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हेमा ने अंजुम को समझाया और उससे सवाल किया कि क्या वो दोस्ती करना चाहेगी? पर अंजुम ने सॉफ इनकार कर दिया क्यूंकी कुछ सालो पहले जो मज़बूरी की आड़ में हेमा ने उससे मदद ली थी उस बीच अंजुम की ज़िंदगी में एक मर्द आया था...लेकिन हेमा की चुदाई के बावजूद उसे अंजुम में इंटेरेस्ट हो गया था उनकी पहली मुलाक़ात में....हालाँकि अंजुम उस मर्द के करीब भी आ गयी काफ़ी....हल्की चुम्मा चाटी और एकदुसरे से मुहब्बत तक हो गयी थी पर अपने बेटे आदम के चलते और उस मर्द के इंटेन्षन को भाँपते ही अंजुम ने दूरिया बना ली थी....क्यूंकी वो आदम के साथ साथ अंजुम को भगा ले जाना चाह रहा था...जिसके लिए अंजुम बिल्कुल भी तय्यार नही थी उसे ये गवारा ना था....जैसा भी हो उसके पति और बेटे के साथ वो सुकून महसूस करती थी....खैर वो तो कहानी तो पुरानी थी
पर अंजुम ने हेमा के ज़ोर देने पे भी इनकार कर दिया....अंजुम वहाँ से निकल गयी....पूरे रास्ते उसके ज़हन में अज़ीब से आदम को लेके ख़यालात आ रहे थे और हेमा की ख्वाहिश पूरी करने वाली बात....अगर हेमा की बात मानके वो अपने बेटे की शहवत (सेक्स) पूरी कर दे तो बेटा उससे...."छी छी".....अंजुम ने बड़बड़ाया ये वो क्या सोच रही थी? ऐसा कभी हो सकता है? दूसरो की माँ बहन के साथ तो रिश्ता लड़के बना ही लेते है पर अपनी सग़ी माँ के साथ नही...अंजुम को ये बात गवारा ना हुई और वो घर पहुचि...आज भी आदम के पिता से उसकी काफ़ी झडप हो गयी थी....
उधर शाम 7 बजते बजते आदम चंपा के घर पे दस्तक देता है छोटी सी गली थी जहाँ आस पास के बिल्डिंग के पाइप से पानी चुह रहा था वो शहर की सबसे बदनाम गली लालपाड़ा में खड़ा था....इतने में अंदर से आवाज़ आई अंदर आ जाओ
अंदर चहेल पहेल थी बिस्तर पे दो औरतें एकदुसरे से बात कर रही थी अधेड़ उमर की औरतें थी जिनके पहनावे और बातों के लहज़े से ही उनकी रंडीपना की झलक सी महसूस हो रही थी....उन्होने तिरछी निगाहो से आदम की ओर देखा "की रे? तोर नोतू माल एशेगेचे (क्या रे तेरा नया माल आ गया?).....औरतो की बात सुन आदम शरमा सा गया
"अर्रे आओ आओ उधर क्यूँ खड़े हो?"....एक औरत ने कहा
आदम थोड़ा अंदर आया....तब तक चंपा बाहर आई उफ्फ कहेर ढा रही थी लाल पाड़ा वाली साड़ी में....और उपर से भर माँग सिंदूर जो उसका शौक था....होंठ सुर्ख लाल गोल गहरी नाभि दिख रही थी...खुले गले का ब्लाउस जिसके बीच के कटाव सॉफ झलक रहे थे...अंदर ब्रा पहनी हुई थी वरना आम तौर पे आदम को उसके निपल्स दिख ही जाते है.....उसने आदम को देखके आँख मारी
चंपा : अर्रे आओ ना शरमा क्यूँ रहे हो?
आदम : नही नही लगता है अभी तुम बिज़ी हो?
चंपा : अर्रे ना ना काकी आप लोग जाइए कल मिलते है
"अच्छा चंपा भालो ताकीश (अच्छे से रहना)"...दोनो उठते हुए लगभग आदम के बगल से गुज़रती हुई उसे तिरछी निगाहो से देखके मुस्कुराए बाहर चली गयी
"दरवाजा ठीक से बंद कर लेना...वरना कोई और आ जाएगा डिस्टर्ब करने हाहाहा".....बोलते हुए वो लोग वहाँ से निकल गयी
आदम : ये लोग कौन है?
चंपा : मानती है मुझे बहुत पास में रहती है
आदम : धंधा करती है
चंपा : लालपाडा में कौन सी औरत धंधा नही करती अच्छा वो सब छोड़ो बाबू ये बताओ इतने दिनो से आए क्यूँ नही? (चंपा ने दरवाजे की कुण्डी लगा दी)
आदम : बस ऐसे ही मन नही था आने को
चंपा : हमसे मन भर गया इतनी जल्दी
आदम : अर्रे नही नही ऐसा कुछ नही है तू तो मेरी अच्छी दोस्त है
चंपा : एक आप ही तो हो जो हमसे इस लहज़े में बात करता है वरना और तो बस साहेबज़ादे पैसे देते है और बेज़्ज़त करते है
आदम : ह्म (आदम ने कुछ बोला नही और बोलता भी क्या?)
आदम ने चंपा को किचन में जाने से रोका "सुन चाइ मत बना ये ले"....आदम ने पहले ही पैसे पकड़ा दिए....चंपा मुस्कुराइ....उसने आदम के चेहरे पे हल्की सी चपत लगाई....
आदम : सॉफ तो कर रखी है ना खुद को
चंपा : दिन में दो बार नहाती हूँ मैं आपने क्या सोचा कि मैं वो रेग्युलर कस्टमर को देने वालीयो में से हूँ
आदम : फिर भी गंदा नही रखने का
चंपा : पर्मनेंट कस्टमर हो तुम तुम्हारे लिए तो हमेशा सॉफ रखती हूँ पर वहाँ के बाल नही काटे ब्यूटी पार्लर वाली गाओं गयी हुई है ना तो (चंपा ने आगे बढ़ कर आदम के बालो से लेके चेहरे पर अपनी उंगली फिराई आदम ने झट से उसकी उंगली पकड़ ली)
चंपा से भीनी भीनी रजनीगंधा की खुसबु आ रही थी....आदम ने उसे झट से अपने करीब खेंचा वो आदम की दाई जाँघ पे बैठ गयी...आदम उसे कमर से पकड़ा हुआ बीच बीच में उसके पेट को सहला रहा था....आदम ने उसके पल्लू को हटाया तो चंपा ने अपना पल्लू अपनी साड़ी से अलग करते हुए बैठे बैठे ही आदम की गोद में उतार लिया..और उसे बिस्तर पे फ़ैक् दिया...."क्या रे ये काला धागा?".....कहते हुए आदम ने उस काले धागे पे लगी ताबीज़ पे हाथ फिराया जो उसके कमर से लेके पेट पे बँधी थी उसने कस कर नाभि को पिंच किया...तो चंपा सिसक उठी और उसने आदम के सर को अपने ब्लाउस पहने छातियो से रगड़ दिया...
माहौल गरम होने लगा था और बिस्तर भी...
पर अंजुम ने हेमा के ज़ोर देने पे भी इनकार कर दिया....अंजुम वहाँ से निकल गयी....पूरे रास्ते उसके ज़हन में अज़ीब से आदम को लेके ख़यालात आ रहे थे और हेमा की ख्वाहिश पूरी करने वाली बात....अगर हेमा की बात मानके वो अपने बेटे की शहवत (सेक्स) पूरी कर दे तो बेटा उससे...."छी छी".....अंजुम ने बड़बड़ाया ये वो क्या सोच रही थी? ऐसा कभी हो सकता है? दूसरो की माँ बहन के साथ तो रिश्ता लड़के बना ही लेते है पर अपनी सग़ी माँ के साथ नही...अंजुम को ये बात गवारा ना हुई और वो घर पहुचि...आज भी आदम के पिता से उसकी काफ़ी झडप हो गयी थी....
उधर शाम 7 बजते बजते आदम चंपा के घर पे दस्तक देता है छोटी सी गली थी जहाँ आस पास के बिल्डिंग के पाइप से पानी चुह रहा था वो शहर की सबसे बदनाम गली लालपाड़ा में खड़ा था....इतने में अंदर से आवाज़ आई अंदर आ जाओ
अंदर चहेल पहेल थी बिस्तर पे दो औरतें एकदुसरे से बात कर रही थी अधेड़ उमर की औरतें थी जिनके पहनावे और बातों के लहज़े से ही उनकी रंडीपना की झलक सी महसूस हो रही थी....उन्होने तिरछी निगाहो से आदम की ओर देखा "की रे? तोर नोतू माल एशेगेचे (क्या रे तेरा नया माल आ गया?).....औरतो की बात सुन आदम शरमा सा गया
"अर्रे आओ आओ उधर क्यूँ खड़े हो?"....एक औरत ने कहा
आदम थोड़ा अंदर आया....तब तक चंपा बाहर आई उफ्फ कहेर ढा रही थी लाल पाड़ा वाली साड़ी में....और उपर से भर माँग सिंदूर जो उसका शौक था....होंठ सुर्ख लाल गोल गहरी नाभि दिख रही थी...खुले गले का ब्लाउस जिसके बीच के कटाव सॉफ झलक रहे थे...अंदर ब्रा पहनी हुई थी वरना आम तौर पे आदम को उसके निपल्स दिख ही जाते है.....उसने आदम को देखके आँख मारी
चंपा : अर्रे आओ ना शरमा क्यूँ रहे हो?
आदम : नही नही लगता है अभी तुम बिज़ी हो?
चंपा : अर्रे ना ना काकी आप लोग जाइए कल मिलते है
"अच्छा चंपा भालो ताकीश (अच्छे से रहना)"...दोनो उठते हुए लगभग आदम के बगल से गुज़रती हुई उसे तिरछी निगाहो से देखके मुस्कुराए बाहर चली गयी
"दरवाजा ठीक से बंद कर लेना...वरना कोई और आ जाएगा डिस्टर्ब करने हाहाहा".....बोलते हुए वो लोग वहाँ से निकल गयी
आदम : ये लोग कौन है?
चंपा : मानती है मुझे बहुत पास में रहती है
आदम : धंधा करती है
चंपा : लालपाडा में कौन सी औरत धंधा नही करती अच्छा वो सब छोड़ो बाबू ये बताओ इतने दिनो से आए क्यूँ नही? (चंपा ने दरवाजे की कुण्डी लगा दी)
आदम : बस ऐसे ही मन नही था आने को
चंपा : हमसे मन भर गया इतनी जल्दी
आदम : अर्रे नही नही ऐसा कुछ नही है तू तो मेरी अच्छी दोस्त है
चंपा : एक आप ही तो हो जो हमसे इस लहज़े में बात करता है वरना और तो बस साहेबज़ादे पैसे देते है और बेज़्ज़त करते है
आदम : ह्म (आदम ने कुछ बोला नही और बोलता भी क्या?)
आदम ने चंपा को किचन में जाने से रोका "सुन चाइ मत बना ये ले"....आदम ने पहले ही पैसे पकड़ा दिए....चंपा मुस्कुराइ....उसने आदम के चेहरे पे हल्की सी चपत लगाई....
आदम : सॉफ तो कर रखी है ना खुद को
चंपा : दिन में दो बार नहाती हूँ मैं आपने क्या सोचा कि मैं वो रेग्युलर कस्टमर को देने वालीयो में से हूँ
आदम : फिर भी गंदा नही रखने का
चंपा : पर्मनेंट कस्टमर हो तुम तुम्हारे लिए तो हमेशा सॉफ रखती हूँ पर वहाँ के बाल नही काटे ब्यूटी पार्लर वाली गाओं गयी हुई है ना तो (चंपा ने आगे बढ़ कर आदम के बालो से लेके चेहरे पर अपनी उंगली फिराई आदम ने झट से उसकी उंगली पकड़ ली)
चंपा से भीनी भीनी रजनीगंधा की खुसबु आ रही थी....आदम ने उसे झट से अपने करीब खेंचा वो आदम की दाई जाँघ पे बैठ गयी...आदम उसे कमर से पकड़ा हुआ बीच बीच में उसके पेट को सहला रहा था....आदम ने उसके पल्लू को हटाया तो चंपा ने अपना पल्लू अपनी साड़ी से अलग करते हुए बैठे बैठे ही आदम की गोद में उतार लिया..और उसे बिस्तर पे फ़ैक् दिया...."क्या रे ये काला धागा?".....कहते हुए आदम ने उस काले धागे पे लगी ताबीज़ पे हाथ फिराया जो उसके कमर से लेके पेट पे बँधी थी उसने कस कर नाभि को पिंच किया...तो चंपा सिसक उठी और उसने आदम के सर को अपने ब्लाउस पहने छातियो से रगड़ दिया...
माहौल गरम होने लगा था और बिस्तर भी...