Update- 16
किरन के जाने के बाद सत्तू खाट पर करवटें बदलते लेटा रहा, अल्का भौजी के पास जाने में अभी वक्त था, धीरे से उसने अभी भी खड़े हो रखे अपने लंड को मसला और जल्दी जल्दी वक्त बीतने का इंतजार करने लगा, जैसे ही उसे लगभग आधी रात का अहसास हुआ, वो धीरे से खाट से उठा, बरामदे से बाहर आकर अंधेरे में हल्का हल्का दिख रही अपनी माँ बाबू और किरन को बेसुध सोते हुए देखकर घर के अंदर दरवाजे को धीरे से खोलकर चला गया। पहले वो अल्का भौजी के कमरे में गया तो वो वहाँ थी नही, समझ गया कि भौजी मेरा इंतज़ार कर रही है, झट से दबे पांव ऊपर छत पर गया, अंधेरा तो था ही, पर आंखें अभ्यस्त हो चुकी थी, इधर उधर देखा अल्का उसे दिखी नही...धीरे से आवाज लगाई, पर कोई उत्तर नही, थोड़ा बेचैन होकर छत पर इधर उधर वो अलका को ढूंढने लगा।
तभी सीढ़ियों पर से अल्का उसे आती हुई दिखाई दी, अल्का जल्दी से भाग कर आई और सत्तू से लिपट गयी।
सत्तू अल्का को बाहों में कसते हुए- ओह भौजी...कहाँ थी तुम?
अल्का ने उत्तर देने की बजाए सत्तू से धीरे से बोला- अब भी भौजी...हम्म.....बहन हूँ न मैं।
सत्तू ने अल्का के गालों को चूमते हुए उसके बदन को कस के दबाते हुए अपने से और सटाते हुए बोला- ओह मेरी बहन
इतनी कस के अल्का को बाहों में भीचने से उसकी आआह निकल गयी और वो सिसकते हुए बोली- मेरे भैया....मेरा भाई
सत्तू- कहाँ थी अब तक?...मुझे लगा मुझे ही देर हो गयी, तेरे कमरे में गया तो तू वहां नही थी।
अल्का- वो मैं....
सत्तू- वो मैं क्या. ..हम्म
अल्का- शर्म आती है...कैसे बताऊं?
सत्तू- भाई से कैसी शर्म?
अल्का- भाई से ही तो शर्म आती है।
अल्का के ऐसा बोलने पर सत्तू ने उसकी उभरी चौड़ी गांड को हांथों में लेकर हल्का सा दबा दिया और बोला- तो मत बनाओ फिर भाई मुझे।
गांड को सहलाये जाने से अल्का हल्का सा सनसना गयी, फिर धीरे से बोली- न बाबा न, अपने भाई के बिना तो मैं जी नही सकती....पर शर्म तो आती है न भैया।
सत्तू ने अल्का का गाल चूम लिया और बोला- तो शर्माते शर्माते ही बता दे न मेरी बहना....इतनी देर कहाँ लग गयी?
अल्का धीरे से बोली- मैं....पेशाब करने गयी थी भैया।
अल्का की आवाज में शर्म साफ महसूस हो रही थी
सत्तू- पेशाब
अल्का- ह्म्म्म
सत्तू- सिटी जैसी सुर्रर्रर की आवाज आई थी
अल्का- धत्त.....बेशर्म भैया.....बहुत बेशर्म भैया हो तुम.....बहन से ऐसे पूछते हैं।
सत्तू- बता न बहना।
अल्का- हाँ आयी थी आवाज हल्की हल्की....बेशर्म
सत्तू- हाय.... पर हल्की हल्की क्यों?
अल्का- अब बस भी करो न भैया.....शर्म आ रही है मुझे
सत्तू- बता न मेरी बहना...... नही तो फिर मैं तेरे ऊपर चढ़ूंगा नही।
इतना सुनते ही अल्का और शर्मा गयी।
अल्का- मत चढ़ना मेरे ऊपर.....मुझे नही चढ़वाना।
सत्तू- सच में.......नही चढ़वाओगी मुझे अपने ऊपर।
अल्का ने शर्माते हुए एक मुक्का सत्तू की पीठ में मारा और धीरे से बोली- क्योंकि मैं धीरे धीरे पेशाब कर रही थी न, इसलिए हल्की हल्की आवाज आ रही थी....समझे बुद्धू
सत्तू- पेशाब
अलका- हम्म....पेशाब
सत्तू- पेशाब में मजा थोड़ा कम आया.... वो बोल न बहना.. जिसमे पूरा मजा आता है।
अल्का- सच में मेरे भैया न.. बहुत बेशर्म हैं।
ऐसा कहके अलका अपने होंठ सत्तू के कान के नजदीक ले गयी और बड़े ही मदहोशी से बोली- मैं धीरे धीरे मूत रही थी न भैया... इसलिए हल्की हल्की सीटी जैसी आवाज आ रही थी।
दोनों सिसकते हुए एक दूसरे को सहलाने लगे, सत्तू बोला- मेरी बहना मूतने गयी थी।
अल्का- हाँ भैया.....मैं गयी थी...मूतने
सत्तू- बहना....मुझे तेरे ऊपर चढ़ना है।
अल्का- तो चढ़ो न मेरे भैया किसने रोका है।
इतना कहकर अल्का सत्तू से अलग हुई और छत की बाउंडरी की छोटी दीवार पर सूख रहे गद्दे को उतारकर थोड़ा कोने मे ले जाकर बिछाया और उसपर झट से लेटते हुए बाहें फैलाकर सत्तू को अपने ऊपर चढ़ने के लिए आमंत्रित करते हुए बोली- आओ न भैया, अब चढ़ भी जाओ अपनी बहन पर.....रात को कोई नही आएगा यहां पर।
सत्तू तो बस टूट पड़ा अल्का के ऊपर, जैसे ही अल्का के ऊपर चढ़ा, अल्का ने उसे बाहों में कस लिया, सत्तू ने अपने दोनों हाँथ उसकी पीठ के नीचे लेजाते हुए कस के उसको बाहों में दबोच लिया, कितना गुदाज़ बदन था अल्का का, दोनों मखमली विशाल चूचीयाँ सत्तू के सीने से दब गई, अलका ने अपने पैर मोड़कर सत्तू की कमर पर लपेट दिए जिससे उसकी साड़ी ऊपर को उठ गई और जांघों तक उसके पैर निवस्त्र हो गए।
जैसे ही सत्तू को ये अहसास हुआ कि अल्का ने दोनों पैर को उसकी कमर से लपेट लिया है उसने एक हाँथ से उसके नंगे पैर को जांघों तक धीरे से सहलाया तो अल्का की मस्ती में आंखें बंद हो गयी।
सत्तू एक हाँथ से अल्का की अधखुली जांघ को सहला रहा था और दूसरे हाँथ को उसकी गर्दन के नीचे से लेजाकर उसे कस के अपने से लिपटाये उसके गालों से अपने गाल सहला रहा था।
तभी अल्का ने पूछा- भैया...एक बात पूछूं?
सत्तू- पूछ न मेरी बहना....मेरी रानी।
अल्का- तुम्हें भी वो कर्म मिला होगा न।
सत्तू- मेरी बहना मैं तुमसे आज यही बात बताने वाला था कि तुमने पहले ही पूछ लिया।
अल्का- पर मेरे भैया..जहां तक मैं जानती हूं कर्म के बारे में न तो घर का कोई सदस्य पूछ सकता है और न ही किसी को बताया जाता है।
सत्तू- बात तो सही है मेरी बहना... पर उस सदस्य को तो बताना ही होता है जो उस कर्म का हिस्सा हो।
अल्का- मतलब
सत्तू- मतलब मेरी बहन....मुझे मेरा कर्म मिल गया है और तुम उस कर्म का हिस्सा हो.....मतलब वो कर्म तुम्हारे बिना पूरा नही हो सकता।
अलका थोड़ा अचरज से- क्या?....मैं शामिल हूँ उस कर्म में?
सत्तू- हां
अल्का- ऐसा क्या कर्म है वो भैया?।....अब तो मैं पूछ सकती हूं न?
सत्तू- हाँ बिल्कुल
अल्का- तो बताओ न जल्दी...ऐसा क्या कर्म आया है तुम्हारे हिस्से में...जिसमे मैं भी शामिल हूँ।
सत्तू ने फिर इत्मीनान से अल्का को वो सारी बातें जो कागज में लिखी थी बताई, बस उसने ये बात छुपा ली कि उस कागज में ये लिखा है कि ये कर्म घर की सभी स्त्रियों के साथ करना है, उसने बस यही बोला कि उसे वह अल्का के साथ ही करना है, दरअसल उसने यह पहले ही सोच रखा था कि हर स्त्री को वो यही बोलेगा ताकि कागज में लिखे अनुसार घर की एक स्त्री को यह न पता लगे कि दूसरी स्त्री के साथ भी ये हुआ है। जब सत्तू ने अल्का को सारी बात बता दी तो अलका सुनकर सन्न रह गयी, पहले तो उसे विश्वास ही नही हुआ कि उसके अजिया ससुर जी ऐसा कर्म भी लिख सकते हैं।