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Incest माँ को पाने की हसरत

Monster Dick

the black cock
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कुछ ही देर में समीर ने धक्के दुगनी तेज़ी से मारने शुरू किए...फ़च फ़च की आवाज़ के साथ गान्ड के भीतर से अंदर बाहर लंड हो रहा था..माँ के नितंबो से हर धक्के को गहराई तक मारने से नितंब बाउन्स हो जाते...वो इतनी जबरदस्त चुदाई कर रहा था कि नितंबो के इतने हिलने से उसे खुद ही नितंबो पे दोनो हाथ कस कर उसे मज़बूती से पकड़ना पड़ा

"ओह्ह माँ मैं आया आहह आहह अफ आहह".........."नाआहह आहह ह"......माँ भी सिसकिया लेने लगी...दोनो एकसाथ जैसे झड़ने की कगार पे थे....धक्के एकदम तेज़ हो गये और चरम सीमा लगभग पुर्न हुई...और समीर माँ की गान्ड में ही फारिग होने लगा...वो किसी टूटे पत्ते के तरह माँ पे ढेर हो गया दोनो उस मुद्रा से हटके बिस्तर पे गिर परे...कुछ देर दोनो हान्फ्ते हुए अपनी उखड़ती साँसों पे काबू पाए


इस बीच मैने देखा कि सोफीया आंटी के छेद से उसके बेटे का लंड बाहर निकल गया...उसका छेद काफ़ी चौड़ा हो गया था जो ललालब वीर्य को उगल रहा था...शायद सोफीया आंटी छेद को सिकुड और खोल रही थी...जब भी छेद खुलता तो वीर्य उगल देती अपने बेटे का...वीर्य बिस्तर पे लग गया लेकिन इसकी परवाह दोनो में से किसी को नही थी..बेटे के लंड पे भी माँ के गुदा द्वार को पूरी तरह से खोलने से उस पर खून लगा हुआ था वो अपनी मोटी जाँघ बेटे के उपर चढ़ाए उसे अपने कलेजे से लिपटा ली थी...समीर का पूरा चेहरा गुलाबी हो गया था और पसीने पसीने वो अपनी माँ पे हांफता हुआ जैसे थक के साँसे भर रहा था अपने बदन को लिपटाए

माँ ने उसके बालों मे हाथ फेरते हुए उसके होंठो को चूमा और मुस्कुराइ...उनके चेहरे पे संतुष्टि की भावना थी..दोनो नंगे बदन एकदुसरे से लिपटे इस भीषण चुदाई के बाद खुद पे काबू पा रहे थे

सोफीया : अब तो खुश है ना तू अपनी माँ को इतना थका दिया तूने और खूब भी थक गया....

समीर : क्या करू माँ? तेरे छूने से अपने बदन को मैं खुद पे काबू ना कर सका...बस मैं यही चाहता हूँ कि हम सदा ऐसे ही जुड़े रहे

सोफीया : जब तक मेरी साँसें चल रही है तब तक मुझे कोई भी तुझसे अलग नही कर सकता

समीर : माँ ऐसा फिर ना कहना मुझे अच्छा नही लगता है (बेटे ने माँ के सर को अपने पसीने से लथपथ सीने पे रखते हुए कहा)
 
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सोफीया : क्या करूँ बेटा? बस डरती हूँ कि किसी को इस बारे में मालूमात ना चले कि हम माँ-बेटे अब माँ-बेटे के रिश्तो में नही बँधे हुए है


समीर : दुनिया चाहे जो भी समझे तू मेरी बीवी है और मैं तेरा शौहर यही अंजानो को भी मालूम चलेगा अब कोई सवालात नही माइ डार्लिंग सोफीया अब कोई सवालात नही

सोफीया ने प्यार से बेटे के गाल पे चुटकी काटी...और दोनो हंसते हुए एकदुसरे से लिपटके सो गये....

मैं ये दृश्य देखके खुद पे काबू ना पा सका था...मेरी आँखो में आँसू भी थे और मुझे खुशी भी थी कि कैसे इनका अटूट प्रेम बँधा हुआ था? अब मुझे कोई शक़ या सवालात नही था....मैं बाहर आया दरवाजा ढंग से लगाया और घर आ गया

अंजुम : फिर तूने क्या किया?

अब तक माँ ने मुस्कुरा कर मेरे वार्तालाप को सुनते हुए कहा..."मैने क्या किया मतलब? घर आया उसे सीधा मेसेज किया...अगले दिन फिर मुलाक़ात हुई थी तो वो काफ़ी खुश लग रहा था पूछा तो उसने वोई बातें दोहराई..लेकिन उसे ये नही पता था...कि मैने सबकुछ देख लिया है"........माँ अब तक मुस्कुराते हुए मेरे सीने पे हाथ फेर रही थी

अब तक मुझे अहसास हुआ कि माँ के दो-तीन बार टाँगों को सही करने के चक्कर में मेरे टाँगों के बीच उनकी टाँग की घिस्साई से लंड एकदम उत्तेजित तौर पे खड़ा था

आदम : अब कहो तुम्हें क्या महसूस होता है?


अंजुम : यही कि हमारे बेटे हमसे कितना प्यार करते है शुरू में मुझे भी अज़ीब लगा क्यूंकी मुझमें ऐसी कोई फीलिंग नही थी पर उस दिन के बाद से सच में मैं भी ऐसे रिश्तो को बारीक़ी से पहचानने लगी हूँ

आदम : तो तुम्हें क्या ऐसा कुछ अपने बेटे में?

अंजुम ने शरारत से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और मेरे गाल को पिंच किया...हम दोनो अटखेलिया करने लगे...माँ की गरम साँसें मुझे अपने चेहरे पे महसूस हो रही थी....इसलिए मैं माँ के एकदम नज़दीक आया बेहद नज़दीक माँ ने मेरे होंठ पे उंगली रखी और थोड़ी गंभीर सी हुई...मैने उनकी उंगली हटाई उन्होने आँखे बंद कर ली अभी हमारे होंठ एकदुसरे से मिले ही थे कि माँ ने झट से मेरे होंठो को चूम लिया

वो एकदम से हंस पड़ी..मैं भी एकदम से उसकी हरकत पे हंसते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया..हम दोनो माँ-बेटे वैसे ही कुछ देर तक लेटे रहे...जब माँ एकदम गहरी नींद में आई...तो मैने जानबूझ के अपना हाथ उनके पेट पे जो रखा था उसे उनकी छाती पे रख दिया...और धीमे से बाई चुचि को जंपर के उपर से ही दबा दिया..उस अहसास से ही मेरा लंड फनफना उठा...


शाम को माँ जब अंगड़ाई लेने के लिए उठी..तो उसे अपने छातियो पे आदम के हाथ की गिरफ़्त महसूस हुई...उस पल उसे बेहद अज़ीब सा ज़रूर लगा....किस्सा सुनते सुनते कब वो कामुकता में भर गयी और अपने बेटे से लिपटके सो गयी उसे पता नही चला? समीर और उसकी माँ की स्टोरी सुनके यक़ीनन उसे बेहद मज़ा आया था...उसने अपने बेटे को देखा जो अभी गहरी नींद की आगोश में था उसने पास आके उसके माथे को हल्का सा चूमा और उसके हाथ को अपने छातियो से हटाते हुए उठके बाथरूम चली गयी...

यह तो जैसे सिलसिला सा शुरू हो गया था...कि दोनो माँ-बेटे इतना खुलने लगे थे...उस दोपहरी जब आदम ने माँ को किस्सा सुनाया था उसके बाद उसका कॉन्फिडेन्स माँ के प्रति बढ़ गया था क्यूंकी माँ ने समीर और उसकी माँ की व्यभिचारी रिश्ते के सुनने के वक़्त कोई भी आपत्ति नही जताई थी..चुदाई का हर लम्हा वो बेटे के मुँह से सुनें जा रही थी...आज रात को पिता घर जल्दी नही आए तो माँ को राहत हुई वरना आके वो या तो बीवी से झगड़ा करते या जल्दी जल्दी खाना देने को कहते...

जब उस रात आदम ने माँ को किचन में सब्ज़िया काटते खड़ा पाया माँ ने उसे प्याज़ उठाने के लिए कहा...तो वो जैसे नीचे झुका तो उसे माँ के दोनो पाओ में पहनी पायल दिखी उसने माँ के पाओ को झट से उठाया तो उसकी माँ हड़बड़ाई उसने बेटे को प्यार से देखके मुस्कुराया...बेटे ने माँ की पायल पे चूम लिया तो माँ ने झट से उसे रोका और हैरत से ना का इशारा करते हुए शरम से हंस पड़ी..माँ उसे उठाने लगी...आदम मुस्कुरा कर माँ के पीछे खड़ा हो गया उसके साथ शरारत करने लगा...आदम ने सवाल किया कि दोपहर को जब समीर वाली बात उसे बताई थी तो उसने आपत्ति क्यूँ नही की? बेटा उसके सामने खुले गंदे शब्द कह रहा था...माँ ने उसे देखा और कहा "जब तुझे मेरे सामने गालिया देने में शरम नही आती तो ऐसा किस्सा सुनने में क्या बेशरामी?"......आदम माँ को हैरत से देखने लगा...माँ फिर उससे समीर और उसकी माँ की चर्चा करने लगी...इस बीच अंजुम को महसूस हुआ की उसका बेटा उससे एकदम चिप्पके नज़ाकत से उसकी बातें सुन रहा है

अंजुम : मैं क्या तेरी गर्लफ्रेंड हूँ या बीवी जो तू बार बार मुझसे लिपट जाता है

आदम : उस दिन आपने मुझसे कुछ वादा किया था ना कि आप मुझे हर मुमकिन खुशिया देंगी

अंजुम : तू भी बहुत शैतान हो गया है ज़रा सा रज़ामंदी क्या दे दी तू तो प्रेमियो के कान काट रहा है

आदम : हाहाहा उम्म्म (आदम ने इस बीच माँ के दाए हिप्स पे हल्के से हाथ रख दिया और उसे सहलाने लगा)

माँ एकदम से चुपचाप सब्ज़िया जो काट रही थी उसे छोड़ते हुए गंभीरता की कशमकश में घिर गयी....आदम के हाथो के स्पर्श को महसूस करते हुए एक बार उसका पूरा शरीर सिहर गया...उसने एक बार सर अपना पीछे मोडते हुए बेटे की तरफ देखा....जिनके आँखो में उसके लिए उमड़ा प्यार था...वो जानती थी बेटा खुद को काबू नही कर पा रहा था....आदम ने इस बीच अपने चेहरे को माँ के पास लाया ही था कि एकदम से दरवाजे पे दस्तक.....दोनो चौंक उठे अंजुम ने तुरंत बेटे के हाथ अपने नितंब से हटाया

और हड़बड़ाते हुए उसे दरवाजा खोलने कही....आदम जनता था उसका पिता आ गया उसे सख़्त गुस्सा आया कि इस नाज़ुक मोड़ पे वो एकदम से आ धम्के ....लेकिन वो कर भी क्या सकता था? हालत का मांरा हुआ अपनी माँ को देखते हुए...जाके दरवाजा खोला....पिता की सड़ी सी शकल देखके उसने उनके हाथ से फलो से भरा पोलिथीन लिया और फिर वो जूते खोलते हुए अंदर आए..

लेकिन रुकावटें माँ-बेटे को एकदुसरे से अलग कहाँ कर सकती थी? वो जितना अगर उन्हें दूर करती तो वो उतना ही नज़दीक आ जाते...माँ-बेटे फिर एकदुसरे के साथ वक़्त काटने लगे....दोनो जैसे अपनी ही दुनिया में खुश थे उन्हें किसी की ज़रूरत नही थी...अब तो माँ अपने दिल-ए-हाल को बाटने के लिए अपने मायके भी कॉल कम करती थी...उसका ज़्यादा वक़्त बेटे के साथ ही कंटता था

दस दिनो बाद मोरतुज़ा काका से मिलने माँ-बेटे दोनो पुरानी दिल्ली के उस होटेल पहुचे जहाँ वो अक्सर ठहरा करते थे....वो 1 दिन से ज़्यादा दिल्ली में ठहरते नही थे....इसलिए आदम का घर उन्हें दूर पड़ता था और वजह आदम के पिता के साथ उनकी बनती नही थी...माँ वैसे तो अपने ससुराल वाले और उनसे जुड़े सगे संबंधी रिश्तेदारो को पसंद तो नही करती थी पर बात आदम के फ्यूचर की थी इसलिए उसको अपनी नफ़रत को एक साइड करके उनसे जुड़ना पड़ा...हालाँकि आदम की बुआ के परिवार से उसे कोई ख़ास आपत्ति नही थी

मोरतुज़ा काका आदम से मिले...और उसकी माँ अंजुम को देखके खुश हुए कुछ देर घरेलू बातों का दौर चला उसके बाद आदम के हालत को मोरतुज़ा काका ने सुना फिर उसे बताया कि वो अपना कारोबार भी खड़ा कर सकता है....जो माल दिल्ली से बेंगाल जाता है उसे रिसीव करना और डिस्ट्रिब्यूशन के गॉडाउन के साथ उसे सप्लाइ करने का ठेका आदम को करना था....आदम राज़ी हो गया उसे इस फील्ड की काम करते हुए होमटाउन में काफ़ी नालेज हो गयी थी....मोरतुज़ा काका को माँ-बेटे दोनो ने घर पे आमंत्रित किया..पर उन्होने कहा कि वो बस आदम से मिलना चाह रहे थे अब वो दिल्ली में और नही आएँगे अब उनका एजेंट आया करेगा जो आदम के कॉंटॅक्ट में रहेगा वोई आदम को दिल्ली का माल लाके देगा जिसकी ज़िम्मेदारी डिस्ट्रिब्यूशन और सप्लाइ में आदम की होगी....आदम इस नौकरी से खुश था...और उसकी माँ भी
 
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दोनो शाम तक वापिस होटेल से मोरतुज़ा काका से विदा लेते हुए निकले....बेटे को इतना खुश देखके माँ को उस पर बेहद नाज़ हुआ कि अब उसे अपने पति की रूखी सुखी बातें और उसे झेलना नही होगा...अब उसे संभालने के लिए उसके बेटा ही काफ़ी है...अचानक माँ ने आदम को रोका और दोनो चूड़ियो के ठेले के पास आए....जिससे मैं ने बड़ी ही खूबसूरत लाल रंग की चूड़ियाँ खरीदी....उसका पति कभी उसे कुछ ऐसा नही दिलाता था...आदम ने अपने पैसो से माँ को चूड़िया खरीद के दी और उनकी कलाईयों में डाली...उफ्फ कितने अच्छे लगे रहे थे उनके हाथ चूड़ियो से भरे "जच रही है तेरे पे"......माँ शरमाते हुए मुस्कुरा बैठी ....फिर दोनो पास ही के एक चाइ के स्टॉल के पास स्टूल में बैठे चाइ की चुस्किया लेने लगे....घर आते आते रात हो गयी....माँ ने पिताजी को पहले से ही चाबी दे डाली थी लेकिन ये नही बताया कि हम मोरतुज़ा काका से मिलने गये थे...पिता जी भी कोई ख़ास ध्यान देते तो नही थे इसलिए हम कहाँ गये उन्हे कोई फरक नही पड़ा...जब घर पहुचे थे तो वो टी.वी पे वोई बोरिंग न्यूज़ देख रहे थे...

अगले दिन मैं सुबह सुबह रेलवे काउंटर गया....और वहाँ से माँ और खुद की अगले महीने की 20 तारीख के लिए टिकेट निकलवा लाया...माँ उदास थी कि वो यूँ इतने सालो बाद दिल्ली छोड़ने वाली थी...लेकिन मैने उसे दिलासा दी और कंधे पे हाथ रखते हुए मनाया कि अब तो ज़िंदगी सिर्फ़ एक दूजे के साथ काटनी है तो फिर काहे को चिंता? अब तू किसके साथ रहेगी तेरा अब है ही कौन? तू चाहे तो ननिहाल में रख दूं पर मैं नही चाहता कि तू किसी पे बोझ बन.....माँ मुस्कुराइ मेरी बातों से सहमत होते हुए उन्होने कहा कि वो अपनी मायके अगले हफ्ते चलेगी साथ में मैं भी उनके चलूं चलूं कम से कम मामा और नानी से तो मिल सकते है....मैने हामी भर दी....सॅलरी और नौकरी दोनो की बात मोरतुज़ा काका से फिक्स कर चुका था इसलिए उन्होने मेरे रहने तक का इंतेजाम करवाने का बोलके ये कहा कि मैं चाहू तो उनके घर भी ठहर सकता हूँ पर मैने मना किया कि क्यूंकी मैं अपनी अंजुम के साथ टाउन से थोड़ा बाहर रहना चाह रहा था ताकि हमे कोई डिस्टर्ब ना करे...और किसी को भी हमारी वहाँ मज़ूद्गी का अहसास ना हो...और मैं चाहता भी था कि रूपाली और बाकी सब से मैं माँ को दूर रखू उन्हे कुछ भी मालूम ना चलने दूं...मोरतुज़ा काका ने जगह मूहाय्या करवा दी थी जैसे ही वो होमटाउन पहुचे....मकान मालिक को पहले से कह दिया था कि किरायेदार में सिर्फ़ माँ-बेटे है जो अगले महीने पहुचेंगे

इधर पिता जी ने भी नोएडा जाने के लिए ट्रांसपोर्ट वाले को समान ले जाने का बोल दिया था....उन्होने आखरी बार हमसे हमारी राई माँगी....मेरा और उसकी पत्नी और मेरी माँ अंजुम का एक ही जवाब था कि हम दोनो एक साथ रहेंगे और हम वापिस बेंगाल जा रहे है...मैने सिर्फ़ इतना कहा कि मेरी नौकरी लग चुकी है...पिताजी ने काफ़ी समझाया कि मैं ग़लत डिसिशन ना लून ये ज़िंदगी का फ़ैसला है..पर मैं अड़ा रहा...पिताजी ने भी कहा कि ठीक है जब तक मेरे हाथ में हुनर है मैं भूका नही मरूँगा...हमने भी कह दिया कि हम उनके पास अब नही आएँगे....पिताजी ने माँ से तलाक़ के बारे में कुछ भी डिसकस नही किया वो अंजुम से सेपरेट होने को तय्यार थे...मैने पिताजी को सॉफ कह दिया कि हमे उनकी एक फूटी कौड़ी भी नही चाहिए....पिता जी से थोड़ी गरमा गर्मी हुई लेकिन बात बीच में सम्भल गयी....उस दिन के बाद से मैं अपने पिताजी से बिल्कुल ना के बराबर बात करने लगा....मैने माँ को विश्वास दिलाया कि एक बार मुझे पैर पे खड़ा होने दे तो फिर देखना हमारी घृहस्थी वापिस से कैसे बस्ती है? माँ का यूँ मेरे साइड होना मुझे इतना हौसला देना मुझे काफ़ी अच्छा लग रहा था...

उस रात ट्रांसपोर्ट वाले से बात करके मैने कुछ सामान अपने साथ होमटाउन ले जाने की बात पक्की की ही थी...कि इतने में समीर का कॉल आ गया

आदम : हां बोल समीर

समीर : भाई तू बता कैसा चल रहा है सब?

आदम : यार तुझसे बहुत बातें करनी थी

समीर : मुझे भी तुझसे बहुत बातें करनी थी कल शाम को फ्री है?

आदम : तेरे लिए और फ्री ना रहूं तू बोल के तो देख कब मिलना है तुझसे?

समीर : बात ही कुछ ऐसी है कि तेरा मुझसे मिलना दरकार है (मैने सोचा आख़िर समीर को मुझसे क्या काम आ पड़ा?)

समीर ने मुझे कल शाम हेमा आंटी के घर आने को कहा..मैं थोड़ा चमका हेमा आंटी के घर समीर को कैसे मालूम चला? मैं उससे और कुछ पूछता उसने आगे कुछ नही बताया बस बोला कि तू आ जाना बस उसकी बातों में एक शरारत सी थी...मैं समझ नही सका.....हेमा आंटी से उस दिन के बाद मैं मिला नही था...इसलिए अपनी माँ अंजुम को मैने कुछ नही बताया वैसे भी ज़ख़्म फिर उनके हरे हो जाते जो मैं कतई नही चाहता था

अगली शाम मैं हेमा आंटी के घर आया...सीडियो पर से चढ़ता हुआ हेमा आंटी की हरकत से मैं अब भी नाराज़ था...मैं एकदम गुस्सा था....फिर हैरानी में भी था कि समीर हेमा आंटी के घर कैसे पहुचा? बहुत सवालात लिए जब मैं उपर आया तो पाया दरवाजा खुला हुआ है....अंदर आते ही म्यूज़िक की आवाज़ सुनाई दी...एक टेबल पे नमकीन और कुछ विस्की बॉटल थी....समीर नमकीन ख़ाता हुआ मुझे देखके मुस्कुरा उठा

आदम : अबे तू यहाँ? (मैने समीर से हाथ मिलाते हुए गुस्से भरी नज़रों से हेमा को देखा जो शराब ज़रूर पी रही थी पर मुझे देखके उसकी हँसी गायब हो गयी थी वो एकदम सेहेम सी रही थी नज़रें नीचे किए)

समीर : आदम प्ल्स शांत हो जा जो हुआ उसमें आंटी ने अपनी ग़लती मानी तुझे गारंटी देके अपनी सहेली अंजुम आंटी को वो ले गयी ये उनकी सबसे बड़ी भूल थी वो अपनी ग़लती मान रही है वो चाह तो रही थी कि अंजुम आंटी से भी बात कर ले पर!

आदम : माँ आंटी से कोई बात नही करने वाली वो सख़्त इनके खिलाफ है अगर उन्हें मालूम चला कि मैं यहाँ आया हूँ तो मुझपे भी बरस पड़ेगा

हेमा : बेटा प्ल्स मुझे मांफ कर दे मुझे बहुत गिल्ट हो रहा है...मैं मानती हूँ कि मेरी उस एक ग़लती उस एक भूल से तेरी माँ के साथ कुछ भी हो सकता था अगर तू और समीर वक़्त पे ना आते

समीर मेरी बाँह पकड़ मुझे बाहर ले आया...उसने मुझे समझाया जो हुआ उसे भूल जाए...मैने समीर को बताया कि मैं और मेरी माँ अंजुम शहर छोड़के हमेशा हमेशा के लिए घर जा रहे है अपने होमटाउन...समीर ये सुनके नाखुश ज़रूर हुआ और दुखी भी...उसने कहा कि क्या ज़रूरत आ पड़ी? कम से कम अगर नौकरी की वजह थी तो उसे मैं बेझिझक कह सकता था....मैं उसके दुख और उसके ज़ज्बात को समझ सकता था कि अभी आए और अभी हमारी ज़िंदगियो में ऐसा मोड़ आ गया

मैं मुस्कुराया और समीर को समझाया कि पिता जी ने हमे छोड़ने का फ़ैसला करते हुए नोएडा शिफ्ट हो रहे है..हम उनके साथ नही जा सकते माँ भी उनके साथ नही रहना चाहती...समीर ने मेरे हालातों को समझा फिर उसने भी बताया कि कुछ दिन से उसका भी बिज़्नेस थोड़ा डाउन चल रहा है अब सोच रहा है कि वो भी वापिस माँ को लेके मुंबई चला जाए अब यहाँ रह ही क्या गया? जब दोस्त भी नही रहा...आदम ने उसे समझाया कि खामोखाः उसके लिए ऐसा क्यूँ सोच रहा है?....समीर मुस्कुराया उसने कहा कि एक वोई तो दोस्त था जो उसे समझ पाया इतने साल तक...खैर गिले शिकवे भूल जाए और यही वक़्त है कि अपनी माँ की इज़्ज़त का पूरा पूरा हेमा से बदला ले ये एक सुनेहरा अवसर है उसे चोदने का ..आदम ने कहा कि वो उसे इन्सिस्ट कर रहा है जबकि आदम उससे पहले हेमा आंटी को जानता था.....समीर ने बताया कि उस दिन जब हेमा को बचा कर वो बाहर निकला तो समीर को चलते वक़्त उसने अपनी आपबीती सुनाई तो समीर ने उसकी मज़बूरी और पैसो की ज़रूरत समझते हुए बिना आदम को बताए उसे 5000 रुपया दे दिया...जिससे हेमा को अहसास हुआ कि आदम का दोस्त समीर कोई बड़ा आदमी है

आदम : तो फिर तू यहाँ कैसे?

समीर : बस उसी पल मैने उसका नंबर ले लिया...इस हेमा रानी के शरीर का गठन पूरा उसकी माँ से भी ज़्यादा है...काफ़ी सेक्सी फिगर है और वैसे भी माँ ने अभी फिलहाल नो कह दिया है क्यूंकी वो बीमार चल रही है और मैं उन्हें ऐसे टाइम में डिस्टर्ब करना नही चाहता (आदम चुपचाप सुना)
 
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आदम : तू जो कालतक सिर्फ़ माँ माँ करता फिरता था आज अपनी माँ को धोका देके हेमा आंटी के साथ लुफ्त उठा रहा है

समीर : साले मैने पहले तेरी बात खूब सुनी ये कि माल उम्रदराज है इसलिए इसे लौन्डे नही मिलते पर हम जैसी बड़ी उमर की औरतो का शौक रखने वाले ठरकीयो को तो ऐसी ही भाती है अब जबकि मेरी घरवाली इस वक़्त बीमांर है और मैं उन्हें डिस्टर्ब नही करना चाहता हूँ तो इसका मज़ा लेने में क्या जाता है? क्या तूने इससे पहले चूत चुदाई नही की

आदम : ह्म चुदाई तो की है इससे भी बड़ी उमर की औरत को चोदा है ये तो हमारी माँ से भी बड़ी है तो इसलिए तूने मुझे इन्वाइट किया चल अच्छा मौका दिया है आज इस साली को अपनी रांड़ बनाके माँ का बदला पूरा लूँगा

समीर : वैसे आंटी ठीक तो है ना ? उस हादसे के बाद कोई दिक्कत तो!

समीर जानना चाह रहा था कि अब भी मेरी और मेरी माँ के बीच कोई फीलिंग्स थी लेकिन मैने उसे हालात मालूम ना चलने दिए कि इन दिनो हमारे बीच क्या गुल खिला था मैं वैसे भी अपने संबंध को पर्सनल रखना चाहता था...हम दोनो अंदर आए

अब तक हेमा शराब का ग्लास खाली कर फारिग हो चुकी थी....उसने उठके मेरी तरफ देखा....मैने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा कि मैने उसे माफ़ कर दिया है लेकिन अपनी सहेली अंजुम को वो भूल जाए बस ये समझे कि हम यहाँ कुछ दिन के मेहमान है फिर भी उसके हंपे काफ़ी उपकार है इसलिए इस वजह से मैं तुझे मांफ कर रहा हूँ इतना कह कर आदम हेमा के नज़दीक आया...हेमा ने अपने आँसू पोंछे और नज़रें नीचे कर ली

हेमा : काहे तू कहाँ जा रहा है? अंजुम को लेके

आदम : बस अब यहाँ से दूर मेरी नौकरी फिरसे मेरे होमटाउन में लग गयी है और मेरे पिता जी नोएडा जा रहे है हमे छोड़के (हेमा को वाक़ई अपनी सहेली और उसके बेटे के हालातों को जान के बुरा लगा पर उसे अज़ीब लगा कि उसकी माँ उसके बेटे के साथ वहाँ जा रही थी जहाँ वो कभी पाओ नही रखना चाहती थी वो चुपचाप रही और आदम ने भी ज़्यादा कुछ नही कहा क्यूंकी समीर साथ में था)

समीर : हेमा आंटी आप सबकुछ भूल जाओ और हमे बराबर से प्यार दो अब तक तो मुझे अपने उपर चढ़ाए रखा पर आज अपने बेटे को भी थोड़ा मज़ा तो दे दो...

हेमा शरमा रही थी....."साली दोस्त के सामने शरमा रही है और इतने दिनो से मेरे सामने बेशर्मो की तरह बात करती थी"....मैने आगे बढ़ कर हेमा की साड़ी को खीचके उतार दिया....पीछे से समीर ने हेमा की दोनो चुचियो को ब्लाउस के उपर से ही दबाना शुरू कर दिया.....हेमा समझ चुकी थी...कि आज उसकी सहेली का बेटा और उसका दोस्त नही बखसने वाले वो तो जैसे तय्यार ही थी चुदने के लिए उसे बस खोलने की ज़रूरत थी

समीर ने उसके ब्लाउस को उपर से ही दबाते हुए उसके आगे और पीछे दोनो के बटन्स खोल दिए...मैं झुकके हेमा के पेट को चूमने लगा और उसकी गहरी नाभि में अपनी ज़बान चलाने लगा..."सरदार आया नही आज"......मैने नाभि में जीब डालते हुए कहा....."मर गया होगा रन्डवा कहीं"......हेमा की बात ने मुझे उत्तेजित किया....और मैं खड़ा होके उसकी पेटिकोट की डोरी खोलने लगा....वो मेरे दोनो कंधो पे हाथ रखके मुझे देख रही थी

पेटिकोट ढीला होके उसके मोटी मोटी जांघों से होते हुए पाओ के बीच बीच फसि रह गयी उतरके...उसने खुद उसे उतार के एक साइड फ़ैक् दिया....तो समीर ने अब तक उसकी ब्रा के हुक खोल उसे लगभग उतार दिया....अब समीर ने आगे आके दाई चुचि जो कि उसके हाथो मे नही समा रही थी उसे मुट्ठी में लेके दबाने लगा...तो मैने बाई चुचि पे अपना मुँह रख दिया उसके मोटे ब्राउन निपल्स को चूसने लगा....लगभग उसकी 40 साइज़ की चुचि को मैं मुँह में भरके चूसने की नाकाम कोशिशें कर रहा था समीर का भी कुछ वोई हाल था...

अपनी दोनो चुचियो को अपने बेटे की उमर के लौन्डो को चुसते देख हेमा उत्तेजना में पगला रही थी...वो दोनो के बालों पे हाथ फेरते हुए उन्हें सहला रही थी...अपनी छातियो में उनके सरों को दबा रही थी...समीर ने चुचि चूसना छोड़ दिया और उसके निपल्स को दाँतों से काटता हुआ उसके नितंबो के बीच अपना मुँह घुसाने लगा...इतने में मैने अपने कपड़े उतारने शुरू किए...हेमा ने तुरंत मेरे औज़ार को अपने हाथो में लेके मसलना चालू कर दिया....वो उसके अनुमान से काफ़ी ज़्यादा उत्तेजित और बड़ा हो गया था...

इधर हेमा सिसक रही थी पीछे समीर उसकी गान्ड के छेद में अपनी जीब डालके उसे कुरेद रहा था चाट रहा था.....मैं भी उस पल सबकुछ भूलके हेमा के बदन को देखता रह गया था...मैने उसके लिपस्टिक लगे होंठो को चुस्सना शुरू कर दिया...हेमा भी मेरा साथ दे रही थी....हम दोनो एक दूसरे को किस किए जा रहे थे और नीचे नितंबो को समीर हाथो से दबोचते हुए मसल्ते हुए उनकी फांकों में अपना मुँह घुसेडे छेद को चाटे जा रहा था

हेमा उत्तेजित हो गयी मैने समीर को कहा...तो वो नितंबो को हाथो से भीचते हुए उठ खड़ा हुआ उसने अपने कपड़े उतारे और अपना खड़ा वज्र जैसा लिंड आगे लाके हेमा के दूसरे हाथ में दे दिया..हम दोनो नंगे खड़े हेमा आंटी के चेहरे के करीब अपने खड़े झूलते लंड को लाए....हेमा किसी रंडी की तरह दोनो लन्डो को अपने हाथो में लिए मुठिया रही थी...आगे पीछे मसल्ते हुए वो हमे कामुक गुलाबी निगाहो से देख रही थी....

फिर उसने घप्प से पहले मेरा मुँह में लंड लेके चूसा..उसके बाद समीर का लंड उसने चूसा...वो बारी बारी से हम दोनो का लंड किसी प्रोफेशनल रंडी की तरह चूस रही थी...बीच बीच में वो हमारे टट्टो को सहला रही थी ऐसा लग रहा था जैसे टट्टो से वीर्य खाली करवाना चाह रही हो...म्म्म्मम एम्म्म. स्लूर्रप्प.....हेमा ने दोनो लंड को चूस्ते हुए आँखे मूंद रखी थी...और उसके मुँह से लंड चूसने से कुछ ऐसे शब्द निकल रहे थे...

मैं उसके बालों को सहलाते उसके माथे को सहलाते हुए उसके हलक तक अपने लंड को घुसाए उसे बेदर्दी से चुस्वा रहा था...फिर वो आँखे बड़ी बड़ी किए ठहर जाती फिर मेरे लंड को मुँह से उगलते हुए समीर के लंड को चुसती समीर भी कुछ ऐसी ही प्रकिरिया से उसे मुख मैथुन में डीपथ्रोट की मुद्रा में चुस्वा रहा था....हम दोनो के लंड उसके मुँह के थूक से गीले हो गये.....हेमा के मुँह के अंदर की गरमी हमे अपने लौडो में महसूस हो रही थी...उसके बाद हेमा ने लंड चुस्सना छोड़ दिया और उसे हाथो से हिलाने लगी...

हेमा : चलो अब तुम दोनो मुझे भी मज़ा दो (इतना कहते हुए हेमा ने अपनी टांगे चौड़ी कर ली)

समीर : हाए रे आदम देख तो इसकी चूत कैसी गहरी सुरंग की तरह खुली हुई है?....

आदम : हां यार एक वक़्त था कि मर्द इस्पे चढ़ने के लिए पानी की तरह पैसा बहाते थे (खुद की हो रही बेज़्ज़ती सुनते हुए हेमा के गाल लाल हो गये)

वो दोनो टाँगों को वैसे ही एकदुसरे से फैलाई हुई थी...लगता था जैसे उसने ब्रा पैंटी पहनना छोड़ ही दिया था...मैं उसकी चूत पे अपना मुँह रखके उसकी गंध महसूस करने लगा....मैने उसकी चूत के हिस्से में जीब चलानी शुरू की और बीच में उसके दाने को भी चुस्सना शुरू किया...हेमा को चरम सुख का आनंद प्राप्त हो रहा था....मैं उसकी चूत पे बुरी तरह मुँह लगाए उसे चाट रहा था..हालाँकि मुझे अच्छा तो नही लग रहा था पर उस जैसी छीनाल ठरकी अढेढ़ उमर की औरत सुधिया काकी के बाद मुझे मिली थी
 
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मैने चूत पे ज़बान चलानी जारी रखी इस बीच अपना एक अंगूठा उसकी गान्ड के छेद में सरका दिया....उसने गान्ड ढीली छोड़ी और उसका सिकुडे छेद के खुलने से अंगूठा अंदर तक सरक गया...मैं वैसे ही गान्ड को उंगली से खोलता हुआ दूसरी उंगली छेद में करते हुए उसकी चूत को चाटें जा रहा था....इस बीच मुझे अपने ज़बान से उसके निकलते रस का स्वाद लगा तो मैने मुट्ठी में लेके उसके चूत को दबोच लिया....वो सिसक उठी "हाए राम मैं गयी आआई हाए आहह"....उसने ढेर सारा पानी का फवारा छोड़ा

जिसे देखते हुए पीछे खड़ा समीर अपना लॉडा हिलाने लगा...."उफ्फ देख तो कैसे पानी छोड़ रही है साली? तेरे आने से एक दिन पहले ही तो इसकी यहाँ आके चुदाई की थी तो भी इसे इतना उत्तेजित नही देखा था"......समीर ने आगे बढ़के अपनी दोनो टाँग लेटी हेमा के आज़ु बाज़ू रख दी और उसके लगभग सर के पास झुकता हुआ अपना लॉडा उसके होंठो पे घिस्सने लगा...उसने उसके लौडे को मुँह में लेके फिर चुस्सना शुरू कर दिया...मैं नीचे से हेमा को पूरा मज़ा दे रहा था...हेमा की योनि मेरी ज़ुबान से कुलबुला गयी....मैं जब उसकी चूत चाटना बंद करते हुए उठा...तो तब तक समीर उसे लॉडा चुस्वाते ही रहा....

उसने जब अपना लंड बाहर निकाला...तो हेमा हाँफ रही थी...मैने उसे हाथ देके उठाया...वो 76 किलो की भारी भरकम औरत थी इसलिए उसे उठाने में बड़ी ताक़त लगी मैं सोफे पे बैठ गया और उसकी पीठ अपनी तरफ मोडते हुए अपने उपर आहिस्ते से बिठाया...जिससे उसके शरीर के वजन का भार मुझपे आ गया पर मैं उसकी चुदाई इतने जुनून से करने में मगन था की मैं उसके बोझ को से लेने को तय्यार था...मैने भोसड़ी की दोनो सूजी चूत की फांकों पे लॉडा रगड़ा और अपना लंड फुरती से उसकी भोसड़ी में सरका दिया...उफ्फ ऐसा लग रहा था जैसे किसी रंडी को चोद रहा हूँ उसकी भोसड़ी पूरी खुली हुई थी...इतने सालो बाद चुदाई की ठरक ने मुझे पागल कर दिया था की मैं उस जैसी चुड़दकड़ औरत को चोदने के लिए तय्यार हो गया था

समीर हमारी चुदाई देखने में मशरूफ था...मैं आगे हाथ ले जाके उसकी चुचियो के कठोर निपल्स के साथ उसे हाथो से दबाए जा रहा था नीचे से हेमा ने खुद मेरे लंड को अपनी भोस्डे में अड्जस्ट किया....उसने अपनी गान्ड ढीली छोड़ी और मेरे लंड को पूरी तरह अपनी भोसड़ी में सरका लिया.....मैं नीचे से धक्के पेलने लगा और उसकी पीठ गर्दन को चूमने भी लगा..."आहह उ उई आहह"......हेमा सिसक उठी

"ओह्ह हेमा आंटी कितना चुदि हो कितना खुली हुई है तुम्हारी चूत ऐसा लग ही नही रहा कि अंदर डाल रखा है".........मैने आहें भरते हुए उसे चोद्ते हुए कहा

"हाए रे कमीना अगर तुझे अहसास नही हो रहा था तो मुझे तेरे मूसल लंड की चुभन अपनी चुत में रगड़ाती क्यूँ महसूस हो रही है? अर्रे क्या खाया है तूने तेरा शरीर तो हड्डी सा है और तेरा लंड कितना मोटा और लंबा हो गया बिल्कुल सांड़ के जैसा".......हेमा अब लगभग मेरे लंड पे कूदते हुए बोल रही थी

उसके कूदने से मेरी टांगे दर्द कर रही थी....पर मैं भी हवस में अँधा था...मैं उसकी दाई चुचि को उसके बाज़ू को अपने चेहरे से हटाए उसे चूसने लगा...समीर ने तब तक हेमा के हाथो में अपना लॉडा सहलाने को दे दिया...हेमा उसे बस सहला रही थी...इधर उसकी चुदाई पूरी ज़ोर शोर से हो रही थी इतने में समीर ने मुझे मुद्रा बदलने को कहा हेमा का मन तो नही था...पर वो मजबूरन उठ खड़ी हुई...

फिर समीर ने उसे घोड़ी बनाया और उसके नितंबो की फांकों को चौड़ा करता हुआ उसके गान्ड के सुराख में लंड घुसाने लगा..वो काफ़ी सुखी थी...इसलिए उसने अपने साथ लाई ल्यूब उसके छेद पे अच्छे से लगाई और एक अंगुल पे लगाते हुए उस अंगुल को अंदर छेद तक घुसाया उसके बाद उसने मुझे आमंत्रित करते हुए हेमा की गान्ड चोदने को कहा....वो ये देखना चाहता था कि मैं अपने मूसल लंड से उसके छेद को चौड़ा करके फाड़ डून

मैं आगे बढ़ा और अपने विशालकाय लंड को उसके छेद में रगड़ने लगा....उसके बाद सुपाडा हल्का सा अंदर गया तो हेमा चीखी...

"अबे साली थोड़ा सा दर्द बर्दाश्त कर चूत को तो भोसड़ा बना रखा है कम से कम गान्ड का मज़ा ही दे दे"........समीर ने उसके मुँह को हाथो से कस कर बंद करते हुए कहा

मैं फिर उसके गुदा द्वार में अपना लंड घुसाने की नाकाम कोशिश करने लगा..और इस बीच उसका पूरा बदन थर्र थॅर काँप गया...मेरा 8 इंच का लंड उसके छेद के अंदर घुसता जा रहा था....हेमा की आँखे बड़ी बड़ी हो गयी वो किसी घोड़ी की तरह आवाज़ कर रही थी....जब मेरा पूरा अंदर जड़ तक बैठ गया..तो मैने कस कर उसके नितंबो को दबोचे एक धक्का मारा....मेरा सुपाडा उसकी बच्चेदानी को छू रहा था...

मेरे एक करारे धक्के से से हेमा का पूरा बदन काँप उठा...मारे उत्तेजना में मैं फिर से एक कस कर धक्का मारा तो उसका पूरा शरीर काँप उठा...ऐसा 2-3 धक्को में ही वो बदहवास हो गयी काँपते हुए उसके बाद मैं उसके नितंबो पे थप्पड़ मारता हुआ उसे चोदने लगा..."उई आहह हाहह आहह"......समीर हेमा को दर्द से कराहते देख मज़ा ले रहा था...."मांर इसकी गान्ड ले ले अपना बदला चोद इसे अच्छे से पूरा सुख दे इसको जितना इसके किसी भडवे ने नही दिया हो"....समीर ने मेरी गान्ड पे हाथ फेरते हुए उस पर दबाव दिया जिससे मेरे कूल्हें पे दबाव देने से लंड जड़ तक जो गान्ड की दरारों में फसा हुआ था वो बुरी तरह अंदर बाहर होने लगा..

हेमा का पूरा गला लाल हो गया मैं नितंबो को मसल्ते हुए उसके बालों को हाथो में समेटते उसके सर को उपर किए उसकी घोड़ी मुद्रा में चुदाई कर रहा था..अब धक्के बहुत तेज़ी से शुरू कर दिए थे मैने ...हर एक धक्के में हेमा की आँखे बाहर आ जाती....कुछ ही देर में हेमा पश्त पड़ गयी वो फिर झड चुकी थी समीर नीचे से उसकी झूलती चुचियो को दबाते हुए उसका रस्पान करने लगा....ताकि हेमा को मज़ा भरपूर मिले...उसके बाद जब मैं थक गया..तो मैने अपना लॉडा बाहर खीचा...छेद सिकुड रहा था खुल रहा था....हेमा काँपते हुए बिस्तर पे ढेर हो गयी...समीर उस पर चढ़ा और उसकी चूत में फटाक से लंड घुसाए उसकी चुदाई करने लगा...उसका लंड एक ही करारे धक्के में हेमा की भोसड़ी के अंदर तक सरक गया....वो एकदम कस कस कर भीषण चुदाई कर रहा था

"क्या समीर ऐसे ही अपनी माँ को चोदता होगा?".....यही सोचते हुए मेरा दिल दहेल गया...क्यूंकी वो बहुत हार्डकोर तरीके से उसकी रफ चुदाई कर रहा था....वो कुछ ही देर में 2-4 धक्के लगाने के बाद उसके अंदर ही अपने रस को उगलने लगा....उसकी चूत समीर के रस से भर गयी वो हेमा पे पश्त पड़ के लिपट गया...मैने समीर को उठाया और उसे हटाते हुए फिर से हेमा की टाँगों को अपने कंधो पे रखा....और उसकी रस उगलती चूत के नीचे बहते हुए वीर्य को चादर से ही पोंछ दिया फिर उसकी चौड़ी गान्ड की छेद में लंड घुसाने लगा...हेमा फिर तड़पने लगी

वो बुरी तरह थक चुकी थी....मैने फिर बराबर धक्के लगाने शुरू किए....वो हर धक्के के अहसास से रोमांचित हो उठ रही थी....वो मेरे होंठो को किस करते हुए मुझे उत्तेजित कर रही थी....मेरा लंड छेद से अंदर बाहर हो रहा था....पूरे कमरे में हेमा की आवाज़ें गूँज़ रही थी...वो लगभग पष्ट पड़ गयी थी समीर ने उसकी बेहद करारी चुदाई की थी....समीर बगल में नंगा लेटा हम दोनो को चुदाई करते देख रहा था...."आहह आहह सस्स आह कमीने झड भी जा"..........
 

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"अभी नही रे कुतिया अभी तुझे मेरा अंदाज़ा नही ....मैने इतना कहते हुए उसकी टांगे अपनी कमर पे लिपटा ली और काफ़ी ज़ोर ज़ोर से गान्ड के अंदर तक गहराई में लंड पेलने लगा....वो उस अहसास से ही चीख उठी...चुदाई मेरी बड़े जोरो से चल रही थी....इस बीच समीर ने भी मेरे बीच में आते हुए हेमा की गीली वीर्य से भारी योनि में अपना लॉडा घुसा दिया...मैं समीर को हेमा पे लिटाए उसके नीचे से हेमा की गान्ड मारे जा रहा था दो दो लौडो से चुदने का अहसास शायद हेमा को कभी महसूस नही हुआ था..वो बुरी तरह चीखे जा रही थी....

और कुछ ही देर में समीर फिरसे उसकी चूत में फारिग हो गया उसके बाद उसके हटते ही मैं फिरसे हेमा की चुचियो को हाथो में भीचते हुए उसकी गान्ड में ही फारिग हो उठा...रस की धार से गान्ड पूरी गीली हो गयी जब मैने उसकी गान्ड के छेद से अपना लंड बाहर खींचा तो उसकी योनि और गान्ड के छेद दोनो से वीर्य बह रहा था...वो वैसे ही पश्त पड़ी लेटी हाँफ रही थी...इस बीच जब मैं अपनी उखड़ती साँसों पे काबू पाता हुआ दाई ओर दरवाजे पे मूड के देखता हूँ

तो पाता हूँ फटी नज़रों से देख रही बिल्कुल सहमी हेमा की दोनो बेटियाँ दरवाजे पे ना जाने कब से खड़ी थी....हेमा की भी उनपे नज़र पड़ी तो वो फ़ौरन उठ खड़ी हुई मेरी तो फॅट गयी क्यूंकी मैं उनसे नज़र नही मिला पा रहा था...वो मेरे झूलते लौडे को देख रही थी ना जाने कब से हम तीनो की चुदाई देख रही थी वो दोनो उसने अपनी माँ को नंगा पाया उसकी योनि और गुदा द्वार की छेद को लबालब सफेद वीर्य से लथपथ पाया ऐसा लग रहा था जैसे उनकी नज़रों में मेरे और अपनी माँ के लिए घृणा हो....समीर की भी नज़र जब उन दोनो से मिली तो वो भी शर्मिंदा सा होके अपने गुप्ताँग को छुपाए मेरी तरफ बौखलाई नज़र से देखने लगा...

अब तक आदम और समीर को ये अहसास तक नही हुआ था कि बाहर दरवाजे पे हेमा की दोनो बेटियाँ उमा और रैना खड़ी अपनी माँ को अपने ही मुँह बोले भाई और उसके दोस्त से चुदाई करते हुए देख रही थी....उसकी माँ की सिसकियाँ और दोनो मर्दो का गाली गलोच भरी बातें वो दोनो सॉफ सुन चुकी थी...अब जब आदम की नज़र साथ साथ उसकी माँ की भी नज़र अपनी बेटियों पे पड़ी जो एकदम दंग रह गयी थी उन लोगो के कारनामे को देखके....तो फिर हेमा के मुँह से एक बोल भी नही फूटा..उसने सहमी हुई नज़रों से बस आदम की ओर देखा जो खुद नज़रें इधर किए पास रखे कपड़े अपने गुप्तांगो के बीच छुपाए एकदम नंगा अपनी मुँह बोली बहनों के सामने खड़ा था....

अब तक दोनो घृणा और सहमी नज़रों से आदम और अपनी माँ हेमा और साथ में आदम के दोस्त समीर को भी घूर्र रही थी...समीर जल्दी जल्दी जैसे तैसे कपड़े पहनने लगा...आदम अपनी कहने जा ही रहा था कि बड़ी बेटी रैना चिल्ला उठी....उसका बरसना स्वाभाविक था...आदम लगभग चुपचाप हो गया ऐसा लग रहा था जैसे रूपाली भाभी वाला वाक़या उसके सामने चल रहा हो...

छोटी बेटी उमा एकदम चुपचाप खड़ी रो रही थी...बड़ी बेटी रैना ने अपने आँसू पोंछे...और लगभग माँ पे चिल्लाते हुए उनसे इन हरकतों का कारण पूछा....हेमा बेशरमो की तरह बेलज्ज नंगी खड़ी अपनी बेटियो की बातों से झेंप सी रही थी...लेकिन बेटियो की आवाज़ में ज़रा भी कमी नही हुई वो माँ और आदम से जवाब माँग रही थी

रैना : आप लोगो को शरम नही है खासकरके आपको भाई आपको अपना भाई माना और आप हमारी ही माँ के साथ इस चार दीवारी के अंदर हमारे आब्सेंट में ना जाने कब से ये गुल खिला रहे है?...अर्रे हम तो जानते है हमारी माँ कितनी गंदी औरत है पर आप भी इसमें माँ का साथ दे रहे है...हम आपको क्या समझते थे और आप क्या निकले (आदम जैसे अपने आपको उनकी आँखो में मुजरिम कह रहा था)

इतने में हेमा रैना को चुप होने को कहने लगी...पर रैना का गुस्सा जायेज़ था...उसने अपनी माँ को धमकाया कि अगर कल को सरदार जी को मालूम चला तो तुम्हारा क्या हश्र करेगा? हम सबको बेघर होना पड़ जाएगा.....हेमा वैसे ही उसकी बहुत देर से बातें सुन रही थी वो समझाने की लगातार कोशिश करती रही पर रैना समझने को जैसे कुछ तय्यार नही थी उसकी आवाज़ तेज़ हो गयी थी...अगर आवाज़ बाहर जा रही होगी तो उसी का घर बदनाम होगा...ये सोचते हुए हेमा को गुस्सा चढ़ गया और रैना पे एकदम से बरस पड़ी...समीर चुपचाप एक कोने पे बिस्तर पर बैठा हुआ था और मैं तो ठीक सामने चुपचाप खड़ा खुद को कोस रहा था कि काश ज़मीन फटे और मैं उसमें धँस जाउ.....

हेमा : बस कर तू अब और कोई लव्ज़ भी मत निकाल ना मुँह से

रैना : और कहूँगी मैं? ये सब जो कांड आप कर रही थी इतने दिनो तक हमारे आब्सेंट में अब आपकी हमारी निगाहो में आपकी कोई इज़्ज़त नही बची

हेमा अब तक हुई अपनी बेज़्ज़ती को बर्दाश्त कर रही थी लेकिन जब अपनी ही बेटियो ने उसे इतना हद तक जॅलील करना शुरू किया...कि हेमा अपने गुस्से पे काबू ना पा सकी और उसने दो खीचके थप्पड़ अपनी बेटी के मुँह पे लगाए...वो चेहरा पकड़े दर्द को पीए माँ की तरफ आँसू भरी निगाहो से देखने लगी

हेमा : अर्रे रंडियो अर्रे हरमज़ादीयो उस माँ को तुम गाली दे रही हो जिसने तुम्हारे इतने नखरे सहे तुम्हें इतना पाला पोसा..अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिला करवाया क्या इतने सारे पैसे? क्या तुम्हारा मरा हुआ बुज़दिल नामर्द बाप लाके क़बर से दिया बता ज़रा...तू सरदार जी की धमकी मुझे दे रही है तुझे लगता है कि वो रोज़ यहाँ जो आया करता है सिर्फ़ इसलिए की वो तुम्हारी माँ को चोदने आता है अपनी हसरत मिटाने आता है अपनी ठरक बुझाने आता है और वो मेरा पति ? अर्रे भडुये की पैदाइश तुम क्या जानोगी अपनी माँ का दुख? इतने सालो से जिस माँ ने तुम्हें खिलाया पिलाया बाप के मर जाने के बाद वो सारे ऐशो आराम देने की कोशिश किए जिससे तुम्हारी ज़िंदगी में कोई प्राब्लम ना आए उस माँ का आज तुम्हें एक राज़ क्या मालूम चला कि उस माँ पे तुम उंगली उठाने लगी

जैसे कितनी इज़्ज़त का पहाड़ पार कर आए हो? सच कहूँ तो ना किसी भडवे ने मदद की और ना किसी ने एक मुट्ठी खाने के लिए भी पूछा...आज कामवाली का धंधा छोड़के सरदार की रखैल बनी हूँ...तो क्या सोसाइटी में मेरी इज़्ज़त बहुत बढ़ गयी...कल भी मेरी इन लोगो ने इज़्ज़त नही की और ना आज करते है...तुम लोगो को लगता है कोई हमे अच्छी नज़रों से देखता है अर्रे बेशरम बहयाओ ज़रा गौर करोगी तो पओगि ये सोसाइटी वाले तुम लोगो को केरेकटारलेस बदचलन रंडी की औलाद कहते फिरते है....जानती हो कितना दुख होता है मुझे?

आज जिस मुँह बोले भाई को तुम लोग गालियाँ दे रही हो....उसने और ये लड़का (समीर की तरफ उंगली का इशारा करते हुए) अगर ना आते ना तो तुम्हारी यह माँ ये रंडी ज़िंदा नही होती...जिस सरदार की तुम लोग दुहाई देती हो ना उनकी नज़रों में तुम उनकी बेटी नही एक तरस खाई वो बेसहारा लड़कियाँ हो जिसकी कोई औकात नही जिसे उसने तरस खाते हुए अनाथ लड़कियो की तरह तुम्हें पाला है और वो पैसा जानती भी हो क्यूँ देता है? क्यूंकी वो तुम्हारी माँ को चोद्ता है मज़े लेता है....जब ठरक पूरी हो जाती है तो फिर किसी गैर लड़कियो के पीछे कुत्ते की तरह भाग जाता है देखती हो कितना कम आना कर दिया उसने...अर्रे ये मर्द ज़ात सिर्फ़ सेक्स के भूके है ठरक के लिए पैसे उड़ाते है पैसे...और उन्ही पैसो के टुकड़ो में पल रही तुम रंडिया हो समझी...जानती भी है कि अगर ये दोनो उस दिन ना आते तो मेरा क्या अंजाम होता? अर्रे कम से कम मेरा ना सही अपने भाई का तो लिहाज़ करती लेकिन तुम्हे तो ये सब गुनाह दिख रहा होगा कि मेरी माँ को चोद रहा है मेरा अपना भाई...ये भी उसकी मर्ज़ी नही मेरी मर्ज़ी से हो रहा था....तुम्हारे सो-कॉल्ड सरदार बाप ने तुम्हारी रखैल माँ को पैसे देने से इनकार कर दिया था...मेरी मज़बूरी मुझे फिर उस राह पे जाने को कहने लगी...तुम्हारी माँ हां धंधे वाली है रंडी है इसी से गुज़ारा करती है

संजय भी आता है सुन लो हां संजय भी आता है कह देना जिसकी बोली बोलती हो इन सोसाइटी वालो से...अपने उस भद्वे बाप सरदार जी से...मज़बूरी की मारी पार्टी में मैं गयी और मेरी वजह से इसकी माँ (आदम की तरफ इशारा करते हुए) जो हर दुख सुख में मेरे साथ रही हर मुसीबत में उसने कभी मुकरा नही ये आया था मुझे मेरी ग़लतियो के लिए मुझे कितना कोसा फिर भी मैं मोटी चॅम्डी की एक कमीनी बड़जात औरत अपनी नापाक मज़बूरी के लिए इस्की माँ को लेके गयी...और उस बेचारी को मेरी वजह से कितना कुछ सहना पड़ गया...उस दिन तो वो ठरक के मारे कुत्तो का दल मुझे नोच नॉचके के मांर डालते लेकिन किस्मत में बचना था भगवान ने बचा लिया...मैं इतने सालो तक चुपचाप रही कि मैं नही चाहती थी कि तुम्हें मेरे वज़ूद के बारे में कुछ भी मालूम चले...तुम्हारे पिता की वजह से मुझे दूसरो मर्दो का शिकार बनना पड़ा...तुम्हारे पिता की वजह ग़रीबी की ज़िल्लत झेलनी पड़ी..और अब तुम्हारा यह पिता जो तुम्हारी माँ को बीवी नही एक रखैल की तरह रखता है और उसे बुरी तरह चोदता है उसकी वजह से दर्द सहना पड़ा क्या अब भी तुम मुझे खराब कहोगी तो मैं हूँ खराब...
 

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अब तक हेमा इतना कह कर चुप हो गयी....वो हाँफने लगी थी....इस बीच मैने उसके बदन पे उसकी साड़ी रख दी थी...मैं जैसे तैसे अपने कपड़े पहनने लगा..और बिना हिचकिचाए रैना के पास आया जो ये सब सुनके लगभग कठोर सी बनी खड़ी थी...ऐसे लग रहा था जैसे उसे कितनी गहरी चोट दिल में लगी हो...मैं उसे और उसकी बहन उमा को समझाने लगा....जो हमारे बीच उसने देखा वो सिर्फ़ एक ज़रूरत थी...उसे उसकी माँ की बच्चेदानी में हुई सूजन की रिपोर्ट्स मैने दिखाई तो वो एक टक उसे देख कर चुपचाप नम निगाहो से अपनी माँ को रोते हुए पाई...

समीर : रैना ग़लती मेरी है तुम अपने भाई और माँ को मत कोसो...शायद मुझे तुम माँ-बेटी के बीच में बोलने का कोई अधिकार नही बनता पर हां मैने हेमा आंटी को पैसे देके इनके साथ संबंध बनाए....हालाँकि इसमें इनकी भी मर्ज़ी थी...और रही बात आदम की तो आंटी की इच्छा अनुसार ही वो हमारे साथ शामिल हुआ

समीर की बात सुन चुपचाप दोनो बहने उसकी तरफ देखने लगी..."सच कह रहा है समीर ग़लती मेरी भी है कि मैने सबकुछ जाने सुने तुम्हारी माँ के साथ संबंध बनाए...कौन बेटी अपनी माँ को ऐसे हालत में देखना चाहेगी अभी कुछ देर पहले जो हमारे बीच हुआ उसके बाद तो हम तुम्हारे सामने मुज़रिम ही है...पर कम से कम हमारे लिए ना सही अपनी माँ का तो सोचो जिसने तुम्हारे लिए इतना कुछ सॅक्रिफाइस है आंड ट्रस्ट मी रैना आंटी की कोई ग़लती नही है अगर अब भी तुम्हें हमसे नफ़रत है तो करो लेकिन आंटी जिसने तुम्हें इतना सपोर्ट किया कम से कम उस बेचारी को तो ऐसे ना कहो एक वक़्त था कि तुम्हारे पिता इन्हें जब काम से आती थी तो साड़ी उतारके इनके गुप्तांगो को चेक करते थे मैं ये बेशरामी से कह रहा हूँ क्यूंकी ये एकदम सच है तुम दोनो को सुनना होगा हां फिर बदन को चेक करते थे कि कही कोई नाख़ून नोचने के किसी गैर मर्द से कही कुछ करके तो नही आई"......आदम ने हिचकिचाते हुए कहा...

अब तो आदम का हिचखिचाना भी कम हो गया इतना समझाने के बाद भी अगर वो लोग खफा होते तो लाज़मी ही था...समीर मेरे पास आया उसने मेरे कंधे पे हाथ रखा और कहा चल अब यहाँ रुकने का कोई फ़ायदा नही...मैने समीर की बात बीच में रोकी और उन दोनो की तरफ गंभीरता से देखने लगा उमा मुझे देख रही थी..मैं उनके सामने अपने कपड़े पहनने लगा...दोनो ने नज़रें इधर उधर कर ली क्यूंकी बहुत देर से हम तीनो उनके सामने अध नंग अवस्था में थे....जाते जाते मैने सिर्फ़ इतना कहा कि अगर मुझसे कोई गुनाह हो गया तो माँफी चाहूँगा लेकिन प्लीज़ मेरे लिए अपनी माँ को मत कोसना...मैं अब कभी इस घर में पाँव भी नही रखूँगा....मुँह बोला भाई ज़रूर दुनिया कहे पर मैं सच्चे दिल से तुम दोनो को मानता हूँ...हालाँकि हेमा आंटी को मैं अपनी माँ जैसा नही मानता पर उनसे मेरा अटूट रिश्ता है जो शायद कोई समझ ना पाए शायद वो भी नही...

इतना कह कर समीर ने मेरी बाँह पकड़ी और हेमा आंटी और उनकी बेटियो को वैसे कशमकश की हालत में छोड़े वहाँ से निकल आए....पूरे रास्ते हम चुपचाप थे समीर ने गाड़ी एक जगह पार्क की...और दो बियर की बॉटल्स लाया...मैं ना नुकुर करने लगा..पर उसने कहा फिलहाल यही एक चीज़ है जो मरहम की तरह काम देगी शायद दिलो के सदमे को ख़तम ना कर पाए पर उभरने तो देगी....मैं बियर वैसे पीता नही था फिर भी दो घूँट मारे उसकी कड़वाहट में मैं मुँह बनाने लगा...समीर हंस पड़ा

समीर : बेहेन्चोद ग़लती मेरी ही थी...खामोखाः तुझे बुलाया इतने सालो का रीलेशन था तुम लोगो का अब ऐसे मुँह फुलाए सदमा लिए उनके घर से रुखसत होना पड़ा तुझे अंजुम आंटी को कुछ बता ना दे उनकी बेटियाँ

आदम : नही समीर वो लोग कुछ नही कहेंगी माँ के इतना कुछ कहने के बाद वो लोग चुपचाप हो गयी पर गहरा सदमा लगा है उन्हें और लगे भी क्यूँ ना? खैर यार हम अपनी शहवत (ठरक) की हसरत को पूरी करने के चक्कर में अपने रिश्तो की बलि चढ़ा देते है...महेज़ दो पल की ठरक के लिए एक चुदाई ने हमारे रिश्तो को कैसे शरम सार कर दिया....यार सच में ये नाजायेज़ रिश्ते सुख कभी नही दे सकते

समीर : उफ्फ हो आदम जो हुआ अब उस पर तेरा बस थोड़ी था.....कल भी तो मैं हेमा के घर गया तो कहाँ उसकी कोई बेटी आई हुई थी? अब एकदम से इत्तेफ़ाक़ देख कि वो दोनो दरवाजे पे खड़ी थी और हम दरवाजे को लॉक्ड भी नही कर सके चल कर भी लेते तो क्या उनके दरवाजे पे दस्तक देने के बाद हम तीनो को एक साथ देख उन्हें फिर भी तो शक़ होता

आदम : खैर जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ...उमा और रैना उनपे क्या बीतेगी यार?

समीर : भाई तेरा दुख समझता हूँ तू छोड़ ना इस बात को...और हेमा का राज़ तो उन दोनो के सामने एक ना एक दिन आना ही था...अब आ तो गया ना सच्चाई से तो वाक़िफ़ हो गये ना

समीर आदम को समझाने लगा आदम भी चुपचाप समीर की बातों को सुनने लगा...उसे दुख तो पहुचा था कि उसकी बेटियाँ ये सब देखके एकदम शॉक्ड हो गयी थी उन्होने अपनी माँ की चुदाई गैर मर्दो से नही देखी थी और आज ग़लती से ही सही उनकी नज़र अपनी माँ पे जब इस हालत में पड़ी तो कहेर उनपर टूट पड़ा था...ना जाने घर में उनके क्या अब तक कलेश हो रहा होगा? यही सोचते हुए मैं चुपचाप सोच की कशमकश में घिरा रहा

समीर : भाई ज़्यादा टेन्षन ना ले अब जो हुआ सो हुआ भूल जा कोशिश कर अब तो मेरा भी हेमा आंटी के घर जाना नही हो पाएगा शायद वो हमसे बात तक करना छोड़ दे...तू अंजुम आंटी के साथ हमेशा हमेशा के लिए जा रहा है बस अपनी गृहस्थी पे ध्यान दे जैसे मैं दे रहा हूँ समझता हूँ आंटी की सहेली थी उनकी बेटियाँ तुझे भाई मानती थी तुझे ये सब सोचके बहुत बुरा लग रहा है पर यार अब हम किस्मत के आगे कर भी क्या सकते है

आदम : हां यार

समीर : अच्छा इन सब हालातों के चक्कर में मैं तुझे बता नही पाया?

आदम : क्या नही बता सका? बोल मैं सुन रहा हूँ

समीर चुपचाप उदासी भरे लहज़े में मुस्कुराया और उसने आदम के कंधे पे हाथ रखा...."अब तू जा रहा है तो मैं भी अब अगले साल तक यहाँ से चला जाउन्गा मुंबई जाने का फ़ैसला कर लिया है मैने"........

."हां तूने बताया था"......आदम ने सुनते हुए कहा

समीर : ह्म वहीं से अपना कारोबार संभाल लूँगा और सोच रहा हूँ कि?

आदम : अर्रे बोल ना भाई चुपचाप क्यूँ है इतना?

समीर : देख अंजुम आंटी कैसा रिक्ट करे? पर मैं चाहता हूँ तू आना ज़रूर अगर आंटी को हमारे बारे में सब मालूम चले तो वो भी आ सकती है...

आदम चुपचाप समीर की तरफ सवली निगाहो से देख रहा था...."किस चीज़ का तू मुझे बुलावा दे रहा है भाई खुल के बता".......समीर शरामते हुए मुस्कुराया और अपनी और सोफीया की शादी की बात बताई....आदम ये सुनके हैरत में पड़ गया फिर उसका चेहरा भी गुलाबी हो उठा ...वो उठके समीर के गले लगा

आदम : ओह हो तो बात यहाँ तक पहुच गई?

समीर : हां भाई अब हम दोनो ने फ़ैसला कर लिया है कि हम शादी करेंगे माँ तय्यार है

आदम : किसी को अगर मालूम!

समीर : अर्रे सिर्फ़ क़ाज़ी ही तो होगा और कौन होगा? और अगर तू शामिल रहा तो वारे न्यारे

आदम : हाहाहा कोंग्रथस ब्रो अब सोफीया आंटी तेरी बीवी बन जाएँगी...फिर उसके बाद

समीर : उसके बाद वोई होगा जो हर शादी के बाद होता है

समीर के इरादे भापते हुए आदम ज़ुबान पे दाँत रखके काटा फिर दोनो हंस पड़े...एकदुसरे से गले मिले...समीर ने आदम को काफ़ी समझाया..फिर कहते हुए गया कि अंजुम को लेके उससे और उसकी माँ से मिलने आए जिस दिन वो जाएगा उससे पहले...आदम पूरा रज़ामंद हुआ उसने समीर से वादा किया...समीर से दूर होने में उसे दुख हो तो ज़रूर रहा था पर नियती का यही खेल था....वो अपनी गृहस्थी को लेके उलझा था तो यहाँ आदम अपनी गृहस्थी को लेके...पूरे दिन का दुख समीर की खुशख़बरी ने एक झटके में गायब कर दिया था
 
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Monster Dick

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मैं जब घर लौटा तो पाया कि माँ चाइ बना रही थी...टी.वी पे गाना चल रहा था...गाना बहुत सेक्सी सा आ रहा था धक धक करने लगा ओह मोहे जिय रा डरने लगा....सय्या बय्या तोड़ना कच्ची कालिया तोड़ ना...दिल से दिल मिल गया मुझे कैसी यह हया...तू है मेरी दिलरुबा क्या लगती है वाह रे वाह".....उसमें माधुरी का नेवेल काफ़ी सेक्सी लग रहा था देखने में उसे देखके ही मैं अपनी पॅंट के उभार को अड्जस्ट करने लगा...इतने में अंजुम अंदर आई तो उसने मुझे मेरे पॅंट को ठीक करते हुए पाया जब उससे निगाह मिली तो माँ जैसे लजा गई

हम दोनो बैठके गाना सुनने लगे..माँ ने देर से आने का कारण पूछा...मैने कहा कि बस समीर के यहाँ चला गया था...माँ फिर शरमाने लगी...उसे कैसे कहता? की अभी कुछ घंटे पहले हेमा आंटी की हम दोनो मिलके चुदाई कर रहे थे..उसके बाद क्या हुआ? वो सब फिर मेरे नज़रों से गुज़रने लगा मैं फिर थोड़ा गंभीर होके चाइ पीने लगा

अंजुम : और कैसी है तेरे दोस्त की माँ? (माँ ने सेक्सी अंदाज़ में कहा वो तीखी नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए चाइ की चुस्की लेने लगी)

आदम : बस ठीक है तुझे पता है? समीर और सोफीया आंटी शादी करने वाले है अगले साल

अंजुम : क्या? (इतना कहते हुए अंजुम ने वॉल्यूम थोड़ी कम की टी.वी की) क्या कह रहा है? सोफीया अपने बेटे से निक़ाह

आदम : ह्म तू तो पहली बार ऐसा सुन रही है इसलिए ऐसा भाव प्रकट कर रही है यही सच्चाई है एक माँ होके अपने ही बेटे के साथ वो ब्याह करेगी

अंजुम : रिश्तेदारो को किसी को?

आदम : सवाल ही नही उठता कोई है ही कहाँ उसका? जो लोग थे भी उसके पिता की मौत के बाद उन्हें मामली हालत ना देने से पीछे होके हट गये...वो दोनो तो अकेले है अर्रे तुझे पता है उसने मुझे भी इन्वाइट किया है पर वो जानता नही कि तुझे उसके बारे में ये सब पता है?

अंजुम सर पे हाथ रखके आश्चर्य भाव से बेटे की तरफ बार बार यही सवालात कर रही थी कि एक माँ होके बेटे से वो निक़ाह कैसे कर सकती है?.....मैने उसे समझाया कि प्यार अँधा होता है और भला दोनो की डोर क्या सिर्फ़ जिस्मानी रिश्ते तक सीमित रहेगी इस रिश्ते को वो नया नाम देना चाहते है...और हर रिश्ते के आख़िर में शादी ही होती है फिर संसार बढ़ता है...मुझे तो लगता है कि कहीं शादी से पहले ही बेटा उसे प्रेग्नेंट ना कर दे

अंजुम : हट पागल (माँ ने मेरे कंधे पे थोड़ी कस कर चपत लगाते हुए कहा) ऐसा भी होता है भला

आदम : क्यूँ नही होता? क्या मैं तुझसे प्यार नही करता? चल हम दोनो भी उनकी देखा देखी निक़ाह कर लेते है

अंजुम : छी छी तू भी ना पूरा पागल हो गया है (माँ के शरम से गाल गुलाबी हो गये)

मैं माँ को लज्जा पाते देख मुस्कुरा पड़ा...उसे कस कर अपनी सीने से लगाया और उसके खुले बालों में उंगलिया लपेटने लगा....गाने बहुत सेक्सी आ रहे थे उस गाने के ख़तम होने के बाद रेखा और अक्षय कुमार का गाना बजने लगा उसमें अक्षय कुमार से कैसे उससे तिगनि उमर बड़ी रेखा लिपट लिपट के रोमॅन्स का रही थी....इन दा नाइट नो कंट्रोल क्या कहूँ कुछ तो बोल?....माँ बेशर्मी से मेरे साथ गाना देख रही थी..मैं चुपचाप माँ के साथ गाने का लुफ्त उठा रहा था...बीच बीच में प्यज़ामे के उपर अपना हाथ सहला भी रहा था...माँ ने ये हरकत नोटीस की मेरे हाथ पे थप्पड़ मार मुझे तीखी नज़रों से देखने लगी..

अंजुम : बहुत गंदा हो गया है तू

आदम : इसमें गंदगी क्या है? बताओ ज़रा

अंजुम कह नही पा रही थी वो लज्जित हुए मुस्कुरा रही थी ...उसके बाद टीवी के पास ही बैठके वो अपने बालों पे कंघी करने लगी...मैं भी उसे कमरे में छोड़ वापिस कंप्यूटर में आके बैठ गया....बार बार ख्यालो में हेमा आंटी के घर हुआ वाक़या घूम रहा था...क्यूंकी उमस बहुत पड़ी थी इसलिए मैं सिर्फ़ जॉकी का फ्रेंची पहने कंप्यूटर के सामने बैठा काम कर रहा था....बार बार मन से उन बातों को हटाने के लिए मैं पीसी पे ही आवा आडम्स जो कि लगभग मेरी माँ के उमर की पोर्न्स्टार है उसकी नंगी तस्वीरें देखने लगा....

इस बीच अंजुम अपने बालों को सवारे....जब दूसरे कमरे में अभी घुसने ही वाली थी कि उसने अपने बेटे को देखा जो पीसी पे गंदी गंदी तस्वीरें नंगी औरतो की देख रहा था....अंजुम ने गौर किया तो पाया उन औरतो के स्तन कितने मोटे और लटके हुए थे उनकी चूत पे भी बाल किसी स्टाइल में कटे हुए थे....एक जगह अपनी चूत पे उंगली किए वो दोनो चूत के माँस को हटाए अपनी फांको का हिस्सा दिखा रही थी तो किसी में...बिकिनी उतारते हुए अपने खरबूज़े जैसी चुचियाँ दिखा रही थी...किसी तस्वीर में वो हॅगने की अवस्था में बैठी अपनी गान्ड का चौड़ा छेद दर्शा रही थी...ये सब देखते हुए अंजुम ने चुपचाप चोरी छुपे बेटे को उन तस्वीरो को घूर्रते पाया....

इस बीच आदम ने उन तस्वीरो को हटा दिया और एक फोल्डर खोला उसमें उसकी माँ की कुछ तस्वीरें थी...जिसमें उसने कयि पार्टी वीयर खुले गले और काफ़ी स्टाइलिश ड्रेसस पहने हुए थे...उसके पिता गारमेंट्स लाइन में काम करते थे इसलिए कभी कभी बचा कूचा सॅंपल्स घर ले आते थे...माँ वेस्टर्न ड्रेस नाहही पहनती थी इसलिए वो उन्हें अपने रिश्तेदारो या अपनी सहेलियो में बाँट देती थी कुछ ड्रेस उसने ऐसी ही हेमा आंटी की बेटियों को दिए थे...जिन्हें बेहद पसंद आए

अंजुम ने गौर किया कि कितने अहेतियात से उसके बेटे ने उन तस्वीरो को संभाले रखा है...हर एक तस्वीर में किसी में फिते वाली उपर से लेके नीचे गले से होते हुए छातियो के कटाव दिख रहे है नीचे से घुटनो तक कपड़ा लटका हुआ किसी में उसने एक टॉप जैसी ड्रेस पहनी है जिससे उसकी खुली पीठ से ब्रा का स्ट्रीप दिख रहा है तो किसी में उसने एक स्टाइलिश फ्रॉक पहना हुआ है जो कि हवा के हिलने से लगभग उसकी पैंटी को दर्शा रहा है...आदम ने गौर से उस टाँगों वाले साइड को ज़ूम किया तो पाया माँ ने नीले रंग का कच्छा पहना हुआ था...ये सब तस्वीरे खुद आदम ने ली थी इसलिए उसे याद था...

माँ ने कयि दफ़ा बेटे को मना किया कि ऐसी पिक्स डेलीट कर दे...पर बेटे ने इन्हें संभाल कर एक फोल्डर में रख रखा था कोई 2-3 साल पुरानी पिक्स थी वो....माँ अंदर आई आदम एकदम से माँ की आहट को सुन काँप उठा..माँ उसके कंधे पे हाथ रखके उन तस्वीरो को देखने लगी...."बाप रे ये अब भी तूने संभाल रखी है"........

"ह्म ये ड्रेसस है क्या तुम्हारे पास अब भी".........

."हां है ना अंदर कही दबी हुई है मुझे ये सब पहनने की आदत थोड़ी ना है".......

."ह्म जानता हूँ माँ पर कभी कभी थोड़ा बदलके खुद को देखना चाहिए तुम सच में कितनी मस्त लग रही हो".....

.माँ ने बेटे की पीठ पे हल्की सी चपत लगाई वो शरम से लाल हो गयी थी

अंजुम : ये वाला डेलीट कर दे ना कितना गंदा लग रहा है मेरी पैंटी दिख रही है

आदम : कर दूँगा डेलीट पर तुम वादा करो ये ड्रेसस तुम फिर एक बार पहनोगी और मैं इससे अच्छी ड्रेसस तुम्हें लाके दूँगा

अंजुम : अफ इतना प्यार मुझसे करता है तू (माँ ने नज़ाकत से बेटे के चेहरे की तरफ अपना चेहरा लाते हुए कहा)

आदम : हां माँ बिल्कुल एक बार बस सेट्ल डाउन होने दे फिर देखना

अंजुम : हां देखती हूँ कि तू कितना ज़िम्मेदार मर्द है कैसे मुझे संभालता है? हाहाहा
 

xxxlove

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Monster Dick bhai bahut hi shandaar aur jabardast story hai.
Awesome update.........




Intzaar rahega next update ka.......
 
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