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Romance मंगलसूत्र [Completed]

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mashish

BHARAT
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“अरे मेरी मगळ (बेटी), मैंने ऐसा कब कहा? किसी भी खूंटे से बांधना होता, तो तेरी इतनी बक बक सुनती? तेरी पसंद के ही किसी वर से करूँगी तेरा विवाह! तू कह तो सही!”

“वर तो है मेरी नज़र में यजमंट्टी...” चिन्नम्मा ने कहा।

“अरे? वर है? तो अभी तक बताया क्यों नहीं?”

“बताने में हिचक रही थी मैं यजमंट्टी..”

अल्का ने चिन्नम्मा को सर हिला कर इशारा किया, लेकिन वो आज कुछ सुनने, मानने वाली नहीं थी।

“अरे यजमंट्टी, अपना अर्चित नहीं दिखता क्या आपको?”

“चिन्नू? अल्का का विवाह चिन्नू से? पागल हो गई है क्या, लक्ष्मी? यह सब तेरे यहाँ होता होगा!”

“वाह यजमंट्टी, आपके यहाँ मामा अपनी भांजी से परिणय कर सकता है, लेकिन अम्माई अपने भांजे से नहीं! यह कैसी व्यवस्था है? अपनी मोलूट्टी से पूछ कर देखिए... अगर उसको अर्चित पसंद है, तो फिर क्या परेशानी है?”

चिन्नम्मा की इस बात का अम्मम्मा के पास कोई उत्तर नहीं था।

“मुझ बुढ़िया ने यह सब रीति रिवाज़ थोड़े न बनाए हैं, लक्ष्मी!” नानी ने बुझी हुई आवाज़ में कहा, “लेकिन सोचती हूँ, तो तुम्हारी बात तो ठीक ही लगती है। अल्का, मेरी बच्ची, क्या हो गया। तू ऐसे नंगी क्यों है मेरी मोलू?” अम्मम्मा की आवाज़ में चिंता थी ।

“कुछ नहीं अम्मा...” अल्का रुकी और फिर सोच कर बोली, “मैं अपने भगवान की पूजा कर रही थी।"

“नग्न पूजा! अच्छा है.. कर ले, अपने लिए एक अच्छा सा वर भी माँग ले..”

“माँगा है माँ!” अल्का मुस्कुराई।

“भगवान तेरी प्रार्थना स्वीकार करें!” कह कर नानी ने अल्का के सर पर प्यार से हाथ फिराया और कहा, “जल्दी से अपने कपड़े ले बच्ची... चिन्नू तुझे ऐसे देखेगा तो क्या सोचेगा?”

“देखने लेने दो न यजमंट्टी; क्या पता अपनी अल्का के भाग्य में अर्चित ही लिखा हो?”

“तू फिर से शुरू हो गई, लक्ष्मी?”

“क्या इतनी बुरी बात कह दी मैंने यजमंट्टी?”

“नहीं लक्ष्मी, बुरी बात तो नहीं कही है...”

“तो फिर?”

“बस एक अलग सी बात है। पता नहीं! भगवान के खेल.. मुझ बुढ़िया की समझ से बाहर हैं। और फिर रीति रिवाज़ भी तो मानने पड़ते हैं, है न?”

“प्रेम के संयोग तो भगवान ही बनाते हैं, न यजमंट्टी!”

“सो तो है ही..”

“और यदि मैं यह कहूँ कि अपनी अल्का अर्चित को पसंद करती है, और अर्चित अल्का को, तो क्या कहोगी यजमंट्टी?”

बाण अब न केवल तूणीर से बाहर निकल गया था, बल्कि धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ कर अपने लक्ष्य की तरफ चल भी दिया था। अब आगे की घटनाओं पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होने वाला था।

“क्या? ये लक्ष्मी क्या कह रही है, मोलूट्टी ?”
awesome update
 

Ajay

Well-Known Member
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“आअह्ह्ह!!” यह न तो कराह थी, और न ही चीख। लेकिन जो भी कुछ था, बहुत उच्च स्वर में था। नानी और चिन्नम्मा दोनों ने ही शर्तिया सुना होगा।

इस बार मेरा लिंग अपनी कोई एक तिहाई लम्बाई तक अंदर घुसने में सफल रहा!

‘कितना मखमली एहसास! गुदगुदी सी होने लगी!’

मैंने तीसरा धक्का लगाया ही था कि जैसे मेरे वृषणों में एक आंदोलन हुआ हो... एक विस्फ़ोट के साथ सारा वीर्य अल्का की योनि के भीतर जमा हो गया। संतुष्टि भरी कराह मेरे गले से निकल गई। उधर अल्का इस तीसरे हमले के बल से एक और बार चीखी। अपने चरमोत्कर्ष के उन्माद में मैंने एक और धक्का लगाया, अल्का फिर से कराही। उसके बाद मेरा लिंग तेजी से सिकुड़ने लगा। अगला धक्का लगाने के लिए उसमें अब पर्याप्त दृढ़ता नहीं रह गई। कुछ ही पलों में वो खुद ही अल्का की योनि से बाहर निकल आया। अल्का को अवश्य ही मालूम चल गया होगा कि मैं स्खलित हो गया था।

“चिन्नू... मेरे कुट्टन! मेरे चेट्टा!” अल्का ने तेज साँसे भरते हुए कहा, “कैसा लगा तुमको? अच्छा तो लगा न ?”

“बहुत अच्छा लगा मोलू... मेरी पोन्ने... बहुत अच्छा!”

वो मुस्कुराई, “आज मैं पूरी औरत बन गई...” कह कर उसने मेरे होंठों को चूम लिया ।


“यजमंट्टी आ रही हैं... तुम लोग जल्दी से ठीक हो जाओ..”

हमको चिन्नम्मा की आवाज़ सुनाई दी। उस समय हमारे दिमाग में यह बात नहीं आई कि हमारा समागम चिन्नम्मा से छुपा हुआ नहीं था, और उन्होंने सब कुछ देख लिया था.. या फिर न जाने कितना कुछ!

“चेट्टन, तुम जल्दी से छुप जाओ । जाओ.. जल्दी !”

अल्का ने मुझे अपने से परे धकेला। मैं जल्दी से उठा और वहीं एक कोने में जा कर छुप गया। कपड़े पहनने का समय न तो मेरे पास था, और न ही अल्का के पास। और मैं भी अल्का के ऊपर से बस ऐन मौके पर ही हट सका। मेरे पूरी तरह से छुपने से ठीक पहले ही अम्मम्मा (नानी) आँगन की तरफ आती हुई दिखाई दीं।

“अरे मोलूट्टी... तू ऐसे नंगी क्यों बैठी है? अगर पट्रन इधर आ गया और तुमको ऐसी हालत में देख लिया तो?”

“अरे यजमंट्टी, आप मोलूट्टी का परिणय करवा दो न? कितना समय हो गया! देखो न बेचारी कैसी हो गई है..” चिन्नम्मा ने अपना दाँव फेंका।

“अरे दस बारह साल से कोशिश कर रही हूँ.. न तो इसे कभी कोई पसंद आता है, और न ही किसी का नाम लेती है! देखो तो लक्ष्मी... कितनी बड़ी हो गई है! इतने बड़े बड़े मुलाक्कल और वो भी सूखे!”

“अम्मा!” कहते हुए अल्का ने शर्म अपना चेहरा ढँक लिया।

“क्या अम्मा?! मेरे सामने नंगी बैठी है, उसमे तो तुझे लज्जा नहीं या रही है। और मेरी इस बात से लज्जित हो रही है। अरे, लड़की इनमें से तो दूध की धार बहती रहनी चाहिए! जब मैं तेरी उम्र की थी, तब मेरे कितने बच्चे हो गए थे।”

“अम्मा, मैं कोई गाय हूँ क्या, जो मेरे दूध की धार बहती रहे?”

“गाय नहीं है... लेकिन मेरी कन्यका तो है! अब तक तेरे दो तीन बच्चे हो जाते, तो अच्छा रहता।”

“क्या अम्मा..”

“अरी! फिर वही बात! अभी चिन्नू भी ऐसे ही नंगा घूम रहा था, अब तू भी! चलो, वो तो अभी बच्चा है, लेकिन तू तो सयानी है न!”

“बच्चा है वो यजमंट्टी? उसका कुन्ना देखा है तुमने ? केले जैसा हो गया है!” चिन्नम्मा ने अपनी विशेष टिप्पणी जारी रखी।

“हट बेशरम!”

“बेशरम नहीं.. मैंने उसका अभ्यंगम किया है.. सब देखा है.. बढ़िया जवान नाती है तुम्हारा... अब तो उसका वीर्य भी बनने लगा है..” चिन्नम्मा ने बड़ी बेशर्मी से अपनी बात कह दी। मुझे जवानी का प्रमाणपत्र मिल गया।

“हाँ ठीक है.. ठीक है... वो भी बड़ा हो गया है.. लेकिन बात इस लड़की की हो रही है.. कब तक इसको ऐसी कुँवारी घर में बैठाऊं ? अब तक तो इसके सीने से दूध आने लगना था!”

“मेरे सीने से दूध निकलवाने का बस यही तरीका बचा हुआ क्या अम्मा, कि तुम मुझे किसी भी घर के खूंटे से बाँध दो? अपनी लड़की के साथ किसी मवेशी के जैसे व्यवहार करो?” अल्का ने बनावटी भावनाओं के साथ कहा। अब तक वो अम्मम्मा के पास आ कर बैठ गई थी।
Nice update
 

mashish

BHARAT
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अम्मम्मा के प्रश्न के उत्तर में अल्का बस सर झुकाए बैठी रही। कुछ बोल न सकी।

“अरे बोल न, मेरी प्यारी बच्ची! अगर मैं बुढ़िया तुझे किसी भी प्रकार का सुख दे सकी तो मुझे मंज़ूर है सब कुछ! सब मंज़ूर है। तूने मेरी सेवा के लिए कैसा कठिन व्रत ले लिया है। मैं कब तक तुझ पर ऐसे बोझ बनी बैठी रहूंगी।”

“ऐसे न कहो अम्मा। माँ बाप क्या हम पर बोझ हैं? उन्ही के आशीर्वाद से तो हम होते हैं। तुम मेरे लिए कब से बोझ हो गई अम्मा?”

“अगर ऐसी बात है तो बोल मुझे। अगर तेरी यही मंशा है, तो मैं तेरी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर दूँगी!”

अम्मम्मा की बात पर अल्का शर्म से मुस्कुरा दी।

“क्या सच में अम्मा?”

“हाँ मेरी बच्ची! तू बोल न?”

“अम्मा, मेरी प्यारी अम्मा... मैंने... मैंने अर्चित को ही अपना भगवान मान लिया है..”

“क्या?” नानी अवाक् सी देखती रह गई।

“हाँ अम्मा! आपके आने से पहले मैं उन्ही की पूजा कर रही थी । मैंने... अपना सब कुछ उनको ही सौंप दिया है... अब मैं... अब मैं कन्यका नहीं रही अम्मा..”

“यह सब क्या कह रही है तू? तेरा दिमाग तो ठीक है?” अम्मम्मा, जो बहुत ही खुश-मिज़ाज थीं, स्वाभाविक रूप से क्रोधित दिख रही थीं।

“हाँ अम्मा, मेरा दिमाग भी ठीक है और जो मैंने अभी अभी आपको बताया है वह भी सच है। मैंने अपना सर्वस्व अर्चित को सौंप दिया है, और उनको मन से अपना पति मान लिया है। अब आप भी अपना आशीर्वाद दे दीजिए।”

नानी बहुत देर तक सोचती रही और फिर बोली, “किधर है वो ?”

“कुट्टन...” अल्का ने मुझे आवाज़ लगाई, “चेट्टा...”
good update
 
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“अरे मेरी मगळ (बेटी), मैंने ऐसा कब कहा? किसी भी खूंटे से बांधना होता, तो तेरी इतनी बक बक सुनती? तेरी पसंद के ही किसी वर से करूँगी तेरा विवाह! तू कह तो सही!”

“वर तो है मेरी नज़र में यजमंट्टी...” चिन्नम्मा ने कहा।

“अरे? वर है? तो अभी तक बताया क्यों नहीं?”

“बताने में हिचक रही थी मैं यजमंट्टी..”

अल्का ने चिन्नम्मा को सर हिला कर इशारा किया, लेकिन वो आज कुछ सुनने, मानने वाली नहीं थी।

“अरे यजमंट्टी, अपना अर्चित नहीं दिखता क्या आपको?”

“चिन्नू? अल्का का विवाह चिन्नू से? पागल हो गई है क्या, लक्ष्मी? यह सब तेरे यहाँ होता होगा!”

“वाह यजमंट्टी, आपके यहाँ मामा अपनी भांजी से परिणय कर सकता है, लेकिन अम्माई अपने भांजे से नहीं! यह कैसी व्यवस्था है? अपनी मोलूट्टी से पूछ कर देखिए... अगर उसको अर्चित पसंद है, तो फिर क्या परेशानी है?”

चिन्नम्मा की इस बात का अम्मम्मा के पास कोई उत्तर नहीं था।

“मुझ बुढ़िया ने यह सब रीति रिवाज़ थोड़े न बनाए हैं, लक्ष्मी!” नानी ने बुझी हुई आवाज़ में कहा, “लेकिन सोचती हूँ, तो तुम्हारी बात तो ठीक ही लगती है। अल्का, मेरी बच्ची, क्या हो गया। तू ऐसे नंगी क्यों है मेरी मोलू?” अम्मम्मा की आवाज़ में चिंता थी ।

“कुछ नहीं अम्मा...” अल्का रुकी और फिर सोच कर बोली, “मैं अपने भगवान की पूजा कर रही थी।"

“नग्न पूजा! अच्छा है.. कर ले, अपने लिए एक अच्छा सा वर भी माँग ले..”

“माँगा है माँ!” अल्का मुस्कुराई।

“भगवान तेरी प्रार्थना स्वीकार करें!” कह कर नानी ने अल्का के सर पर प्यार से हाथ फिराया और कहा, “जल्दी से अपने कपड़े ले बच्ची... चिन्नू तुझे ऐसे देखेगा तो क्या सोचेगा?”

“देखने लेने दो न यजमंट्टी; क्या पता अपनी अल्का के भाग्य में अर्चित ही लिखा हो?”

“तू फिर से शुरू हो गई, लक्ष्मी?”

“क्या इतनी बुरी बात कह दी मैंने यजमंट्टी?”

“नहीं लक्ष्मी, बुरी बात तो नहीं कही है...”

“तो फिर?”

“बस एक अलग सी बात है। पता नहीं! भगवान के खेल.. मुझ बुढ़िया की समझ से बाहर हैं। और फिर रीति रिवाज़ भी तो मानने पड़ते हैं, है न?”

“प्रेम के संयोग तो भगवान ही बनाते हैं, न यजमंट्टी!”

“सो तो है ही..”

“और यदि मैं यह कहूँ कि अपनी अल्का अर्चित को पसंद करती है, और अर्चित अल्का को, तो क्या कहोगी यजमंट्टी?”

बाण अब न केवल तूणीर से बाहर निकल गया था, बल्कि धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ कर अपने लक्ष्य की तरफ चल भी दिया था। अब आगे की घटनाओं पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होने वाला था।

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अम्मम्मा के प्रश्न के उत्तर में अल्का बस सर झुकाए बैठी रही। कुछ बोल न सकी।

“अरे बोल न, मेरी प्यारी बच्ची! अगर मैं बुढ़िया तुझे किसी भी प्रकार का सुख दे सकी तो मुझे मंज़ूर है सब कुछ! सब मंज़ूर है। तूने मेरी सेवा के लिए कैसा कठिन व्रत ले लिया है। मैं कब तक तुझ पर ऐसे बोझ बनी बैठी रहूंगी।”

“ऐसे न कहो अम्मा। माँ बाप क्या हम पर बोझ हैं? उन्ही के आशीर्वाद से तो हम होते हैं। तुम मेरे लिए कब से बोझ हो गई अम्मा?”

“अगर ऐसी बात है तो बोल मुझे। अगर तेरी यही मंशा है, तो मैं तेरी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर दूँगी!”

अम्मम्मा की बात पर अल्का शर्म से मुस्कुरा दी।

“क्या सच में अम्मा?”

“हाँ मेरी बच्ची! तू बोल न?”

“अम्मा, मेरी प्यारी अम्मा... मैंने... मैंने अर्चित को ही अपना भगवान मान लिया है..”

“क्या?” नानी अवाक् सी देखती रह गई।

“हाँ अम्मा! आपके आने से पहले मैं उन्ही की पूजा कर रही थी । मैंने... अपना सब कुछ उनको ही सौंप दिया है... अब मैं... अब मैं कन्यका नहीं रही अम्मा..”

“यह सब क्या कह रही है तू? तेरा दिमाग तो ठीक है?” अम्मम्मा, जो बहुत ही खुश-मिज़ाज थीं, स्वाभाविक रूप से क्रोधित दिख रही थीं।

“हाँ अम्मा, मेरा दिमाग भी ठीक है और जो मैंने अभी अभी आपको बताया है वह भी सच है। मैंने अपना सर्वस्व अर्चित को सौंप दिया है, और उनको मन से अपना पति मान लिया है। अब आप भी अपना आशीर्वाद दे दीजिए।”

नानी बहुत देर तक सोचती रही और फिर बोली, “किधर है वो ?”

“कुट्टन...” अल्का ने मुझे आवाज़ लगाई, “चेट्टा...”
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घर परिवार का काम भी? लगता है शादी नहीं हुई आपकी।
यहाँ कहानी लिखना मेरे लिए आखिरी और वो भी ग़ैरज़रूरी काम है।
मुफ़्त में लिखता हूँ, अपना समय नष्ट कर के, और उसका क्या मुआवज़ा मिलता है? घण्टा।
Bhai aiesa nahi hai ki doctor ne bol rakha hai ki yahan aapki kahani padhna sehat k liye labhdayak hai, na kisine aapko force Kiya likhne ko na mujhe padhne ko, wo to aapki kahani achchi lagi isliye cmnt kiye the, but shayad aapko koi aur hi fitoor ho Gaya hai to good bye
 

Vijay2309

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Bhai aiesa nahi hai ki doctor ne bol rakha hai ki yahan aapki kahani padhna sehat k liye labhdayak hai, na kisine aapko force Kiya likhne ko na mujhe padhne ko, wo to aapki kahani achchi lagi isliye cmnt kiye the, but shayad aapko koi aur hi fitoor ho Gaya hai to good bye

तुम्हारे जैसे रीडर की बस एक समस्या है तुमसे एक कॉमेंट ढंग से लिखा नही जाता और राइटर को ज्ञान देने निकल पड़ते हो....अभी आपने कंमेंट मैं लिखा कि आपको किसी डॉक्टर ने नही बोला कि आप ये कहानी पढोगे तो कोई लाभ होगा। ..आप को कहानी पसंद आई और आपने पढ़नी शुरू कर दी ...अब मुझे बस इतनी बात बताओ कि क्या राइटर ने आपको इनविटेशन दिया कहानी पढ़ने का......दोस्त सभी यहां किसी न किसी परेशानी की वजह से है आप कल्पना भी नही कर सकते इस तरह की परेशानियों से जूझते हुए लोग यहां स्टोरी लिखते है और पढ़ते भी है.....अगर आप किसी का हौंसला नही बढ़ा सकते तो शिकायत किस बात की.....आपसे समझदारी से भरे रिप्लाई की उम्मीद हैं....मैंने ये कहानी नही पढ़ी बस आपका कमेंट देख कर ही में रिप्लाई करने आ गया
 

Vijay2309

Well-Known Member
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avsji दोस्त लोगों के कमैंट्स पे ध्यान मत दो.....कुछ लोग प्रेम से तुम्हे माथे पर बैठाएंगे और कुछ तुम्हारे माथे पर पत्थर बरसाएंगे.....इसलिए जो कुछ भी लिख रहे हो अपनी खुशी के लिए लिखो
 
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