इंद्रा ने अपना गाउन पहन लिया। अपने गद्दे के नीचे से एक छोटा पाउच निकाला और उसमें से एक 10 रुपए का आधा नोट निकाला। उस पर पैन से कुछ लिखा और शिफा को पकड़ा दिया। उसके कदम अभी भी डगमगा रहे थे। शिफा ने नोट पढ़ा और अपनी ब्रा में रख लिया। किंजल सोफे पर सर पीछे टिका कर आंखे बंद करके बैठी थी। उसे नींद का नशा हो रहा था। आधे घंटे बाद किसी ने बैरक का दरवाजा खटखटाया। ज्योति उठी और परदा हटा कर देखा। एक महिला कैदी हाथ में एक बड़ा लिफाफा लिए खड़ी थी। ज्योति ने दरवाजा खोल लिफाफा लिया और वापिस दरवाजा बंद कर दिया।
लिफाफा अंदर लाते ही बैरक में खाने की खुशबू फैल गई। किंजल की आंखे खुली। उसने बहुत दिनो बाद ये खुशबू महसूस की थी। ज्योति ने लिफाफा टेबल पर रखा। उसमे से पैक की हुई 4 थाली थी। पैकेट पर शहर के मशहूर हलवाई का नाम लिखा था। खाने की खुशबू से ही किंजल की आंखे खुल गई। इतने दिनों बाद उसे खाने की अच्छी खुशबू आई थी। सबने अपने अपनी थाली उठाई। उसकी सील खोली और खाने लगे। किंजल और ज्योति भूखे कुत्तों की तरह खा रहे थे। 3 मिनट में उन्होंने अपनी अपनी थाली खतम कर दी। शिफा ने दोनो को जाने का इशारा किया। दोनो उठी और बाहर जाने लगी। पीछे से इंद्रा और शिफा धीमी आवाज में कुछ बाते करने लगे। ज्योति सीधा वहा चल पड़ी जहां जेल के बच्चों को पढ़ाया जा रहा था। ज्योति ने पास जाके एक बच्चे पर नजर डाली और वापिस ग्राउंड की तरफ चली गई।
किंजल को भी समझ नही आया कि कहा जाए तो वो ग्राउंड की तरफ चलने लगी। उसे अपने आप पर घिन्न आ रही थी। जब वो महिला गार्डों की बगल से निकली तो वो भी किंजल को देख तिरछी नजर से मुस्कुराई। किंजल को उनकी नजरें तीर की तरह चुभ रही थी। पहली बार किसी ने उसका शारीरिक इस्तेमाल किया था। वो भी लेस्बियन। दोपहर का सूरज सर पे था। ग्राउंड में एक कोने पर बेंच रखा था। जहा छांव नही थी। वहां कोई नही था। किंजल उस बेंच पर जा कर बैठ गई। घुटने मोड़ उनमें अपना सर छिपा कर सुबक सुबक कर रोने लगी। उसे खुद से इंद्रा के बदन को बू आ रही थी। वो नहाना चाहती थी। अपने शरीर से इंद्रा की गंदगी हटाना चाहती थी। लोग इतने गंदे होते है उसने सपने में भी नही सोचा था। उसने जुर्म किया था। पर इतनी विकृति। किंजल का रोना थम नहीं रहा था। तभी किसी ने उसके कंधे पे हाथ रखा। किंजल ने घबरा कर हाथ हटा कर देखा। ये ज्योति थी। किंजल ने वापिस अपना सर छिपा लिया। ज्योति किंजल के पास बैठ गई और उसके सर में हाथ फिराने लगी।
"देख तेरे साथ पहली बार हुआ है इसलिए तू इतना रो रही है। मुझे तो आदत हो गई है। ये जेल है। यहां मजबूरियों का फायदा उठाया जाता है। हमारा भी उठाया जा रहा है। धीरे धीरे वक्त बदल जायेगा। " ज्योति हाथ फेरते हुए बोली।
"तुम्हारी क्या मजबूरी है??" किंजल ने सर उठा के पूछा।
"तुझे बता रही हूं। पर किसी से बोलना मत। मेरा बेटा भी है मेरे साथ यहां। 7 साल का है। यहां 6 साल से ऊपर के बच्चों को नही रख सकते। पर मैने समझोता किया यहां के दलालों से। उन्होंने उसकी उम्र 2 साल कम लिखवा दी है। अब वो मेरे साथ है। बाहर मेरा कोई नही है। समझौता ना करती तो मेरा बेटा बाहर किसी अनाथालय में होता। मैं ये कभी नही चाहती। बस इसीलिए उस गंदगी को झेल लेती हू।" ज्योति आंसू पोंछते हुए बोली।
किंजल अब शांत थी। उसे समझ आ रहा था कि ये सब और चलेगा आगे।
"पर तू टेंशन मत ले। शिफा ध्यान भी रखती है। मेरे बेटे को यहां खाने पीने में कोई कमी नही होती। काम अपनी जगह है। पर सबका ध्यान भी रखती है।" ज्योति ने समझाया।
"तू यहां बैठी है? शिफा खोज रही थी तुझे।" सोनिया उनके पास आकर बोली।
किंजल ने प्रश्नवाचक नजरों से सोनिया की तरफ देखा। सोनिया उसकी आंखों में देख कर समझ गई कि वो रो रही थी। "देख ऐसे परेशान मत हो। जेल में जिंदगी ऐसे ही काटनी पड़ती है। धीरे धीरे आदत हो जायेगी। सबसे जरूरी है यहां जिंदा रहना।" सोनिया उसकी आंखों में देखते हुए बोली। "चल अब शिफा दीदी ने बुलाया है।"
किंजल खड़ी हो गई। और सोनिया के पीछे चल दी। सोनिया लॉन्ड्री की तरफ बढ़ने लगी। तो किंजल के कदम रुक गए। उसके आंखों के सामने सरिता के साथ हुआ मंजर चलने लगा। "अरे चल ना, कुछ नही होता।" सोनिया ने मुड़ कर किंजल का हाथ पकड़ा और खींचते हुए ले गई।