वैसे भी यहाँ एकाँत था; आज भी वर्षा रह रह कर पड़ रही थी, इसलिए कोई बिना वज़ह बाहर नहीं रहना चाहता था। वैसे भी, नवविवाहितों के बीच में किसी और का क्या काम? जाते जाते अम्मा ने कहा था कि कुछ देर बाद वो हमारे लिए भोजन ले कर आएँगी। ठीक है! कुछ देर मतलब एक पारी तो खेली जा सकती थी! जैसे ही एकाँत हुआ, अल्का ने मुस्कुराते कहा,
“चिन्नू मेरे, आपसे सब्र नहीं हो रहा था?” यह कोई प्रश्न नहीं था, बस एक कथन था।
मैंने ‘न’ में सर हिलाया, और मुस्कुराया।
“अब तो मैं रीति और विधिपूर्वक भी आपकी हूँ!” कह कर वो मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गई, और उसने अपने सर को मेरे पाँव पर रख दिया। जैसा कि पहले भी हुआ था, उसके ऐसे आदर प्रदर्शन से मैं अचकचा गया - किसी व्यक्ति को ऐसे नहीं नहीं पूजना चाहिए। ऐसा आदर सम्मान केवल भगवानों के लिए आरक्षित रहना चाहिए।
“अल्का.. मेरी मोलू! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ!”
“बोलिए न?”
“तुम मेरे पैर न छुआ करो! नहीं तो मैं भी तुम्हारे पैर छुऊँगा!”
“अरे! और मुझे पाप लगाओगे?” उसने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“मैं तुमको पाप न लगाऊं? लेकिन तुम मुझे लगा सकती हो?”
“चिन्नू मेरे.. मैं आपके पैर इसलिए छूती हूँ, कि आपको मेरा पूर्ण समर्पण है! मैं आपका पूरा आदर करती हूँ.. पति होने के नाते, आप मेरे भगवान भी हैं.. और इसलिए भी आपके पैर छूती हूँ क्योंकि मुझे आपसे प्रेम है।”
अल्का की इस बात पर मैंने भी बिजली की तेजी से उसके पैर छू लिए, “मेरा भी आपको पूर्ण समर्पण है, और मुझे भी आपसे प्रेम है!”
अल्का मेरी इस हरकत से थोड़ा असहज हो गई।
“वो तो मुझे मालूम है, मेरे चेट्टन! आप एक बहुत अच्छे पुरुष हैं! आपका स्वभाव बहुत अच्छा है, और, मुझे मालूम है कि आप एक आदर्श भर्ताव (पति) बनेंगे! हर लड़की अपने लिए ऐसा वर माँगती है, जो उसे जीवन भर प्रसन्न रख सके, और उसका हर कठिनाई में साथ दे। प्रभु ने मुझे आपका साथ दिया है; जैसा मैं चाहती थी, आपमें वह सब कुछ है! मैं बहुत... लकी हूँ!”
“यह सब तो मेरे लिए भी उतना ही सच है, जितना आपके लिए! फिर यह पैर छूना मुझे पसंद नहीं! और तो और, आयु में तो आप ही मुझसे बड़ी है!”
“हाँ, लेकिन पद आपका बड़ा है!”
“पत्नी का पद कब से छोटा होने लगा?”
“ओह्हो! आपसे तर्क में कोई नहीं जीत सकता!”
“और पैर छूने के साथ साथ मुझे ‘आप’ ‘आप’ भी कहना बंद करो! लगता है कि तुम मुझे नहीं, किसी पड़ोसी को बुला रही हो!”
“अच्छा ठीक है! मैं आपके पैर नहीं छुऊँगी, लेकिन आपको ‘आप’ कह कर बुलाऊँगी!”
“ओह्हो!” मैंने अल्का की ही तर्ज़ पर कहा, “यह बेकार के मोल भाव में समय जाया हो रहा है! चलो, हम वो करें, जिसके लिए इस कमरे में आए हैं!”
“हा हा! मेरा चिन्नू कितना व्याकुल हो रहा है!”
“कैसे न हूँ!? विवाह के समय इतने सारे लोग थे वहाँ, नहीं तो वहीं पर शुरू हो जाता!”
“हा हा..! आओ, आओ! बेचारे को इस बंधन से बाहर निकाल देती हूँ..” कह कर अल्का ने मेरी कमर पर से मुंडू की गाँठ खोली और मैं अपने नग्न रूप में आ गया। सम्भोग की प्रत्याशा में मेरा लिंग पूरी तरह से उत्तेजित था, और रक्त प्रवाह के कारण रह रह कर झटके खा रहा था,
“ओहो! मेरे चिन्नू का कुन्ना! कितना बड़ा..! कितना सुन्दर..! कितना पुष्ट.. कितना बलवान..!” कहते हुए उसने मेरे शिश्न के मुख पर एक छोटा सा चुम्बन दिया।
“न न.. चूमने से काम नहीं चलेगा.. इसे चूसो” मैंने प्रेम मनुहार करते हुए कहा।
“जब पहली बार तुम्हारे लिंग को इस रूप में देखा था न चिन्नू, तो मैंने सोचा कि इतना बड़ा अंग मेरी योनि में कैसे जाएगा!”
“पहली बार में ही तुम इसको अपनी योनि के अंदर लेना चाहती थी?”
“और क्या! बिना वो किए मैं तुम्हारी संतानो की माँ कैसे बनूँगी भला?”
“हम्म्म। लेकिन तुमको क्यों लगा कि यह बहुत बड़ा है?”
“अरे! कैसे न लगेगा?”
“मेरा मतलब है कि योनि में से बच्चा निकल आता है। तो फिर लिंग तो बहुत छोटा होता है न!”
“अरे बुद्धू! बच्चा तो एक बार ही निकलता है। वो तो गर्भधारण के कारण शरीर बदल जाता है। हमेशा वैसे थोड़े न रहता है। मेरी योनि ढीली ढाली रहती, तो तुमको आनंद आता क्या चिन्नू?”
मैं मुस्कुराया।
“चिन्नम्मा मुझे हमेशा कहती कि बहुत छोटी योनि है मेरी। मेरा अभ्यंगम करते समय वो इसकी भी मालिश करती थी। धीरे धीरे कर के उनकी एक उंगली मेरे अंदर जा पाई। इसलिए तुम भी पहली बार में मेरे अंदर नहीं आ पाए।”
“हम्म्म फिर तुमको मेरा लिंग अपने अंदर ले कर कैसा लगा?”
“शुरू शुरू में तकलीफ़ हुई, लेकिन फिर आनंद आने लगा।”
“अब समझी - सम्भोग केवल संताने पैदा करने के लिए नहीं होता। आनंद लेने के लिए भी होता है।”
“हाँ!”
कह कर अल्का मेरे लिंग को मुँह में लेकर चूसने लगी। मुझे तुरंत ही आनंद आने लगा। मैं आनंद में आ कर ‘हम्म हम्म’ की आवाज़ निकालने लगा। अल्का ने वेणी बाँध रखी थी, लेकिन उसके माथे के सामने के बाल बार बार चेहरे पर गिर जाते थे, और वो बार बार उन बालों को अपने कान के पीछे ले जाती! सुनने और कहने में एक सामान्य सी बात है, लेकिन सच में, यह करते हुए अल्का कितनी कामुक लग रही थी, उसका वर्णन करना यहाँ संभव नहीं है! मैं जल्दी ही स्खलन के करीब पहँचु ने लगा तो मैंने अल्का को रोका।
मैंने अल्का को कंधे से पकड़ कर उठाया और अपने सीने से लगा लिया। पत्नी जब पति के लिंग को अपने मुख में सहर्ष ग्रहण करे, तो उसके समान ‘रति’ कोई और स्त्री नहीं हो सकती! मैं प्रेमावेश में आ कर उसको उसके शरीर के हर हिस्से को चूमने लगा। अल्का के मस्तक, गाल, होंठ, ठोड़ी, ग्रीवा, हाथ, पैर, कमर, पेट, स्तन - सब जगह मैंने अपने चुम्बनों की वर्षा कर दी। साथ ही साथ साड़ी के ऊपर से ही अल्का के नितम्बों को अपने हाथ में लेकर सहला और मसल रहा था। अल्का को अवश्य ही आनंद आ रहा था - उसने इस प्रेमालाप के बीच में अपने बाल खोल दिए, जिससे उसका रूप और निखर आया, और वो और भी अधिक कामुक लगने लगी।
मैंने अल्का के स्तनों को पकड़ लिया और उनको दबाने, सहलाने लगा।
“अम्माई, दूध पिलाओ ना” मैंने अल्का को छेड़ा।
“आह.. अब मैं आपकी मौसी नहीं, पत्नी हूँ! आप मुझे मेरे नाम से पुकारा करें!” अल्का ने मेरी मनुहार की।
“नहीं मेरी प्यारी मौसी!! तुम तो मेरे लिए हमेशा ‘मेरी प्यारी मौसी’ ही रहोगी, क्योंकि ऐसी सेक्सी मौसी को उम्र भर चोदने का चांस किसको मिलता होगा?” मैंने हंसते हुए अल्का को छेड़ा।
“अच्छा जी?!” अल्का ने कहा और वो भी मेरी बात पर हँसने लगी।
“दूध पिलाओ न!”
“दूध? किधर है?” अल्का जान बूझ कर अनजान बनी हुई थी।
“इधर है!” मैंने उंगली से उसके एक स्तन को छुआ।
“हा हा! मैंने आपको उन्हें पीने से कब रोका?”
“न! तुम पिलाओ!”
“अच्छा.. उसके लिए मुझे पलंग पर बैठना पड़ेगा!”
“हाँ.. ठीक है!”
अल्का बिस्तर पर बैठी, और अपने हाथ पीठ के पीछे ले जा कर अपने कंचुकी की गाँठ खोलने लगी। कुछ ही क्षणों में उसके भरे हुए, सुडौल और गोल स्तन उसके पति के सम्मुख अनावृत हो गए। मैं अल्का की गोद में पीठ के बल लेट गया और फिर फुर्सत से उसके स्तन को मुँह में लेकर पीने लगा। मैं अल्का की अवस्था से अनभिज्ञ था, लेकिन अल्का अपने स्तन इस प्रकार पिए जाने से अत्यंत हर्षित थी। मैंने कम से कम दस मिनट तक उन दोनों पृयूरों को मन भर कर चूसा और फिर अल्का के रूप की प्रशंसा करी,
“मेरी मोलू.. सच कहता हूँ.. भगवान् शिव ने बड़ी फुर्सत से बैठ कर तुम जैसी मस्त चोदने लायक लड़की बनाई है!”
देर तक पिए जाने से अल्का के चूचक उत्तेजनावश पूरी तरह से खड़े हो गए थे। लेकिन ऐसा लगा कि अपनी प्रशंसा सुन कर अल्का के स्तन गर्व से तन गए हों!
“मौसी, तुम इतनी ‘चोदनीय’ हो कि अगर कोई मर्द तुमको एक बार देख ले, तो उसका कुन्ना तुरंत खड़ा हो जाए और वो तुमको बिना चोदे नहीं मानेगा!”
मैंने अल्का को छेड़ा! बात तो बहुत गन्दी थी, लेकिन आज का दिन सभ्यता दिखाने का नहीं था। अल्का को भी मेरी बात अच्छी लगी। वो मुस्कुराई। मैं शरारत करते हुए एक एक कर के उसके नोकदार चूचकों को बारी बारी से अपने मुँह में भर कर फिर से पीने लगा। बीच बीच में मैं उनको दाँत से काट भी लेता।
“पातिय.. पातिय..” अल्का कराहते हुए, आनंद लेती हुई बोली, “आराम से चूसो!”
लेकिन मैं तो अभी अपनी ही धुन में था। मैं उसके स्तनों को जोर जोर से पी रहा था, और काट रहा था। बड़ी देर तक यही खेल चलता रहा। मेरी उत्तेजना की तो पराकाष्ठा पहुँच गई थी। अगर समय रहते अल्का मुझे रोक न लेती, तो मैं संभवतः अल्का की छातियाँ ही खा लेता। अब तक मेरा लिंग भीषण रक्त प्रवाह से फूल कर बहुत बड़ा हो गया था। समय आ गया था।
“चल रानी! अब तुझे नंगी कर के चोदने का समय आ गया।” मैंने निर्लज्जता से कहा। किसी और समय यह बात कही होती, तो थप्पड़ पड़ गया होता। लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा था, आज का दिन सभ्यता दिखाने का तो बिलकुल भी नहीं था। मैंने निर्दयता से उसकी साड़ी उतार दी और फिर उसकी चड्ढी भी। अल्का पूर्ण नग्न पलंग पर चित्त हो कर लेटी हुई थी। मैं उसकी टांगों के बीच आ कर बैठ गया और फिर उसकी सुन्दर टाँगें खोल दी। अल्का शरमा गयी।
“मौसी, मैंने तुमको पहले कभी बताया है क्या कि तुम्हारी चूत बहुत सुंदर है? मैंने बोला।
अल्का ने मुझ पर पलट वार किया, “कितनी लड़कियों की ‘चूत’ देखी है मेरे चिन्नू ने?”
“बताऊँगा.. फिर कभी बाद में!” कह कर मैं उसकी योनि को पीने लगा। अल्का कामुकता से सिसकने लगी। मेरी जीभ उसको सनसनीखेज़ आनंद दे रही थी। मैंने देखा कि रह रह कर अल्का स्वयं ही अपने स्तन दबाने लगती। सच में! वैवाहिक सम्भोग का आनंद अवर्णनीय है!
कुछ देर बाद अल्का ‘आऊ… आऊ…’ करती हुई जोर जोर से चिल्लाने लगी। उसी लय ताल में वो अपनी कमर ऊपर उठाने लगी। ऐसे तो वो पहले कभी भी नहीं भोगी गई थी! अच्चन ने कल ही मुझे स्त्रियों के सबसे संवेदनशील अंग - उनके भगनासे के बारे में बताया था, और यह भी कि उसको छेड़ कर अपनी पत्नी को कैसे आनंद देना है। उनकी सीख तो मैं इस समय आज़मा रहा था - मेरी जीभ अल्का के भगनासे से खेल रही थी। कभी मैं उसको अपने दाँत से पकड़ लेता, कभी जीभ से चाट लेता, तो कभी होंठों से पकड़ कर ऊपर की तरफ खींच लेता। कामोत्तेजना से अल्का पागल हो रही थी।
“ब्ब्ब्बस बस... ऊऊऊ... बस ओह! चेट्टन अब बस! अब कु कुन्ना डाल दो... नही तो मैं मर जाउंगी!” उसने कहा।
मैं खुद भी अब अल्का को भोगने को पूरी तरह से तैयार था। मैंने लिंग को अल्का की योनि पर सटाया और जोर से धक्का मारा। बिना रोक टोक के मेरा लिंग उसकी योनि में प्रवेश कर गया। सुहागरात का सम्भोग बस आरम्भ हो गया था। अल्का ने अपने दोनों पैर उठा लिए थे, और आनंद लेकर सम्भोग का आनंद उठा रही थी। मैं इतनी जोर जोर से धक्के लगा रहा था कि पलंग भी आगे पीछे होने लगा था, और कमरे में से हमारी आहों, सिसकियों के साथ साथ लकड़ी के पाए के लयबद्ध घर्षण की ध्वनि भी आने लगी थी। हमारी सुहागरात के सम्भोग का यह मीठा कामुक शोर था। बाद में अल्का ने बताया कि उत्तेजना के कारण मेरे लिंग की मोटाई थोड़ी बढ़ गई थी, इसलिए अल्का को अपनी ही योनि में कसावट का अनुभव हो रहा था।
“उई उई उहह… ओह…” जैसी पागलपन वाली आवाजें निकालते हुए अल्का स्खलित हो गई। थोड़ी ही देर बाद मैं खुद भी अल्का के भीतर ही स्खलित हो गया। न तो मैंने ही साफ़ सफाई की परवाह करी, और न ही लिंग को उसकी योनि से बाहर निकालने की। बस अल्का को अपने आलिंगन में भर कर सुस्ताने लगा। कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
“चेची?” मैं अल्का की आवाज़ सुन कर जगा।
“चेची नहीं.. अम्माईयम!” अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्यूँ रे चिन्नू.. सब गर्मी निकल गई या कुछ बची हुई है? क्या क्या कर रहा था विवाह के समय नालायक?” अम्मा ने हँसते हुए कहा।
“क्या करता अम्मा! मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था!”
“वो तो मैं समझ ही सकती हूँ! मेरी मरुमकल इतनी सुन्दर, इतनी अच्छी, इतनी प्यारी और इतनी कामुक जो है! तेरे बड़े भाग्य हैं लड़के कि तुझको ऐसी पत्नी मिली!”
“चेची!” अल्का अपनी बढ़ाई सुन कर शरमा गई।
“चेची नहीं! मुझे अब अम्माईयम कहने की आदत डाल लो!”
यह सुन कर अल्का फिर सेशरमा गई तो अम्मा ने पहले की ही भाँति कहा, “मेरे सामने नंगी रहती है, तो तुझको शरम नहीं आती! लेकिन मुझे अम्मा या अम्माईयम कहने में लजा जाती है! और सुन, अपने अलिएं (ससुर) के सामने ऐसी हालत में न जाना.. नहीं तो वो भूल जाएगा कि तू अब उसकी नातूं (साली) नहीं, मरुमकल (बहू) है! हा हा!”
“अम्मा..” अल्का और लजाते हुए अम्मा के आलिंगन में सिमट गई।
“और तुम दोनों अधिक शोर मत मचाओ.. पड़ोसी कह रहे हैं कि इतना ‘भीषण’ सम्भोग पूरे गॉंव में कभी किसी ने नहीं किया!” अम्मा लगभग हँसते हुए बोली।
“अरे! किसने देख लिया?” अल्का फिर से शरमा कर सिमट गई।
“इतना बड़ा सा जालगम है! कोई भी देख सकता है.. और वातिल भी तो बंद नहीं होता! इसलिए सम्हाल कर! हा हा!”
“अरे कोई देखे तो देखे! अपनी पत्नी को भी कोई न भोगे?” मैंने ढिठाई से कहा।
“बिलकुल ठीक! मैंने भी यही कहा.. हा हा.. चलो.. अब कुछ खा लो”
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बात थोड़ी पुरानी है, लेकिन उससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
अल्का और मेरे विवाह के अब पूरे पैंतालीस बरस बीत गए है! और यह पैंतालीस बरस पूरे सुख और समृद्धि से भरे हुए थे। परिवार के तीनों बुजुर्ग अपने अपने समय पर वैकुण्ठ सिधार गए हैं। अल्का और मेरी तीन संताने हुईं - पहली संतान लड़की, जो हमारे विवाह के नौ माह के भीतर ही हो गई। जाहिर सी बात है कि विवाह से पहले हमने जो प्रेम संयोग किया था, वो उसी की निशानी है। दूसरी संतान एक पुत्र, जो पुत्री के दो साल बाद हुआ, और तीसरी संतान एक पुत्री, जो हमारे विवाह के पाँचवे साल में हुई। हमारी तीनों संताने विवाहित हैं, और तीनों की ही अपनी अपनी संतानें हैं। बड़ी पुत्री के पुत्र का तो विवाह अभी अभी संपन्न हुआ है।
धन धान्य की हमको कभी कोई कमी नहीं महसूस हुई - तीसरी संतान के आते आते, हमारा परिवार अत्यंत धनाढ्य हो गया। सलाद और अन्य नगदी फ़सलों का व्यवसाय शुरू करने के बाद, हमने एक डेरी भी स्थापित की, जिससे और भी लाभ हुआ। जान पहचान के सभी लोग हमारी मिसाल देते- और हमसे ईर्ष्या भी करते! कैसे घर की लक्ष्मी घर में ही रही और कैसे उसकी चक्रवृद्धि होती रही। हमारे बच्चे हमारे रक्त सम्बन्ध के बारे में जानते हैं। उनको मालूम है कि हम पति पत्नी होने से पहले, मौसी और भांजा थे।
लेकिन उससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता!
समाप्त!