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Erotica -: भिखारिन और मैं:-

dkpk

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अध्याय २

घर लौटते वक्त हमने एक दूसरे को अपना परिचय दिया| मैंने कहा कि मेरा नाम माईरा है और मैं तेईस साल की हूं और इस शहर में काम के सिलसिले में एक फ्लैट किराए पर लेकर अकेली रहती हूं| उसने मुझे बताया कि उसका नाम आफरीन है; अपना मुझसे कहा कि मैं उसे भिखारिन आफरीन बाईसा कह कर बुला सकती हूं क्योंकि ज्यादातर लोग उसे इसी नाम से बुलाते हैं| वह और उसका पति बंजारों की तरह इधर-उधर रोजी-रोटी के लिए जगह जगह घूमते रहते हैं और फिलहाल कई सालों से इस शहर में है| फिलहाल उसका पति बीमार है और कोई काम नहीं करता और वह इस तरह से सड़कों में भीख मांग रही है| इसके साथ ही, उसने यह भी कहा कि पिछले कुछ महीनो से उसने मुझे बाजार में आते जाते हुए देखा है|

फिर न जाने क्यों, उसने मुझे एक अजीब सा सवाल किया| उसने पूछा, "मैं उम्मीद कर रही हूं फिलहाल तेरा मासिक तो नहीं चल रहा"

मैंने जवाब दिया, "जी नहीं, हो चुका है| फिलहाल अगले महीने तक छुट्टी है"

घर पहुंच कर मैंने उसे कुछ इस्तेमाल किए हुए कपड़े दिए| एक साधारण सी साड़ी, एक पेटीकोट और एक ब्लाउज| फिर मैंने उससे कहा कि पहले आप नहा लीजिए| आफरीन भिखारिन काफी देर तक बाथरुम में नहाती रही और खुद को साफ करने के लिए उसने मेरे साबुन और शैंपू का भी इस्तेमाल किया| लेकिन ऐसा करने से पहले उसने मेरी इजाजत लेने की जरूरत नहीं समझी|

जब वह बाथरुम से बाहर आई तो उसने सिर्फ मेरी दी हुई साड़ी ही पहन रखी थी और उसने मुझे पेटिकोट और ब्लाउज वापस करते हुए कहा, "तूने मुझे जो ब्लाउज दिया था उसे मैं नहीं पहन सकती यह मेरे लिए बहुत बड़ा है| सच में मेरी जान! तू एक बड़े सुडौल मम्मों वाली लड़की है; तेरी चूचियां भी खड़ी खड़ी सी है"

इतना कहकर भिखारिन आफरीन नहीं अपनी हथेलियां को मेरे स्तनों पर रखा और उन्हें प्यार से हल्के से दबाया| मुझे थोड़ी हैरानी सी हुई और मैं एक कदम पीछे हटकर बोली, "ठीक है मैं भी नहा कर आती हूं"

उसने जवाब दिया, "हां हां, बिल्कुल री मेरी लौंडिया; जा नहा- धो कर आ| पर एक मिनट; मुझे तेरे बालों का यह बड़ा सा जूड़ा तो खोलने दे? मैं तनिक देख तो लूं- कि तेरे बाल कितने लंबे हैं"

इसके साथ ही उसने अपने हाथों से मेरे बालों का जुड़ा खोल दिया और बड़े जतन के साथ उन्हें मेरी पीठ पर फैला दिया। और जैसे ही मैं बाथरूम की ओर जा रही थी; उसने धीरे से मेरे कूल्हों को भी हलके थपथपाया|

जब मैं नहा धोकर निकली, तब भिखारिन आफरीन ने कहा कि वह मेरे बालों में कंघी करना चाहती है और उसी के कहने पर मैं आईने के सामने बैठ गई...

वह मेरे बालों में कंघी कर रही थी और रह-रह कर मेरे बदन पर इधर-उधर हाथ भी फेर रही थी और लंबी-लंबी साँसे लेकर मुझे सूँघ रही थी ... इसके बाद उसने मेरे बालों को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया था, उसके होठों पर एक टेढ़ी सी मुस्कान खिली हुई थी और वह यह कह रही थी कि वह मेरी तारीफ ही कर रही है और वह मेरे अंदर उन एहसासों को जगाना चाहती है जो शायद मेरी रूह की गहराइयों के अंदर दबे हुए है… और मैं स्वीकृति में अपना सर हिलाया था|

भिखारिन आफरीन की बातों से पूरा माहौल जैसे थोड़ा भारी सा हो गया था| उसने मेरे बालों को छोड़ दिया और एक कदम पीछे हटकर खड़ी हो गई; उसके बाद वह अपने कूल्हों पर हाथ रख कर खड़ी हो गई और आईने में मेरी छवि को देखने लगी| बाहर तूफान जोरों से उमड़ रहा था और मेरे मन में भी मानो वैसे ही आंधी चल रही थी... फिर अधिकार के भाव से उसने कहा, "चल लौंडिया! अपने सारे कपड़े उतार दे; मैं तुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती हूं"

उसकी आवाज में न जाने कैसा असर था कि उसकी वजह से मुझे ऐसा लगा मेरा दिल भी थरथरा उठा और मेरे अंदर एक डर और साथ ही एक अजीब सी उत्सुक उत्तेजना भी पैदा हो गई| एक पल के लिए मैं थोड़ा सा झिझकी; लेकिन न जाने क्यों उसकी बातों का जादू मुझ पर जाने लगा था... उसकी आवाज के मोहक जादू से मेरी सारी हिचकिचाहट दूर हो गई… मेरे अंदर सोई हुई यौन इच्छाएं धीरे-धीरे जाग रही थी... बाहर चमकती हुई बिजली मानो मेरे दिल पर गिर रही थी... धीरे-धीरे अपने कपड़ों को उतारना शुरू किया| बाहर बारिश बहुत तेज हो रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद यह बारिश मेरी शर्मो हया को धो डालने की कोशिश कर रही है|

आफरीन भिखारिन ने मानो अपनी तेज नजर से मुझे किसी अनजाने जादू में जकड़ रखा था; मैं एक आज्ञाकारी लड़की की तरह उसके कहने पर पूरी तरह नंगी हो गई और मुझे ऐसा लग रहा था कि अब कमरे की तरंगों में बहती हुई उसके अंदर की लालची उम्मीदें भी तैर रही है|

भिखारिन आफरीन दबे पांव धीरे-धीरे मेरे चारों तरफ एक चक्कर लगाकर मेरे पूरे नंगे बदन का मुआयना किया; और उसकी उंगलियां मेरे बदन को जगह-जगह छू-छू कर मानो एक अजीब हवस की आग मेरे अंदर भड़का रही थी| वह मेरे कानों के पास अपना मुंह लाकर फुसफुसाई, "तू एक नाजुक कली है; खिलने के लिए बिल्कुल तैयार मैं तो बस तेरी इस जवानी की इस फूल को पूरी तरह से खिलाना चाहती हूं..."

यह कहकर उसने मेरे गर्दन के पीछे से मेरे बाल हटाए और धीरे से मेरी गर्दन के पिछले हिस्से को अपनी जीभ से चाट कर को चुमा| बाहर एक जोरदार बिजली कड़की!

आफरीन भिखारिन ने मानो अपनी तेज नजर से मुझे किसी अनजाने जादू में जकड़ रखा था; मैं एक आज्ञाकारी लड़की की तरह उसके कहने पर पूरी तरह नंगी हो गई और मुझे ऐसा लग रहा था कि अब कमरे की तरंगों में बहती हुई उसके अंदर की लालची उम्मीदें भी तैर रही है|

मैं चौंक उठी! लेकिन बाहर होती हुई झमाझम बारिश ने हमें एक आनंदमय लय में डुबो दिया| चेहरे पर शरारत भरी हल्की सी एक मुस्कान लिए हुए भिखारिन आफरीन ने अपनी साड़ी उतारनी शुरू कर दी; वक्त और उम्र की वजह से उसके बदन में झुर्रियां आ गई थी और उसके कभी जवान और एक ज़माने में कसे हुए स्तन अब ढीले पड़ गए थे| वह भी किसी जमाने में जवान और सुंदर हुआ करती थी; लेकिन अब शायद वह मेरे बदन से अपनी खोई हुई जवानी और गर्माहट को महसूस करने के लिए अपने कपड़े उतार कर वह भी बिल्कुल नंगी हो गई थी|

इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती है उसने मुझे अपनी बाहों में कस कर पकड़ कर मुझे चूम लिया और एक मदहोशी के साथ मेरे होठों पर अपनी जीभ फेरने लगी है| उसकी हरकत से मानो पूरी अंतरात्मा के अंदर कामुकता की एक लहर से दौड़ गई है और मैं भी चुपचाप खड़ी होकर, बस उसके चूमने चाटने का सुकून महसूस करने लगी|

पहले से ही उसका हाथ मेरे कूल्हे पर था... वह अपनी खुरदरी उंगलियों से मेरे नंगे नितंबों को भींचने की कोशिश कर रही थी... मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि कैसे मेरे पूरे शरीर में अजीब हवास की आग भड़क रही थी और मैं अपनी रीढ़ की हड्डी में एक अज्ञात सनसनी महसूस कर रही थी|

मैं नहीं जानती कि कितनी देर तक मैं भी भिखारिन से ऐसे ही लिपट कर खड़ी रही| फिर उसने दोबारा मेरे सर के पीछे से मेरे बालों को अपनी मुट्ठी में पकड़ा और मेरा चेहरा अपने चेहरे के बिल्कुल सामने लाकर मेरी आंखों में आंखें डाल कर देखती हुई फुसफुसाई, " अब मेरी बात को ध्यान से सुन और समझ लौंडिया; आज इस पल के बाद से तू तन मन और धन से मेरी है... सिर्फ मेरी!"

मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा| क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा था कि उसकी आवाज बिल्कुल सांपों के हिसहिसाने की तरह थी| उसने आंखों आंखों में ही मेरे मन की बात पढ़ ली और उसके चेहरे परएक चमकती हुई मुस्कान खिल गई, क्योंकि वह समझ गई थी कि मैं मना नहीं करने वाली थी...

वह बोली, "बड़ी अच्छी बात है! तू उन दूसरी लड़कियों की तरह नहीं है... जो समझदार हो के भी नादान बनती है| इसलिए,... अब जैसा मैं कहूंगी तू बिलकुल वैसा वैसा ही करेगी... और यकीन मान; मैं तुझे जिंदगी की वह खुशियां दूंगी... जिनके बारे में शायद तूने कभी सोचा भी नहीं था... "

न जाने उसकी आवाज और उसकी बातों में कैसा सम्मोहन और जादू था कि मैं उसकी बातों में बिल्कुल घुलती जा रही थी... और उसकी उंगलियां मेरे पूरे बदन पर ऐसे फिर रही थी जैसे कि मानो बड़े-बड़े लिजलिजे से कीड़े रेंग रहे हो| मैंने धीरे से अपनी पलकें झपकाई और स्वीकृति में अपना सर हिलाया|

क्रमशः
Superb
 

chantu

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nai kahani ,,,,,, nya andaz pahle ki kahaniyiyo ki trh kuch alg or kalpna hote hue bhi vastvikta ke kariv
badhai ho sushri champa ji
 

naag.champa

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Jhalak to rochak hai
आदरणीय पाठक मित्र Delta101 जी,

मुझे उम्मीद है झलक के साथ-साथ आपको पूरी कहानी भी काफी रोचक और बहुत अच्छी लगेगी|
 

naag.champa

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Another intriguing intense story in your trademark style

welcome back
आदरणीय पाठक मित्र brego4 जी,

मुझे आपकी भी कमी खली| आशा है कि यह कहानी भी आपको बहुत पसंद आएगी|

कृपया कहानी के साथ बनी रही है क्या और अपने मूल्यवान मंतव्य और लाइक देते रहिएगा|
 

naag.champa

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गज़ब शुरुआत हमेशा की तरह
आदरणीय पाठक मित्र kamdev99008 जी,

मुझे इस बात की खुशी है कि आप भी मेरी यह कहानी पढ़ रहे हैं| अपने मूल्यवान सुझाव, मंतव्य और लाइक देते रहिएगा|
 

naag.champa

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nai kahani ,,,,,, nya andaz pahle ki kahaniyiyo ki trh kuch alg or kalpna hote hue bhi vastvikta ke kariv
badhai ho sushri champa ji
आदरणीय पाठक मित्र जी,

आपके मूल्यवान मंत्रालय के लिए धन्यवाद| मेरी कोशिश ही रहती है कि मैं अपनी कहानियों में कुछ नयापन ला सकूं और आप लोगों का मनोरंजन कर सकूं| कृपया कहानी के साथ बनी रहिए और अपने मूल्यवान मंत्र भी और सुझाव देते रहिए| आपका धन्यवाद!
 
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