अंजुम : ह्म्म्मथ और मैने पाजामा खोल कर जब उसके लिंग को देखा उसने पूरा पाजामा गंदा कर दिया था और पूछने पे भोलेपन से कहने लगा मम्मी पता नही अपने आप हो जाता है
हेमा : हां वो भी क्या जाने? की वो किससे छुपा रहा है उस वक़्त तो नादान था बढ़ती उमर थी पर अब तो जवान हो गया है वो और ब्याह लायक भी
अंजुम : हेमा प्ल्ज़्ज़ शादी की बात मत कर.....कहीं ये कसर भी वो पूरी ना कर ले
हेमा : पर मेरा जहाँ तक दिल कहता है वो ऐसा कदम नही उठाएगा अभी नया नया जवानी का ज़ोर चढ़ा है जब ठंडा पड़ेगा तब अपने आप उसे उकताहट होने लगेगी
अंजुम : हां मैं भी यही उम्मीद करती हूँ उससे चाहे जैसा भी रहे ज़िद्दी रहे पर वो कभी ग़लत कदम नही उठाएगा
हेमा : ह्म मर्दो की पहचान है मुझे और उसे तो बचपन से देखते आई हूँ इन्ही हाथो से नहलाया है उसे लेकिन सच में अंजुम तेरे बेटे का लिंग काफ़ी मोटा है उस वक़्त वो वैसा था तो ना जाने अभी
अंजुम : छी फालतू की बातें मत सोचा कर हेमा तू भी ना
हेमा : अर्रे तू तो चिड गयी...वैसे तुझे पता है आज कल के लड़के लड़कियों से ज़्यादा औरतो में दिलचस्पी लेते है
अंजुम : क्या बक रही है? कुछ भी
हेमा : अर्रे हां सुन तो ले ये मेरी बेटी की सहेली का भाई है ना वो अपनी माँ की उमर की औरतो के साथ अफेर रखे हुए है
अंजुम : क्या? (अंजुम जानती थी उस लड़के को जो उसके बेटे से बड़ा था इसलिए उसका मुँह खुला का खुला रह गया)
हेमा : अर्रे हां आज कल के लड़को का इंटेरेस्ट चाची,भाभी ऐसी बड़ी उमर की महिलाओ में हो गया है
अंजुम : सच में दुनिया खराब हो चुकी है
हेमा : ह्म पर जहाँ तक मैं समझती हूँ माँ का हक़ बच्चो पे ज़्यादा होता है और ख़ासकर बेटों पे बेटियाँ तो कल को अपने घर चली जाती है पर पूरी ज़िंदगी तो माँ को अपने बेटे के संग बितानी पड़ती है और शादी ब्याह करके तो बीवी बेटों को तो अपनी मुट्ठी में कर लेती है....और कभी कभी वक़्त रहते घर से गान्ड पे लात मार के माओ को निकलवा भी देती है
अंजुम : हां ये बात तो है पर क्या कर सकते है?
हेमा : कर सकते है मेरे पास एक आइडिया है जिससे तेरा बेटा वापिस आ सकता है
अंजुम : क्या?
हेमा : देख बुरा मत मानना पर तूने जैसे कहा तेरा बेटा तेरे दुख सुख का साथी था और तुम दोनो के बीच कुछ छुपा नही तूने और उसने कभी एकदुसरे से शरम और लिहाज़ नही किया...माँ बेटे की हर ज़रूरत पूरी करती है उसे कंट्रोल माँ ही रख सकती है क्या तू उसकी हर ख्वाहिश पूरी नही कर सकती
अंजुम : तू कहना क्या चाह रही है? मेरी कुछ समझ नही आ रहा
हेमा : देख मैं कहना चाह रही हूँ कि जो उसकी अभी की ज़रूरत बनी है उसे पूरा करने की कोशिश तो कर सकती है उससे बात करके या उसे समझा भुजाके उसे आकर्षित करके हमबिस्तर तो हो सकती है
अंजुम : छी छी ये क्या वाहियात बात कह रही है तू? अर्रे बेटा है वो मेरा उसे नौ महीने कोख में रखा है मैने और मैं अपने ही बेटे के साथ ये गुनाहगारी है अगर वो मेरे बारे में ये सब सुनेगा तो क्या सोचेगा? और मैं अब तक उसके बाप से उसके पैदाइशी के बाद मिली नही हूँ और अब तो काफ़ी अरसा हो गया
हेमा : मासिक तो अब भी आते है ना तुझे
अंजुम : हां फिर भी नही हेमा मैं तो खुद ये काम नही कर पाउन्गी और तू मेरी दोस्ती का नाजायेज़ फायेदा ना उठा
अंजुम काफ़ी गुस्सा हो गयी उसे बुरा लगा था और अज़ीब सा भी...काफ़ी ना नुकुर के बाद हेमा ने उसका गुस्सा ठंडा कर दिया...कुछ दैर तक दोनो सहेलिया बातें करने लगी...फिर हेमा ने जानभुज्के उसके व्यवाहिक जीवन के बारे में सवाल किये वो जानती थी अंजुम को अपने पति में रत्तीभार का इंटेरेस्ट नही था और उसके साथ शादी महेज़ समझौता थी जो बार बार लड़ाई झगड़े के वक़्त आदम के पिता से मिलती धमकी होती...अब नही तो तब जैसे ये रिश्ता टूट ही जाता...लेकिन बेटे के अलग होने से पिता को मौका मिल सा गया था....हालाँकि आदम ये बात जानता था पर वो कर भी क्या सकता था?