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Incest माँ को पाने की हसरत

Monster Dick

the black cock
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एक लंबी सी अंगड़ाई लेते हुए अपने गर्दन को दाई और बाई ओर मोडते हुए मैं अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ...सामने स्लाइडिंग डोर के खुले होने से सफेद पर्दे हवाओं से लगभग छत की दीवारो को छू रहे थे....बाहर घाना अंधेरा था यक़ीनन सुबह 4:30 में अंधेरा ही होता है...मैने एक बार अपनी बाई ओर नज़र फिराई...तो अहसास हुआ चादर ओढ़े अब भी आकांक्षा सो रही थी...

आकांक्षा का चेहरा उसकी बिखरी ज़ुल्फो से ढका सा हुआ था....मैने आगे बढ़के उसके बदन से सफेद चादर एक झटके में उठा ली...तो पाया अबतक उसने अपनी टाँगों के बीच सफेद रंग की पैंटी झिल्ली सी पहन ली थी जो कल रात मैने खींचके सोफे के पास उसकी चुदाई करने से पहले ही उतार दी थी

वो अब भी आँखे मुन्दे घारी नींद में सोई हुई थी उसके बदन पे एक भी कपड़ा नही था उसकी चुचियाँ उसके करवट एक ओर लेने से आपस में दबी हुई सी थी...उसके दोनो हाथ एकदुसरे के उपर थे..मैने दुबारा से मुस्कुराते हुए उसके बदन पे सफेद चादर ढक दी...उसे उठाना नही था मुझे....आख़िर उसने पूरी रात मुझे मज़ा जो दिया था...करीब 2 बजे ही उसे छोड़ा था...हालाँकि 3 बार चुदाई के बाद वो बुरी तरह थक चुकी थी पर उसने मुझे ना एक बार भी ना कहा...काफ़ी ओबीडियेंट लड़की थी बेचारी...मेरे इतने हार्डकोर (भीषण) चुदाई के बाद भी उसने आहह आह करके सिर्फ़ सिसकिया ही मुँह से निकाली..आख़िर करती भी क्या? मेरे भाई ने उसे धोका जो दे दिया था

जी हां मेरा कज़िन भाई आकाश जिसकी वो ना जाने कौन सी नंबर वाली गर्लफ्रेंड थी....उसकी तो आदत थी कपड़ों की तरह लड़कियो को बदलना...लेकिन इस बेवकूफ़ ने उससे बेपनाह प्यार कर लिया और फिर उसके हवस को धोखा जान पड़ते हुए खुदकुशी करने की कोशिश की थी पर मेरे लाख समझाने के बाद उसने ये कदम नही उठाया....लेकिन उसे प्यार से भरोसा हट गया वो उन लड़कियो में से बन गयी जो खुद मर्दो को इस्तेमाल करने की चीज़ समझने लगी उन लड़कियो की तरह जो एक बार कोठे पे आती तो है लेकिन उसके बाद उन्हें हर किसम की चुदाई की आदत सी हो जाती है शरमो हया के गहने तो बहुत पहले ही उतार दिए जाते है....और फिर उन्हें ना लाज ना शरम और ना डर रहता है ना उन्हें घिन आती है कि कितनो से मरवाई कितनो से चुदवायी और कितनो के चूसे....बस उनकी एक ही हसरत बन जाती है और वो है पैसा.....खैर आकांक्षा कोई कॉल गर्ल नही बनी थी या कोई रंडी नही थी भाई के धोका देने के बाद मेरे लाइफ में आई थी एक दोस्त की हैसियत से कुछ मुलाक़ातो के बाद मैने उसकी जवानी में आग लगा दी

और फिर उसने खुद ही अपने आपको मुझे सौंप दिया....लेकिन ऐसा लगा जैसे कुँवारापन मैने उसका छीना था...उसके दोनो छेदों मे सख्ती बरक़रार थी....क्यूंकी भाई की लुल्ली और मेरे लंड में कहीं ना कही फरक़ था...दाद दूँगा उसकी जो मेरे इतने मोटे लंबे लंड को लुल्ली समझके उससे चुदने को तय्यार हो गयी शायद हवस की ही वो आग थी...पर अब उसे देखके लग नहीं रहा था कि दूसरे दिन भी उसकी आँख खुलेगी....पर मुझे ज़रा सी परवाह ना थी....क्यूंकी मुहब्बत और रहम तो मेरे अंदर भी नही थी...बस मेरा तो उस पर दिल आ गया था...

मेरी ज़िंदगी भी अजीब सी है...माँ बाप से झगड़ा किया और दिल्ली जैसे बड़े शहर को छोड़ कर अपने होम टाउन आ गया....था ही कौन बस एक माँ बाप केर करने वाले ननिहाल में जिसमें से मेरी एक मौसी मेरे होम टाउन में रहती है बाकी ददिहाल वालो से कोई मतलब नही था..पर अगर भूले भटके भेंट हो जाए तो बस दो चार बातें और फिर अलविदा....वो भी मुझे याद नही करते पर माँ बाप तो करते है...पर उन्हें कैसे बताता? हसरत जिस चीज़ की है वो तो मुझे मेरे होमटाउन में ही मिल सकती है

जब तक अयाशी का कीड़ा बदन में रोम रोम में समाया हुआ है तबतक यहाँ से वापिस बड़े शहर जाना मुझे भाने नही वाला...वो लोग आजतक मेरी इस हसरत को जानते नही पर शायद जान भी ना पाए...अगर सब कुछ वोई मिल जाता तो यहाँ आने के की क्या नौबत ? पर यहाँ की दास्तान बचपन से जो माँ से सुनते आया हूँ इसलिए इस जगह से एक और प्यार सा हो गया है
 

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खुल्लम खुल्ला अयाशी यहाँ का जैसे एक रिवाज़ सा बन गया है....हालाँकि कौन किसके साथ क्या कर रहा है किसी को फरक़ नही हां पर माँ बहन तक तो ठीक अगर किसी की गर्लफ्रेंड बीवी फँसी हुई हो किसी और से अपने मर्द के होते हुए तो फरक़ पड़ ही जाता है..2 साल हुए आए हुए ना जाने कितनी सरकारी नौकरिया के इम्तिहान दिए पर हाथ कुछ ना लगा हालत के आगे पिता जी की थोड़ी सी मदद के साथ यहाँ डिसट्रिब्युटर की नौकरी पा चुका हूँ....हालाँकि पिता जी को भी ऐतराज़ था मेरे यहाँ रहने से..पर मेरी सामने उनकी एक ना चली...अब तो बस फोन पे हाल चाल ही की ही बातें होती है

खैर मैं तब्तलक अपने डमबेल और बारबेल सेट को निकालके लगभग 1 घंटा एक्सर्साइज़ करने लगा....हर एक मसल्स की एक्सर्साइज़ के बाद जैसे शरीर हार्ड सा हो गया...काफ़ी पसीना बहाने के बाद 2 बनाना लिए और मिक्सर में दूध डालके उसे अच्छे से ग्राइंड करके शेक बनाया....उसकी चुस्किया लेते हुए बिस्तर के पास ही सोफे पे ढेर हो गया...सूरज निकल चुका था...हापी छोड़ते हुए काफ़ी थका हुआ चेहरा लिए आकांक्षा उठी फिर उसने मुस्कुराया....

कुछ देर में उसके हाथ में मैने 500 के 4 नोट दिए....वो मुस्कुराइ किसी रंडी की तरह अपने पर्स में मेरे दिए हुए पैसे रखने लगी....हमने साथ में नाश्ता किया....और फिर उसके बाद वो घर से निकलने को हो गयी

आदम : घर में क्या बहाना मारोगी?

आकांक्षा : बोल दूँगी सहेली के यहाँ हूँ इट ईज़ नोट सो हार्ड तो मे माँ को समझा लूँगी और पापा की तो लाडली हूँ हाहाहा

आदम : ओके घर तक छोड़ दूं

आकांक्षा : नही पैदल ही चली जाउन्गी वैसे तुमने अंदर तो नही छोड़ा था ना पेशाब के वक़्त भी छेद खुला खुला सा लग रहा था

आदम : हाहाहा पहली बार मोटा लंड लिया है ना धीरे धीरे लोगि तो आदत पड़ जाएगी

आकांक्षा ने ऐसा इशारा किया आँखो से जैसे वो आखरी ही था

मैने पहलू बदला और उसके सवालात का जवाब दिया "नही डबल कॉंडम चढ़ाया था"

आकांक्षा : ओह तब तो ठीक है

आदम : बाइ

आकांक्षा : बाइ आदम (कहते हुए मेरे सामने ही वो घर से 10 कदम दूर ही चली थी कि उसने हाथ दिखा के एक थ्री वीलर को रोका और उस पर चढ़के चली गयी)

मैं वापिस घर में आके तय्यार होके सुबह 9 बजते बजते काम के लिए निकल पड़ा....अकेला रहने का यही फ़ायदा होता है ना किसी से मतलब रखो बस ज़िंदगी को ऐश से जियो पर अपने तो याद आते ही है....और माँ भला बेटे से जुदा तो रह नही सकती...माँ का फिर सुबह में कॉल आया कल रात को उठाया नही था...क्या कहता कि मैं आकांक्षा की चुदाई कर रहा था? माँ की रूखी सुखी बातों के बाद मैने फोन कट कर दिया....

एक बार माँ की तस्वीर को देखने लगा.....और फिर दिल मसोसते हुए उसे टेबल पे रख दिया काश माँ मेरी फीलिंग्स को समझ सकती कि उसके बेटे की क्या चाहत है? लेकिन ऐसी भी क्या चाहत जो परिवार से दूर रहके पूरी हो? पर नेकी और बदी में कभी कभी बदी की ही जीत होती है....
 

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अब तक मैने किसी भाभी या आंटी को चोदा नही था....लेकिन मुझे अपने उपर पूरा विश्वास था कि मैं उन्हें चोद सकता हूँ और ये कॉन्फिडेन्स दिलाने वाली एक मात्र थी चंपा...चंपा टाउन के बदनाम लालपाडा एरिया में रहती थी.....पेशे से बाई थी...कामवाली नही चुदाइ वाली बाई....उसे देखके मुझे बांग्ला हीरोइने की याद आ जाती थी साली पहनती ही कुछ ऐसे कपड़े थी....कपड़े बोलूं तो साड़ी जिससे उसकी नाभि दिखती थी.....साली के ब्लाउस का उपरी बटन हमेशा खुला रहता था शायद कस्टमर को रिझाने के लिए होता था उसके होंठो की वो लाल लिपस्टिक हद से ज़्यादा गोरी थी और उपर से कांख के बाल को वॅक्स करके एकदम चिकना रखती थी चूत के भी बाल ब्यूटी पार्लर में जाके वॅक्स करवाती थी उसने खुद ही बताया....गुलाबी दोनो छेद थे चुचियाँ भी दस मर्दो के दबाने से मोटी दशहरी आम जैसी हो गयी थी पर उससे मिलना भी जैसे संजोग था....पर बिना उसके पास जाए दिल मानता नही था....पर जब दिल एमोशनल होता था तो उसकी तरफ दिल जाने का इरादा नही करता था....एक तरह से तो मैं अपने माँ बाप को धोका देके रह रहा था....लेकिन अपनी इस ज़रूरत के चक्कर में मैं सबकुछ गवाने को जैसे तय्यार था

ये एक ऐसा नशा था जो मुझे हर पल वापिस उसी साँचें में ढाल रहा था...अभी माँ की तस्वीर की तरफ देखते हुए सोच ही रहा था कि...

इतने में पास रखा फोन बज उठा...

फोन रिसीवर कान में लगाते ही....आवाज़ पहचानने में देरी ना लगी

"हेलो"....आवाज़ सुनते के साथ मैने रिसीवर को दाए कान से हटाते हुए बाए कान में लगाया

आदम : हां बोलो चंपा

चंपा : हम क्या बोलेंगे? आपने तो आजकल आना ही छोड़ सा दिया है

आदम : हां वो दरअसल काम में फँसा हुआ था

चंपा : हां हां ये कम्बख़्त काम (अपनी ज़ुल्फो से खेलती होंठो को काटती हुई चंपा ने जवाब दिया)

आदम : ह्म दरअसल अभी मूड नही बन रहा था ना तो इसलिए मैं आ नही पा रहा था

चंपा : अर्रे सरकार मूड का क्या है? चंपा दो मिनट में नरम को गरम कर सकती है और गरम को नरम भी आप आके तो देखिए हुज़ूर

आदम : चंपा मैं टाइम निकालके आता हूँ ना

चंपा : क्यूँ आज क्यूँ नही सरकार? ओह हो कहीं कोई नयी घोड़ी मिल गयी क्या चरने को ?

आदम : चंपा देख तमीज़ से बात कर ऑफीस में हूँ किसी और ने रिसीवर उठा लिया तो मेरी ऐसी कम तैसी हो जाएगी बात को समझ यार

चंपा : क्या करें हुज़ूर? पहले तो अपने मर्ज़ी से आने लगते हो फिर खुजली लगा के उतर जाते हो हमे क्या ठंडी औरत समझ रखे हो का ?

आदम जानता था बातों से बात महेज़ बढ़ेगी....साली रंडी को एक से दो बार चोद क्या दिया? थोड़ा प्यार के दो मीठे बोल क्या बोल दिए महँगा सेंट वाला तोहफा क्या दे दिया? साली तो अब छाती पे चढ़ने लगी थी....चंपा जैसी लीचड़ से पीछा छुड़ाना थोड़ा मुस्किल था...आदम जानता था खुजली चूत के साथ साथ पैसो की है..और आदम हर राउंड के बाद बिना आना कानी किए पैसा दे देता था ग़लती उसकी भी थी जिसने कुछ ज़्यादा ही जोश में आके अपने पैसो की धौंस जमा दी थी चंपा की नज़रों में...
 

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आदम ने फोन कट कर दिया....मूड बहुत खराब हो गया था...लेकिन चंपा ने दुबारा फोन नही किया....आदम कुर्सी पे पसरते हुए माँ की तस्वीर की तरफ देख रहा था....काश माँ तुम समझ पाती? तो ना इतना दूर अकेले रहता और ना परिवार से जुदा हो पाता...पर सच मुहब्बत सिर्फ़ नसीब वालो को मिलती है बदनसीब वालो को नही जो आदम खुद को समझता था..

उधर दिल्ली में आदम की माँ अंजुम अपनी सहेली हेमा के घर आई थी....उसने टाइट नीले रंग का सूट पहन रखा था ..थोड़ा ढका पोश पहनती थी इसलिए खुले गले वाली कमीज़ नही थी....थोड़ा इन्तिजार करने के बाद दरवाजा हेमा ने खोला वो जैसे हड़बड़ाई हुई सी थी....अंजुम को देखके उसने मुस्कुराया और उसका हाथ पकड़े अंदर ले आने लगी

अंजुम ने उसकी हालत का जायेज़ा ले लिया था...क्यूंकी ब्लाउस से उसके निपल सॉफ दिख रहे थे जल्दबाज़ी में 39 साइज़ की ब्रा भी पहनना भूल गयी थी...उसके पीछे का ब्लाउस का फीता लगभग खुला था..और आगे से उसकी दो तरबूज़ जैसे दूध ब्लाउस में जैसे दबे हुए से थे उसका क्लीवेज सॉफ दिख रहा था....अंजुम ने पीछे की ओर देखा तो टाय्लेट से आदमी बाहर आया...अंजुम को जानने में देरी ना लगी कि ये हेमा का बाय्फ्रेंड संजय था....जो कि उसके पति की गैर हाज़िरी में यहाँ आता था अपनी भूक मिटाने....हेमा अब भी हाँफ रही थी उसने अंजुम को बैठने को कहा....और उसी के सामने अपनी पेटिकोट का नाडा बाँधने लगी

संजय सकपकाया हुआ अंजुम को देखने लगा जो उसे घूर रही थी और शरम से आँखे इधर उधर करने लगी...."अर्रे अंजुम जी आप यहाँ पे अच्छा हेमा मैं चलता हूँ तुम लोग बात करो".......हेमा मुस्कुराइ संजय ने अंजुम के सामने ही हेमा के गर्दन से लेके उसके पीछे खुले गले तक अपना हाथ फिराया और बिना कुछ कहे पीछे से उसकी पेटिकोट में 2000 के दो नोट फँसा दिए...ये सारी हरकत अंजुम देख रही थी शरम से उसके गाल लाल थे पर चुप थी...संजय ने गंदी सी हसी हँसी...और अपने खुले बदन पे सफेद शर्ट डालता हुआ घर से निकल गया

हेमा : और बता ? कैसे आना हुआ? तू शाम को आती

अंजुम : अच्छा और रात को घर थकि हारी जाके खाना बनती..तेरी तरह आराम नही है मुझे

हेमा : मुझे किसका आराम? मेरी दोनो बेटियाँ आएँगी 8 बजे तक तब्तलक मैं चावल चढ़ा दूँगी सब्ज़िया काट दूँगी बाद में खाना वो बनाएँगी

अंजुम : तुझे पता भी है संजय के यूँ आने जाने से तेरी पोल क्सिी दिन तेरे दूसरे पति के आगे खुल सकती है ह्म सरदार जी नही है तभी गुलच्छर्रे उड़ा रही है कमीनी

हेमा : तो तुझे जलन क्यूँ होती है? क्या हम दोनो ने मिलके कयि आदमियो से चट्टिंग नही की और एक तो फोन पे तेरी आवाज़ का ही दीवाना हो गया था

अंजुम : वो बीता कल था तेरी मज़बूरी में मैने साथ दिया और तूने सबको मेरा ही नंबर दे दिया पता है बाद में चेंज करना पड़ा आदम के बाप को मालूम पड़ जाता

हेमा : अच्छा छोड़ जाने दे वो तो मज़बूरी थी भला जिसका पति अपनी पत्नी को दिन रात जलाता हो बातों से थप्पड़ और मारपीट से तो ऐसी औरत का क्या सुख बचता है? अगर सरदार आया ना होता ज़िंदगी में तो अब तक ग़रीबी की आह और विधवा होने के शाप ने मार ही डाला होता....वो तो चला गया दुनिया से मुझे ग़रीब बेसहारा छोड़कर लेकिन अच्छा ही हुआ उसके सितम से दूर तो हो गयी

अंजुम : पर ये जो तू कर रही है उसका क्या? पहले राकेश फिर भान और अब ये अर्रे कही बीमारी लग गयी ना तुझे? तेरे सरदार जी को मालूम पड़ा तो !

हेमा : छोड़ ना आजकल तो टाइम देता नही कहता है बिज़्नेस के सिलसिले में बिहार जाना पड़ जाता है अर्रे वो बिहार नही अपने इकलौते बंग्लो में किसी कुँवारी 25 साल की लौंडिया के साथ चुदाई करता है पैसे वाला जो है अय्याश इंसान बस मेरी मज़बूरी से उसकी आँख क्या भर गयी थी? कि मुझे बीवी का दर्ज़ा दे डाला

अंजुम मन ही मन बुदबुदाने लगी ह्म बीवी का दर्ज़ा या रखैल का....एरिया में तो वैसे ही हवा उड़ गयी की सरदार की रखैल है पहले कामवाली थी...जो घरो घर बर्तन मांजती थी आज 50 गज के दिए हुए आलीशान घर में रहती है....सरदार तो बेहया था...पहली बीवी जो सरदारनी थी जिसके साथ वो रहता था और दूसरी जिसे उसने काफ़ी दबाव और प्रेशर देने पे बीवी माना ज़रूर था पर उसकी अहमियत उसके दिए चार दीवारी घर में मोहताज उसकी टुकड़ो पे पलती एक रखैल सी थी..बेटियो का भी खर्चा वोई चलाता था...हालाँकि बेटियाँ अब जॉब करने लगी थी हेमा की

लेकिन हर कोई जो भी हेमा को जानता था उसके बारे में यही कहता था कि वो सरदार की रखैल है...सरदार से अफेर होने से पहले हेमा ने पैसो की मज़बूरी के लिए काफ़ी मर्दो से रिश्ता जोड़ा था....हालाँकि उसने अंजुम के किराए का मकान भी इस काम के लिए कितनी बार यूज़ भी किया....दोनो के जाने के बाद अंजुम को ही बाथरूम की सॉफ सफाई करनी पड़ती थी...पर हेमा उसके घर की कामवाली ही नही बल्कि उसकी एक अच्छी दोस्त भी बन गयी थी कभी भी कोई भी प्राब्लम होता तो हेमा बेझिझक उसकी हेल्प करती थी...पर पैसो की शौहरत पाते ही धीरे धीरे हेमा और उसकी दोस्ती फीकी पड़ने सी लगी थी...क्यूंकी अंजुम को उसकी पर्सनल लाइफ से कोई शिकायत नही थी पर वो अब दूरिया बनाना चाहती थी इस राज़ का भागीदार खुद आदम भी था जिसने हेमा और केयी अनगिनत मर्दो को उसके साथ बाथरूम में बंद होते देखा था...लेकिन माँ के डर से वो उस वक़्त वहाँ मज़ूद नही होता था बस छुप छुपके देखता था...और एक बार तो उसे बाथरूम में गाढ़ा पीला सा वीर्य भी दिखा था जिसे बाद में उसकी माँ ने ये कह कर उससे छुपाया कि शायद इजी का पाउच फर्श पे गिर गया होगा...पर बेटे की आँखो से कुछ ना छुपा और वो भी धीरे धीरे हेमा से क्लोज़ हो गया

आदम को कोई ऐतराज़ नही था कि उसकी माँ कैसी औरत के साथ उठती बैठती है या इधर उधर जाती है? उसे पूरा विश्वास था हेमा आंटी पे और अपनी माँ पे....कहीं ना कहीं ये सच भी था...

हेमा : उफ्फ अब बता क्या बात है? तेरा बेटा कैसा है? (हेमा ने अपने चेहरे को तौलिए से पोंछते हुए कहा)

अंजुम : क्या बताऊ? कितने महीने हो गये उसे गये हुए? आजकल कॉल भी नही करता (अंजुम उदास अपना दुख बाँट रही थी हेमा सुनते हुए अपने ब्लाउस के बटन लगा रही थी)

हेमा : ह्म्म्मथ बात तो है तुझे भूल गया है हाहाहा बीयर पिएगी

अंजुम : तू क्या सीरीयस नही है? और मुझे पीने को कह रही है मैं नही पीती तू ही पी (गुस्से भरे स्वर में)

हेमा : अर्रे तू तो गुस्सा हो गयी? चिल यार हाहाहा उसके लिए दुखी ना हो साला ठर्की हो गया था इसलिए अपनी प्यास भुजाने गया इस बात पे तो तू मुझपे भी नाराज़ नही हो सकती

अंजुम ने सर झुका लिया....उसे सच में इस बात का अहसास था

अंजुम : फिर भी बेटा है ना वो मेरा वैसे मुझे उस जगह से कोई दिक्कत नही है पर मुझे डर है कि कहीं अकेले में वो लड़कियो को घर में लेके ना आ जाए वहाँ की लड़किया पैसा एन्ठेन्गी और बीमारी दे जाएँगी कहीं कोठे पे ना जाने लगे नशा ना करने लगे

हेमा : काहे को तू इतनी फिकर कर रही है हेमा...ज़िंदगी जीने दे उसे बड़ा हो गया है कब तक अपने पल्लू में बाँध के रखेगी...

अंजुम : फिर भी माँ हूँ ना पति से तो कुछ मिला नही बेटे से आस लगाई थी लेकिन अब वो आस भी चली गयी उसके जाने के बाद मैं उसे कितना मिस कर रही हूँ...हम मा बेटे से ज़्यादा दोस्त जैसे थे....कभी भी रात गये बाज़ार जाने तक नही देता था कहता था माँ अकेले क्यूँ जा रही हो? माँ फोन साथ लेके जाओ? माँ मैं चलूं क्या? पर मैं ही उसकी आदतो की वजह से उसे अकेला घर में छोड़ जाती थी....

हेमा : ह्म उस दिन रंगे हाथो जो उसकी असलियत पकड़ी गयी थी हाहाहा कैसे पाजामे में अपनी छोटी सी नुन्नि को छुपाए उपर आ रहा था....और तूने उसके उभार को नोटीस कर लिया और मैने झट से जब उसका पाजामे का एलास्टिक पकड़ा..तो पाजामे पे हाथ रखते ही हाथ पे गीला गीला वीर्य लग गया था उसका
 

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अंजुम : ह्म्म्मथ और मैने पाजामा खोल कर जब उसके लिंग को देखा उसने पूरा पाजामा गंदा कर दिया था और पूछने पे भोलेपन से कहने लगा मम्मी पता नही अपने आप हो जाता है

हेमा : हां वो भी क्या जाने? की वो किससे छुपा रहा है उस वक़्त तो नादान था बढ़ती उमर थी पर अब तो जवान हो गया है वो और ब्याह लायक भी

अंजुम : हेमा प्ल्ज़्ज़ शादी की बात मत कर.....कहीं ये कसर भी वो पूरी ना कर ले

हेमा : पर मेरा जहाँ तक दिल कहता है वो ऐसा कदम नही उठाएगा अभी नया नया जवानी का ज़ोर चढ़ा है जब ठंडा पड़ेगा तब अपने आप उसे उकताहट होने लगेगी

अंजुम : हां मैं भी यही उम्मीद करती हूँ उससे चाहे जैसा भी रहे ज़िद्दी रहे पर वो कभी ग़लत कदम नही उठाएगा

हेमा : ह्म मर्दो की पहचान है मुझे और उसे तो बचपन से देखते आई हूँ इन्ही हाथो से नहलाया है उसे लेकिन सच में अंजुम तेरे बेटे का लिंग काफ़ी मोटा है उस वक़्त वो वैसा था तो ना जाने अभी

अंजुम : छी फालतू की बातें मत सोचा कर हेमा तू भी ना

हेमा : अर्रे तू तो चिड गयी...वैसे तुझे पता है आज कल के लड़के लड़कियों से ज़्यादा औरतो में दिलचस्पी लेते है

अंजुम : क्या बक रही है? कुछ भी

हेमा : अर्रे हां सुन तो ले ये मेरी बेटी की सहेली का भाई है ना वो अपनी माँ की उमर की औरतो के साथ अफेर रखे हुए है

अंजुम : क्या? (अंजुम जानती थी उस लड़के को जो उसके बेटे से बड़ा था इसलिए उसका मुँह खुला का खुला रह गया)

हेमा : अर्रे हां आज कल के लड़को का इंटेरेस्ट चाची,भाभी ऐसी बड़ी उमर की महिलाओ में हो गया है

अंजुम : सच में दुनिया खराब हो चुकी है

हेमा : ह्म पर जहाँ तक मैं समझती हूँ माँ का हक़ बच्चो पे ज़्यादा होता है और ख़ासकर बेटों पे बेटियाँ तो कल को अपने घर चली जाती है पर पूरी ज़िंदगी तो माँ को अपने बेटे के संग बितानी पड़ती है और शादी ब्याह करके तो बीवी बेटों को तो अपनी मुट्ठी में कर लेती है....और कभी कभी वक़्त रहते घर से गान्ड पे लात मार के माओ को निकलवा भी देती है

अंजुम : हां ये बात तो है पर क्या कर सकते है?

हेमा : कर सकते है मेरे पास एक आइडिया है जिससे तेरा बेटा वापिस आ सकता है

अंजुम : क्या?

हेमा : देख बुरा मत मानना पर तूने जैसे कहा तेरा बेटा तेरे दुख सुख का साथी था और तुम दोनो के बीच कुछ छुपा नही तूने और उसने कभी एकदुसरे से शरम और लिहाज़ नही किया...माँ बेटे की हर ज़रूरत पूरी करती है उसे कंट्रोल माँ ही रख सकती है क्या तू उसकी हर ख्वाहिश पूरी नही कर सकती

अंजुम : तू कहना क्या चाह रही है? मेरी कुछ समझ नही आ रहा

हेमा : देख मैं कहना चाह रही हूँ कि जो उसकी अभी की ज़रूरत बनी है उसे पूरा करने की कोशिश तो कर सकती है उससे बात करके या उसे समझा भुजाके उसे आकर्षित करके हमबिस्तर तो हो सकती है

अंजुम : छी छी ये क्या वाहियात बात कह रही है तू? अर्रे बेटा है वो मेरा उसे नौ महीने कोख में रखा है मैने और मैं अपने ही बेटे के साथ ये गुनाहगारी है अगर वो मेरे बारे में ये सब सुनेगा तो क्या सोचेगा? और मैं अब तक उसके बाप से उसके पैदाइशी के बाद मिली नही हूँ और अब तो काफ़ी अरसा हो गया

हेमा : मासिक तो अब भी आते है ना तुझे

अंजुम : हां फिर भी नही हेमा मैं तो खुद ये काम नही कर पाउन्गी और तू मेरी दोस्ती का नाजायेज़ फायेदा ना उठा

अंजुम काफ़ी गुस्सा हो गयी उसे बुरा लगा था और अज़ीब सा भी...काफ़ी ना नुकुर के बाद हेमा ने उसका गुस्सा ठंडा कर दिया...कुछ दैर तक दोनो सहेलिया बातें करने लगी...फिर हेमा ने जानभुज्के उसके व्यवाहिक जीवन के बारे में सवाल किये वो जानती थी अंजुम को अपने पति में रत्तीभार का इंटेरेस्ट नही था और उसके साथ शादी महेज़ समझौता थी जो बार बार लड़ाई झगड़े के वक़्त आदम के पिता से मिलती धमकी होती...अब नही तो तब जैसे ये रिश्ता टूट ही जाता...लेकिन बेटे के अलग होने से पिता को मौका मिल सा गया था....हालाँकि आदम ये बात जानता था पर वो कर भी क्या सकता था?
 
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