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कुछ देर बाद जब वो आई तो थाल में आरती, मिष्ठान्न, तिलक, और सुगंध का समान था।
उसने मुझे खड़े होने को कहा। मेरे खड़े होने पर उसने एक एक कर के मेरे सारे कपड़े उतार दिए। न चाहते हुए भी मेरा लिंग उत्तेजित हो कर खड़ा हो गया। फिर उसने भी एक एक कर के अपने सारे कपड़े उतार दिए। आराध्य और आराधक अब अपने नैसर्गिक, मूर्त रूप में एक दूसरे के सामने थे। मुझे पीठे पर बैठा कर, अल्का स्वयं मेरे सामने हाथ जोड़ कर, घुटने के बल बैठ गई। उसको नग्न देख कर मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा था। बार बार उस दिन याद कर रहा था जब अल्का मेरे सामने नग्न लेटी हुई थी, फिर भी मेरे मन में कोई कामुक विचार नहीं थे। इसलिए अब स्वयं पर लज्जा भी आ रही थी कि एक तरफ वो है, जो मुझे पूजना चाहती है, और पूज रही है। और एक मैं हूँ जो क्या करना चाहता हूँ...
अल्का ने कोई प्राचीन मन्त्र जपना शुरू किया। उसका प्रेम, उसकी भक्ति और उसकी लगन देख कर मैं खुद ही आश्चर्यचकित था था। मुझे उस क्षण लगा कि भगवान की शक्ति संभव है उनके उपासकों से ही आती है।
जल्दी ही उसने पूजा समाप्त करी, मुझे तिलक लगाया, और मेरी आरती उतारी। अंत में उसने वैसे ही घुटने पर बैठे हुए ही मेरे पैरों पर अपना सर रख दिया और मेरे पैरों को बारी बारी चूमा। अपने पूरे जीवन में मैंने आदर और सम्मान का यह समर्पण नहीं देखा। लेकिन अल्का उस समय नग्न थी, और मैं खुद एक नवयुवक! और मेरे लिए यह लज्जास्पद था कि उसकी पूजा के कारण मेरे मन में सम्भोग का लोभ होने लगा। मेरा लिंग अपने चरम पर पहँचु गया। जाहिर सी बात है, अल्का ने यह देखा और बिना अपमानित हुए, बिना अप्रसन्न हुए मेरे लिंग को अपने हाथ में ले कर अपने सर से लगाया और उसके अगले हिस्से को को मुँह में लेकर चूमा। और फिर मुस्कुराते हुए कहा,
“मेरे चिन्नू, मेरे कुट्टन, आज से मेरा सब कुछ तुम्हारा है। कुछ देर पहले मैंने तुमको मुझे छूने से मना किया था, लेकिन अब नहीं। मैं अभी से तुमको अपने तन, मन और धन पर पूरा पूरा अधिकार देती हूँ। मैं तुम्हारी हूँ और तुम्हारी सेवा के लिए तत्पर हूँ।” कहते हुए अल्का की आँख से आँसू गिरने लगे।
अब मुझसे रहा नहीं गया। मैं उठा, और उसको खड़ा कर अपने गले से लगा लिया।
“मेरे स्वामी, तुम मुझको प्रसाद नहीं दोगे?”
“प्रसाद?”
“हाँ! मेरी योनि में प्रविष्ट हो कर मेरी पूजा सिद्ध कर दो...” उसने आँखे बंद किए हुए यह बात कह डाली।
मैंने अपने हाथ को उसकी योनि की तरफ बढ़ाया।
“नहीं!” उसने मुझे रोका।
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली।
“आज हाथ नहीं!” उसने काँपते हुए होंठों से से यह बात कह डाली।
उसने मुझे खड़े होने को कहा। मेरे खड़े होने पर उसने एक एक कर के मेरे सारे कपड़े उतार दिए। न चाहते हुए भी मेरा लिंग उत्तेजित हो कर खड़ा हो गया। फिर उसने भी एक एक कर के अपने सारे कपड़े उतार दिए। आराध्य और आराधक अब अपने नैसर्गिक, मूर्त रूप में एक दूसरे के सामने थे। मुझे पीठे पर बैठा कर, अल्का स्वयं मेरे सामने हाथ जोड़ कर, घुटने के बल बैठ गई। उसको नग्न देख कर मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा था। बार बार उस दिन याद कर रहा था जब अल्का मेरे सामने नग्न लेटी हुई थी, फिर भी मेरे मन में कोई कामुक विचार नहीं थे। इसलिए अब स्वयं पर लज्जा भी आ रही थी कि एक तरफ वो है, जो मुझे पूजना चाहती है, और पूज रही है। और एक मैं हूँ जो क्या करना चाहता हूँ...
अल्का ने कोई प्राचीन मन्त्र जपना शुरू किया। उसका प्रेम, उसकी भक्ति और उसकी लगन देख कर मैं खुद ही आश्चर्यचकित था था। मुझे उस क्षण लगा कि भगवान की शक्ति संभव है उनके उपासकों से ही आती है।
जल्दी ही उसने पूजा समाप्त करी, मुझे तिलक लगाया, और मेरी आरती उतारी। अंत में उसने वैसे ही घुटने पर बैठे हुए ही मेरे पैरों पर अपना सर रख दिया और मेरे पैरों को बारी बारी चूमा। अपने पूरे जीवन में मैंने आदर और सम्मान का यह समर्पण नहीं देखा। लेकिन अल्का उस समय नग्न थी, और मैं खुद एक नवयुवक! और मेरे लिए यह लज्जास्पद था कि उसकी पूजा के कारण मेरे मन में सम्भोग का लोभ होने लगा। मेरा लिंग अपने चरम पर पहँचु गया। जाहिर सी बात है, अल्का ने यह देखा और बिना अपमानित हुए, बिना अप्रसन्न हुए मेरे लिंग को अपने हाथ में ले कर अपने सर से लगाया और उसके अगले हिस्से को को मुँह में लेकर चूमा। और फिर मुस्कुराते हुए कहा,
“मेरे चिन्नू, मेरे कुट्टन, आज से मेरा सब कुछ तुम्हारा है। कुछ देर पहले मैंने तुमको मुझे छूने से मना किया था, लेकिन अब नहीं। मैं अभी से तुमको अपने तन, मन और धन पर पूरा पूरा अधिकार देती हूँ। मैं तुम्हारी हूँ और तुम्हारी सेवा के लिए तत्पर हूँ।” कहते हुए अल्का की आँख से आँसू गिरने लगे।
अब मुझसे रहा नहीं गया। मैं उठा, और उसको खड़ा कर अपने गले से लगा लिया।
“मेरे स्वामी, तुम मुझको प्रसाद नहीं दोगे?”
“प्रसाद?”
“हाँ! मेरी योनि में प्रविष्ट हो कर मेरी पूजा सिद्ध कर दो...” उसने आँखे बंद किए हुए यह बात कह डाली।
मैंने अपने हाथ को उसकी योनि की तरफ बढ़ाया।
“नहीं!” उसने मुझे रोका।
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली।
“आज हाथ नहीं!” उसने काँपते हुए होंठों से से यह बात कह डाली।