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Romance मंगलसूत्र [Completed]

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Siraj Patel

The name is enough
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread

Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread



Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 

Shetan

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लेकिन पिछले तीन चार वर्षों में उनका जैसे कायाकल्प हो गया था! यौवन ने जैसे जीवन के स्त्रोत से रस सोख लिया था। मौसी का रूप हर बार मुझे और निखरा हुआ लगता था... मुझे ही नहीं, बल्कि हम सभी को! उनका चेहरा कई मायनों में बदल गया था... ऐसे नहीं की उनकी शक्ल ही बदल गई हो, बस वो छोटे छोटे, लगभग अपरिभाष्य तरीके से आते हैं, वो! उनके चेहरे पर से धीरे-धीरे बालपन की सुंदरता की जगह, यौवन के लावण्य ने ले ली थी। उनके होंठ अब और अधिक रसीले हो गए थे, उनकी मुस्कान पहले से भी प्यारी और आकर्षक हो गई थी। मौसी जब छोटी थीं, तो साफ रंग की थीं, लेकिन खेत पर काम के कारण अब उनके रंग में सांवलापन बैठ गया था। लेकिन मैंने एक बात ध्यान दी कि वो काफी सुन्दर लगती हैं। अगर कैराली मर्द रंग के पर्दे के परे देख सकते तो समझते!

मेरे सामने वो बहुत पहले से ही नग्न होना बंद कर चुकी थी - लेकिन ऐसा नहीं था कि उन्होंने मुझे अपने नवोदित स्तनों को छूने या महसूस करने से रोका हो। हमारी हर केरल यात्रा में किसी न किसी बहाने से मैं उनके स्तनों को छूता या टटोलता ज़रूर था, और उनको यह बात भली भांति मालूम भी थी। और सबसे अच्छी बात यह, कि वो मुझे रोकती भी नहीं थीं। वो अलग बात है कि पिछले दो बार से मैंने ऐसी कोई चेष्टा नहीं करी। लेकिन मैं हर बार उनके आकार बदलते स्तनों को एक नया नाम देता - कभी चेरुनारेंगा (नींबू), तो कभी सातुकुड़ी (संतरा)! वो भी मेरे मज़ाक का बुरा नहीं मानती थीं - बल्कि मेरे साथ खुद भी इस बात पर हंसती थीं।

घर में आ कर मैंने नानी के पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लिया। हमारी बहुत पुरानी वित्तुवेल्लक्कारी (आया... नौकरानी नहीं) चिन्नम्मा भी थीं। मैंने उनके भी पैर छू कर आशीर्वाद लिए। चिन्नम्मा अब इस घर का अभिन्न हिस्सा थीं। उनके बिना घर का काम आगे नहीं बढ़ सकता था। हाँलाकि उनका घर लगभग दस मिनट की दूरी पर था, लेकिन दिन का ज्यादातर समय उनका नानी की और घर की देखभाल में बीतता था। सभी से हाल चाल लेने के बाद, स्नान कर के मैं भोजन करने को बैठा। मौसी मेरे स्वागत के लिए उस दिन, और अगले पूरे दिन घर पर ही रहीं। उनसे पूरे तीन साल बाद मिला था। वो जम कर मेरी आवभगत करना चाहती थीं। आज करीमीन पोळीचट्टु, एराची उल्लरथीयद्दु, अप्पम, चावल, और पायसम पकाया गया था। वैसे भी उत्तर भारत में इस प्रकार के व्यंजन उपलब्ध नहीं हो पाते। तो मैंने डट कर खाया। वैसे भी रास्ते भर ठीक से खाना नहीं हो सका। गाँव में बिजली की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए दिन जल्दी ही समाप्त हो जाते थे उन दिनों।

नाना का घर बड़ा था, लेकिन आज कल घर का ज्यादातर हिस्सा एक तरह का गोदाम बन गया था। उपज अधिक होने के कारण बाकी सारे कमरों को कोठरी के जैसे ही इस्तेमाल किया जा रहा था। इसलिए अब सिर्फ दो ही कमरे खुले हुए थे। एक कमरे में तो नानी रहती थीं, दूसरे में मौसी। इसलिए अब मेरे पास बस दो ही विकल्प थे - एक तो घर के बाहर सोना या रहना या फिर मौसी के साथ! लेकिन बाहर सोने की आदत अब ख़त्म हो गई थी। मच्छर और अन्य कीड़े मकोड़ों का डर भी था। जब तक अभ्यस्थ न हो जाएँ नए परिवेश में, तब तक बार सोने का जोखिम लेना मूर्खतापूर्ण काम था। इतने वर्षों तक अकेले सोने के बाद मेरी किसी के संग सोने की आदत नहीं थी। खासतौर पर किसी लड़की के साथ! सतही तौर पर मैंने थोड़ी बहुत शिकायत तो करी, लेकिन फिर भी मौसी जैसी सुन्दर लड़की के साथ ‘सोने’ के अवसर पर मेरा मन प्रफुल्लित भी था। भई, अब मैं भी जवान हो गया था, और इस उम्र में लड़की का साथ बुरा तो नहीं लगता। वो अलग बात थी कि नानी की दृष्टि में मैं अभी भी छोटा बच्चा ही था।

माँ ने जाने से पूर्व मुझे कई सारे सामान दिए थे, मौसी, नानी, चिन्नम्मा और गाँव के अन्य ख़ास लोगों के लिए उपहार स्वरुप! शाम को मुझसे मिलने के लिए परिवार के कुछ अभिन्न मित्र आए हुए थे। उनसे मैंने कुछ देर बात करी, और उनको उनके हिस्से के उपहार सौंप दिए। छोटे से समाज में रहने के बड़े लाभ है – जैसे की अभी की बात देख लीजिए। जो लोग मिलने आए, वो लोग कुछ न कुछ साथ में लाए भी। कुछ लोग रात के खाने के लिए व्यंजन भी साथ ले आए थे। इसलिए घर में उस रात अधिक कुछ पकाना नहीं पड़ा।

खैर, जब हम रात को कमरे में आए, तो मौसी ने कहा कि अब मैं उनको अम्माई न कहा करूँ... सिर्फ अल्का कहा करूँ! एक तो अम्माई बहुत ही औपचारिक शब्द है, और अगर हम दोनों कहीं साथ में जा रहे हों, और मैंने उनको ‘मौसी’ कह कर बुलाया तो लोग समझेंगे कि कोई बुढ़िया जा रही है... और ऊपर से अगर हम दोनों साथ में सोने वाले हैं तो एक दूसरे का नाम ले कर बुलाने में कोई हर्ज़ नहीं है। यह बात कहते हुए वो हलके से मुस्कुरा भी रही थीं, और उनका चेहरा शर्म से कुछ कुछ लाल भी होता जा रहा था। मुझे थोड़ी हिचकिचाहट सी हुई। ऐसे कैसे अम्माई से अलका बोलने लग जाऊँगा। खैर, अंत में निश्चित हुआ कि शुरुआत में जब हम अकेले हों, तब तो मैं उनको अलका कह कर बुला सकता हूँ।

फिर मैंने अलका के लिए अम्मा ने जो सामान दिया था, वो उनको दिखा दिया। अधिकतर तो बस कपड़े लत्ते ही थे। अम्मा ने बनारसी साड़ी भेजी थी ख़ास। अलका को बहुत पसंद आई। मैंने भी मौसी के लिए अपनी जेब-खर्च से बचा बचा कर एक ‘छोटा सा’ उपहार खरीद लिया था। निक्कर और टी-शर्ट! अम्मा और अच्चन की नज़र से छुपा कर! वो लोग देख लेते तो बहुत नाराज़ होते। ऐसे कपड़े तो अभी दिल्ली की ही लड़कियाँ नहीं पहनती थीं। लेकिन मैंने एक मैगज़ीन में लड़कियों को यह पहने देखा था। इसलिए अपनी कल्पना से मौसी की नाप सोच कर उनके लिए खरीद लिया था। इस चक्कर में मेरा सब संचित धन ख़र्च हो गया था। लेकिन उसकी परवाह नहीं थी। परवाह बस इस बात की थी कि मौसी को यह उपहार पसंद आना चाहिए, और उन्हें स्वीकार होना चाहिए। लेकिन समझ नहीं आ रहा था की वो उनको कैसे दूँ! हम दोनों दोस्त भी थे, लेकिन सम्बन्ध की मर्यादा भी तो थी! हाँलाकि उनके इस खुलेपन के कारण मुझे भी कुछ कुछ हिम्मत आई। मैंने मौसी को उनका ‘उपहार’ दिखाया। वो उस छोटी सी निक्कर को देख कर पहले तो काफी हैरान हुईं, लेकिन फिर हलके से मुस्कुराईं भी!
Bahot hi romanchak actrection he. Maza aa raha he.
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Bahot hi romanchak actrection he. Maza aa raha he.

धन्यवाद :)
आनंद के लिए ही लिखी थी यह कहानी। साथ ही साथ आपको आज से कोई पचास साल पहले के केरल के एक गाँव की कहानी भी पढ़ने को मिल जायेगी! नए मलयाली शब्द और उनके अर्थ :)
पढ़ते रहिए!
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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What a writer u r, im from nepal

धन्यवाद मित्र :)
आपका स्वागत है मेरी कहानी पर!
बहुत सी कहानियाँ लिखी हैं! पढ़ते रहिए! :)
 

Shetan

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धन्यवाद :)
आनंद के लिए ही लिखी थी यह कहानी। साथ ही साथ आपको आज से कोई पचास साल पहले के केरल के एक गाँव की कहानी भी पढ़ने को मिल जायेगी! नए मलयाली शब्द और उनके अर्थ :)
पढ़ते रहिए!
Muje maza aaya me aaj aage badhungi. Kafi romanchak he 1st actrection
 
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Shetan

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सवेरे देर से उठा - उठ कर देखा की मेरे बगल अल्का तो नहीं, बल्कि उसकी पहनी हुई टी-शर्ट और निक्कर पड़ी हुई थी - जैसे उसने एक निशानी रख छोड़ी हो मेरे लिए! आप मानो या न मानो, मेरे लिए यह एक अत्यंत कामुक दृश्य था। अब यह काम अल्का ने जानबूझ कर मुझे छेड़ने के लिए किया था, या अनजाने में, यह कहना मेरे लिए मुश्किल था। वैसे भी यह अल्का का कमरा था, और हो सकता है कि उसकी ऐसी आदत हो! खैर, मैं जैसे तैसे अपनी नींद को तोड़ कर कमरे से बाहर निकला तो पाया कि वहाँ अल्का घर पर नहीं थी। चिन्नम्मा ने बताया कि अल्का आज खेत पर बड़ी जल्दी ही चली गई थी, नाश्ता भी नहीं किया, और वहीं मिलेगी। कोई ज़रूरी काम था। वो वहाँ दिन भर रुकना नहीं चाहती थी, क्योंकि आज वो पूरा दिन मेरे साथ ही बिताना चाहती थी। अच्छी बात है। अगर मेरे साथ दिन बिताना है तो मैं ही चला जाता हूँ खेत पर। मैंने जल्दी से नित्यकर्म किया और फिर हम दोनों के लिए नाश्ता लेकर खेत की तरफ रवाना हो गया।

जब नाना जी ने खेती शुरू करी थी, तब छोटी खेती थी। लेकिन कालांतर में खेती की बरकत और माता-पिता की आर्थिक मदद से आज हमारे पास अब करीब करीब साठ एकड़ ज़मीन थी। काफी पहले से ही हमने अपना सारा ध्यान सिर्फ मसाले उगाने पर केंद्रित कर दिया था - हम इलाइची, कालीमिर्च, जायफल उगाते थे, और साथ साथ केले और नारियल भी। नगदी फसलों पर ध्यान केंद्रित करने का काफी लाभ हुआ था। कालांतर में हमारी लागत कम, और आय बढ़ने लगी थी। हाँलाकि मैं खेत का काफी हिस्सा देख चुका था, लेकिन फिर भी कई सारी जगहें मैंने अभी तक नहीं देखी थीं। लोगों से पूछते पूछते मैंने अल्का को ढूंढ लिया। वो खेत पर काम करने वालो को निर्देश दे रही थी, मैंने काफी देर तक उसकी बातें सुनी, और फिर अपनी तरफ से कुछ और निर्देश दे डाले। मेरे ज्ञान पर काम करने वाले काफी आश्चर्यचकित हुए, तो अल्का ने उनको बताया कि मैं शहर से आया हूँ... उनका नया मालिक!

मुझे आश्चर्य हुआ कि अल्का ने उनको यह नहीं बोला कि मैं उसका भांजा हूँ। वैसे मुझे भी अपने इस नए परिचय से आनंद हुआ, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। खेत के कुछ हिस्से में किसी प्रकार की खेती नहीं होती थी। मैंने उस हिस्से में प्रयोग के लिए सलाद वाली सब्ज़ियाँ उगाने का सुझाव दिया। अगर मेरे परिकल्पना के आधार पर सब कुछ हुआ, तो उन दो एकड़ों से उतनी रकम आती, जितनी हमारी हमेशा की फसलों से दस एकड़ में आती। यह बात मैंने अल्का को बताई। उसने इस बारे में और बात करने को कहा। उसको सलाद की खेती का कोई ज्ञान नहीं था। फिर उस फसल को खरीदेगा कौन? हम उसको बेचेंगे कैसे? सलाद तो जल्दी खराब हो जाएगा - इसलिए उसको ट्रांसपोर्ट करने का काम कौन करेगा? यह सब बातें जाननी बहुत ज़रूरी थीं।

जब सभी खेत मज़दूर काम करने निकल गए, और हम दोनों अकेले रह गए, तो मैंने अल्का को नाश्ता करने को कहा। हमने हलकी फुलकी बातें करते हुए नाश्ता किया - लेकिन रात की बात का बिलकुल भी ज़िक्र नहीं किया। एक दो बार उसने मुझे, और मैंने उसको खाने का निवाला अपने हाथों से खिलाया। अल्का ने इस समय शलवार कुर्ता पहना हुआ था, और सर पर दुपट्टा डाला हुआ था। उन कपड़ों में अल्का को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उसकी देहयष्टि इतनी तराशी हुई हो सकती है! यदि यह बात कोई देख सकता, खासतौर पर अल्का से विवाह की मंशा रखने वाले लोग, तो वो लोग उसकी ज़मीन जायदाद भूल कर उसके रूप के धन का लालच करने लगते!

अच्छा है... ऐसे दुष्टों के हाथ नहीं लगी थी वो अब तक!

कमाल है! अल्का के विवाह भी बात सोच कर भी मुझे जलन और चिढ़ क्यों महसूस हो रही थी!!

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Amezing actrection me jin khayal man me panapte he. Sab baahot khubshurati se dikhaya he. Maza aa gaya. Superb...
 
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Shetan

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ऐसे ही बातें करते हुए न जाने क्यों अल्का ने चिन्नम्मा से कहा, “चिन्नम्मा, कल चिन्नू का अभ्यंगम कर देना... इतनी दूर से आया हुआ है, उसकी कुछ तो सेवा करी जाए।”

अभ्यंगम पूरे शरीर की तेल-मालिश को कहते हैं। मालिश तो वैसे भी फायदेमंद क्रिया है, लेकिन अभ्यंगम के बाद क्या शारीरिक और क्या मानसिक - दोनों ही प्रकार की थकान निकल जाती है। चिन्नम्मा वैसे भी मेरी मालिश कई बार कर चुकी हैं। हर छुट्टी में यह एक नियम सा था। जैसे केरल घूमने जाने वाले आज कल के पर्यटकों को कुछ चीज़ें करनी ही होती हैं, वैसा। चिन्नम्मा की मालिश में बस एक ही दिक्कत थी और वह यह कि वो सबसे पहले मुझे नंगा कर देती थीं, फिर चाहे घर में कोई भी हो। और फिर मालिश से लेकर नहलाने तक का सारा काम वो ही करती थीं। पूरा काम करने में कोई दो घंटा लग जाता था, और पूरे दो घंटे तक मैं नंगा ही रहता था। मालिश के चक्कर में कई बार शर्मसार होना पड़ा था मुझे। लेकिन तब मैं छोटा था, इसलिए कोई बात नहीं थी। लेकिन अब मैं बड़ा हो गया था। इसलिए डर इस बात का था कि कहीं चिन्नम्मा वापस अपनी तर्ज़ पर ही न शुरू हो जाएँ।

“ठीक है मोलूटी!” उन्होंने सहमति जताई।

रात में सोने से पहले मैं और अल्का पूरे दिन के घटनाक्रम पर कुछ देर बातें करते थे। अम्मा और अच्चन से इस तरह खुल कर तो शायद ही कभी बात करी हो मैंने। आज कल हमारी अधिकतर चर्चा मेरे खेती के प्रयोग पर ही होती थी। ऐसे ही कुछ देर तक बतियाने के बाद मैंने अल्का से कुछ पर्सनल बात करने की सोची।

“अल्का, तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं करी?”

“चिन्नू, अब तुम भी मत शुरू हो जाओ!”

“सॉरी अम्माई!”

“अरे! फिर से अम्माई!” अलका ने कहा। कुछ देर तक हम दोनों ही चुप रहे फिर अल्का ही बोली, “चिन्नू... सॉरी वाली बात नहीं है। यहाँ लोगों को सिर्फ गोरा रंग चाहिए, या फिर धन या फिर दोनों! गोरा रंग मेरे पास है नहीं, और धन तो तुम सबका है। फिर कौन करता मुझसे शादी? अब तो मेरी उम्र भी बहुत हो गई। मेरी कई सहेलियों के तो दस दस साल के बच्चे हैं। अब क्या होगी मेरी शादी! और सच पूछो तो मुझे करनी भी नहीं है शादी किसी से... यहाँ अपने घर में हूँ, और ठाठ से हूँ। तो फिर क्यों मैं किसी और के पास जाऊँ और उसकी नौकर बन के रहूँ? और फिर अम्मा को कौन देखेगा? और इतनी बड़ी खेती! उसका क्या?”

अल्का की बात पर मैं काफी देर तक चुप रहा और फिर बोला,

“अगर तुमको ऐसा आदमी मिल जाए जो तुम्हारे रंग, तुम्हारे धन से नहीं, सिर्फ तुमसे प्यार करे, तो?”

“सो जाओ चिन्नू..”

मैं चुप हो गया। कुछ देर के बाद मुझे लगा कि अल्का सुबक रही है। मुझे ग्लानि का अनुभव हुआ। अनजाने में ही मैंने अल्का को दुःख पहुँचाया था और मुझे उस बात का खेद था। मैंने उसको ‘सॉरी’ कहा, और फिर उसको अपने से दुबका का कर सुलाने की कोशिश करने लगा। मुझे कब नींद आ गई, कुछ याद नहीं।


सवेरे -

“चिन्नू, आज बढ़िया गरमा गरम इडली बनाई है तुम्हारे लिए। जल्दी से खा लो, फिर तुम्हारा ‘मसाज’ होगा।”

“आज तुम खेत पर नहीं गई ?”

“नहीं, आज छुट्टी है। आज हम सिर्फ मजा मस्ती करेंगे.. या फिर जो तुम कहो वो। ठीक है? लेकिन पहले चिन्नम्मा...”

मैंने जल्दी जल्दी नित्यकर्म किया और स्वादिष्ट गरमागरम इडली खाई, और कॉफ़ी पी। फिर चिन्नम्मा सुगन्धित तेल की कटोरी लेकर आई और बोली,

“चिन्नू, तेल मालिश आँगन में होगी, या फिर बाहर, अहाते में?”

मौसम अच्छा था, इसलिए मैंने कहा, “अहाते में, चिन्नम्मा!”

अहाते में चिन्नम्मा ने चटाई बिछाई और फिर मुझसे कपड़े उतारने को कहा। बढ़िया हवा बयार चल रही थी, और चिड़ियाँ चहक रही थीं। मैंने जाँघिया को छोड़ कर सब कपड़े उतार दिए।

“ये भी।”

“ये भी?”

“हाँ! नहीं तो मालिश कैसे होगी?”

“अरे ऐसे ही कर दो न चिन्नम्मा!”

“ऐसे ही कैसे कर दूँ? हमेशा ही तो पूरा नंगा कर के तुम्हारी मालिश होती है।”

“क्या चिन्नम्मा! अब मैं बड़ा हो गया हूँ। ऐसे कैसे आपके सामने नंगा हो जाऊँगा?”

“बड़े हो गए हो?”

“और क्या?”

“अच्छा!”

“हाँ!”

“देखूँ तो... कितने बड़े हो गए हो।”

यह कह कर वो खुद ही मेरे जाँघिया का नाड़ा खोल कर मुझे नंगा करने लगीं। चिन्नम्मा तो अम्मा से भी बड़ी थीं, तो उनको मना कैसे करूँ, यह समझ नहीं आया। बस दो सेकंड में ही मैं उनके सामने पूरा नंगा खड़ा था। और उतनी ही देर में मेरे लिंग में इतना रक्त भर गया कि वो गन्ने की पोरी के जितना लम्बा, मोटा और ठोस हो गया। चिन्नम्मा ने मेरे लिंग को अपनी हथेली में पकड़ कर दो तीन बार दबाया और कहा,

“बढ़िया!”

बढ़िया तो था, लेकिन यह अनुभव मेरे लिए बहुत अनोखा था। इतने दिनों से अल्का के साथ रहते रहते वैसे भी शरीर में कामुक ऊर्जा भरी हुई थी। यहाँ आने के पहले तो रोज़ का नियम हो गया था कि हाथ से ही खुद को शांत कर लिया जाए। लेकिन यहाँ उस तरह का एकांत अभी तक नहीं मिल पाया था। और फिर चिन्नम्मा का ऐसा हमला! मैं अपने अण्डकोषों में बनने वाले दबाव को रोक नहीं सका। जब चिन्नम्मा ने एक और बार मेरे लिंग को दबाया, तो मेरे वृषण ने पिछले दस बारह दिनों से संचित वीर्य को पूरी प्रबलता से से बाहर फेंक दिया।

कम से कम सात आठ बार मेरे लिंग ने अपना वीर्य उगला होगा, और हर बार उसकी प्रबलता में कोई ख़ास कमी नहीं हुई। चिन्नम्मा मुझसे चिपक कर नहीं बैठी थीं। लेकिन फिर भी स्खलन में इतनी तीव्रता थी कि सारा का सारा वीर्य सामने बैठी चिन्नम्मा के ऊपर ही जा कर गिरा। उस वर्षा से चिन्नम्मा पूरी तरह से भीग गईं। जब मैंने आँखें खोली तो देखा कि उनके चेहरे, बाल, ब्लाउज और साड़ी पर मेरा वीर्य गिरा हुआ है।

“अरे मेरे चक्कारे, बता तो देता कि यह होने वाला है!” चिन्नम्मा ने सम्हलते हुए कहा।

मैंने काफी देर तक गहरी गहरी साँसे भर कर खुद को संयत किया और फिर कहा, “कैसे बताता चिन्नम्मा, तुमने एक तो मुझे ऐसे नंगा कर दिया, और फिर ऐसे छेड़-खानी करने लगी।”

“छेड़-खानी नहीं, मैं तो तुम्हारा कुन्ना देख रही थी। फिर से नहाना पड़ेगा मुझे अब! कोई बात नहीं! मेरा चिन्नू तो सचमुच का बड़ा हो गया है। बढ़िया मज़बूत कुन्ना है। कुछ दिन तुम्हारी मालिश कर दूँगी तो और मज़बूत हो जायेगा यह। चलो, अब जल्दी से तुम्हारी मालिश कर दूँ।” चिन्नम्मा ने अपनी साड़ी के आँचल से अपना चेहरा साफ़ करते हुए कहा।

आज कल कैराली मसाज के विभिन्न रूप बाज़ार में उपलब्ध हैं। बहुत से लोग आज कल इसको एरोमा थेरेपी के नाम से भी जानते हैं। लेकिन चिन्नम्मा के तेल में ऐसा कोई एरोमा वेरोमा नहीं था। मालिश का तेल साधारण तिल के तेल, सरसों के तेल, शुद्ध हींग और हल्दी को मिला कर बनाया गया था। जो महक थी, सब इन्ही के कारण थी। और कुछ भी नहीं। आज कल काम की चीज़ कम, और नौटंकी ज्यादा करी जाती है! खैर, हमको क्या! काम करने वालो को लाभ होता है, तो मना कैसे और क्यों किया जाए?

चिन्नम्मा ने तेल की कटोरी को एक सुलगते हुए कंडे के ऊपर रखा हुआ था, जिससे तेल हल्का सा गरम था। उसी को
लेकर उन्होंने मेरे पूरे शरीर की दमदार मालिश करी। सच कहूँ, यात्रा की थकावट तो आज की मालिश के बाद ही निकली। उन्होंने मेरी एक एक माँस-पेशी, एक एक जोड़, और एक एक अंग की ऐसी मालिश करी कि मुझे लगा कि पूरा शरीर आराम के अतिरेक से शिथल हो गया है। उनके हाथों में एक अभूतपूर्व जादू है - किस अंग को कैसे दबाना है, और कैसे रगड़ना है, उनको यह सब अच्छी तरह से मालूम था। एक बात और, जिस पर मेरा और चिन्नम्मा दोनों का ध्यान गया था और वह यह था कि स्खलन के बाद भी मेरा लिंग स्तंभित ही रहा। बीच में कुछ देर के लिए शिथल पड़ा था लेकिन जब उन्होंने वापस वृषण और लिंग की मालिश शुरू करी, तो फिर से तन कर तैयार हो गया। हाँ, वो अलग बात है कि इस बार चिन्नम्मा और मैं दोनों ही किसी भी हादसे के लिए पहले से तैयार थे।

“चिन्नू, यह तो बड़ा ढीठ है। खुद से बैठ ही नहीं रहा है। मैं बैठा दूँ? नहीं तो बाद में दर्द होगा।” उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुआ कहा।

“ठीक है।” मैंने स्वीकृति दे दी।

अगले पांच मिनट तक चिन्नम्मा मेरे लिंग को दबाती, सहलाती और रगड़ती रहीं। तब कहीं जा कर उसमे से दोबारा स्खलन हुआ और तब कहीं जा कर वो शांत हुआ। इस बार कोई हादसा नहीं हुआ। और भी अच्छी बात यह हुई कि पूरे मालिश के दौरान कोई घर नहीं आया। कम से कम किसी और के आगे मेरी इज़्ज़त नहीं गई। मुझे नहीं मालूम कि अल्का ने मुझे वैसी हालत में देखा या नहीं। लेकिन वो पूरे समय तक मैंने उसको बाहर निकले नहीं देखा। अच्छी बात है! मालिश हो जाने के बाद मैंने अपने कपड़े पहने, और घर के अंदर आ गया।
Amezing erotic shararat or romantic sangam. Superb....
 
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Shetan

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अल्का इस अचानक हुए घटनाक्रम से भौंचक्क हो गई। फिर वो संयत हो कर पानी में धीरे से सीधी खड़ी हो गई। उसके हाथ ऊपर की तरफ आए, और मेरे हाथों के ऊपर आ कर स्थापित हो गए - कुछ देर तक उसने मेरे हाथों को हटाने का कोई भी प्रयास नहीं किया। हम दोनों उसी अवस्था में जड़वत खड़े रहे। फिर वो मेरी तरफ मुड़ी, ऐसा करने से मेरे हाथ स्वतः उसके स्तनों से हट गए।

“ओ माँ! नीचे लगता है कोई बड़ा गड्ढा था। थैंक यू! मैं तो किनारे की तरफ जा रही हूँ।”

‘थैंक यू! यह तो मुझे बोलना चाहिए!’

अल्का चलती हुई तालाब के किनारे पर आई, और वहीँ पर बैठ गई। उसके बैठने का ढंग कुछ ऐसा था जिससे उसकी टाँगे सामने की तरफ कुछ खुल गईं थीं। हाँलाकि इस समय तालाब का पानी उसकी कमर तक तो था, लेकिन पानी साफ़ होने के कारण कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला था। मुझे दरअसल उसका शरीर साफ़ साफ़ दिख रहा था। अल्का की हलके धानी रंग की चड्ढी, जो पानी में जाने से पहले अपारदर्शी थी, इस समय पूरी तरह गीली होने के कारण उसके शरीर से पूरी तरह चिपकी हुई थी, और काफी पारदर्शी हो गई थी। अल्का की योनि पर उगी काले बालों की पट्टी मुझे साफ़ दिख रही थी। और साथ ही साथ उसकी योनि की फांकों के उभार भी दिख रहे थे। एक तो मैंने अभी अभी उसके स्तनों को अपने हाथों में महसूस किया था, और अब यह दृश्य! मेरी साँसे मेरे गले में ही अटक गईं। मेरा मुँह सूख गया। आज तो मन मांगी सभी मुरादें पूरी हो गईं थीं - आंशिक ही सही, लेकिन अल्का की योनि के दर्शन तो हो ही रहे थे! न जाने कैसे मेरा लिंग रक्त के दबाव से फटा क्यों नहीं!

मैंने अनजाने ही अल्का के सामने ही अपने लिंग को व्यवस्थित किया - मेरा दिमाग तो उसी जगह पर केंद्रित था। आँखें अल्का की योनि से हट ही नहीं पा रही थीं। अल्का भी संभवतः कुछ समय हुए घटनाक्रम से कुछ घबराई हुई थी। वो भी इधर उधर देखते हुए ही बात कर रही थी। इसलिए उसको अभी तक मालूम नहीं पड़ा था कि मेरी दृष्टि किस तरफ थी। वो कुछ कुछ कह रही थी, और मैं बस ‘अह’, ‘हाँ’, और ‘हम्म’ में ही जवाब दे रहा था। कुछ समय बाद, वो अचानक उठी, और बोली कि देर हो रही है, और हमको चलना चाहिए। ऐसा करते समय उसने मेरी तरफ देखा, और तुरंत समझ गई कि मैं किधर देख रहा था। एक बार तो उसके चेहरे से जैसे सारा रक्त निचुड़ गया!

“उई माँ! चिन्नू, तुम बहुत खराब हो! देखो, तुम्हारी बातों में आने का अंजाम! मेरी ऐसी हालत है कि कुछ पहनने या न पहनने का कोई मतलब ही नहीं रह गया! हट्ट!”

कह कर वो अपने गोल गोल नितम्ब मटकाती हुई अपने कपड़ो की तरफ चल दी। हमने चुप रह कर जैसे तैसे अपने कपड़े बदले। अल्का और मैंने अपने गीले अधोवस्त्र उतार दिए थे। और वापस अपने घर की तरफ चल दिए।

उस रात को जब हम सोने के लिए बिस्तर पर आए, तो अल्का ने कहा,

“चिन्नू, तुमने मुझे आज ऐसे देख ही लिया है। तो...”

“अल्का, मैंने प्रॉमिस किया है न कि मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा!” मैंने कहा।

“नहीं.. वो बात नहीं...सोते समय अगर मैं भी कपड़े उतार कर लेटूँ तो?”

“तुम्हारा घर है, अल्का! जैसा तुमको अच्छा लगे?”

“ओये होए! कैसा भोला बन रहा है मेरा चिन्नू!!” अल्का ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा, “इतनी अच्छी किस्मत नहीं है तुम्हारी! हा हा हा! लेकिन एक बात याद रखना! जो भी कुछ हुआ, वो किसी को न बताना!”

अल्का की बात से मैं हकलाने लगा, “नननननहीं! मैं कुछ नहीं कहूँगा!”

“गुड नाईट चिन्नू!”
Actrection me kuchh thode bahot seen ajib si khushi dete he. Bahot hi alag dhang se alag alag seen create kiye he. Bilkul bhi jaldbaji nahi. Kram sar kahani aage badh rahi he. Amezing.
 
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Shetan

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लेकिन मैं वहीँ ज़मीन पर पालथी मार कर बैठ गया, और अल्का को अपनी गोद में बैठा लिया। मैं साथ ही साथ उसकी पीठ, हाथ और नितम्ब सहलाता रहा।

“क्या हो गया, चिन्नू?”

“आई ऍम सॉरी!”

“इट इस ओके!” कह कर अल्का ने मुझे माथे पर एक बार चूम लिया।

“आई ऍम सच में सॉरी, आलू!”

“कोई बात नहीं !” कह कर अल्का ने बारी बारी मेरे दोनों गाल भी चूम लिए।

“मैंने एक और बात सोची है..”

“वो क्या?”

“मैं इस तालाब में नहीं नहाऊँगा...”

“अरे? ऐसे क्यों?”

“बिना तुम्हारे कभी नहीं!”

“हा हा! मेरे चिन्नू! तुम्हारी सुई तो एक जगह ही अटकी हुई है!” उसने हँसते हुए कहा।

“बिलकुल!” मन में पुनः कल की सारी बातें कौंध गईं।

“तो ठीक है... मैं भी नहा लूँगी तुम्हारे साथ में!”

“अभी?”

“हाँ!”

“लेकिन, इन कपड़ों में?”

“कल कैसे नहाया था?”

“मुझे लगा कि तुमको शायद अच्छा नहीं लगा।”

“मेरे चिन्नू.... मुझे तुम्हारे साथ सब अच्छा लगता है। सब कुछ!”

“ऐसी बात है?”

“हाँ”

“मैं कुछ कहूँगा, तो करोगी?”

“अगर कर सकी, तो ज़रूर करूंगी” अल्का की आवाज़ गंभीर होती जा रही थी। कुछ रुक कर, “.... बोलो?”

“बिना कपड़ों के नहा सकोगी मेरे साथ?”

मैंने न जाने किस आवेश में कह दिया। मेरी बात सुन कर अल्का का सर नीचे झुक गया। वो चुप हो गई। मेरे दिल की धड़कनें बहुत बढ़ गईं। हम लोग बिना कुछ बोले चलते रहे - हमारे तालाब की तरफ! करीब पांच मिनट बाद अल्का बेहद गंभीर स्वर में बोली,

“कल जितना नंगा देख कर तुम्हारा मन नहीं भरा? मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो?”

“हाँ.... और हाँ…” मैं लगभग चिल्लाते हुए बोला। यह मेरा खुद को दृढ़ दिखाने का एक बचकाना प्रयास था।
Bas itne hi pal jindgi ki anokhi khushi dene ko kafi he. Bhale jyada kuchh na paya ho. Par minnato se mili khushi. Alag hi maza deti he. Amezing...
 
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