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सुधा अपनी सहेली शीला के घर जा रही थी लेकिन वहां जाने की इच्छा उसके बिल्कुल भी नहीं हो रही थी लेकिन मजबूरी थी सो जाना पड़ रहा था क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि किसी की मदद लिया जाए वैसे भी शीला बहुत बार सुधा की मदद कर चुकी थी इस वजह से सुधा शीला के एहसानों तले दबी हुई थी बार-बार उससे मदद मांगना सुधा को भी अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन क्या करें मजबूरी थी।
नहा कर तैयार होने के बाद सुधा
थोड़ी ही देर में पैदल चलते हुए सुधा शीला के घर पहुंच गई..... दरवाजे पर दस्तक देते हुए जैसे जैसेे दरवाजे पर दस्तक की आवाज कर रही थी वैसे वैसेसुधा के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला और सुधा कि हम उम्र शीला अपने गीले बालों को टावल से पौछते हुए दरवाजे पर खड़ी सुधा को देख कर मुस्कुराने लगी.. यह मुस्कुराहट इस बात का सबूत था कि शीला सुधा की एक सच्ची मित्र थी जो कि हमेशा सुधा की भलाई और मदद करने के लिए तत्पर रहती थी दरवाजे पर खड़ी सुधा को देखकर शीला मुस्कुराते हुए सुधा को कमरे में आने के लिए बोली।
आज बहुत दिनों बाद तुम्हें अपनी सहेली की याद आई..(कुर्सी पर बैठते हुए और सुधा को भी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए शीला बोली।)
शीला तुम तो जानती हो मेरी हालत यू बार बार किसी के घर पहुंचे रहना भी तो अच्छी बात नहीं है ।(कुर्सी पर बैठते हुए सुधा बोली)
ऐसा कहकर तुम हमारी दोस्ती को गाली दे रही हो सुधा तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मेरे मन में दूसरी और को जैसा कुछ भी नहीं है मैं तुम्हें अपनी बहन ही मानती हूं।
मेरा कहने का मतलब वैसा कुछ भी नहीं था मेरा मतलब यह था कि मैं वैसे भी तुम्हारे एहसानों तले दबी हुई हु।
सुधा यह गलत बात है मैंने तुम पर कोई भी एहसान नहीं की हूं मैं तो सिर्फ अपनी दोस्ती का फर्ज निभाई हूं।
यह तो तुम्हारी दरियादिली है शीला वरना आजकल के जमाने में बिना मतलब का कोई इतनी मदद नहीं करता ।
अरे बातों ही बातों में मैं तो तुम्हें चाय पिलाना ही भूल गई।
रहने दो शीला परेशान होने की जरूरत नहीं है।
इसमें परेशानी की कौन सी बात है वैसे भी मैं चाय बना ही रही थी रुको मैं लेकर आती हूं (इतना कहते हुएशीला कुर्सी पर से उठी और किचन की तरफ चली गई सुधा उसे जाते हुए देख रही थी।और मन ही मन भगवान को इतनी अच्छी सहेली देने के लिए शुक्रिया अदा कर रही थी। थोड़ी ही देर में सीला दो कप चाय और कुछ बिस्कुट लेकर आ गई।दोनों चाय पीने लगे चाय की चुस्की लेते हुए सुधा बार बार अपने मन की बात शीला से कहने जा रही थी लेकिन शब्द नहीं फूट रहे थे उसे आज शीला से मदद मांगने में शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था लेकिन फिर भी क्या करती मजबूरी थी इसलिए वह हिचकी चाहते हुए बोली ।
शीला मैं तुम्हारे पास छोटी सी मदद मांगने आई हु।
?हां हां बोलो...
मुझे कुछ पैसों की जरूरत थी।
तो इतना कहने में शर्मा क्यों रही हो मैं तुम्हारी सहेली हूं कोई साहूकार नहीं हु की तुम्हें मदद करने के एवज में कोई चीज गिरवी रख लूंगी।
(शीला हंसते हुए बौली।)
शीला तुम तो जानती हो कि मेरी माली हालत कितनी खराब है।बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चलता है एक किराएदार था तो वह भी चला गया।
चला गया क्यों चला गया?( शीला आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोली)
चला नहीं गया मैंने ही उसे निकाल दी।
लेकिन क्यों यह बात जानते हुए कि उसके दीए किराए से तुम्हें काफी मदद मिल जा रही
हां यह बात अच्छी तरह से जानते हुए भी मैंने उसे घर खाली करने को कह दो और उसे घर से निकाल दी।
लेकिन तुमने ऐसा किया क्यों ?
कर भी क्या सकती थी मैं मजबूर हो गई थी क्योंकि उसकी नियत खराब थी।
तुझे कैसे मालूम कि उसकी नियत खराब थी ।
यार (चाय की चुस्की लेते हुए) 1 दिन में बाथरूम में नहा रही थी लेकिन दरवाजे की कड़ी बंद करना भूल गईऔर आदत के अनुसार
मैं बिल्कुल नंगी होकर नहा रही थी।( इतना सुनते ही शीला के कान खड़े हो गए और वह मुस्कुराते हुए सुधा की तरफ देख कर उसकी बात सुनने लगी)
फिर क्या हुआ?
मैं तो इस बात से बेखबर कि वह चोरी चुपे मुझे देख रहा है मैं अपनी मस्ती हूं अपने बदन के चारों तरफ हाथ घुमा घुमा कर नहाने लगी।
सुधा तु सच में बिल्कुल नंगी थी?(शीला आश्चर्य के साथ बौली)
नहा कर तैयार होने के बाद सुधा
थोड़ी ही देर में पैदल चलते हुए सुधा शीला के घर पहुंच गई..... दरवाजे पर दस्तक देते हुए जैसे जैसेे दरवाजे पर दस्तक की आवाज कर रही थी वैसे वैसेसुधा के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला और सुधा कि हम उम्र शीला अपने गीले बालों को टावल से पौछते हुए दरवाजे पर खड़ी सुधा को देख कर मुस्कुराने लगी.. यह मुस्कुराहट इस बात का सबूत था कि शीला सुधा की एक सच्ची मित्र थी जो कि हमेशा सुधा की भलाई और मदद करने के लिए तत्पर रहती थी दरवाजे पर खड़ी सुधा को देखकर शीला मुस्कुराते हुए सुधा को कमरे में आने के लिए बोली।
आज बहुत दिनों बाद तुम्हें अपनी सहेली की याद आई..(कुर्सी पर बैठते हुए और सुधा को भी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए शीला बोली।)
शीला तुम तो जानती हो मेरी हालत यू बार बार किसी के घर पहुंचे रहना भी तो अच्छी बात नहीं है ।(कुर्सी पर बैठते हुए सुधा बोली)
ऐसा कहकर तुम हमारी दोस्ती को गाली दे रही हो सुधा तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मेरे मन में दूसरी और को जैसा कुछ भी नहीं है मैं तुम्हें अपनी बहन ही मानती हूं।
मेरा कहने का मतलब वैसा कुछ भी नहीं था मेरा मतलब यह था कि मैं वैसे भी तुम्हारे एहसानों तले दबी हुई हु।
सुधा यह गलत बात है मैंने तुम पर कोई भी एहसान नहीं की हूं मैं तो सिर्फ अपनी दोस्ती का फर्ज निभाई हूं।
यह तो तुम्हारी दरियादिली है शीला वरना आजकल के जमाने में बिना मतलब का कोई इतनी मदद नहीं करता ।
अरे बातों ही बातों में मैं तो तुम्हें चाय पिलाना ही भूल गई।
रहने दो शीला परेशान होने की जरूरत नहीं है।
इसमें परेशानी की कौन सी बात है वैसे भी मैं चाय बना ही रही थी रुको मैं लेकर आती हूं (इतना कहते हुएशीला कुर्सी पर से उठी और किचन की तरफ चली गई सुधा उसे जाते हुए देख रही थी।और मन ही मन भगवान को इतनी अच्छी सहेली देने के लिए शुक्रिया अदा कर रही थी। थोड़ी ही देर में सीला दो कप चाय और कुछ बिस्कुट लेकर आ गई।दोनों चाय पीने लगे चाय की चुस्की लेते हुए सुधा बार बार अपने मन की बात शीला से कहने जा रही थी लेकिन शब्द नहीं फूट रहे थे उसे आज शीला से मदद मांगने में शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था लेकिन फिर भी क्या करती मजबूरी थी इसलिए वह हिचकी चाहते हुए बोली ।
शीला मैं तुम्हारे पास छोटी सी मदद मांगने आई हु।
?हां हां बोलो...
मुझे कुछ पैसों की जरूरत थी।
तो इतना कहने में शर्मा क्यों रही हो मैं तुम्हारी सहेली हूं कोई साहूकार नहीं हु की तुम्हें मदद करने के एवज में कोई चीज गिरवी रख लूंगी।
(शीला हंसते हुए बौली।)
शीला तुम तो जानती हो कि मेरी माली हालत कितनी खराब है।बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चलता है एक किराएदार था तो वह भी चला गया।
चला गया क्यों चला गया?( शीला आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोली)
चला नहीं गया मैंने ही उसे निकाल दी।
लेकिन क्यों यह बात जानते हुए कि उसके दीए किराए से तुम्हें काफी मदद मिल जा रही
हां यह बात अच्छी तरह से जानते हुए भी मैंने उसे घर खाली करने को कह दो और उसे घर से निकाल दी।
लेकिन तुमने ऐसा किया क्यों ?
कर भी क्या सकती थी मैं मजबूर हो गई थी क्योंकि उसकी नियत खराब थी।
तुझे कैसे मालूम कि उसकी नियत खराब थी ।
यार (चाय की चुस्की लेते हुए) 1 दिन में बाथरूम में नहा रही थी लेकिन दरवाजे की कड़ी बंद करना भूल गईऔर आदत के अनुसार
मैं बिल्कुल नंगी होकर नहा रही थी।( इतना सुनते ही शीला के कान खड़े हो गए और वह मुस्कुराते हुए सुधा की तरफ देख कर उसकी बात सुनने लगी)
फिर क्या हुआ?
मैं तो इस बात से बेखबर कि वह चोरी चुपे मुझे देख रहा है मैं अपनी मस्ती हूं अपने बदन के चारों तरफ हाथ घुमा घुमा कर नहाने लगी।
सुधा तु सच में बिल्कुल नंगी थी?(शीला आश्चर्य के साथ बौली)
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