुझे बचपन से अपना बच्चा बना के प्यार दिया है तो मैं भी अब अपनी भाभी माँ को अपनी बच्ची की तरह प्यार दूंगा।

सौम्या फिर हंस पड़ी- मैं बच्ची हूँ तुम्हारी।

ऐसा कहकर सौम्या हँसते हुए सत्तू को देखने लगी

सत्तू- क्यों नही........(कुछ देर एक दूसरे को देखने के बाद सत्तू फिर धीरे से बोला)......मेरी बच्ची।

सौम्या- धत्त.....कैसा लग रहा है......बहुत अजीब लग रहा है ऐसे न बोल।

सत्तू अब कहाँ चुप होने वाला था, उसने धीरे धीरे कई बार सौम्या के कानों में "मेरी बच्ची", "मेरा बच्चा" "मेरा शोना" बोलता रहा और हर बार सौम्या कभी खिलखिलाकर हंस देती, कभी आंख बंद कर एक अजीब से रोमांच को महसूस करती, कभी सत्तू के सीने में प्यार से मुक्का मारती, बार बार शर्माकर यही बोलती की "तेरी बच्ची हूँ मैं.....बहुत अजीब सा लग रहा है।"

जब काफी देर से सत्तू सौम्या को बार बार "मेरी बच्ची" बोलता रहा तो सौम्या ने साड़ी का पल्लू उठा के चेहरा ढंक लिया और बोली- जा मैं नही सुनती।

सत्तू- नही सुनने के लिए कान ढका जाता है, न कि चेहरा।

सौम्या फिर हंस पड़ी और झट से अब खुद ही बोल पड़ी- अच्छा मेरे बाबू जी....मुझे नही पता था।

सत्तू उसे देखने लगा फिर बोला- मैं बाबू जी हूँ तुम्हारा?

सौम्या अब थोड़ा शरारत से- क्यों नही, जब मैं तुम्हारी बच्ची हुई, तो हुए न तुम मेरे बाबू जी....अब मैं भी बाबू बोलूंगी...... बहुत देर से बच्ची बच्ची बोले जा रहे हो।

सत्तू ने फिर कह दिया- मेरी बच्ची

सौम्या शर्माकर- मेरे बाबू जी

सत्तू- मेरी प्यारी बच्ची

सौम्या हंसते हुए- मेरे प्यारे बाबू जी

(दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हुए कई बार ऐसे बोलते रहे, पर सौम्या का बदन अंदर से हर बार गनगना जा रहा था, वो शर्म से दोहरी भी होती जा रही थी और बराबर साथ भी दे रही थी)

तभी सत्तू बोला- कौन से बाबू?

सौम्या ने सवालिया निगाहों से सत्तू को देखा और बोली- मतलब

सत्तू- बाबू जी तो दो हुए न, एक पिता और एक ससुर जी.....तो मैं कौन सा?

सौम्या ने एक मुक्का सत्तू के सीने में मारा- जैसी मैं बच्ची वैसे मेरे बाबू जी.....और क्या?

सत्तू- पर सबसे ज्यादा मजा किसमे आ रहा है...... मेरी बच्ची

सौम्या अब काफी खुल सी गयी थी उसने झट से सत्तू के गाल पर चिकोटी काटी और बोली- जिसमे मेरे बाबू जी को मजा आ रहा होगा उसमे ही मुझे भी आएगा।

(सौम्या शर्माते हुए धीरे धीरे खुलती जा रही थी)

सत्तू- पर मन तो कह रहा है कि एक बार चेक करूँ।

सौम्या मुस्कुराते हुए सत्तू की आंखों में देखती रही, दोनों ने एक दूसरे को बाहों में कसा हुआ था, सौम्या धीमी आवाज में बोली- तो कर लो चेक।

(सौम्या की आवाज अब थोड़ी भारी सी होने लगी थी)

सत्तू जो सौम्या के दाईं तरह लेटा हुआ था वो उसके ऊपर धीरे से चढ़ने लगा, सौम्या उसकी मंशा समझ वासना से भर गई, उसकी सांसें धीरे धीरे तेज होने लगी, झट से उसने साड़ी का पल्लू अपने चेहरे पर डाल लिया, शर्म से वो अब पानी पानी हुई जा रही थी, पर न जाने क्यों वो सत्तू को रोक न सकी, आंखें बंद किये बस वो उसे अपने ऊपर चढ़ाती गयी और सत्तू धीरे धीरे अपनी भाभी माँ के ऊपर चढ़ता गया, कुछ ही पलों में वो सौम्या के ऊपर चढ़ चुका था, मस्ती और वासना में वो सुध बुध खो बैठी थी, जैसे ही सत्तू सौम्या के ऊपर पूरी तरह चढ़ा उसने पीठ के नीचे हाँथ ले जाकर सौम्या को कस के बाहों में भर लिया, और अब जो सौम्या के मुँह से आवाज निकली वो एक मादक सिसकारी थी, जिसको दोनों ही अच्छे से समझ
चुके थे कि ये मादक सिसकारी कब और क्यों निकलती है और इसका मतलब क्या होता है।

सौम्या मदहोशी में खोई हुई थी सत्तू ने पीठ के नीचे से दोनों हाँथ निकालकर सौम्या के पैरों को पकड़ा और जैसे ही हल्का सा फैलाने की कोशिश की सौम्या ने खुद ही अपने दोनों पैर फैलाकर उसकी कमर में लपेट दिए, दोनों ही अब एक दूसरे की मंशा जान चुके थे, दोनों की ही सांसें तेज चलने लगी।

सौम्या का गदराया भरपूर बदन सत्तू के नीचे दबा हुआ था, पैर कमर पर लिपटे होने की वजह से साड़ी घुटनों के ऊपर तक उठ गई थी जिससे सौम्या के नंगे गोरे गोरे पैर दिन की रोशनी में चमक उठे।

सत्तू को अब पूर्ण विश्वास हो चुका था कि सौम्या के मन में भी क्या है, और उसे ये सब अच्छा लग रहा है, उसने अपनी भाभी के मन को टटोलने के लिए, की उसे कौन से बाबू सोच कर ज्यादा उत्तेजना हो रही है, धीरे से उसके कान में कहा- मेरी बच्ची...मेरी बहू

सौम्या ये सुनते ही गनगना सी गयी, सत्तू ने कई बार उसे बहू कहकर बुलाया, हर बार सौम्या हल्का सा गनगना जाती और कस के सत्तू को भींच लेती, पर कुछ देर बाद जैसे ही सत्तू ने उसके कान में फिर धीरे से बोला- मेरी बच्ची मेरी बेटी

सौम्या के मुँह से सिसकी फुट पड़ी, सत्तू ने फिर एक दो बार सौम्या के कान में "मेरी बेटी", "मेरी बिटिया" बोला और हर बार सौम्या सिसकते हुए कराह उठी। सत्तू का लंड खड़ा होकर लोहे की तरह हो गया, जो कि सौम्या की जाँघों के बीच चुभता हुआ उसे बखूबी महसूस होने लगा, जिससे अब सौम्या का बुरा हाल होने लगा, आज जीवन में पहली बार वो सत्तू का लंड महसूस कर रही थी, उस सत्तू का जो उसके बेटे के समान था, जिसको उसने कभी अपनी गोद मे खिलाया था, कभी कभी वो जब छोटा था तो वो उसके सारे कपड़े उतार के मालिश कर दिया करती थी उस वक्त का उसका छोटा सा नुन्नू आज कितना बड़ा और मोटा सा तना हुआ उसे साड़ी के ऊपर से अपनी बूर पर चुभता हुआ महसूस हो रहा था, जिसको महसूस कर वो खुद को मदहोश होने से नही रोक पा रही थी।

ऊपर से सत्तू ने जो उसे बेटी कहकर बुलाया तो एक अजीब सी गुदगुदी उसके पूरे बदन में दौड़ गयी।

सत्तू बार बार उसे मेरी बेटी, मेरी बिटिया रानी कहकर बुला रहा था, जब उससे रहा नही गया तो उसने भी धीरे से सिसकते हुए बोल ही दिया- पिताजी......मेरे पापा

सत्तू की सिसकी निकल गयी, (उसे विश्वास नही हुआ कि उसकी सौम्या भाभी "बाप बेटी के बीच" सोचकर वासना में डूबती हैं) वो फिर बोला- बेटी...मेरी बेटी


सौम्या मदहोशी में- पापा..... मेरे पापा

सत्तू- तू मेरी बेटी है न

सौम्या- आआह!.....हां.... मैं आपकी बेटी हूँ... आपकी बिटिया रानी.....मुझे अपनी बेटी बना ले सत्तू

सत्तू से अब रहा नही गया, वो समझ गया कि उसकी भाभी को कहां बहुत मजा आ रहा है, उसने अब अपने लंड से सौम्या की बूर पर सूखे सूखे हल्के हल्के धक्के मारने लगा, सौम्या बेहद शर्माते हुए सत्तू के गाल पर हल्का सा काट बैठी, उसके मुंह से हल्की हल्की सिसकारी फूटने लगी, सत्तू ने साड़ी के ऊपर से ही अपनी भाभी माँ की बूर पर लंड रगड़ते हुए फिर धीरे से बोला- मेरी बेटी

सौम्या फिर सिसकते हुए बोल पड़ी- आआह पापा..... मेरे प्यारे पापा...... करो न

"करो न" शब्द सुनकर सत्तू मानो पागल सा हो गया, उसे विश्वास नही हुआ कि आज उसकी वो भाभी जो उसकी माँ समान थी, इतनी मदहोश हो जाएगी कि वो इस कदर बोल पड़ेगी की "करो न"।

सत्तू धीरे से बोला- क्या करूँ मेरी बिटिया

सौम्या- अपनी बिटिया को प्यार...प्यार करो न पापा।

सत्तू बहुत शातिर था, वो इससे आगे नही बढ़ना चाहता था, वो तो बस अपनी भाभी माँ की दबी हुई कामेच्छा को जगाना चाहता था, इसलिए आज वो सौम्या को यहां तक ले आया था, और सच तो ये है कि सौम्या के मन में भी ये कहीं न कहीं था, तभी दोनों यहां तक आ पाए थे।

सत्तू- अब तुम मेरी बेटी बन गयी हो तो मैं अपनी बेटी को तसल्ली से प्यार करना चाहूंगा, जब किसी के आने का कोई डर न हो, थोड़ा सब्र रखोगी मेरी बेटी।

सौम्या ने आंखें खोलकर सत्तू को वासना भरी आंखों से देखा, और फिर शर्मा कर बोली- मैं इंतज़ार करूँगी।

सौम्या की कामेच्छा जाग चुकी थी। सत्तू ने अब कुछ ऐसा किया कि सौम्या हल्का सा चिहुँक सी गयी पूरा कमरा सिसकारी से गूंज उठा, सत्तू ने अपने दाएं हाँथ से सौम्या की बूर को साड़ी के ऊपर से ही मुठ्ठी में भरकर हल्का सा भींच दिया, सौम्या सिसक पड़ी और धीरे से खुद ही बोली- पापा बस

तभी बाहर किसी की आहट की आवाज हुई और दोनों बेमन से झट से फटाफट अलग हुए, सौम्या ने जल्दी से अपनी साड़ी को ठीक किया और सत्तू अपना खड़ा लंड ठीक करता हुआ चुपके से कमरे से निकलकर अपने कमरे में जाकर आंख बंद करके लेट गया, जैसे मानो वो काफी देर से सो रहा हो।
शानदार bhai
 
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Update- 13

सत्तू कुछ देर तक आंख बंद किये लेटा रहा, बाहर उसकी अम्मा आ चुकी थी, उसका मन नही लग रहा था, वो बस यही सोचे जा रहा था कि भाभी माँ की fantasy बाप बेटी में है, वो कितनी छुपी रुस्तम निकली, बचपन से लेकर वो उनके साथ है पर कभी जाहिर नही हुआ, कितनी शांत और भोली भाली सी दिखने वाली मेरी भाभी माँ को इस रिश्ते में पागलपन का मजा आता है, कितना मजा आने वाला है अब तो, मुझे अपनी भाभी माँ को उनकी इच्छा के अनुसार पूरा सुख देना चाहिए, हर इंसान की अपनी अलग अलग fantasy होती है, जब मेरी प्यारी भाभी माँ ने मुझे बचपन से इतना प्यार दिया है तो मैं भी अपनी भाभी माँ को उनकी इच्छा के अनुसार हर सुख दूंगा, अच्छा ही हुआ जो आज मुझे उनकी fantasy पता चल गई, आज एक ही दिन में वो मेरे से कितना खुल गयी, यही सब सोचता हुआ सत्तू बेचैन हो उठा, उसका दुबारा मन होने लगा कि वो अपनी भाभी माँ के पास जाए।

उससे रहा नही गया उसने झट से उठकर मेन गेट से बाहर देखा तो उनकी अम्मा आ तो गयी थी पर वो कुएं के पास सफाई करने चली गयी थी, वो समझ गया कि अम्मा अभी घर में नही आएंगी, वो तुरंत फिर से सौम्या के कमरे में गया, उस वक्त सौम्या बेड के पास खड़े होकर बेडशीट ठीक कर रही थी। सत्तू ने सौम्या को पीछे से बाहों में भर लिया, एक पल के लिए तो सौम्या चौंक सी गयी पर जैसे ही उसने सर घुमा कर सत्तू को देखा, आंखों में नशा और चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी।

जितनी बेचैनी से सत्तू ने सौम्या को कस के पीछे से बाहों में भरा सौम्या ने उतनी ही बेचैनी से अपना बदन सत्तू से सटा दिया, अपनी भाभी की इस अदा पर सत्तू कायल हो गया, उसका लंड लोहे की भांति सख्त होकर सौम्या की भारी भरकम चौड़ी गांड में धंस गया, अपने सत्तू के मोटे कड़क लड़ की छुवन से सौम्या की सिसकी फूट पड़ी और उसने खुद को सत्तू की बाहों में ढीला छोड़ दिया, अभी तक दोनों ने एक दूसरे को kiss नही किया था, वो कहते हैं न कि जब खूब सारी मिठाई एक साथ सामने आ जाये तो समझ नही आता कि कौन सी पहले खाऊं कौन सी बाद में वही हाल दोनों का हो चुका था।

सत्तू ने एक हाँथ सौम्या की नाभि के थोड़ा नीचे ले जाकर, सौम्या को अपने से और सटाते हुए खुलकर अपने लंड को उसकी गांड की दरार में साड़ी के ऊपर से ही ऐसे भिड़ाया जैसे कोई सांड लंड निकाले गाय के ऊपर चढ़कर हल्का सा थरथराते हुए उसकी बूर का छेद तुक्के में ढूंढता है, सत्तू ने खुलकर दो तीन बार अपनी कमर को नीचे ले जा कर कस कस के सौम्या की गांड में जब अपना खड़ा लंड रगड़ा, तो सौम्या से भी रहा नही गया, उसने भी शर्माते हुए ताल से ताल मिलाया पर कुछ देर में ही हल्का हल्का सिसकते हुए तेजी से पलटी और कस के सत्तू से शर्माते हुए सीधी होकर लिपट गयी, सत्तू ने सौम्या की पीठ, कमर को सहलाते हुए जैसे ही चौड़ी गांड के दोनों पाटों को अपने हाँथ में लेकर भींचा, भारी आवाज में सौम्या सिसकते हुए बोली- रहा नही जा रहा क्या मेरे सत्तू से अब?

सत्तू- नही भाभी माँ.... बहुत मन कर रहा है, हम कितने खुल गए न आज, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे ये सब सपना है।

सौम्या की बूर पनिया गयी थी, बड़ी मादकता से उसने बोला- कभी मैंने सपने में भी नही सोचा था कि मेरा सत्तू मुझे ऐसे प्यार करेगा, मेरा अपना सत्तू जिसको मैंने पाल पोश के बड़ा किया है वो मुझे मर्द वाला प्यार देगा, मेरा वो सत्तू जिसकी मैं बचपन में मालिश करती थी और कभी कभी उसके छोटे से नुन्नू की भी तेल से मालिश कर दिया करती थी आज वही नुन्नू इतना बड़ा हो गया है, मेरा सत्तू कितना बड़ा हो गया है, मुझे अपने सत्तू से ही मर्द वाला प्यार मिलेगा, इस बात पर तो मैं भी यकीन नही कर पा रही हूं।

सत्तू- क्यों नही प्यार दूंगा मैं अपनी भाभी माँ को, मेरी जीवनदायनी हो तुम, कितना प्यार दिया है तुमने मुझे हमेशा, अपनी प्यारी भाभी माँ को मैं हर तरह से उसकी इच्छा के अनुसार प्यार दूंगा।

सौम्या सिसकते हुए सत्तू के गालों को चूम लिया और धीरे से बोली- पर कभी वक्त बहुत कम है अम्मा भी आ गयी हैं न।

सत्तू- आ तो गयी हैं पर अभी कुएं पर कुछ कर रही हैं, शायद उन्हें वक्त लगेगा।

कहते हुए सत्तू सौम्या के गालों को चूमता हुआ कान के नीचे और गर्दन पर ताबड़तोड़ चूमने लगा, सौम्या हल्का हल्का सिसकते हुए बोली- पर रुक सत्तू, अभी बहुत रिस्क है...मान जा न.....सब आने ही वाले है....आआआआहहह हहह.....बस कर......मैं बेकाबू हो रही हूं।

सत्तू रुक गया और सौम्या की आंखों में देखता हुआ बोला- हमारा रिश्ता बदल गया क्या भाभी?

सौम्या समझ गयी और मुस्कुरा कर बोली- पापा जी....अब रुक जाइये न, कोई देख लेगा।

सत्तू- ओह!....मेरी बेटी.....रहा नही जाता अब।

सौम्या- सह लीजिए न पापा जी थोड़ी सी दूरी...आपकी बेटी आपको सब कुछ देगी फिर.....

यह कहकर सौम्या जोर से सिसक उठी और सत्तू ने कस के उसे और भी अपने से सटा कर उसके गुदाज नितम्बों को भींच दिया।

सौम्या हल्का सा कराह उठी

सत्तू- सब कुछ देगी मेरी बेटी मुझको।

सौम्या- हाँ पापा जी.....सब कुछ.....आआआआह

सत्तू- वो भी

सौम्या- हाँ वो भी पापा जी......वो भी.....खूब चख लेना अपनी बेटी की....जैसा आपका मन करे....वैसे खा लेना उसको.......पर अभी थोड़ा सब्र मेरे पापा जी.....आराम से खाना उसको, बहुत आराम से खाने वाली चीज होती है वो।

सत्तू की आआह निकल गयी सौम्या के मुंह से ये सुनकर।

सत्तू- उसको क्या बोलते हैं... मेरी बिटिया....उसका नाम क्या है?

सौम्या धीरे से सिसकते हुए बोली- करते वक्त बताऊंगी पापा जी..... जब हम दोनों करेंगे तब बताऊंगी......जब आप अपनी बेटी की दोनों जाँघों के बीच की उस चीज़ को प्यार से खा रहे होगे न तब मैं उसका नाम बताऊंगी अपने पापा को।

सत्तू फिर से सनसना गया, खुद सौम्या भी ऐसा बोलते हुए बहुत उत्तेजित होती जा रही थी, सत्तू बार बार तेजी से अपने लंड से सौम्या की पनियायी बूर पर साड़ी के ऊपर से ही धक्का मार रहा था जिससे सौम्या मदहोश हो जा रही थी, उससे खड़ा नही रहा जा रहा था मन तो कर रहा था कि बिस्तर पर लेट जाऊं, पर वो अभी चाह कर भी बहुत आगे नही बढ़ना चाहती थी।

तभी न जाने कैसे सौम्या की नज़र खिड़की से बाहर गयी और उसने अम्मा को घर की तरह आते देखा - अम्मा इधर ही आ रही हैं अब।

सत्तू ने अपनी भाभी के गालों पर प्यार से चूमते हुए उन्हें छोड़ दिया और भारी सांसों से जल्दी से सौम्या के कमरे से निकल गया, सौम्या ने भी जल्दी से खुद को संभाला और वहीं बेड पर लेट गयी, सत्तू अपने कमरे में आकर दुबारा बेड पर लेट गया।
जबरदस्त भाई
 
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सौम्या धीरे से सिसकते हुए बोली- करते वक्त बताऊंगी पापा जी..... जब हम दोनों करेंगे तब बताऊंगी......जब आप अपनी बेटी की दोनों जाँघों के बीच की उस चीज़ को प्यार से खा रहे होगे न तब मैं उसका नाम बताऊंगी अपने पापा को।

सत्तू फिर से सनसना गया, खुद सौम्या भी ऐसा बोलते हुए बहुत उत्तेजित होती जा रही थी, सत्तू बार बार तेजी से अपने लंड से सौम्या की पनियायी बूर पर साड़ी के ऊपर से ही धक्का मार रहा था जिससे सौम्या मदहोश हो जा रही थी, उससे खड़ा नही रहा जा रहा था मन तो कर रहा था कि बिस्तर पर लेट जाऊं, पर वो अभी चाह कर भी बहुत आगे नही बढ़ना चाहती थी।

तभी न जाने कैसे सौम्या की नज़र खिड़की से बाहर गयी और उसने अम्मा को घर की तरह आते देखा - अम्मा इधर ही आ रही हैं अब।


सत्तू ने अपनी भाभी के गालों पर प्यार से चूमते हुए उन्हें छोड़ दिया और भारी सांसों से जल्दी से सौम्या के कमरे से निकल गया, सौम्या ने भी जल्दी से खुद को संभाला और वहीं बेड पर लेट गयी, सत्तू अपने कमरे में आकर दुबारा बेड पर लेट गया।

अब आगे.......



Update- 14

सत्तू आंखें मूंदे कुछ देर लेटा रहा, लेटे लेटे उसकी आंख लग गयी, उसकी अम्मा अंजली घर में आ चुकी थी, सौम्या भी तब तक संभल चुकी थी।

अंजली- सौम्या।

सौम्या- हाँ अम्मा

अंजली- ये सत्येन्द्र कब आया, खाना खाया इसने?

सौम्या- हाँ अम्मा खा लिया है, मैंने खिला दिया था, गए थे किसी दोस्त के यहां, अभी तो आये हैं कुछ देर पहले।

अंजली- अच्छा आ चल खाना निकाल और तू भी खा ले, ये अल्का और किरन नही आई अभी तक खेत से।

सौम्या- नही अम्मा, अभी तक तो नही आई।

अंजली- ठीक है उनको भी आने दे, साथ में ही खाएंगे फिर।


अंजली अपनी बहू सौम्या के कमरे में बेड पर बैठ गयी तो सौम्या ने उन्हें लिटाकर उनके पैर दबाने शुरू कर दिए।

अंजली- अरे सौम्या रहने दे पैर मत दबा, थकी थोड़ी हूँ मैं।

सौम्या- थकी क्यों नही हो, सुबह से लगी हुई हो और कहती हो थकी नही हूँ, लेटे रहो मुझे पैर दबाने दो।

सौम्या नही मानी और अंजली के पैर दबाने लगी, तभी बाहर से अल्का और किरन की हंसी ठिठोली की आवाज़ें आने लगी।

अंजली- लो आ गयी तूफान, नाम लिया हाज़िर।

सौम्या भी हंसने लगी, अल्का और किरन ने हरे चारे के बड़े बड़े एक एक बोझ अपने सर पर लाद रखे थे, अल्का अपने सर से चारा मशीन के सामने हरे चारे के बोझ को धम्म से गिराते हुए बोली- लो हो गयी दो दिन की फुरसत।

किरन ने भी अपने सिर से चारे के बोझ नीचे पटकते हुए बोला- कितना भारी है भौजी ये, मेरी तो गर्दन में दर्द हो गया।

अल्का- बोल तो रही थी कि ये छोटा वाला बोझ ले ले ये हल्का है तब तो बड़ी पहलवानी दिखा रही थी, नही भौजी यही दो, मैं लेके चली जाऊंगी, अब आ गयी न मोच, चल नाजुक कली अभी तेरे भैया से मालिश करवा देती हूं।

किरन- जीवन में सारे काम भैया से ही करवाएं हैं तुमने लगता है, तभी जब देखो भैया ही याद आते हैं।

अल्का- एक बार मसलवा के तो देख मेरी नाजुक कली, खुद पता लग जायेगा भैया का मजा क्या होता है, सारा दर्द न गायब हो गया तो कहना।

किरन ने अल्का के गुदाज जांड पर एक जोर से चिकोटी काटी तो वो घर की तरफ देखते हुए उछल पड़ी।

अल्का- अरे पगली क्या कर रही है, अम्मा देख लेंगी तो क्या सोचेंगी, मैं तो मजाक कर रही थी, तू तो शुरू ही हो गयी....सबर रख मेरी ननद रानी मिलेगा... तुझे भी मिलेगा खाने को....तड़प मत।

और इतना कहकर अल्का जोर से हंसकर घर की ओर भागी किरन उसके पीछे हो ली- बताती हूँ रुक अभी।

जैसे ही दोनों गेट तक पहुंची सौम्या बाहर आ गयी- अरे आ गयी दोनों, कब से इंतजार कर रही हैं अम्मा और तुम लोगों का, भूख लगी हैं उन्हें......चल जल्दी हाँथ मुँह धो कर आ और सबका खाना लगा।

अल्का- हाँ दीदी लगाती हूँ...... अरे ये हैं न ननदिया ये बहुत प्यासी है, जब देखो तब मुझे ही परेशान करती रहती है, अब बताओ मेरे पास क्या है जो मैं इन्हें दे पाऊंगी.....क्यों दीदी।

सौम्या ने एक नज़र अपने कमरे में लेटी अपनी सासू माँ पे डाली और अल्का की तरफ देखकर उसे झूठा गुस्सा दिखाते हुए की "बहुत बदमाशी हो रही है तेरी" और हल्का सा हंस दी।

किरन जैसे ही अल्का पर लपकी, सौम्या- अरे बाबा बस.....अब खाना खा ले पहले तब बदला ले लेना।

फिर अल्का और किरन ने मस्ती करते हुए खाना निकाला और सभी औरतों ने खाना खाया, सत्तू सोता रहा, अल्का, सौम्या और किरन तीनो का ध्यान अपने अपने मन में सत्तू के ऊपर ही लगा हुआ था।

अल्का ने खाना खाते हुए अपनी सासू मां से पूछा- अम्मा.....मेरे देवर जी ने खाना खाया या ऐसे ही सो रहे हैं?

सौम्या- खा लिया है उसने तू चिंता न कर खाना खा।

अल्का- क्यों न चिंता करूँ एक ही तो देवर है मेरा।

(किरन मन में सोचने लगी कि मेरा भी तो एक ही देवर है और वो है मेरा ही सगा भाई, और ये सोचकर हल्का से मुस्कुरा कर खाना खाने लगी)

ऐसे ही बातों बातों में दोपहर बीत गया, अलका, सौम्या, किरन खाना खाकर थोड़ा आराम करने के लिए सौम्या के कमरे में ही लेट गयी, सत्तू की माँ भी काफी देर उन लोगों के साथ शादी की बातें करती रही फिर उठकर बाग की तरह चली गयी।

शाम को इंद्रजीत (सत्तू के पिता) भी आ गए, दोपहर को आराम करके शाम तक सब उठ चुके थे, सत्येन्द्र को अपने कर्म की चिंता सताए जा रही थी, वो सोच में डूबा था कि इसकी शुरुआत कैसे और किससे करे, उसकी सगी बहन भी अब तो उसकी भाभी बन चुकी थी, कर्म के हिसाब से वो भी अब इस दायरे में आने लगी थी। एक दो दिन ऐसे ही बीते और अब सत्तू भी घर के कुछ बाहर के कामों को संभालने लगा, पर शादी के दिन नजदीक आ रहे थे, अल्का तो उससे मिलने के लिए पागल हुई ही जा रही थी उधर सौम्या भी सत्तू से मिलन की आस लिए रोज रात को अपने बच्चों के साथ मन को समझकर सो जाती थी, हालांकि दिन में जब भी मौका मिलता सत्तू सौम्या को दबोचकर चूमने और सहलाने से नही चूकता, सौम्या अत्यधिक उत्तेजित होकर रह जाती थी, पर ज्यादा वक्त न मिल पाने की वजह से दोनों ही तड़प कर रह जाते, वही हाल सत्तू का अल्का के साथ भी था, उधर किरन भी मन में भाई से व्यभिचार की कामना लिए सही वक्त का इंतज़ार कर रही थी।

एक दिन दोपहर को इंद्रजीत ने अकेले में सत्तू से पूछ ही लिया- बेटा वो तुम्हारा कर्म तुम्हें मिल गया है न।

सत्तू एक बार को सकपका गया फिर बोला- हाँ पिताजी मिल गया है, सुखराम काका ने दे दिया था।

इंद्रजीत- ठीक है बेटा उसे समय रहते पूरा जरूर कर लेना।

(अब इंद्रजीत को क्या पता कि उसमे क्या लिखा हुआ है)

सत्तू ने हाँ में सर हिलाया और उठकर चला गया। इंद्रजीत समझ गया कि कर्म कुछ कठिन ही जान पड़ता है, पर वो पूछ सकता नही था, ये नियम के खिलाफ था।

सत्तू खेतों की तरफ चला गया और एक जगह बैठ कर ठीक से सोचने लगा, इसकी शुरुआत वो करे किससे? फिर उठा और घर की तरफ चल दिया, अभी घर में और मेहमान आना शुरू नही हुए थे, यह काम उसे समय रहते कर लेना था नही तो घर मेहमानों से भर जाएगा तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी।

आज रात को सब आंगन में ही बैठकर खाना खा रहे थे, किरन, सौम्या और सत्तू की माँ एक तरफ बैठे थे अल्का सबको खाना परोस रही थी, सत्तू अपने बाबू के बगल में बैठा था, जैसे ही अल्का ने सत्तू की थाली में एक रोटी रखनी चाही सत्तू ने जानबूझकर दो रोटी खुद ही उठाते हुए बोला एक नही दो (दो शब्द को उसने जोर देकर बोला, अल्का सत्तू का इशारा समझ गयी और हल्का सा मुस्कुराहट उसके होंठों पर आ गयी, क्योंकि बगल में ही ससुर जी भी बैठे थे इसलिए वह थोड़ी सतर्क थी)

अल्का- क्या बात है देवर जी आज लगता है सुबह से भूखे हो, रोज मुझे जबरदस्ती खिलाना पड़ता था और आज खुद ही।

सत्तू- हां छोटकी भौजी आज तो भूख बर्दाश्त नही हो रही, कुछ ज्यादा ही लगी है।

अल्का- अच्छा जी तो ये लो एक रोटी और खा लो मेरी तरफ से, आज सारी भूख मिटा दूंगी तुम्हारी।

(अल्का ने जबरदस्ती एक रोटी और ढेर सारा चावल और दाल और डाल दिया सत्तू की थाली में, सब हंसने लगे)

सत्तू- अरे भौजी इतना भी नही खा पाऊंगा मैं, कितना सारा डाल दिया तुमने मेरी थाली में।

किरन- कोई बात नही भैया, छोड़ देना यही खाएगी, अपना जुगाड़ देख रही है भौजी।

अल्का- हां देवर जी, मैं खा लूंगी, जो खाना हो खा लो नही तो छोड़ देना, जुगाड़ भी देखना पड़ता है कभी कभी।

सत्तू- छोड़ना क्या? लो अभी खाओ जो ढेर सारा डाल दिया है तुमने खाना।

अल्का- मेरे देवर जी तुम खा लो मैं फिर खा लूंगी।

अल्का तब तक सबकी थाली में जो कुछ कम था परोस चुकी थी।

सबने खाना खाया, इंद्रजीत बाहर आकर अपनी खाट पर लेट गया, किरन और सत्तू की माँ थोड़ी दूर पर अपनी अपनी खाट पर लेटकर बातें कर रही थी, इंद्रजीत दिनभर की भाग दौड़ के कारण काफी थका हुआ था इसलिए बिस्तर पर पड़ते ही कुछ देर में सो गया, सौम्या रोज की तरह अपने कमरे में बच्चों के साथ लेटी थी, अल्का भी आपने कमरे में लेटने जा रही थी कि तभी वह सौम्या के कमरे में गयी और बोली- दीदी आज मौसम थोड़ा बारिश वाला हो रहा है, मच्छर भी लग रहे है, मच्छरदानी लगा के सोना नही तो बच्चों को रात भर परेशान करेंगे ये मच्छर।

सौम्या- हां अल्का अभी लगा लूंगी, तू भी लगा के सोना, और वो लोग देखो ऐसे ही सो रहे है सब, मुझसे तो बिल्कुल नही सोया जाता अगर एक भी मच्छर बदन पर बैठ जाये, ये लोग न जाने कैसे सो जाते हैं।

अल्का- सही कहा दीदी यही हाल मेरा है, एक भी मच्छर ने काट लिया न तो नींद तो फिर आने की नही मुझे, सच में दीदी देखो कैसे आराम से लेटे हैं सब।

अल्का और सौम्या कुछ देर बातें करती रही फिर अल्का अपने कमरे में आ गयी, सौम्या ने उसको बाहर का दरवाजा बंद करने के लिए कहा तो अल्का दरवाजे तक तो गयी पर बाहर का दरवाजा बंद नही किया बस हल्का सा सटा कर अपने कमरे में आ गयी, बिस्तर पर लेटकर वो बस रात के 2 बजने का इंतजार करने लगी, उधर सौम्या भी सत्तू के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सो गई।

बाहर किरन और उसकी माँ कुछ देर बातें करती रही।

किरन- अम्मा

अंजली- हां..

किरन- तीन साड़ी तो मैं अपने ससुराल ही भूल आयी, बक्से में रखी है, सोचा जाते वक्त सूटकेस में रख लूंगी पर देखो जल्दबाजी में वहीं भूल आयी, उसमें से दो तो मैंने दोनों भौजी के लिए खरीदी थी।

अंजली- तो जा के ले आना, इसमें इतना दुखी क्यों हो रही है।

किरन- हां अम्मा मैं भी सोच रही थी किसी दिन भैया के साथ जाकर ले आऊंगी वो साड़ियाँ।

अंजली- हाँ चली जाना उसके साथ और इस बार सब ले आना जो भी भूली हो....ठीक है बाद में फिर वक्त नही मिलेगा।

किरन- हां अम्मा ठीक है एक दो दिन में जाऊंगी।

किरन का मन खुशी से झूम उठा, उसका ससुराल बहुत एकांत था, वहां कोई दखल अंदाजी करने वाला नही था, सगे भाई को देवर के रूप में पाकर उससे मिलने वाले सुख की कल्पना मात्र से ही उसका बदन सनसना गया।
शानदार bhai
 
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Update- 15

किरन ने तकिया अपने सिर से हटा कर दोनों जाँघों के बीच में रखा और मस्ती में करवट बदलने लगी, कभी इस तरफ करवट लेकर लेटती कभी उस तरफ करवट लेकर लेटती, कभी मन ही मन मुस्कुराती कभी जोश में तकिए को दोनों जाँघों से भींचती, एक बार पलटकर उसने अपनी अम्मा को देखा तो हल्का झेंप सी गयी, रात के अंधेरे में ज्यादा तो नही दिख रहा था पर इतना तो आभास हो ही गया था कि उसकी अम्मा भी अभी जग ही रही थी और उसे ही देख रही थी।

अंजली- क्या हुआ नींद नही आ रही क्या तुझे?

किरन- मच्छर लग रहे हैं न, नींद तो बहुत कस के लगी है पर ये मच्छर सोने दे तब तो।

अंजली- तो जा के मच्छरदानी ले आ.....लगा ले, वहीं बरामदे में मेरी मच्छरदानी रखी है...जहाँ सत्येन्द्र सो रहा है.....जा ले आ।

किरन- ठीक कहती हो अम्मा ले आती हूँ नही तो सो नही पाऊंगी....और ये भाई भी न....ये नही की बाहर सो जाऊं खुले में...वहां बरामदे में लेटा हैं अकेला।

किरन खाट से उठकर जाने लगी तो उसकी अम्मा फिर बोली- लेटने दे जिसका जहां मन करे लेटे।

किरन- अम्मा तुम्हारे लिए भी ले आऊं मच्छरदानी।

अंजली- नही रहने दे मुझे नही लगाना, मुझे तो घुटन होती है उसमें, मेरी तो ऐसे ही आदत है सोने की।

किरन- हां तुम तो लगाती ही नही हो।

किरन उठकर बरामदे में गयी, और उसके आने की आहट जैसे ही सत्तू को हुई वो चुप करके सोने का नाटक करने लगा, वैसे वो छोड़ना तो अपनी बहन को भी नही चाहता था पर आज उसका पूरा मन अल्का पर था, पर फिर भी उसका मन मचल ही गया, जब किरन ने बरामदे में आकर धीरे से बोला- देवर जी......ओ मेरे देवर जी....सो गए क्या?

सत्तू हल्का सा कसमसाया और ऐसे अभिनय किया जैसे किरन की आवाज सुनकर ही जागा हो, बरामदे में अंधेरा थोड़ा ज्यादा था, सत्तू धीरे से बोला- भौजी......मेरी भौजी आयी है क्या चोरी चोरी मुझसे मिलने।

किरन- हां आयी है अपने देवर से मिलने पर धीरे बोलो देवर जी कोई सुन लेगा।

किरन धीरे से सत्तू की खाट पर बगल में बैठती हुई बोली।

सत्तू- सुनने दो, जब एक भौजी दुनियां की नज़र बचा कर रात को अकेले में अपने देवर की खाट पर आई है उससे मिलने... तो मन कहाँ मानेगा अब।

सत्तू ने किरन का हाँथ धीरे से अपने हाँथ में ले लिया, सत्तू खाट पर दाहिने ओर करवट लेकर लेटा था, जब किरन खाट पर बैठने लगी तो वो थोड़ा पीछे सरक गया और उसको बैठने की जगह दी, किरन सत्तू से ऐसे चिपक कर बैठी की उसकी गुदाज गांड लगभग सत्तू के लंड और जाँघों के आसपास बिल्कुल चिपक गयी, अपनी सगी बहन का इसतरह उसपर लदकर बैठना सत्तू का मन बहकाने के लिए काफी था, सत्तू का मन अब अल्का से थोड़ा हटकर किरन की ओर आने लगा।

किरन- अच्छा तो चिल्लाओ फिर, ताकि ये जालिम जमाना जान जाए और एक भौजी को उसके नए नवेले देवर से अलग कर दे, तरसते रहना फिर।

सत्तू ने किरन का हाँथ अपने हाँथ में ले लिया और हल्का सा दबाते हुए बोला- तरसाओगी तो तरसेंगे।

किरन- तरसाना होता तो ऐसे आती रात को।

(किरन ने फुसफुसाकर धीरे से बोला)

सत्तू- तो एक हो जाओ अपने देवर से, इतनी दूर क्यों हो मेरी भौजी।

किरन- अम्मा अभी जग रही हैं, नही तो हो जाती कब का।

सत्तू- क्या?

किरन- हाँ, सच

सत्तू- तो फिर मेरी भौजी, तुम तो उनके बगल में ही लेटी थी न।

किरन- हम्म

सत्तू- तो आयी कैसे?

किरन धीरे से हंसते हुए- मेरे देवर का प्यार खींच लाया।

सत्तू- फिर भी....अम्मा अगर जग रही होंगी तो तुम नही आ सकती, इतना तो जानता ही हूँ।

किरन- दो चीज़ें हैं एक तो अपने देवर के बिना अब रहा नही जाता इसलिए मिलने आ गयी और दूसरा...मच्छरदानी

सत्तू- मच्छरदानी

किरन- हां.... मच्छरदानी....बाहर मच्छर काट रहे हैं बहुत....अम्मा बोली जा बरामदे में रखी है ले आ.....बस मौका मिल गया

सत्तू- मच्छर काट रहे हैं मेरी भौजी को।

किरन- अब तुम नही काटोगे तो.....कोई और ही कटेगा न।

(किरन ने ये बात थोड़ा धीरे से कही)

सत्तू- मैं तो कल सुबह टयूबवेल वाले दालान में ही काटने को तैयार था मेरी भौजी, सबकुछ काट लेता तेरा पर तुम्ही ने रोक दिया कि अभी नही, मेरी ससुराल में चलके जो करना है कर लेना।

सत्तू ने किरन को अपने ऊपर खींचते हुए बोला, किरन का अब शर्म से बुरा हाल होने लगा, पर शर्माते हुए भी किरन अपने भाई के मर्दाना जिस्म से लिपटने से खुद को रोक न पाई और
धीरे से सत्तू के बगल में लेटने लगी, हल्का सा सिसकते हुए बोली- अम्मा को शक हो जाएगा देवर जी...अगर देर हो गयी जाने में तो...थोड़ा सब्र करो......पता है सब्र का फल मीठा होता है।

सत्तू ने खींचकर किरन को बाहों में भर ही लिया, मना करते करते किरन भी कस के सत्तू की बाहों में समा ही गयी, एक तरफ वो मना भी कर रही थी दूसरी तरफ सत्तू के ऊपर लेटती भी जा रही थी, दोनों की सांसें तेज होने लगी, किरन डर भी रही थी कि कहीं अम्मा को शक न हो जाये, पर सत्तू समझ नही रहा था, अब वो धीरे से किरन को नीचे करते हुए उसके ऊपर चढ़ने लगा, हल्का सा सिसकते हुए किरन सत्तू के नीचे आने लगी और कुछ ही पल में सत्तू अपनी सगी बहन के ऊपर चढ़ चुका था, किरन की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, उसने खुद ही अपने पैर उठाकर सत्तू की कमर में लपेट दिए, सत्तू धीरे धीरे अपने होंठ किरन के गाल पर रगड़ने लगा तो किरन धीरे से उसके बालों को सहलाने लगी, फिर बड़े प्यार से हल्की सी सिसकी लेते हुए बोली- अपनी भौजी के ऊपर कोई ऐसे चढ़ता है....गंदे.....भौजी मां समान होती है पता है न....ईईईईईशशशशशश......ऊऊऊईई.....माँ....... धीरे धीरे.....काट मत

सत्तू ने कस के किरन के गालों को होंठों में भरकर भरकर चूमना और काटना शुरू कर दिया

सत्तू- जो भी हो भौजी पर मजा तो इसी में आता है न......भौजी के ऊपर देवर न चढ़े तो ये रिश्ता पूरा कैसे होगा, और जिसकी भौजी इतनी मस्त हो वो भला कैसे रोक सकता है खुद को.....और क्या भौजी नही चाहती देवर को अपने ऊपर चढ़वाना।

किरन ये सुनकर शर्मा गयी, एक तो सत्तू लगातार उसके गालों और गर्दन के पास चूमे और काटे जा रहा था, ऊपर ये ऐसी कामुक बातें उत्तेजना को चरम पर पहुचाने में कोई कसर नही छोड़ रही थी, किरन शर्म से चुप हो गयी।

सत्तू- बोल न भौजी

किरन धीरे से शर्मा कर बोली- चाहती है चढ़वाना अपने ऊपर।

सत्तू- हाय... मेरी भौजी।

सत्तू ने अपने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर किरन की फैली हुई गांड थाम ली और पूरी गुदाज गांड को अच्छे से हाँथ फेर फेर के दबा दबा के सहलाने लगा, किरन ने अपने दोनों पैर अपने भाई की कमर पर लपेट रखे थे जिससे उसकी गांड नीचे से अच्छे से उठ चुकी थी जिसका बड़े अच्छे से मुआयना किया जा सकता था। जैसे ही सत्तू ने अपनी बहन की गांड को दोनों हाँथ में भर भरकर अच्छे से दबा दबा कर सहलाना शुरू किया, किरन अपने सगे भाई के हाँथ अपनी गांड पर महसूस कर शर्म और उत्तेजना से सिरह उठी, दोनों बदहवास हो गए, आज पहली बार दोनों भाई बहन के बीच कुछ ऐसा हो रहा था जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नही की होगी, और रिश्ता था देवर भाभी का, पर मूल रूप से वो थे तो भाई बहन ही, इसलिए मूल रिश्ते का आनंद दोनों को अत्यंत उत्तेजित कर रहा था, और उसमे तड़का लगा रहा था देवर भाभी का रिश्ता।

किरन सिसकते हुए धीरे से बोली- बस....देवर जी.....आआआआह.......शर्म आ रही है......कितना सहलाओगे उसको......अभी बस करो नही तो तुम्हारी ये भौजी बहक जाएगी.......और अभी सबकुछ करने का सही वक्त नही है.....मेरे राजा....

सत्तू ने किरन की गांड को दोनों हांथों से सहलाते हुए उसके कान के पास मुँह ले जाकर बोला- कितने चौड़े और नरम नरम हैं ये मेरी भौजी, आज पहली बार इन्हें सहलाकर मानो मैं जन्नत में पहुंच गया।

किरन का शर्म से बुरा हाल था, एक तो सत्तू उसके ऊपर पूरी तरह चढ़ा हुआ था, ऊपर से लगातार चूमे जा रहा था और करीब 2 3 मिनट तक अच्छे से उसकी गांड दबा दबा कर सहलाते हुए जब ये बात उसने कही तो किरन शर्म से दोहरी हो गयी, अपने भाई के मुंह से इतनी कामुक बात सुनकर उसकी उत्तेजना अब बेकाबू होने लगी थी, उसकी बूर अब रिसना चालू हो गयी, जैसे ही उसका ध्यान अपनी बूर पर गया, सलवार के ऊपर से ही अपने सगे भाई के लोहे समान लंड के अहसाह मात्र से उसकी आआह निकल गयी, जैसे ही किरन ने हल्के से आआह भरी, सत्तू ने किरन की बूर पर अपने लंड को ठीक से भिड़ाकर और अच्छे से दबा दिया, किरन गनगना कर अपने भाई से और कस के लिपट गयी, उसकी बूर उत्तेजना में अब इतनी उभर गयी थी कि पैंटी और सलवार के अंदर होते हुए भी सत्तू को उसकी बूर की फांकें साफ महसूस हो रही थी और उन फाकों के बीच में सत्तू अपना मूसल जैसा लंड भिड़ाकर हौले हौले रगड़ रहा था, और दोनों हाँथों से उसकी पूरी गांड को लगातार सहला भी रहा था। उत्तेजना में मदहोश हो गए दोनों।

कुछ देर में किरन ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और धीरे से सत्तू के चेहरे को अपनी हथेली में लेकर बोली- देवर जी बस....

सत्तू- नही भौजी....थोड़ा और... रगड़ने दो न......ऊपर ऊपर

किरन- रगड़ लेना जी भरके.....पर मेरी बात सुन पगलू..... अम्मा को शक हो जायेगा.......समझा कर न.....ऐसे पागल बनना ठीक नही...

सत्तू- मुझे मेरे सब्र का फल खाना है

किरन- खा लेना मेरे देवर जी ये फल तो तुम्हारा ही है, पर यहां नही, और एकांत में.....जहां कोई दखल न दे सके, यहां तो सबको पता चल जाएगा न।

सत्तू- क्या पता चल जाएगा मेरी भौजी?

सत्तू ने अपना लंड किरन की बूर पर कपड़ों के ऊपर से ही धसाते हुए बोला तो किरण अपने नितम्बों को चिहुंकते हुए हल्का सा उचकाकर बोली- यही की एक देवर भाभी का वो वाला फल खाता है।

और कहकर शर्माते हुए सत्तू से लिपट गयी।

जैसे ही किरन ने ये लाइन बोली सत्तू ने अपने होंठ उसके दहकते होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें वासना में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगे, एक बार फिर हल्की सिसकी गूंज उठी।

आज पहली बार किरन अपने सगे भाई के नीचे लेटी थी, उसने कभी सोचा भी नही था कि एक दिन वो अपने सगे भाई के साथ ये सब करेगी, इतना भी मजा जीवन में आ सकता है इसका उसे पहले कभी अंदाजा भी नही था, उसका सगा भाई आज उसका देवर बन चुका था, और आज रात के अंधेरे में दोनों कैसे गुथे हुए थे।

अभी दोनों ने एक दूसरे को चूमना शुरू ही किया था कि बाहर से अंजली की आवाज आई- किरन..... मिली नही क्या मच्छरदानी, अंधेरे में मिल नही रही तो टॉर्च ले जा।

इतना सुनते ही दोनों हड़बड़ा के उठ गए, सत्तू खाट पर लेट गया और किरन अपने कपड़े सही करते हुए बगल ही बक्से पर रखी मच्छरदानी उठाते हुए बोली- हां अम्मा मिल गयी, आती हूँ, अपनी साँसों को काबू करने में उसे कुछ वक्त लग गया।

किरन- देखा मेरे देवर जी...बोला था न यहां ठीक नही।

सत्तू- रहा नही जाता भौजी....क्या करूँ, सब्र का फल खाना है मुझे।

किरन हल्का सा हंसते हुए- पर यहां ये लोग खाने नही देंगे समझे देवर जी.....इसलिए वहीं चलो जहां कहती हूँ।

सत्तू- ठीक है मेरी भौजी.....ले चलूंगा तुझे वहीं....जहां तुम चाहती हो।

किरन ने झट से सत्तू को होंठों को चूमा और जल्दी से बरामदे से बाहर आ गयी, अपनी खाट पर उसने मच्छरदानी लगाई और लेट गयी, साँसे उसकी अब भी तेज ही चल रही थी, उसने अपनी अम्मा को धीरे से आवाज लगाई, उसकी अम्मा ने बड़ी मुश्किल से 'उऊँ' बोला तो वो समझ गयी कि अम्मा अब नींद में हैं, वो भी सत्तू के साथ कि गयी रासलीला के आनंद में डूबी हुई धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी।
शानदार जबरदस्त भाई
 
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अगला अपडेट आने की कोई उम्मीद है भी या नही
 

Elon Musk_

Let that sink in!
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अगला अपडेट आने की कोई उम्मीद है भी या नही

डेढ़ महीने से लेखक का पता ही नही है, शायद किसी समस्या में घिरे हुए होंगे। एकबार वो खुद ऑनलाइन आये, उसके बाद ही कुछ होगा अब।
 
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डेढ़ महीने से लेखक का पता ही नही है, शायद किसी समस्या में घिरे हुए होंगे। एकबार वो खुद ऑनलाइन आये, उसके बाद ही कुछ होगा अब।
कोई बात नही जी
 
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SKYESH

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डेढ़ महीने से लेखक का पता ही नही है, शायद किसी समस्या में घिरे हुए होंगे। एकबार वो खुद ऑनलाइन आये, उसके बाद ही कुछ होगा अब।

last seen JUNE 28 bata raha hai.......:sad:
 

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last seen JUNE 28 bata raha hai.......:sad:

वही तो। हो सकता है किसी समस्या में होंगे वो। बस यही दुआ है, ठीक ठाक हो जंहा भी हो, वरना ये कहानी अधूरी रह जायेगी
 
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