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Romance मंगलसूत्र [Completed]

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Sangya

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अल्का इस अचानक हुए घटनाक्रम से भौंचक्क हो गई। फिर वो संयत हो कर पानी में धीरे से सीधी खड़ी हो गई। उसके हाथ ऊपर की तरफ आए, और मेरे हाथों के ऊपर आ कर स्थापित हो गए - कुछ देर तक उसने मेरे हाथों को हटाने का कोई भी प्रयास नहीं किया। हम दोनों उसी अवस्था में जड़वत खड़े रहे। फिर वो मेरी तरफ मुड़ी, ऐसा करने से मेरे हाथ स्वतः उसके स्तनों से हट गए।

“ओ माँ! नीचे लगता है कोई बड़ा गड्ढा था। थैंक यू! मैं तो किनारे की तरफ जा रही हूँ।”

‘थैंक यू! यह तो मुझे बोलना चाहिए!’

अल्का चलती हुई तालाब के किनारे पर आई, और वहीँ पर बैठ गई। उसके बैठने का ढंग कुछ ऐसा था जिससे उसकी टाँगे सामने की तरफ कुछ खुल गईं थीं। हाँलाकि इस समय तालाब का पानी उसकी कमर तक तो था, लेकिन पानी साफ़ होने के कारण कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला था। मुझे दरअसल उसका शरीर साफ़ साफ़ दिख रहा था। अल्का की हलके धानी रंग की चड्ढी, जो पानी में जाने से पहले अपारदर्शी थी, इस समय पूरी तरह गीली होने के कारण उसके शरीर से पूरी तरह चिपकी हुई थी, और काफी पारदर्शी हो गई थी। अल्का की योनि पर उगी काले बालों की पट्टी मुझे साफ़ दिख रही थी। और साथ ही साथ उसकी योनि की फांकों के उभार भी दिख रहे थे। एक तो मैंने अभी अभी उसके स्तनों को अपने हाथों में महसूस किया था, और अब यह दृश्य! मेरी साँसे मेरे गले में ही अटक गईं। मेरा मुँह सूख गया। आज तो मन मांगी सभी मुरादें पूरी हो गईं थीं - आंशिक ही सही, लेकिन अल्का की योनि के दर्शन तो हो ही रहे थे! न जाने कैसे मेरा लिंग रक्त के दबाव से फटा क्यों नहीं!

मैंने अनजाने ही अल्का के सामने ही अपने लिंग को व्यवस्थित किया - मेरा दिमाग तो उसी जगह पर केंद्रित था। आँखें अल्का की योनि से हट ही नहीं पा रही थीं। अल्का भी संभवतः कुछ समय हुए घटनाक्रम से कुछ घबराई हुई थी। वो भी इधर उधर देखते हुए ही बात कर रही थी। इसलिए उसको अभी तक मालूम नहीं पड़ा था कि मेरी दृष्टि किस तरफ थी। वो कुछ कुछ कह रही थी, और मैं बस ‘अह’, ‘हाँ’, और ‘हम्म’ में ही जवाब दे रहा था। कुछ समय बाद, वो अचानक उठी, और बोली कि देर हो रही है, और हमको चलना चाहिए। ऐसा करते समय उसने मेरी तरफ देखा, और तुरंत समझ गई कि मैं किधर देख रहा था। एक बार तो उसके चेहरे से जैसे सारा रक्त निचुड़ गया!

“उई माँ! चिन्नू, तुम बहुत खराब हो! देखो, तुम्हारी बातों में आने का अंजाम! मेरी ऐसी हालत है कि कुछ पहनने या न पहनने का कोई मतलब ही नहीं रह गया! हट्ट!”

कह कर वो अपने गोल गोल नितम्ब मटकाती हुई अपने कपड़ो की तरफ चल दी। हमने चुप रह कर जैसे तैसे अपने कपड़े बदले। अल्का और मैंने अपने गीले अधोवस्त्र उतार दिए थे। और वापस अपने घर की तरफ चल दिए।

उस रात को जब हम सोने के लिए बिस्तर पर आए, तो अल्का ने कहा,

“चिन्नू, तुमने मुझे आज ऐसे देख ही लिया है। तो...”

“अल्का, मैंने प्रॉमिस किया है न कि मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा!” मैंने कहा।

“नहीं.. वो बात नहीं...सोते समय अगर मैं भी कपड़े उतार कर लेटूँ तो?”

“तुम्हारा घर है, अल्का! जैसा तुमको अच्छा लगे?”

“ओये होए! कैसा भोला बन रहा है मेरा चिन्नू!!” अल्का ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा, “इतनी अच्छी किस्मत नहीं है तुम्हारी! हा हा हा! लेकिन एक बात याद रखना! जो भी कुछ हुआ, वो किसी को न बताना!”

अल्का की बात से मैं हकलाने लगा, “नननननहीं! मैं कुछ नहीं कहूँगा!”

“गुड नाईट चिन्नू!”
Very sensual update in Hindi fonts as uf i am standing in front of Alka my current dream virl
Thanks for story
 

prkin

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फुस्स्स!
 
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Reactions: avsji

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Yeh kahani bahut romantic hai na zyada sex aur na zyada sirf sex.. aise story bahut kam padhne milte hai
धन्यवाद मित्र! :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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avsji bhaiya kahani bht shi jaa rhe hai but update ka bhi kuch kro
Mjhe aapki dono running story achi lge
Kayakalp aur yeh wali bhi lekin kayakalp pe aapne update he nhi de rhe toh plss uspe bhi update dijiye
धन्यवाद मित्र! :)
 
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