• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मंगलसूत्र [Completed]

Status
Not open for further replies.

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
मैंने अल्का को गोद में उठाया, और आँगन से बाहर ले आया। तौलिये से उसके गीले शरीर को पोंछा, और उसी नग्नावस्था में उसको बिस्तर पर लिटाया। मान-मनुहार का दौर चला तो एक-दो घंटे बीत गए। इस बीच बारिश ने थमने का नाम ही नहीं लिया। वैसे भी आज खेत पर कोई काम नहीं होना था। मैंने चिन्नम्मा को मदद के लिए बुलाया। उसने अल्का की योनि साफ़ करी, एक ताज़ी नैपकिन निकाल कर उसकी योनि से सटाई और उसको साफ़, सूखी चड्ढी पहनाने लगी। चिन्नम्मा मेरे बर्ताव पर बहुत ही गुस्सा थी। वो, और अल्का, उम्र में इतना फ़ासला होने के बावजूद, दोनों सहेलियों जैसी थीं। अब चूँकि अल्का का दिल दुखाने का यह मेरा पहला अवसर था इसलिए चिन्नम्मा ने मुझे माफ़ कर दिया।

दरअसल, मासिकधर्म के समय अल्का बहुत चिड़चिड़ी सी हो जाती है, और उसको बात बात में गुस्सा आने लगता है। यह बात मुझे नहीं मालूम थी, और संभवतः उसको भी नहीं। लेकिन आस पास वाले, खास तौर पर लक्ष्मी को यह बात मालूम थी। अल्का उन दिनों में अक्सर ही उसको छोटी छोटी गलतियों पर झाड़ देती थी। जब चिन्नम्मा ने गणित लगाई, तो उसको इस बात का सारा रहस्य मालूम पड़ गया। चिन्नम्मा हाँलाकि इस बात से बहुत आश्चर्यचकित थीं कि मेरे और अल्का के बीच इस तरह का सम्बन्ध कैसे बन गया। लेकिन वो इस बात से खुश भी लग रही थीं। शायद उनको अल्का का कुँवारापन अच्छा नहीं लगता था।

खैर, जब हम दोनों का मन मुटाव कम या कहिए कि समाप्त हो गया, तब अल्का ने मुझसे कहा,

“तुमको मालूम है कुट्टन, मुझे मंदिर में जाना मना है इन तीन चार दिनों तक।”

“हैं? वो क्यों? किसने मना किया?”

मेरी ऐसी हालत थी, कि अल्का की कोई भी समस्या अब मेरी समस्या थी। मैंने मन ही मन यह निश्चय किया कि इस लड़की को अब से हमेशा खुश रखूँगा और उसका दिल कभी नहीं दुखाऊँगा।

“मेरा अर्रट्टावम (मासिक धर्म) है न...”

“यह तो गलत बात है... प्राकृतिक बातों के लिए किसी को धार्मिक काम करने से कैसे मना किया जा सकता है।”

वो मुस्कुराई, “नहीं करना चाहिए, है न?”

“बिलकुल भी नहीं!”

“तुम मुझे मना करोगे?”

“अरे, कैसी पहेलियाँ बुझा रही हो मोल्लू! मैं क्यों मना करूँगा?” मुझे उसकी बात समझ में ही नहीं आ रही थी ।

“तो मैं पूजा कर सकती हूँ?”

“हाँ हाँ! बिलकुल..”

“तो मेरी जान.. तुम इस तरफ आ कर आराम से बैठ जाओ.. मुझे तुमको पूजना है!”

“क्या! यह क्या कह रही हो अल्का?”

“अरे... पति तो स्त्री का परमेश्वर होता है... है न? तुमको मैंने अपना पति माना है। रीतियाँ नहीं हुईं, तो क्या हुआ? मन वचन और अब कर्म से तुम मेरे पति हुए... आज से, अभी से! और, मुझे अब तुम्हारी ही पूजा करनी है।”

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ह्रदय में एक शूल सा चुभ गया हो। कितनी बड़ी बात कह दी अल्का ने, और कितना बड़ा स्थान दे दिया अपने जीवन में! मैं किस लायक था! लेकिन अल्का के लिए, उसके हृदय में मेरा स्थान कितना बड़ा था! मेरी आँख से आँसू गिर गए। अल्का ने मुझे उस लकड़ी के पीठ पर बैठाया जहाँ मूर्ति रखी जाती है और पूजा की थाल बनाने अंदर चली गई।
superb update
 
  • Like
Reactions: ukp, avsji and Ajay

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
कुछ देर बाद जब वो आई तो थाल में आरती, मिष्ठान्न, तिलक, और सुगंध का समान था।

उसने मुझे खड़े होने को कहा। मेरे खड़े होने पर उसने एक एक कर के मेरे सारे कपड़े उतार दिए। न चाहते हुए भी मेरा लिंग उत्तेजित हो कर खड़ा हो गया। फिर उसने भी एक एक कर के अपने सारे कपड़े उतार दिए। आराध्य और आराधक अब अपने नैसर्गिक, मूर्त रूप में एक दूसरे के सामने थे। मुझे पीठे पर बैठा कर, अल्का स्वयं मेरे सामने हाथ जोड़ कर, घुटने के बल बैठ गई। उसको नग्न देख कर मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा था। बार बार उस दिन याद कर रहा था जब अल्का मेरे सामने नग्न लेटी हुई थी, फिर भी मेरे मन में कोई कामुक विचार नहीं थे। इसलिए अब स्वयं पर लज्जा भी आ रही थी कि एक तरफ वो है, जो मुझे पूजना चाहती है, और पूज रही है। और एक मैं हूँ जो क्या करना चाहता हूँ...

अल्का ने कोई प्राचीन मन्त्र जपना शुरू किया। उसका प्रेम, उसकी भक्ति और उसकी लगन देख कर मैं खुद ही आश्चर्यचकित था था। मुझे उस क्षण लगा कि भगवान की शक्ति संभव है उनके उपासकों से ही आती है।

जल्दी ही उसने पूजा समाप्त करी, मुझे तिलक लगाया, और मेरी आरती उतारी। अंत में उसने वैसे ही घुटने पर बैठे हुए ही मेरे पैरों पर अपना सर रख दिया और मेरे पैरों को बारी बारी चूमा। अपने पूरे जीवन में मैंने आदर और सम्मान का यह समर्पण नहीं देखा। लेकिन अल्का उस समय नग्न थी, और मैं खुद एक नवयुवक! और मेरे लिए यह लज्जास्पद था कि उसकी पूजा के कारण मेरे मन में सम्भोग का लोभ होने लगा। मेरा लिंग अपने चरम पर पहँचु गया। जाहिर सी बात है, अल्का ने यह देखा और बिना अपमानित हुए, बिना अप्रसन्न हुए मेरे लिंग को अपने हाथ में ले कर अपने सर से लगाया और उसके अगले हिस्से को को मुँह में लेकर चूमा। और फिर मुस्कुराते हुए कहा,

“मेरे चिन्नू, मेरे कुट्टन, आज से मेरा सब कुछ तुम्हारा है। कुछ देर पहले मैंने तुमको मुझे छूने से मना किया था, लेकिन अब नहीं। मैं अभी से तुमको अपने तन, मन और धन पर पूरा पूरा अधिकार देती हूँ। मैं तुम्हारी हूँ और तुम्हारी सेवा के लिए तत्पर हूँ।” कहते हुए अल्का की आँख से आँसू गिरने लगे।

अब मुझसे रहा नहीं गया। मैं उठा, और उसको खड़ा कर अपने गले से लगा लिया।

“मेरे स्वामी, तुम मुझको प्रसाद नहीं दोगे?”

“प्रसाद?”

“हाँ! मेरी योनि में प्रविष्ट हो कर मेरी पूजा सिद्ध कर दो...” उसने आँखे बंद किए हुए यह बात कह डाली।

मैंने अपने हाथ को उसकी योनि की तरफ बढ़ाया।

“नहीं!” उसने मुझे रोका।

मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली।

“आज हाथ नहीं!” उसने काँपते हुए होंठों से से यह बात कह डाली।
awesome update
 
  • Like
Reactions: avsji and Ajay

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
‘हे प्रभु!’ यह क्या बात कह दी अल्का ने!

अचानक से ही मेरी धरती और आकाश का भेद संज्ञान करने की क्षमता गड्ड-मड्ड हो गई। यह काम तो पति-पत्नी करते हैं! यह सब क्या इतना जल्दी जल्दी नहीं हो रहा है! हो सकता है। लेकिन अपने सामने खड़ी इस सम्पूर्ण नग्न लड़की का क्या करूँ? अल्का से समागम करने का मन तो मेरा हमेशा से ही था, लेकिन आज, जब वो यह अवसर मुझे खुद ही प्रदान कर रही है तो ऐसी व्याकुलता, ऐसी बेचैनी क्यों महसूस हो रही है?

“अल्का?” मैंने दबी घुटी आवाज़ में कहा। उसने आँखें खोली।

“चेट्टन?”

“आर यू श्योर?”

“श्योर न होती, तो तुमसे ऐसी बड़ी बात कहती?”

कहते हुए उसने अपने काँपते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मुझे चुम्बन लेने देने का कोई ज्ञान नहीं था; यह भी नहीं मालूम था कि इसको किया कैसे जाता है। अरे, मुझे तो यह भी नहीं मालूम था कि पति पत्नी आपस में क्या क्या करते हैं। मैंने उसके चुम्बन की प्रतिक्रिया में उसके होंठों पर तीन चार छोटे छोटे चुम्बन जड़ दिए। इतना तो मालूम ही था कि खड़े खड़े कुछ नहीं हो सकता। इसलिए मैंने धीरे से अल्का को वहीं ज़मीन पर लिटा दिया। आँगन में बारिश की मोटी मोटी बूँदें गिर रही थीं, और नानी या चिन्नम्मा कभी भी उस तरफ आ सकती थीं। अपने जीवन में इस तरह की उत्तेजना, इस तरह की लालसा और इस तरह की व्याकुलता मैंने पहले कभी नहीं महसूस करी थी। अल्का पीठ के बल मेरे सामने लेट गई; उसने मेरे लिंग का स्वागत करने के लिए अपनी टांगें खोल दी। उसकी जाँघें ऊपर उठी हुई थीं, और पैर ज़मीन पर समतल! मेरी बेचैनी बढती ही जा रही थी। उत्तेजना के अतिरेक से मेरा लिंग ठोस तो बहुत पहले ही हो गया था, और मुझे लग रहा था कि यह शुभ-कार्य जल्दी से कर लेना चाहिए। अपनी किस्मत पर मुझे कोई ख़ास भरोसा नहीं था। भगवान की कृपा से अल्का जैसी लड़की का प्रेम मिल रहा था, जो मेरे सर आँखों पर था। इस सुनहरे दान को मैं अपने दोनों हाथों से लपक लेना चाहता था।

मैं अल्का के ऊपर दंड-बैठक करने वाली मुद्रा में छा गया - मतलब मेरे हाथ उसके दोनों तरफ, और पैर सीधे नीचे ज़मीन पर, और मैं खुद सीधा उसके ऊपर। थोड़ी सी बेढब मुद्रा है, लेकिन मुझे इसका अनुभव भी कहाँ था? मैंने उसी मुद्रा में एक दंड पेला - उम्मीद थी कि लिंग स्वयं ही उसकी योनि में प्रविष्ट हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। ऐसे ही मैंने चार-पाँच बार प्रयास किया... कुछ नहीं! निष्कर्ष वही ढाक के तीन पात! अल्का को लगा कि उसको भी मेरी सहायता करनी होगी। अपने कोमल हाथ से उसने मेरा लिंग पकड़ा और अपनी योनि के द्वार पर सटाया।

कैसा कोमल एहसास ! एक ऊष्ण, आर्द्र छिद्र! मैंने प्रविष्ट होने के लिए धक्का लगाया, तो वहाँ चिकनाई पा कर मेरा लिंग अपने गंतव्य से फिसल गया। ऐसे ही चार पांच निष्फल प्रयास और निकल गए।

“चेट्टा मेरे, थोड़ा जल्दी करो! ऐसा न हो कि कोई आ जाए... हमारे कमरे तक जाने की अब मेरी हालत नहीं है!”

अल्का ने मुझे उकसाया। हाँ, समय का अभाव तो था ही! मैंने भी अपने काम पर फोकस किया।

“मोलू, तुम इसको अपनी पुरु पर सटा कर पकड़े रहो, तो मैं ज़ोर लगाऊंगा..”

“ठीक है मेरे कुट्टन...”

उसने वैसे ही किया, और साथ ही साथ अपनी योनि का द्वार थोड़ा खोल भी दिया। इस बार मेरा लिंग उसकी योनि के कुछ भीतर तक घुस गया। यह एक बड़ी सफलता थी। लिंग मेरा उसके थोड़ा ही अंदर गया हो, अंदर तो गया! अब अल्का कुँवारी नहीं रह गई थी। किसी भी स्त्री या पुरुष के लिए यह एक बहुत बड़ी बात है।

“और अंदर कुट्टन...”

मैंने ज़ोर लगाया। इस प्रयास से शिश्नाग्र पूरा ही अल्का की योनि के भीतर हो गया ।

“आह !” अल्का की कराह निकल गई।

मुझे भी एकदम अलग सा एहसास हुआ ।

‘कितना मुलायम है अंदर!’

अब और अंदर कैसे जाया जाए? इस धक्के की सारी ताकत तो समाप्त हो गई थी। मुझे स्वप्रेरणा से लगा कि दूसरा धक्का लगाना चाहिए। लेकिन वैसा करने से बाहर निकल जाने का भय भी था। इसलिए मैंने अपने पुट्ठों को बस इतना पीछे किया कि बस दूसरा धक्का लगाने के लिए पर्याप्त बल मिल जाए, लेकिन लिंग अपने युगल से बाहर न निकले। मैंने दूसरा धक्का लगाया ।
hot update
 
  • Like
Reactions: avsji and Ajay

Ajay

Well-Known Member
6,895
33,145
218
आज की सुबह भी सभी दिनों से बेहतर थी। मानसूनी बयार के साथ बहुत हल्की हल्की वर्षा भी पड़ रही थी। शुभ संकेत आ गए थे, और हमारे साथ थे। बड़े सवेरे ही गरमा गरम इडली के साथ नारियल चटनी और स्वादिष्ट कट्टन काप्पी (फ़िल्टर कॉफ़ी) का डट कर नाश्ता किया। फिर सभी के पैर छू कर आशीर्वाद लिया। अल्का को बड़ी हैरानी हुई जब मैंने उसके भी पैर छू कर आशीर्वाद लिया। अम्मम्मा और चिन्नम्मा की ही तरह उसने भी मुझे ‘विजयी भव’ और ‘यशश्वी भव’ का आशीर्वाद तो दिया, लेकिन उसके मन में कौतूहल अवश्य हुआ।

खेत की तरफ जाते समय अल्का ने मुझसे पूछ ही लिया,

“कुट्टन, तुमने सबके सामने मेरे पैर छू कर क्या इसलिए आशीर्वाद लिया कि जिससे उनको हम पर संदेह न हो?”

“तुमको ऐसा लगता है क्या मोलू?” मैंने उसके प्रश्न पर अपना प्रश्न किया। जब अल्का कुछ देर तक कुछ नहीं बोली, तो मैंने ही कहा,

“नहीं। मेरे मन में किसी को धोखा देने की कोई भावना नहीं है। मैंने तुम्हारे पैर छू कर इसलिए आशीर्वाद लिया क्योंकि तुम भी मेरे लिए आदरणीय हो। मुझे सफल होने के लिए तुम्हारा भी आशीर्वाद चाहिए। क्या मेरे मन से तुम्हारा आदर इसलिए कम हो जाना चाहिए कि तुम मेरी प्रेयसी हो? यह तो कभी नहीं हो सकता। मेरा तुम्हारे लिए प्रेम और तुम्हारे लिए आदर एक साथ रह सकते हैं, और एक साथ बढ़ते भी रहेंगे।”

मेरी बात सुन कर अल्का की आँखों से आँसू छलक आए।

“मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ हूँ चेट्टन मेरे! मेरा तुमको यह वचन है कि तुम मुझे जिस किसी भी रूप में चाहोगे, उसी रूप में मुझे अपने साथ खड़ा हुआ पाओगे।”

*******************************************************

अगले दो सप्ताह तक मैंने कमर तोड़ काम किया।

सभी खेत मज़दूरों के साथ लग कर उस पहले ज़मीन को खेती के लिए तैयार किया, और फिर पौधे और बीज आ जाने के साथ साथ उनका रोपण भी करवाया। अब तक मजदूर जान गए थे कि मैं अल्का का भांजा हूँ, लेकिन उससे मेरे मल्कियत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मैं उनके लिए मालिक ही था। मेरे ज्ञान से वो सभी काफी प्रभावित थे, और बस इतने ही दिनों में वो मेरी सब बातें मानने लगे थे। पारंपरिक समाज में पुरुष के प्रभाव का ही डंका बजता है। एक स्त्री के लिए मेहनत मजदूरी वाले काम में पुरुषों को निर्देश दे पाना एक कठिन कार्य है, जिसको अल्का बखूबी निभा रही थी। यह सब देख कर मेरे मन में अल्का के लिए आदर और बढ़ गया। लेकिन अब मेरे आ जाने के बाद समीकरण बदल गए थे। खैर, उन सभी को मैंने हमारी मुख्य फसल के लिए भी कई सारे निर्देश दिए, जिनके पालन करने से हमें काफी लाभ हो सकता था। उधर हवा में नमी और गर्मी बता रही थी कि मानसून बस आने ही वाला था। यह एक अच्छी बात थी - कम से कम हमको सिंचाई को लेकर कोई ख़ास इंतजाम करने की आवश्यकता नहीं थी।

इसी बीच मौसम बदलने के कारण अम्मम्मा की तबियत भी कुछ ख़राब हो गई, तो उनको डॉक्टर को दिखाने के लिए दो दिनों के लिए पास के बड़े शहर में ले जाना पड़ा। मेरे पीछे अल्का ने थोड़ा बहुत काम तो देखा, लेकिन उसका अधिक ध्यान हमारी मुख्य फ़सल पर था। खैर, वापस आ कर उन दो दिनों की क्षतिपूर्ति करने के लिए और कमर तोड़ काम करना पड़ा। अम्मम्मा को आराम और देखभाल की आवश्यकता थी, इसलिए अल्का भी घर पर ही रुकने लगी। इसके कारण मुख्य फसल की देखभाल का बोझ भी मेरे ऊपर ही आ गया।

इन सब कामों में मैं कुछ ऐसा मसरूफ़ हुआ कि मुझे अपने और अल्का के बारे में ठहर कर सोचने का अवसर ही नहीं मिला। उन दो सप्ताहों में ही समझ आ गया कि एक किसान के मन में कैसी कैसी शंकाएँ होती हैं, उसको कितनी मेहनत करनी पड़ती है, और उसकी आशाएँ और उसके दुःस्वप्न क्या होते हैं। दिन भर कमर तोड़ मेहनत करता, लोगों से मिलता जुलता, कृषि की बातें करता, और देर साँझ थक कर चूर, घर आता और भोजन कर के सो जाता। सुबह फिर से वही नियम। यह मेरी दिनचर्या बन गई। दो सप्ताह ऐसे ही चला। लेकिन सबसे अच्छी बात यह हुई कि बारिश अपने नियत समय पर आ गई; उसके चलते सिंचाई वाले काम की चिंता समाप्त हो गई। मुझे यह देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि जितने काम मैंने सोचे हुए थे, वो सभी संपन्न हो गए। अब यह समय कर्मचारियों के लिए एक सप्ताह के अवकाश का भी था। इसका मतलब अगला एक सप्ताह मेरे लिए भी अवकाश समान ही था। और अवकाश मिलते ही मेरा ध्यान अपनी शारीरिक आवश्यकताओं पर वापस आ गया। मतलब अल्का और मेरे सम्बन्ध की अंतरंगता को और आगे बढ़ाने का समय आ गया।
Nice update
 
  • Like
Reactions: avsji

Ajay

Well-Known Member
6,895
33,145
218
उस रात जब खाने के बाद बिस्तर में लेटे तो मेरी जवानी स्वयं ही ज्वार भरने लगी। अल्का ने मैक्सी पहनी हुई थी। मैंने हाथ बढ़ा कर उसके नितम्बों को दबाना चाहा। उसने फुसफुसाते हुए मेरा विरोध किया,

“नहीं! अभी नहीं! कुछ सब्र करो कुट्टन!”

और ऐसा कहते हुए उसने मेरे होंठों पर एक चुम्बन दिया, “अभी अच्छे बच्चे बन जाओ! प्लीज!”

लेकिन फिर भी मेरा हाथ नहीं माना।उसी छेड़-छाड़ में मेरा हाथ उसके नितम्बों की बीच की दरार से उसकी योनि को बस छू ही पाया था, कि अल्का बिजली की तेजी से मेरी तरफ मुड़ी और मुझे मेरे गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ महसूस होने लगा!

“तमीज से नहीं रह सकते क्या?” अल्का ने गुस्से में बोला, और दूसरी तरफ मुंह कर के लेट गई।

ये क्या हुआ!?

अभी कुछ ही देर पहले तक तो सब ठीक था! अल्का ने आज से पहले मुझ पर कभी भी हाथ नहीं उठाया था। और तो और, हम बस कुछ ही दिनों पहले तक ही तो पूरे नंगे हो कर एक दूसरे के शरीर से खेल रहे थे! फिर यह क्या हुआ? और क्यों हुआ? थप्पड़ गाल पर लगा, लेकिन चोट दिल पर। गुस्से, खीझ और शर्म से दिमाग चकरा गया। क्रोध की तमतमाहट जल्दी ही बदले की भावना में बदलने लगी। जिससे आपको सबसे अधिक प्रेम होता है, वही व्यक्ति आपको सबसे अधिक आहत कर सकता है। जब ऐसे व्यक्ति से आपको तिरस्कार मिलता है, तो चोट सीधा ह्रदय पर आ कर लगती है। और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उसी व्यक्ति पर आपको सबसे अधिक क्रोध भी आता है। प्रेम, अपनापन और अधिकार भाव के मध्य न जाने कैसा अबूझ सम्बन्ध होता है। उसको समझना आसान नहीं है। बस, उसको समझने की दिशा में प्रयत्न किया जा सकता है।

मैं तमक कर बिस्तर से उठा और कमरे से बाहर निकल गया। नीचे ज़मीन पर ही लेटा। वर्षा ऋतु में यह करना जोखिम भरा काम है। साँप, बिच्छू और इसी तरह के अन्य जीव जंतु वर्षा के कारण अपने अपने बिलों से बाहर निकल कर घरों के अंदर आ जाते हैं। अम्मम्मा को तो खैर इस बारे में कुछ मालूम नहीं हुआ, और अल्का... अगर उसको कुछ मालूम भी हुआ हो, तो उसने कुछ भी करने की ज़हमत नहीं उठाई।

‘इस अल्का की बच्ची को मज़ा ज़रूर चखाऊंगा!’

बस इसी विचार के साथ गुस्से में कब नींद आ गई, याद नहीं। प्रेम में होने पर भावनाएँ भी ज्वार भाटा की मानिंद दोलन करती रहती हैं। दो सप्ताह पहले सब कुछ कितना सुन्दर सुन्दर लग रहा था। और आज! आज सब कुछ खिन्न! विषाद ग्रस्त। अगले सवेरे उठा, तो देखा कि मुझको किसी ने पतले से चद्दर से ढँक दिया था जिससे मच्छर परेशान न कर सकें। सर के नीचे तकिया भी रख दी थी। क्रोध इतना भरा हुआ था कि दिमाग में आया ही नहीं कि यह सब अल्का ने ही करा होगा। घर में चहल पहल का तात्पर्य था कि अल्का उठ चुकी थी, और चिन्नम्मा आ चुकी थीं। ज़मीन पर सोने के कारण पूरा शरीर ठंडा हो गया था, किंतु दिमाग में क्रोध भरा हुआ था, और उबल रहा था।

“अरे चिन्नू, उठ गए! यहाँ ज़मीन पर क्यों लेट गए थे कल रात? कोई साँप या कीड़ा आ जाता, तो?”

अल्का को याद तो था कि उसने मेरे साथ क्या किया रात को। अब बड़ी चली है मेरी परवाह करने का नाटक करने। मैं तमक कर उठा, और बाहर चला गया। पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि अल्का क्या कर रही है, क्या सोच रही है।

‘इसने मुझे बेइज़्ज़त किया, अब मैं इसको बताऊंगा।’ बस यही एक बात दिमाग में घूम रही थी।

बहुत देर तक समझ नहीं आया कि रात के अपमान का बदला कैसे लूँ।

खाना न खाना एक उपाय हो सकता है, लेकिन वह एक बचकाना उपाय है। ऊपर से स्वयं को ही कष्ट होना है उससे। अल्का को क्या? फिर एक उपाय उपजा दिमाग में। मैं घर में आया, और फिर मैंने अपने शरीर से सारे कपड़े उतार फेंके। और ऐसे ही नंगा बाहर चला गया, और नंगा ही इधर उधर घूमने लगा। मेरी इस हरकत से अल्का बहुत घबरा गई - कुछ नाराज़ भी हुई। लेकिन, उस घर में मैं ही एक मर्द था - और सबसे छोटा भी! मैं देखना चाहता था की घर की सभी स्त्रियाँ क्या प्रतिक्रिया देती हैं। चिन्नम्मा मुझे ऐसे देख कर मुस्कुराई, और बोली कि चिन्नू की शादी कर देनी चाहिए। मैंने उसको कहा कि मैं तो तैयार हूँ। तुम बताओ कि किस लड़की से करूँ? मेरी इस बात पर उसने अल्का की तरफ इशारा किया। अल्का ने इस बात पर हम दोनों को ही डाँट लगाई, और मुझे कपड़े पहनने को कहा। चिन्नम्मा तो हँसी दबा कर अपना काम करने में व्यस्त हो गईं, लेकिन मैंने फिर भी कुछ नहीं पहना।

मैं अल्का को बता देना चाहता था कि मैं उसके वश में नहीं हूँ। मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। और यहाँ मेरी मर्ज़ी भी चलेगी। घर की मालकिन तो अल्का ही थी, लेकिन यदि उसका बस मुझ पर नहीं चलता, तो स्पष्ट था कि मेरी हैसियत भी घर के मालिक जैसी ही है। खाना न खाने जैसे हठ करने पर अनदेखा किया जा सकता है कि ‘जा मर! मत खा!’ लेकिन इस तरह के ‘सत्याग्रह’ को अनदेखा करना असंभव है। खुद की बेइज़्ज़ती होने का बहुत बड़ा डर रहता है। ख़ास तौर पर तब जब यह करने वाला वयस्क पुरुष हो!

फिर मैं अम्मम्मा के पास गया। उनसे काफी देर बात करने के बाद उनको समझ आया कि मैं नंगा हूँ। लेकिन उनको समय इत्यादि का जैसे कोई ध्यान ही नहीं था। उनके लिए मैं अभी भी छोटा ही था। माता पिता जब अपनी संतानों को देखते हैं, तो उनको अक्सर ऐसा ही लगता होगा। ख़ैर, उन्होंने मेरे शिश्न को अपने हाथ में लिया और कहा,

“बेटा, इसकी ठीक से देखभाल करना। पति वही अच्छा होता है तो अपनी पत्नी के दोनों मुँह अच्छे से भर सके - मतलब ऊपर वाले मुँह में पेट भर भोजन, और नीचे वाले मुँह में मन भर घर्षण - इन दोनों की कमी नहीं होनी चाहिए! सुखी परिवार का बस यही आधार है!”

अल्का ने माथा पीट लिया। अम्मम्मा को वो कुछ नहीं कह सकती थी।
Nice update
 
  • Like
Reactions: avsji and mashish

Ajay

Well-Known Member
6,895
33,145
218
वो मुझे हाथ से पकड़ कर एक तरफ ले गई और पूछने लगी,

“जानू, तुम क्यों ऐसा कर रहे हो?” उसकी आवाज़ में दुःख, चिंता, गुस्सा और प्रायश्चित सब कुछ था।

“क्यों!” मैंने उसका हाथ झटक कर बोला, “मैं क्या कर सकता हूँ, और क्या नहीं, मुझे यह सब तुमसे पूछ कर करना पड़ेगा?”

“नहीं जानू!”

“और ये जानू वानू क्या है? ये सब नाटक कहीं और करो!”

“नाटक?” अल्का की आँखों से आँसू गिरने लगे।

“और नहीं तो क्या? खाली कहने भर का जानू हूँ! हाथ तक तो लगाने देती नहीं!”

“आई ऍम सॉरी जानू। तुम कल रात के लिए गुस्सा मत हो! मैंने तुमसे कुछ सब्र करने को ही तो कहा था। और तुम मेरी इतनी सी बात भी नहीं मान रहे थे! इसी कारण मुझे गुस्सा हो आया।”

“वाह वाह! बोल तो ऐसे रही हो जैसे कि तुम मेरी सभी बातें मान जाती हो।”

अचानक ही बारिश शुरू हो जाती है। घनघोर वर्षा! हमारा झगड़ा सुन कर चिन्नम्मा भी रसोई से बाहर निकल आई।

“तुम्हें इस बात पर शंका है?” अल्का ने पूछा।

मैं गुस्से से धौंक रहा था। कुछ बोल नहीं सका।

“कुट्टन,” अल्का आंसुओं के बीच कह रही थी, “मैं तुम्हारा कहा कभी नहीं टाल सकती। तुम बस कह कर तो देखो!”

“अच्छा! और वह क्यों?”

“ये भी पूछोगे, जानू? मैंने तुमको अपने पति का दर्जा दिया है।” अल्का की हिचकियाँ बंध गई थीं।

“अच्छा, तो मैं तुम्हारे पति की हैसियत से कहता हूँ की चलो, और पूरी नंगी हो कर यहीं अहाते में खड़ी हो जाओ, जब तक मैं चाहूँ!”

अल्का रो रही थी, और चिन्नम्मा हमारी बातें सुन कर भौंचक्क थी। उसका मज़ाक तो सच निकला! मज़ाक क्या, संदेह तो हो ही गया था। बस अब प्रमाण मिल गया। अल्का ने न तो कुछ कहा, और न ही किया, बस वहीं खड़ी हुई रोती रही।

“नहीं करोगी न! मालूम था!” कह कर मैं जाने लगा।

“किसी को यह सब मालूम पड़ा तो माँ मेरी खाल खींच लेगी! और तुम्हारी माँ भी।”

“कहने को तो तुम मुझे अपना पति कहती हो! तो बताओ, तुम पर किसका अधिकार ज्यादा है? माँ का, या पति का?”

मेरी यह बात सुनते ही अल्का ने अचानक ही रोना बंद कर दिया। वो धीरे धीरे चलते हुए आँगन में पहुंची, और मेरे और चिन्नम्मा के सामने वहीं आँगन में एक एक कर के अपने शरीर से कपड़े का आखिरी सूत तक उतार दिया, और बारिश में पूर्ण नग्न खड़ी रही। मुझे उम्मीद ही नहीं थी की अल्का ऐसा कर भी सकती है। कुछ ही देर में उसके शरीर से बारिश के पानी की अनेकानेक धाराएं बह निकलीं। मेरी नज़र अचानक ही उसकी योनि पर पड़ी - वहां से पानी से मिल कर लाल रंग की धारा बह रही थी। तब मैंने ध्यान दिया की उसके उतारे हुए कपड़ों में सैनिटरी नैपकिन भी थी।

‘खून?’ यह विचार दिमाग में आते ही मैं उसकी तरफ दौड़ा।

“अल्का! ये क्या? खून?” वहां पहुँच कर मैंने उसकी योनि को छुआ, मेरी हथेली खून से रंग गई।

“इसीलिए तो मैंने तुमको सब्र करने को बोला था, मेरे कुट्टन!” अल्का ने थकी हुई मुस्कान के साथ कहा। मैंने अल्का को गले से लगा लिया। उसने मेरे गालों को हाथ में ले कर कहा, “इतने सालों से अपना सब कुछ मैंने तुम्हारे लिए ही बचा कर रखा है! तुम भी तो कुछ सब्र कर लो, जानू!”

अल्का ने बस इतना ही कहा, और बिलख बिलख कर रोने लगी।
Nice update
 
  • Like
Reactions: avsji and mashish

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
“आअह्ह्ह!!” यह न तो कराह थी, और न ही चीख। लेकिन जो भी कुछ था, बहुत उच्च स्वर में था। नानी और चिन्नम्मा दोनों ने ही शर्तिया सुना होगा।

इस बार मेरा लिंग अपनी कोई एक तिहाई लम्बाई तक अंदर घुसने में सफल रहा!

‘कितना मखमली एहसास! गुदगुदी सी होने लगी!’

मैंने तीसरा धक्का लगाया ही था कि जैसे मेरे वृषणों में एक आंदोलन हुआ हो... एक विस्फ़ोट के साथ सारा वीर्य अल्का की योनि के भीतर जमा हो गया। संतुष्टि भरी कराह मेरे गले से निकल गई। उधर अल्का इस तीसरे हमले के बल से एक और बार चीखी। अपने चरमोत्कर्ष के उन्माद में मैंने एक और धक्का लगाया, अल्का फिर से कराही। उसके बाद मेरा लिंग तेजी से सिकुड़ने लगा। अगला धक्का लगाने के लिए उसमें अब पर्याप्त दृढ़ता नहीं रह गई। कुछ ही पलों में वो खुद ही अल्का की योनि से बाहर निकल आया। अल्का को अवश्य ही मालूम चल गया होगा कि मैं स्खलित हो गया था।

“चिन्नू... मेरे कुट्टन! मेरे चेट्टा!” अल्का ने तेज साँसे भरते हुए कहा, “कैसा लगा तुमको? अच्छा तो लगा न ?”

“बहुत अच्छा लगा मोलू... मेरी पोन्ने... बहुत अच्छा!”

वो मुस्कुराई, “आज मैं पूरी औरत बन गई...” कह कर उसने मेरे होंठों को चूम लिया ।


“यजमंट्टी आ रही हैं... तुम लोग जल्दी से ठीक हो जाओ..”

हमको चिन्नम्मा की आवाज़ सुनाई दी। उस समय हमारे दिमाग में यह बात नहीं आई कि हमारा समागम चिन्नम्मा से छुपा हुआ नहीं था, और उन्होंने सब कुछ देख लिया था.. या फिर न जाने कितना कुछ!

“चेट्टन, तुम जल्दी से छुप जाओ । जाओ.. जल्दी !”

अल्का ने मुझे अपने से परे धकेला। मैं जल्दी से उठा और वहीं एक कोने में जा कर छुप गया। कपड़े पहनने का समय न तो मेरे पास था, और न ही अल्का के पास। और मैं भी अल्का के ऊपर से बस ऐन मौके पर ही हट सका। मेरे पूरी तरह से छुपने से ठीक पहले ही अम्मम्मा (नानी) आँगन की तरफ आती हुई दिखाई दीं।

“अरे मोलूट्टी... तू ऐसे नंगी क्यों बैठी है? अगर पट्रन इधर आ गया और तुमको ऐसी हालत में देख लिया तो?”

“अरे यजमंट्टी, आप मोलूट्टी का परिणय करवा दो न? कितना समय हो गया! देखो न बेचारी कैसी हो गई है..” चिन्नम्मा ने अपना दाँव फेंका।

“अरे दस बारह साल से कोशिश कर रही हूँ.. न तो इसे कभी कोई पसंद आता है, और न ही किसी का नाम लेती है! देखो तो लक्ष्मी... कितनी बड़ी हो गई है! इतने बड़े बड़े मुलाक्कल और वो भी सूखे!”

“अम्मा!” कहते हुए अल्का ने शर्म अपना चेहरा ढँक लिया।

“क्या अम्मा?! मेरे सामने नंगी बैठी है, उसमे तो तुझे लज्जा नहीं या रही है। और मेरी इस बात से लज्जित हो रही है। अरे, लड़की इनमें से तो दूध की धार बहती रहनी चाहिए! जब मैं तेरी उम्र की थी, तब मेरे कितने बच्चे हो गए थे।”

“अम्मा, मैं कोई गाय हूँ क्या, जो मेरे दूध की धार बहती रहे?”

“गाय नहीं है... लेकिन मेरी कन्यका तो है! अब तक तेरे दो तीन बच्चे हो जाते, तो अच्छा रहता।”

“क्या अम्मा..”

“अरी! फिर वही बात! अभी चिन्नू भी ऐसे ही नंगा घूम रहा था, अब तू भी! चलो, वो तो अभी बच्चा है, लेकिन तू तो सयानी है न!”

“बच्चा है वो यजमंट्टी? उसका कुन्ना देखा है तुमने ? केले जैसा हो गया है!” चिन्नम्मा ने अपनी विशेष टिप्पणी जारी रखी।

“हट बेशरम!”

“बेशरम नहीं.. मैंने उसका अभ्यंगम किया है.. सब देखा है.. बढ़िया जवान नाती है तुम्हारा... अब तो उसका वीर्य भी बनने लगा है..” चिन्नम्मा ने बड़ी बेशर्मी से अपनी बात कह दी। मुझे जवानी का प्रमाणपत्र मिल गया।

“हाँ ठीक है.. ठीक है... वो भी बड़ा हो गया है.. लेकिन बात इस लड़की की हो रही है.. कब तक इसको ऐसी कुँवारी घर में बैठाऊं ? अब तक तो इसके सीने से दूध आने लगना था!”

“मेरे सीने से दूध निकलवाने का बस यही तरीका बचा हुआ क्या अम्मा, कि तुम मुझे किसी भी घर के खूंटे से बाँध दो? अपनी लड़की के साथ किसी मवेशी के जैसे व्यवहार करो?” अल्का ने बनावटी भावनाओं के साथ कहा। अब तक वो अम्मम्मा के पास आ कर बैठ गई थी।
good update
 
  • Like
Reactions: avsji and Ajay

Ajay

Well-Known Member
6,895
33,145
218
मैंने अल्का को गोद में उठाया, और आँगन से बाहर ले आया। तौलिये से उसके गीले शरीर को पोंछा, और उसी नग्नावस्था में उसको बिस्तर पर लिटाया। मान-मनुहार का दौर चला तो एक-दो घंटे बीत गए। इस बीच बारिश ने थमने का नाम ही नहीं लिया। वैसे भी आज खेत पर कोई काम नहीं होना था। मैंने चिन्नम्मा को मदद के लिए बुलाया। उसने अल्का की योनि साफ़ करी, एक ताज़ी नैपकिन निकाल कर उसकी योनि से सटाई और उसको साफ़, सूखी चड्ढी पहनाने लगी। चिन्नम्मा मेरे बर्ताव पर बहुत ही गुस्सा थी। वो, और अल्का, उम्र में इतना फ़ासला होने के बावजूद, दोनों सहेलियों जैसी थीं। अब चूँकि अल्का का दिल दुखाने का यह मेरा पहला अवसर था इसलिए चिन्नम्मा ने मुझे माफ़ कर दिया।

दरअसल, मासिकधर्म के समय अल्का बहुत चिड़चिड़ी सी हो जाती है, और उसको बात बात में गुस्सा आने लगता है। यह बात मुझे नहीं मालूम थी, और संभवतः उसको भी नहीं। लेकिन आस पास वाले, खास तौर पर लक्ष्मी को यह बात मालूम थी। अल्का उन दिनों में अक्सर ही उसको छोटी छोटी गलतियों पर झाड़ देती थी। जब चिन्नम्मा ने गणित लगाई, तो उसको इस बात का सारा रहस्य मालूम पड़ गया। चिन्नम्मा हाँलाकि इस बात से बहुत आश्चर्यचकित थीं कि मेरे और अल्का के बीच इस तरह का सम्बन्ध कैसे बन गया। लेकिन वो इस बात से खुश भी लग रही थीं। शायद उनको अल्का का कुँवारापन अच्छा नहीं लगता था।

खैर, जब हम दोनों का मन मुटाव कम या कहिए कि समाप्त हो गया, तब अल्का ने मुझसे कहा,

“तुमको मालूम है कुट्टन, मुझे मंदिर में जाना मना है इन तीन चार दिनों तक।”

“हैं? वो क्यों? किसने मना किया?”

मेरी ऐसी हालत थी, कि अल्का की कोई भी समस्या अब मेरी समस्या थी। मैंने मन ही मन यह निश्चय किया कि इस लड़की को अब से हमेशा खुश रखूँगा और उसका दिल कभी नहीं दुखाऊँगा।

“मेरा अर्रट्टावम (मासिक धर्म) है न...”

“यह तो गलत बात है... प्राकृतिक बातों के लिए किसी को धार्मिक काम करने से कैसे मना किया जा सकता है।”

वो मुस्कुराई, “नहीं करना चाहिए, है न?”

“बिलकुल भी नहीं!”

“तुम मुझे मना करोगे?”

“अरे, कैसी पहेलियाँ बुझा रही हो मोल्लू! मैं क्यों मना करूँगा?” मुझे उसकी बात समझ में ही नहीं आ रही थी ।

“तो मैं पूजा कर सकती हूँ?”

“हाँ हाँ! बिलकुल..”

“तो मेरी जान.. तुम इस तरफ आ कर आराम से बैठ जाओ.. मुझे तुमको पूजना है!”

“क्या! यह क्या कह रही हो अल्का?”

“अरे... पति तो स्त्री का परमेश्वर होता है... है न? तुमको मैंने अपना पति माना है। रीतियाँ नहीं हुईं, तो क्या हुआ? मन वचन और अब कर्म से तुम मेरे पति हुए... आज से, अभी से! और, मुझे अब तुम्हारी ही पूजा करनी है।”

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ह्रदय में एक शूल सा चुभ गया हो। कितनी बड़ी बात कह दी अल्का ने, और कितना बड़ा स्थान दे दिया अपने जीवन में! मैं किस लायक था! लेकिन अल्का के लिए, उसके हृदय में मेरा स्थान कितना बड़ा था! मेरी आँख से आँसू गिर गए। अल्का ने मुझे उस लकड़ी के पीठ पर बैठाया जहाँ मूर्ति रखी जाती है और पूजा की थाल बनाने अंदर चली गई।
Nice update
 
  • Like
Reactions: avsji and mashish

Ajay

Well-Known Member
6,895
33,145
218
कुछ देर बाद जब वो आई तो थाल में आरती, मिष्ठान्न, तिलक, और सुगंध का समान था।

उसने मुझे खड़े होने को कहा। मेरे खड़े होने पर उसने एक एक कर के मेरे सारे कपड़े उतार दिए। न चाहते हुए भी मेरा लिंग उत्तेजित हो कर खड़ा हो गया। फिर उसने भी एक एक कर के अपने सारे कपड़े उतार दिए। आराध्य और आराधक अब अपने नैसर्गिक, मूर्त रूप में एक दूसरे के सामने थे। मुझे पीठे पर बैठा कर, अल्का स्वयं मेरे सामने हाथ जोड़ कर, घुटने के बल बैठ गई। उसको नग्न देख कर मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा था। बार बार उस दिन याद कर रहा था जब अल्का मेरे सामने नग्न लेटी हुई थी, फिर भी मेरे मन में कोई कामुक विचार नहीं थे। इसलिए अब स्वयं पर लज्जा भी आ रही थी कि एक तरफ वो है, जो मुझे पूजना चाहती है, और पूज रही है। और एक मैं हूँ जो क्या करना चाहता हूँ...

अल्का ने कोई प्राचीन मन्त्र जपना शुरू किया। उसका प्रेम, उसकी भक्ति और उसकी लगन देख कर मैं खुद ही आश्चर्यचकित था था। मुझे उस क्षण लगा कि भगवान की शक्ति संभव है उनके उपासकों से ही आती है।

जल्दी ही उसने पूजा समाप्त करी, मुझे तिलक लगाया, और मेरी आरती उतारी। अंत में उसने वैसे ही घुटने पर बैठे हुए ही मेरे पैरों पर अपना सर रख दिया और मेरे पैरों को बारी बारी चूमा। अपने पूरे जीवन में मैंने आदर और सम्मान का यह समर्पण नहीं देखा। लेकिन अल्का उस समय नग्न थी, और मैं खुद एक नवयुवक! और मेरे लिए यह लज्जास्पद था कि उसकी पूजा के कारण मेरे मन में सम्भोग का लोभ होने लगा। मेरा लिंग अपने चरम पर पहँचु गया। जाहिर सी बात है, अल्का ने यह देखा और बिना अपमानित हुए, बिना अप्रसन्न हुए मेरे लिंग को अपने हाथ में ले कर अपने सर से लगाया और उसके अगले हिस्से को को मुँह में लेकर चूमा। और फिर मुस्कुराते हुए कहा,

“मेरे चिन्नू, मेरे कुट्टन, आज से मेरा सब कुछ तुम्हारा है। कुछ देर पहले मैंने तुमको मुझे छूने से मना किया था, लेकिन अब नहीं। मैं अभी से तुमको अपने तन, मन और धन पर पूरा पूरा अधिकार देती हूँ। मैं तुम्हारी हूँ और तुम्हारी सेवा के लिए तत्पर हूँ।” कहते हुए अल्का की आँख से आँसू गिरने लगे।

अब मुझसे रहा नहीं गया। मैं उठा, और उसको खड़ा कर अपने गले से लगा लिया।

“मेरे स्वामी, तुम मुझको प्रसाद नहीं दोगे?”

“प्रसाद?”

“हाँ! मेरी योनि में प्रविष्ट हो कर मेरी पूजा सिद्ध कर दो...” उसने आँखे बंद किए हुए यह बात कह डाली।

मैंने अपने हाथ को उसकी योनि की तरफ बढ़ाया।

“नहीं!” उसने मुझे रोका।

मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली।

“आज हाथ नहीं!” उसने काँपते हुए होंठों से से यह बात कह डाली।
Nice update
 
  • Like
Reactions: avsji and mashish

Ajay

Well-Known Member
6,895
33,145
218
‘हे प्रभु!’ यह क्या बात कह दी अल्का ने!

अचानक से ही मेरी धरती और आकाश का भेद संज्ञान करने की क्षमता गड्ड-मड्ड हो गई। यह काम तो पति-पत्नी करते हैं! यह सब क्या इतना जल्दी जल्दी नहीं हो रहा है! हो सकता है। लेकिन अपने सामने खड़ी इस सम्पूर्ण नग्न लड़की का क्या करूँ? अल्का से समागम करने का मन तो मेरा हमेशा से ही था, लेकिन आज, जब वो यह अवसर मुझे खुद ही प्रदान कर रही है तो ऐसी व्याकुलता, ऐसी बेचैनी क्यों महसूस हो रही है?

“अल्का?” मैंने दबी घुटी आवाज़ में कहा। उसने आँखें खोली।

“चेट्टन?”

“आर यू श्योर?”

“श्योर न होती, तो तुमसे ऐसी बड़ी बात कहती?”

कहते हुए उसने अपने काँपते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मुझे चुम्बन लेने देने का कोई ज्ञान नहीं था; यह भी नहीं मालूम था कि इसको किया कैसे जाता है। अरे, मुझे तो यह भी नहीं मालूम था कि पति पत्नी आपस में क्या क्या करते हैं। मैंने उसके चुम्बन की प्रतिक्रिया में उसके होंठों पर तीन चार छोटे छोटे चुम्बन जड़ दिए। इतना तो मालूम ही था कि खड़े खड़े कुछ नहीं हो सकता। इसलिए मैंने धीरे से अल्का को वहीं ज़मीन पर लिटा दिया। आँगन में बारिश की मोटी मोटी बूँदें गिर रही थीं, और नानी या चिन्नम्मा कभी भी उस तरफ आ सकती थीं। अपने जीवन में इस तरह की उत्तेजना, इस तरह की लालसा और इस तरह की व्याकुलता मैंने पहले कभी नहीं महसूस करी थी। अल्का पीठ के बल मेरे सामने लेट गई; उसने मेरे लिंग का स्वागत करने के लिए अपनी टांगें खोल दी। उसकी जाँघें ऊपर उठी हुई थीं, और पैर ज़मीन पर समतल! मेरी बेचैनी बढती ही जा रही थी। उत्तेजना के अतिरेक से मेरा लिंग ठोस तो बहुत पहले ही हो गया था, और मुझे लग रहा था कि यह शुभ-कार्य जल्दी से कर लेना चाहिए। अपनी किस्मत पर मुझे कोई ख़ास भरोसा नहीं था। भगवान की कृपा से अल्का जैसी लड़की का प्रेम मिल रहा था, जो मेरे सर आँखों पर था। इस सुनहरे दान को मैं अपने दोनों हाथों से लपक लेना चाहता था।

मैं अल्का के ऊपर दंड-बैठक करने वाली मुद्रा में छा गया - मतलब मेरे हाथ उसके दोनों तरफ, और पैर सीधे नीचे ज़मीन पर, और मैं खुद सीधा उसके ऊपर। थोड़ी सी बेढब मुद्रा है, लेकिन मुझे इसका अनुभव भी कहाँ था? मैंने उसी मुद्रा में एक दंड पेला - उम्मीद थी कि लिंग स्वयं ही उसकी योनि में प्रविष्ट हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। ऐसे ही मैंने चार-पाँच बार प्रयास किया... कुछ नहीं! निष्कर्ष वही ढाक के तीन पात! अल्का को लगा कि उसको भी मेरी सहायता करनी होगी। अपने कोमल हाथ से उसने मेरा लिंग पकड़ा और अपनी योनि के द्वार पर सटाया।

कैसा कोमल एहसास ! एक ऊष्ण, आर्द्र छिद्र! मैंने प्रविष्ट होने के लिए धक्का लगाया, तो वहाँ चिकनाई पा कर मेरा लिंग अपने गंतव्य से फिसल गया। ऐसे ही चार पांच निष्फल प्रयास और निकल गए।

“चेट्टा मेरे, थोड़ा जल्दी करो! ऐसा न हो कि कोई आ जाए... हमारे कमरे तक जाने की अब मेरी हालत नहीं है!”

अल्का ने मुझे उकसाया। हाँ, समय का अभाव तो था ही! मैंने भी अपने काम पर फोकस किया।

“मोलू, तुम इसको अपनी पुरु पर सटा कर पकड़े रहो, तो मैं ज़ोर लगाऊंगा..”

“ठीक है मेरे कुट्टन...”

उसने वैसे ही किया, और साथ ही साथ अपनी योनि का द्वार थोड़ा खोल भी दिया। इस बार मेरा लिंग उसकी योनि के कुछ भीतर तक घुस गया। यह एक बड़ी सफलता थी। लिंग मेरा उसके थोड़ा ही अंदर गया हो, अंदर तो गया! अब अल्का कुँवारी नहीं रह गई थी। किसी भी स्त्री या पुरुष के लिए यह एक बहुत बड़ी बात है।

“और अंदर कुट्टन...”

मैंने ज़ोर लगाया। इस प्रयास से शिश्नाग्र पूरा ही अल्का की योनि के भीतर हो गया ।

“आह !” अल्का की कराह निकल गई।

मुझे भी एकदम अलग सा एहसास हुआ ।

‘कितना मुलायम है अंदर!’

अब और अंदर कैसे जाया जाए? इस धक्के की सारी ताकत तो समाप्त हो गई थी। मुझे स्वप्रेरणा से लगा कि दूसरा धक्का लगाना चाहिए। लेकिन वैसा करने से बाहर निकल जाने का भय भी था। इसलिए मैंने अपने पुट्ठों को बस इतना पीछे किया कि बस दूसरा धक्का लगाने के लिए पर्याप्त बल मिल जाए, लेकिन लिंग अपने युगल से बाहर न निकले। मैंने दूसरा धक्का लगाया ।
Nice update
 
Status
Not open for further replies.
Top