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Incest माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना

Esac

Maa ka diwana
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Update 30 (A)


पूजा और मंत्रों के बीच, पवित्र अग्नि के सामने, जब हम दोनों ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई, तो इस नए रिश्ते में हम मां बेटे ने अपनी सम्मति जताई। पंडितजी ने हमें बैठने का निर्देश दिया। मैं अपने आसन पर बैठ गया, और माँ धीरे-धीरे मेरी बगल में रखे हुए आसन पर बैठने के लिए आगे बढ़ीं।


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जब मैंने अपनी नज़र नीचे की, तो देखा कि माँ ने कदम बढ़ाया, और उनके लहंगे के नीचे से उनकी मेहंदी से सजे हुए, मुलायम और गुलाबी पैरों की झलक मुझे नज़र आई। वे पैर, जैसे नन्ही कली की तरह सुन्दर और कोमल, इस पल की पवित्रता को और भी गहरा कर रहे थे। उनके हर कदम में एक अनजाना आकर्षण और एक नयी दुल्हन का अंदाज़ दिखाई दे रहा था, जिससे मेरा मन और भी ज्यादा गहराई से उनकी ओर खिंचने लगा।

उनके पैरों पर लगी लाल नेल पॉलिश ने उनके पैर को और भी आकर्षक और मोहक बना दिया, जिससे मेरे मन में उन्हें अपने होंठों से चूमने की इच्छा जाग उठी। तभी मेरी नज़र उनके पैरों में बंधी पायल पर पड़ी। मैंने उनके लिए विशेष रूप से पायल खरीदकर अलमारी में रखी थी, लेकिन उन्होंने आज दुल्हन के भेष में वह पायल पहनकर मेरे मन की मुराद पूरी कर दी थी।

यह अहसास मेरे अंदर गहराई तक उतर गया कि यह सुन्दर, खूबसूरत लड़की आज से सिर्फ मेरी हो गई है। मेरा मन एक अनकही चाहत में डूबने लगा, और भीतर से उन्हें पाने की तृष्णा तीव्र होती चली गई। इस भाव ने मेरे पूरे शरीर में एक सनसनी फैला दी, जो दिल से होते हुए मेरे लोड़े तक पहुंची, और मेरे कुर्ते के भीतर उस भाव का असर महसूस होने लगा। मेरा लन्ड भीतर से सख्त होता चला गया।

नानाजी धीरे-धीरे माँ के पास जाकर उनके पास में बैठ गए, और नानीजी आकर मेरे पास वाले आसन में बैठीं। पण्डितजी ने पूजा का क्रम फिर से शुरू किया, और शादी की रस्में अब विधिवत चलने लगीं।



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नानाजी पण्डितजी के साथ मिलकर मंत्रोच्चारण करने लगे और सारे रीति-रिवाजों का पालन करते हुए अपना कर्तव्य निभाने लगे। उन्होंने अपनी बेटी का कन्यादान किया। माँ वहाँ नई दुल्हन की तरह सिर झुकाए, नजरें नीची किए बैठी थीं।

Kanyadaan1306

मैं उस पूरे पवित्र माहौल में भी एक-एक बार माँ को चुपके से देखने की कोशिश करता रहा, जबकि नानाजी पूरी श्रद्धा से अपने पिता का फर्ज निभा रहे थे।

कन्यादान के दौरान नानाजी ने शास्त्र सम्मत तरीके से अपनी बेटी, जो उनके घर की लक्ष्मी है, को मुझे समर्पित कर दिया। जब नानाजी ने मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में अपनी बेटी को मेरी सुरक्षा में सौंपते समय जो इच्छा और प्यार था, वह स्पष्ट झलक रहा था। मैंने भी अपनी आँखों की भाषा और होठों की हल्की मुस्कान से उन्हें भरोसा दिलाया कि मैं उनकी बेटी को ताजिंदगी बेहद प्यार और खुशियाँ देकर संभालकर रखूंगा।

तभी पंडितजी के एक सहायक ने आकर मेरी शेरवानी के स्कार्फ़ के साथ माँ के दुपट्टे का कोना बाँध दिया।


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पंडितजी मंत्रोच्चारण करते हुए पूजा संपन्न कर रहे थे, और वहाँ उपस्थित सभी लोग उन मंत्रों के बीच गुलाब की पंखुड़ियाँ और चावल हम दोनों पर बरसाकर हमें अपना आशीर्वाद और शुभकामनाएँ दे रहे थे। इसके बाद, पंडितजी ने हमें इस बँधे हुए कपड़े के साथ अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने का निर्देश दिया।

मैं और माँ अब दोनों खड़े हो गए थे। पंडितजी मंत्रों का उच्चारण करते रहे, और हम अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ाने लगे। इस पवित्र अग्नि की परिक्रमा करते हुए, हम अपने आने वाले जीवन को एक साथ जीने की प्रतिज्ञाएँ करने लगे। तभी फिर से चारों ओर से गुलाब की पंखुड़ियों और चावल की बारिश हम दोनों पर होने लगी।


swaragini-hellyshah

मैं आगे-आगे चल रहा था और माँ मेरे पीछे धीरे-धीरे मुझे अनुसरण कर रही थीं। उस पवित्र बारिश के बीच, हम अग्नि की परिक्रमा करते रहे, और हर कदम के साथ हमारे जीवन का बंधन और मजबूत होता गया। माँ का चेहरा मुझे नहीं दिख रहा था, क्योंकि उन्होंने अपना सिर झुका रखा था, मगर उनकी हर चाल में समर्पण और भरोसे की भावना साफ़ झलक रही थी। वह अब अपने मन और तन को मुझे सौंपकर, मुझे पति का अधिकार देकर, जीवन को ख़ुशी और आनंद से भरने की कसम खा रही थीं।

इस दौरान मेरी नज़र नाना-नानी से मिली। उनकी आँखों में सुकून और संतोष की झलक थी। वे अपनी प्यारी बेटी को मुझे सौंपकर, हमें एकसाथ देखकर आशीर्वाद दे रहे थे, और अपने प्रेम का इज़हार करते हुए हम पर फूल और चावल बरसा रहे थे।


अग्नि की परिक्रमा समाप्त होते ही, पंडितजी के निर्देशानुसार मैं और माँ फिर से अपने-अपने आसनों पर बैठ गए। हमारे कपड़े बंधे होने के कारण अब हमें एक-दूसरे का सहारा लेते हुए चलना पड़ रहा था, ठीक उसी तरह जैसे अब से हमें जीवन की हर राह पर एक-दूसरे का साथ देना होगा। हर कदम पर एक-दूसरे का ख्याल रखते हुए, हम हर पल एक-दूसरे के साथ रहेंगे। पंडितजी का हवन और पूजा अभी भी चल रही थी।

तभी उन्होंने धीरे से नानीजी से कुछ पूछा, और नानीजी ने बहुत हल्के स्वर में उन्हें जवाब दिया। इसके बाद पंडितजी ने पूजा की थाली से मंगलसूत्र उठाया और मुझे सौंप दिया।



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मैं अपना हाथ बढ़ाकर उनसे वह मंगलसूत्र ले लिया। जैसे ही मैंने इसे पकड़ा, मेरा हाथ हल्का-हल्का काँपने लगा। मेरे मन में एक अनूठी खुशी, उत्तेजना, और कुछ असामान्य सा अनुभव उमड़ने लगा, जिसे शब्दों में बयाँ करना कठिन था। यह एक ऐसा पल था जिसने मेरे अंदर की भावनाओं को चरम पर पहुंचा दिया था, मानो सारी दुनिया मेरे और माँ के इस रिश्ते में समाहित हो गई हो।
 

dhparikh

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Update 30 (A)


पूजा और मंत्रों के बीच, पवित्र अग्नि के सामने, जब हम दोनों ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई, तो इस नए रिश्ते में हम मां बेटे ने अपनी सम्मति जताई। पंडितजी ने हमें बैठने का निर्देश दिया। मैं अपने आसन पर बैठ गया, और माँ धीरे-धीरे मेरी बगल में रखे हुए आसन पर बैठने के लिए आगे बढ़ीं।


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जब मैंने अपनी नज़र नीचे की, तो देखा कि माँ ने कदम बढ़ाया, और उनके लहंगे के नीचे से उनकी मेहंदी से सजे हुए, मुलायम और गुलाबी पैरों की झलक मुझे नज़र आई। वे पैर, जैसे नन्ही कली की तरह सुन्दर और कोमल, इस पल की पवित्रता को और भी गहरा कर रहे थे। उनके हर कदम में एक अनजाना आकर्षण और एक नयी दुल्हन का अंदाज़ दिखाई दे रहा था, जिससे मेरा मन और भी ज्यादा गहराई से उनकी ओर खिंचने लगा।

उनके पैरों पर लगी लाल नेल पॉलिश ने उनके पैर को और भी आकर्षक और मोहक बना दिया, जिससे मेरे मन में उन्हें अपने होंठों से चूमने की इच्छा जाग उठी। तभी मेरी नज़र उनके पैरों में बंधी पायल पर पड़ी। मैंने उनके लिए विशेष रूप से पायल खरीदकर अलमारी में रखी थी, लेकिन उन्होंने आज दुल्हन के भेष में वह पायल पहनकर मेरे मन की मुराद पूरी कर दी थी।

यह अहसास मेरे अंदर गहराई तक उतर गया कि यह सुन्दर, खूबसूरत लड़की आज से सिर्फ मेरी हो गई है। मेरा मन एक अनकही चाहत में डूबने लगा, और भीतर से उन्हें पाने की तृष्णा तीव्र होती चली गई। इस भाव ने मेरे पूरे शरीर में एक सनसनी फैला दी, जो दिल से होते हुए मेरे लोड़े तक पहुंची, और मेरे कुर्ते के भीतर उस भाव का असर महसूस होने लगा। मेरा लन्ड भीतर से सख्त होता चला गया।

नानाजी धीरे-धीरे माँ के पास जाकर उनके पास में बैठ गए, और नानीजी आकर मेरे पास वाले आसन में बैठीं। पण्डितजी ने पूजा का क्रम फिर से शुरू किया, और शादी की रस्में अब विधिवत चलने लगीं।



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नानाजी पण्डितजी के साथ मिलकर मंत्रोच्चारण करने लगे और सारे रीति-रिवाजों का पालन करते हुए अपना कर्तव्य निभाने लगे। उन्होंने अपनी बेटी का कन्यादान किया। माँ वहाँ नई दुल्हन की तरह सिर झुकाए, नजरें नीची किए बैठी थीं।

Kanyadaan1306

मैं उस पूरे पवित्र माहौल में भी एक-एक बार माँ को चुपके से देखने की कोशिश करता रहा, जबकि नानाजी पूरी श्रद्धा से अपने पिता का फर्ज निभा रहे थे।

कन्यादान के दौरान नानाजी ने शास्त्र सम्मत तरीके से अपनी बेटी, जो उनके घर की लक्ष्मी है, को मुझे समर्पित कर दिया। जब नानाजी ने मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में अपनी बेटी को मेरी सुरक्षा में सौंपते समय जो इच्छा और प्यार था, वह स्पष्ट झलक रहा था। मैंने भी अपनी आँखों की भाषा और होठों की हल्की मुस्कान से उन्हें भरोसा दिलाया कि मैं उनकी बेटी को ताजिंदगी बेहद प्यार और खुशियाँ देकर संभालकर रखूंगा।

तभी पंडितजी के एक सहायक ने आकर मेरी शेरवानी के स्कार्फ़ के साथ माँ के दुपट्टे का कोना बाँध दिया।


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पंडितजी मंत्रोच्चारण करते हुए पूजा संपन्न कर रहे थे, और वहाँ उपस्थित सभी लोग उन मंत्रों के बीच गुलाब की पंखुड़ियाँ और चावल हम दोनों पर बरसाकर हमें अपना आशीर्वाद और शुभकामनाएँ दे रहे थे। इसके बाद, पंडितजी ने हमें इस बँधे हुए कपड़े के साथ अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने का निर्देश दिया।

मैं और माँ अब दोनों खड़े हो गए थे। पंडितजी मंत्रों का उच्चारण करते रहे, और हम अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ाने लगे। इस पवित्र अग्नि की परिक्रमा करते हुए, हम अपने आने वाले जीवन को एक साथ जीने की प्रतिज्ञाएँ करने लगे। तभी फिर से चारों ओर से गुलाब की पंखुड़ियों और चावल की बारिश हम दोनों पर होने लगी।


swaragini-hellyshah

मैं आगे-आगे चल रहा था और माँ मेरे पीछे धीरे-धीरे मुझे अनुसरण कर रही थीं। उस पवित्र बारिश के बीच, हम अग्नि की परिक्रमा करते रहे, और हर कदम के साथ हमारे जीवन का बंधन और मजबूत होता गया। माँ का चेहरा मुझे नहीं दिख रहा था, क्योंकि उन्होंने अपना सिर झुका रखा था, मगर उनकी हर चाल में समर्पण और भरोसे की भावना साफ़ झलक रही थी। वह अब अपने मन और तन को मुझे सौंपकर, मुझे पति का अधिकार देकर, जीवन को ख़ुशी और आनंद से भरने की कसम खा रही थीं।

इस दौरान मेरी नज़र नाना-नानी से मिली। उनकी आँखों में सुकून और संतोष की झलक थी। वे अपनी प्यारी बेटी को मुझे सौंपकर, हमें एकसाथ देखकर आशीर्वाद दे रहे थे, और अपने प्रेम का इज़हार करते हुए हम पर फूल और चावल बरसा रहे थे।


अग्नि की परिक्रमा समाप्त होते ही, पंडितजी के निर्देशानुसार मैं और माँ फिर से अपने-अपने आसनों पर बैठ गए। हमारे कपड़े बंधे होने के कारण अब हमें एक-दूसरे का सहारा लेते हुए चलना पड़ रहा था, ठीक उसी तरह जैसे अब से हमें जीवन की हर राह पर एक-दूसरे का साथ देना होगा। हर कदम पर एक-दूसरे का ख्याल रखते हुए, हम हर पल एक-दूसरे के साथ रहेंगे। पंडितजी का हवन और पूजा अभी भी चल रही थी।

तभी उन्होंने धीरे से नानीजी से कुछ पूछा, और नानीजी ने बहुत हल्के स्वर में उन्हें जवाब दिया। इसके बाद पंडितजी ने पूजा की थाली से मंगलसूत्र उठाया और मुझे सौंप दिया।



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मैं अपना हाथ बढ़ाकर उनसे वह मंगलसूत्र ले लिया। जैसे ही मैंने इसे पकड़ा, मेरा हाथ हल्का-हल्का काँपने लगा। मेरे मन में एक अनूठी खुशी, उत्तेजना, और कुछ असामान्य सा अनुभव उमड़ने लगा, जिसे शब्दों में बयाँ करना कठिन था। यह एक ऐसा पल था जिसने मेरे अंदर की भावनाओं को चरम पर पहुंचा दिया था, मानो सारी दुनिया मेरे और माँ के इस रिश्ते में समाहित हो गई हो।
Nice update....
 

Esac

Maa ka diwana
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Update 30 (B)

मैंने माँ की ओर देखा, जहाँ वह अपने होठों पर एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ, नज़रें झुकाए बैठी थीं।

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पंडितजी ने मंत्रोच्चारण आरंभ किया और अपने हाथ के संकेत से मुझे माँ के गले में मंगलसूत्र बांधने का निर्देश दिया। मैं धीरे-धीरे माँ की ओर मुड़ा और सावधानी से दोनों हाथों में थामे मंगलसूत्र को उनके गले की ओर बढ़ाने लगा। मेरी निगाहें कहीं और नहीं जा रहीं थीं, मैं केवल माँ को ही देख रहा था।

जैसे ही मेरे हाथ उनके गले के करीब पहुँचे, माँ ने मेरे संकेत को समझा और बिना नज़रें उठाए, अपना सिर मेरी ओर हल्के से घुमा दिया, ताकि मुझे मंगलसूत्र बाँधने में आसानी हो सके। मैं धीरे-धीरे मंगलसूत्र को उनके गले में डालकर पीछे की ओर ले गया, दोनों छोरों को बाँधने के लिए। उसी क्षण, एक लेडी आगे बढ़कर माँ के दुपट्टे को उनकी गर्दन के पास से हल्का सा उठाकर, मुझे उनकी मदद करते हुए मंगलसूत्र पहनाने में सहारा देने लगी।


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मैंने धीरे-धीरे अपने हाथों से उनकी गर्दन के पास मंगलसूत्र बाँधना शुरू किया। मेरे हाथ हल्के-हल्के काँप रहे थे, और दिल की हर धड़कन जैसे उनके दिल के साथ संगम कर रही थी। जो भावनाएं मेरे भीतर उमड़ रही थीं, मुझे यकीन था कि वही अनुभूति शायद उनके दिल में भी दौड़ रही होगी। मंत्रों के बीच जब मैंने मंगलसूत्र को बाँधकर अपने हाथ वापस खींचे, तो मैं फिर से अपने आसन पर सीधा बैठ गया। माँ ने भी अपनी गर्दन को घुमा कर पहले की तरह अपनी जगह ले ली। उनके गले में सजते मंगलसूत्र को देखकर, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे पहली बार देख रहा हूँ। और उस क्षण, उन्हें देखते-देखते मेरे दिल में उनके प्रति एक नया, अनकहा प्रेम पनपने लगा।

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पंडितजी ने एक व्यक्ति को कुछ निर्देश दिए, और वह तुरंत हमारे पास आ गया। वह आदमी वहाँ आकर एक डिब्बा खोला और उसमें से एक धातु के सिक्के से थोड़ी सिंदूर निकालकर मेरे हाथ में रख दी।


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इस अंतिम रस्म के साथ, मैं माँ को अपनी पत्नी के रूप में पूरी तरह स्वीकार करने जा रहा था। मैंने नानी की ओर देखा, जिनकी आँखों में खुशी की चमक थी और जिन्होंने मुझे एक इशारा किया।

पंडितजी के मंत्रोच्चारण के बीच, मैंने धीरे-धीरे सिंदूर माँ के सिर की ओर ले जाना शुरू किया। एक महिला ने माँ के घूंघट को थोड़ा हटाया और उनकी मांग से सोने की बिंदी को साइड किया, ताकि मुझे मदद मिल सके। मैंने एक हाथ से उनकी मांग में सिंदूर भर दिया।



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इस दौरान, माँ थोड़ी कांप उठी और मुझे भी एक अदृश्य कम्पन का अनुभव हुआ। इस प्रकार, शास्त्रों के अनुसार, हमने पति-पत्नी के रूप में अपने नए रिश्ते की शुरुआत की।



आज से हम दोनों महज़ माँ - बेटा नहीं रहे; हम पति-पत्नी के पवित्र बंधन में बंध गए। माँ के गले में मंगलसूत्र और मांग में सिंदूर के साथ उनका एक नया रूप सामने आया।


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वह अब इतनी प्यारी और खूबसूरत लगने लगीं कि मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मैं बस यही चाहता हूँ कि अगले सात जन्मों तक इस खूबसूरत और प्यारी लड़की को, मेरी माँ को, अपनी पत्नी के रूप में पाऊं। शादी की सभी रस्में पूरी हो चुकी हैं। इसके बाद, सात विवाहित महिलाएँ माँ के पास आकर उनके कान में फुसफुसाकर शुभकामनाएँ देने लगीं। माँ का चेहरा खुशी से खिल उठा।

माँ ने तब भी अपनी नज़र नहीं उठाई। पण्डितजी ने अब हमें, दूल्हा-दुल्हन को, अपने-अपने बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम करके आशीर्वाद लेने के लिए कहा। मैं माँ के साथ ताल मिलाकर धीरे-धीरे उठा और नानाजी के पास जाकर उनके पैर छुए।



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उन्होंने अपने दोनों हाथ हमारे सिर पर रखकर हमें आशीर्वाद दिया। इसके बाद, हम नानीजी के पास गए और उनके पैर छुए। नानीजी ने हमें आशीर्वाद दिया और खड़े होते ही हमें एक साथ गले लगा लिया। नाना-नानी की आँखें थोड़ी नम हो गईं, जैसे उनकी बेटी अब एक नए घर में, अपने पति के घर जा रही हो। लेकिन अब तो माँ का मायका और ससुराल एक ही है। हमने पण्डितजी को प्रणाम किया और वहाँ मौजूद सभी लोगों से शुभकामनाएँ और आशीर्वाद लिया।

दूसरे हॉल में रिसोर्ट वालों ने शादी के उपलक्ष्य में उपस्थित सभी लोगों के लिए लंच का आयोजन किया था। हम सभी वहां पहुँचे और बुफे व्यवस्था से लंच करने लगे। मैं, माँ, और नाना-नानी एक ही टेबल पर बैठे थे। मैनेजर साहब हमारे लंच की व्यवस्था का ध्यान रख रहे थे, और टेबल पर दो वेटर ने लंच सर्व करना शुरू किया। नाना और नानी के लिए अलग-अलग प्लेटें थीं, जबकि मेरी और माँ की एक ही प्लेट थी। शादी की परंपरा के अनुसार, नए-नवेले दूल्हा-दुल्हन को पहला खाना एक ही प्लेट में साझा करके खाना होता है।

इसलिए, मैं और माँ एक-दूसरे के पास, नजदीक चेयर पर बैठे थे। वह अभी भी सीधे तरीके से मुझे नहीं देख रही थीं। एक-दो बार हमारी नजरें चुपके से मिली थीं। अब उनके अंदर भी एक प्रकार की शर्म थी और मेरे अंदर भी, जिसके कारण हम सीधे तरीके से एक-दूसरे को देख नहीं पा रहे थे।

उनको इस नए दुल्हन के रूप में देखने के लिए मेरा ध्यान हर पल उनकी ओर आकर्षित हो रहा था। हमने एक ही प्लेट से पहले एक-दूसरे को खिलाया, उसके बाद धीरे-धीरे हम खाना शुरू करने लगे। हमारे हाथ प्लेट पर बार-बार टच हो रहे थे, और हमारे कंधे एक-दूसरे से छू रहे थे। हमारे शरीर की गर्मी और प्यार का अहसास केवल हम दोनों ही महसूस कर रहे थे।


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इस एहसास से मेरा पूरा बदन खुशी और उत्साह के कारण बीच-बीच में कांप रहा था। सभी के बीच बैठकर भी, मैं केवल अपनी दुल्हन रूपी माँ, जो अब मेरी पत्नी भी बन चुकी है, को ही देखता रहा और मन ही मन में उनको एकांत में मेरी बाँहों में भरने के सही वक़्त का इंतज़ार करने लगा.
 

Mr.red

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Update 11

नानाजी ये सब बोल कर मेरी आँखों में आंखे मिला कर देखने लगे. मुझे इस बात को समझने में कुछ पल लग गए. जैसे ही इसका मतलब मुझे समझ में आया, तभी मेरा शरीर में एक अनजानी अनुभुति फ़ैलने लगी. मैने फिर भी कन्फर्म होने के लिए पूछा
" मतलब आप क्या कहना चाहते है नानाजी ?"
नानाजी स्ट्रैट बोलने लगे
" बेटा अब में तुम्हारा नाना बनके नही, एक बेटी का बाप बनके तुमसे यह पुछ रहा हु की क्या तुम मेरी बेटी का हाथ थामोगे?"
अब मेरे अंदर एक अजीब सी, एक अद्भुत सी फीलिंग होने लगी. जो मैं बयां नहीं कर सकता. मैने केवल ये बोला
" एह्...यः....आप क्य...क्या कह रहे है नानाजी......"
"हमने बहुत..बहुत सोच समझने के बाद ये बात तुम्हे बोलने का साहस किया है"
मैने अपने आप को कंट्रोल करते हुए कहा
"पर...पर....यह कैसे होगा.....कैसे मुमकीन है......"
" अगर हम चाहे तो सब हो सकता है बेटा"
मेरी माँ का चेहरा मेरे नज़र के सामने आया.

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मैं सोचने लगा की ये सब बातें सुनने के बाद मैं माँ को कैसे फेस करूँगा और नाना नानी मुझसे खुलके ऐसे बात कर रहे है की मुझे शरम आने लगी. मैं बोला
" नानाजी हम ऐसा कैसे कर सकते है....ना ही कहीं...कभी ऐसा हुआ!!"
नानाजी ने शांत आवाज़ में कहा
"बेटा...मैं और तुम्हारी नानी ने इस बारे में सोचा..हम सब की ख़ुशी के लिए हम कुछ भी सहने के लिए तैयार है. हम बस चाहते है की हमारी बेटी और हमारा पोता ज़िन्दगी में हमेशा खुश रहे..."
फिर थोड़ा रुक के बोले
" और...और तुम्हारी माँ भी इस रिश्ते के लिए राजी है."
मैं चोंक गया. क्या माँ भी जानती है यह सब!! क्या इसलिए वो मेरे सामने नहीं आ रही है!! इसलिए फ़ोन पे ठीक से बात नहीं कर पायी!! और तो और उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने के लिए भी मंजूरी दे दि.. मेरी स्पाइन में के एक ठण्डी शीतलता पर दिल में कम्पन देने वाली अनुभुति धीरे धीरे नीचे जाकर पूरे शरीर में फैल गई. फिर भी मैने थोड़े आश्चर्य और डाउट के साथ धिरे से पुछा
" क्या आप लोगो ने माँ से भी इस बारे में बात......और.....और उन्होंने ...."
बोल कर मैं चुप हो गया. नानाजी बोले
" पहले तो उसने हम दोनो पर बहुत गुस्सा किया. एक दम ख़फ़ा हो गयी थी. तीन दिन ठीक से बात भी नहीं कि, खाना भी नहीं खाया. दिन भर रूम लॉक करके अंदर रहने लगी फिर और दो दिन बाद सिचुएशन थोड़ा सहज हुआ. मंजु भी धिरे धिरे थोड़ा नरम होने लगी और कल जब तुम्हारी नानी से मंजु की बात हुई तो तभी हम जान पाये."
मेरे दिमाग में बहुत सारी चिंता भर गई. मैं कुछ न बोल कर बैठा रहा. नानाजी बोले
" हम तुम पर जबरदस्ती हमारी इच्छा नही थोपेंगे. जल्दी जवाब देने की जरुरत नही. तुम टाइम लेके सोचो. फिर बताओ. जो भी राय होगी तुम्हारी, उसे हम प्यार से एक्सेप्ट करेंगे"

उस दिन में बहुत सारी चिंता और नई अनुभुति के साथ नाना जी के रूम से निकल के मेरे रूम में आया. मेरी अनुपस्थिति में मां मेरा बिस्तर एक दम ठीक से बनाके गयी है . मैं ज्यादा सोच भी नहीं पा रहा था. बस जाके सो गाया लेकिन नीद नहीं आ रही थी. बीच बीच में एक नई उत्तेजना से कांपने लगा. जो भावना मेरे मन के अंदर थी, आज वह सच में घटने जा रही है. मैं आंख बंध करके पड़ा रहा. देर रात को कुछ डिसिशन लेने का फैसला किया. पर हालत ऐसा था की उस से पहले खुदको हल्का करने के लिए पाजामे के अंदर से अपना लोड़ा निकल कर हिलाने लगा. लौड़ा आज ज्यादा गरम महसुस हुआ. मन शांत होने लगा क्यों की तब तक शायद मेरे मन में एक डिसिशन हो चुका था और धिरे धिरे एक चैन की नीद आने लगी.

आगला दिन रविवार था मैं सुबह जल्दी उठ गया मैं हमेशा जल्दी उठता हूं माँ ने ये आदत लगाई है माँ ने मुझे ऐसी बहुत सारी अच्छी आदते सिखाई है। इसलिए में ज़िन्दगी के रास्ते में चलते टाइम हर पल उनकी उपस्थिति महसुस करता हु. वही एक मात्र नारी है जो मेरे पूरे दिल में छाई हुई है. शायद इसलिए कभी और कोई लड़की मेरे मन में जगह नहीं बना पाई कल रात नानाजी नानीजी ने जो बात कही है, हो सकता है इस दुनिया में ऐसा होता नहीं है. समाज उस चीज़ को मान्यता देता नहीं है. पर हमारे घर में सब..यानी की नाना, नानी और माँ...सब इससे सहमत है. सब हमारी भलाई के लिए ही यह चाहते है और उसके लिए जो भी बाधा का सामना करना पड़ेगा, जो संकट सामने आकर खड़ा होगा, जो भी सैक्रिफाइस करने पड़ेंगे, वह लोग सब कुछ सहने के लिये तैयार है. तो बाहर की दुनिया के बारे में क्या सोचना !! और माँ भी एक नारी है. उनके अंदर जो औरत है, उस सुन्दर औरत को में पिछले 6 साल से प्यार करते आ रहा हु. बॉल अब मेरे कोर्ट में है. अगर मैं चाहू तो वह कोमल दिल की नाज़ुक औरत ज़िन्दगी भरके लिए मेरी हो सकती है इसी वास्तव दुनिया मे, मेरी जीवनसाथी बन सकती है, मेरी बीवी बन सकती है, मेरे बच्चों की माँ बन सकती है. एक ख़ुशी के आवेश मे मैं आँख मूंद के बिस्तर पर पड़ा रहा. तभी दरवाज़ा खट खटा के नानाजी ने नाश्ते लिए बुलाया.
माँ सब की नज़रों से छुपके रह रही है, स्पेशली मुझसे. नाश्ते की टेबल पे भी कल रात जैसी स्थिति थी. माँ किचन से नानी के हाथ खाना भेज रही है. आज सब लोग थोड़ा कम बोल रहे है. पुरा दिन ऐसे ही कटता रहा. मैं नाना नानी से कम्फर्टेबल होने की कोशिश कर रहा था. फिर भी दिमाग का एक हिस्सा सब कुछ नार्मल बनाने से रोक रहा है. वह लोग भी आपस में बात कर रहे है लेकिन धीरे धीरे, कभी कभी मुझसे दूर रहके या मेरी नज़र से बाहर. पर सब कुछ मैं महसूस कर पा रहा था माँ केवल अपने रूम और किचन में ही आना जाना कर रही है पीछे के रास्ते से. सो वह मेरे सामने आने में हिचकिचा रही है. शायद शर्म ने उनको रोक रखा है.

मैं हमेशा की तरह संडे रात को निकल पड़ा स्टेशन जाने के लिए . मैं रात को ट्रेवल करता था एमपी जाने के लिये. लेकिन इस बार सब कुछ पहले जैसे नहीं हुआ. इस बार मैं चुप चाप निकलने की तैयारी करने लगा. नाना नानी भी स्माइल लेके चुप चाप खड़े है. नानी के पैर छूते ही उन्होंने मुझे गले लगा लिया और कुछ पल ऐसे ही वह पकड़ के रखी. जब उन्होंने मुझे छोड़ा तब वह एक माँ की स्नेह भरी आवाज़ से बोली " अपना ख़याल रखना". मैंने खामोशी से सर हिलाया. नानाजी मेरे करीब आकर मेरी पीठ थप थपा दिए . मैं खामोशी से स्माइल देके अपना बैग उठाने लगा. मेरा मन बहुत कह रहा था की एक बार माँ से मिलके जाऊ. लेकिन कल रात से में खुद उनके सामने जा नहीं पा रहा हु, एक संकोच ने घेर रखा है मुझे. एक शर्म ने मुझे दूर कर रखा है उनसे. चाह कर भी मेरे कदम उठाके उनके सामने जा नहीं पा रहा हु. शायद यह इसलिए की मैं खुद से ज्यादा उनको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था. ऐसी सिचुएशन में उनको नहीं ड़ालना चाहता था जहाँ वह शर्म और ग्लानी में खुद को दुःख पहुँचाए. तभी भी मैं जाने से पहले उनकी एक झलक देखने के लिए छट पटा रहा था. दरवाजे से निकल के नाना नानी को “बाय” बोलते टाइम , उनकी नज़र चुराके अंदर की तरफ देखा. मन सोच रहा था , शायद वह वहां कहीं खड़ी होगी पर में निराश होके निकल गया.

ऑफिस में भी मन में वह बात आ जाती थी. जब भी उस बारे मे में थोड़ा गौर से सोचता था, तब ख़ुशी का एक आवेश मुझे पकड़ लेता था. पूरा हफ्ता ऐसे ही ख़ुशी और एक टेंशन में गुजरता रहा.
मैं वापस आने के बाद माँ को भी फ़ोन नहीं करता था. जब भी मैं फ़ोन करने के लिए सोचता था, मुझे एक शर्म और एक अंजान अनुभुति घेर लेती थी.
ऐसे ही सब कुछ सोच के, सब ठीक विचार कर के, मेरे मन में एक रोशनी पैदा हुई. मेरा दिल भी अब एक पक्के डिसिशन पर पहुंच गया और जैसे ही मेरे ने दिमाग उस डिसिशन को एक्सेप्ट किया, तभी से मेरे अंदर एक आनंद और सुख की अनुभुति फैल गई. मैने संकोच से बाहर आ कर मेरा डिसिशन नानाजी को बताना चाहा..


आखिर उस शुक्रवार डिनर के बाद मेने नानाजी को फोन लगाया. नानाजी फोन उठा के बोले.
“हैल्लो.''
मैं तुरंत कुछ बोल नहीं पाया. कुछ पल बाद बोला
''हैल्लो नानाजी..आप लोग सो तो नहीं गए?''
''नही नहीं बेटा.... सोया नही..बस सोने की तैयारी कर रहा हु”.
मेरे दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है. कैसे क्या कहुँ वह ठीक से जबान पर नही आ रहा है. मैं जबाब में केवल "ओह अच्छा..'' ही बोल पाया. फिर मेरी चुप्पी देख के नानाजी भी बात ढूंढ ने लगे और बोले.
"तुम कैसे हो बेटा?''
"मैं ठीक हूं''
"डिनर हो गया तुम्हारा?"
"हा जी...."
मेरी इस तरह ख़ामोशी देख के नानाजी ने पूछा
''हितेश...बेटा तुम्.... कुछ कहना चाहोगे?''
मैने ने जैसे ही जवाब में '' ह्म्म्म'' कहा, मेरे बदन में एक करंट सा दौड़ गया, पूरा शरीर कांपने लगा, खुद को कंट्रोल करते हुए मैंने कहा
'' नानाजी,.....आप लोग मुझसे बहुत बड़े है. और हमेशा से मेरी भलाई बुराई सोचते आ रहे है......''
फिर में रुक गया.
नानाजी बहुत ध्यान से बिलकुल साइलेंट होक सुनने लगे. शायद वह मेरी ख़ामोशी की भाषा भी पड़ने की कोशिश कर रहे थे. मैं फिर बोलने लगा
''अगर....अगर....आप लोगों को लगता है की .....इस में ही सब का अच्छा है......इससे सब खुश रहेंगे ....... और ....... और ..... माँ भी इस से सहमत है ......... तो .... .....''
मैं रुक गया. यह बताने के बाद एक खुशी और एक अद्धभुत फीलिंग मेरे पूरे खून में दौड़ने लगी. नानाजी हसीं के साथ अचानक बोले
'' मैं समझ गया बेटा. तुम बिलकुल चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा.
तूम बस कल घर आओ . बाकि बाते घर पे बैठ के करेंगे''
उस रात मुझे न कोई तस्वीर, न कोई मन घड़ंत दुनिया की जरुरत पड़ी. मैं अपने ही बेड पे लेटे लेटे आनेवाले कल में जो होनेवाला है, वह सोच के रोमांचित हो गया. इतने दिन जो चीज़ केवल मेरे मन के अंदर थी. आज अचानक वह चीज़ इस दुनिया में सच होने जा रही है. मैने यह सब सोच कर मेरे पाजामे का नाडा खोला आलरेडी मेरा लौड़ा उसके आनेवाले समय को महसुस करके खुद ही ख़ुशी से फूल रहा था. मैं पूरी मुठ्ठी से उसे पकड़के धीरे धीरे सहलाने लगा. आँख बंध करते ही मेरी माँ मेरी नज़र के सामने खड़ी है.
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मैं और उत्तेजित हो गया यह सोच के की यह खूबसूरत औरत कुछ दिनों में बस मेरी ही होने वाली है. मेरी बीवी बनने वाली है. मेरे लोड़े का कैप इस सोच में और भी फूल गया. मैं तेज़ी से हिलने लगा और माँ के गले में मेरा दिया हुआ मंगलसूत्र और मांग में मेरे नाम के सिन्दूर की कल्पना करके में ओर्गास्म की तरफ पहुच गया.

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मैं तेज़ी से सांसे लेके बोलने लगा ' माँ..आई लव यू आई लव यु माँ...आई.. लव यु'. माँ की कोमल चूत, जिसको बस कुछ दिन बाद से केवल मुझे ही एक्सेस करने का अधिकार मिलेगा,


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उसकी कल्पना करके उसके अंदर मेरा वीर्य छोड़ने का सुख महसुस करके, मेरा एकदम फुला हुआ मोटा पेनिस जोर जोर से झटके खाने लगा. आज पहली बार इतना सीमेन निकला की मैं खुद हैरान हो गया. जब मेरा ओर्गास्म पूरा हो गया, मैं शान्ति से आँख बंध करके बेड पर पड़ा रहा.

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My another story ~ Maa meri ho gayi (running)
 
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