ऐसे ही बातें करते हुए न जाने क्यों अल्का ने चिन्नम्मा से कहा, “चिन्नम्मा, कल चिन्नू का अभ्यंगम कर देना... इतनी दूर से आया हुआ है, उसकी कुछ तो सेवा करी जाए।”
अभ्यंगम पूरे शरीर की तेल-मालिश को कहते हैं। मालिश तो वैसे भी फायदेमंद क्रिया है, लेकिन अभ्यंगम के बाद क्या शारीरिक और क्या मानसिक - दोनों ही प्रकार की थकान निकल जाती है। चिन्नम्मा वैसे भी मेरी मालिश कई बार कर चुकी हैं। हर छुट्टी में यह एक नियम सा था। जैसे केरल घूमने जाने वाले आज कल के पर्यटकों को कुछ चीज़ें करनी ही होती हैं, वैसा। चिन्नम्मा की मालिश में बस एक ही दिक्कत थी और वह यह कि वो सबसे पहले मुझे नंगा कर देती थीं, फिर चाहे घर में कोई भी हो। और फिर मालिश से लेकर नहलाने तक का सारा काम वो ही करती थीं। पूरा काम करने में कोई दो घंटा लग जाता था, और पूरे दो घंटे तक मैं नंगा ही रहता था। मालिश के चक्कर में कई बार शर्मसार होना पड़ा था मुझे। लेकिन तब मैं छोटा था, इसलिए कोई बात नहीं थी। लेकिन अब मैं बड़ा हो गया था। इसलिए डर इस बात का था कि कहीं चिन्नम्मा वापस अपनी तर्ज़ पर ही न शुरू हो जाएँ।
“ठीक है मोलूटी!” उन्होंने सहमति जताई।
रात में सोने से पहले मैं और अल्का पूरे दिन के घटनाक्रम पर कुछ देर बातें करते थे। अम्मा और अच्चन से इस तरह खुल कर तो शायद ही कभी बात करी हो मैंने। आज कल हमारी अधिकतर चर्चा मेरे खेती के प्रयोग पर ही होती थी। ऐसे ही कुछ देर तक बतियाने के बाद मैंने अल्का से कुछ पर्सनल बात करने की सोची।
“अल्का, तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं करी?”
“चिन्नू, अब तुम भी मत शुरू हो जाओ!”
“सॉरी अम्माई!”
“अरे! फिर से अम्माई!” अलका ने कहा। कुछ देर तक हम दोनों ही चुप रहे फिर अल्का ही बोली, “चिन्नू... सॉरी वाली बात नहीं है। यहाँ लोगों को सिर्फ गोरा रंग चाहिए, या फिर धन या फिर दोनों! गोरा रंग मेरे पास है नहीं, और धन तो तुम सबका है। फिर कौन करता मुझसे शादी? अब तो मेरी उम्र भी बहुत हो गई। मेरी कई सहेलियों के तो दस दस साल के बच्चे हैं। अब क्या होगी मेरी शादी! और सच पूछो तो मुझे करनी भी नहीं है शादी किसी से... यहाँ अपने घर में हूँ, और ठाठ से हूँ। तो फिर क्यों मैं किसी और के पास जाऊँ और उसकी नौकर बन के रहूँ? और फिर अम्मा को कौन देखेगा? और इतनी बड़ी खेती! उसका क्या?”
अल्का की बात पर मैं काफी देर तक चुप रहा और फिर बोला,
“अगर तुमको ऐसा आदमी मिल जाए जो तुम्हारे रंग, तुम्हारे धन से नहीं, सिर्फ तुमसे प्यार करे, तो?”
“सो जाओ चिन्नू..”
मैं चुप हो गया। कुछ देर के बाद मुझे लगा कि अल्का सुबक रही है। मुझे ग्लानि का अनुभव हुआ। अनजाने में ही मैंने अल्का को दुःख पहुँचाया था और मुझे उस बात का खेद था। मैंने उसको ‘सॉरी’ कहा, और फिर उसको अपने से दुबका का कर सुलाने की कोशिश करने लगा। मुझे कब नींद आ गई, कुछ याद नहीं।
सवेरे -
“चिन्नू, आज बढ़िया गरमा गरम इडली बनाई है तुम्हारे लिए। जल्दी से खा लो, फिर तुम्हारा ‘मसाज’ होगा।”
“आज तुम खेत पर नहीं गई ?”
“नहीं, आज छुट्टी है। आज हम सिर्फ मजा मस्ती करेंगे.. या फिर जो तुम कहो वो। ठीक है? लेकिन पहले चिन्नम्मा...”
मैंने जल्दी जल्दी नित्यकर्म किया और स्वादिष्ट गरमागरम इडली खाई, और कॉफ़ी पी। फिर चिन्नम्मा सुगन्धित तेल की कटोरी लेकर आई और बोली,
“चिन्नू, तेल मालिश आँगन में होगी, या फिर बाहर, अहाते में?”
मौसम अच्छा था, इसलिए मैंने कहा, “अहाते में, चिन्नम्मा!”
अहाते में चिन्नम्मा ने चटाई बिछाई और फिर मुझसे कपड़े उतारने को कहा। बढ़िया हवा बयार चल रही थी, और चिड़ियाँ चहक रही थीं। मैंने जाँघिया को छोड़ कर सब कपड़े उतार दिए।
“ये भी।”
“ये भी?”
“हाँ! नहीं तो मालिश कैसे होगी?”
“अरे ऐसे ही कर दो न चिन्नम्मा!”
“ऐसे ही कैसे कर दूँ? हमेशा ही तो पूरा नंगा कर के तुम्हारी मालिश होती है।”
“क्या चिन्नम्मा! अब मैं बड़ा हो गया हूँ। ऐसे कैसे आपके सामने नंगा हो जाऊँगा?”
“बड़े हो गए हो?”
“और क्या?”
“अच्छा!”
“हाँ!”
“देखूँ तो... कितने बड़े हो गए हो।”
यह कह कर वो खुद ही मेरे जाँघिया का नाड़ा खोल कर मुझे नंगा करने लगीं। चिन्नम्मा तो अम्मा से भी बड़ी थीं, तो उनको मना कैसे करूँ, यह समझ नहीं आया। बस दो सेकंड में ही मैं उनके सामने पूरा नंगा खड़ा था। और उतनी ही देर में मेरे लिंग में इतना रक्त भर गया कि वो गन्ने की पोरी के जितना लम्बा, मोटा और ठोस हो गया। चिन्नम्मा ने मेरे लिंग को अपनी हथेली में पकड़ कर दो तीन बार दबाया और कहा,
“बढ़िया!”
बढ़िया तो था, लेकिन यह अनुभव मेरे लिए बहुत अनोखा था। इतने दिनों से अल्का के साथ रहते रहते वैसे भी शरीर में कामुक ऊर्जा भरी हुई थी। यहाँ आने के पहले तो रोज़ का नियम हो गया था कि हाथ से ही खुद को शांत कर लिया जाए। लेकिन यहाँ उस तरह का एकांत अभी तक नहीं मिल पाया था। और फिर चिन्नम्मा का ऐसा हमला! मैं अपने अण्डकोषों में बनने वाले दबाव को रोक नहीं सका। जब चिन्नम्मा ने एक और बार मेरे लिंग को दबाया, तो मेरे वृषण ने पिछले दस बारह दिनों से संचित वीर्य को पूरी प्रबलता से से बाहर फेंक दिया।
कम से कम सात आठ बार मेरे लिंग ने अपना वीर्य उगला होगा, और हर बार उसकी प्रबलता में कोई ख़ास कमी नहीं हुई। चिन्नम्मा मुझसे चिपक कर नहीं बैठी थीं। लेकिन फिर भी स्खलन में इतनी तीव्रता थी कि सारा का सारा वीर्य सामने बैठी चिन्नम्मा के ऊपर ही जा कर गिरा। उस वर्षा से चिन्नम्मा पूरी तरह से भीग गईं। जब मैंने आँखें खोली तो देखा कि उनके चेहरे, बाल, ब्लाउज और साड़ी पर मेरा वीर्य गिरा हुआ है।
“अरे मेरे चक्कारे, बता तो देता कि यह होने वाला है!” चिन्नम्मा ने सम्हलते हुए कहा।
मैंने काफी देर तक गहरी गहरी साँसे भर कर खुद को संयत किया और फिर कहा, “कैसे बताता चिन्नम्मा, तुमने एक तो मुझे ऐसे नंगा कर दिया, और फिर ऐसे छेड़-खानी करने लगी।”
“छेड़-खानी नहीं, मैं तो तुम्हारा कुन्ना देख रही थी। फिर से नहाना पड़ेगा मुझे अब! कोई बात नहीं! मेरा चिन्नू तो सचमुच का बड़ा हो गया है। बढ़िया मज़बूत कुन्ना है। कुछ दिन तुम्हारी मालिश कर दूँगी तो और मज़बूत हो जायेगा यह। चलो, अब जल्दी से तुम्हारी मालिश कर दूँ।” चिन्नम्मा ने अपनी साड़ी के आँचल से अपना चेहरा साफ़ करते हुए कहा।
आज कल कैराली मसाज के विभिन्न रूप बाज़ार में उपलब्ध हैं। बहुत से लोग आज कल इसको एरोमा थेरेपी के नाम से भी जानते हैं। लेकिन चिन्नम्मा के तेल में ऐसा कोई एरोमा वेरोमा नहीं था। मालिश का तेल साधारण तिल के तेल, सरसों के तेल, शुद्ध हींग और हल्दी को मिला कर बनाया गया था। जो महक थी, सब इन्ही के कारण थी। और कुछ भी नहीं। आज कल काम की चीज़ कम, और नौटंकी ज्यादा करी जाती है! खैर, हमको क्या! काम करने वालो को लाभ होता है, तो मना कैसे और क्यों किया जाए?
चिन्नम्मा ने तेल की कटोरी को एक सुलगते हुए कंडे के ऊपर रखा हुआ था, जिससे तेल हल्का सा गरम था। उसी को
लेकर उन्होंने मेरे पूरे शरीर की दमदार मालिश करी। सच कहूँ, यात्रा की थकावट तो आज की मालिश के बाद ही निकली। उन्होंने मेरी एक एक माँस-पेशी, एक एक जोड़, और एक एक अंग की ऐसी मालिश करी कि मुझे लगा कि पूरा शरीर आराम के अतिरेक से शिथल हो गया है। उनके हाथों में एक अभूतपूर्व जादू है - किस अंग को कैसे दबाना है, और कैसे रगड़ना है, उनको यह सब अच्छी तरह से मालूम था। एक बात और, जिस पर मेरा और चिन्नम्मा दोनों का ध्यान गया था और वह यह था कि स्खलन के बाद भी मेरा लिंग स्तंभित ही रहा। बीच में कुछ देर के लिए शिथल पड़ा था लेकिन जब उन्होंने वापस वृषण और लिंग की मालिश शुरू करी, तो फिर से तन कर तैयार हो गया। हाँ, वो अलग बात है कि इस बार चिन्नम्मा और मैं दोनों ही किसी भी हादसे के लिए पहले से तैयार थे।
“चिन्नू, यह तो बड़ा ढीठ है। खुद से बैठ ही नहीं रहा है। मैं बैठा दूँ? नहीं तो बाद में दर्द होगा।” उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुआ कहा।
“ठीक है।” मैंने स्वीकृति दे दी।
अगले पांच मिनट तक चिन्नम्मा मेरे लिंग को दबाती, सहलाती और रगड़ती रहीं। तब कहीं जा कर उसमे से दोबारा स्खलन हुआ और तब कहीं जा कर वो शांत हुआ। इस बार कोई हादसा नहीं हुआ। और भी अच्छी बात यह हुई कि पूरे मालिश के दौरान कोई घर नहीं आया। कम से कम किसी और के आगे मेरी इज़्ज़त नहीं गई। मुझे नहीं मालूम कि अल्का ने मुझे वैसी हालत में देखा या नहीं। लेकिन वो पूरे समय तक मैंने उसको बाहर निकले नहीं देखा। अच्छी बात है! मालिश हो जाने के बाद मैंने अपने कपड़े पहने, और घर के अंदर आ गया।