उस रात जब खाने के बाद बिस्तर में लेटे तो मेरी जवानी स्वयं ही ज्वार भरने लगी। अल्का ने मैक्सी पहनी हुई थी। मैंने हाथ बढ़ा कर उसके नितम्बों को दबाना चाहा। उसने फुसफुसाते हुए मेरा विरोध किया,
“नहीं! अभी नहीं! कुछ सब्र करो कुट्टन!”
और ऐसा कहते हुए उसने मेरे होंठों पर एक चुम्बन दिया, “अभी अच्छे बच्चे बन जाओ! प्लीज!”
लेकिन फिर भी मेरा हाथ नहीं माना।उसी छेड़-छाड़ में मेरा हाथ उसके नितम्बों की बीच की दरार से उसकी योनि को बस छू ही पाया था, कि अल्का बिजली की तेजी से मेरी तरफ मुड़ी और मुझे मेरे गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ महसूस होने लगा!
“तमीज से नहीं रह सकते क्या?” अल्का ने गुस्से में बोला, और दूसरी तरफ मुंह कर के लेट गई।
ये क्या हुआ!?
अभी कुछ ही देर पहले तक तो सब ठीक था! अल्का ने आज से पहले मुझ पर कभी भी हाथ नहीं उठाया था। और तो और, हम बस कुछ ही दिनों पहले तक ही तो पूरे नंगे हो कर एक दूसरे के शरीर से खेल रहे थे! फिर यह क्या हुआ? और क्यों हुआ? थप्पड़ गाल पर लगा, लेकिन चोट दिल पर। गुस्से, खीझ और शर्म से दिमाग चकरा गया। क्रोध की तमतमाहट जल्दी ही बदले की भावना में बदलने लगी। जिससे आपको सबसे अधिक प्रेम होता है, वही व्यक्ति आपको सबसे अधिक आहत कर सकता है। जब ऐसे व्यक्ति से आपको तिरस्कार मिलता है, तो चोट सीधा ह्रदय पर आ कर लगती है। और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उसी व्यक्ति पर आपको सबसे अधिक क्रोध भी आता है। प्रेम, अपनापन और अधिकार भाव के मध्य न जाने कैसा अबूझ सम्बन्ध होता है। उसको समझना आसान नहीं है। बस, उसको समझने की दिशा में प्रयत्न किया जा सकता है।
मैं तमक कर बिस्तर से उठा और कमरे से बाहर निकल गया। नीचे ज़मीन पर ही लेटा। वर्षा ऋतु में यह करना जोखिम भरा काम है। साँप, बिच्छू और इसी तरह के अन्य जीव जंतु वर्षा के कारण अपने अपने बिलों से बाहर निकल कर घरों के अंदर आ जाते हैं। अम्मम्मा को तो खैर इस बारे में कुछ मालूम नहीं हुआ, और अल्का... अगर उसको कुछ मालूम भी हुआ हो, तो उसने कुछ भी करने की ज़हमत नहीं उठाई।
‘इस अल्का की बच्ची को मज़ा ज़रूर चखाऊंगा!’
बस इसी विचार के साथ गुस्से में कब नींद आ गई, याद नहीं। प्रेम में होने पर भावनाएँ भी ज्वार भाटा की मानिंद दोलन करती रहती हैं। दो सप्ताह पहले सब कुछ कितना सुन्दर सुन्दर लग रहा था। और आज! आज सब कुछ खिन्न! विषाद ग्रस्त। अगले सवेरे उठा, तो देखा कि मुझको किसी ने पतले से चद्दर से ढँक दिया था जिससे मच्छर परेशान न कर सकें। सर के नीचे तकिया भी रख दी थी। क्रोध इतना भरा हुआ था कि दिमाग में आया ही नहीं कि यह सब अल्का ने ही करा होगा। घर में चहल पहल का तात्पर्य था कि अल्का उठ चुकी थी, और चिन्नम्मा आ चुकी थीं। ज़मीन पर सोने के कारण पूरा शरीर ठंडा हो गया था, किंतु दिमाग में क्रोध भरा हुआ था, और उबल रहा था।
“अरे चिन्नू, उठ गए! यहाँ ज़मीन पर क्यों लेट गए थे कल रात? कोई साँप या कीड़ा आ जाता, तो?”
अल्का को याद तो था कि उसने मेरे साथ क्या किया रात को। अब बड़ी चली है मेरी परवाह करने का नाटक करने। मैं तमक कर उठा, और बाहर चला गया। पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि अल्का क्या कर रही है, क्या सोच रही है।
‘इसने मुझे बेइज़्ज़त किया, अब मैं इसको बताऊंगा।’ बस यही एक बात दिमाग में घूम रही थी।
बहुत देर तक समझ नहीं आया कि रात के अपमान का बदला कैसे लूँ।
खाना न खाना एक उपाय हो सकता है, लेकिन वह एक बचकाना उपाय है। ऊपर से स्वयं को ही कष्ट होना है उससे। अल्का को क्या? फिर एक उपाय उपजा दिमाग में। मैं घर में आया, और फिर मैंने अपने शरीर से सारे कपड़े उतार फेंके। और ऐसे ही नंगा बाहर चला गया, और नंगा ही इधर उधर घूमने लगा। मेरी इस हरकत से अल्का बहुत घबरा गई - कुछ नाराज़ भी हुई। लेकिन, उस घर में मैं ही एक मर्द था - और सबसे छोटा भी! मैं देखना चाहता था की घर की सभी स्त्रियाँ क्या प्रतिक्रिया देती हैं। चिन्नम्मा मुझे ऐसे देख कर मुस्कुराई, और बोली कि चिन्नू की शादी कर देनी चाहिए। मैंने उसको कहा कि मैं तो तैयार हूँ। तुम बताओ कि किस लड़की से करूँ? मेरी इस बात पर उसने अल्का की तरफ इशारा किया। अल्का ने इस बात पर हम दोनों को ही डाँट लगाई, और मुझे कपड़े पहनने को कहा। चिन्नम्मा तो हँसी दबा कर अपना काम करने में व्यस्त हो गईं, लेकिन मैंने फिर भी कुछ नहीं पहना।
मैं अल्का को बता देना चाहता था कि मैं उसके वश में नहीं हूँ। मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। और यहाँ मेरी मर्ज़ी भी चलेगी। घर की मालकिन तो अल्का ही थी, लेकिन यदि उसका बस मुझ पर नहीं चलता, तो स्पष्ट था कि मेरी हैसियत भी घर के मालिक जैसी ही है। खाना न खाने जैसे हठ करने पर अनदेखा किया जा सकता है कि ‘जा मर! मत खा!’ लेकिन इस तरह के ‘सत्याग्रह’ को अनदेखा करना असंभव है। खुद की बेइज़्ज़ती होने का बहुत बड़ा डर रहता है। ख़ास तौर पर तब जब यह करने वाला वयस्क पुरुष हो!
फिर मैं अम्मम्मा के पास गया। उनसे काफी देर बात करने के बाद उनको समझ आया कि मैं नंगा हूँ। लेकिन उनको समय इत्यादि का जैसे कोई ध्यान ही नहीं था। उनके लिए मैं अभी भी छोटा ही था। माता पिता जब अपनी संतानों को देखते हैं, तो उनको अक्सर ऐसा ही लगता होगा। ख़ैर, उन्होंने मेरे शिश्न को अपने हाथ में लिया और कहा,
“बेटा, इसकी ठीक से देखभाल करना। पति वही अच्छा होता है तो अपनी पत्नी के दोनों मुँह अच्छे से भर सके - मतलब ऊपर वाले मुँह में पेट भर भोजन, और नीचे वाले मुँह में मन भर घर्षण - इन दोनों की कमी नहीं होनी चाहिए! सुखी परिवार का बस यही आधार है!”
अल्का ने माथा पीट लिया। अम्मम्मा को वो कुछ नहीं कह सकती थी।