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Incest माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना

Kya Story band kar deni chahiye?

  • Yes, band kar do

    Votes: 7 9.7%
  • No, band mat Karo

    Votes: 65 90.3%

  • Total voters
    72

Decentboy151

New Member
54
19
8
I am flat kya sunder update likha hai. I am so lucky ki yeh kahani pad raha hin itne rmotions itni sunderta se likhen hai.
Writer ko saadar naman
 

sunoanuj

Well-Known Member
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7,867
159
Super se bhi upar wala updates… ek dum jhakaash 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Esac

Maa ka diwana
231
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124
Update 24


अगले दिन, यानी कि संडे की सुबह, मुझे जल्दी उठना पड़ा क्योंकि घर में एक पूजा का आयोजन था। यह पूजा उस मन्नत की थी जो नानी ने मेरे लिए रखी थी जब मैं एक बार बीमार होकर अस्पताल में भर्ती था। सब कहते हैं कि शादी जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले सारे उधार चुका देने चाहिए, इसलिए यह पूजा आयोजित की गई थी।


IMG-20240726-092208

पंडितजी हमारे परिवार के ही पंडितजी थे और उन्हें मेरे शादी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। वे केवल मन्नत पूरी करने के लिए आए थे।



ड्राइंग रूम में पूजा हो रही थी। मैं पंडितजी के सामने बैठा था, नाना मेरे पीछे दाईं ओर थे, नानी उनके बगल में और माँ नानी के पास, यानी कि मेरे पीछे बैठी थीं।

पूजा खत्म होने के बाद पंडितजी ने मुझे नाना, नानी और माँ को प्रणाम करने को कहा। मैं अपने आसन से उठकर नाना के पास गया और उनके पैर छुए। फिर नानी के पास जाकर झुककर उनके भी पैर छुए। मेरे मन में यह सवाल नहीं था कि माँ के पैर छूने चाहिए या नहीं, क्योंकि वो मेरी माँ हैं।


हालांकि दो दिन में वह मेरी पत्नी बन जाएंगी, फिर भी मैं ज़िन्दगी भर उनके पैर छू सकता हूँ। पर नानी को लगा कि मैं दुविधा में था कि माँ के पैर अब छूना चाहिए या नहीं। इसलिए जैसे ही मैं नानी के पैर छूने गया, नानी ने मेरे सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और मैं झुककर उनके सामने ही रह गया। तब नानी ने मुझे कहा, "अब जाओ, माँ के पैर छू लो।" शायद उन्होंने मुझे और माँ दोनों को यह संदेश देना चाहा कि शादी न होने तक हम माँ-बेटे ही हैं।

मैं माँ के पास गया और झुककर उनके पैर छुए। माँ सर झुकाकर खड़ी थीं। मुझे हमेशा उनके उन गुलाबी पैरों को चूमने का मन करता है, पर इस परिस्थिति में मैंने अपने मन से, एक बेटे की तरह, उसकी माँ के पैर छूने का भाव रखते हुए उनके पैर छुए।


पूजा थोड़ी देर से खत्म हुई, हम सबने लंच किया और फिर थोड़ा आराम करने लगे, क्योंकि शाम को हमें निकलकर ट्रेन पकड़नी थी और रातभर का सफर तय करना था। मुझे अब कुछ सोचने का मौका नहीं पा रहा था। सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था। हम तैयार होकर, सारा सामान लेकर, टैक्सी से स्टेशन पहुँचे और समय होते ही ट्रेन में सवार हो गए।

माँ ने आज एक पिंक साड़ी पहनी हुई थी। उस साड़ी से और उनके चेहरे से जो चमक आ रही थी, वह सब मिलकर उन्हें बेहद खूबसूरत बना रहे थे।



38a9c34ccd4e395ed7e3adfa6ea61f60

मेरे मन में एक खुशी का झोंका सा आ गया। मैं सोच रहा था कि यह प्यारी, सुंदर, खूबसूरत और सेक्सी लड़की कुछ समय बाद मेरी बीवी बन जाएगी। और वह मेरी, केवल मेरी ही हो जाएगी।

मैं उन्हें देखता रहा और वह बस सबके सोने का इंतजाम करने लगीं। नाना-नानी नीचे की बर्थ पर सो गए। मैं और माँ ऊपर की बर्थ में थे। मैं अपने बर्थ पर लेटकर उनकी तरफ घूमकर केवल उन्हें ही देखता रहा। उन्होंने कुछ समय बाद इसे महसूस किया और फिर मेरी तरफ देखकर एक स्माइल दी, फिर शर्माकर मेरी सो गईं। मैं उनकी ओर देखते-देखते बहुत उत्तेजित हो गया। मेरा लन्ड फिर से सख्त होने लगा। उनकी पतली कमर और हिप्स पर नज़र गई।



IMG-20240726-094740

फिर ऊपर जाकर उनकी सुडौल गर्दन पर नजर पड़ते ही मैं उत्तेजना के चरम पर पहुँच गया और अनजाने में मेरा हाथ मेरे पजामे के अंदर जाकर मेरे लोड़े तक पहुंच गया।

मैंने बस एक बार मुठ्ठी से पकड़ के अपना लन्ड छू लिया और फिर थोड़ी देर बाद छोड़ दिया। खुद को नियंत्रित करते हुए, मैंने सोचा कि अब बस दो दिन और हैं। उसके बाद, मेरा लन्ड उस जगह में होगा जहाँ से वो दुनिया में आया था उस वक्त मैं संसार में सबसे अधिक आनंद महसूस करूँगा।

हम सुबह 5:30 बजे बांद्रा टर्मिनस पर उतर गए। गर्मी का मौसम था, और सुबह की नरम शीतल हवा बहुत अच्छी लग रही थी। नाना-नानी मुंबई आकर थोड़े उदासीन भी हो गए। नाना की शादी के बाद वे लोग कुछ दिन मुंबई में रहे थे। यहाँ नानाजी ने बिज़नेस शुरू किया था और बाद में अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे। वहीं माँ का जन्म हुआ था और आज तक वे वहीं अपना घर बना चुके थे। आज यहाँ फिर पूरे परिवार के साथ आकर वे थोड़े भावुक हो गए।

हम स्टेशन से टैक्सी लेकर उसमें सारे लगेज लोड करके रिसॉर्ट के लिए चल पड़े। करीब डेढ़ घंटे का रास्ता था। माँ सुबह से चुपचाप थीं, केवल नानी के साथ कुछ बातचीत कर रही थीं। मैंने नज़र चुराकर दो-चार बार उनको देख लिया। मेरा मन अब खुशी से हंस रहा था। माँ के अंदर भी एक खुशी की उत्तेजना फैली हुई थी, और यह उनके चेहरे, आँखों की हलचल और शारीरिक हरकतों से साफ झलक रहा था।

वह नानी के ही आस-पास घूम रही हैं, नानी के साथ ही चल रही हैं। वह मेरी तरफ देख ही नहीं रही हैं। मैं सोचता हूँ कि माँ के मन में क्या मेरे लिए, मेरे प्यार के लिए कोई तूफ़ान हो रहा है या यह केवल मेरे अंदर ही है? आज बहुत दिन बाद हम पूरी फॅमिली घर से एकसाथ बाहर आए हैं, सबको अच्छा लग रहा है। मैं भी माँ के साथ बहुत दिन से ऐसा दूर कहीं आया नहीं था, इसलिए आज इस मुंबई शहर में हम एकसाथ आकर हमारे बीच की बांडिंग सबको महसूस होने लगी है।

हम एक फॅमिली हैं, सब एक-दूसरे के लिए ही हैं, और अब तो और भी नज़दीक रिश्ते में जुड़ने जा रहे हैं। कोई अंजान लड़की नहीं, इस घर की बेटी ही इस घर की बहु बनकर आ रही है। इसी घर का बेटा इसी घर का दामाद बनकर ज़िन्दगी भर एक-दूसरे से जुड़े रहने का बंधन बाँधने जा रहा है।

टैक्सी में मैं ड्राइवर के पास बैठा हूँ। पीछे नाना, नानी और उनके पास माँ बैठी हुई हैं। आज ऐसा लग रहा है जैसे नानीजी की बेटी शादी करके दूर चली जाएगी, उनका घर खाली हो जाएगा। इसीलिए, जितना समय मिले, माँ और बेटी एक साथ रहकर अपने मन की प्यास मिटा पा रही हैं। नानाजी जाते-जाते एक-एक जगह दिखा रहे हैं और वहां की बातें बता रहे हैं। नानीजी भी बीच-बीच में उनका साथ देकर बातों का लिंक जोड़ रही हैं।

मैं आगे बैठा हूँ, पीछे नाना की बातें सुनने के लिए बीच-बीच में पीछे मुड़कर देख रहा हूँ और तभी एक झलक माँ को देख लेता हूँ। माँ बस बाहर की तरफ नजर टिकाए हुए हैं, लेकिन मालूम पड़ रहा है कि उनका मन हमारे बीच में ही है।


IMG-20240726-095916

उनके होठों पर हल्की सी मुस्कान और आँखों में लाज और शर्म की जो छाया दिख रही है, उससे पता चलता है कि वह मन में एक खुशी की अनुभूति महसूस कर रही हैं, पर एक बार भी मुझसे नजर नहीं मिला रही हैं।

बाहर से हवा आकर माँ के माथे के ऊपर के कुछ बाल उड़ाकर उनके चेहरे पर फेंक रही है।

IMG-20240726-100503
माँ बार-बार हाथ से उन बालों को हटाकर अपने कान के पीछे ले जाकर समेटने की कोशिश कर रही हैं।

उनके इस तरह हलकी-हलकी मुस्कुराते हुए चेहरे से बाल हटाने का स्टाइल देखकर मेरे मन में उनके लिए प्यार और सेक्स दोनों ही जाग रहा है। एक अनिर्वचनीय अनुभूति मुझे घेरे हुए है, और इसका पता चलता है मेरे जीन्स के अंदर मेरे लोड़े की बेचैनी से। मैं अपने लन्ड को दबाकर पैर के ऊपर दूसरे पैर चढ़ाकर, पीछे मुड़ने के लिए दाहिने हाथ को हेडरेस्ट के ऊपर रखकर तिरछा बैठा हुआ हूँ। नानाजी की बातें सुनने से ज्यादा मेरा इरादा माँ को चोरी-चोरी देखने का है। पर मैं इस तरह पीछे मुड़कर बैठा हूँ कि माँ को मेरे देखने का अहसास हो रहा है।

वह मेरे प्रति अपनी संवेदनाओं को शायद महसूस कर रही हैं, लेकिन अपनी नज़रों को बाहर से अंदर की ओर नहीं मोड़ रही हैं। पिछली बार, जब हम घर लौटे थे, मुझे उन्हें छूने का अवसर मिला था, लेकिन इस बार वह मेरे नज़दीक नहीं आ रही हैं। मैं उन्हें अपनी बाहों में भरकर, अपने सीने से लगा लेने की कल्पना कर रहा हूँ। उनके उड़ते बालों में अपनी नाक डूबोकर उनकी खुशबू लेने की इच्छा है, लेकिन शायद यह ख्वाहिश शादी से पहले पूरी नहीं हो सकेगी। सुहागरात में, मैं उनके तन और मन दोनों को प्यार और केवल प्यार से पूरी तरह भर देना चाहता हूँ। हम सुबह की खाली सड़क पर जल्दी से रिसोर्ट पहुँच गये।
 

parkas

Well-Known Member
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Update 24


अगले दिन, यानी कि संडे की सुबह, मुझे जल्दी उठना पड़ा क्योंकि घर में एक पूजा का आयोजन था। यह पूजा उस मन्नत की थी जो नानी ने मेरे लिए रखी थी जब मैं एक बार बीमार होकर अस्पताल में भर्ती था। सब कहते हैं कि शादी जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले सारे उधार चुका देने चाहिए, इसलिए यह पूजा आयोजित की गई थी।


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पंडितजी हमारे परिवार के ही पंडितजी थे और उन्हें मेरे शादी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। वे केवल मन्नत पूरी करने के लिए आए थे।



ड्राइंग रूम में पूजा हो रही थी। मैं पंडितजी के सामने बैठा था, नाना मेरे पीछे दाईं ओर थे, नानी उनके बगल में और माँ नानी के पास, यानी कि मेरे पीछे बैठी थीं।

पूजा खत्म होने के बाद पंडितजी ने मुझे नाना, नानी और माँ को प्रणाम करने को कहा। मैं अपने आसन से उठकर नाना के पास गया और उनके पैर छुए। फिर नानी के पास जाकर झुककर उनके भी पैर छुए। मेरे मन में यह सवाल नहीं था कि माँ के पैर छूने चाहिए या नहीं, क्योंकि वो मेरी माँ हैं।


हालांकि दो दिन में वह मेरी पत्नी बन जाएंगी, फिर भी मैं ज़िन्दगी भर उनके पैर छू सकता हूँ। पर नानी को लगा कि मैं दुविधा में था कि माँ के पैर अब छूना चाहिए या नहीं। इसलिए जैसे ही मैं नानी के पैर छूने गया, नानी ने मेरे सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और मैं झुककर उनके सामने ही रह गया। तब नानी ने मुझे कहा, "अब जाओ, माँ के पैर छू लो।" शायद उन्होंने मुझे और माँ दोनों को यह संदेश देना चाहा कि शादी न होने तक हम माँ-बेटे ही हैं।

मैं माँ के पास गया और झुककर उनके पैर छुए। माँ सर झुकाकर खड़ी थीं। मुझे हमेशा उनके उन गुलाबी पैरों को चूमने का मन करता है, पर इस परिस्थिति में मैंने अपने मन से, एक बेटे की तरह, उसकी माँ के पैर छूने का भाव रखते हुए उनके पैर छुए।


पूजा थोड़ी देर से खत्म हुई, हम सबने लंच किया और फिर थोड़ा आराम करने लगे, क्योंकि शाम को हमें निकलकर ट्रेन पकड़नी थी और रातभर का सफर तय करना था। मुझे अब कुछ सोचने का मौका नहीं पा रहा था। सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था। हम तैयार होकर, सारा सामान लेकर, टैक्सी से स्टेशन पहुँचे और समय होते ही ट्रेन में सवार हो गए।

माँ ने आज एक पिंक साड़ी पहनी हुई थी। उस साड़ी से और उनके चेहरे से जो चमक आ रही थी, वह सब मिलकर उन्हें बेहद खूबसूरत बना रहे थे।



38a9c34ccd4e395ed7e3adfa6ea61f60

मेरे मन में एक खुशी का झोंका सा आ गया। मैं सोच रहा था कि यह प्यारी, सुंदर, खूबसूरत और सेक्सी लड़की कुछ समय बाद मेरी बीवी बन जाएगी। और वह मेरी, केवल मेरी ही हो जाएगी।

मैं उन्हें देखता रहा और वह बस सबके सोने का इंतजाम करने लगीं। नाना-नानी नीचे की बर्थ पर सो गए। मैं और माँ ऊपर की बर्थ में थे। मैं अपने बर्थ पर लेटकर उनकी तरफ घूमकर केवल उन्हें ही देखता रहा। उन्होंने कुछ समय बाद इसे महसूस किया और फिर मेरी तरफ देखकर एक स्माइल दी, फिर शर्माकर मेरी सो गईं। मैं उनकी ओर देखते-देखते बहुत उत्तेजित हो गया। मेरा लन्ड फिर से सख्त होने लगा। उनकी पतली कमर और हिप्स पर नज़र गई।



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फिर ऊपर जाकर उनकी सुडौल गर्दन पर नजर पड़ते ही मैं उत्तेजना के चरम पर पहुँच गया और अनजाने में मेरा हाथ मेरे पजामे के अंदर जाकर मेरे लोड़े तक पहुंच गया।

मैंने बस एक बार मुठ्ठी से पकड़ के अपना लन्ड छू लिया और फिर थोड़ी देर बाद छोड़ दिया। खुद को नियंत्रित करते हुए, मैंने सोचा कि अब बस दो दिन और हैं। उसके बाद, मेरा लन्ड उस जगह में होगा जहाँ से वो दुनिया में आया था उस वक्त मैं संसार में सबसे अधिक आनंद महसूस करूँगा।

हम सुबह 5:30 बजे बांद्रा टर्मिनस पर उतर गए। गर्मी का मौसम था, और सुबह की नरम शीतल हवा बहुत अच्छी लग रही थी। नाना-नानी मुंबई आकर थोड़े उदासीन भी हो गए। नाना की शादी के बाद वे लोग कुछ दिन मुंबई में रहे थे। यहाँ नानाजी ने बिज़नेस शुरू किया था और बाद में अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे। वहीं माँ का जन्म हुआ था और आज तक वे वहीं अपना घर बना चुके थे। आज यहाँ फिर पूरे परिवार के साथ आकर वे थोड़े भावुक हो गए।

हम स्टेशन से टैक्सी लेकर उसमें सारे लगेज लोड करके रिसॉर्ट के लिए चल पड़े। करीब डेढ़ घंटे का रास्ता था। माँ सुबह से चुपचाप थीं, केवल नानी के साथ कुछ बातचीत कर रही थीं। मैंने नज़र चुराकर दो-चार बार उनको देख लिया। मेरा मन अब खुशी से हंस रहा था। माँ के अंदर भी एक खुशी की उत्तेजना फैली हुई थी, और यह उनके चेहरे, आँखों की हलचल और शारीरिक हरकतों से साफ झलक रहा था।

वह नानी के ही आस-पास घूम रही हैं, नानी के साथ ही चल रही हैं। वह मेरी तरफ देख ही नहीं रही हैं। मैं सोचता हूँ कि माँ के मन में क्या मेरे लिए, मेरे प्यार के लिए कोई तूफ़ान हो रहा है या यह केवल मेरे अंदर ही है? आज बहुत दिन बाद हम पूरी फॅमिली घर से एकसाथ बाहर आए हैं, सबको अच्छा लग रहा है। मैं भी माँ के साथ बहुत दिन से ऐसा दूर कहीं आया नहीं था, इसलिए आज इस मुंबई शहर में हम एकसाथ आकर हमारे बीच की बांडिंग सबको महसूस होने लगी है।

हम एक फॅमिली हैं, सब एक-दूसरे के लिए ही हैं, और अब तो और भी नज़दीक रिश्ते में जुड़ने जा रहे हैं। कोई अंजान लड़की नहीं, इस घर की बेटी ही इस घर की बहु बनकर आ रही है। इसी घर का बेटा इसी घर का दामाद बनकर ज़िन्दगी भर एक-दूसरे से जुड़े रहने का बंधन बाँधने जा रहा है।

टैक्सी में मैं ड्राइवर के पास बैठा हूँ। पीछे नाना, नानी और उनके पास माँ बैठी हुई हैं। आज ऐसा लग रहा है जैसे नानीजी की बेटी शादी करके दूर चली जाएगी, उनका घर खाली हो जाएगा। इसीलिए, जितना समय मिले, माँ और बेटी एक साथ रहकर अपने मन की प्यास मिटा पा रही हैं। नानाजी जाते-जाते एक-एक जगह दिखा रहे हैं और वहां की बातें बता रहे हैं। नानीजी भी बीच-बीच में उनका साथ देकर बातों का लिंक जोड़ रही हैं।

मैं आगे बैठा हूँ, पीछे नाना की बातें सुनने के लिए बीच-बीच में पीछे मुड़कर देख रहा हूँ और तभी एक झलक माँ को देख लेता हूँ। माँ बस बाहर की तरफ नजर टिकाए हुए हैं, लेकिन मालूम पड़ रहा है कि उनका मन हमारे बीच में ही है।


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उनके होठों पर हल्की सी मुस्कान और आँखों में लाज और शर्म की जो छाया दिख रही है, उससे पता चलता है कि वह मन में एक खुशी की अनुभूति महसूस कर रही हैं, पर एक बार भी मुझसे नजर नहीं मिला रही हैं।

बाहर से हवा आकर माँ के माथे के ऊपर के कुछ बाल उड़ाकर उनके चेहरे पर फेंक रही है।

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माँ बार-बार हाथ से उन बालों को हटाकर अपने कान के पीछे ले जाकर समेटने की कोशिश कर रही हैं।

उनके इस तरह हलकी-हलकी मुस्कुराते हुए चेहरे से बाल हटाने का स्टाइल देखकर मेरे मन में उनके लिए प्यार और सेक्स दोनों ही जाग रहा है। एक अनिर्वचनीय अनुभूति मुझे घेरे हुए है, और इसका पता चलता है मेरे जीन्स के अंदर मेरे लोड़े की बेचैनी से। मैं अपने लन्ड को दबाकर पैर के ऊपर दूसरे पैर चढ़ाकर, पीछे मुड़ने के लिए दाहिने हाथ को हेडरेस्ट के ऊपर रखकर तिरछा बैठा हुआ हूँ। नानाजी की बातें सुनने से ज्यादा मेरा इरादा माँ को चोरी-चोरी देखने का है। पर मैं इस तरह पीछे मुड़कर बैठा हूँ कि माँ को मेरे देखने का अहसास हो रहा है।

वह मेरे प्रति अपनी संवेदनाओं को शायद महसूस कर रही हैं, लेकिन अपनी नज़रों को बाहर से अंदर की ओर नहीं मोड़ रही हैं। पिछली बार, जब हम घर लौटे थे, मुझे उन्हें छूने का अवसर मिला था, लेकिन इस बार वह मेरे नज़दीक नहीं आ रही हैं। मैं उन्हें अपनी बाहों में भरकर, अपने सीने से लगा लेने की कल्पना कर रहा हूँ। उनके उड़ते बालों में अपनी नाक डूबोकर उनकी खुशबू लेने की इच्छा है, लेकिन शायद यह ख्वाहिश शादी से पहले पूरी नहीं हो सकेगी। सुहागरात में, मैं उनके तन और मन दोनों को प्यार और केवल प्यार से पूरी तरह भर देना चाहता हूँ। हम सुबह की खाली सड़क पर जल्दी से रिसोर्ट पहुँच गये।
Bahut hi shaandar update diya hai Esac bhai....
Nice and lovely update....
 
Last edited:

kas1709

Well-Known Member
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9,200
173
Update 24


अगले दिन, यानी कि संडे की सुबह, मुझे जल्दी उठना पड़ा क्योंकि घर में एक पूजा का आयोजन था। यह पूजा उस मन्नत की थी जो नानी ने मेरे लिए रखी थी जब मैं एक बार बीमार होकर अस्पताल में भर्ती था। सब कहते हैं कि शादी जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले सारे उधार चुका देने चाहिए, इसलिए यह पूजा आयोजित की गई थी।


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पंडितजी हमारे परिवार के ही पंडितजी थे और उन्हें मेरे शादी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। वे केवल मन्नत पूरी करने के लिए आए थे।



ड्राइंग रूम में पूजा हो रही थी। मैं पंडितजी के सामने बैठा था, नाना मेरे पीछे दाईं ओर थे, नानी उनके बगल में और माँ नानी के पास, यानी कि मेरे पीछे बैठी थीं।

पूजा खत्म होने के बाद पंडितजी ने मुझे नाना, नानी और माँ को प्रणाम करने को कहा। मैं अपने आसन से उठकर नाना के पास गया और उनके पैर छुए। फिर नानी के पास जाकर झुककर उनके भी पैर छुए। मेरे मन में यह सवाल नहीं था कि माँ के पैर छूने चाहिए या नहीं, क्योंकि वो मेरी माँ हैं।


हालांकि दो दिन में वह मेरी पत्नी बन जाएंगी, फिर भी मैं ज़िन्दगी भर उनके पैर छू सकता हूँ। पर नानी को लगा कि मैं दुविधा में था कि माँ के पैर अब छूना चाहिए या नहीं। इसलिए जैसे ही मैं नानी के पैर छूने गया, नानी ने मेरे सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और मैं झुककर उनके सामने ही रह गया। तब नानी ने मुझे कहा, "अब जाओ, माँ के पैर छू लो।" शायद उन्होंने मुझे और माँ दोनों को यह संदेश देना चाहा कि शादी न होने तक हम माँ-बेटे ही हैं।

मैं माँ के पास गया और झुककर उनके पैर छुए। माँ सर झुकाकर खड़ी थीं। मुझे हमेशा उनके उन गुलाबी पैरों को चूमने का मन करता है, पर इस परिस्थिति में मैंने अपने मन से, एक बेटे की तरह, उसकी माँ के पैर छूने का भाव रखते हुए उनके पैर छुए।


पूजा थोड़ी देर से खत्म हुई, हम सबने लंच किया और फिर थोड़ा आराम करने लगे, क्योंकि शाम को हमें निकलकर ट्रेन पकड़नी थी और रातभर का सफर तय करना था। मुझे अब कुछ सोचने का मौका नहीं पा रहा था। सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था। हम तैयार होकर, सारा सामान लेकर, टैक्सी से स्टेशन पहुँचे और समय होते ही ट्रेन में सवार हो गए।

माँ ने आज एक पिंक साड़ी पहनी हुई थी। उस साड़ी से और उनके चेहरे से जो चमक आ रही थी, वह सब मिलकर उन्हें बेहद खूबसूरत बना रहे थे।



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मेरे मन में एक खुशी का झोंका सा आ गया। मैं सोच रहा था कि यह प्यारी, सुंदर, खूबसूरत और सेक्सी लड़की कुछ समय बाद मेरी बीवी बन जाएगी। और वह मेरी, केवल मेरी ही हो जाएगी।

मैं उन्हें देखता रहा और वह बस सबके सोने का इंतजाम करने लगीं। नाना-नानी नीचे की बर्थ पर सो गए। मैं और माँ ऊपर की बर्थ में थे। मैं अपने बर्थ पर लेटकर उनकी तरफ घूमकर केवल उन्हें ही देखता रहा। उन्होंने कुछ समय बाद इसे महसूस किया और फिर मेरी तरफ देखकर एक स्माइल दी, फिर शर्माकर मेरी सो गईं। मैं उनकी ओर देखते-देखते बहुत उत्तेजित हो गया। मेरा लन्ड फिर से सख्त होने लगा। उनकी पतली कमर और हिप्स पर नज़र गई।



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फिर ऊपर जाकर उनकी सुडौल गर्दन पर नजर पड़ते ही मैं उत्तेजना के चरम पर पहुँच गया और अनजाने में मेरा हाथ मेरे पजामे के अंदर जाकर मेरे लोड़े तक पहुंच गया।

मैंने बस एक बार मुठ्ठी से पकड़ के अपना लन्ड छू लिया और फिर थोड़ी देर बाद छोड़ दिया। खुद को नियंत्रित करते हुए, मैंने सोचा कि अब बस दो दिन और हैं। उसके बाद, मेरा लन्ड उस जगह में होगा जहाँ से वो दुनिया में आया था उस वक्त मैं संसार में सबसे अधिक आनंद महसूस करूँगा।

हम सुबह 5:30 बजे बांद्रा टर्मिनस पर उतर गए। गर्मी का मौसम था, और सुबह की नरम शीतल हवा बहुत अच्छी लग रही थी। नाना-नानी मुंबई आकर थोड़े उदासीन भी हो गए। नाना की शादी के बाद वे लोग कुछ दिन मुंबई में रहे थे। यहाँ नानाजी ने बिज़नेस शुरू किया था और बाद में अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे। वहीं माँ का जन्म हुआ था और आज तक वे वहीं अपना घर बना चुके थे। आज यहाँ फिर पूरे परिवार के साथ आकर वे थोड़े भावुक हो गए।

हम स्टेशन से टैक्सी लेकर उसमें सारे लगेज लोड करके रिसॉर्ट के लिए चल पड़े। करीब डेढ़ घंटे का रास्ता था। माँ सुबह से चुपचाप थीं, केवल नानी के साथ कुछ बातचीत कर रही थीं। मैंने नज़र चुराकर दो-चार बार उनको देख लिया। मेरा मन अब खुशी से हंस रहा था। माँ के अंदर भी एक खुशी की उत्तेजना फैली हुई थी, और यह उनके चेहरे, आँखों की हलचल और शारीरिक हरकतों से साफ झलक रहा था।

वह नानी के ही आस-पास घूम रही हैं, नानी के साथ ही चल रही हैं। वह मेरी तरफ देख ही नहीं रही हैं। मैं सोचता हूँ कि माँ के मन में क्या मेरे लिए, मेरे प्यार के लिए कोई तूफ़ान हो रहा है या यह केवल मेरे अंदर ही है? आज बहुत दिन बाद हम पूरी फॅमिली घर से एकसाथ बाहर आए हैं, सबको अच्छा लग रहा है। मैं भी माँ के साथ बहुत दिन से ऐसा दूर कहीं आया नहीं था, इसलिए आज इस मुंबई शहर में हम एकसाथ आकर हमारे बीच की बांडिंग सबको महसूस होने लगी है।

हम एक फॅमिली हैं, सब एक-दूसरे के लिए ही हैं, और अब तो और भी नज़दीक रिश्ते में जुड़ने जा रहे हैं। कोई अंजान लड़की नहीं, इस घर की बेटी ही इस घर की बहु बनकर आ रही है। इसी घर का बेटा इसी घर का दामाद बनकर ज़िन्दगी भर एक-दूसरे से जुड़े रहने का बंधन बाँधने जा रहा है।

टैक्सी में मैं ड्राइवर के पास बैठा हूँ। पीछे नाना, नानी और उनके पास माँ बैठी हुई हैं। आज ऐसा लग रहा है जैसे नानीजी की बेटी शादी करके दूर चली जाएगी, उनका घर खाली हो जाएगा। इसीलिए, जितना समय मिले, माँ और बेटी एक साथ रहकर अपने मन की प्यास मिटा पा रही हैं। नानाजी जाते-जाते एक-एक जगह दिखा रहे हैं और वहां की बातें बता रहे हैं। नानीजी भी बीच-बीच में उनका साथ देकर बातों का लिंक जोड़ रही हैं।

मैं आगे बैठा हूँ, पीछे नाना की बातें सुनने के लिए बीच-बीच में पीछे मुड़कर देख रहा हूँ और तभी एक झलक माँ को देख लेता हूँ। माँ बस बाहर की तरफ नजर टिकाए हुए हैं, लेकिन मालूम पड़ रहा है कि उनका मन हमारे बीच में ही है।


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उनके होठों पर हल्की सी मुस्कान और आँखों में लाज और शर्म की जो छाया दिख रही है, उससे पता चलता है कि वह मन में एक खुशी की अनुभूति महसूस कर रही हैं, पर एक बार भी मुझसे नजर नहीं मिला रही हैं।

बाहर से हवा आकर माँ के माथे के ऊपर के कुछ बाल उड़ाकर उनके चेहरे पर फेंक रही है।

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माँ बार-बार हाथ से उन बालों को हटाकर अपने कान के पीछे ले जाकर समेटने की कोशिश कर रही हैं।

उनके इस तरह हलकी-हलकी मुस्कुराते हुए चेहरे से बाल हटाने का स्टाइल देखकर मेरे मन में उनके लिए प्यार और सेक्स दोनों ही जाग रहा है। एक अनिर्वचनीय अनुभूति मुझे घेरे हुए है, और इसका पता चलता है मेरे जीन्स के अंदर मेरे लोड़े की बेचैनी से। मैं अपने लन्ड को दबाकर पैर के ऊपर दूसरे पैर चढ़ाकर, पीछे मुड़ने के लिए दाहिने हाथ को हेडरेस्ट के ऊपर रखकर तिरछा बैठा हुआ हूँ। नानाजी की बातें सुनने से ज्यादा मेरा इरादा माँ को चोरी-चोरी देखने का है। पर मैं इस तरह पीछे मुड़कर बैठा हूँ कि माँ को मेरे देखने का अहसास हो रहा है।

वह मेरे प्रति अपनी संवेदनाओं को शायद महसूस कर रही हैं, लेकिन अपनी नज़रों को बाहर से अंदर की ओर नहीं मोड़ रही हैं। पिछली बार, जब हम घर लौटे थे, मुझे उन्हें छूने का अवसर मिला था, लेकिन इस बार वह मेरे नज़दीक नहीं आ रही हैं। मैं उन्हें अपनी बाहों में भरकर, अपने सीने से लगा लेने की कल्पना कर रहा हूँ। उनके उड़ते बालों में अपनी नाक डूबोकर उनकी खुशबू लेने की इच्छा है, लेकिन शायद यह ख्वाहिश शादी से पहले पूरी नहीं हो सकेगी। सुहागरात में, मैं उनके तन और मन दोनों को प्यार और केवल प्यार से पूरी तरह भर देना चाहता हूँ। हम सुबह की खाली सड़क पर जल्दी से रिसोर्ट पहुँच गये।
Nice update....
 

Yasasvi3

❣bhootni💞
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Update 24


अगले दिन, यानी कि संडे की सुबह, मुझे जल्दी उठना पड़ा क्योंकि घर में एक पूजा का आयोजन था। यह पूजा उस मन्नत की थी जो नानी ने मेरे लिए रखी थी जब मैं एक बार बीमार होकर अस्पताल में भर्ती था। सब कहते हैं कि शादी जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले सारे उधार चुका देने चाहिए, इसलिए यह पूजा आयोजित की गई थी।


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पंडितजी हमारे परिवार के ही पंडितजी थे और उन्हें मेरे शादी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। वे केवल मन्नत पूरी करने के लिए आए थे।



ड्राइंग रूम में पूजा हो रही थी। मैं पंडितजी के सामने बैठा था, नाना मेरे पीछे दाईं ओर थे, नानी उनके बगल में और माँ नानी के पास, यानी कि मेरे पीछे बैठी थीं।

पूजा खत्म होने के बाद पंडितजी ने मुझे नाना, नानी और माँ को प्रणाम करने को कहा। मैं अपने आसन से उठकर नाना के पास गया और उनके पैर छुए। फिर नानी के पास जाकर झुककर उनके भी पैर छुए। मेरे मन में यह सवाल नहीं था कि माँ के पैर छूने चाहिए या नहीं, क्योंकि वो मेरी माँ हैं।


हालांकि दो दिन में वह मेरी पत्नी बन जाएंगी, फिर भी मैं ज़िन्दगी भर उनके पैर छू सकता हूँ। पर नानी को लगा कि मैं दुविधा में था कि माँ के पैर अब छूना चाहिए या नहीं। इसलिए जैसे ही मैं नानी के पैर छूने गया, नानी ने मेरे सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और मैं झुककर उनके सामने ही रह गया। तब नानी ने मुझे कहा, "अब जाओ, माँ के पैर छू लो।" शायद उन्होंने मुझे और माँ दोनों को यह संदेश देना चाहा कि शादी न होने तक हम माँ-बेटे ही हैं।

मैं माँ के पास गया और झुककर उनके पैर छुए। माँ सर झुकाकर खड़ी थीं। मुझे हमेशा उनके उन गुलाबी पैरों को चूमने का मन करता है, पर इस परिस्थिति में मैंने अपने मन से, एक बेटे की तरह, उसकी माँ के पैर छूने का भाव रखते हुए उनके पैर छुए।


पूजा थोड़ी देर से खत्म हुई, हम सबने लंच किया और फिर थोड़ा आराम करने लगे, क्योंकि शाम को हमें निकलकर ट्रेन पकड़नी थी और रातभर का सफर तय करना था। मुझे अब कुछ सोचने का मौका नहीं पा रहा था। सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था। हम तैयार होकर, सारा सामान लेकर, टैक्सी से स्टेशन पहुँचे और समय होते ही ट्रेन में सवार हो गए।

माँ ने आज एक पिंक साड़ी पहनी हुई थी। उस साड़ी से और उनके चेहरे से जो चमक आ रही थी, वह सब मिलकर उन्हें बेहद खूबसूरत बना रहे थे।



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मेरे मन में एक खुशी का झोंका सा आ गया। मैं सोच रहा था कि यह प्यारी, सुंदर, खूबसूरत और सेक्सी लड़की कुछ समय बाद मेरी बीवी बन जाएगी। और वह मेरी, केवल मेरी ही हो जाएगी।

मैं उन्हें देखता रहा और वह बस सबके सोने का इंतजाम करने लगीं। नाना-नानी नीचे की बर्थ पर सो गए। मैं और माँ ऊपर की बर्थ में थे। मैं अपने बर्थ पर लेटकर उनकी तरफ घूमकर केवल उन्हें ही देखता रहा। उन्होंने कुछ समय बाद इसे महसूस किया और फिर मेरी तरफ देखकर एक स्माइल दी, फिर शर्माकर मेरी सो गईं। मैं उनकी ओर देखते-देखते बहुत उत्तेजित हो गया। मेरा लन्ड फिर से सख्त होने लगा। उनकी पतली कमर और हिप्स पर नज़र गई।



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फिर ऊपर जाकर उनकी सुडौल गर्दन पर नजर पड़ते ही मैं उत्तेजना के चरम पर पहुँच गया और अनजाने में मेरा हाथ मेरे पजामे के अंदर जाकर मेरे लोड़े तक पहुंच गया।

मैंने बस एक बार मुठ्ठी से पकड़ के अपना लन्ड छू लिया और फिर थोड़ी देर बाद छोड़ दिया। खुद को नियंत्रित करते हुए, मैंने सोचा कि अब बस दो दिन और हैं। उसके बाद, मेरा लन्ड उस जगह में होगा जहाँ से वो दुनिया में आया था उस वक्त मैं संसार में सबसे अधिक आनंद महसूस करूँगा।

हम सुबह 5:30 बजे बांद्रा टर्मिनस पर उतर गए। गर्मी का मौसम था, और सुबह की नरम शीतल हवा बहुत अच्छी लग रही थी। नाना-नानी मुंबई आकर थोड़े उदासीन भी हो गए। नाना की शादी के बाद वे लोग कुछ दिन मुंबई में रहे थे। यहाँ नानाजी ने बिज़नेस शुरू किया था और बाद में अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे। वहीं माँ का जन्म हुआ था और आज तक वे वहीं अपना घर बना चुके थे। आज यहाँ फिर पूरे परिवार के साथ आकर वे थोड़े भावुक हो गए।

हम स्टेशन से टैक्सी लेकर उसमें सारे लगेज लोड करके रिसॉर्ट के लिए चल पड़े। करीब डेढ़ घंटे का रास्ता था। माँ सुबह से चुपचाप थीं, केवल नानी के साथ कुछ बातचीत कर रही थीं। मैंने नज़र चुराकर दो-चार बार उनको देख लिया। मेरा मन अब खुशी से हंस रहा था। माँ के अंदर भी एक खुशी की उत्तेजना फैली हुई थी, और यह उनके चेहरे, आँखों की हलचल और शारीरिक हरकतों से साफ झलक रहा था।

वह नानी के ही आस-पास घूम रही हैं, नानी के साथ ही चल रही हैं। वह मेरी तरफ देख ही नहीं रही हैं। मैं सोचता हूँ कि माँ के मन में क्या मेरे लिए, मेरे प्यार के लिए कोई तूफ़ान हो रहा है या यह केवल मेरे अंदर ही है? आज बहुत दिन बाद हम पूरी फॅमिली घर से एकसाथ बाहर आए हैं, सबको अच्छा लग रहा है। मैं भी माँ के साथ बहुत दिन से ऐसा दूर कहीं आया नहीं था, इसलिए आज इस मुंबई शहर में हम एकसाथ आकर हमारे बीच की बांडिंग सबको महसूस होने लगी है।

हम एक फॅमिली हैं, सब एक-दूसरे के लिए ही हैं, और अब तो और भी नज़दीक रिश्ते में जुड़ने जा रहे हैं। कोई अंजान लड़की नहीं, इस घर की बेटी ही इस घर की बहु बनकर आ रही है। इसी घर का बेटा इसी घर का दामाद बनकर ज़िन्दगी भर एक-दूसरे से जुड़े रहने का बंधन बाँधने जा रहा है।

टैक्सी में मैं ड्राइवर के पास बैठा हूँ। पीछे नाना, नानी और उनके पास माँ बैठी हुई हैं। आज ऐसा लग रहा है जैसे नानीजी की बेटी शादी करके दूर चली जाएगी, उनका घर खाली हो जाएगा। इसीलिए, जितना समय मिले, माँ और बेटी एक साथ रहकर अपने मन की प्यास मिटा पा रही हैं। नानाजी जाते-जाते एक-एक जगह दिखा रहे हैं और वहां की बातें बता रहे हैं। नानीजी भी बीच-बीच में उनका साथ देकर बातों का लिंक जोड़ रही हैं।

मैं आगे बैठा हूँ, पीछे नाना की बातें सुनने के लिए बीच-बीच में पीछे मुड़कर देख रहा हूँ और तभी एक झलक माँ को देख लेता हूँ। माँ बस बाहर की तरफ नजर टिकाए हुए हैं, लेकिन मालूम पड़ रहा है कि उनका मन हमारे बीच में ही है।


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उनके होठों पर हल्की सी मुस्कान और आँखों में लाज और शर्म की जो छाया दिख रही है, उससे पता चलता है कि वह मन में एक खुशी की अनुभूति महसूस कर रही हैं, पर एक बार भी मुझसे नजर नहीं मिला रही हैं।

बाहर से हवा आकर माँ के माथे के ऊपर के कुछ बाल उड़ाकर उनके चेहरे पर फेंक रही है।

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माँ बार-बार हाथ से उन बालों को हटाकर अपने कान के पीछे ले जाकर समेटने की कोशिश कर रही हैं।

उनके इस तरह हलकी-हलकी मुस्कुराते हुए चेहरे से बाल हटाने का स्टाइल देखकर मेरे मन में उनके लिए प्यार और सेक्स दोनों ही जाग रहा है। एक अनिर्वचनीय अनुभूति मुझे घेरे हुए है, और इसका पता चलता है मेरे जीन्स के अंदर मेरे लोड़े की बेचैनी से। मैं अपने लन्ड को दबाकर पैर के ऊपर दूसरे पैर चढ़ाकर, पीछे मुड़ने के लिए दाहिने हाथ को हेडरेस्ट के ऊपर रखकर तिरछा बैठा हुआ हूँ। नानाजी की बातें सुनने से ज्यादा मेरा इरादा माँ को चोरी-चोरी देखने का है। पर मैं इस तरह पीछे मुड़कर बैठा हूँ कि माँ को मेरे देखने का अहसास हो रहा है।

वह मेरे प्रति अपनी संवेदनाओं को शायद महसूस कर रही हैं, लेकिन अपनी नज़रों को बाहर से अंदर की ओर नहीं मोड़ रही हैं। पिछली बार, जब हम घर लौटे थे, मुझे उन्हें छूने का अवसर मिला था, लेकिन इस बार वह मेरे नज़दीक नहीं आ रही हैं। मैं उन्हें अपनी बाहों में भरकर, अपने सीने से लगा लेने की कल्पना कर रहा हूँ। उनके उड़ते बालों में अपनी नाक डूबोकर उनकी खुशबू लेने की इच्छा है, लेकिन शायद यह ख्वाहिश शादी से पहले पूरी नहीं हो सकेगी। सुहागरात में, मैं उनके तन और मन दोनों को प्यार और केवल प्यार से पूरी तरह भर देना चाहता हूँ। हम सुबह की खाली सड़क पर जल्दी से रिसोर्ट पहुँच गये।
Shaandar update 🎈🎈💀💀jhakkass...
 
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