मां का "दूध छुड़वाने से चुस्वाने" तक का सफर : पार्ट 9
मां ने एक बार फिर आसपास नजर दौड़ाई और मुझे कान में बोली : गोलू, केसे करूं यहां बैठे बैठे, तु ही बता।
मैं: मां जैसे घर पर करती हो बस वैसे ही कर लो ना।
मां : घर पर कोई कुर्सी पर बैठ कर थोड़ी करती हूं पागल।
मैं: मां एक काम करो , हल्का सा कुर्सी पर आगे सरक कर अपने हाथों को पीछे कुर्सी पर टिका लेना और धीरे धीरे कर लेना।
मां : ठीक है कोशिश करती हूं।
मां ने ठीक वैसा ही किया उन्होंने पहले कुर्सी पर आगे की ओर बैठ कर अपने हाथों को पीछे टिकाया और बोली : हां ऐसे ठीक रहेगा गोलू।
मैं: हां तो अब कर लो।
मां : अरे क्या कर लो, अभी कपड़े तो खोल लूं, इनके बीच में से ही थोड़ी करूंगी।
मैं: हां ठीक है।
मां ने फिर से पीछे सरक कर अपनी सलवार का नाड़ा खोला, नाड़ा खोल खोल धीरे धीरे थोड़ी सी सलवार को घुटनों के ऊपर तक रखा , और फिर पैंटी को साइड से पकड़ कर इधर उधर हल्का हल्का डोलते हुए उसे भी घुटनों तक ला कर छोड़ दिया और फिर कुर्सी पर आगे की ओर बढ़ने लगी।
मां का प्रेशर इतना बढ़ चुका था के अगर वो आधी अधूरी ऐसे बैठे बैठे पेशाब करती तो उनकी तेज मूत की धार सीधा सामने वाली कुर्सी के या तो पीछे जा कर लगती या फिर उनकी सलवार में।
मां ने जैसे ही हाथों को पीछे रखते हुए हल्का सा उठ कर मूतना शुरू किया के एक दम पहली हल्की सी धार सीधी उनकी सलवार से पहले आई पेंटी पर जा लगी और अब एक बार जब इतनी देर रोक कर करने पर पेशाब निकलने लगे तो उसे रोक पाना काफी मुश्किल सा होता है। । ठीक ऐसा ही हुआ मां के साथ भी , उन्हे जब लगा के अब रोकना भी मुश्किल है और आपकी सलवार को बचाना भी तो उन्होंने फट से मुझे इशारा करके मेरा कान अपने मुंह के पास लाने को बोला।
मैं जैसे ही अपना कान मां के पास लेकर गया, उन्होंने तुरंत बोला : गोलू जल्दी से अपना रुमाल निकल और मेरे आगे हाथ से दबा के रखना वरना मेरी सलवार और पेन्टी पूरी भीग जाएगी।
मैनें भी मां के कहते ही फट से अपना रुमाल निकाला और उनकी उठी हुई गांड़ के नीचे से हाथ ले जाते हुए उनकी चूत के बाहर रख कर हल्का सा दबाव बनाने लगा और उन्हें इशारा कर दिया। मेरा इशारा समझते ही मां ने जो गर्म मूत की धार मेरे हाथ और रुमाल पर मारी वो आज भी मेरे याद करते ही लन्ड खड़ा कर जाती है।
मां के गर्म गर्म मूत की धार उनकी चूत से निकलती मेरे हाथों पर पड़ी और मैं तो मानों खो सा गया। दिल तो किया के अभी अपना मुंह नीचे करके उनकी चूत में डाल दूं। जैसे ही मां ने मूतना खतम किया , रुमाल और मेरे हाथों से टपकता हुआ उनका गर्म गर्म पेशाब नीचे फ्लोर पर जाने लगा और मां ने एक राहत वाली सिसकी भरी जैसे किसी ने इतनी देर से डाला हुआ लन्ड उनकी चूत में से निकल लिया हो। मां वैसे ही 2 मिनट के लिए बैठी रही और मेरी आखों में देखने लगी। 2 मिनट की शांति के बाद मां मेरे कानो पास आई और मुस्कुराते हुए बोली : हो गया गोलू, बेटा, हटा ले अपना रुमाल
मैं: ओ हां मां।
मैनें अपना रुमाल उनकी चूत पर से हटाया और सामने किया तो वो पूरा मूत से भीगा हुआ था। मां ये देखते ही बोली : सॉरी बेटा, तेरा रुमाल पूरा गंदा हो गया, मैं घर जाते ही इसे धो दूंगी।
मैं: अरे कोई बात नहीं मां।
मां : थैंक्यू बेटा, अगर तु अपना रुमाल तेजी से ना लगाता तो शायद मेरी सलवार ही भीग जाती।
मैं: कोई बात नहीं इसमें थैंक्यू कैसा।
फिर जब उनके पेशाब की एक एक बूंद उनकी चूत से नीचे टपक गई तो मां ने अपने हाथ पीछे से आगे की ओर करके अपनी कच्ची को ऊपर किया और फिर सलवार भी पहन ली।
मैं मां की कमीज उनकी टांगों पर ढकी होने के कारण वो भीगी चूत तो ना देख पाया पर हाथ लगाकर उस गर्म एहसास को जरूर महसूस कर लिया था। फिर हम यूंही बैठे रहे के कब इंटरवल होगा और हम जाएंगे यहां से। करीब 10 मिनट बाद इंटरवल हुआ और हाल की थोड़ी और लाइट्स जली। मां फट से मुझे बोली : गोलू, फटाफट निकल यहां से।
मैं: हां।
हम हाल से बाहर आ गए और बाइक के पास गए तो मैनें वहा वो रुमाल और हाथ पास में लगी नल से धोया और वहां मां मुझसे फिर बोली : गोलू, ये देख तो जरा मेरे पीछे से सलवार ठीक तो है ना? कहीं कोई भीगी तो नहीं लग रही ना।
मैं उनकी गांड़ और चूत की ओर देखने लगा गौर से और उनकी वो मोटी गांड़ देख कर सोचने लगा के कब उनकी गांड़ चाटने को मिलेगी, कब आएगा वो सुनहरा मौका।
फिर में मां से बोला : नहीं मां सब ठीक है, टेंशन मत लो आप।
मां : हां, चले घर अब।
मैं: सॉरी मां, मैं तो बस आपको खुश करने के लिए पिक्चर दिखाने लाया था पर यहां तो सब गड़बड़ हो गई।
मां: हां, कोई बात नहीं बेटा।
मैं: मां, मैं एक घर के पास वाले सिनेमा में ले चलूं आपको। वहां ऐसी सब नहीं होगी।
मां : नहीं अब मूड नहीं है पिक्चर का, फिर कभी चलूंगी।
मैं: ठीक है मां।
फिर उनका मूड सही नहीं था तो हमने घर आने का सोचा । थोड़ी देर बाद हम घर पहुंच गए और घर पहुंच कर कपड़े चेंज की और मां ने मुझे आवाज लगाई : गोलू,बेटा ।
मैं मां के रूम में गया तो मां वहां थी नहीं।
मैं: मां कहां हो आप?
मां ने रूम के बाथरूम से फिर कहा: यहां हु इधर बाथरूम में।
मैं बाथरूम में गया तो मां नीचे बैठी थी और मुझे बोली : ला वो रुमाल तो दे जरा , मैं धो देती हूं।
मैं अपने रूम से वो रुमाल लेकर आया और उन्हें दिया। मां रुमाल धोने लगी और मैं वहीं खड़ा रहा। मां ने अपना सलवार कमीज चेंज कर लिया था और अब एक वाइट कलर को पजामी और ब्लैक कलर को कमीज डाल ली थी जो वो घर पर अक्सर डाल कर रखती थी। पर मैं ये जानना चाहता था के उन्होंने अपनी ब्रा पेंटी भी चेंज की है या नहीं तो मेने मां से पूछा : मां, एक बात पूछूं आपसे।
मां : हां पूछ।
वो आपने वहां सिनेमा में पेशाब किया था तो वो नीचे से साफ तो किया नहीं था तो उस से आपकी सलवार के अंदर का कपड़ा भी तो भीग गया था ना। तो आपने वो बदला या नहीं?
मां : अंदर का कपड़ा कोन सा।
मैं: वो वो पेन...पेंटी।
मां हल्का सा हसी और बोली : अच्छा वो, नहीं मैनें वो तो चेंज नहीं किया।
मैं: क्यूं मां?
मां : वो दरअसल सुबह ही मैनें सारे कपड़े धोए थे और उनमें मैनें बाकी बचे अपने अंडरगार्मेंट्स भी धो दिए थे। तेरे साथ जाने के चक्कर में उन्हे धूप में डालना ही भूल गई और अब तेरा रुमाल धो कर सभी धूप में डालने ही जा रही थी बस।
मैं: ओ अच्छा।
मां : हां।
मैं: मां, पर ऐसे वो भीगा हुआ कपड़ा मेरा मतलब भीगी हुई पैंटी डाल कर रखोगे तो उस से कोई दिक्कत तो नहीं होगी आपको।
मां : पता नहीं बेटा, वैसे गिला कपड़ा डालना तो नहीं चाइए पर अब और है भी नहीं ना इसलिए।
मैं: मां आपको कहीं बाहर जाना है?
मां : नहीं तो, क्यूं।
मैं: तो फिर आप बिना पेंटी के भी तो डाल सकते हो ये पजामी, बीमार होने से तो अच्छा ये है ना।
मां सोचने लगी और फिर पता नहीं क्यूं मुस्कुराई और बोली : वैसे गोलू बेटा, तु औरतों की काफी चीजे समझता है, तेरी पत्नी काफी खुश रहेगी तेरे साथ, देख लेना।
मैं भी हल्का सा हसा और बोला : मैं तो आपको खुश करना चाहता हूं।
मां : चुप बदमाश कहीं का।
मैं: तो उतार लो आप, या मैं आपकी मदद करूं जैसे वहां की थी।
मां हसने लगी और बोली : अच्छा जी, बड़ा चालाक बन रहा है मां की ही मां बनना चाहता है, पहले मुझे अपनी गोद में लिटाकर दूध पिलाना चाह रहा था और अब मेरे कपड़े भी बदलना चाहता है।
मैं हसने लगा और बोला : अब यही समझ लो आप।
मां : चुप कर, चल भाग यहां से मैं उतार लेती हूं वो भी।
मैं भी मजे में खोकर बिना उनकी सोच की फिक्र किए अब जो भी मन में था डायरेक्ट उन्हे बोल रहा था, मुझे ये तो पता चल गया था के मां को ऐसी पिक्चर देखना पसंद नहीं है पर क्या उन्हे ऐसी बातों से कुछ होता है या नहीं, बस ये जानने को फिराक में था। तो खुल कर अब जो बोलना चाहता था, उनसे बोल रहा था और मां भी कोई ज्यादा रिएक्ट नहीं कर रही थी।
मैं: मां आपने दूध तो पीकर देख लिया मेरा, अब कपड़े भी बदलवा ही लो मुझसे।
मां हल्के से नॉटी अंदाज में : ऐसे तो पता नहीं क्या क्या मांग ले तू मुझसे ये कहकर।
मैं: वक्त आने पर मांग लूंगा, जो आप सोच रही हो।
मां हल्का सा हस्ते हुए : चुप कर पागल, चल यहां से भाग , मुझे नहीं कोई कपड़े बदलवाने तुझसे।
मैं हसने लगा और वहां से जाने लगा के मां बोली : रुक, ये रुमाल तो लेकर जा वहा दूसरे रखे कपड़ों के पास रख देना, मैं खाना बनाकर धूप में डाल आऊंगी।
मैं: ठीक है।
मां रुमाल साफ करने के बाद फिर बोली : अच्छा सुन, मैं ये दोनों कपड़े दे देती हूं, यही रुक तु।
मैं: ठीक है मां।
मां ने बाथरूम का दरवाजा बंद किया ओर अपनी भीगी पेंटी उतार कर पजामी डाल ली और गेट खोलकर बोली: ये दोनों धो देती हूं , फिर रख देना।
मैं मां की उस लाल पेंटी को देखने लगा जो उनके पेशाब से पूरी भीगी थी। मेरा दिल किया के मां से उसे छीन कर उसकी महक ले लूं पर ऐसा करना कुछ ज्यादा ही हो जाता इसलिए अपने आप पर काबू किया।