अध्याय 14
अगले दिन सुबह आखिर वह दिन भी आ गया जब रमेश और राजश्री को उदयपुर जाना था,
रमेश राजश्री के साथ जा रहा था,
राजेश सिंह ने उन दोनों का ट्रेन में रिजर्वेशन था.
कविता - "राजू?'
राजश्री - "'जी मम्मी?'
कविता - "'तुम तैयार हुई कि नहीं? ट्रेन का टाइम हो गया है, जल्दी से नीचे आ कर नाश्ता कर लो.'
राजश्री - 'हाँ-हाँ आ रही हूँ मम्मी.'
कुछ देर बाद राजश्री नीचे हॉल में आई तो देखा कि उसके पिता और भाई-बहन पहले से डाइनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट कर रहे थे.
राजेश सिंह ने राजश्री की ओर देखा और उसके पहने कपड़ों को देख वे हकला गए थे.
आज भी राजश्री ने कुछ कुछ वैसी ही ड्रेस पहनी थी जैसी उसने दो दिन पहले पहनी थी,
ऊपर एक छोटी सी टी-शर्ट पहन रखी थी जो मुश्किल से उसकी नाभी तक आ रही थी. लेग्गिंग्स में ढंके राजश्री के जवान बदन के उभार पूरी तरह से नज़र आ रहे थे. उसकी टी-शर्ट भी स्लीवेलेस और गहरे गले की थी.
रमेश भी अपनी बहन को इस रूप में देख झेंप गया और नज़रें झुका ली.
उर्मी भी उसको देख कर परेशान थी,
राजश्री भी कुर्सी पर बैठ कर नाश्ता करने लगी उतने में उसकी माँ भी आ गई लेकिन उसके कुर्सी पर बैठे होने के कारण कविता को उसके पहने कपड़ों का पता न चला.
कविता -(रसोई में जाते हुवे)- जल्दी से खाना खत्म कर लो, जाना भी है, मैं जरा रसोई संभाल लूँ तब तक...'और उर्मी भी नाश्ता करले,
नाश्ता कर चुकने के बाद राजश्री उठ कर वाशबेसिन में हाथ धोने चल दी, रमेश भी उठ चुके था और पीछे-पीछे ही थे.
आगे चल रही राजश्री की ठुमकती चाल पर न चाहते हुए भी उनकी नज़र चली गई.
राजश्री ने ऊँचे हील वाली सैंडिल पहन रखी थी जिस से उसकी टांगें और ज्यादा तन गईं थी और उसके कुल्हे उभर आए थे. यह देख रमेश का चेहरा गरम हो गया था.
उधर राजश्री वॉशबेसिन के पास पहुँच थोडा आगे झुकी और हाथ धोने लगी,
रमेश की धोखेबाज़ नज़रें एक बार फिर ऊपर उठ गईं थी. राजश्री के हाथ धोने के साथ-साथ उसकी गोरी कमर और कुल्हे हौले-हौले डोल रहे थे.
यह देख रमेश को उत्तेजना का एहसास होने लगा था पर अगले ही पल उसका मन शर्म से भर गया,
रमेश - छि...यह मैं क्या करने लगा. हे भगवान् मुझे माफ़ करना.' और रसोईघर की तरफ देखने लगा,
राजेश सिंह, और राकेश का हाल कुछ ज्यादा अच्छा नही था, लागत है सबके के सब राजश्री को वही पटक कर चोदने की सोच रहे थे,
राजश्री हाथ धो कर हट चुकी थी, उसने एक तरफ हो कर रमेश को एक कातिल सी मुस्कान से देखा और बाहर चल दी.
रमेश भारी मन से हाथ धोने लगे.
जब तक कविता और उर्मी भी रसोई का काम निपटा कर बाहर आई तब तक उसके राजेश सिंह और भाग्यश्री कार में बैठ चुके थे.
कविता भी आगे राजेश सिंह के बगल में बैठ गई
राजश्री, रमेश उसके भाई-बहन पीछे, उर्मी घर पर ही थी,
भाग्यश्री बड़े ध्यान से अपनी बड़ी बहन के पहनावे को देख रही थी, लेकिन किसी को भी इससे बात का अंदाजा नही लगने दिया.
कुछ ही देर बाद वे स्टेशन पहुँच गए. वे सब कार पार्किंग में पहुँच गाड़ी से बाहर निकलने लगे.
जैसे ही राजश्री अपनी साइड से उतर कर कविता के सामने आई, कविता का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा.
कविता - (एकदम गुस्से से लेकिन दबी हुई जबान से) - 'ये क्या ड्रेस पहन रखी है राजू?'
राजश्री (जानबूझ कर अनजान बनते हुवे) 'क्या हुआ मम्मी?'
उसे पूरा समझ आ रहा था कि उसकी माँ गुस्सा क्यूँ हो रही थी.
गलती राजश्री की नहीं थी उसके मन की थी,, क्योंकि वो मन मे सोच कर आई थी कि रमेश से अपनी चूत का उदघाटन करवाके रहेगी इस ट्रिप पर क्योंकि उर्मी ने उसकी बात नही मानी थी, इसलिए ऐसे उत्तेजक कपड़े पहन कर आई थी, लेकिन अगर राजश्री ने उर्मी और रमेश की चुदाई का सीधा प्रसारण नही देखा तो फिर किसने??
(आगे पता चल ही जायेगा)
कविता (इस बार थोड़ी ऊंची आवाज में) - "'कपड़े पहनने की तमीज नहीं है तुमको? घर की इज्ज़त का कोई ख्याल है तुम्हें?' ये क्या नाचनेवालियों जैसे कपड़े ले कर आई हो तुम इतने पैसे खर्च कर के...!'
राजश्री अगर घर पर होती तो अपनी माँ की रोक-टोक पर अक्सर चुप रह कर उनकी बात सुन लेती थी, लेकिन आज उसने कुछ ऐसा करने का ठान कर ऐसे उत्तेजक कपड़े पहने थे,
राजश्री - 'क्या मम्मी हर वक्त आप मुझे डांटते रहते हो. कभी आराम से भी बात कर लिया करो.' 'क्या हुआ इस ड्रेस में ऐसा, फैशन का आपको कुछ पता है नहीं..
राजेश सिंह (उनके पास आते हुवे बोला) - 'क्या बात हुई? क्यूँ झगड़ रही हो माँ बेटी?'
कविता - 'संभालो अपनी लाड़ली को, रंग-ढंग बिगड़ते ही जा रहे हैं मैडम के.'
राजेश सिंह (जिसका खुद का हाल कुछ अच्छा नही था, राजश्री के ऐसे कपड़ो में देख कर) 'अरे क्यूँ बेचारी को डांटती रहती हो तुम? ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा है...’
राजेश सिंह जानता था कि कविता राजश्री के पहने कपड़ों को लेकर उससे बहस कर रही थी पर उन्होंने राजश्री का ही पक्ष लेते हुए कहा. क्योंकि कल को राजश्री को नीचे भी तो लाना है,
कविता - हाँ और सिर चढ़ा लो इसको आप...'
रमेश, भाग्यश्री और राकेश भी उन्हीं के पास आकर खड़े हो गए तो कविता ने चुप रहना ही अच्छा समझा,
तब तक ट्रेन की उदघोषणा हो गई,
वे सब स्टेशन के अन्दर चल दिए.
रमेश ने देखा कि एक कुली, जो सामान उठाए पीछे-पीछे आ रहा था, उसकी नज़र राजश्री की मटकती कमर पर टिकी थी और उसकी आँखों से वासना टपक रही थी.
रमेश - 'साला हरामी, ...'
लेकिन जैसे ही उसने भी राजश्री को देखा तो उसका दिमाग भी भटक गया और एक बार फिर अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठा, वो थोड़ा सा आगे बढ़ राजश्री के पीछे चलने लगे ताकि कुली की नज़रें उनकी बहन पर न पड़ सके.
उनकी ट्रेन प्लेटफार्म पर लग चुकी थी.
रमेश ने कुली को अपनी बर्थ का नंबर बता कर सारा सामान वहाँ रखने भेज दिया और खुद अपने परिवार के साथ रेल के डिब्बे के बाहर खड़े हो बतियाने लगा.
कविता और राजश्री अभी भी एक दूसरे से गुस्से से पेश आ रही थी.
राकेश और भाग्यश्री भी प्लेटफार्म पर इधर-उधर नजर दौड़ा रहे थे.
तभी ट्रेन की सीटी बज गई, उनका कुली सामान रख बाहर आ गया था.
रमेश ने उसको पैसे देकर जाने को कहा
रमेश और राजश्री ने भी सभी को जल्दी से अलविदा बोल कर ट्रेन में चढ़ने लगे.
रमेश पहले से ही ट्रेन के दरवाजे पर ही खड़ा था, उसने राजश्री का हाथ पकड़ कर उसे अन्दर चढ़ा लिया.
जब राजश्री उनका हाथ पकड़ कर अन्दर चढ़ रही थी तो एक पल के लिए वह थोड़ा सा आगे झुक गई थी और रमेश की नज़रें उसके गहरे गले वाली टी-शर्ट पर चली गई थी,
राजश्री के झुकने से उन्हें उसके छाती के उभार नज़र आ गए थे.
राजश्री के दूध से सफ़ेद चुंचे देख रमेश फिर से विचलित हो उठा.
उन्होंने जल्दी से नज़र उठा कर बाहर खड़े लोगो की ओर देखा. लेकिन तब तक राजेश सिंह और कविता दोनों बच्चों को लेकर जा चुके थे,
एक हलके से झटके के साथ ट्रेन चल पड़ी और रमेश और राजश्री भी अपने-आप को संभाल कर अपनी बर्थ की ओर चल दिए.
रमेश और राजश्री का रिजर्वेशन फर्स्ट-क्लास ए.सी. केबिन में था.
जब उन्होंने अपने केबिन का दरवाज़ा खोला तो पाया कि खिड़की से सूरज की तेज़ रौशनी पूरे केबिन में फैली हुई थी,
रमेश और राजश्री की आमने सामने वाली बर्थ पर बैठ गए.
राजश्री उसकी ओर देख कर मुस्काई,
राजश्री (चहकते हुवे) - 'फाइनली हम जा रहे हैं भैया, आई एम सो एक्साइटेड!'
रमेश - 'हाहा...हाँ भई.'
राजश्री तो जैसे खिल उठी थी. वह खड़ी हुई और उसके बगल में आ कर बैठ गई.
रमेश ने अपना हाथ राजश्री के पीछे ले जा कर उसके कंधे पर रखा और उसे अपने से थोड़ा सटा लिया,
राजश्री ने भी अपना एक हाथ उनकी कमर में डाल रखा था.
दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे.
ये पहली बार था जब जवान होने के बाद राजश्री ने अपने भैया से इस तरह स्नेह जताया था,
आम-तौर पर रमेश उसके सिर पर हाथ फेर स्नेह की अभिव्यक्ति कर दिया कर देता था.
लेकिन आज अचानक बिना सोचे-समझे इस तरह करीब आ जाने पर राजश्री कुछ पलों बाद थोड़ी असहज हो गई थी और उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था.
मन मे तो राजश्री बहुत कुछ ठान कर आई थी, परन्तु पहला कदम ही सबसे कठिन होता है, बाकि तो सब अपने आप ही हो जाता है,
दूसरी तरफ रमेश भी राजश्री के इस अनायास ही उठाए कदम से थोड़ा विचलित हो गया,
राजश्री के परफ्यूम की भीनी-भीनी खुशबू ने उसे और अधिक असहज कर दिया था.
इस तरह दोनों ही बिना कुछ बोले बैठे रहे.
और इससे पहले कि उनके बीच की खामोशी और गहरी होती राजश्री ने चहक कर माहौल बदलते हुए कहा.
राजश्री (चुप्पी तोड़ते हुवे) 'पता है भैया, मेरे सारी सहेलियां आपसे जलती हैं?'
रमेश (थोड़े आश्चर्य और थोड़ी राहत की सांस लेते हुए) 'हाहाहा...अरे क्यूँ भई?'
राजश्री - 'अब आप मेरा इतना ख्याल रखते हो न तो इसलिए...
रमेश (उत्सुकतावश) " और क्या कहती है तेरी सहेलियां,
राजश्री (टालने की कोशिश करते हुवे) 'कुछ नहीं भैया ऐसे ही फ्रेंड्स लोग मजाक करते रहते हैं.'
रमेश (अपना हाथ राजश्री की पीठ पर ले जाते हुए) - अरे बताओ न
राजश्री (थोड़ा शर्माते हुवे) - 'वो सब कहती हैं कि तेरे भैया...कि तेरे भैया तो तेरे बॉयफ्रेंड जैसे हैं. पागल हैं मेरी फ्रेंड्स भी.'
रमेश ( ठहाका लगाते हुवे) - . हाहाहा...क्या सच में?'
अभी भी रमेश के हाथ राजश्री की पीठ सहला रहे थे.
राजश्री (थोड़ी सतर्क और सावधान होते हुवे) 'नहीं ना भैया वो सब मजाक में कहते हैं...और मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है ओके...'
राजश्री ने के ऐसा इसलिए कहा क्यूंकि उसे लगा की उसके भैया बॉयफ्रेंड की बात सुन कर कहीं नाराज न हो जाएँ.
रमेश - 'हाँ भई मान लिया.'
अब रमेश ने राजश्री की पीठ पर थपकी दे कर कहा, उसने जाने-अनजाने में अपना दूसरा हाथ राजश्री की जांघ पर रख लिया था.
राजश्री की जांघें लेग्गिंग्स में से उभर कर बेहद सुडौल और कसी हुई नज़र आ रही थी.
रमेश की नज़र उन पर कुछ पल से टिकी हुईं थी और उसके अवचेतन मन ने यंत्रवत उनका हाथ उठा कर राजश्री की जांघ पर रख दिया था.
अपने हाथ से राजश्री की जांघ महसूस करते ही वो और अधिक भटक गया,
राजश्री की जांघ एकदम कसी हुई और माँसल थी.
उसने हलके से अपना हाथ उस पर फिराया, उसे लगा की बातों में लगी राजश्री को इस का एहसास शायद न हो लेकिन उधर राजश्री भी उनके हाथ की पोजीशन से अनजान नहीं थी.
रमेश के उसकी जांघ पर हाथ रखते ही राजश्री की नजर उस पर जा टिकी थी, लेकिन उसने अपनी बात जारी रखी और अपने भैया के इस तरह उसे छूने को जानबूझ कर नज़रन्दाज कर दिया, क्योंकि वो तो चाहती भी यही थी लेकिन वो ये जताना यही चाहती थी कि रमेश को लगे कि बस उससे स्नेह जताने के लिए ऐसा कर रहे हैं.
राजश्री - 'चलो भैया अब आप आराम से बैठ जाओ. मैं अपनी बर्थ पे जाती हूँ.'
राजश्री उठने को हुई. रमेश ने भी अपने हाथ उसकी पीठ और जांघ से हटा लिया था. उनका मन कुछ अशांत था.
रमेश ने मन ही मन सोचा और आँखें मूँद कर मन को थोड़ी राहत दे रहा था,
जब उसने आँखें खोली और उसी के साथ ही रमेश पर मानो बिजली गिर गई.
रमेश ने जैसे ही आँखें खोली तो सामने का नज़ारा देख उनका सिर चकरा गया था,
राजश्री की पीठ उनकी तरफ थी और वह खड़ी-खड़ी ही कमर से झुकी हुई थी.
उसके दोनों कुल्हे लेग्गिंग्स के कपड़े में से पूरी तरह उभर कर नज़र आ रहे थे वह उसकी पतली गोरी कमर केबिन में फैली सूरज की रौशनी में चमक रही थी.
रमेश का चेहरा अपनी बहन के अधो-भाग के बिलकुल सामने था.
रमेश ने एक बार तो अपनी नज़रें घुमानी चाही पर उसका दीमाग अब उनके काबू से बाहर जा चुका था.
अगले ही पल उसकी आँखें फिर से राजश्री के मोटे कसे हुए चूतड़ों पर जा टिकीं.
उन्होंने गौर किया कि राजश्री असल में सामने वाली बर्थ के नीचे रखे बैग में कुछ टटोल रही थी. उससे रहा न गया.
रमेश - 'क्या ढूँढ रही हो राजश्री?'
राजश्री (झुके-झुके ही पीछे मुड़ कर) - . 'कुछ नहीं भैया मेरा बरमूडा नहीं मिल रहा, डाला तो इसी बैग में था.'
राजश्री को इस पोज़ में देख रमेश और बेकाबू हो गया था, रात को उर्मी की कल्पना ने उसकी हालत खराब कर दी थी और अभी दिन में उसकी बहन ने
राजश्री वापस अपने बरमूडा को ढूँढने में लग गई थी.
रमेश ने ध्यान दिया की राजश्री के इस तरह झुके होने की वजह से उसकी लेग्गिंग्स का महीन कपड़ा खिंच कर थोड़ा पारदर्शी हो गया था और केबिन में इतनी रौशनी थी कि उन्हें उसकी सफ़ेद लेग्गिंग्स में से गुलाबी कलर का अंडरवियर नज़र आ रहा था.
उस पर एक बार फिर जैसे बिजली गिर पड़ी. उन्होंने अपनी नज़रें अपनी बहन राजश्री के चूतड़ों पर पूरी शिद्दत से गड़ा लीं,
वो सोच रहा था कि पहली बार में उन्हें उसकी अंडरवियर क्यूँ नहीं दिखाई दी थी, और उन्हें एहसास हुआ की राजश्री जो अंडरवियर पहने थी वह कोई सीधी-सिम्पल अंडरवियर नहीं थी बल्कि एक थोंग था,
जो कि एक प्रकार का मादक (सेक्सी) अंडरवियर होता है जिससे पीछे का अधिकतर भाग ढंका नहीं जाता.
रमेश पर गाज पर गाज गिरती चली जा रही थी. ट्रेन के हिचकोलों से हिलते राजश्री के नितम्बों ने उसके भाई बहन के रिश्ते की लाज शर्म की धज्जियाँ उड़ा दीं थी.
आज तक रमेश ने किसी को इस तरह की सेक्सी अंडरवियर पहने नहीं देखा था,
अपनी बीवी उर्मी को भी नहीं. उनके मन में अनेक ख्याल एक साथ जन्म ले रहे थे,
रमेश (मन मे) 'ये राजश्री कब इतनी जवान हो गई? पता ही नहीं चला, आज तक किसी भी लड़की को ऐसी पैंटी पहने देखा जैसी ये पहने घूम रही है.....’रमेश जैसे सुध-बुध खो बैठा था, 'ओह्ह क्या...क्या कसी हुई गांड है साली की...ये मैं क्या सोच रहा हूँ? सच ही तो है...साली कुतिया कैसे अधनंगी घूम रही है देखो जरा. साली चिनाल के बोबे भी बहुत बड़े हो रहे हैं...म्म्म्म्म्म्म...
’रमेश के दीमाग में बिजलियाँ कौंध रहीं थी.
तभी रमेश का फ़ोन बजा, देखा तो उर्मी का फ़ोन था,