अध्याय ४
मेरे बिस्तर के बगल में एक छोटी सी मेज थी, उस पर हमेशा एक लेखन पैड और एक कलम रखी रहती थी| आफरीन भिखारिन ने हाथ बढ़ाकर पेन उठाया और उसके पिछले हिस्से को अपने मुंह में डाल दिया| वह उस पेन के पिछले हिस्से को अपनी थूक और लार से अच्छी तरह से चिकना कर रही थी। फिर उसने जो किया, उसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी... उसने पेन मेरी गुदा में घुसा दिया! अब मैं दर्द से कराह उठी और अपनी कमर ऊपर उठाने की कोशिश करने लगी.... लेकिन उसने मुझे अपने हाथ से दबा कर वापस बिस्तर पर दबा दिया और दूसरे हाथ से मेरे गुप्तांग में उंगली करना जारी रखते हुए उसने कहा, “नहीं,नहीं, नहीं… लेटी रह लौंडिया; बस तू लेटी रह… यह दर्द इंजेक्शन की सुई की तरह है… मैं तुझे बिगाड़ रही हूं ना? इसके लिए मुझे तेरे साथ ऐसी गंदी-गंदी हरकतें करनी पड़ेगी... जल्द ही तुझे बहुत मजा आने वाला है…”
इस हालत में मैं कुछ भी कर नहीं पा रही थी... बस मुझे जो खट्टा मीठा दर्द और एक विकृत सी मस्ती का एहसास हो रहा था... मैं बस उसी के मजे लेती हुई बिस्तर पर छटपटाती रही...
आफरीन भिखारिन जिस तरह से मेरी योनि के अंदर उंगलियां चला रही थी; उससे मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अपने आप पर पूरा का पूरा नियंत्रण खो रही हूं... और मन ही मन मैंने ठान लिया कि अब मैं बस इस हवस के सैलाब में अपने आप को खुला छोड़ कर बस बह जाने दूँ... आफरीन भिखारिन को मेरी योनि के अंदर का सबसे संवेदनशील हिस्सा मिल गया था... और जैसे-जैसे मैं कराह रही थी... उसे और भी मजा आ रहा था| उसने कहा, "क्यों री लौंडिया? मेरी यह गंदी गंदी हरकतें तुझे अच्छी लग रही है ना?... बस तू मेरे लिए इसी तरह खराब और बर्बाद होती रहे... कब तक एक अच्छी सी बच्ची बनकर अपनी चूत से सिर्फ पिशाब ही करती रहेगी? बस ऐसे ही मुझे तेरा थोड़ा सा जतन लेने दे... अपने आप को रोक मत, गंदी हो जा और बिगड़ जा मेरे लिए"
जैसे-जैसे उसकी उंगलियां मेरे गुप्तांग के सबसे संवेदनशील हिस्सों पर नाचने लगी; मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं चरमोत्कर्ष के बहुत करीब पहुंच गई हूं| मेरा पूरा शरीर कांप रहा था और मेरी कमर रह रह कर एक जंगली जानवर की तरह उचक रही थी... आफरीन भिखारिन अभी भी मेरे यौन सागर का मंथन करने के नशे में डूबी हुई थी...
मुझे लगा जैसे अब यह सब बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा है, फिर उसने मेरी योनि में उत्तेजना और बढ़ा दी, और मुझे लगने लगा कि मेरा पूरा शरीर सुन्न हो गया है...
मेरी सांसें मेरे गले में अटक गईं है, और मेरे मुंह से एक लंबी और तेज़ कराह निकली ... और इसी के साथ ही मेरे अंदर इच्छा संतुष्टि का एक बड़ा विस्फोट हुआ!
बाहर फिर से बहुत तेज बिजली कड़की!
आफरीन भिखारिन ने अपनी उंगलियां मेरी योनि से बाहर निकाल कर अपनी उंगलियों पर लगे मेरे अंदर से निकले हुए चिपचिपे तरल पदार्थ को चाटना और चूसना शुरू कर दिया... फिर धीरे से उसने मेरी गुदा से पेन बाहर निकाला..
अब जब वह मुझे छूने लगी प्यार से मेरे बदन को सहलाने लगी, तो मुझे उसकी छुअन नरम और गरम सी महसूस होने लगी... पता नहीं उसने मेरे ऊपर क्या जादू कर दिया था कि अब मैं खुशी के इन बादलों में तैर रही थी.... मुझे ऐसा एहसास जिंदगी में पहले कभी नहीं हुआ था, इसलिए मैं खुशी और संतुष्टि के मारे रोने लगी…
मेरे गालों पर खुशी के आंसू बह रहे थे और भावनात्मक पसीने से मेरी पूरी त्वचा भी गई थी... और अब शायद मेरे गुप्तांग से किसी चिपचिपे तरल पदार्थ का रिसाव होने लगा था...
आफरीन भिखारिन चेहरे पर चुटीली मुस्कान के साथ मुस्कुराते हुए कहा, "भई मजा आ गया! अब तो तेरी जवानी की यह जागीर सारी की सारी मेरी हो गई है री लौंडिया!... मुझे मालूम था कि तू मेरी बगीचे की सबसे महकदार और सुंदर फूल बनकर खिलेगी "
यह कहते हुए उसने अपना सर दोबारा से मेरे दो टांगों के बीच के हिस्से में घुसा दिया और मेरी योनि से रिसते हुए चिपचिपे तरल पदार्थ जी भर के चूस-चूस कर पीना शुरू कर दिया... शायद उसे इसी शहद के बहने का इंतजार था|
आफरीन भिखारिन मेरे बगल में लेट गई और उसने मेरा पूरा बदन अपनी आगोश में ले लिया और बड़े प्यार से मुझे चूमने, पुचकारने और दुलारने लगी... और अपनी जीभ की नोक मेरे चेहरे पर फेरने लगी... और फिर दोबारा से उसने मेरे बालों को एक गुच्छा पकड़ा और मेरा सर अपनी छाती के पास ले आई और अपने स्तन का एक निप्पल मेरे मुंह में डाल दिया| मैं इशारा समझ गई और एक आज्ञाकारी अच्छी बच्ची की तरह उसका निप्पल चूसने लगी...
उसके बदन की छुयन मुझे किसी सर्दी के रात में ओढ़ी हुई गर्म कंबल जैसी महसूस हो रही थी... मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे एक औरत से इतना सुकून और इतनी यौन संतुष्टि मिल सकती है... वह भी एक ऐसी औरत से जो मुझसे उम्र में काफी बड़ी है|
आफरीन भिखारिन ने मुझसे कहा,"तू तो पूरी तरह से मेरे वश में आ ही गई है... तो अब मेरी बात ध्यान से सुन मेरी गुलाबी गुलाबी लौंडिया; अब तू मेरे लिए सिर्फ एक खिलौना बनकर ही नहीं रह गई है... बल्कि अब तू मेरी साथी है...
मैं जैसा जैसा कहूँगी अगर तू ऐसा वैसा करेगी; तो तुझे बहुत मजा आएगा... बस तुझे मेरे कहे अनुसार वह सब कुछ करना होगा जो मैं तुझे कहूंगी... मैं यहां तुझे खराब करने के लिए आई थी और मुझे इस बात की खुशी है कि तू बिगड़ गई... पर वादा कर आगे भी मैं तुझे जैसा कहूँगी तो बिल्कुल वैसा वैसा ही करेगी?"
मैंने धीरे से जवाब दिया, "जी हां आफरीन बाईसा"
मैं बहुत थक गई थी इसलिए मुझे याद नहीं कि कब मैं आफरीन भिखारिन की बाहों में ही सो गई और ऐसी गहरी और सुकून भरी नींद इससे पहले शायद मुझे कब आई थी? मुझे याद नहीं|
जब मेरी नींद खुली तो शाम ढल चुकी थी पर बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी| पता नहीं आफरीन भिखारिन कितनी देर से बिस्तर के कोने में बैठी हुई मुझे एक बच्चे की तरह सोते हुए देख रही थी|
उसने मुझसे पूछा, "अब तू कैसा महसूस कर रही है?"
मैंने एक गहरी सांस ली और जवाब दिया, "मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा है... लेकिन जो भी है मुझे अच्छा लग रहा है"
आफरीन भिखारिन बोलने लगी, "सुन लौंडिया! मैंने तेरे साथ जो भी किया जानबूझकर किया... अब मैं तुझे सच-सच बताती हूं, मुझे तुझ जैसी जवान लड़कियां बहुत पसंद है... इसलिए, मैं हमेशा यही कोशिश करती रहती हूं कि किसी न किसी तरह से मैं उन्हें हासिल करके अपनी हवस की प्यास को बुझा सकूं| मेरी कोशिश यही रहती है कि मैं उन्हें जिस्मानी सुकून देकर उन्हें खुश कर सकूं और पानी बहने लगता है; तो मैं वह शहद पी जाती हूं...
यह मेरे लिए एक जुनून है; इसके आगे मैं मजबूर हूं| तू काफी दिनों से मेरी नजरों में चढ़ी हुई थी और आज मैंने तुझे हासिल कर लिया और मैं तुझे अब छोड़ना नहीं चाहती...
लेकिन मैं यह चाहती हूं कि मैं जो तुझे बिगाड़ रही हूं, तुझे खराब कर रही हूं, तुझे गंदी बना रही हूं... यह सब तू मेरे साथ राजी खुशी करें... अच्छा एक बात बता; आगे भी मैं तुझे जैसा कहूँगी तो बिल्कुल वैसा वैसा खुले बालों में नंगी होकर ठीक वैसा वैसा करेगी? और हमेशा मेरी बिगड़ी हुई गंदी लौंडिया बन कर रहेगी?"
मैं फिर से धीरे से जवाब दिया, "जी हां आफरीन बाईसा"
लेकिन आफरीन भिखारिन ने मुझसे कहा, "नहीं नहीं! ऐसे बोलने से काम नहीं चलेगा| तुझे कहना होगा- जी हां जी हां आफरीन बाईसा! आप जैसा जैसा कहेंगीं; मैं अपने बालों को खोलकर बिल्कुल नंगी धड़ंगी होकर ठीक वैसा वैसा ही करूंगी; और मैं हमेशा आपकी बिगड़ी हुई गंदी लौंडिया बन कर रहूंगी... चल अब बोल कर दिखा जरा"
मैंने सर झुका कर मुस्कुराते हुए कहा, "जी हां जी हां आफरीन बाईसा! आप जैसा जैसा कहेंगीं; मैं अपने बालों को खोलकर बिल्कुल नंगी धड़ंगी होकर ठीक वैसा वैसा ही करूंगी; और मैं हमेशा आपकी बिगड़ी हुई गंदी लौंडिया बन कर रहूंगी"
आफरीन भिखारिन ने प्यार से मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में भरा और फिर मेरे होठों को चूम कर बोली, "ठीक है, यह हुई ना बात! तू तो बस सो कर ही उठी है; तुझे पिशाब लगी होगी| मैं तुझे पिशाब करती हुई देखना चाहती हूं- क्या यह तू मेरे लिए कर सकती है?
क्रमशः