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Adultery भटकइयाँ के फल

Jangali107

Jangali
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Update- 18

अगली सुबह सब उठकर अपने अपने काम में लग गए, अल्का और किरन रसोई साफ करके नाश्ता बनाने में लगी थी, सौम्या और सत्तू की माँ पशुओं का चारा बालने में लगी हुई थी, इंद्रजीत ने सुबह ही ट्यूबेल चलाकर गेहूं की सिंचाई कर डाली, क्योंकि आज उसे अपनी ससुराल जाना था न्यौता देने, इसलिए सिंचाई का काम सुबह ही निपटा दिया, फावड़ा कंधे पर रखकर वो जैसे ही घर वापिस आया तो देखा सत्तू पेड़ के नीचे अभी तक सो ही रहा है, वो फावड़ा रखने चारा मशीन के पास गया तो अपनी पत्नी कंचन शिकायत भरे लहजे से बोला- सत्तू अभी तक सो रहा है?

सौम्या- बाबू जी मैं उनको उठा देती हूं तब तक आप नहा लीजिए अल्का और किरन नाश्ता तैयार कर चुकी होंगी।

इंद्रजीत कुएं पर चला जाता है, सौम्या चारा बाल चुकी थी कंचन हरी घास में भूसा मिलाने लगी, तभी सौम्या ने एक बड़ी सी घास उठायी और सत्तू की तरफ चल दी।

सत्तू के कान में धीरे से बोली- पापा जी..उठिए न

सत्तू अब भी सोता रहा, सौम्या ने एक बार अपनी सास की तरफ देखा और फिर दुबारा धीरे से बोला- पापा जी, उठो न.....

सौम्या ने सत्तू के कान में हरी घास से जैसे ही गुदगुदी की, सत्तू की झट से आंख खुल गयी- अरे भाभी माँ।

सौम्या ने फिर धीरे से बोला- अब उठो न पापा जी कब से उठा रही हूं....सब उठ गए बस आप ही सो रहे हो।

सौम्या के उठाने के तरीके और उसकी आँखों में हल्की सी कामुकता देखकर सत्तू का लंड ही खड़ा हो गया, सुबह सुबह एक तो लंड वैसे ही फुंकारता रहता है ऊपर से सौम्या की ये अदा, सत्तू कायल ही हो गया, वो हल्के से मुस्कुरा बोला- ओह्ह मेरी बेटी...आज तो दिन बन गया...इतनी अच्छी सुबह होगी आज सोचा नही था।

सौम्या मुस्कुराती हुई बोली- अच्छा जी...तो चलो अब जल्दी उठो, नाश्ता तैयार है जल्दी से नहा धो लो....पता है बाबू जी गुस्सा करने ही वाले थे, मैंने उनको बोला आप जाओ नहाओ मैं उठा देती हूं।

सत्तू- हां तो मुझे नाज़ है न अपनी बिटिया पर, उसके रहते कोई मुझे कैसे डांट सकता है, बेटी हो तो ऐसी।

सौम्या ने मुस्कुराते हुए एक बार फिर "पापा जी" बोला और घर के अंदर चली गयी, सत्तू झट से उठा और सुबह के नित्यकर्मों को करके नहा धोकर बरामदे में आ गया जहां सब लोग बैठे थे।

अल्का और किरन सबके लिए चाय नाश्ता लेकर आई और टेबल पर रखकर बगल में बैठ गयी।

इंद्रजीत ने कंचन से कहा- आज तो न्योता लेकर तुम्हारे ससुराल चलना है?

कंचन- हाँ चलना तो है, जल्दी तैयार हो जाओ सब दोपहर को चलेंगे।

अलका- सब.....सब चलेंगे?

कंचन- अरे नही बहु, सब मतलब.....मैं तेरे बाबू जी और सौम्या..... हम तीनों जाते हैं कल आ जाएंगे, बुलाया तो मेरी माता जी ने किरन को भी है....पर ये जाए तब न....कह रही थी कि काफी दिन हो गए किरन को देखे।

किरन- लो...अब शादी में तो नाना नानी सब आएंगे ही.....तब मिल लूँगी....मिलना जुलना तो अब होने ही वाला है शादी में.....अभी आप लोग ही जाओ...घर पर भी तो कोई होना चाहिए।

सत्तू किरन के इस जवाब पर हल्का सा सिर नीचे करके मुस्कुराने लगा, वो जानता था किरन जाना नही चाहती, वो उसके साथ वक्त बिताना चाहती है, पर वो ये भी जानता था कि अलका उसे भेजकर रहेगी।

अल्का- क्या मेरी ननद रानी...मेरी नानी ने बुलाया होता तो मैं तो कूदकर उनके गोद में बैठ जाती.......नाना-नानी प्यार से बुलाये तो ऐसे मना नही करते...मेरा बच्चा.....घर पर मैं और मेरे देवर जी हैं तो सही।

(अल्का बातों बातों के बहाव में ये बोल तो गयी "मेरा बच्चा" पर जैसे ही अपने ससुर पर नज़र पड़ी वो झेंप गयी, और सब हंस पड़े)

किरन- हाँ मेरी नानी....जाओ फिर तुम ही चली जाओ, मैं रह लुंगी यहां।

अल्का हंस पड़ी, फिर बोली- बाबू जी वो खट्टी- मीठी वाली नमकीन लाऊं आपके लिए...आपको पसंद है न।

इंद्रजीत- नही बहु रहने दे....हो तो गया नाश्ता... कर लिया बस

सौम्या- किरन चल न....कल ही तो वापिस आ जाएंगे।

किरन- अच्छा बाबा ठीक है...चलूंगी मैं भी...अब खुश हो न सब।

सब फिर हंस पड़े, अल्का और सत्तू की नज़र जब भी मिलती, एक सिरहन सी अलका के जिस्म में दौड़ जाती, जैसे जैसे ये सुनिश्चित होता जा रहा था कि आज रात वो दोनों घर पर अकेले रहेंगे, दोनों के बदन में एक मस्तानी सी लहर रह रहकर उठ रही थी, वहीं किरन थोड़ा सा उदास थी, वो अपने भाई के साथ अकेले में मस्ती करना चाहती थी पर क्या करे, ये सोचकर उसने हाँ कर दी कि अल्का के होते हुए वो सब हो पाना संभव भी नही, उदास तो सौम्या भी थी पर वो बहुत धैर्यवान और सहनशील थी। सत्तू जब भी अपनी बहन किरन की ओर देखता तो उसे सब्र रखने का इशारा आंखों ही आंखों में कर देता, यह बात किरन के मन को रोमांचित कर रही थी की उसके भाई को उसका कितना ख्याल है।

अल्का- अम्मा दोपहर में खाने में क्या बनाऊं?

कंचन के बोलने से पहले ही इंद्रजीत बोल पड़ा- बहु तुम अपने लिए और सत्येंद्र के लिए कुछ भी बना लेना, हम लोग तो अभी कुछ देर बाद ही निकल रहे हैं।

कंचन- अरे बाबा तुम्हें भूख नही है तो तुम मत खाना हम सब तो खाना खा के जाएंगे, बहू तू बना ले सबका खाना, इनके हिस्से का मत बनाना बस।

अल्का हंसने लगी- अच्छा अम्मा ठीक है, मैं बना लेती हूं सबका खाना।

अलका ने हल्की सी मुस्कान के साथ सत्तू को देखा और इठलाते हुए चली गयी रसोई की तरह।

कंचन ने चाय पीकर कप प्लेट में रखते हुए बोला- सत्तू बेटा.... अपनी सौम्या भाभी के साथ मिलकर वो गेहूं जो धोकर, बरामदे में रखा हुआ है न उसको बाहर खाट पर फैलवा दे ताकि धूप लगने पर सुख जाये, वो अकेली नही कर पायेगी।

सत्तू- हां अम्मा मैं फैलवा देता हूँ गेहूं।

कंचन- किरन... जा तू भी...तीनो मिलकर कर लो ये काम।

किरन- हाँ अम्मा जाती हूँ....चल भौजी।
Bhai der se aaye ho bus durust aajao
 

Jangali107

Jangali
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Update- 19

सबने मिलकर गेहूं का काम तो निपटा दिया, और दोपहर का खाना खाकर निकलने लगे शादी का न्यौता देने।

अल्का- अम्मा कल आ जाओगे न सब लोग।

कंचन- हाँ.... तू सत्येंद्र के साथ मिलकर ये गेहूं शाम को उठाकर बरामदे में रख देना।

अल्का- हां अम्मा ठीक है रख दूंगी।

फिर सब चले गए, सत्तू सबको 5 किलोमीटर दूर बसअड्डे पर जाकर बस में बैठा कर आया, जैसे ही सत्तू घर पहुंचा अल्का बाहर ही थी सत्तू को देखते ही जीभ चिढ़ाते हुए घर में भागी, सत्तू उसके पीछे पीछे भागा, अल्का जल्दी से पीछे वाले कमरे में घुस गई और किवाड़ बंद करने ही वाली थी कि सत्तू ने किवाड़ बंद होने से रोक लिया और अल्का को कस के अपनी बाहों में भर लिया।

अल्का- आआआह ह ह ह ह....अभी कोई आ सकता है, कोई आ गया वापिस तो।

सत्तू- बस में बैठा कर आया हूँ सबको, ऐसे कैसे आ जाएंगे...और तू भागी क्यों....अब ताड़पाओगी अपने भैया को।

अल्का- बहन के पीछे भागोगे तो और मजा आएगा...इसलिए भागी मैं।

सत्तू ने अल्का की मोटी मोटी गांड को उसकी आँखों में देखते हुए बड़ी कामुकता से सहलाया तो अल्का लजा कर सत्तू से लिपट गयी।

अल्का (धीरे से)- बेशर्म....आहहह....ऊऊईईई....सब्र नाम की चीज़ नही है मेरे भैया को....बहन हूँ कुछ तो शर्म करो।

सत्तू के हाँथ धीरे धीरे अल्का की कमर, गांड और पीठ को सहलाने लगे तो अल्का की आंखों में नशा चढ़ने लगा, हल्का सिसकते हुए - बेशर्म भैया।

सत्तू ने नीचे देखा तो अल्का की चूचीयाँ उसके सीने से दबी हुई थी, गोरे गोर उभारों की बीच की घाटी को देखकर, उसके लंड ने हल्के से ठुमकी मारी, जिसको अल्का ने बखूबी महसूस किया।

सत्तू (धीरे से)- भौजी...मेरी छोटकी भौजी।

अल्का थोड़ा शिकायत भरी नजरों से सत्तू की आंखों में देखकर- फिर भटकइयाँ के फल नही फोड़ने दूंगी।

सत्तू- फल फोड़ने के लिए वो गहराई सिर्फ भाई को मिलेगी।

अल्का प्यार से सत्तू की आंखों में देखते हुए- हम्म्म्म......सिर्फ मेरे भैया को।

सत्तू- मजा आ जायेगा न बहना।

अल्का- धत्त

सत्तू- दीदी बोलूं?

अल्का- बोल न

सत्तू (अल्का की गांड को हथेली से थामकर मीजते हुए) - दीदी

अल्का- अह..हाय!

सत्तू- दीदी....मुझे वो चाहिए।

अल्का का चेहरा शर्म से लाल होता जा रहा था

अल्का- क्या?.....क्या चाहिए भैया?

सत्तू- वही..

अलका सिसकते हुए- वही क्या मेरे भैया?

सत्तू- वही जो दोनों जांघों के बीच में है।

(दोनों की सांसें अब धौकनी की तरह चलने लगी)

अल्का भारी आवाज में- क्या है जांघों के बीच में....मैं समझी नही।

सत्तू- वही...जहाँ से मेरी दीदी पेशाब करती है।

(अल्का सुध बुध खोकर और कस के लिपट गयी)

अल्का- ईईईईईशशशशशश.....

सत्तू अल्का के गालों को चूमते हुए कान के पास होंठ लेजाकर- दीदी.....तेरी बूर चाहिए मुझे?

अल्का ने मचलते हुए सिसकारी ली और सत्तू की पीठ पर हल्की सी चिकोटी काटते हुए- बहुत बेशर्म हो तुम।

सत्तू- दीदी

अलका- ह्म्म्म

सत्तू- तेरी बूर सूंघने का मन कर रहा है.....सुंघाओगी?

अल्का का पूरा बदन शर्म से गनगना जा रहा था।

अल्का- गंदे

सत्तू- बोल न....सूंघने दोगी...अपनी बूर

अल्का- आआआह....उसमें पेशाब लगा होता है?

सत्तू- वही गंध तो चाहिए मुझे अपनी बहन की

अल्का- गंदे....और....बेशर्म भैया।

सत्तू- बोल न.....सूंघने दोगी

अल्का ने बड़ी मादकता से कहा- दूंगी....देखने के लिए.....छूने के लिए.....सूंघने के लिए....और

सत्तू- और क्या?

अल्का- और वो करने के लिए।

सत्तू- वो क्या

अल्का - वही....

सत्तू- वही क्या?

अल्का- चो...द....

(अल्का का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है)

सत्तू- बोल न दीदी...मेरी प्यारी बहना.... क्या करने के लिए दोगी।

अल्का बहुत धीरे से- चोदने के लिए

सत्तू- हाय... मेरी दीदी

सत्तू के अलका को कस के दबोच लिया।

अल्का जोर से सिसक पड़ी

सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।
गजब कहानी है बस अब टिकजऒ तो मज़ा खुद ही आने लगेगा
 

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सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।


अब आगे-----

Update- 20

सत्तू- ह्म्म्म

अल्का- काश बहुत पहले ही तुम मेरे भैया बन गए होते, कहाँ थे अब तक, यहीं एक ही घर में इतने दिनों से साथ रह रहे हो, ये सब पहले क्यों नही किया....पता है कितनी प्यासी है तुम्हारी बहना।

सत्तू- ओह मेरी दीदी....क्या करूँ तुमने भी तो कभी इशारा नही किया, कभी जिक्र नही किया, कभी अपने मन का दर्द बयां ही नही किया कि ऐसा कुछ था तुम्हारे मन में, नही तो हम कब से प्यार कर रहे होते...खैर जाने दे ये बात जब जिस चीज़ का समय आता है वो हो ही जाती है, अब तो तू बन गयी न मेरी बहन....मेरी दीदी।

अल्का- हां, बन गयी मेरे भैया, मुझे अपनी ही ससुराल में मेरा भाई मिलेगा और वो मुझे ऐसा प्यार देगा जैसा कोई भाई अपनी बहन को नही देता ऐसा मैंने कभी सोचा नही था।

सत्तू- तो मैंने भी कहाँ सोचा था कि मेरी छोटी भौजी ही मेरी बहन है।

(ऐसे कहते हुए सत्तू ने अल्का की गांड की दरार को दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से ही फैलाकर हाँथ को अंदर डालकर सहलाया तो अलका "ऊई अम्मा" कहते हुए मचल सी गयी)

अल्का- एक बात पूछूं?

सत्तू- बोल न

अल्का- मेरे भाई ने सच में वो कभी नही देखी है।

सत्तू- क्या वो? अब खुलकर बोल न दीदी, कैसा शर्माना, देख अब तो कोई है भी नही, तेरे मुँह से सुनकर बहुत उत्तेजना होती है।

(सत्तू अल्का की गांड को हथेली में भरकर हौले हौले मीज ही रहा था, गाड़ ही इतनी मस्त थी कि उसी से फुरसत नही मिल रही थी तो दूसरे अंगों पर कहाँ से ध्यान जाता, जब खाने के लिए ढेरों मिठाईयां एक साथ मिल जाएं तब समझ नही आता कि किसको पहले खाऊं और किसको बाद में, यहीं हाल सत्तू का था)

अल्का- शर्म आती है, उसका नाम बोलने से।

सत्तू- बोल न मेरी जान, उसका नाम मेरी आँखों में देखकर बोल न।

अल्का सत्तू की आंखों में देखकर लज़्ज़ा से भर गई, बड़े हौले से बोली- सच में भैया तुमने "बूर" नही देखी है कभी, सच्ची की "बूर", हम लड़कियों की "बूर"

(जब अल्का "बूर" शब्द बोल रही थी तो उसके लाल रसीले होंठ जब बोलते हुए "उ" के उच्चारण पर गोल हुए तभी सत्तू ने अल्का के होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया, दोनों फिर से लिपट गए, साँसें रह रहकर तेज चलने लगी, अल्का की चूचीयाँ, धीरे धीरे सख्त होती जा रही थी)

सत्तू- सच में दीदी, आज तक मैंने सच्ची की बूर नही देखी, किताबों में तो देखी है, फिल्मों में देखी है पर अपने घर की बूर, जिसका नशा ही अलग होता है वो नही देखी।

अल्का- घर की बूर का नशा अलग होता है।

सत्तू- बिल्कुल अलग, दुनियाँ में सबसे अलग।

अल्का ने मस्ती में हल्की सी अपनी जीभ निकाली तो सत्तू ने भी अपनी जीभ निकाली और दोनों एक दूसरे से हल्का हल्का जीभ लड़ाने लगे, की तभी अल्का ने झट से मुंह खोल दिया और सत्तू ने अपनी जीभ अल्का के मुँह में डाल दी, आँखें बंद हो गयी दोनों की, बदन थरथरा गया अल्का का, क्योंकि सत्तू का दायां हाँथ पीछे से हौले हौले सहलाते हुए अल्का की बूर तक पहुंच गया था, जैसे ही सत्तू ने अल्का की बूर को पीछे की तरफ से साड़ी के ऊपर से दबोचा, "आह भैया" की हल्की सी सिसकारी भरते हुए अल्का खुद को सत्तू की बाहों से छुड़ा कर पलंग की तरफ भागी, कुछ ही दूर पर बिछे पलंग पर अल्का पेट के बल अपना चेहरा हथेली में छुपकर लेट गयी, उसके उभरे हुए नितंब मानो अब खुल कर आमंत्रण दे रहे थे, उसकी सांसें जोश के मारे तेजी से चल रही थी, सत्तू का लंड अब तक तनकर लोहा हो चुका था, वो अल्का की ओर बढ़ा और साड़ी के ऊपर से ही जानबूझकर अपना खड़ा लंड अल्का की उभरी हुई गांड की दरार में खुलकर पेलते हुए "ओह दीदी" बोलकर उसपर चढ़ गया,

"ऊऊई मां" भैया, धीरे....

सत्तू ने अल्का को अपने लंड का अहसास कराते हुए साड़ी के ऊपर से ही कई बार सूखे धक्के मारे, अपने भाई का लंड महसूस कर अल्का की बूर पनियाने लगी, सत्तू ने अल्का के गालों पर आ चुके बालों की लटों को एक तरफ सरकाया और गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, अल्का की सांसें तेज चलने लगी, सत्तू ने साड़ी के ऊपर से ही हौले हौले अल्का की गांड मारते हुए वासना में बेसुभ होकर कहा, - दीदी बूर चोदने दे न अब, बर्दाश्त नही हो रहा अब।

अल्का ने बड़ी मुश्किल से धीरे से कहा- पहले फल ले आओ मेरे भैया, तुम्हारी बहन तो बस तुम्हारी ही है अब, मुझसे भी अब रहा नही जा रहा, जाओ न फल लेकर आओ, जल्दी आना।

और शर्म से उसने फिर अपना चेहरा हथेली में छुपा लिया, सत्तू ने एक चुम्बन कस के अल्का के गालों पर लिया, और उठ गया उसके ऊपर से, लंड को ठीक किया और जल्दी से बाहर निकल गया, काफी देर तक अल्का पलंग पर लेटी रही, उसे अभी भी महसूस हो रहा था कि सत्तू का मोटा लंड उसकी गांड की दरार में रगड़ रहा है।
गजब लेखनी तेरी लण्ड उठा बेरी बेरी
 

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Super update Bhai. Batkaye kaunsa phal hothi he ?
Bhatkaiya village side me jhaad jhankaar me ugti hai jiska phal chota, round aur black colour ka hota hai jo poora ras se bhara hota hai. Thoda pressure lagane pe hi phal se ras nikal jata hai. Taste me khatta meetha hota hai.
 

aamirhydkhan

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भटकइयाँ के फल​

 

Babulaskar

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और भाई सब कुशल मंगल से है ना? कोई भी खबर नहीं मिल पा रही है की हम यह जान सके अपडेट कब आनेवाला है? क्रप्या थोड़ा जल्दी अपडेट दे।
और भला आप या कोई भी रायटर फ्री में क्यों अपना टाईम इन फोरम में लगाना चाहेंगे? यह तो बस रीडर्स का डिमांड होता है और अपनी अपनी हाबी होती है या एक इच्छा होती है जिस के चलते हम यहां पर स्टोरी अपलोड करते हैं।
वैसे मेरा एक सुझाव है। क्यों ना हर एक रायटर को उनकी स्टोरी के डिमांड के बेसिस पर कुछ पे किया जाये। रीडर्स को जो कहानी सबसे ज्यादा पसंद आयेगी रीडर्स उसी कहानी के रायटर को पे करेंगे। उसका माध्यम चाहे जो भी हो। आजकल एसे वॉपशन आसानी से उप्लब्ध कराया जा सकता है। इस से एक तो फोरम में रायटर अच्छी अच्छी स्टोरी के प्लॉट के बारे फिक्रमंद होंगे। दुसरा रायटर को भी अगर कुछ मुआवजा मिलता रहे तो वह भी अपना समय निकाल कर रेगुलर अपडेट देने के बारे में पाबंद रहेंगे। क्यों की अच्छी स्टोरी पड़ने के लिए रीडर्स पे करना भी प्रेफर करेंगे। क्यों न इस बारे में सोचा जाये???
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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और भाई सब कुशल मंगल से है ना? कोई भी खबर नहीं मिल पा रही है की हम यह जान सके अपडेट कब आनेवाला है? क्रप्या थोड़ा जल्दी अपडेट दे।
और भला आप या कोई भी रायटर फ्री में क्यों अपना टाईम इन फोरम में लगाना चाहेंगे? यह तो बस रीडर्स का डिमांड होता है और अपनी अपनी हाबी होती है या एक इच्छा होती है जिस के चलते हम यहां पर स्टोरी अपलोड करते हैं।
वैसे मेरा एक सुझाव है। क्यों ना हर एक रायटर को उनकी स्टोरी के डिमांड के बेसिस पर कुछ पे किया जाये। रीडर्स को जो कहानी सबसे ज्यादा पसंद आयेगी रीडर्स उसी कहानी के रायटर को पे करेंगे। उसका माध्यम चाहे जो भी हो। आजकल एसे वॉपशन आसानी से उप्लब्ध कराया जा सकता है। इस से एक तो फोरम में रायटर अच्छी अच्छी स्टोरी के प्लॉट के बारे फिक्रमंद होंगे। दुसरा रायटर को भी अगर कुछ मुआवजा मिलता रहे तो वह भी अपना समय निकाल कर रेगुलर अपडेट देने के बारे में पाबंद रहेंगे। क्यों की अच्छी स्टोरी पड़ने के लिए रीडर्स पे करना भी प्रेफर करेंगे। क्यों न इस बारे में सोचा जाये???
Bilkul Sahi
 
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