Killerpanditji(pandit)
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Super updateभाग ८परीबानू से यह सुन कर अहमद आनंद से अभिभूत हो गया और परीबानू के पैरों पर गिरने लगा। परी ने उसे इससे रोका और सम्मानपूर्वक अपना वस्त्र भी न चूमने दिया बल्कि अपना हाथ बढ़ा दिया जिसे अहमद ने चूमा और हृदय और आँखों से लगाया। उस समाज में सम्मान प्रदर्शन की यही रीति थी। परीबानू ने मुस्कुरा कर कहा, अहमद, तुमने मेरा हाथ थामा है। इस हाथ गहे की लाज हमेशा बनाए रखना। ऐसा नहीं कि धोखा दे जाओ। अहमद ने कहा, यह किसके लिए संभव है कि तुम्हारे जैसी परी मिलने पर भी उसे छोड़ दे? मैं तो अपना मन-प्राण सब कुछ तुम्हें अर्पित कर चुका। अब मेरी हर प्रकार से तुम्हीं स्वामिनी हो। हाँ, हमारा निकाह कहाँ और कैसे होगा? परीबानू ने कहा, निकाह के लिए एक-दूसरे को पति-पत्नी मान लेना काफी होता है, सो हम दोनों ने मान लिया। बाकी निकाह की रस्में मेरे माता पिता ने पहले ही कर रखी हैं। हम दोनों इसी क्षण से पति-पत्नी हो गए। इतने में उनके माता पिता आए और मौलवी को बुलवाकर निकाह पढ़वा दिया। अब रात में वह लोग एक सुसज्जित कक्ष में एक-दूसरे के संग का आनंद लेंगे।,
फिर दासियाँ दोनों के लिए नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन लाईं। दोनों ने तृप्त हो कर भोजन किया। भोजन के पश्चात दोनों ने मद्यपान किया और देर तक परस्पर प्रीति की बातें करते रहे। फिर परीबानू ने अहमद को अपना महल दिखाया जिसमें हर जगह इतनी बहुतायात से रत्नादिक एकत्र थे कि शहजादे की आँखें फट गईं। उसने भवन की प्रशंसा की तो परीबानू ने कहा कि कई जिन्नों के पास ऐसे शानदार महल हैं जिनके आगे मेरा महल कुछ नहीं है। फिर वह शहजादे को अपनी वाटिकाओं में ले गई जिनकी सुंदरता का वर्णन करने में शब्द असमर्थ हैं। शाम को वह उसे अपने रात्रिकालीन भोजन कक्ष में ले गई जहाँ की सजावट देख कर शहजादा हैरान हो गया। भोजन कक्ष में कई रूपवान सुंदर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित गायिकाएँ और वादिकाएँ भी थीं जो इन दोनों के वहाँ पहुँचते ही मीठे स्वरों में गायन-वादन करने लगीं। कुछ देर में भोजन आया, जिसमें भाँति-भाँति के व्यंजन थे। कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे थे जो अहमद ने इससे पहले चखे क्या देखे भी नहीं थे। परीबानू उन पदार्थों को अपने हाथ से उठा-उठा कर अहमद के आगे रखती थी और उनकी पाक विधियाँ उसे बताती थी। और अपने हाथो से उसको खिलाती।
भोजन के उपरांत कुछ देर बाद मिठाई, फल और शराब लाई गई, यह शराब वो शराब नहीं जो दुनिया में मिलती है और नशा कर देती है बल्कि यह वो शराब है जो फलो से मिलकर बनी है जिसमें कोई नशा नहीं सिर्फ लज्जत है । पति-पत्नी एक- दूसरे को प्याले भर-भर कर पिलाते रहे। इससे छुट्टी पाई तो एक और अधिक सजे हुए कमरे में पहुँचे जहाँ सुनहरी रेशमी मसनदें, गद्दे आदि बिछे थे। वे दोनों जा कर मसनदों पर बैठ गए। उनके बैठते ही कई परियाँ आईं और अत्यंत सुंदर नृत्य और गायन करने लगीं। शहजादे ने अपने जीवन भर ऐसा मोहक संगीत और नृत्य कभी नहीं देखा था।
नृत्य और गायन के उपरांत दोनों शयन कक्ष में गए। वहाँ रत्नों से जड़ा विशाल पलंग था। उन्हें वहाँ पहुँचा कर सारे दास-दासियाँ जो परी और जिन्न थे उस कमरे से दूर हट गए। इसी प्रकार उन दोनों के दिन एक दूसरे के सहवास में आनंदपूर्वक कटने लगे। शहजादा अहमद को लग रहा था जैसे वह स्वप्न संसार में है। मनुष्यों के समाज में वह ऐसे आनंद और ऐसे वैभव की कल्पना भी नहीं कर सकता था। ऐसे ही वातावरण में छह महीने किस प्रकार बीत गए इसका उसे पता भी नहीं चला। परीबानू के मनमोहक रूप और उससे भी अधिक मोहक व्यवहार ने उसे ऐसा बाँध रखा कि एक क्षण भी उसकी अनुपस्थिति अहमद को सह्य न थी।
फिर भी उसे कभी-कभी यह ध्यान आया करता कि उसके पिता उसके अचानक गायब हो जाने के कारण दुखी होंगे। यह दुख अहमद के मन में उत्तरोत्तर बढ़ता जाता। किंतु वह डरता था कि न जाने परीबानू उसे जाने की अनुमति दे या न दे। एक दिन उसने परीबानू से कहा, अगर तुम अनुमति दो तो दो-चार दिन के लिए अपने पिता के घर पर भी हो लूँ। यह सुन कर परीबानू उदास हो गई और बोली, क्या बात है? क्या तुम मुझसे ऊब गए हो और बहाना बना कर मुझसे दूर होना चाहते हो? या मेरी सेवा में कोई त्रुटि है? तुम मुझे बुताओ में वो सब करूंगी जो तुम कहोगे मगर मुझसे दूर जाने की बात मत करो। कैसे जाने दू अपने दिल के टुकड़े को अपने से दूर। परीबानू की आंखे एक दम नम हो गई थी जिस वजह से उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। परीबानू की रुआसी आवाज ने शहजादे के दिल को अंदर तक हिला के रख दिया था । परीबानू की चाहत इस ६ माह में सिर्फ और सिर्फ बढ़ी थी , परीबानू अहमद के प्यार में इस कदर डूब गई थी कि उसे ना दिन का पता ना रात का होश और सिवाए अपने खुदा की इबादत के अलावा कुछ याद नहीं , उसने क्या खाया उसने पूरे दिन क्या किया और यहां तक की उसने पिछले दिन क्या किया कुछ याद नहीं और याद है तो अहमद का चेहरा जिसे वो पूरे दिन दीवानगी की हद तक देखती रहती और अपने खुदा की इबादत करती । वो अहमद को बेतहाशा चाहने लगी थी जिसके लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी। इन छह माह में अली ने परीबानू को बता दिया था कि प्यार क्या चीज़ होती है और किस कदर की जाती है। अहमद ने उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया और वो जो कहती आंख बंद करके उसके प्रेम में कर देता । मगर अहमद इन सब से अनजान था की अब वो परीबानू के लिए ऐसा नशा बन चुका था जो मरने पर ही छुटे , और अब वो मांग कर बैठा उससे दूर जाने की।
अगर परीबानू खुदा के बाद किसी से मुहब्बत रखती थी तो वो अहमद ही था
कुछ ख़ामोशी को तोड़कर आखिर परीबानू अपनी रूआसी आवाज में बोली,
ए मेरे प्यारे शहजादे क्या तुम इससे खबर नहीं रखते के में तुम्हारी दीवानी हूं और अगर तुम चले जाओगे तो में पागल हो जाऊंगी ।मेरा खुदा गवाह है इस बात का के तुम मुझे कितने प्रिय हो । क्या तुम इससे भी वाखिफ नहीं हो के तुम मेरे बहुत ही दुलारे हो , मेरे लाडले हो और में तुम्हे कितना लाड करती हूं । कहीं ऐसा तो नहीं के तुम मेरे लाड और दुलार से बिगड़ गए। और यह सोचते हो के जो तुम्हारे मन में आएगा वो करोगे और अपनी मनमानी करोगे, तो मेरी एक बाद अपने मस्तिष्क में डाल लो के में जितना तुम्हारा लाड उठाती हूं उतना ही तुम्हारे व्यवहार से परिचित भी हूं और जानती भी हूं के मुझे क्या करना चाहिए । तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा के यहां से जाने की बात को भूल जाओ। तुम्हे जो चाहिए उस चीज़ का नाम तुम्हारी जुबान पे आने से पहले ही में तुम्हे लाके दूंगी।