Rocky2602
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(Episode 4)
सुबह उठा तो बड़ी मामी उठ कर पहले ही जा चुकी थी।मैं आज काफी देर बाद उठा था।कांता भी साफ सफाई करके चली गयी थी। मैं बाथरूम में गया नहा कर बाहर आया।सब नाश्ता करके अपने अपने काम पर लग गए थे।कल आये हुए मेहमान सुबह ही जा चुके थे।मैं नाश्ते के मेज पर जाके बैठ गया।छोटी मामी बड़ी मामी और मा किचन में खाने की तैयारी में थे।
नाश्ता डायनिंग टेबल पर ही था।मैंने नाश्ता खुद से परोसा।तभी छोटी मामी ने ताना मारा
छो मामी:हमारे यहाँ सारे काम समय पे होते है।कभी भी आओ खाओ अइसे संस्कार नही हमारे।
मैंने गुस्से में मा के पास देखा तो उन्होंने शांत रहने बोला।
मैंने नाश्ता खाना चालू किया।
छो मामी:देखो संस्कार की बात बोली तब भी कैसे कैसे लोग होते है निर्लज्जो की तरह जीते है
अभी पानी नाक के ऊपर गया।आत्मसन्मान भी कुछ चीज होती है।मैं नाश्ता वही डाल के उठ गया।तभी बड़ी मामी ने छो मामी को चिल्ला दिया।
ब मामी:क्यो शिला बहोत संस्कार कायदे कानून की बाते कर रही हो।भूलो मत यहाँ पर इस बातों के अधिकार सिर्फ पिताजी के पास है।किसीको भी घर के सदस्य का अपमान करने का हक नही है।
छो मामी:पर भाभी मैं तो घर के कायदे कानून ही बता रही थी।
ब मामी:कोई जरूरत नही उसकी।तुम्हे किसीने बोला है क्या सबको कायदे कानून बताते फिरने को।खाने के ऊपर टोकने वाले को भगवान भी माफ नही करता।डरो भगवान से।
छो मामी:अच्छा अभी इसके लिए आप मुझे ताना दोगी।ये अधिकार आपको भी किसीने नही दिया।
ब मामी:तुम्हे मुझे बताने की जरूरत नही अपना गिरेबान झांक बाद में दुसरो को बता।
छो मामी:गिरेबान की बात आप भी नाही करे तो ठीक है ।
माँ ने झगड़े को संभालते हुए।बीच में पड़ के दोनो को समझाया।छो मामी पैर पटकते हुए चली गयी।
ब मामी मा को:आप क्यो बीच में आयी।इसकी बत्तमीजी बहोत बढ़ रही है आजकल।अक्ल ठिकाने लानी पड़ेगी।किसको क्या बोलना कुछ मालूम नही।
माँ:जाने दो बड़ी भाभी गुस्सेवाली है।आप बड़ी है समझदार है।आप भी झगड़ने लगोगी तो घर कैसे चलेगा
माँ मुझसे:और तुम कल से या तो जल्दी उठो या कमरे में जेक खाओ।तुम्हारी वजह से ये बवाल हो गया।
इस बात पे बड़ी मामी ने मा को भी सुना दिया
बड़ी मामी:तुम उसको क्यों बोल रही है।उसकी क्या गलती है।तुम उसे मत चिल्लाओ।पहले ही बता देती हु।ये उसका भी घर है।वो जो करेगा उस्की मर्जी।
माँ और मुझे बड़ी मामी का मेरे लिए इतना भावुक होना एकदम अनोखा और अजीब सा लगा।उसका कारण मैं समझ गया पर मा तो भौचक्के की तरह देखती रही।
बड़ी मामी मुझसे:देख वीरू सुबह मेहमान गए है तो तुम्हारे मामा और नाना बिना खाना लिए गए है।तो तुम आज आफिस में खाना लेके जाना।
मैं:ठीक है मामी जी।
मैं अपने कमरे में निकल गया।
इधर किचन मे-
माँ:बड़ी भाभी उसकी क्यो ऑफिस भेज रही हो।कुछ गलती कर दी तो बड़े भैया नाराज हो जाएंगे।
बडी दी मा के कंधे पे हाथ रखते हुए:आप क्यो चिंता करती हो।बच्चा बहोत काबिल और होशियार है।और इनको बता दिया है की वीरू खाना लेके आएगा।अरे उसको उतना ही नया मौहोल मिल जाएगा।घर बैठ के ऊब गया होगा।
माँ:बड़ी भाभी सच में शुक्रिया।कितना खयाल करती हो मेरे लल्ला का।
(ब मामी मन में-इसका खयाल रखूंगी तभी वो मेरा ख्याल और मेरे चुत का खयाल रखेगा।तूने कितने दिनों से इस तगड़े लण्डवाले को छुपा के रखा था।अभी इसे खोना नही चाहता।)
मैं किताब पढ़ रहा था तो माँ मुझे बुलाने आई।
माँ-वीरू चल बेटा ।ऑफिस जाना है।तैयार हो जाओ।और ऑफिस में सही बर्ताव करना।कुछ गलती मत करना।
मैं रेडी होकर नीचे आया।खाना लिया और शिवकरण चाचा के साथ ऑफिस के लिए निकला।ऑफिस पहुंचने तक हमने इतनी बाते की जिससे इतने कम समय में हम दोस्त बन गए।
ऑफिस में जाने के बाद शिवकरण चाचा ने सबसे मेरा परिचय करवाया।मैंने जहा खाना खाते है वह पर खाना रखने गया।वह छोटे मामा थे।मुझे देख मुस्कराते हुए स्वागत किया।
छो मामा:अरे वीरू आ जाओ।खाना यहाँ रखो।तुमने खाया?
मैंने हा बोल दिया।
छो मामा:अच्छी बात है,पर पिताजी भैया को समय लगेगा।तबतक तुम ऑफिस और फैक्ट्री देख लो।ठीक है मैं आता हु।
छोटा मामा वहाँ से अपने काम के लिए निकल गया।मैं ऑफिस घूमते घूमते फैक्ट्री घूमने लगा।एक जगह जहा स्टोर रूम (सामान रखने की जगह)जैसा कुछ था।उसके बाहर ऑफिस का चपरासी खड़ा था।जगह फेक्ट्री और ऑफिस से काफी दूर था।
मैं सोच में पड़ गया।ऑफिस और फेक्ट्री से इतने दूर ये चपरासी कर क्या रहा है।मुझे कुछ शक हुआ इसलिए मैं वहाँ चला गया।मुझे देख उसकी नजर घुमने लगी।पैर कांपने लगे,पूरा शरीर पासिना पासिना।वो दरवाजे को धीमे से क्नॉक करने लगा।
मैं उस चपरासी से:यहाँ क्या कर रहे हो।
तभी अंदर से किसी की आवाज आने लगी।
मैंने धक्का देके दरवाजा खोला।
अंदर का आदमी:कौन है बे?
(अंदर एक 30 साल का आदमी पेंट आधी नीचे कर के खड़ा था और एक औरत करीब 35 से 40 साल की उम्र होगी,उस आदमी के लन्ड को चूस रही थी।मुझे देख ओ औरत बाजू हो गयी।उसने अपने खुले हुए चुचे छुपाने की कोशिश की)
मैं:ये क्या चल रहा है यहाँ?
"तू है कौन ये पूछने वाला"वो आदमी चिल्लाते हुए अपनी पेंट सही कर रहा था।
चपरासी:बड़े साब के पोते है सर
चपरासी की बात सुन के उस आदमी की हवाइयां निकल गयी।
वो आदमी:माफ करना सर फिरसे गलती नही होगी।और पैर पड़ने लगा।
मैं:कौन हो तुम?
चपरासी:साब मजदूरों का सुपरवाइजर है।फेक्ट्री की मजदूरो को यही संभालता है।
मैं उस आदमी से:अच्छा तो ये सुपरवाइजिंग हो रही है।
मैं चपरासी से:ये चपरासी नाम क्या है तेरा?
चपरासी:मक्खन साब
मैं:ये मक्खन इस उजड़े बटर को लेके जा।
वो आदमी मेरे पैर पड़ने लगा।पर चपरासी उसको खींचते हुए लेके गया।
मैं उस औरत से:तुम्हारा नाम क्या है?
वो औरत:रेखा
मैं:यह क्या करती हो?
रेखा:मजदूरी के लिए अति हु साहब
मैं:कौनसी ये वाली मजदूरी
रेखा चुप सी ही गयी।
मैं:अभी मुह में लन्ड नही है तेरे बकना चालू कर
वो रोते हुए गिड़गिड़ाने लगी:माफ करदो सब मेरी गलती नही है,वो धमकाता रहता है की वो मुझे काम से निकाल देगा अगर मैं उसके साथ नही सोई तो।
मैं:कोई कुछ भी बोलेगा तो तू मान जाएगी।कुछ आत्मसन्मान जैसी बात नही क्या।
रेखा:गरीब को कैसा आत्मसन्मान घर म छोटे बच्चे दिनभर पीके पड़ा आदमी ,अगर काम नही होगा तो घर कैसे चलेगा।इसलिए करना मजबूरी है।
मैं:ये मजबूरी मतलब अगर मैं कहु मेरे साथ सो तो सोएगी।
वी भौचक्क कर देखने लगी।
मैं:आँखे क्या फाड़ रही है जवाब दे।वो तो वैसे भी नौकर है कम्पनी का।मैं भी तुम्हे निकाल दु तो?
रेखा:अयसे मत करो साब गरीब हु कहा जाऊंगी।जैसे आप कहे।वही करूंगी।
मैंने बाहर देखा कोई है क्या।मुझे दूर तक कोई दिखाई नही दिया।मैंने स्टोर रूम का दरवाजा बन्द किया।
रेखा:ये क्या कर रहे हो साहब।ये गलत है।
मैं:क्यो मेरे कम्पनी में काम करने के लिए मेरे नोकर के साथ सो सकती हो ।तो मैं मालिक हु।मेरे से क्या परेशानी??!!!
रेखा की नजर झुक गयी।
मैं:अभी सती सावित्री मत बन चल ब्लाउज खोल।
रेखा ने पूरा ब्लाउज खोल के निकाल दिया।
मैं:साड़ी भी निकल फटाफट
उसने साड़ी भी निकाल दी।अभी सिर्फ पेटीकोट और उसके अंदर पेंटी उसके अलावा कुछ नही था।
मैं:चल चुचे मसलना चालू कर।(मैंने मेरा पेंट नीचे किया और लन्ड हिलाते हुए बोला।
वो चुपचाप अपने चुचे मसलने लगी।उसके उस दृश्य से मेरा लन्ड भी तन गया।
मैंने उसको अपने पास बुलाया और बाजू में रखे मेज पर घोड़ी जैसा टिकाया और पीछे खड़े होकर लण्ड लगा दिया।और धक्के देके चोदने लगा।
रेखा-"आआह आआह उम्मम आआह ओओओ आआह चोदो आआह उम्मम और अंदरआआह आआह उम्मम आआह ओओओ आआहआआह आआह उम्मम आआह ओओओ आआहआआह आआह उम्मम आआह ओओओ आआहआआह आआह उम्मम आआह ओओओ आआह
मेरे पास वक्त की बहोत कमी थी।पर हाथ की मछली अइसे ही छोड़ना मेरी फितरत में नही।इसलिए जितना मिला उतना मजा ले लिया।मैंने उसके चुचो को पीछे से मसलना चालू किया।
उसकी चुत में लन्ड घोड़े का रेस चल रही थी।उसके चुत में मेरे लन्ड के जलवे हो रहे थे।पर मेंरे अंदाज से भी पहले वो झड़ गयी।
मैंने लन्ड निकाला और उसे नीचे बैठा कर उसके मुह में दे दिया।उसने हिला हिला के चुसा और जैसे ही झडा सारा लन्ड रस मुह पर।
वो तैयार हो गयी।
मैं:देखो रेखा जी।फिरसे आप उसके साथ ये करते पकड़े गयी तो खैर नही।इस बार माफ कर दिया।
रेखा: ठीक है साब मेहरबानी आपकी।
मैं भी इसके साथ ऑफिस गया।शिवकरण अंकल खड़े थे पहले से खाली डब्बा लेके।मैं आते ही दोनो घर आने को निकल गए।
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