तुझे कैसे मालूम कि उसकी नियत खराब थी ।
यार (चाय की चुस्की लेते हुए) 1 दिन में बाथरूम में नहा रही थी लेकिन दरवाजे की कड़ी बंद करना भूल गईऔर आदत के अनुसार
मैं बिल्कुल नंगी होकर नहा रही थी।( इतना सुनते ही शीला के कान खड़े हो गए और वह मुस्कुराते हुए सुधा की तरफ देख कर उसकी बात सुनने लगी)
फिर क्या हुआ?
मैं तो इस बात से बेखबर कि वह चोरी छुपे मुझे देख रहा है मैं अपनी मस्ती मे अपने बदन के चारों तरफ हाथ घुमा घुमा कर नहाने लगी।
सुधा तु सच में बिल्कुल नंगी थी?(शीला आश्चर्य के साथ बौली)
हां यार कर भी क्या सकती हूं बिना कपड़ों के बहाना मेरे जवानी के दिनों की आदत है... अब से तो बदला नहीं जा सकता लेकिन मुझसे गलती हो गई थी कि मैं दरवाजे की कड़ी लगाना भूल गई थी...
गलती...... बहुत ही खूबसूरत गलती कहो.... ऐसी गलती हर किसी से नहीं होती। सुधा काश मैं तेरी किराएदार होती तो उस नजारे को देखकर कसम से गरम आहें भरने लगती....
क्या शिला तू भी शुरू हो गई...
(सुधा यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि शीला को इस तरह की मजाक करने की आदत है क्योंकि वह दोनों बचपन की पक्की सहेलियां थी और यह बात भी अच्छी तरह से जानती थी कि सुधा जिस तरह से अभी इस उम्र में भी खूबसूरत दिखती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत हो अपनी जवानी के दिनों में थी और इस बात से उसे जलन भी होती थी कि लड़कों का झुंड उसी के पीछे पड़ा रहता था लेकिन वह किसी को घास तक नहीं डालती थी...शीला खुद सुधा के खूबसूरत मादक बदन की दीवानी थी क्योंकि उसके अंगों की बनावट उसके हर एक अंग का कटाव ऐसा लगता था जैसे भगवान ने खुद अपने हाथों से बनाया हो और यही देखकर वह थोड़ा बहुत सुधा से ईर्ष्या भी करती थी लेकिन उससे प्यार भी बहुत करती थी....)
सुधा तू यह नहीं जानती कि तू कितनी खूबसूरत है इस उम्र में भी तुम लड़कों का पानी निकाल दे.... पता है जब तू चलती है ना तो ऐसा लगता है कि जैसे कामदेवी खुद सड़क पर गश्त लगाने के लिए जा रही है तेरी बड़ी बड़ी गांड कसी हुई साड़ी में बेहद खूबसूरत लगती है और सच कहूं तो मर्दों के साथ-साथ औरतें भी तेरा यह बड़ा पिछवाड़ा देखकर तुझसे ईर्ष्या करती हैं.....
तू करती है....( सुधा तपाक से बोली...हालांकि अपनी सबसे पक्की सहेली के मुंह से अपनी तारीफ सुनने में उसे बहुत अच्छा लग रहा था और सबसे ज्यादा अच्छा तो यह लग रहा था कि एक औरत होने के नाते बिना ईर्ष्या के वह उसकी तारीफ कर रही थी...)
हम्ममम.......(सोचते हुए) हां कुछ-कुछ...... यार मैं भी एक औरत हूं और औरत होने के नाते औरत की खूबसूरती देखकर थोड़ी बहुत तो ईर्ष्या मेरे मन में भी होती है ना लेकिन फिर भी मैं तेरे से बहुत खुश हूं.... लेकिन सुधा क्या तेरे किराएदार ने तेरी वो देख लिया था....
क्या वो...?(चाय की चुस्की लेते हुए सुधा शीला की तरफ सवालिया नजरों से देखते हुए बोली)
चल अब ज्यादा बन मत बताना क्या तेरी किराएदार ने तेरा सब कुछ देख लिया था....(सुधा की तरफ देखकर शीला उत्सुकता वश बोली और सुधा अच्छी तरह से जानती थी कि वह बिना सुने मानने वाली नहीं है आए दिन हम दोनों के बीच इस तरह की बातें हुआ करती थी लेकिन जब से सुधा के पति का देहांत हुआ था तब से यह मजाक यह सब बातें कम होने लगी थी लेकिन आज मौका देख कर शीला सारी कसर निकालने के मूड में थी..)
अब कह तो रही हूं कि मैं बाथरूम में एकदम नंगी नहा रही थी तो सब कुछ देख ही लिया होगा ना....
Sudha ke nange badan ke bare mein soch soch kar Shila ki halat kharab ho Rahi thi.
सब कुछ से मतलब ......क्या तेरी बुर..... बुर..... भी देख लिया था उसने....(शीला तपाक से बोली)
अब देख ही लिया होगा ना वैसे भी मैं उस पर साबुन लगाकर उसे साफ कर रही थी....(सुधा ना चाहते हुए भी अपनी बातों पर नमक मिर्च लगाकर बोलने लगी थी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि शीला को इस तरह की बातें सुनने में बहुत मजा आता है और इस समय सुधा को पैसे की ज्यादा जरूरत है इसलिए वह अपनी बातों में नमक मिर्च लगाकर बोल रही थी..)
सससहहहहहहह ....आहहहहहहह..... सुधा मेरी जान कसम से मजा आ गया होगा तेरे किराएदार को...(शीला गरम आहें भरते हुए बोली...) लेकिन सुधा तेरी बुर में तो कुछ आता जाता है नहीं मेरा मतलब है कि तू अभी तो किसी से चुदवाती नहीं है तो साफ क्यों कर रही थी....
क्या शीला तू तो एकदम पागल हो गई है अब जरूरी है कि चुदवाने के बाद ही औरत अपनी बुर को साफ करती है... उसे स्वच्छ रखना भी तो औरत का ही फर्ज है बस वही फर्ज निभा रही थी....
हाय काश यह फर्ज मुझे निभाने को मिलता....(शीला अंगड़ाई लेते हुए बोली....)
यार शीला कसम से मुझे ऐसा लगता है कि अगर तू औरत ना होकर एक मर्द होती तो अब तक तू मेरी इज्जत ले ली होती....
यह भी पूछने वाली बात है अगर सच में ऐसा होता तो अब तक ना जाने कितनी बार मेरा लंड तेरी बुर की गहराई नाप लिया होता....
तब तो जीजाजी रोज तेरी बुर की गहराई नापते होंगे...
अरे उनको कहां फुर्सत मिलती है कि औरत की तरफ ध्यान दें बस अपना काम काम काम.... कभी-कभी तो सोचती हूं कि उनसे शादी करके मैं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली नहीं तो औरतों के भी अरमान होते हैं भले उम्र का वह दौर गुजर गया लेकिन शरीर में जवानी बरकरार है इसी में जोड़ने के लिए एक अच्छी खासे मर्द की जरूरत होती है लेकिन मेरे पतिदेव को तो मेरी फिक्र ही नहीं है....
(शीला बातों ही बातों में अपने मन का दर्द सुधा से कह दी.... लेकिन सुधा सीना से इस बारे में कुछ ज्यादा नहीं बोल पाई क्योंकि भले ही वह शीला से बातें कर रही थी उसका ध्यान पूरी तरह से रितु की फीस की तरफ ही था...)
सब कुछ सही हो जाएगा शीला....(चाय का आखरी घूंट भर कर खाली कप को टेबल पर रखते हुए बोली...)
क्या खाक ठीक होगा इतने वर्षों में नहीं हुआ तो अब क्या होने वाला है मैं भी अपना मन मसोसकर रह जाती हूं ....(शीला भी जल्दी-जल्दी घूंट भर कर खाली कब टेबल पर रख दी)
औरतों की किस्मत में यही होता है सीला मेरे पति नहीं है तो यह हाल है और तेरे पति होने के बावजूद भी तेरा यह हाल है आखिर दिल की बात कहे भी तो कैसे कहें....
सच कह रही है सुधा( इतना कह कर टेबल पर से दोनों खाली कप लेकर वहां किचन की तरफ चली गई.. सुधा ऊसे जाते हुए देख रही थी अनायास ही उसका ध्यान शीला की मटकती हुई गांड पर चली गई जो कि ज्यादा विशाल तो नहीं थी लेकिन इतनी तो थी कि मानव कसी हुई साड़ी में दो बड़े-बड़े तरबूज बांध दिए गए हो।... शीला की बड़ी बड़ी गांड देखकर सुधा यही सोच रही थी कि शीला का बदन भी बहुत खूबसूरत था एक औरत के पास मर्द को रिझाने के लिए जिस तरह के अंग होने चाहिए वह सब कुछ शीला के पास था लेकिन फिर भी उसके बताए अनुसार वह पति का प्यार नहीं पा पा रही थी अब ईसे किस्मत का दोष कहे या औरत का नसीब.... सुधा को अच्छी तरह से याद था कि जब दोनों साथ साथ कॉलेज में पढ़ते थे तो शीला काफी चंचल किस्म की लड़की थी जो कि लड़कों के साथ जल्दी घुलमिल जाती थी और शादी के पहले ही उसने अपना कौमार्य भंग करवा चुकी थी .... सुधा शीला के बारे में और कुछ सोच पाती इससे पहले ही किचन में से शीला बाहर आ गई और शीला को देखकर सुधा बोली....
शीला अब मुझे चलना चाहिए काफी देर हो गई है....(इतना कहकर सुधा उठ गई और उसे कुर्सी पर से उठता हुआ देखकर शीला बोली...)
Sheela bhi kuch kam nahi thi ye bat Sudha bhi acchi tarah se janti thi
अरे रुक तो सही मैं अभी आती हूं....(इतना कहकर वह अपने कमरे की तरफ चली गई और कुछ देर बाद बाहर आई तो उसके हाथों में सो सो के नोट की गड्डी थी... जिस पर नजर पड़ते ही सुधा की आंखों में चमक आ गई वह समझ गई कि उसका काम बन गया है....) मैं जिस काम के लिए आई है वह तो लेती जा....
(इतना कहकर सीला सुधा को सो सो की नोट की गड्डी पकड़ा दी और सुधा मजबूरी में हाथ आगे बढ़ाकर उसे ले ली और शीला का आभार प्रकट करते हुए वह हाथ जोड़ते हुए बोली।)
शीला मैं तेरा एहसान कभी नहीं भूलूंगी पूरी दुनिया में एक तू ही है जो मेरी मदद कर सकती है इसलिए मैं तेरे पास आती हुं....
यह क्या कर रही है सुधा मैं तेरी सहेली हूं इस तरह से हाथ जोड़कर तू मेरा अपमान मत कर लेकिन इतना जरूर कहुगी कि जल्द से जल्द कोई किरायेदार रखकर थोड़ी बहुत आवक का जरिया बना ले यह दुनिया ऐसी ही है हर वक्त मर्दों की नजर औरतों पर ही रहती है... सारे मर्द एक जैसे होते हैं अगर उनकी नजर देखकर तो उन्हें घर से निकालती रहेगी तो कैसे काम चलेगा मर्दों की इस तरह की नजरों से अपने आप को बचाना भी है और आगे भी बढ़ना है...
मैं तेरी बात अच्छी तरह से समझ रही हूं लेकिन क्या करूं रितु अब बड़ी हो गई है मैं नहीं चाहती कि किसी की गंदी नजर उस पर पड़े...
चल कोई बात नहीं सब सही हो जाएगा....
अच्छा तो शीला अब मैं चलती हूं बहुत देर हो रही है। और हां अगर हो सके तो मेरे लिए किसी नौकरी का बंदोबस्त कर दें ऑफिस में या कहीं भी....
हां यह बात तुम्हें ठीक कही मैं जल्द से जल्द तेरे लिए कुछ करती हूं......
(शीला की बात सुनकर सुधा के होठों पर मुस्कुराहट तेरे गई और वह उससे बीदा लेकर अपने घर की तरफ आ गई...)