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थोड़ी देर में उन्होंने मेरे भाई को जोश दिला के मेरे ऊपर चढ़ा दिया। सुबह की तरह। सुबह धोके में हुआ था अबकी नशे में।
और सुबह की ही तरह जैसे नंदोई जी पीछे से उसके ऊपर चढ़ गए थे , वो उसके ऊपर चढ़ गए , और हचक हचक कर ली।
जब वो उतरे तो बस सुबह होने वाली थी और मेरे मायके का स्टेशन आने वाला था।
हम लोग जल्दी जल्दी तैयार हुए। गाडी वो धीमी हो रही थी , वो फ्रेश होने बाथरूम गए तो मैंने , अपने ममेरे भाई से आँखा नचाकर पुछा ,
" हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। "
मेरे कजिन का घर स्टेशन के पास ही था , इसलिए वो जाने लगा , और हम लोगो ने रिक्शा पकडा।
जाने के पहले वो इनसे गले मिला , तो ये बोले , साले ये सिर्फ सुहागरात थी. गर्मियों कि छुट्टी में आना तो पूरा हनीमून होगा। "
"एकदम जीजा जी ये कोई कहने कि पन्द्रह दिन के लिए आउंगा कम से कम। " वो बोला।
मुझसे मिलते हुए कान में बोला , " दी तेरी ससुराल में तेरी छोटी नन्द बहुत मस्त है , लेकिन सबसे मस्त हैं तुम्हारी सासु , क्या रसीला भोंसड़ा है उनका , एकदम शहद। आना तो पड़ेगा ही। "
५ मिनट में ही मैं अपने मायके में पहुँच गयी और दरवाजे पे छुटकी मिली मेरी सबसे छोटी बहन, जो ९ वें में पढ़ती थी।
आगे
छुटकी , मेरी सबसे छोटी बहन। सबसे छोटी हम तीन बहनो में , लेकिन सबसे नटखट। मुझसे ४ साल छोटी और मंझली से डेढ़ साल। नौंवी में थी ( उमर का अंदाजा आप लगा लें , वैसे ही लड़कियों औरतों से उम्र पूछी नहीं जाती ).
एक छोटी सी पुरानी फ्राक में ( होली के दिन वैसे ही पुराने कपडे पहने जाते हैं , लेकिन उसका असर कई बार खतरनाक हो जाता है ), जो कई जगहो पे घिस भी गयी थी और टाइट भी।
उसको देख के तो उसके जीजा को जैसे मूठ मार गयी। एक दम ठिठक गए।
और बात भी तो थी।
लड़कियों पे जब जवानी आती है न तो झट से आ जाती है , बस वही छुटकी के साथ हो रहा था। चेहरा , आँखे उनमें तो भोलापन और शरारत थी लेकि देह जवानी ने दस्तक कब की दे दी है , उसकी चुगली कर रहीथी।
और उसके जीजा कि निगाहें बस वहीँ चिपकी थी।
उसके कच्चे टिकोरे , अब बड़े हो गए थे , कच्ची हरी अमिया की तरह और टाइट फ्राक से उछल , छलक रहे थे। कमर तो उसकी पतली थी ही , लेकिन अब हिप्स भरे भरे , पर तब भी छोटे , ब्वायिश।
लेकिन वो तो थे ही इस तरह के चूतड़ के शौक़ीन।
मुझे उनकी और उनके नंदोई से हुयी बात याद आगयी , जब उन्होंने बोला था कि वो छुटकी को ले आयेंगे और फिर दोनों मिल के लेंगे।
और अब उसके बड़े बड़े टिकोरों को देख के उनके इरादे पक्के हो गए थे।
"कच्चे टिकोरों को दबाने , नोचने , मसलने का मजा ही अलग है। एकदम खटमिठवा स्वाद ,…
और दूसरे , जो लौंडिया , इस उम्र में , चूंचिया उठान में दबवाने मिंजवाने लगती है , उसे के एक तो जोबन बहुत जल्दी खूब गद्दर हो जाते हैं और दूसरे , वो कभी को मसलने मिसवाने से मना नहीं करती , चाहे गाँव का मेला हो या शहर की बस हो।
और फिर सारे लौंडो के बीच सबसे पापुलर हो जाती है। और अगर इसी उमर में उसे दो तीन बार रगड़ के चोद दो न , भले बहुत परपराएगी उसकी , बिलबिलाएगी , चीखेगी , लेकिन एक बार जो लंड की आदत लग गयी न , तो फिर पूरी जिंदगी बुर में चींटे काटेंगे , वो भी लाल वाले।
कभी , किसी को मना नहीं करेगी। खुद टांग खोल देगी। "
ये बात इन्होने ही मुझे एक दिन समझायी थी।
उनकी निगाह अभी भी छुटकी के खटमिठवा टिकोरों पे ही अटकी थीं , की छुटकी ही आगे बढ़ी और उनके आँख के आगे चुटकी बजाते बोली ,
" क्या हो गया , जीजा जी , मैं वहीँ हूँ , आपकी सबसे छोटी साली , छुटकी। पहचान नहीं रहे हैं "
और छुटकी ने उन्हें खुद अंकवार में भीच लिया।
उन्होंने भी उसे खूब कस के अपनी बाहों में भीचते हुए , पहले तो गाल सहलाये , और फिर हथेली वहीँ पहुँच गयी , जहाँ थोड़ी देर पहले नदीदी निगाहें चिपकी थी। और बोले ,
" अरे तू बड़ी हो गयी है , बल्कि बड़ा हो गया है "
और हलके से फ्राक फाड़ते टिकोरों को दबा दिया।
मैं एक पल के लिए डर गयी। कहीं वो बिचक ना जाए , या कुछ उल्टा सीधा बोल न दे , होली की शुरुआत ही गड़बड़ हो जायेगी।
लेकिन छुटकी बिना उनका हाथ हटाये , बस बोली ,
" धत्त , जीजू "
उसके गोरे गुलाबी गाल शर्म से लाल हो रहे थे।
उठते उभारों को उन्होंने जोर से दबाया और उसके कान में होंठ लगा के पुछा ,
" हे सच बता , इन टिकोरों का स्वाद तो किसी ने चखा तो नहीं। "
" धत्त जीजू , उम्हह , हटिये ,… नहीं , आप भी न , छुआ भी नहीं "
और छुटकी ने खुद उनके हाथो के ऊपर अपने हाथ रख दिए।
" मैं चख लूँ , मुझे तो मना नहीं करेगी "
और उनके होंठ फ्राक के ऊपर से ही सीधे टिकोरों के नोक पे , और हलके से कचाक से उन्होंने काट लिया।
जीजा साली की होली शुरू हो गयी थी।
बिना छुड़ाने की कोशिश किये , छुटकी ने हलकी से सी सिसकारी भरी और बोली ,
" आप तो मेरे जीजा हैं , इकलौते जीजा। आप का इत्ता इंतज़ार कर रही थी मैं। "
तब तक अंदर से माँ की आवाज आयी ,
" अरे जीजा को अंदर भी घुसने देगी या बाहर ही खड़ा रखेगी। "
" अरे किसकी हिम्मत है जो मुझे अंदर घुसने से रोके, वो भी ससुराल में " .
मझली का कुछ दिनों में हाईस्कूल बोर्ड का इम्तहान शुरू होने वाला था। लम्बी हो गयी थी। ५ फिट तो डांक ही रही थी। गोरी गुलाबी देह तो हम तीनो बहनो की थी ,
लेकिन जहां छुटकी पे जवानी बस आ रही थी , मंझली पे उसका कब्ज़ा पूरा था। उभार 30 -31 सी के बीच रहे होंगे और पिछवाड़ा भी भरा भरा था। उसने भी एक पुराना टॉप पहना था , जिसकी ऊपर की बटन पहले से टूटी थी। और टीन ब्रा साफ दिख रही थी।
और इस बार भी बिना इस बात कि परवाह किये कि मम्मी भी खड़ी हैं , उन्होंने साली के गदराते जोबन की नाप जोख शुरू कर दी।
और मम्मी ने मुझे अंकवार में भर लिया , जोर से भींच लिया।
मम्मी मेरे लिए माँ से ज्यादा , बहन की तरह , एक सहेली की तरह थीं।
ये पहली बार था कि होली की तैयारियों में मैं उनके साथ नहीं थी।
शादी के बाद मैं पहली बार मायके आयी थी।
कुछ देर हम दोनों एक दूसरे को ऐसे ही भिंचे खड़े रहे।
फिर वो मेरे कान में बोली ,
" सुन , समधन ने शरबत पिलाया की नहीं। "
मैं खिलखिला उठी। मम्मी भी ना ,…
" हाँ पिलाया था , लेकिन ग्लास में। और सिर्फ उन्होंने ही नहीं , ननद , और जेठानी ने भी " मैं बोली।
" तुम बेवकूफ हो और मेरी समधन , सीधी संकोची। सीधे कुप्पी से पिलाना चाहिए था ' वो बोलीं।
हँसते हुए मैंने पुछा ,"
मम्मी , और आप अपने दामाद को ,"
" एकदम पिलाऊंगी , और सीधे कुप्पी से " मेरी बात काट के वो बोली और जोड़ा बल्कि चटनी भी चखाऊंगी। '
मम्मी ने हँसते हुए कहा।
उधर आँगन में में जीजा साली में धींगामस्ती चल रही थी। इनका हाथ मंझली के उभारो पे था और दूसरी छुटकी के टिकोरों के मजे ले रहा था।
मम्मी ने छेड़ा।
" अरे नए माल के आगे , … जरा इधर भी तो आओ। "
वो आये और मम्मी के पैर छूने को झुके तो मम्मी ने उन्हें पकड़ के उठा लिया और खुद गले लगाती बोलीं ,
"हमारे यहाँ सास दामाद गले मिलते हैं और होली में तो ,… "
जैसे उन्होंने मम्मी की बात समझ कर तुरंत मम्मी को गले लगा के भींच लिया।
मैंने उन्हें चिढ़ाया ,
" मम्मी , आप कि कुछ चीजें बहुत पसंद है "
और जैसे इशारा पा के अपने सीने से मम्मी के भारी भारी बूब्स ( 38 डी डी ) जोर से दबाये और हाथ , मम्मी के चूतड़ सहलाने लगे।
" आनी भी चाहिए "
मम्मी ने भी इन्ही का साथ लेते हुय मुझे झिड़का। और जोर से अपना 'सेण्टर ' उनके ' सेंटर ' पे दबाया। फिर इन्हे चिढाते बोलीं ,
" क्यों मेरा जोरदार है या मेरी समधन का "
" मम्मी , आप दोनों के जोरदार है। दोनों का एक दूसरे से बढ़कर है " वो जोर से दबाते बोले।
" तूझे तो पॉलिटिक्स में होना चाहिए था " मम्मी ने जोर से उनके गाल पिंच कर के बोला बहनो फिर मेरी छोटी को डांटा।
" हे तेरे जीजा खड़े हैं बैठने को तो ,… "
बात काट के मैंने बहनो का साथ दिया , डबल मीनिंग डायलाग में
" अरे मम्मी ससुराल में नहीं खड़े होंगे तो फिर कहाँ होंगे "
मम्मी तो पूरी दलबदलू निकली और बोली
" तेरी बात आधी सही है , खड़े होने का काम तो मेरे दामाद का है ,लेकिन बैठाने का काम तो तेरी बहनो का है ".
हम तीनो बहने हँसते हँसते लोट पोट हो गए।
छुटकी उनका सामान ले के , मेरे कमरे में गयी।
मैं मम्मी के साथ किचेन में और मंझली उन्हें बिठाने में लग गयी।
औरतों का प्राइवेट रूम बेड रूम के अलावा कोई होता है तो वो उनका किचेन , जहाँ वो मन की बातें कर सकती हैं। के
मम्मी ने एक एक बात कुरेद के पूछी।
फिर मैंने मम्मी से अपने मन की बात पूछी ,
"मम्मी मैं सोच रही हूँ छुटकी को ,… "
" क्या हुआ छुटकी को। ।"
मम्मी ने इनके लिए नाश्ता निकालते पुछा।
" मैं सोच रही थी , .... "
मेरे समझ में नहीं आ रहा था की कैसे कहूं कि मम्मी हाँ कर दें और इनके मन कि मुराद और नंदोई जी से किया इनका वायदा पूरा हो जाया।
फिर मम्मी बोली ,
" कहानी मत बना बोल न "
" मैं सोच रही थी कि जब हम लौटेंगे तो छुटकी को भी अपने साथ ले चलूँ , आखिर अभी तो उस कि छुट्टियां ही हैं और वहाँ मेरा भी मन लगा रहेगा। "
मैंने रुकते रुकते बोला /
" अरे यही तो मैं भी सोच रही थी लेकिन सोच नहीं पा रही थी कैसे कहूं तेरी नयी नयी ससुराल , और फिर दामाद जी जाने क्या सोचें। बात ये है की , मंझली के बोर्ड के इम्तहान है और छुटकी है चुलबुली। उसको तंग करती रहेगी। और अगर मंझली या मैंने कुछ बोल दिया तो मुंह फुला के बैठ जायेगी। और मैं भी अपने काम में बीजी रहती हूँ , इसलिए "
" अरे मम्मी , आप भी न , मैं बोल दूंगी न इनसे। मेरी आज तक कोई बात टाली है इन्होने , और फिर उनकी सबसे छोटी साली है , १५-२० दिन के बाद मंझली के इम्तहान ख़तम हो जायेंगे तो वापस भेज दूंगी। "
अपनी खुशी छिपाते मैं बोली।
" अरे तेरी छोटी बहन है जब चाहे तब भेजना। इसका स्कूल तो एक महीने के बाद ही खुलेगा। "
मम्मी बोली।
तब तक बाहर से जीजा सालियों की छेड़खानी , होली की शुरुआत की आवाज आ रही थी। और मेरे लिए बुलावा भी।
वो दोनों चाह रही थी की मैं भी होली के खेल में उनके साथ शामिल हो जाऊं। मैंने साफ बरज दिया।