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Erotica मजा पहली होली का ससुराल में

Shetan

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होरी के हुरियारे


रंग बरसे भीगे ननद हमारी




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अरे कहाँ हो...?”

तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी|

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मैं दबे पाँव वहाँ से बरामदे की ओर चली आई, जहाँ जेठानी के साथ मेरी बड़ी ननद भी थी|

दूर से होली के हुलियारों की आवाजें हल्की हल्की आ रही थीं| जेठानी के हाथ में वही बोतल थी जो वो और नंदोई पी चुके थे और जबरन मेरे भाई को पिला रहे थे|

मैं लाख ना नुकुर करती रही कि आज तक मैंने कभी दारू नहीं पिया लेकिन वो दोनों कहाँ मानने वाली थीं, जबरन मेरे मुँह से लगा कर...ननद बोली,

"भाभी होली तो होती है नए नए काम करने के लिए आज से पहले आपने वो खारा शरबत पिया नहीं होगा, जो चार पांच ग्लास गटक गईं| और अभी तो होली के साथ साथ आपके खाने पीने की शुरुआत हुई है| जो आपने सोचा भी नहीं होगा वो सब...”

जेठानी उसकी बात काट के बोलीं

"अरे तूने पिलाया भी तो है बेचारी अपनी छोटी ननद को... ले गटक मर्दों की आलमारी से निकाल के हम लाये हैं|

फिर तो... थोड़ी देर में बोतल खाली हो गई|

ये मुझे बाद में अहसास हुआ कि आधे से ज्यादा बोतल उन दोनों ने मिल के मुझे पिलाया और बाकी उन दोनों ने| लग रहा था कोई तेज...तेजाब ऐसा गले से जा रहा हो, भभक भी तेज थी, लेकिन उन दोनों ने मेरी नाक बंद की और उसका असर भी पांच मिनट के अंदर होने लगा|

मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि कोई भी आके मुझे चोद देता तो मैं मना नहीं करती|

ननद अंदर चली गईं थी|

थोड़ी देर में होली के हुलियारों की भीड़ एकदम पास में आ गई|

वो जोर जोर से कबीरा, गालियाँ और फाग गा रहे थे|

जेठानी ने मुझे उकसाया और हम दोनों ने जरा सी खिड़की खोल दी, फिर तो तूफान आ गया| गालियों का, रंग का सैलाब फूट पड़ा|

नशे में मारी मैं, मैंने भी एक बाल्टी रंग उठा के सीधे फेंका| ज्यादातर मेरे गाँव के रिश्ते से देवर लगते थे, पर फागुन में कहते हैं ना कि बुढवा भी देवर लगते हैं, इसलिए होली के दिन तो बस एक रिश्ता होता है...लंड और चूत का| रंग पड़ते हीं वो बोल उठे...

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“हे भौजी, खोला केवाड़ी, उठावा साड़ी, तोहरी बुरिया में हम चलाईब गाड़ी|”

“अरे ये भी बुर में जायेंगे...लौड़े का धक्का खायेंगे|” दूसरा बोला|

मैं मस्त हो उठी|

जेठानी ने मुझे एक आइडिया दिया| मैंने खिड़की खोल के उन्हें अपना आंचल लहरा के, झटका के, रसीले जोबन का दरसन करा के, मैंने नेवता दिया|

सब झूम झूम के गा रहे थे,






अरे नक बेसर कागा, ले भागा, सैंया अभागा ना जागा| अरे हमरी भौजी का|

उड़ उड़ कागा, बिंदिया पे बैठा, मथवा का सब रस ले भागा,

उड़ उड़ कागा, नथिया पे बैठा, होंठवा का सब रस ले भागा, अरे हमरी भौजी का|
उड़ उड़ कागा, चोलिया पे बैठा, जुबना का सब रस ले भागा|

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उड़ उड़ कागा, करधन पे बैठा, कमर का सब रस ले भागा, अरे हमरी भौजी का|

उड़ उड़ कागा, साया पे बैठा, चूत का सब रस ले भागा|



एक जेठानी से बोला,


"अरे नईकी भौजी को बाहर भेजा ना, होली खेले के...वरना हम सब अंदर घुस के..."

जेठानी ने घबड़ा के कहा,

"अरे भेजती हूँ, अंदर मत आना|”


मैं भी बोली,


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“अरे आती हूँ, देखती हूँ, कितनी लंबी मोटी तुम लोगों की पिचकारी है और कितना रंग है उसमें या सब कुछ अपनी बहनों की बाल्टी में खाली कर के आये हो|”

अब तो वो और बेचैन हो गये|

जेठानी ने खिड़की उठंगा दिया|




उधर से मेरी छोटी ननद आ गई| अब हमलोगों का प्लान कामयाब हो गया|

हम दोनों ने पकड़ के उसकी साड़ी, चोली सब उतार दी और मेरी साड़ी चोली उसे पहना दी|


(ब्रा ना तो उसने पहनी थी और ना मैंने, वो सुबह की होली में उतर गई थी|)

उसके कपड़े मैंने पहन लिए और दरवाजा थोड़ा सा खोल के, धक्के दे के उसे हुलियारों के हवाले कर दिया|


सुबह से रंग, पेंट, वार्निश इतना पुत चुका था कि चेहरा तो पहचाना जा नहीं रहा था|

हाँ साड़ी और आँचल की झलक और चोली का दरसन मैंने उन सबको इसलिए करा दिया था कि जरा भी शक ना रहे|



बेचारी ननद...पल भर में हीं वो रंग से साराबोर हो गई| उसकी साड़ी ब्लाउज सब देह से चिपके, जोबन का मस्त किशोर उभार साफ साफ झलक रहा था, यहाँ तक की खड़े निप्पल भी|

नीचे भी पतली साड़ी जाँघों से चिपकी, गोरी गुदाज साफ साफ दिख रही थी|

फिर तो किसी ने चोली के अंदर हाथ डाल के जोबन पे रंग लगाना, मसलना शुरू किया तो किसी ने जांघ के बीच, जेठानी ने ये नजारा देख के जोर से बोला,

"ले लो बिन्नो, आज होली का मजा अपने भाइयों के साथ|”

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मैं जेठानी के साथ बैठी देख रही थी अपनी छोटी ननद की हालत जो... लेकिन मेरा मन कर रहा था कि काश मैं हीं चली जाती उसकी जगह|



इतने सारे मरद कम से कम..., सुबह से इतनी चुदवासी लग रही थी...सोचा था गाँव में बहुत खुल के होली होती है और नई बहु को तो सारे मर्द कस कस के रगड़ते हैं, लेकिन यहाँ तो एक भी लंड...



इस समय कोई भी मिल जाता तो चुदवाने को कहे मैं हीं पटक के उसे चोद देती|

दारू के चक्कर में जो थोड़ी बहुत झिझक थी वो भी खतम हो गई थी
Wah ri komaliya. Kya jabardast khel khela. Nandiya ko sare dewar naiki bhouji samaz ke pel rahe he. Unke bhaiyao se unki baheniya ko fasva diya. Chahera ranga kash ke mashle honge. Ise kahete he chhinariya ko randi bana na. Maza aa gaya komalji. Kya masti kya badmashi. Ab komaliya aai he rang me.
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Shetan

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नयकी भौजी पे चढ़ गया /नयकी भौजी चढ़ गयीं अपने,…

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और साथ में मेरी बड़ी ननद|

वो हँस के मुझसे बोलीं,

“हे, ये तेरा छोटा देवर है| जरा शर्मीला है लेकिन कस के रंग लगाना..."


\\फिर क्या था|



आगे


“अरे शर्म क्या, मैं इसका सब कुछ छुड़ा दूंगी, बस देखते रहिये|”

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और मैंने उसे कस के पकड़ लिया| वो बेचारा कूं कूं करता रहा, लेकिन मेरी ननद और जेठानी इतने जोर-जोर से मुझे ललकार रही थीं कि मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था| उसके चेहरे पे मैंने कस के रंग लगाया, मुलायम गाल रगड़े|



“हे भाभी, रंग देवर के साथ खेल रही हैं या उसके कपड़ों के साथ, अरे देवर भाभी की होली है कस के...”


जेठानी ने चढ़ाया,

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“अरे फाड़ दे कपड़े इसके, पहले कपड़े फाड़, फिर इसकी गांड़...”

फिर क्या था, मैंने पहले तो कुरता खींच के फाड़ दिया|


जेठानी ने उसके दोनों हाथ पकड़े तो मैंने पजामे का नाड़ा भी खोल दिया, अब तो वो सिर्फ चड्डी में|

ननद ने भी उसके साथ मिल के मेरी साड़ी खींच दी और ब्लाउज भी फाड़ दिया|




अब एकदम फ्री फॉर ऑल हो गया था| चड्डी उसकी तनी हुई थी| एक झटके में मैंने वो भी नीचे खींच दिया और उसका ६ इंच का तन्नाया लंड बाहर|

शर्मा के उसने उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन तब तक उसे गिरा के मैं चढ़ चुकी थी और दोनों हाथों में कालिख लगा के उसके गोरे लंड को कस-कस के मुठिया रही थी|

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तब तक मेरी ननद ने मेरी भी वही हालत कर दी और कहा,


“भाभी अगर हिम्मत है तो इसके लंड को अंदर ले के होली खेलिए..”


मैं तो चुदवासी थी, थोड़ी देर चूत मैंने उसके लंड के ऊपर रगड़ी और एक झटके में अंदर...




“साल्ले ये ले मेरी चूचि, रगड़, पकड़ और कस के चोद, अगर अपनी माँ का बच्चा है| दिखा दे कि मर्द है| ले ले चोद और अगर किसी रंडी छिनाल की औलाद है तो...”


मैंने बोला और हचक हचक के चोदना शुरू कर दिया| इतनी देर से मेरी प्यासी चूत को लंड मिला था|

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वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन मेरी जेठानी ने उसका मुँह रंग लगाने के साथ बंद कर रखा था|

थोड़ी देर में अपने आप वो भी चूतड़ उछालने लगा और फिर मैंने भी अपनी चूत सिकोड़ के, चूचियाँ उसके सीने पे रगड़ रगड़ के चोदना शुरू कर दिया| मेरे बदन का सब रंग उसके देह में लग रहा था|



ननद मेरी चूचियों में रंग लगाती और वो मैं उसके सीने पे पोत देती|

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थोड़ी देर तक तो वो नीचे रहा लेकिन फिर मुझे नीचे कर खुद ऊपर चढ़ के चोदने लगा|


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नशे में चूर मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था, बस मुझे मजा बहुत आ रहा था| कल रात से हीं जो मैं झड़ नहीं पाई थी, बहुत चुदवासी हो रही थी|


वो तो चोद हीं रहा था, साथ में ननद भी कभी मेरी निप्पल पे, कभी क्लिट पे रंग लगाने के बहाने फ्लिक कर देतीं|




तभी मैंने देखा नंदोई जी...उन्होंने उंगली के इशारे से मुझे चुप रहने को कहा और कपड़े उतार के अपना खूब मोटा कड़ा लंड... मैं समझ गई और मेरे पैर जो उसकी पीठ पे थे.. पूरी ताकत से मैंने कैंची की तरह कस के बाँध लिए...

वो बेचारा तिलमिलाता रहा

लेकिन जब तक वो कुछ समझे, उसकी गांड़ चियार के उन्होंने मोटा, खूब लाल सुपाड़ा उसके गांड़ के छेद पर लगा दिया और कमर पकड़ के जो करारा धक्का मारा... एक बार में हीं पूरा सुपाड़ा अंदर पैवस्त हो गया|

बेचारा चीख भी नहीं पाया क्योंकि उसके मुँह में मैंने जानबूझ के अपनी मोटी चूचि पेल रखी थी|

“हाँ नंदोई जी मार लो साल्ले की गांड़, खूब कस के पेल दो पूरा लंड अंदर, भले हीं फट जाए साल्ले की| मोची से सिलवा लेगा (मैं सोच रही थी मेरा देवर है तो, नंदोई जी का तो साला हीं हुआ|) छोड़ना मत|”


साथ में मैं कस के उसकी पीठ पकड़े हुए थी|

तिल तिल कर उनका पूरा लंड समां गया| एक बार जब लंड अंदर घुस गया तो फिर तो वो लाख कसमसाता रहा, छटपटाता रहा, वो सटासट सटासट, गपागप उसकी गांड़ मारते रहे|

एक बात और जितनी जोर से उसकी गांड़ मारी जा रही थी उतना हीं उसके लंड की सख्ती और चुदाई का जोश बढ़ गया था| हम दोनों के बीच वो अच्छी तरह सैंडविच बन गया था| लंड उसका भले हीं मेरे 'उनके' या नंदोई की तरह लंबा, मोटा ना हो पर देर तक चोदने और ताकत में कम नहीं था| जब लंड उसकी गांड़ में घुसता तो उसी तेजी से वो मेरी चूत में पेलता और जब वो बाहर निकालते तो साथ में वो भी...

थोड़ी देर में मेरी देह कांपने लगी| मैं झड़ने के कगार पे थी और वो भी| जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था...


“ओह्ह ओह्ह हाँ हाआआआं बस ओह्ह...झड़ऽऽऽ रही हूँउउउं...”


कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी


तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हम दोनों के चेहरे का रंग भी कुछ धुल गया और नशा भी हल्का हो गया|
Lo ho gai holi ki asli sharuat are bhai fagun he dewaro ko kon rokega. Nasha bhi or maza bhi.
 
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motaalund

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Thanks so much , ye meri HOTTEST stories men ek hai , bahoot his short lekin utani hi hot
देखन में छोटे लगे... घाव करे गंभीर...
 
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Shetan

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ननद और नंदोई



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थोड़ी देर में मेरी देह कांपने लगी| मैं झड़ने के कगार पे थी और वो भी| जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था...

“ओह्ह ओह्ह हाँ हाआआआं बस ओह्ह...झड़ऽऽऽ रही हूँउउउं...”


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कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी




तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका

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और हम दोनों के चेहरे का रंग भी कुछ धुल गया और नशा भी हल्का हो गया|


“अरे ये ये...तो मेरा भाई है...”


मैंने पहचाना लेकिन तब तक हम दोनों झड़ रहे थे और मैं चाह के भी उसको हटा नहीं पा रही थी|

सच पूछिए तो मैं हटाना भी नहीं चाह रही थी, मेरी रात भर की प्यासी चूत में वीर्य की बारिश हो रही थी|


और ऊपर से नंदोई अभी भी कस के उसकी गांड़ मार रहे थे| हम लोगों के झड़ने के थोड़ी देर बाद जब झड़ कर हटे तब वो मुझसे अलग हो पाया|

“क्यों भाभी, मेरे भैया से तो रोज चुदवाती थीं...कैसा लगा अपने भैया से चुदवाना? चलिए कोई बात नहीं...बुरा ना मानो होली है...अब जरा मेरे सैंया से भी तो चुदवा के देख लीजिए|”

ननद ने छेड़ा|


“चल देख लूंगी उनको भी...” रस भरी निगाहों से नंदोई को देखते हुए मैं बोली|

तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी|

वो और जेठानी जी उसे लेके अंदर चली गईं और मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|



कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|

तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,

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“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”


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“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|

“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|”


दोनों एक साथ बोले|
Wow matlab jija ke jija. Or unke bhi jija. Matlab trepal jija. Le komalita. Ab to holi khelne ka maza Kai gunah badh jaega.

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Shetan

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नंदोई दो सलहज एक

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तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी|

वो और जेठानी जी उसे लेके अंदर चली गईं और मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|

कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|





तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,


“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”

“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|


“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|” दोनों एक साथ बोले|

मैंने रंग से जवाब दिया, पास रखी रंग की बाल्टी उठा के सीधे दोनों पर एक साथ और दोनों नंदोई रंग से सराबोर हो गये|


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दूसरी बाल्टी का निशाना मैंने सीधे उनके खूंटे पे...पर तब तक वो दोनों भी संभल गए थे| एक ने मुझे पीछे से पकड़ा और दूसरे ने पहले गालों पे, फिर मेरी लपेटी, देह से चिपकी साड़ी के ऊपर से हीं मेरे जोबन पे रंग लगाना शुरू कर दिया|

“अरे एक साथ दोनों डालियेगा क्या?” मैंने हँस के पूछा|

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“मन मन भावे...अरे भाभी मन की बात जुबान पे आ गई| साफ साफ क्यों नहीं कहती कि एक साथ आगे पीछे दोनों ओर का मजा लेना चाहती हैं|”

ननद ने हँस के चिढ़ाया|




“हम दोनों तैयार हैं|” दोनों साथ साथ बोले|

“आगे वाली तेरी, पीछे वाली मेरी..”

नंदोई ने टुकड़ा लगाया|

तब तक गिरे हुए रंग पे फिसल के मेरे छोटे (जो बाद में आये थे और जिसे ननद ने जीजा कहा था) नंदोई गिरे और उन्हें पकड़े पकड़े उनके ऊपर मैं गिरी| रंग से सराबोर|

नंदोई ने मेरी साड़ी खींच के मुझे वस्त्रहीन कर दिया| लेकिन अबकी ननद ने मेरा साथ दिया| मेरे नीचे दबे छोटे नंदोई का पजामा खींच के उनको भी मेरी हालत में ला दिया| (कुरता बनियान तो दोनों का हमलोग पहले हीं फाड़ के टॉपलेस कर चुके थे और नंदोई ने मेरी ननद को भी... तो अब हम चारो एक हालत में थे|)

क्या लंड था, खूब मोटा, एक बालिश्त सा लंबा और एकदम खड़ा|


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ननद ने अपने हाथों में लगा रंग सीधे उनके लंड पे कस-कस के पोत दिया|

मैं क्यों पीछे रहती, मेरे मुँह के पास नंदोई जी का मोटा लंड था|

मैंने दोनों हाथों से कस-कस के लाल पक्का रंग पोत दिया| खड़ा तो वो पहले से हीं था, मेरा हाथ लग के वो लोहे का रॉड हो गया, लाल रंग का| मेरे नीचे दबे नंदोई मेरी चूत और चूचि दोनों पे रंग लगा रहे थे|

“अरे चूत के बाहर तो बहुत लगा चुके, जरा अंदर भी तो लगा दो मेरी प्यारी भाभी जान को|” ननद ने ललकारा|


“अरे चूत क्या, मैं तो सीधे बच्चेदानी तक रंग दूंगा, याद रहेगी ये पहली होली गाँव की|” वो बोले|


जब तक मैं संभलूं संभलूं, उन्होंने मेरी पतली कमर को पकड़ के उठा लिया और मेरी चूत सीधे उनके सुपाड़े से रगड़ खा रही थी|

ननद ने झुक के पुत्तियों को फैलाया और नंदोई ने ऊपर से कन्धों को पकड़ के कस के धक्का दिया और एक बार में हीं गचाक से आधे से ज्यादा लंड अंदर|
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मैंने भी कमर का जोर से लगाया और जब मेरी कसी गुलाबी चूत में वो मोटा हलब्बी लंड घुसा तो होली का असली मजा आ गया|


मेरे हाथ का रंग तो खत्म हो गया था...जमीन पे गिरे लाल रंग को मैंने हाथ में लिया और कस-कस के पक्के लाल रंग को नंदोई के लंड पे पोत के बोलने लगी,


“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”






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Vah ri komaliya. Jitna sajana ko do saliyo ka maza nahi aaega us se to dungna tune do do nabdoiyo ka le liya. Agadi or pichhadi.

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नए मजे होली के

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चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”

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वो कस के ठेलते बोले|

तब तक छोटे नंदोई का लंड भी फिर से खड़ा हो गया था| मेरी ननद ने कुछ बोलना चाहा तो उन्होंने उसे पकड़ के निहुरा दिया और बोले,

“चल अब तू भी गांड़ मरा, बहुत बोल रही है ना..”

और मुझसे कहा कि मैं उसकी गांड़ फैलाने में मदद करूँ|



मुझे तो मौका मिल गया| पूरी ताकत से जो मैंने उसकी चियारी तो...क्या होल था? गांड़ का छेद पूरा खुला खुला| तब तक नंदोई ने मेरे मुँह से लंड निकाल लिया था|

उनका इशारा पाके मैंने मुँह में थूक का गोला बना के ननद की खुली गांड़ में कस के थूक के बोला,


“क्यों मुझे बहुत बोल रही थी ना छिनाल, ले अब अपनी गांड़ में लंड घोंट| नंदोई जी एक बार में हीं पूरा पेल देना इसकी गांड़ में|”



उन्होंने वही किया|

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हचाक हचाक...और थोड़ी देर में उसकी गांड़ से भी गांड़ का...




अब मुझे कोई...घिन नहीं लग रही थी| बल्कि मैं मजे से देख रही थी| लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आ रही थी कि ननद बजाय चीखने के अभी भी क्यों मुस्कुरा रही थीं|

वो मुझे थोड़ी देर में हीं समझ में आ गया, जब उन्होंने उनकी गांड़ से अपना...लिथड़ा लंड निकाल के सीधे...जब तक मैं समझूं संभलूं मेरे मुँह में घुसेड़ दिया|

मैं मुँह भले बना रही थी...लेकिन अब थोड़ा बहुत मुझे भी...और मैं ये समझ भी गई थी कि बिना चाटे चूटे छुटकारा भी नहीं मिलने वाला| ओं ओं मैं करती रही लेकिन उन्होंने पूरे जड़ तक लंड पेल दिया|


“अरे भाभी अपनी गांड़ के मसाले का बहुत मजा ले लिया, अब जरा मेरी गांड़ के...का भी तो मजा चखो, बोलो कौन ज्यादा मसालेदार है? जरा प्यार से चख के बताना|”



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ननद ने छेड़ा|

तब तक नंदोई ने बोला,



“अरे ज्यादा मत बोल, अभी तेरी गांड़ को मैं मजा चखाता हूँ| सलहज जी जरा फैलाना तो कस के अपनी ननद की गांड़|”

मैं ये मौका क्यों चूकती|


वैसे मेरी ननद के चूतड़ थे भी बड़े मस्त, गोल गोल गुदाज और बड़े बड़े|

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मैंने दोनों हाथों से पूरे ताकत से उसे फैलाया| पूरा छेद और उसके का माल...सब दिख रहा था|

नंदोई ने दो उंगली एक साथ घुसेड़ी कि ननद की चीख निकल गई| लेकिन वो इतनी आसानी से थोड़ी हीं रुकने वाले थे|

उसके बाद तीन उंगली, सिर्फ अंगूठा और छोटी उंगली बाहर थी और तीनों उंगली सटासट सटासट...

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अंदर बाहर,

मैंने चूत की फिस्टिंग की बात सुनी थी लेकिन इस तरह गांड़ में तीन उंगली एक साथ...

मैं सोच भी नहीं सकती थी| एक पल के लिए तो गांड़ से निकले मेरे मुँह में जड़ तक घुसे लंड को भी भूल कर मैं देखती रही| वो कराह रही थी, उनके आँखों से दर्द साफ साफ झलक रहा था|

पल भर के लिए जब मेरे मुँह से लंड बाहर निकला तो मुझसे रहा नहीं गया,


“अरे चूत मरानो, मेरे बहन चोद सैंया की रखैल, पंच भतारी, बहुत बोल रही थी ना मेरी गांड़ के बारे में...क्या हाल है तेरी गांड़ का? अगर अभी मजा ना आ रहा हो तो तेरे भैया को बुला लूं| जरा कुहनी तक हाथ डाल के इसकी गांड़ का मजा दो इसे| इस कुत्ता चोद को इससे कम में मजा हीं नहीं आता|”

मैं बोले जा रही थी और उंगलियाँ क्या लगभग पूरा हाथ उनकी गांड़ में...तब तक वो लसलसा हाथ गांड़ से निकाल के...उन्होंने एक झटके में पूरा मेरे मुँह में डाल दिया और बोले,

“अरे बहुत बोलती है, ले चूस गांड़ का रस...अरे कुहनी तक तो तुम दोनों की गांड़ और भोंसड़े में डालूँगा तब आयेगा ना होली का मजा| लेकिन इसके पहले मजा दूं जरा चूस चाट के मेरा हाथ साफ तो कर सटासट|”

मैं गों गों करती रही लेकिन पूरा हाथ अंदर डाल के उन्होंने चटवा के हीं दम लिया|

“अरे चटनी चटाने से मेरी प्यारी भाभी की भूख थोड़े हीं मिटेगी| ले भाभी सीधे गांड़ से हीं|”

वो मेरे ऊपर आ गयी और बड़ी अदा से मुझे अपनी गांड़ का छेद फैला के दिखाते हुए बोलीं|


“अरे तू क्या चटाएगी...? सुबह तेरी छोटी बहन को मैं सीधे अपनी बुर से होली का...गरमा गरम खारा शरबत पिला चुकी हूँ| सारी की सारी सुनहली धार एक एक बूंद घोंट गई तेरी बहना|”

खीज के मैंने भी सुना दिया|

“अरे तो जो भाभी रानी आपको सुबह से हमलोग शरबत पिला रहे थे उसमें आप क्या समझती हैं...क्या था? आपकी सास से लेके...ननद तक, लेकिन मैंने तय कर लिया था कि मैं तो अपनी प्यारी भाभी को होली के मौके पे, सीधे बुर और गांड़ से हीं...तो लीजिए ना|”


और वो मेरे मुँह के ठीक उपर अपनी गांड़ का छेद कर के बैठ गईं|

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लेकिन मैंने तय कर लिया था कि लाख कुछ हो जाय अबकी मैं मुँह नहीं खोलूंगी| पहले तो उसने मेरे होंठों पे अपनी गांड़ का छेद रगड़ा, फिर कहती रही कि सिर्फ जरा सा, बस होली के नाम के लिए, लेकिन मैं टस से मस ना हुई|

फिर तो उस छिनाल ने कस के मेरी नाक दबा दी| मेरे दोनों हाथ दोनों नंदोइयों के कब्जे में थे और मैं हिल डुल नहीं पा रही थी| यहाँ तक की मेरी नथ भी चुभने लगी|

थोड़ी देर में मेरी साँस फूलने लगी, चेहरा लाल होने लगा, आँखें बाहर की ओर|

“क्यों आ रहा है मजा, मत खोल मुँह...”

वो चिढ़ा के बोली और सच में इतना कस के उसने अपनी गांड़ से मेरे होंठों को दबा रखा था कि मैं चाह के भी मुँह नहीं खोल पा रही थी|

“ले भाभी देती हूँ तुझे एक मौका, तू भी क्या याद करेगी...किसी ननद से पाला पड़ा था|”

और उसने चूतड़ ऊपर उठा के अपनी गांड़ का छेद दोनों हाथों से पूरा फैला दिया|

“ऊईई उईईईई...|”


मैं कस के चीखी| नंदोई ने दोनों निप्पल्स को कस के पिंच करते हुए मोड़ दिया था| मेरे खुले होंठों पे अपनी फैली गांड़ का छेद रख के फिर वो कस के बैठ गई और एक बार फिर से मेरी नाक उसकी उँगलियों के बीच| अब गांड़ का छेद सीधे मेरे मुँह में| वो हँस के बोली,

“भाभी बस अब अगर तुम्हारी जीभ रुकी तो...अरे खुल के इस नए स्वाद का मजा लो|

अरे पहले आपकी चूत को जब तक लंड का मजा नहीं मिला था, चुदाई के नाम से बिदकती थीं, लेकिन जब सुहागरात को मेरे भैया ने हचक हचक के चोद चोद के चूत फाड़ दी तो एक मिनट इस साली चूत को लंड के बिना नहीं रहा जाता|

पहले गांड़ मरवाने के नाम से भाभी तेरी गांड़ फटती थी, अब तेरी गांड़ में हरदम चींटी काटती रहती है, अब गांड़ को ऐसा लंड का स्वाद लगा कि...तो जैसे वो स्वाद भैया ने लगाए तो ये स्वाद आज उनकी बहना लगा रही है| सच भाभी ससुराल की ये पहली होली और ये स्वाद आप कभी नहीं भूलेंगी|”







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तब तक मेरी दोनों चूचियाँ, मेरे नंदोइयों के कब्जे में थी|

वो रंग लगा रहे थे, चूचि की रगड़ाई मसलाई भी कर रहे थे| दोनों चूचियों के बाद दोनों छेद पे भी...नंदोई ने तो गांड़ का मजा पहले हीं ले लिया था तो वो अब बुर में और छोटे नंदोई गांड़ में...मैं फिर सैंडविच बन गई थी|

लेकिन सबसे ज्यादा तो मेरी ननद मेरे मुँह में...झड़ने के साथ दोनों ने फिर मेरा फेसियल किया मेरी चूचियों पे...


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और ननद ने पता नहीं क्या लगाया था कि अब 'जो भी' मेरी देह से लगता था...वो बस चिपक जाता था| घंटे भर मेरी दुरगत कर के हीं उन तीनों ने छोड़ा|

बाहर खूब होली की गालियाँ, जोगीड़ा, कबीर...| जमीन पे पड़ी साड़ी चोली किसी तरह मैंने लपेटी और अंदर गई कि जरा देखूं मेरा भाई कहाँ है|
Aaj to puri kabu me rahi tu komaliya. Do do nandoi or ek sahalj. Teri agadi or teri hi pichhadi. Upar se nanand ke agadi puchhadi ka swad alag. aaya maza

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Shetan

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In chhinar chhoti nandiyo ko class room me randipana dikhane me bahot maza aata he.

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IMG-20230115-042757 IMG-20230115-042744 IMG-20230115-042732 Ye he komaliya ki manjli. Jiske pichhvade se komaliya jee bhar ke apne shaiya ko parosne vali he.

IMG-20230115-042649 IMG-20230115-042632 IMG-20230115-042615 IMG-20230115-042600 IMG-20230115-042543
 

komaalrani

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भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये॥

जैसे मकर राशी में सूर्य का तेज बढता है, उसी तरह आपके स्वास्थ्य और समृद्धि की हम कामना करते हैं। मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।

 
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गाँव की होली का मजा




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बाहर खूब होली की गालियाँ, जोगीड़ा, कबीर...| जमीन पे पड़ी साड़ी चोली किसी तरह मैंने लपेटी और अंदर गई कि जरा देखूं मेरा भाई कहाँ है|



उस बिचारे की तो मुझसे भी ज्यादा दुरगत हो रही थी|

सारी की सारी औरतें यहाँ तक की मेरी सास भी...

तब तक मेरी बड़ी ननद भी वहाँ पहुँची और बोलीं,
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“अरे तुम सब अकेले इस कच्ची कली का मजा ले रहे हो! रुक साल्ले, अभी तेरी बहन को खिला पिला के आ रही हूँ, अब तेरा नंबर है, चल अभी तुझे गरम गरम हलवा खिलाती हूँ|”

मैं सहम गई कि इतनी मुश्किल से तो बची हूँ, अगर फिर कहीं इन लोगों के चक्कर में पड़ी तो...उन सबकी नजर बचा के मैं छत पे पहुँच गई|

बहुत देर से मैंने 'इनको' और अपनी जेठानी को नहीं देखा था|







शैतान की बात सोचिये और...भुस वाले कमरे में मैंने देखा कि भागते हुए मेरी जेठानी घुसीं और उनके पीछे पीछे उनके देवर यानी मेरे 'वो' रंग लेके| अंदर घुसते हीं उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया|




पर ऊपर एक रोशनदान से, जहाँ मैं खड़ी थी, अंदर का नजारा साफ साफ दिख रहा था| '




इन्होंने' अपनी भाभी को कस के बाँहों में भर लिया और गालों पे कस-कस के रंग लगाने लगे| थोड़ी देर में 'इनका' हाथ सरक के उनकी चोली पे और फिर चोली के अंदर जोबन पे...वो भी न सिर्फ खुशी खुशी रंग लगवा रही थीं, बल्कि उन्होंने भी 'उनके' पाजामे में हाथ डाल के सीधे 'उनके' खूंटे को पकड़ लिया|

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थोड़ी हीं देर में दोनों के कपड़े दूर थे और जेठानी मेरी पुआल पे और 'वो' उनकी जाँघों के बीच...और उनकी ८ इंच की मोटी पिचकारी सीधे अपने निशाने पे|


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देवर भाभी की ये होली देख के मेरा भी मन गनगना गया और मैं सोचने लगी कि मेरा देवर...देवर भाभी की भी होली का मजा ले लेती|

सगा देवर चाहे मेरा न हो लेकिन ममेरे, चचेरे, गाँव के देवरों की कोई कमी नहीं थी|

खास कर फागुन लगने के बाद से सब उसे देख के इशारे करते, सैन मारते, गंदे गंदे गाने गाते और उनमें सुनील सबसे ज्यादा| उनका चचेरा देवर लगता था, सटा हुआ घर था उन लोगों के घर के बगल में हीं|


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गबरू पट्ठा जवान और क्या मछलियाँ थी बाँहों में, खूब तगड़ा, सारी लड़कियाँ, औरतें उसे देख के मचल जाती थीं|

एक दिन फागुन शुरू हीं हुआ था, फगुनाहट वाली बयार चल रही थी कि गन्ने के खेत की बीच की पगडंडी पे उसने मुझे रोक लिया और गाते हुए गन्ने के खेत की ओर इशारा कर के बोला,

“बोला बोला भौजी, देबू देबू, कि जईबू थाना में|”


अगले दिन पनघट पे जब मैंने जिकर किया तो मेरी क्या ब्याही, अन ब्याही ननदों और जेठानियों की साँसें रुकी रह गई|

एक ननद बेला बोली,

“अरे भौजी आप मौका चूक गई| फागुन भी था और रंगीला देवर का रिश्ता भी, आपकी अच्छी होली की शुरुआत हो जाती| फिर तो...”

एकदम खुल के एक ननद बोली, जो सबसे ज्यादा चालू थी गाँव में,

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“अरे क्या लंड है उसका, भाभी एक बार ले लोगी तो...”

चंपा भाभी (जो मेरी जेठानियों में सबसे बड़ी लगती थीं और जिनका 'खुल के' गाली देने में हर ननद पानी मांग लेती, दीर्घ स्तना, ४०डी साइज के चूतड़) बोलीं,

“हाँ, हाँ, ये एकदम सही कह रही है, ये इसके पहले बिना कुत्ते से चुदवाए इसे नींद नहीं आती थी लेकिन एक बार इसने जो सुनील से चुदवा लिया तो फिर उसके बाद कुत्तों से चुदवाने की आदत छूट गई|

बेचारी ननद, वो कुछ और बोलती उसके पहले हीं वो बोलीं,

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“और भूल गई, जब सुनील से गांड़ मरवाई थी सबसे पहले, तो मैं हीं ले के गई थी मोची के पास...सिलवाने|”

तब तक

'हे भौजी..'

की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा, सुनील हीं था, अपने दो तीन दोस्तों के साथ, मुझे होली खेलने के लिए नीचे बुला रहा था
Fagun he here vo Naha rukte. Par bhushe ke kamre vali halchal chhupae na chupe. Ab holi he to holi he.
 

Shetan

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देवर -भौजाई,.... होली की रगड़ाई

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तब तक 'हे भौजी..' की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा, सुनील हीं था, अपने दो तीन दोस्तों के साथ, मुझे होली खेलने के लिए नीचे बुला रहा था| मैंने हाथ के इशारे से उसे मना किया|

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दरवाजा बंद था इसलिए वो तो अंदर आ नहीं सकता था| लेकिन मन तो मेरा भी कर रहा था, उसने उंगली के इशारे से चूत और लंड बना के चुदाई का निशान बनाया तो उसकी बहन गुड़िया का नाम लेके मैंने एक गंदी सी गाली दी और साड़ी सुखाने के बहाने आँचल ढलका के उसे अपने जोबन का दरसन भी करा दिया|




अब तो उस बेचारे की हालत और खराब हो गई|


दो दिन पहले जब वह फिर मुझे खेतों के बीच मिला था तो अबकी उसने सिर्फ हाथ हीं नहीं पकड़ा बल्कि सीधे बाँहों में भर लिया था
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और खींच के गन्ने के खेत के बीच में...छेड़ता रहा मुझे,

“अरे भौजी तोहरी कोठरिया में हम झाड़ब, अरे आगे से झाड़ब, पीछे से झाड़ब, उखियो में झाड़ब, रहरियो में झाड़ब, अरे तोहरी कुठरिया...|”


आखिर जब मैंने वायदा कर लिया कि होली के दिन दूंगी सचमुच में एकदम मना नहीं करुँगी तो वो जाके माना|


जब उसने नीचे से बहुत इशारे किये तो मैंने कहा कि अपने दोस्तों को हटाओ तो बाहर आउंगी होली खेलने| वो मान गया| मैं नीचे उतर के पीछे के दरवाजे से बाहर निकली|


मैंने अपने दोनों हाथों में गाढ़ा पेंट लगाया और कमर में रंगों का पैकेट खोंसा| सामने से वो इशारे कर रहा था|

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दोनों हाथ पीछे किये मैं बढ़ी| तब तक पीछे से उसके दोनों दोस्तों ने, जो दीवाल के साथ छिप के खड़े थे, मुझे पीछे से आके पकड़ लिया|


मैं छटपटाती रही|


वो दोनों हाथों में रंग पोत के मेरे सामने आके खड़ा हो गया और बोला,

“क्यों डाल दिया जाय कि छोड़ दिया जाय, बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाय|”



मैं बड़ी अदा से बोली,

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“तुम तीन हो ना तभी...छोड़ो तो बताती हूँ|”

जैसे हीं उसके इशारे पे उसके साथियों ने मुझे छोड़ा,

'होली है..' कह के कस के उसके गालों पे रंग मल दिया|

अच्छा बताता हूँ, और फिर उसने मेरे गुलाबी गालों को जम के रगड़-रगड़ के रंग लगाया| मुझे पकड़ के खींचते हुए वो पास के गन्ने के खेत में ले गया और बोला असली होली तो अब होगी|

“हाँ मंजूर है, लेकिन एक एक करके पहले अपने दोस्तों को तो हटाओ|”

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उसके इशारे पे वो पास में हीं कहीं बैठ गये| पहले ब्लाउज के ऊपर से और फिर कब बटन गये, कब मेरी साड़ी ऊपर सरक गई...थोड़ी देर में हीं मेरी गोरी रसीली जाँघें पूरी तरह फैली थीं, टाँगे उसके कंधे पे और 'वो' अंदर|



मैं मान गई कि जो चंपा भाभी मेरी ननद को चिढ़ा रही थीं वो ठीक हीं रहा होगा| उसका मोटा कड़ा सुपाड़ा जब रगड़ के अंदर जाता तो सिसकी निकल जाती|

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वो किसी कुत्ते की गाँठ से कम मोटा नहीं लग रहा था| और क्या धमक के धक्के मार रहा था, हर चोट सीधे बच्चेदानी पे|

साथ में उसके रंग लगे हाथ मेरी मोटी-मोटी चूचियों पे कस के रंग भी लगा रहे थे|

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पहली बार मैं इस तरह गन्ने के खेत में चुद रही थी, मेरे चूतड़ कस-कस के मिट्टी पे, मिट्टी के बड़े-बड़े ढेलों से रगड़ रहे थे| लेकिन बहुत मजा आ रहा था और साथ में मैं उसकी बहन का नाम ले ले के और गालियाँ भी दे रही थी,



“चोद साले चोद, अरे गुड़िया के यार, बहन के भंडुए, देखती हूँ उस साल्ली मेरी छिनाल ननद ने क्या-क्या सिखाया, उस चूत मरानो के खसम, तेरी बहन की बुर में...गदहे का लंड जाय|”

वो ताव में आके और कस-कस के चोद रहा था| हम दोनों जब झड़े तो मैंने देखा कि बगल में उसके दोनों दोस्त,


“भौजी हम भी...”

मैं कौन होती थी मना करने वाली|

लेकिन उन दोनों ने, मैंने जो सुना था कि गाँव में कीचड़ की होली होती है, उसका मजा दे दिया|

बगल में एक गड्ढे में कीचड़ था, पहले तो वहाँ से लाके कीचड़ पोता मुझे| मैं क्यों छोड़ती अपने देवरों को| मैंने भी कुछ अपने बदन का कीचड़ रगड़ के उनकी देह पे लगाया, कुछ उनके हाथ से छीन के| फिर उन सबने मिल के मेरी डोली बना के कीचड़ में हीं ले जा के पटक दिया|

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एक साथ मुझे मड रेस्लिंग का भी मजा मिला और चुदाई का भी|

थोड़ी देर वो ऊपर था और फिर मैं ऊपर हो गई और खुद उसे कीचड़ में गिरा-गिरा के रगड़ के चोदा|



बस गनीमत थी कि उनके दिमाग में मुझे सैंडविच बनाने का आइडिया नहीं आया, इसलिए मेरी गांड़ बच गई|


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उन सबसे निपटने के बाद मैंने साड़ी ब्लाउज फिर से पहना और खेत से बाहर निकली|
Wah fagun ka mahina or kichad ki holi.
Anag se anag lage to lage ki dewar bhabhi ki holi.
 
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