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Romance मंगलसूत्र [Completed]

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Shetan

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इस पूरे वार्तालाप में अल्का नीचे की ही तरफ देखती रही।

मैंने बोल तो दिया था, लेकिन मुझे पूरा संदेह था की वो ऐसा कुछ कर भी सकती है। लेकिन अगर उसने यह कर दिया तो मज़ा आ जायेगा। आज पहली बार एक लड़की के अनावृत स्तन और योनि देखने को मिल सकेगा! संभव है, कि वो अपने अंगों को छूने भी दे! काफी देर के बाद हम अंततः अपने तालाब पर पहुँच गए। वहां पहुँच कर हम दोनों ही रुक गए। अल्का सर झुकाए वहां खड़ी हुई थी। मुझे लगा कि मैंने हमारी दोस्ती की सीमा का उल्लंघन कर दिया है, और इसीलिए अल्का उदास या नाराज़ है। यह बात मेरे मन में जैसी ही आई, मैंने उसको अपने गले से लगा लिया।

“अल्का, तुमको ऐसा कुछ करने की ज़रुरत नहीं! आई ऍम सॉरी! मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।”

“नहीं चिन्नू… सॉरी मत कहो! मुझे मालूम है कि तुम क्या चाहते हो! लेकिन… मैं नहीं जानती कि तुम्हारी इच्छा पूरी कर पाऊँगी या नहीं!”

“मोलू, ऐसे मत कहो!” मैंने पहली बार अल्का को उसके प्यार के नाम से बुलाया था, “तुमको कुछ करने की ज़रुरत नहीं! समझी?”

“नहीं चिन्नू… मेरी बात सुनो! तुम… मैं.... क्या तुम, मेरे कपड़े उतारोगे?”

“अल्का! तुम क्या कह रही हो?” मेरा सर चकरा गया।

“प्लीज मेरी बात सुन लो! मैं चाहती थी की मुझे बिना कपड़ो के वो देखे जिसे मैं प्यार करती हूँ.…”

उसकी बात सुन कर मैं भौंचक्क रह गया। ‘ये क्या कह रही है अल्का! मुझसे प्यार!?’

“तू तु तु तुम.... मुझसे प्यार?”

“हाँ मेरे भोले बाबू! लेकिन, इतनी जल्दी नहीं! आराम से!”

“आराम से? मतलब?”

“मतलब ये मेरे चिन्नू, कि यह सच है कि मैं तुमको चाहती हूँ.... लेकिन तुमको भी तो मुझसे प्यार होना चाहिए! है न?”

“पर मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ।”

“मुझे मालूम है। तुम मुझे प्यार करते तो हो... लेकिन, उस तरह से नहीं!”

“उस तरह से नहीं? मतलब? किस तरह से नहीं?”

“उस तरह जैसे एक प्रेमी, अपनी प्रेमिका को करता है!”

“मैं करुंगा!”

“मुझे मालूम है... तुम ‘करोगे’... लेकिन, तुम अभी तक नहीं करते!” अल्का मंद मंद मुस्कुरा रही थी।

“अल्का,” मैंने संजीदा होते हुए कहना शुरू किया, “मैं तुमको कभी भी, किसी भी तरह से दुःख नहीं दूंगा!”

“मुझे मालूम है, कुट्टन!” अल्का इस समय बहुत प्यार से बोल रही थी, बहुत ही संयत स्वर में! “तुम बहुत अच्छे हो! लेकिन मैं तुम पर किसी तरह का दबाव नहीं डालूँगी! लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूँ! बहुत लम्बे अरसे से करती हूँ।”

मेरे मष्तिष्क में इस समय घंटियां बज रही थीं। ह्रदय धाड़ धाड़ कर धड़क रहा था।

“कितना अच्छा हो, अगर हम दोनों साथ रह सकें! हमेशा!” अल्का बोलती जा रही थी।

“अल्का, मैं तुम्हारे साथ हूँ! और हमारा साथ में रहना आज से शुरू! आज से... अभी से... हमेशा के लिए!” मैंने मन ही मन निर्णय ले लिया था।

“सच में कुट्टन? सोच लो! मुझसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे कभी!”

“मेरी मोलू , मुझे तुमसे पीछा छुड़ाना भी नहीं है।”

अल्का की मुस्कराहट कुछ गहरी हो गई, “अभी तुमको मेरा शरीर नहीं मिला है, इसलिए तुम ऐसे कह रहे हो!”

मुझसे कुछ कहा नहीं गया।

“इसीलिए कह रही हूँ, इतनी जल्दी जल्दी नहीं!”

उसकी बात से मैं निराश हो गया।
Sirf bato se hi erotica ehsas amezing. But romantic jabardast he ye update superb.
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Sirf bato se hi erotica ehsas amezing. But romantic jabardast he ye update superb.

बढ़िया लगा जान कर कि आपको इस कहानी में आनंद आ रहा है।
ये मेरी लिखी हुई एकलौती इन्सेस्ट कहानी है... अब तक! इसलिए मेरे लिए अनोखी भी :)
 
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Rajizexy

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Nice story 👌👌👌
 
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Shetan

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बढ़िया लगा जान कर कि आपको इस कहानी में आनंद आ रहा है।
ये मेरी लिखी हुई एकलौती इन्सेस्ट कहानी है... अब तक! इसलिए मेरे लिए अनोखी भी :)
Muje jese time mil raha he. Me story padh rahi hu. Ye story bhi puri padhungi.
 
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Shetan

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उसी समय धनेश (हार्नबिल) पक्षी की आवाज़, उस हरे भरे निस्तब्ध वातावरण में गूंजने लगी। हम दोनों का ही ध्यान उसी तरफ आकर्षित हो गया। आँखें बंद कर के अगर लेट जाओ, तो वो गूँज सुन कर गहरी, सुख भरी नींद आ जाए। अल्का धीरे से मुस्कुरा दी।

“ये आवाज़ सुन रहे हो कुट्टन? इसको वेळम्पल पक्षी कहते हैं।”

“कितनी सुन्दर आवाज़ है!”

“आवाज़ से भी सुन्दर ये दिखने में होता है।”

मैं चारों तरफ देखने लगा कि शायद दिख जाए। अल्का कुछ देर न जाने क्या सोच कर चुप रही, फिर आगे बोली,

“और दिखने से भी अधिक सुन्दर होता है इसका व्यवहार! बहुत ही कम पशु पक्षी हैं कुट्टन, जो अपने पूरे जीवन को केवल साथी के संग बिता देते हैं। नर और मादा वेळम्पल हमेशा साथ-साथ रहते हैं। जब मादा अपने अंडे देती है, तो किसी पेड़ के कोटर के अंदर बैठ जाती है। दोनों उस कोटर को पलस्तर कर के बंद कर देते हैं और सिर्फ उतना खुला रखते हैं जिससे कि नर वेळम्पल अपनी साथी के लिए खाना पानी ला सके।”

अल्का उत्साह के साथ मेरा ज्ञान वर्द्धन कर रही थी।

“नर वेळम्पल यह काम लगातार करता है - पूरी लगन से। मतलब अण्डों से जब बच्चे निकल आते हैं, तो उनके भी खाने पीने की व्यवस्था नर ही करता है। और तब तक करता है, जब तक बच्चे कुछ बड़े नहीं हो जाते। खुद वो बेचारा कमज़ोर हो जाता है, लेकिन अपने परिवार को किसी तरह की कमी नहीं होने देता। पारिवारिक दायित्व संग-संग निभाने में इस पक्षी का कोई जवाब नहीं। वेळम्पल पक्षी का प्रेम हमें पारिवारिक प्रेम के लिए क्या नहीं सिखाता है..!”

अल्का चुप तो हो गई, लेकिन उसकी इस चुप्पी में बड़े रहस्य भरे हुए थे। लेकिन वेळम्पल की गूँज मुझे खुद अपने समर्पण, अपने प्रेम की विवेचना करने पर विवश कर रही थी। वेळम्पल पक्षी - उन पर तो विवाह जैसे सामाजिक बंधन नहीं हैं। फिर भी अपने साथी के लिए उनमें पूर्ण समर्पण का भाव होता है। और दोनों ही उस भाव को पूरे उत्साह से निभाते हैं। क्या मेरे मन भी अल्का के लिए वैसा ही समर्पण का भाव है? या यह सिर्फ शारीरिक आसक्ति है? नहीं नहीं, यह सिर्फ शारीरिक आसक्ति तो नहीं है! रोमांटिक ख्याल तो अभी अभी आने शुरू हुए हैं। लेकिन अल्का के लिए प्रेम और आदर तो हमेशा से ही है। और जहाँ तक परिवार सम्हालने की बात है, तो खेती में जो अभी हाल फिलहाल की बरकत है, उसका कुछ श्रेय तो मुझे जाना ही चाहिए। आगे का आगे सीख लूँगा। अगर अल्का ने मुझे स्वीकार किया है, तो मैं भी तो उसको अपने जीवन में स्वीकार करना चाहता हूँ। बस, उससे यह सब कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी अब तक। सच में कितना अच्छा हो, अगर अल्का और मैं, हम दोनों हमेशा साथ रह सकें! एक परिवार के जैसे! एक विवाहित जोड़े के जैसे! एक पति-पत्नी के जैसे! सच में! कितना अच्छा हो!

‘विवाह!’ वह तो सांसारिक बंधन है। बंधन जो निभाना पड़ता है। लेकिन अलका के साथ मैं मन के बंधन में बंधना चाहता हूँ। बंधन जो मैं निभाना चाहता हूँ। वो बंधन जिससे मैं शरीर से और मन से, अलका से जुड़ जाऊँ। सम्बन्ध ऐसा हो कि हम बस अखंड प्रेम में लीन रहें। आज संसार में जहाँ बच्चे अपने घरों के भीतर भी सुरक्षित नहीं हैं, वहाँ कि वेळम्पल पक्षियों की पारिवारिक अवधारणा कितनी महान है! सच में! वेळम्पल पक्षियों का प्रेम हमें क्या नहीं सिखाता! हम खुद को अन्य जीवों से श्रेष्ठ समझते हैं। लेकिन हम इनसे कितना कुछ सीख सकते हैं!

“कुट्टन मेरे, किस सोच में डूब गए तुम?”

अल्का ने मुझे इतनी देर से चुप और गहराई से सोचते हुए देख कर कहा।

मैंने ‘न’ में सर हिलाया और कहा, “कुछ नहीं मोलू!”

“चिन्नू, मैं तुमको मना नहीं करूंगी - तुम खेलो मेरे शरीर से! तुमको मेरी इजाज़त है! मुझे मालूम है कि तुम्हारा मन होता होगा स्त्री का संसर्ग पाने का। मैं तुमको उस सुख से वंचित नहीं करूँगी। लेकिन तुम मेरे मन के मालिक तभी बनोगे, जब तुमको भी मुझसे प्रेम हो जाएगा!”

“मोलू, तनिक एक पल ठहरो। तुमने इतनी सारी बातें कहीं हैं, अब मेरी भी एक दो बातें सुन लो। मुझे घुमा-फिरा कर कहना तो नहीं आता, लेकिन फिर भी मेरी एक दो बातें सुन लो।” अल्का चुप हो कर मेरी तरफ देखने लगी कि मुझे क्या कहना है।

“घर में सबसे छोटा होने का नुकसान भी है। कोई सीरियसली ही नहीं लेता। कितने ही साल हो गए जब मैंने पहली बार अम्मा से कहा कि मुझे तुम पसंद हो। अम्मा ने पूछा था मुझसे कि तुमको अल्का क्यों पसंद है। तब मैंने उनको कहा कि तुम अकेली हो, लड़की हो, और फिर भी खेती जैसा कठिन काम करती हो। और बखूबी करती हो। अम्मम्मा की पूरी देखभाल करती हो। सब काम सिर्फ अपने दम पर करती हो। किसी से कुछ नहीं माँगती। बस, देती रहती हो। इस समाज के सभी लोग तुमको आदर की नज़र से देखते हैं। मैं ख़ुद तुम्हारा बहुत आदर करता हूँ। तब अम्मा ने मेरी बात को बचपना समझ कर हँसी में उड़ा दिया। बोलीं, कि होने वाली पत्नी का आदर, वो भी अभी से! जैसे कि पत्नी का आदर नहीं करना चाहिए!”

अल्का अवाक् सी हो कर मेरी बात सुन रही थी। पता नहीं उसको मेरी बातों का यकीन भी हो रहा था या नहीं।

“तुम्हारे सब गुण मैंने किसी भी लड़की में नहीं देखे। अम्मा में भी नहीं। तुम कर्मठ हो। लेकिन मृदुभाषी भी हो। अम्मा और अच्चन के जैसे चिड़चिड़ी नहीं हो। तुमने मुझे एक व्यक्ति के रूप में देखा है, और चाहा है। तुमने मुझे अपने तरह से आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया है। बाकियों ने बस अपनी मर्ज़ी थोपी है मुझ पर। मुझे तुम्हारे गुण आकर्षित करते हैं। मुझे इन कारणों से लगता है कि तुम मेरे लिए परफेक्ट हो! मैं भले ही तुम्हारे गुणों के सामने नहीं टिकता, लेकिन प्यार तो तुमको बहुत करता हूँ।”

मैं जितनी गंभीरता और सच्चाई से यह बात कर सकता था, वो मैंने कहा।

“बचपन से ही तुम मेरी सबसे ख़ास दोस्त रही हो! मेरी फेवरेट! पूरे घर में किसी से भी ज्यादा ‘तुमको’ मेरे बारे में मालूम है। मुझे दुनिया में तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार है। मैं यह तो नहीं कहूँगा कि मुझे तुम्हारे शरीर में आसक्ति नहीं है। बिलकुल है, और बहुत है। लेकिन उससे अधिक मेरे मन में तुम्हारे लिए एक प्रबल और स्मरणीय स्नेह है। मुझे तुम चाहिए, बस तुम।”

“क्या सच, चिन्नू?” अल्का वाकई मेरी इस बात पर आश्चर्यचकित हो गई। उसकी आँखें नम हो चलीं थीं, “तुमको मालूम है? तुम्हारी इस एक बात ने मुझ पर क्या असर किया है?”

मुझे तो बस यही उम्मीद थी, कि उसको मेरी बात और उसके लिए मेरे मन में प्यार का अनुमान और भरोसा हो सके! उसने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में ले कर बहुत देर तक मुझे यूँ ही देखा, और फिर कहना जारी रखा,

“कुट्टन मेरे, मैं तुमको यह अधिकार देती हूँ कि तुम मेरे कपड़े उतार सको! .... तुम मुझे नंगा देख सकते हो!”

“नहीं मोलू, अब उसकी ज़रुरत नहीं है!”
Ek ladki ko pyar ka izhar karna hamare samaj ke hishab se bahot mushkil hota he. Sath hi ye jan na ki ladke ko ladki kyo pasand he. Prem aur akarshan me farak he. Akarshan khatam ho jata he. Par prem nahi. Bahot jabardast. Maza aa gaya. Romantic seen dill me khal bali machane ke lie kafi he
 
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Shetan

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अल्का मुस्कुराई, “कुट्टन मेरे, ज़रुरत है। तुमको मेरी चाह है, तो मुझको भी तो तुम्हारी चाह है! है न!”

“क्या?” मेरे गले से आवाज़ निकलनी बंद हो गई।

उसने मुस्कुराते हुए बस ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैं काफी देर तक जड़वत खड़ा रहा, कुछ कहते या करते नहीं बना!

“जानू, जल्दी ही शाम हो जायेगी! नहाना नहीं है?” अल्का फुसफुसाई। मुझे वो और कितना उकसा सकती है!

बात तो सही थी! लेकिन फिर भी मेरे शरीर में उतनी तेजी नहीं आई - संभवतः, मैं अल्का को निर्वस्त्र करने की जल्दी में नहीं था। लेकिन बस यह ख़याल कि मेरी हर हरकत से उसका मूर्त रूप सामने आता जाएगा, बहुत ही रोमांचक और विलक्षण था। और मैं इस दृश्य के हर एक रसीले पल को अच्छे से अपनी आँखों में सोख लेना चाहता था।

मैंने हाथ बढ़ाया, और उसकी शर्ट का एक बटन खोल दिया, और उसकी आँखों में झाँका। मुझे प्रेरित करने के लिए वो मुस्कुराई। हम दोनों के ही माथे और होंठ के ऊपर पसीने छलक आए थे। गर्मी का प्रभाव था, या फिर घबराहट का? शर्ट के छः बटन खोलने में कम से कम दो मिनट तो लग ही गए होंगे। न जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था कि यदि यह काम जल्दी में किया तो अल्का को चोट न लग जाए! शर्ट के पट एक दूसरे से अलग तो हो गए, लेकिन अल्का की हरी झंडी के बाद भी मैं शर्ट के पट को उसके शरीर से अलग नहीं कर पा रहा था। मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए अल्का ने स्वयं ही शर्ट अपने शरीर से उतार कर अलग कर दी। वो सफ़ेद रंग की साधारण सी ब्रा पहने हुए थी। आगे मैंने जो किया वो उसके लिए भी अप्रत्याशित था - संभवतः वो सोच रही होगी कि अगला नंबर उसकी ब्रा का था, लेकिन मैंने उसकी जीन्स को निशाना बनाया। उसकी जीन्स उतारते समय मैं अधिक बेधड़क था।

अल्का कुछ देर ऐसे खड़ी रही - मेरे अगले कदम की प्रतीक्षा में, लेकिन जब मैंने कोई हरकत नहीं दिखाई, तो वो स्वयं ही मेरे सामने मुड़ गई, और इस समय उसकी पीठ मेरे सामने हो गई। मेरे लिए संकेत स्पष्ट था - उसके स्तनों को मुक्त करने का समय आ गया था। काँपते हाथों से उसकी ब्रा का हुक खोला और बाकी का काम उसने ही कर दिया। मुझे मालूम था कि मेरे सामने पीठ किये खड़ी इस लड़की के स्तन अब अनावृत हो चले हैं। लेकिन, काम अभी भी बचा हुआ था। मैं घुटने के बल ज़मीन पर बैठ गया और धीरे धीरे उसकी चड्ढी उतारने लगा। पाँच मिनट तक चले इस वस्त्र-हरण कार्यक्रम को करते हुए मुझे ऐसा लगा कि जैसे घंटो बीत गए!

अपने स्तनों को हाथों से ढके हुए अल्का मेरी तरफ मुड़ी - योनि छुपाने का उसने कोई प्रयास नहीं किया। सच कहूँ, तो मुझे किसी भी तरह की उम्मीद नहीं थी कि हमारे बीच जो बात मज़ाक मज़ाक में शुरू हुई थी, वो इतनी गंभीर हो जाएगी। हम दोनों की सांसे अब धौंकनी के जैसे चलने लगीं थीं, मेरा शिश्न उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ऊर्ध्व हो गया था, और पैंट के अंदर से बाहर होने को आतुर हो रहा था।

मैंने अल्का के दोनों हाथों को प्रेम से पकड़ कर हटाया - जो दिखा उसकी तो मैं बस कल्पना ही कर सकता था! आशा के अनुरूप, अल्का के सीने पर शानदार और ठोस स्तनों की अभिमानी जोड़ी उठी हुई थी। मेरी तर्जनी के नोक के आकार के समान ही गहरे भूरे रंग के चूचक, और उनके चारों तरफ तीन इंच का भूरे रंग का वृत्ताकार घेरा! वो घेरा सपाट नहीं था, बल्कि स्तनों पर से उठा हुआ था। कभी ताजमहल का गुम्बद देखा है? ठीक उसी के जैसे अल्का के स्तनों के तीन भाग थे - सबसे नीचे एक चिकना शुद्ध अर्द्ध-गोला, उसके ऊपर भूरे रंग की एक एक वृत्ताकार टोपी, और उसके भी ऊपर मेरी तर्जनी की नोक के आकार के चूचक! मेरी दृष्टि नीचे की तरफ गई - उसकी दोनों जांघों के बीच बहुत सहेज कर रखा हुआ घने बालों का एक नीड़ (घोंसला) था, और उसी नीड़ में छुपा हुआ था, अल्का का प्रेम-कूप!

“अल्का...” मेरे मुंह से बढ़ाई के शब्द अपने आप ही फूट पड़े, “तुम बहुत सुन्दर हो! आई ऍम सो लकी!”
Amezing...
 
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Shetan

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अल्का मेरे पास आकर लेट गई। मेरे बगल लेटे हुए वो बोली, “जानू, तुमने आज पहली बार किसी लड़की को नंगा देखा है?”

अल्का से मैंने कभी भी झूठ नहीं कहा था, तो मैं आज शुरू नहीं करने वाला था। भले ही मैं अनाड़ी क्यों न लगूँ ,

“हाँ। .... पहली बार है!”

“मुझे लगा!” वो हलके से हंसी - हंसने से उसके दोनों स्तन हिल गए।

“तुम्हे शायद मेरी बात का भरोसा नहीं होगा, लेकिन तुम भी वो पहले मर्द हो जिसको मैंने नंगा देखा है।”

‘क्या उसने मुझे मर्द कहा?’

न जाने क्या सोच कर मैंने पूछा, “तुमने अभी तक शादी नहीं करी, उसका कारण तो मालूम है। लेकिन, कम से कम कोई बॉयफ्रेंड तो बना लेती?”

“इस जगह में और बॉयफ्रेंड? मज़ाक कर रहे हो?” अल्का का हंसना जारी था, “और.... मैंने तो अपना दिल पहले ही तुमको दे दिया था। ऐसे कैसे किसी और से शादी कर लेती या उसको बॉयफ्रेंड बना लेती?”

“तुम्हे कैसे पता था की मैं तुमको अपनी गर्लफ्रैण्ड मान लूँगा?” मैंने पूछा।

“मुझे नहीं मालूम था। लेकिन… अगर तुम मुझे अपना न मानते, तो ही मैं किसी और की तरफ देखती।”

मैं चुप हो गया। अल्का सचमुच मुझे बहुत प्यार करती है, और यह बात तो साफ़ हो चली थी। कुछ देर के बाद उसने करवट बदल कर मेरी तरफ देखा, और बहुत ही शांत स्वर में कहा, “मेरे कुट्टन, मुझे कल के अपने सपने के बारे में बताओ! जिसके कारण तुम्हारा... अह...”

हमने सपने में क्या किया था, वो मैं अल्का को नहीं बताना चाहता था। अभी भी मेरे मन में यह बात थी कि कहीं वो नाराज़ न हो जाय। मैंने टालने की सोची,

“कुछ नहीं! ऐसे ही कुछ हुआ होगा।”

“मेरे कुट्टन, तुमको क्या अभी भी यह लगता है कि तुमको मुझसे किसी तरह का पर्दा करना चाहिए?”

उसकी बात तो सही थी। हमारे बीच में अब क्या पर्दा? अल्का को इतना तो मालूम ही था कि वो मेरे सपने में आई थी, और हमने सपने में जो भी कुछ किया था उसी का परिणाम बिस्तर, चद्दर और मेरे शॉर्ट्स पर अंकित था। जाहिर सी बात है की मैंने मैथुन के बारे में सपना देखा था - अल्का के साथ मैथुन! और वो जानना चाहती थी की मैं अपने अंतर्मन में उसके बारे में क्या कुछ सोचता हूँ, तो उसको बताने में कोई हर्जा नहीं था। और बताना ही क्यों, कर के दिखाना भी चाहिए!

मैं भी वहीं घास पर करवट ले कर अल्का के बगल ही लेट गया - अब हम दोनों एक दूसरे की तरफ ही देख रहे थे। उसकी आँखों में देखते हुए मैं बताना शुरू किया,

“सपने में हम दोनों ऐसे ही लेटे हुए थे, जैसे अभी हैं। लेकिन हम समुद्र के किनारे बीच पर लेटे हुए थे। पूरी तरह नंगे! जैसे अभी हैं। लेकिन हम दोनों एक दूसरे को स्पर्श कर रहे थे।”

कहते हुए मैंने बढ़ाया, और उसके एक स्तन को अपनी हथेली में भर लिया। उस स्तन को प्यार से मसलते हुए मैंने कहा, “मैं कुछ इसी तरह एक हाथ से तुम्हारे मुलाक्कल (स्तन) सहला रहा था।”

और दूसरे हाथ को अल्का की योनि के ऊपर रख कर कहा,

“और दूसरे हाथ से यहाँ, तुम्हारी पूरू (योनि) को सहला और छेड़ रहा था!”

कह कर मैंने अपनी एक उंगली को अल्का की योनि की दरार में फंसाया, और हलके हलके कोमलता से ऊपर नीचे करते हुए उसको सहलाया। अल्का के गले से मीठी सिसकी निकल गई। उसने अपनी एक टांग कुछ ऊपर उठा ली, जिससे मेरे हाथ को अपना कार्य करने के लिए कुछ अधिक स्थान मिल सके। मैंने भी स्वच्छंद हो कर हाथ से ही अल्का की योनि का अच्छे से जायजा लिया।

“तुमने कहा था की हम एक दूसरे को छू रहे थे! क्या मैं तुमको यहाँ छू रही थी?” अल्का ने अपनी हथेली से मेरे स्तंभित लिंग को कसते हुए कहा।

“हाँ!” अल्का की छुवन मदमस्त कर देने वाली थी। मेरी आवाज़ बस एक फुसफुसाहट ही रह गई थी।

“हम एक दूसरे को आनंद दे रहे थे! कामुक आनंद!”

अल्का मुस्कुराई, “तुमको पता है चिन्नू, मैं भी तुम्हारे ही सपने देख रही थी।”

“सच में! क्या देखा?”

“वही… वही, जो तुमने देखा!” कहते हुए अल्का ने अपनी आँखें बंद कर ली, और मंद मंद मुस्कुराने लगी।

मैंने उसका स्तन-मर्दन और योनि-भेदन जारी रखा। वो खुद भी मेरे लिंग को दुह रही थी। उसमें से वीर्य की कुछ बूँदें रिसने लगीं थीं। मुझे आनंद आ रहा था - अल्का की हरकतों से भी, और उसके शरीर की कोमलता / कठोरता और नमी सभी से! वो बहुत उत्तेजित हो गई थी - उसकी योनि रस से सराबोर हो गई थी। मेरी उंगली अभी तक उसकी योनि में प्रविष्ट नहीं हुई थी - लेकिन वहां बढ़ती चिकनाई के कारण एक बार अचानक ही मेरी उंगली उसके प्रेम-कूप में प्रविष्ट हो गई! मेरा लिंग नहीं - कोई बात नहीं - कम से कम मेरी उंगली तो उसके भीतर पहुंची! उंगली भीतर जाने के साथ ही मेरे अंगूठे ने उसके भगनासे को छेड़ना आरम्भ कर दिया। अल्का आनंद से अपने चूतड़ हिलाने लगी - छोटे छोटे वृत्तों में, और कुछ इस प्रकार कि मेरा अंगूठा और उंगली अधिक से अधिक उसकी योनि से छेड़खानी कर सकें! उसका भगनासा आनंद में सूज गया।

अपने हाथ से हस्त-मैथुन करना, और अल्का के हाथ से हस्त-मैथुन होने में काफी अंतर था। यह वो अनुभव था, जैसा न मैंने कभी महसूस किया, और ना ही जिसकी कभी कल्पना करी! मुझे मालूम था की जल्दी ही सपने के जैसे ही अल्का का हाथ भी मेरे वीर्य से भीगने वाला था। मेरे अंदर दबाव बढ़ता जा रहा था। उधर, अल्का ने भी अपने चूतड़ों के घूर्णन की गति बढ़ा दी थी। वो अब कराहने भी लगी थी, और मेरे हाथ में धक्के भी लगाने लगी थी।

अचानक ही उसको न जाने क्या हुआ, उसने मेरा सर अपनी तरफ खींच कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। ऐसा अप्रत्याशित चुम्बन! और उधर मेरे लिंग का दोहन जारी था। ऐसा आनंद, ऐसा सुख मैंने कभी नहीं पाया था! मुझे उसी क्षण यह ज्ञात हो गया की अब मेरी नियति और अल्का की नियति साथ आ चुकी है। मेरे अंदर बढ़ते दबाव को रोकने वाला बाँध अचानक ही टूट गया! मैंने पहली बार अपने चूतड़ों को अल्का के हाथ में धकेला - और उसी समय वीर्य की एक मोटी धार हवा में छूट निकली। यह पहला विस्फोट अल्का के पेट पर जा कर गिरा, और उसके बाद के छोटे छोटे विस्फोटों ने उसके हाथ को पूरी तरह से भिगो दिया।

मुझसे रहा न गया - आनंदातिरेक से मैं कराह उठा। उधर अल्का भी अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँच गई थी।

“हाय अम्मा!” की पुकार के साथ ही उसकी जाँघों ने मेरे हाथ को जकड़ लिया। हम दोनों वहीं पड़े हुए अपने शरीर में उठने वाले अनगिनत कामुक कम्पनों का आनंद लेते रहे। बहुत देर तक हमने कुछ न कहा, और न ही अपनी जगह से हिले। अंत में अल्का ने पूछा,

“सपने में ऐसा ही हुआ था?”

“हा हा! हाँ, कुछ कुछ! लेकिन, सपना याद थोड़े ही रहता है। अभी जो हुआ, वो कहीं ज्यादा बेहतर था! ...और तुम्हारे सपने में?”

“ऐसा ही! लेकिन सच में, वास्तविकता में यह बहुत मज़ेदार है!”

अल्का ही सबसे पहले उठी।

“मेरे चिन्नू बाबू, नहाया धोया सब बेकार गया! चलो जल्दी से नहा लेते है, और घर चलते हैं! बहुत देर हो गई।”

हमने जल्दी से पानी में डुबकी मारी, और अपने कपड़े पहने। न तो अल्का ने, और न ही मैंने अपने अधोवस्त्र पहने। गीले शरीर पर कसी हुई जीन्स और शर्ट पहनने में अल्का को बहुत दिक्कत हुई। एक तरह से कपड़ा उसके शरीर पर चिपक सा गया था। और चलने पर ऐसा लगता जैसे उसके चूतड़, इस कैसे हुआ कपड़े में छटपटा रहे हों!

“अल्का, इसको क्या कहते हैं?” मैंने उसके नितम्ब देखते हुआ पूछा।

“कुण्डी!” अल्का ने मुस्कुराते हुए कहा। मेरा लिंग पुनः तन गया।
Pata nahi kyo ladko ko esi bate karne me kya maza aata he. Ye izhar karne ke bad bhi apna name hotho bar lane pe majbur karna. Amezing update
 
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Shetan

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“यह तो प्रेम गीत है, कुट्टन! लोरी नहीं!”

“हाँ! प्रेम गीत है, मेरी जान!”

“तो फिर इतना सुन्दर गीत सुन कर मुझे नींद कैसे आएगी? बोलो भला!”

“ओहो! गलती हो गई फिर तो!” मैंने थोड़ा नाटकीय तरीके से कहा, “अब क्या करें?”

“अब? अब ये करो मेरे चेट्टा कि तुमने मुझे इतना सुन्दर प्रेम गीत सुनाया है, तो मैं भी तुमको अपना प्रेम देती हूँ। आओ, तुमको अपने पृयूरों का स्वाद चखा दूँ?”

मैं एकदम से उत्साहित हो गया। लेकिन मैं कुछ करता, उसके पहले अल्का ने कहा,

“लेकिन तुमने यह (मेरे शॉर्ट्स की तरफ संकेत कर के) क्यों पहन रखा है? अब से तुम बिना कपड़ों के मेरे साथ सो सकते हो।” उसने शर्माते हुए आगे कहा।

मैंने झट पट अपना शॉर्ट्स उतार दिया! इससे अच्छा क्या हो सकता है भला। मैं तो बस मर्यादा के कारण उसको पहनता जा रहा था। पूर्णतया निर्वस्त्र होने के बाद मैंने अपनी अल्का को मन भर कर निहारा। कमरे की टिमटिमाती रोशनी में जगमगाती मेरी अल्का कितनी सुन्दर लग रही थी! सुन्दर.... और प्यारी! उसके सीने पर उसके सुन्दर से मुलाक्कल और उनके दोनों मुलाक्कन्न सुशोभित हो रहे थे। लेकिन आश्चर्य है कि न जाने क्यों, उसको ऐसी अवस्था में देख कर भी मेरे मन में कोई कामुक भाव नहीं जगे। उसको ऐसे देख कर कुछ ऐसा लगा कि जैसे वो कोई गुड़िया हो, जिसको सहेज कर रखा जाए। मैं अपने इस ख़याल पर मुस्कुरा उठा। अल्का ने मुझे मुस्कुराते देखा, तो आँखों के इशारे से उसने पूछा ‘क्या?’ और मैंने सर हिला कर उत्तर दिया, ‘कुछ नहीं’..

मैंने साँस भर कर धीरे धीरे से उसके दोनों मुलाक्कन्न पर फूँक मारी। उमस और गर्मी के सताए दोनों कोमल अंग थोड़ी सी राहत पाते ही सक्रिय हो उठे। दोनों मुलाक्कन्न पहले लगभग सपाट थे, लेकिन फूँक मारने के कुछ ही क्षणों में वो दोनों उठने लगे। अल्का और मैं दोनों ही इस बात पर मुस्कुरा उठे।

“बदमाश!” उसने धीरे से कहा।

मैंने नीचे झुक कर बारी बारी से दोनों को चूमा, और फिर उसके एक मुलाक्कन्न को मुँह में ले कर कोमलता से चूसने लगा। अल्का के गले से एक मीठी सिसकारी निकल गई। उसकी आँखें बंद हो गईं। कोई दो मिनट उसको चूसने, दुलारने के बाद मैंने दूसरे मुलाक्कन्न पर भी वही सब किया, जिससे वो बुरा न मान जाए। अल्का नीचे काँपती हुई इस अनोखे कृत्य का अनुभव कर रही थी। मुझे नहीं मालूम था कि यह सब करने से एक नारी को क्या अनुभव होता है। मेरे लिए तो यह सब बिलकुल नया था।

“कैसे लगे पृयूर?” जब मैंने स्तनपान बंद किया, तो अल्का ने पूछा।

“बहुत मीठे!”

“बदमाश है चिन्नू मेरा.... और झूठा भी!” कह कर उसने मुझे गले से लगा लिया।

अगला काम मैंने उसकी चड्ढी उतारने का किया। वो थोड़ी सी तो हिचकी, लेकिन फिर उसने खुद ही अपने नितम्ब उठा कर निर्वस्त्र होने मेरे मेरी मदद करी। इस समय तक मुझे कामोत्तेजना से पागल हो जाना चाहिए था। लेकिन मुझे खुद ही आश्चर्य हुआ कि वैसा कुछ नहीं हुआ। जब मेरी अल्का पूर्ण नग्न हो गई, तब मैंने तसल्ली से उसके शरीर के हर हिस्से को चूमा। फिर कहा,

“मोलू, अब तुम मेरी हो। मेरा सुख, दुःख, प्रेम, क्रोध, सब कुछ, सब तुमसे है और तुमको समर्पित है। एक बार मेरा प्रोजेक्ट ख़तम हो जाए, फिर मैं खुद अम्मम्मा से तुम्हारा हाथ परिणय में मांग लूँगा। अम्मा और अच्चन को मैं मना लूँगा। वो दिन दूर नहीं, जब हम सात जन्मों के लिए बंध जाएँगे!”

मेरी बात सुन कर अल्का मुस्कुरा उठी और उसकी आँखों में आँसू भर गए। वो भावातिरेक में आ कर मेरे आलिंगन में बंध गई। हम दोनों कब सो गए, कुछ याद नहीं।
Pyar me nadaniya bhi saf zalak rahi he. Amezing....
 
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वो मुझे हाथ से पकड़ कर एक तरफ ले गई और पूछने लगी,

“जानू, तुम क्यों ऐसा कर रहे हो?” उसकी आवाज़ में दुःख, चिंता, गुस्सा और प्रायश्चित सब कुछ था।

“क्यों!” मैंने उसका हाथ झटक कर बोला, “मैं क्या कर सकता हूँ, और क्या नहीं, मुझे यह सब तुमसे पूछ कर करना पड़ेगा?”

“नहीं जानू!”

“और ये जानू वानू क्या है? ये सब नाटक कहीं और करो!”

“नाटक?” अल्का की आँखों से आँसू गिरने लगे।

“और नहीं तो क्या? खाली कहने भर का जानू हूँ! हाथ तक तो लगाने देती नहीं!”

“आई ऍम सॉरी जानू। तुम कल रात के लिए गुस्सा मत हो! मैंने तुमसे कुछ सब्र करने को ही तो कहा था। और तुम मेरी इतनी सी बात भी नहीं मान रहे थे! इसी कारण मुझे गुस्सा हो आया।”

“वाह वाह! बोल तो ऐसे रही हो जैसे कि तुम मेरी सभी बातें मान जाती हो।”

अचानक ही बारिश शुरू हो जाती है। घनघोर वर्षा! हमारा झगड़ा सुन कर चिन्नम्मा भी रसोई से बाहर निकल आई।

“तुम्हें इस बात पर शंका है?” अल्का ने पूछा।

मैं गुस्से से धौंक रहा था। कुछ बोल नहीं सका।

“कुट्टन,” अल्का आंसुओं के बीच कह रही थी, “मैं तुम्हारा कहा कभी नहीं टाल सकती। तुम बस कह कर तो देखो!”

“अच्छा! और वह क्यों?”

“ये भी पूछोगे, जानू? मैंने तुमको अपने पति का दर्जा दिया है।” अल्का की हिचकियाँ बंध गई थीं।

“अच्छा, तो मैं तुम्हारे पति की हैसियत से कहता हूँ की चलो, और पूरी नंगी हो कर यहीं अहाते में खड़ी हो जाओ, जब तक मैं चाहूँ!”

अल्का रो रही थी, और चिन्नम्मा हमारी बातें सुन कर भौंचक्क थी। उसका मज़ाक तो सच निकला! मज़ाक क्या, संदेह तो हो ही गया था। बस अब प्रमाण मिल गया। अल्का ने न तो कुछ कहा, और न ही किया, बस वहीं खड़ी हुई रोती रही।

“नहीं करोगी न! मालूम था!” कह कर मैं जाने लगा।

“किसी को यह सब मालूम पड़ा तो माँ मेरी खाल खींच लेगी! और तुम्हारी माँ भी।”

“कहने को तो तुम मुझे अपना पति कहती हो! तो बताओ, तुम पर किसका अधिकार ज्यादा है? माँ का, या पति का?”

मेरी यह बात सुनते ही अल्का ने अचानक ही रोना बंद कर दिया। वो धीरे धीरे चलते हुए आँगन में पहुंची, और मेरे और चिन्नम्मा के सामने वहीं आँगन में एक एक कर के अपने शरीर से कपड़े का आखिरी सूत तक उतार दिया, और बारिश में पूर्ण नग्न खड़ी रही। मुझे उम्मीद ही नहीं थी की अल्का ऐसा कर भी सकती है। कुछ ही देर में उसके शरीर से बारिश के पानी की अनेकानेक धाराएं बह निकलीं। मेरी नज़र अचानक ही उसकी योनि पर पड़ी - वहां से पानी से मिल कर लाल रंग की धारा बह रही थी। तब मैंने ध्यान दिया की उसके उतारे हुए कपड़ों में सैनिटरी नैपकिन भी थी।

‘खून?’ यह विचार दिमाग में आते ही मैं उसकी तरफ दौड़ा।

“अल्का! ये क्या? खून?” वहां पहुँच कर मैंने उसकी योनि को छुआ, मेरी हथेली खून से रंग गई।

“इसीलिए तो मैंने तुमको सब्र करने को बोला था, मेरे कुट्टन!” अल्का ने थकी हुई मुस्कान के साथ कहा। मैंने अल्का को गले से लगा लिया। उसने मेरे गालों को हाथ में ले कर कहा, “इतने सालों से अपना सब कुछ मैंने तुम्हारे लिए ही बचा कर रखा है! तुम भी तो कुछ सब्र कर लो, जानू!”

अल्का ने बस इतना ही कहा, और बिलख बिलख कर रोने लगी।
Amezing muje laga hi tha. Masik ke wakt nari me chid chida man aa hi jata he. Thappad ka karan mene puchha nahi. Pyar me nadani dono ki zalak rahi he. Nis pap prem
 
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कोई एक मिनट के बाद दरवाज़े के उस तरफ से से अम्मा की दबी हुई आवाज़ आई,

“तुम दोनों का हो गया हो तो बाहर आ जाओ... कुछ बात करनी है।”

अल्का और मैं दोनों ही चौंक गए। इसका तो साफ़ मतलब है कि अम्मा ने हमको सम्भोग करते देख या सुन लिया था। अब इस बात का उन पर कोई और प्रभाव हुआ हो या नहीं, कम से कम उनको इतना तो मालूम हो गया होगा कि हम दोनों अपने प्रेम सम्बन्ध में बहुत आगे बढ़ गए थे, और बहुत गंभीर भी थे। हम अपने कपड़े पहनने लगे तो अम्मा ने कहा,

“अगर मन करे तो ऐसे ही आ जाओ.. अपनी अनियत्ति की चाँदनी मैं भी तो देखूँ...” उन्होंने अर्थपूर्ण तरीके से कहा।

हमको तुरंत समझ में आ गया कि अम्मा हमको बहुत देर से देख / सुन रही थीं, और उन्होंने हमको सब कुछ करते और कहते देखा और सुना है। अब उनके सामने किसी भी प्रकार का स्वांग करने से कोई लाभ नहीं था। तो हम दोनों अनिच्छा से वैसे ही उठ कर, दबे पाँव कमरे से बाहर चले आए। बाहर आ कर जब हम अम्मा के समीप आए तो हमने देखा कि अम्मा भी केवल पेटीकोट और ब्रा ही पहनी हुई है। उनको ऐसे तो मैने कभी भी नहीं देखा था - मतलब आसार ठीक ठाक ही हैं!

“चेची मैं..” अल्का कुछ कहने को हुई लेकिन अम्मा ने उसकी बात बीच में ही काट दी।

“तुमको कोई सफाई देने की ज़रुरत नहीं है, मोलूटी! अगर तुम अपने ही चेट्टन से प्रेम नहीं करोगी तो किसके साथ करोगी?”

“चेची ?”

“हाँ मेरी प्यारी बहना.. तुमको कुछ कहने की आवश्यकता नहीं... ! इधर आ... तू भी इधर आ अर्चित! हम लोगों की
बाते सुन कर कहीं अम्मा जग न जायें!”

हम तीनों दबे चुपके, कम आवाज़ करते हुए कमरे से बाहर निकल कर अहाते में आ गए। बारिश अभी भी हो रही थी और ठंडी हवा चल रही थी। अभी भी अँधेरा था, लेकिन हम एक दूसरे की आकृतियाँ ठीक से देख पा रहे थे। माँ ने प्यार से अल्का के गाल को छुआ और कहा,

“तुम बहुत अच्छी हो मोलूट्टी... बहुत प्यारी.. और बहुत सुन्दर भी ! अर्चित बड़े भाग्य वाला है!”

“चेची!?”

“हाँ मेरी बच्ची! जब तुम दोनों साथ में प्रसन्न हो, तो मैं क्यों तुम दोनों की प्रसन्नता के बीच में बाधा डालूँ? मैंने तुमको - तुम दोनों को बहुत बुरा भला कहा.. तुम दोनों के प्रेम को गालियाँ दीं.. उस अपराध के लिए मुझे माफ़ कर दो!”

“ओह चेची..” कह कर अल्का माँ के आलिंगन में बंध गई।

“नहीं! अब से चेची नहीं, अब से.. अम्माईअम्मा कहो मुझे!”

यह सुन कर अल्का शरमा गई ; तो माँ ने कहा, “ऐसे तो मेरे सामने नंगी खड़ी है तो शरम नहीं आ रही है, लेकिन मुझे अम्मा कहने में लज्जा आ रही है तुझे?”

“अम्मा..” अल्का ने कोमल, प्रेममय आवाज़ में अपनी बड़ी दीदी को पुकारा!

“हाँ मेरी बच्ची! तू मुझे अम्मा ही बुलाया कर.. तेरे अम्माईअप्पन ने तेरा और अर्चित का सम्बन्ध स्वीकार कर लिया है..”

“ओह अम्मा!” कह कर अल्का पुनः सुबकने लगी।

“ओहो ! मुझसे रहा नहीं गया, इसीलिए मैंने तुम दोनों को यथाशीघ्र यह खुशखबरी देनी चाही... और ऐसे ख़ुशी के मौके पर तू रो रही है? लगता है तुझे ख़ुशी नहीं हुई! अर्चित बेटा, जैसे तू थोड़ी देर पहले कर रहा था, वैसे ही अपनी भार्या के मूलाकल के मधु का आस्वादन कर ले.. संभव है कि पुनः खुश हो जाए!”

“जो आज्ञा माते!” कह कर मैं आगे बढ़ा!

“हट्ट!” अल्का ने सुबकने के बीच में कहा।

“अरे !” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी मरुमघल, मेरे ही मोने को मना कर रही है !”

“मना नहीं चेची.. पी पी कर आपके मोने ने इनका बुरा हाल कर दिया है!” अल्का ने भोलेपन से जवाब दिया।

“ओहो! मेरी पावम! अच्छा! आओ.. आज, मैं तुम दोनों को अपना मूलापाल पिलाती हूँ..”

“क्या!!” अल्का और मैं, हम दोनों ही चकित रह गए !

“और क्या! जब तुम्हारे अचा पी सकते हैं, तो तुम दोनों भी.. आओ ! दूध नहीं है तो क्या हुआ?”

कह कर माँ अपनी ब्रा का हुक खोलने लगीं। हम दोनों आश्चर्यजनक रूचि लेकर माँ को ऐसा अभूतपूर्व काम करते हुए देख रहे थे। मुझे तो याद भी नहीं पड़ता कि आखिरी बार कब मैंने माँ के स्तनों से दूध पिया था। आज सचमुच बहुत कुछ बदला हुआ है। माँ ऐसा कर ही नहीं सकती थीं! लेकिन लगता है कि एक तो स्वयं के सम्भोग का अनुभव और अभी अभी हमारे सम्भोग का अवलोकन कर के उनका भी मन बदल गया था।

माँ के स्तन पोमेलो फल के आकर के थे। मेरी अल्का से उनका कोई मुकाबला ही नहीं था। मुकाबले वाली बात नहीं है, फिर भी! वैसे कमाल की बात है न? सगी बहनें, लेकिन फिर भी दोनों के शरीर में इतना अंतर!

“आओ ! इसके पहले कि मुझे ही लज्जा आ जाए, तुम दोनों अपनी माँ के स्तन पी लो!”

जाहिर सी बात है, माँ के स्तनों में दूध नहीं था। लेकिन वस्तुतः बात यह बिलकुल भी नहीं थी। बात थी माँ का हम दोनों के लिए अपना प्रेम दिखाने की शैली! वैसे पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ था, उसको समझना, उसकी व्याख्या करना बहुत ही कठिन काम था। वो सब करने की आवश्यकता भी क्या? जब अमृत-वर्षा हो रही हो, तब शांति से, अपने भाग्य को सराहते हुए अमृत-रस का पान कर लेना चाहिए। हम दोनों ने माँ के स्तनों को कोई तीन चार मिनट तक ‘पिया’। उस दौरान हमने उनके चूचकों की कोमलता, उनके प्रेममय स्पर्श और बातों को सुना और महसूस किया।

जब हम दोनों उनसे अलग हुए तो माँ ने कहा,

“मैंने कभी एक बार सोचा था कि जब अर्चित विवाह होगा, तब मैं उसको और उसकी भार्या को अपना दूध पिलाऊँगी। बस, और कुछ नहीं!”

“ओह माँ !” कह कर अल्का माँ से लिपट गई।

हम दोनों अभी भी नंगे बैठे हुए थे, लेकिन माँ ने वापस अपनी ब्रा पहन ली।

“कितना सुन्दर मौसम है! वहाँ तो वर्षा आने में दो महीना लगेगा!”

माँ ने रिम-झिम होती वर्षा की आवाज़ का आनंद उठाते हुए कहा। यह एक साधारण सी अभिव्यक्ति थी.. लेकिन माँ ने जिस तरह से कहा, हम सभी को बहुत अच्छा लगा। बड़ी बड़ी ख़ुशियों के पीछे भागते-भागते हम लोग छोटी छोटी ख़ुशियों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन यदि व्यक्ति संतुष्ट हो, तो वो ऐसे छोटी छोटी घटनाओं, छोटी छोटी बातों का आनंद उठा सकता है!

“तो फिर यहीं पर रह जाइए न, चेची?” अल्का प्रेम से मनुहार करी।

“अभी नहीं मोलूट्टी! लगी लगाई नौकरी ऐसे कैसे छोड़ दूँ?”

“अरे चेची! कृषि में बहुत लाभ हो रहा है! कु... मेरा मतलब है चिन्नू...”

“हा हा.. हाँ, कुट्टन सही शब्द है तुम्हारे लिए..” माँ ने अल्का को छेड़ा। अल्का लज्जा से मुस्कुराई।

“कुट्टन की मेहनत से पिछले कुछ वर्षों से, और इस वर्ष भी काफी लाभ हुआ है.. और भी होने का अनुमान है।”

“हम्म.. बहुत ख़ुशी हुई यह सुन कर!”

“चेची, तुम्हारे रिटायरमेंट में और कितना समय बचा है?”

“अरे अभी तो बहुत समय है.. कोई चौबीस पच्चीस साल!”

“अरे इतना! तो चेची.. आप लोग यहीं रह जाइए न!”

“रहेंगे बच्चे, रहेंगे!” अम्मा ने गहरी सांस ले कर कहा। फिर कुछ रुक कर उन्होंने आगे कहा, “तुम दोनों खुश तो हो न मेरे बच्चों?”

“हाँ अम्मा, बहुत!” अल्का ने कहा.. मैंने केवल सर हिला कर सहमति जताई। जब दो ‘बड़े’ लोग बात कर रहे हों, तो छोटे लोग अधिक नहीं बोलते! मुझे बचपन में ही यह सिखा दिया गया था।

“अच्छी बात है! लेकिन तुम दोनों ही एक बात याद रखना - जिस रास्ते पर तुम दोनों निकल पड़े हो, वह बस आगे की ओर ही जाता है.. इस रास्ते पर अब पीछे नहीं जाया जा सकता।”

जब हम दोनों ने कुछ नहीं कहा तो अम्मा ने आगे कहा,

“हमने तो तुम्हारे विवाह की अनुमति दे दी है, लेकिन गाँव के अग्रणी लोगों, मुखियाओं, और बड़े बुज़ुर्गों से भी इस बात के लिए आशीर्वाद लेना पड़ेगा। ... लेकिन, तुम दोनों उस बात की चिंता न करो.. मैं, अम्मा और तुम्हारे पिता जी सभी को मनाने का पूरा प्रयत्न करेंगे। लेकिन तुम दोनों ही मन में इस बात की सम्भावना रखना कि यह भी हो सकता है कि वो लोग न मानें। उस बात के लिए तैयार हो तुम दोनों?”

“अम्मा, अल्का के लिए मुझे कुछ भी करना पड़ेगा, मैं करूँगा! लेकिन इसका साथ कभी नहीं छोडूंगा... कभी भी नहीं!”

मैंने अल्का का हाथ अपने हाथ में थाम कर दृढ़ता से कहा। अम्मा ने एक गहरी दृष्टि मुझ पर, और फिर अल्का पर डाली और फिर अंत में मुस्कुराते हुए कहा, “बहुत अच्छी बात है!”

फिर थोड़ा ठहर कर उन्होंने कहा, “एक घंटे में भोर हो जाएगी... तुम दोनों को उसके पहले एक और बार सहवास करना हो तो कर लो.. मैं अंदर चली जाती हूँ...”

“अम्मा!” मैंने बुरा मान जाने का नाटक किया।

“अच्छा अच्छा! ठीक है.. मत करो सहवास! लेकिन मैं तो जा रही हूँ... तुम्हारे पिताजी जागने वाले होंगे। क्या पता... शायद एक और बार हो जाए!”

कह कर अम्मा हँसती हुई कमरे के अंदर चली गईं।
Pahele me samaz nahi pai. Maa ne dono ko apne stan pan kyo karwaya. Par bad me aanaz aaya ki bahu ko bete ke saman man na. Or bahu ko beti hi man na he.

Amezing. Sirf ye love story hi nahi bahot kuchh he. Jise sabdo me bayan karna mushkil he.

Story agar swad me bayan karna ho to mushri se ghule mitthe thande dhudh se samanta karungi. Ya to fir nariyal ke dudh me chini mili ho. Mere kahene matlab sayad aap samaz na pao. Par bahot shant or mitthi story he
 
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