कोई एक मिनट के बाद दरवाज़े के उस तरफ से से अम्मा की दबी हुई आवाज़ आई,
“तुम दोनों का हो गया हो तो बाहर आ जाओ... कुछ बात करनी है।”
अल्का और मैं दोनों ही चौंक गए। इसका तो साफ़ मतलब है कि अम्मा ने हमको सम्भोग करते देख या सुन लिया था। अब इस बात का उन पर कोई और प्रभाव हुआ हो या नहीं, कम से कम उनको इतना तो मालूम हो गया होगा कि हम दोनों अपने प्रेम सम्बन्ध में बहुत आगे बढ़ गए थे, और बहुत गंभीर भी थे। हम अपने कपड़े पहनने लगे तो अम्मा ने कहा,
“अगर मन करे तो ऐसे ही आ जाओ.. अपनी अनियत्ति की चाँदनी मैं भी तो देखूँ...” उन्होंने अर्थपूर्ण तरीके से कहा।
हमको तुरंत समझ में आ गया कि अम्मा हमको बहुत देर से देख / सुन रही थीं, और उन्होंने हमको सब कुछ करते और कहते देखा और सुना है। अब उनके सामने किसी भी प्रकार का स्वांग करने से कोई लाभ नहीं था। तो हम दोनों अनिच्छा से वैसे ही उठ कर, दबे पाँव कमरे से बाहर चले आए। बाहर आ कर जब हम अम्मा के समीप आए तो हमने देखा कि अम्मा भी केवल पेटीकोट और ब्रा ही पहनी हुई है। उनको ऐसे तो मैने कभी भी नहीं देखा था - मतलब आसार ठीक ठाक ही हैं!
“चेची मैं..” अल्का कुछ कहने को हुई लेकिन अम्मा ने उसकी बात बीच में ही काट दी।
“तुमको कोई सफाई देने की ज़रुरत नहीं है, मोलूटी! अगर तुम अपने ही चेट्टन से प्रेम नहीं करोगी तो किसके साथ करोगी?”
“चेची ?”
“हाँ मेरी प्यारी बहना.. तुमको कुछ कहने की आवश्यकता नहीं... ! इधर आ... तू भी इधर आ अर्चित! हम लोगों की
बाते सुन कर कहीं अम्मा जग न जायें!”
हम तीनों दबे चुपके, कम आवाज़ करते हुए कमरे से बाहर निकल कर अहाते में आ गए। बारिश अभी भी हो रही थी और ठंडी हवा चल रही थी। अभी भी अँधेरा था, लेकिन हम एक दूसरे की आकृतियाँ ठीक से देख पा रहे थे। माँ ने प्यार से अल्का के गाल को छुआ और कहा,
“तुम बहुत अच्छी हो मोलूट्टी... बहुत प्यारी.. और बहुत सुन्दर भी ! अर्चित बड़े भाग्य वाला है!”
“चेची!?”
“हाँ मेरी बच्ची! जब तुम दोनों साथ में प्रसन्न हो, तो मैं क्यों तुम दोनों की प्रसन्नता के बीच में बाधा डालूँ? मैंने तुमको - तुम दोनों को बहुत बुरा भला कहा.. तुम दोनों के प्रेम को गालियाँ दीं.. उस अपराध के लिए मुझे माफ़ कर दो!”
“ओह चेची..” कह कर अल्का माँ के आलिंगन में बंध गई।
“नहीं! अब से चेची नहीं, अब से.. अम्माईअम्मा कहो मुझे!”
यह सुन कर अल्का शरमा गई ; तो माँ ने कहा, “ऐसे तो मेरे सामने नंगी खड़ी है तो शरम नहीं आ रही है, लेकिन मुझे अम्मा कहने में लज्जा आ रही है तुझे?”
“अम्मा..” अल्का ने कोमल, प्रेममय आवाज़ में अपनी बड़ी दीदी को पुकारा!
“हाँ मेरी बच्ची! तू मुझे अम्मा ही बुलाया कर.. तेरे अम्माईअप्पन ने तेरा और अर्चित का सम्बन्ध स्वीकार कर लिया है..”
“ओह अम्मा!” कह कर अल्का पुनः सुबकने लगी।
“ओहो ! मुझसे रहा नहीं गया, इसीलिए मैंने तुम दोनों को यथाशीघ्र यह खुशखबरी देनी चाही... और ऐसे ख़ुशी के मौके पर तू रो रही है? लगता है तुझे ख़ुशी नहीं हुई! अर्चित बेटा, जैसे तू थोड़ी देर पहले कर रहा था, वैसे ही अपनी भार्या के मूलाकल के मधु का आस्वादन कर ले.. संभव है कि पुनः खुश हो जाए!”
“जो आज्ञा माते!” कह कर मैं आगे बढ़ा!
“हट्ट!” अल्का ने सुबकने के बीच में कहा।
“अरे !” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी मरुमघल, मेरे ही मोने को मना कर रही है !”
“मना नहीं चेची.. पी पी कर आपके मोने ने इनका बुरा हाल कर दिया है!” अल्का ने भोलेपन से जवाब दिया।
“ओहो! मेरी पावम! अच्छा! आओ.. आज, मैं तुम दोनों को अपना मूलापाल पिलाती हूँ..”
“क्या!!” अल्का और मैं, हम दोनों ही चकित रह गए !
“और क्या! जब तुम्हारे अचा पी सकते हैं, तो तुम दोनों भी.. आओ ! दूध नहीं है तो क्या हुआ?”
कह कर माँ अपनी ब्रा का हुक खोलने लगीं। हम दोनों आश्चर्यजनक रूचि लेकर माँ को ऐसा अभूतपूर्व काम करते हुए देख रहे थे। मुझे तो याद भी नहीं पड़ता कि आखिरी बार कब मैंने माँ के स्तनों से दूध पिया था। आज सचमुच बहुत कुछ बदला हुआ है। माँ ऐसा कर ही नहीं सकती थीं! लेकिन लगता है कि एक तो स्वयं के सम्भोग का अनुभव और अभी अभी हमारे सम्भोग का अवलोकन कर के उनका भी मन बदल गया था।
माँ के स्तन पोमेलो फल के आकर के थे। मेरी अल्का से उनका कोई मुकाबला ही नहीं था। मुकाबले वाली बात नहीं है, फिर भी! वैसे कमाल की बात है न? सगी बहनें, लेकिन फिर भी दोनों के शरीर में इतना अंतर!
“आओ ! इसके पहले कि मुझे ही लज्जा आ जाए, तुम दोनों अपनी माँ के स्तन पी लो!”
जाहिर सी बात है, माँ के स्तनों में दूध नहीं था। लेकिन वस्तुतः बात यह बिलकुल भी नहीं थी। बात थी माँ का हम दोनों के लिए अपना प्रेम दिखाने की शैली! वैसे पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ था, उसको समझना, उसकी व्याख्या करना बहुत ही कठिन काम था। वो सब करने की आवश्यकता भी क्या? जब अमृत-वर्षा हो रही हो, तब शांति से, अपने भाग्य को सराहते हुए अमृत-रस का पान कर लेना चाहिए। हम दोनों ने माँ के स्तनों को कोई तीन चार मिनट तक ‘पिया’। उस दौरान हमने उनके चूचकों की कोमलता, उनके प्रेममय स्पर्श और बातों को सुना और महसूस किया।
जब हम दोनों उनसे अलग हुए तो माँ ने कहा,
“मैंने कभी एक बार सोचा था कि जब अर्चित विवाह होगा, तब मैं उसको और उसकी भार्या को अपना दूध पिलाऊँगी। बस, और कुछ नहीं!”
“ओह माँ !” कह कर अल्का माँ से लिपट गई।
हम दोनों अभी भी नंगे बैठे हुए थे, लेकिन माँ ने वापस अपनी ब्रा पहन ली।
“कितना सुन्दर मौसम है! वहाँ तो वर्षा आने में दो महीना लगेगा!”
माँ ने रिम-झिम होती वर्षा की आवाज़ का आनंद उठाते हुए कहा। यह एक साधारण सी अभिव्यक्ति थी.. लेकिन माँ ने जिस तरह से कहा, हम सभी को बहुत अच्छा लगा। बड़ी बड़ी ख़ुशियों के पीछे भागते-भागते हम लोग छोटी छोटी ख़ुशियों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन यदि व्यक्ति संतुष्ट हो, तो वो ऐसे छोटी छोटी घटनाओं, छोटी छोटी बातों का आनंद उठा सकता है!
“तो फिर यहीं पर रह जाइए न, चेची?” अल्का प्रेम से मनुहार करी।
“अभी नहीं मोलूट्टी! लगी लगाई नौकरी ऐसे कैसे छोड़ दूँ?”
“अरे चेची! कृषि में बहुत लाभ हो रहा है! कु... मेरा मतलब है चिन्नू...”
“हा हा.. हाँ, कुट्टन सही शब्द है तुम्हारे लिए..” माँ ने अल्का को छेड़ा। अल्का लज्जा से मुस्कुराई।
“कुट्टन की मेहनत से पिछले कुछ वर्षों से, और इस वर्ष भी काफी लाभ हुआ है.. और भी होने का अनुमान है।”
“हम्म.. बहुत ख़ुशी हुई यह सुन कर!”
“चेची, तुम्हारे रिटायरमेंट में और कितना समय बचा है?”
“अरे अभी तो बहुत समय है.. कोई चौबीस पच्चीस साल!”
“अरे इतना! तो चेची.. आप लोग यहीं रह जाइए न!”
“रहेंगे बच्चे, रहेंगे!” अम्मा ने गहरी सांस ले कर कहा। फिर कुछ रुक कर उन्होंने आगे कहा, “तुम दोनों खुश तो हो न मेरे बच्चों?”
“हाँ अम्मा, बहुत!” अल्का ने कहा.. मैंने केवल सर हिला कर सहमति जताई। जब दो ‘बड़े’ लोग बात कर रहे हों, तो छोटे लोग अधिक नहीं बोलते! मुझे बचपन में ही यह सिखा दिया गया था।
“अच्छी बात है! लेकिन तुम दोनों ही एक बात याद रखना - जिस रास्ते पर तुम दोनों निकल पड़े हो, वह बस आगे की ओर ही जाता है.. इस रास्ते पर अब पीछे नहीं जाया जा सकता।”
जब हम दोनों ने कुछ नहीं कहा तो अम्मा ने आगे कहा,
“हमने तो तुम्हारे विवाह की अनुमति दे दी है, लेकिन गाँव के अग्रणी लोगों, मुखियाओं, और बड़े बुज़ुर्गों से भी इस बात के लिए आशीर्वाद लेना पड़ेगा। ... लेकिन, तुम दोनों उस बात की चिंता न करो.. मैं, अम्मा और तुम्हारे पिता जी सभी को मनाने का पूरा प्रयत्न करेंगे। लेकिन तुम दोनों ही मन में इस बात की सम्भावना रखना कि यह भी हो सकता है कि वो लोग न मानें। उस बात के लिए तैयार हो तुम दोनों?”
“अम्मा, अल्का के लिए मुझे कुछ भी करना पड़ेगा, मैं करूँगा! लेकिन इसका साथ कभी नहीं छोडूंगा... कभी भी नहीं!”
मैंने अल्का का हाथ अपने हाथ में थाम कर दृढ़ता से कहा। अम्मा ने एक गहरी दृष्टि मुझ पर, और फिर अल्का पर डाली और फिर अंत में मुस्कुराते हुए कहा, “बहुत अच्छी बात है!”
फिर थोड़ा ठहर कर उन्होंने कहा, “एक घंटे में भोर हो जाएगी... तुम दोनों को उसके पहले एक और बार सहवास करना हो तो कर लो.. मैं अंदर चली जाती हूँ...”
“अम्मा!” मैंने बुरा मान जाने का नाटक किया।
“अच्छा अच्छा! ठीक है.. मत करो सहवास! लेकिन मैं तो जा रही हूँ... तुम्हारे पिताजी जागने वाले होंगे। क्या पता... शायद एक और बार हो जाए!”
कह कर अम्मा हँसती हुई कमरे के अंदर चली गईं।