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Romance मेरी प्यारी जिन्नी (Completed)

Killerpanditji(pandit)

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भाग ८


परीबानू से यह सुन कर अहमद आनंद से अभिभूत हो गया और परीबानू के पैरों पर गिरने लगा। परी ने उसे इससे रोका और सम्मानपूर्वक अपना वस्त्र भी न चूमने दिया बल्कि अपना हाथ बढ़ा दिया जिसे अहमद ने चूमा और हृदय और आँखों से लगाया। उस समाज में सम्मान प्रदर्शन की यही रीति थी। परीबानू ने मुस्कुरा कर कहा, अहमद, तुमने मेरा हाथ थामा है। इस हाथ गहे की लाज हमेशा बनाए रखना। ऐसा नहीं कि धोखा दे जाओ। अहमद ने कहा, यह किसके लिए संभव है कि तुम्हारे जैसी परी मिलने पर भी उसे छोड़ दे? मैं तो अपना मन-प्राण सब कुछ तुम्हें अर्पित कर चुका। अब मेरी हर प्रकार से तुम्हीं स्वामिनी हो। हाँ, हमारा निकाह कहाँ और कैसे होगा? परीबानू ने कहा, निकाह के लिए एक-दूसरे को पति-पत्नी मान लेना काफी होता है, सो हम दोनों ने मान लिया। बाकी निकाह की रस्में मेरे माता पिता ने पहले ही कर रखी हैं। हम दोनों इसी क्षण से पति-पत्नी हो गए। इतने में उनके माता पिता आए और मौलवी को बुलवाकर निकाह पढ़वा दिया। अब रात में वह लोग एक सुसज्जित कक्ष में एक-दूसरे के संग का आनंद लेंगे।,


फिर दासियाँ दोनों के लिए नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन लाईं। दोनों ने तृप्त हो कर भोजन किया। भोजन के पश्चात दोनों ने मद्यपान किया और देर तक परस्पर प्रीति की बातें करते रहे। फिर परीबानू ने अहमद को अपना महल दिखाया जिसमें हर जगह इतनी बहुतायात से रत्नादिक एकत्र थे कि शहजादे की आँखें फट गईं। उसने भवन की प्रशंसा की तो परीबानू ने कहा कि कई जिन्नों के पास ऐसे शानदार महल हैं जिनके आगे मेरा महल कुछ नहीं है। फिर वह शहजादे को अपनी वाटिकाओं में ले गई जिनकी सुंदरता का वर्णन करने में शब्द असमर्थ हैं। शाम को वह उसे अपने रात्रिकालीन भोजन कक्ष में ले गई जहाँ की सजावट देख कर शहजादा हैरान हो गया। भोजन कक्ष में कई रूपवान सुंदर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित गायिकाएँ और वादिकाएँ भी थीं जो इन दोनों के वहाँ पहुँचते ही मीठे स्वरों में गायन-वादन करने लगीं। कुछ देर में भोजन आया, जिसमें भाँति-भाँति के व्यंजन थे। कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे थे जो अहमद ने इससे पहले चखे क्या देखे भी नहीं थे। परीबानू उन पदार्थों को अपने हाथ से उठा-उठा कर अहमद के आगे रखती थी और उनकी पाक विधियाँ उसे बताती थी। और अपने हाथो से उसको खिलाती।


भोजन के उपरांत कुछ देर बाद मिठाई, फल और शराब लाई गई, यह शराब वो शराब नहीं जो दुनिया में मिलती है और नशा कर देती है बल्कि यह वो शराब है जो फलो से मिलकर बनी है जिसमें कोई नशा नहीं सिर्फ लज्जत है । पति-पत्नी एक- दूसरे को प्याले भर-भर कर पिलाते रहे। इससे छुट्टी पाई तो एक और अधिक सजे हुए कमरे में पहुँचे जहाँ सुनहरी रेशमी मसनदें, गद्दे आदि बिछे थे। वे दोनों जा कर मसनदों पर बैठ गए। उनके बैठते ही कई परियाँ आईं और अत्यंत सुंदर नृत्य और गायन करने लगीं। शहजादे ने अपने जीवन भर ऐसा मोहक संगीत और नृत्य कभी नहीं देखा था।


नृत्य और गायन के उपरांत दोनों शयन कक्ष में गए। वहाँ रत्नों से जड़ा विशाल पलंग था। उन्हें वहाँ पहुँचा कर सारे दास-दासियाँ जो परी और जिन्न थे उस कमरे से दूर हट गए। इसी प्रकार उन दोनों के दिन एक दूसरे के सहवास में आनंदपूर्वक कटने लगे। शहजादा अहमद को लग रहा था जैसे वह स्वप्न संसार में है। मनुष्यों के समाज में वह ऐसे आनंद और ऐसे वैभव की कल्पना भी नहीं कर सकता था। ऐसे ही वातावरण में छह महीने किस प्रकार बीत गए इसका उसे पता भी नहीं चला। परीबानू के मनमोहक रूप और उससे भी अधिक मोहक व्यवहार ने उसे ऐसा बाँध रखा कि एक क्षण भी उसकी अनुपस्थिति अहमद को सह्य न थी।




फिर भी उसे कभी-कभी यह ध्यान आया करता कि उसके पिता उसके अचानक गायब हो जाने के कारण दुखी होंगे। यह दुख अहमद के मन में उत्तरोत्तर बढ़ता जाता। किंतु वह डरता था कि न जाने परीबानू उसे जाने की अनुमति दे या न दे। एक दिन उसने परीबानू से कहा, अगर तुम अनुमति दो तो दो-चार दिन के लिए अपने पिता के घर पर भी हो लूँ। यह सुन कर परीबानू उदास हो गई और बोली, क्या बात है? क्या तुम मुझसे ऊब गए हो और बहाना बना कर मुझसे दूर होना चाहते हो? या मेरी सेवा में कोई त्रुटि है? तुम मुझे बुताओ में वो सब करूंगी जो तुम कहोगे मगर मुझसे दूर जाने की बात मत करो। कैसे जाने दू अपने दिल के टुकड़े को अपने से दूर। परीबानू की आंखे एक दम नम हो गई थी जिस वजह से उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। परीबानू की रुआसी आवाज ने शहजादे के दिल को अंदर तक हिला के रख दिया था । परीबानू की चाहत इस ६ माह में सिर्फ और सिर्फ बढ़ी थी , परीबानू अहमद के प्यार में इस कदर डूब गई थी कि उसे ना दिन का पता ना रात का होश और सिवाए अपने खुदा की इबादत के अलावा कुछ याद नहीं , उसने क्या खाया उसने पूरे दिन क्या किया और यहां तक की उसने पिछले दिन क्या किया कुछ याद नहीं और याद है तो अहमद का चेहरा जिसे वो पूरे दिन दीवानगी की हद तक देखती रहती और अपने खुदा की इबादत करती । वो अहमद को बेतहाशा चाहने लगी थी जिसके लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी। इन छह माह में अली ने परीबानू को बता दिया था कि प्यार क्या चीज़ होती है और किस कदर की जाती है। अहमद ने उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया और वो जो कहती आंख बंद करके उसके प्रेम में कर देता । मगर अहमद इन सब से अनजान था की अब वो परीबानू के लिए ऐसा नशा बन चुका था जो मरने पर ही छुटे , और अब वो मांग कर बैठा उससे दूर जाने की।
अगर परीबानू खुदा के बाद किसी से मुहब्बत रखती थी तो वो अहमद ही था






कुछ ख़ामोशी को तोड़कर आखिर परीबानू अपनी रूआसी आवाज में बोली,
ए मेरे प्यारे शहजादे क्या तुम इससे खबर नहीं रखते के में तुम्हारी दीवानी हूं और अगर तुम चले जाओगे तो में पागल हो जाऊंगी ।मेरा खुदा गवाह है इस बात का के तुम मुझे कितने प्रिय हो । क्या तुम इससे भी वाखिफ नहीं हो के तुम मेरे बहुत ही दुलारे हो , मेरे लाडले हो और में तुम्हे कितना लाड करती हूं । कहीं ऐसा तो नहीं के तुम मेरे लाड और दुलार से बिगड़ गए। और यह सोचते हो के जो तुम्हारे मन में आएगा वो करोगे और अपनी मनमानी करोगे, तो मेरी एक बाद अपने मस्तिष्क में डाल लो के में जितना तुम्हारा लाड उठाती हूं उतना ही तुम्हारे व्यवहार से परिचित भी हूं और जानती भी हूं के मुझे क्या करना चाहिए । तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा के यहां से जाने की बात को भूल जाओ। तुम्हे जो चाहिए उस चीज़ का नाम तुम्हारी जुबान पे आने से पहले ही में तुम्हे लाके दूंगी।
Super update
 

Killerpanditji(pandit)

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भाग ८




शहजादा बहुत ही समझदार था उसे पता था कि परीबानू को केसे अपनी बातों में लेना है। शहजादे ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और चूम कर कहा, ऐसी बात मेरे मन में आ नहीं सकती। मुझे सिर्फ यह ख्याल है कि मेरे बूढ़े बाप मेरे अचानक गायब हो जाने से बहुत परेशान होंगे। मैंने तो पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ कि जीवन भर तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा। मुझे सिर्फ अपने पिता के दुख का ख्याल है इसलिए जाना चाहता था। अगर तुम नहीं चाहती तो जाने दो, वहाँ नहीं जाऊँगा। परीबानू ने देखा कि शहजादा सच्चे दिल से यह बातें कर रहा है और पत्नी का प्यार उसके दिल से कम नहीं हुआ है। उसने बड़े प्यार से कहा । मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। सचमुच ही तुम्हारे पिता तुम्हारी अनुपस्थिति से बहुत दुखी होंगे। तुम उन्हें देखने जरूर जाओ किंतु जल्दी लौटना।
अगर तुम यहां ना आए तो में वहा आ जाऊंगी और इसका परिणाम सभी भुगतेंगे। अहमद ने इस बात पे अपनी हामी भरदी।



उधर अहमद के पिता यानी हिंदोस्तान के बादशाह का हृदय वास्तव में बहुत दुखी रहता था। उसका एक बेटा नूरुन्निहार से विवाह करके अति सुख से रहता था और इसका बादशाह को संतोष था किंतु हुसैन और अहमद के चले जाने से उसे हृदयविदारक कष्ट भी था। अली के विवाह के दो-चार दिन बाद उसने महल के कर्मचारियों से पूछा कि हुसैन और अहमद क्यों नहीं दिखाई देते। उन्होंने कहा, शहजादा हुसैन तो संसार त्याग करके ईश्वर की खोज में फकीर बन कर निकल गए हैं लेकिन शहजादा अहमद अचानक न मालूम कहाँ गायब हो गए हैं। बादशाह ने शहजादा अहमद की खोज में बहुत घौदे दौड़ाए किंतु शहजादे का पता किसी को न चल सका। बादशाह बड़ा चिंतित हुआ।


एक दिन उसे मालूम हुआ कि इसी शहर में एक होशियार जादूगरनी रहती है जो तंत्र-विद्या से अज्ञात बातें जान लेती है। बादशाह ने उसे बुला कर कहा, जब से मैंने नूरुन्निहार से शहजादा अली का विवाह किया है शहजादा अहमद का कुछ पता नहीं चलता। मैं इससे बहुत परेशान हूँ। तुम अपने जादू से मुझे बताओ कि अहमद जीवित है या नहीं, जीवित है तो किस दिशा में है और मुझसे उसकी भेंट होगी या नहीं। जादूगरनी ने कहा, इसी क्षण तो मैं कुछ भी न बता सकूँगी। कई क्रियाएँ करनी होती हैं। कल जरूर मैं आपके प्रश्नों का उत्तर दूँगी। बादशाह ने कहा, तुमने ठीक सूचना दी तो तुम्हें मालामाल कर दूँगा। इस समय तुम घर जाओ और जो क्रियाएँ जरूरी हैं वह करो। जादूगरनी दूसरे दिन आ कर बोली, मैंने जादू से यह तो जान लिया है कि शहजादा अहमद सही-सलामत हैं। किंतु वे कहाँ हैं इसका पता नहीं लग सका। मालूम होता है कि कहीं बड़े रहस्यमय स्थान में हैं जिससे मुझे कुछ पता नहीं चलता। बादशाह को इतने से ही बहुत संतोष हुआ कि अहमद जिंदा है।



इधर शहजादा अहमद अपने पिता के घर आने को तैयार हुआ तो परीबानू ने कहा, तुम एक बात का ध्यान जरूर रखना। अपने पिता तथा अन्य संबंधियों, मित्र आदि को यह हरगिज न बताना कि तुम कहाँ रहते हो और कैसे यहाँ पर पहुँचे। तुम सिर्फ यह कहना कि मेरा विवाह हो गया है और मैं जहाँ भी रहता हूँ बड़े सुख और संतोष के साथ रहता हूँ। किसी विचित्र बात का उल्लेख न करना और इसके अलावा कुछ न कहना कि दो-चार दिन के लिए पिता के मन को धैर्य देने को आया हूँ। शहजादे ने इसे स्वीकार किया।


परीबानू ने एक बढ़िया घोड़ा, जिसका साज-सामान रत्न-जटित था, शहजादे की सवारी के लिए मँगाया। यात्रा के लिए अन्य उपयुक्त और आवश्यक सामग्री का प्रबंध किया और बीस सवार, जो सब के सब जिन्न थे, शहजादे के साथ चलने के लिए बुलाए। विदाई के समय शहजादे ने फिर परीबानू से हर रहस्य को गुप्त रखने का वादा किया और अपने साथी सवारों को ले कर अपने पिता के महल की ओर चल पड़ा। महल अधिक दूर था। परन्तु जिन्नों की ताकत से यह लोग घंटे-आधे घंटे में राजधानी पहुँच गए।
Nice update bro 🤠🤠🤠🤠
 

Killerpanditji(pandit)

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भाग - ९




सारे नगर निवासी और गणमान्य लोग शहजादे को देख कर बड़े प्रसन्न और आश्चर्य हुए। वे अपना कामकाज छोड़ कर शहजादे को देखने और उसे आशीर्वाद देने को आ गए। शहजादे की शान और शौकत देखकर सभी बड़े आश्चर्य में थे । दूर दूर तक शेहजादे से आ रही मधुर सुगंध हवा में फेल चुकी थी, अब शहजादे को जो भी देखता तो देखता ही रह जाता । शहजादा एक दम बदल गया था । शहजादे के लिबास इस तरह थे के उसकी चमक रात की काल स्याह में भी दिन का उजाला करदे। शहजादे का चेहरा एक दम नूर से जगमगा रहा था , और वहा खड़ी सभी स्त्रियां तो शहजादे कि एक झलक में ही दीवानी हो गई थी। शाही महल तक सड़क के दोनों ओर भीड़ लग गई। दरबार में पहुँच कर शहजादा पिता के चरणों में गिरा और बादशाह ने उसे उठा कर हृदय से लगाया। लेकिन जैसे ही बादशाह ने शहजादे को देखा तो देखता ही रह गया । तभी शहजादे ने शांति भंग करते हुए कहा, क्या हुआ पिताजी ऐसे क्या देख रहे है। तभी बादशाह का ध्यान भटका और उसने बात बदलती , बादशाह ने कहा, तुम नूरुन्निहार के न मिलने से इतने रुष्ट हुए कि घर छोड़ कर ही चले गए। अब कहाँ हो और अब तक कैसे रहे? अहमद ने कहा, मैं दुखी जरूर था कि नूरुन्निहार को नहीं पा सका किंतु रुष्ट नहीं था। मैं अपना फेंका हुआ तीर ढूँढ़ता हुआ उसी दिशा में बहुत दूर निकल गया। मैं आगे बढ़ता गया। यद्यपि मैं जानता था कि मेरा ही क्या संसार के किसी भी धनुर्धर का तीर इतनी दूर नहीं पहुँच सकता तथापि मैं तीर की तलाश में आगे बढ़ता गया क्योंकि यह भी स्पष्ट था कि तीर एक ही दिशा में गया होगा, दाएँ-बाएँ तो जा नहीं सकता। अंत में यहाँ से लगभग चार सौ कोस दूरी पर मैंने अपने तीर को एक चट्टान से चिपका हुआ पाया। यह देख कर मैं समझ गया कि तीर इतनी दूर अपने आप नहीं आया है, उसे किसी रहस्यमय शक्ति ने यहाँ किसी उद्देश्य से पहुँचाया है। उसी शक्ति ने प्रेरणा दे कर मुझे एक ऐसे स्थान पर पहुँचाया जहाँ मैं इस समय भी बड़े आनंद से रहता हूँ। इससे अधिक विवरण मैं नहीं दे सकूँगा। मैं केवल आपके मन को अपने संबंध में धैर्य देने के लिए आया हूँ, दो-एक दिन रह कर वापस चला जाऊँगा। कभी-कभी आपके दर्शन के लिए आया करूँगा।


बादशाह ने कहा, तुम्हारी खुशी है। तुम जहाँ चाहो आराम से रहो। मुझे इस बात से बड़ी प्रसन्नता है कि तुम जहाँ भी रह रहे हो प्रसन्नता से रह रहे हो। लेकिन अगर तुम्हें आने में देर लगी तो मैं तुम्हारा समाचार किस प्रकार प्राप्त कर सकूँगा? अहमद ने निवेदन किया, यदि आपका तात्पर्य यह है कि मैं अपने निवास आदि का रहस्य बताऊँ तो मैं पहले ही निवेदन कर चुका हूँ कि जितना मैंने बता दिया है उसके अतिरिक्त कुछ भी बताने की स्थिति में मैं नहीं हूँ। आप इत्मीनान रखें मैं जल्दी-जल्दी आया करूँगा।


बादशाह ने कहा, बेटा, मेरी इच्छा किसी रहस्य को जानने की नहीं है। मैं तो केवल तुम्हारी कुशलक्षेम से आश्वस्त होना चाहता था। तुम्हारा हाल मिलता रहे यही काफी है। तुम जब चाहो आओ जब चाहो जाओ। अतएव अहमद तीन दिन तक शाही महल में रहा।


महल में रहने के पश्चात उसने सभी का में मोह लिया था वहा पर मौजूद बड़ी बड़ी राजकुमारियां जो अत एवं आती रहती थी नुरुनन्निहार से मिलने के लिए , वो भी शहजादे के रंग रूप को अपने ह्रदय में उतार चुकी थी l सभी का दिल अब शहजादे पर आ चूका था , और अब शहजादा अहमद ही एक विषय था जिसपर सभी राजकुमारियां बाते करते नहीं थकती थी, तभी एक राजकुमारी ने नुरुनन्निहार से कहा, जब शहजादा इतना दिलनशीन है तो उससे विवाह जिसने किया होगा वो कितनी जानिसार होगी जिसपर नुरुनन्निहार जल भुन के रह गई और कुछ ना कह सकी। चौथे दिन शहजादा अपने निवास स्थान को रवाना हुआ। परीबानू उसकी वापसी पर बहुत प्रसन्न हुई। उसने फौरन ही जिन्नों को अकेले में बुलाया और शहजादे के साथ जो कुछ हुआ सब पूछा । जिसमें जिन्नों ने यह बताया कि कैसे राज्य की सभी राजकुमारियां शहजादे की दीवानी हो चली थी परन्तु शहजादे ने किसी एक कि और आंख उठाकर भी नहीं देखा । मालूम पड़ता है कि आपकी सुंदरता से ज्यादा वो आपकी मोहब्बत का कायल है। बहुत खुसनसीब है आप जो आपको ऐसा पति मिला जिसे सुनकर परीबानू को अपने आप पर गर्व महसूस हुआ । उस रात्रि ने परीबानू ने शहजादे को इतना प्यार किया की वो अपने अस्तित्व को ही भूल गया। परीबानू ने उस रात्रि शहजादे की सबसे लंबी और यादगार रात्रि बना दिया। उस रात के बाद अब वो अपने शहजादे को और ज्यादा प्यार और लाड करने लगी । ऐसे ही दोनों अपने प्रेमपूर्वक जीवन का आनंद उठाने लगे। एक महीना पूरा होने पर भी जब शहजादा अपने पिता से मिलने नहीं गया तो परीबानू ने पूछा कि तुम तो कहते थे कि महीने-महीने पिता से मिलने जाऊँगा, इस बार क्यों नहीं गए। अहमद ने कहा, मैंने सोचा शायद अबकी बार तुम जाने की अनुमति न दो।


परीबानू को अब अपने पति पर पूरा विश्वास हो चला था परीबानू हँस कर बोली, मेरी अनुमति पर इतना निर्भर न रहो। महीने-महीने मुझे पूछे बगैर ही पिता के पास हो आया करो। अतएव शहजादा दूसरे दिन सुबह बड़ी धूमधाम से अपने पिता के पास गया और तीन दिन वहाँ रहा। इसके बाद उसका नियम हो गया कि हर महीने शाही महल में जाता, तीन दिन वहाँ रहता और इसके बाद परीबानू के महल में आ जाता। उसके शाही महल में आगमन की तड़क-भड़क हर बार बढ़ती ही जाती थी।


यह देख कर महल का एक प्रधान कर्मचारी, जो बादशाह के मुँह लगा हुआ था, शहजादे की सवारी की बढ़ती हुई शान-शौकत से आश्चर्य में पड़ा। उसके एक घोड़े कि कीमत ही उस पूरे महल के बराबर थी । बह यह सोचने लगा कि शहजादे का विचित्र रहस्य मालूम होता है। कुछ पता नहीं कि वह कहाँ रहता है और वह ऐश्वर्य उसे कहाँ से मिला है। वह मन का नीच भी था इसलिए बादशाह को बहकाने लगा। उसने कहा, सरकार अपनी ओर से असावधान रहते हैं। आपने कभी ध्यान दिया है कि आपके पुत्र का ऐश्वर्य बढ़ता ही जाता है। उसकी शक्ति ऐसे ही बढ़ती रही तो एक दिन यह भी संभव है कि आप पर आक्रमण करके आपका राज्य हथिया ले और आपको कैद कर ले। जब से आपने नूरुन्निहार को शहजादा अली से ब्याहा है तब से शहजादा हुसैन और शहजादा अहमद अत्यंत अप्रसन्न हैं। शहजादा हुसैन ने तो फकीरी बाना ओढ़ लिया, वह चाहे भी तो आप की कुछ हानि नहीं कर सकता लेकिन कहीं अहमद आपसे बदला न ले। उसका तो एक घोड़ा तक आप अपने पूरे महल को बेचकर नहीं खरीद सकते, तो भला उसके सैनिकों से कैसे लड़ेंगे ।
Zabardast update dost
 

Manisha48

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भाग-१०


बादशाह उसके बहकावे में आ गया और अहमद का हाल जानने के लिए उत्सुक रहने लगा। इसी कर्मचारी के कहने से उसने मंत्री की जानकारी के बगैर ही महल में चोर दरवाजे से जादूगरनी को बुला कर कहा, तुमने अहमद के जीवित होने की बात कहीं थी, वह तो ठीक निकली। अब तुम उसका पूरा हाल मालूम करो। यूँ तो वह हर महीने मुझसे मिलने आता है किंतु मेरे पूछने पर भी अपना हाल नहीं बताता कि कहाँ रहता है, क्या करता है। तुम इस बात का पता लगाओ, जादू से नहीं तो वैसे ही सही। महल के कर्मचारियों को कुछ मालूम नहीं। अहमद यहाँ आया हुआ है, कल सुबह वापस जाएगा। तुम उसके रास्ते में छुप कर बैठो और देखो कहाँ जाता है। फिर सारा हाल आ कर मुझे बताओ।

बादशाह से विदा हो कर जादूगरनी उस जगह पहुँची जहाँ अहमद को तीर मिला था। वह एक गुफा में बैठ कर अहमद के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। दूसरी सुबह अहमद अपने साथियों समेत महल से रवाना हुआ। जब उस गुफा के पास पहुँचा तो जादूगरनी ने देखा कि अहमद और उसके साथ के सवार एक दुर्गम पर्वत पर चढ़ कर दूसरी तरफ उतर रहे हैं। उस रास्ते कोई मनुष्य नहीं जा सकता। जादूगरनी ने सोचा कि निश्चय ही उस ओर कोई बड़ी गुफा हैं, जिसमें जिन्न आदि रहते हैं। वह यह सोच ही रही थी कि शहजादा और उसके सेवक अचानक निगाहों से गायब हो गए। जादूगरनी गुफा से निकल कर अपनी शक्ति भर इधर-उधर फिरी किंतु उसे कुछ पता न चला। उसे वह लोहे का दरवाजा भी नहीं मिला क्योंकि वह द्वार, जिसमें से हो कर परीबानू के महल को रास्ता जाता था, केवल उस व्यक्ति को मिलता था जिसे परीबानू बुलाना चाहती थी। जादूगरनी ने मन में सोचा कि इस बार का श्रम व्यर्थ ही गया।


उसने लौट कर बादशाह से भेंट की और कहा, सरकार मैंने बहुत कोशिश की लेकिन पूरी सफलता मुझे नहीं मिली। हाँ, मेरी तलाश की शुरुआत जरूर हो गई है। अगर आप अनुमति दें तो अगले महीने अहमद के यहाँ से वापस जाने के समय आपके आदेशों का पालन करूँ। आशा है इस बार मुझे पूरी सफलता मिलेगी। बादशाह ने कहा, अच्छा, अगले महीने ही सही। लेकिन ध्यान रहे कि अगले महीने तुम्हें पूरे तौर पर पता लगाना है कि अहमद कहाँ रहता है, कैसे रहता है और उसे इतना साज-सामान कहाँ से मिलता है। यह कह कर बादशाह ने एक कीमती हीरा जादूगरनी को दिया और कहा, जिस दिन तुमने अहमद का पूरा हाल मुझे बताया मैं सारी जिंदगी के लिए तुम्हें मालामाल कर दूँगा।


जादूगरनी ने एक महीने तक अपने घर में बैठ कर प्रतीक्षा की क्योंकि अहमद को अगले महीने ही आना था। इस बीच उसने अपनी योजना पूरी तरह बना ली क्योंकि अब उसे मालूम हो गया था कि शहजादे के साथ कुछ जिन्नों-परियों का चक्कर है। अगले महीने वह अहमद के आने के एक दिन पहले वह उस पहाड़ की चोटी पर चढ़ाव के बगल में बैठ गई। जब शहजादा अपने सेवकों के साथ लोहे के दरवाजे से हो कर जादूगरनी के पास से निकला तो उसे कोई प्रस्तर शिला समझा क्योंकि वह गुदड़ी ओढ़े गुड़ी-मुड़ी हुई पड़ी थी। अहमद पास आया तो वह जोरों से हाय-हाय करने लगी जैसे कोई दुखी व्यक्ति सहारा चाहता है। जादूगरनी महाधूर्त थी, वह और अधिक रोने-चिल्लाने लगी। शहजादे को उस पर और दया आई और उसके पास चला गया। जब उसने शहजादे की दया भावना को काफी उभार दिया तो ठंडी साँस ले कर बोलने लगी।


उसने कहा, मैं अपने घर से निकली थी इस इरादे से कि सामनेवाले गाँव में जाऊँ क्योंकि मुझे आवश्यक गृह कार्य करना था। रास्ते में मुझे जोर से सर्दी लग कर बुखार चढ़ आया और मैं विवश हो कर यहीं गिर पड़ी। मुझे लगता है कि मैं इसी निर्जन स्थान में प्राण दे दूँगी। शहजादे ने कहा, यहाँ आसपास कोई बस्ती नहीं है। पास में केवल एक भवन है। मैं तुझे वहाँ पहुँचा दूँगा। तू उठ कर मेरे पास आ जा। बुढ़िया ठंडी साँस भर कर बोली, मुझमें इतना दम नहीं है बेटा जो मैं खुद उठ सकूँ। मुझे तो कोई उठा कर ले चले तो ले चले। वह जानती थी कि किसी जिन्न के साथ ही वह उस रहस्यमय भवन में जा सकती है।


शहजादी ने एक सवार को आदेश दिया कि बुढ़िया को उठा कर अपने घोड़े पर रख लो और मेरे पीछे आओ। सवार ने बुढ़िया को उठा लिया तो अहमद ने परीबानू को आवाज दी। वह आई और पूछने लगी कि तुम तो पिता के घर के लिए जा रहे थे, वापस कैसे आ गए। उसने बताया कि रास्ते में सर्दी और ज्वर में मरती हुई यह बुढ़िया मिली और मुझे इस पर दया आई। इसलिए मैं इसे ले आया हूँ कि तुम इसकी देखभाल और इसका उपचार करो। परीबानू ने अपनी दासियों से कहा कि इस बुढ़िया को किसी अच्छी जगह आराम से लिटा दो और हकीम को बुला कर इसकी दवा-दारू करो।


दासियाँ बुढ़िया को उठा ले गईं तो परीबानू ने अहमद से कहा, प्रियतम, तुम्हारी दया भावना को देख कर मुझे बड़ी खुशी हुई और मैं तुम्हारे कहने से उसकी खबरगीरी भी करूँगी। किंतु मुझे डर है कि कहीं इस बुढ़िया के कारण तुम पर कोई मुसीबत न आए।


अहमद ने कारण पूछा तो परीबानू ने कहा, वह कहती तो है कि ऐसी बीमार है कि उठ कर नहीं चल सकती। किंतु उसके चेहरे पर किसी बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देते। मालूम होता है तुम्हारे किसी शत्रु ने तुम्हारे खिलाफ कोई षड्यंत्र किया है। अहमद ने कहा, मेरी प्यारी, भगवान करे तुम युग-युग जियो। किंतु तुम आश्वस्त रहो कि मेरे विरुद्ध कोई षड्यंत्र नहीं होगा। मैंने कभी किसी का बुरा किया ही नहीं तो कोई मेरे साथ शत्रुता क्यों करेगा। तुम मन से भय निकाल दो, मैं पिता के पास जा रहा हूँ।


यह कह कर अहमद अपने पिता के यहाँ पहुँचा। यद्यपि बादशाह पूरी तरह दुष्ट कर्मचारी के बहकावे में आ चुका था तथापि उसने प्रकट में अहमद के आने पर सदा की भाँति प्रसन्नता व्यक्त की।


उधर परीबानू के महल में वे दासियाँ जो बुढ़िया की सेवा के लिए नियुक्त की गई थीं उसे एक सुंदर आवास में ले गईं। उस मकान में बड़ा कीमती सजावट का सामान था।बुढ़िया ने ऐसा सुंदर दृश्य कभी नहीं देखा था। हर तरफ सोने चांदी की चमक थी। दासियों ने बुढ़िया को एक आरामदेह पलंग पर लिटा दिया। एक दासी उसका बदन दबाने लगी। दूसरी ने एक बर्तन से एक प्याले में एक विशेष अर्क निकाला जिसे ज्वर के रोगियों को पिलाया जाता है। दोनों दासियों ने उस बुढ़िया को उठा कर अर्क पिला दिया। फिर उसके शरीर पर एक लिहाफ डाल कर कहा, अम्मा, अब तुम आराम से सो जाओ। कुछ ही देर में तुम बिल्कुल स्वस्थ हो जाओगी।


दासियाँ यह कह कर चली गईं। बुढ़िया बीमार तो थी ही नहीं, सिर्फ अहमद का निवास स्थान देखने आई थी। दासियाँ थोड़ी देर में आईं तो वह उठ कर बैठ गई और बोली, तुम स्वामिनी से कह दो कि बुढ़िया बिल्कुल ठीक हो गई है। दवा ने जादू का-सा असर किया है। अब वह आप को आशीर्वाद दे कर और आपसे विदा ले कर जाना चाहती है। दासियाँ उसे सारे सजे-सजाए कक्षों और दालानों से हो कर बाहरी मकान में तख्त पर बैठी परीबानू के पास ले गईं। जिस तख्त पर परीबानू बैठी थी वह रत्न-जटित था और उसके चारों ओर रूपवती दासियाँ परीबानू की सेवा में खड़ी थीं। जादूगरनी इस वैभव से इतनी अभिभूत हुई कि उसकी जबान बंद हो गई और वह परीबानू के पाँवों पर गिर पड़ी।


परीबानू ने जादूगरनी से मृदुल स्वर में कहा, तुम्हारे यहाँ आने से मैं प्रसन्न हुई हूँ। तुम अगर चाहो तो मेरे पूरे महल को देखो। मेरी दासियाँ तुम्हें हर चीज अच्छी तरह दिखाएँगी। जादूगरनी ने परीबानू के सामने की भूमि को चूमा और उससे विदा हुई। परीबानू की दासियों ने पहले उसे महल के सारे भवन विस्तारपूर्वक दिखाए। फिर उसे लोहे के दरवाजे से बाहर का रास्ता दिखाया। जादूगरनी कुछ कदम आगे बढ़ी। थोड़ी दूर जाने के बाद उसने पलट कर देखा ताकि लोहे के दरवाजे की स्थिति को अच्छी तरह याद रख सके लेकिन वह दरवाजा गायब हो गया। जादूगरनी ने इधर-उधर घूम कर उसका पता लगाने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता न मिलनी थी न मिली। इस बात से उसे बड़ी खीझ हुई
 

Killerpanditji(pandit)

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258
भाग-१०


बादशाह उसके बहकावे में आ गया और अहमद का हाल जानने के लिए उत्सुक रहने लगा। इसी कर्मचारी के कहने से उसने मंत्री की जानकारी के बगैर ही महल में चोर दरवाजे से जादूगरनी को बुला कर कहा, तुमने अहमद के जीवित होने की बात कहीं थी, वह तो ठीक निकली। अब तुम उसका पूरा हाल मालूम करो। यूँ तो वह हर महीने मुझसे मिलने आता है किंतु मेरे पूछने पर भी अपना हाल नहीं बताता कि कहाँ रहता है, क्या करता है। तुम इस बात का पता लगाओ, जादू से नहीं तो वैसे ही सही। महल के कर्मचारियों को कुछ मालूम नहीं। अहमद यहाँ आया हुआ है, कल सुबह वापस जाएगा। तुम उसके रास्ते में छुप कर बैठो और देखो कहाँ जाता है। फिर सारा हाल आ कर मुझे बताओ।

बादशाह से विदा हो कर जादूगरनी उस जगह पहुँची जहाँ अहमद को तीर मिला था। वह एक गुफा में बैठ कर अहमद के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। दूसरी सुबह अहमद अपने साथियों समेत महल से रवाना हुआ। जब उस गुफा के पास पहुँचा तो जादूगरनी ने देखा कि अहमद और उसके साथ के सवार एक दुर्गम पर्वत पर चढ़ कर दूसरी तरफ उतर रहे हैं। उस रास्ते कोई मनुष्य नहीं जा सकता। जादूगरनी ने सोचा कि निश्चय ही उस ओर कोई बड़ी गुफा हैं, जिसमें जिन्न आदि रहते हैं। वह यह सोच ही रही थी कि शहजादा और उसके सेवक अचानक निगाहों से गायब हो गए। जादूगरनी गुफा से निकल कर अपनी शक्ति भर इधर-उधर फिरी किंतु उसे कुछ पता न चला। उसे वह लोहे का दरवाजा भी नहीं मिला क्योंकि वह द्वार, जिसमें से हो कर परीबानू के महल को रास्ता जाता था, केवल उस व्यक्ति को मिलता था जिसे परीबानू बुलाना चाहती थी। जादूगरनी ने मन में सोचा कि इस बार का श्रम व्यर्थ ही गया।


उसने लौट कर बादशाह से भेंट की और कहा, सरकार मैंने बहुत कोशिश की लेकिन पूरी सफलता मुझे नहीं मिली। हाँ, मेरी तलाश की शुरुआत जरूर हो गई है। अगर आप अनुमति दें तो अगले महीने अहमद के यहाँ से वापस जाने के समय आपके आदेशों का पालन करूँ। आशा है इस बार मुझे पूरी सफलता मिलेगी। बादशाह ने कहा, अच्छा, अगले महीने ही सही। लेकिन ध्यान रहे कि अगले महीने तुम्हें पूरे तौर पर पता लगाना है कि अहमद कहाँ रहता है, कैसे रहता है और उसे इतना साज-सामान कहाँ से मिलता है। यह कह कर बादशाह ने एक कीमती हीरा जादूगरनी को दिया और कहा, जिस दिन तुमने अहमद का पूरा हाल मुझे बताया मैं सारी जिंदगी के लिए तुम्हें मालामाल कर दूँगा।


जादूगरनी ने एक महीने तक अपने घर में बैठ कर प्रतीक्षा की क्योंकि अहमद को अगले महीने ही आना था। इस बीच उसने अपनी योजना पूरी तरह बना ली क्योंकि अब उसे मालूम हो गया था कि शहजादे के साथ कुछ जिन्नों-परियों का चक्कर है। अगले महीने वह अहमद के आने के एक दिन पहले वह उस पहाड़ की चोटी पर चढ़ाव के बगल में बैठ गई। जब शहजादा अपने सेवकों के साथ लोहे के दरवाजे से हो कर जादूगरनी के पास से निकला तो उसे कोई प्रस्तर शिला समझा क्योंकि वह गुदड़ी ओढ़े गुड़ी-मुड़ी हुई पड़ी थी। अहमद पास आया तो वह जोरों से हाय-हाय करने लगी जैसे कोई दुखी व्यक्ति सहारा चाहता है। जादूगरनी महाधूर्त थी, वह और अधिक रोने-चिल्लाने लगी। शहजादे को उस पर और दया आई और उसके पास चला गया। जब उसने शहजादे की दया भावना को काफी उभार दिया तो ठंडी साँस ले कर बोलने लगी।


उसने कहा, मैं अपने घर से निकली थी इस इरादे से कि सामनेवाले गाँव में जाऊँ क्योंकि मुझे आवश्यक गृह कार्य करना था। रास्ते में मुझे जोर से सर्दी लग कर बुखार चढ़ आया और मैं विवश हो कर यहीं गिर पड़ी। मुझे लगता है कि मैं इसी निर्जन स्थान में प्राण दे दूँगी। शहजादे ने कहा, यहाँ आसपास कोई बस्ती नहीं है। पास में केवल एक भवन है। मैं तुझे वहाँ पहुँचा दूँगा। तू उठ कर मेरे पास आ जा। बुढ़िया ठंडी साँस भर कर बोली, मुझमें इतना दम नहीं है बेटा जो मैं खुद उठ सकूँ। मुझे तो कोई उठा कर ले चले तो ले चले। वह जानती थी कि किसी जिन्न के साथ ही वह उस रहस्यमय भवन में जा सकती है।


शहजादी ने एक सवार को आदेश दिया कि बुढ़िया को उठा कर अपने घोड़े पर रख लो और मेरे पीछे आओ। सवार ने बुढ़िया को उठा लिया तो अहमद ने परीबानू को आवाज दी। वह आई और पूछने लगी कि तुम तो पिता के घर के लिए जा रहे थे, वापस कैसे आ गए। उसने बताया कि रास्ते में सर्दी और ज्वर में मरती हुई यह बुढ़िया मिली और मुझे इस पर दया आई। इसलिए मैं इसे ले आया हूँ कि तुम इसकी देखभाल और इसका उपचार करो। परीबानू ने अपनी दासियों से कहा कि इस बुढ़िया को किसी अच्छी जगह आराम से लिटा दो और हकीम को बुला कर इसकी दवा-दारू करो।


दासियाँ बुढ़िया को उठा ले गईं तो परीबानू ने अहमद से कहा, प्रियतम, तुम्हारी दया भावना को देख कर मुझे बड़ी खुशी हुई और मैं तुम्हारे कहने से उसकी खबरगीरी भी करूँगी। किंतु मुझे डर है कि कहीं इस बुढ़िया के कारण तुम पर कोई मुसीबत न आए।


अहमद ने कारण पूछा तो परीबानू ने कहा, वह कहती तो है कि ऐसी बीमार है कि उठ कर नहीं चल सकती। किंतु उसके चेहरे पर किसी बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देते। मालूम होता है तुम्हारे किसी शत्रु ने तुम्हारे खिलाफ कोई षड्यंत्र किया है। अहमद ने कहा, मेरी प्यारी, भगवान करे तुम युग-युग जियो। किंतु तुम आश्वस्त रहो कि मेरे विरुद्ध कोई षड्यंत्र नहीं होगा। मैंने कभी किसी का बुरा किया ही नहीं तो कोई मेरे साथ शत्रुता क्यों करेगा। तुम मन से भय निकाल दो, मैं पिता के पास जा रहा हूँ।


यह कह कर अहमद अपने पिता के यहाँ पहुँचा। यद्यपि बादशाह पूरी तरह दुष्ट कर्मचारी के बहकावे में आ चुका था तथापि उसने प्रकट में अहमद के आने पर सदा की भाँति प्रसन्नता व्यक्त की।


उधर परीबानू के महल में वे दासियाँ जो बुढ़िया की सेवा के लिए नियुक्त की गई थीं उसे एक सुंदर आवास में ले गईं। उस मकान में बड़ा कीमती सजावट का सामान था।बुढ़िया ने ऐसा सुंदर दृश्य कभी नहीं देखा था। हर तरफ सोने चांदी की चमक थी। दासियों ने बुढ़िया को एक आरामदेह पलंग पर लिटा दिया। एक दासी उसका बदन दबाने लगी। दूसरी ने एक बर्तन से एक प्याले में एक विशेष अर्क निकाला जिसे ज्वर के रोगियों को पिलाया जाता है। दोनों दासियों ने उस बुढ़िया को उठा कर अर्क पिला दिया। फिर उसके शरीर पर एक लिहाफ डाल कर कहा, अम्मा, अब तुम आराम से सो जाओ। कुछ ही देर में तुम बिल्कुल स्वस्थ हो जाओगी।


दासियाँ यह कह कर चली गईं। बुढ़िया बीमार तो थी ही नहीं, सिर्फ अहमद का निवास स्थान देखने आई थी। दासियाँ थोड़ी देर में आईं तो वह उठ कर बैठ गई और बोली, तुम स्वामिनी से कह दो कि बुढ़िया बिल्कुल ठीक हो गई है। दवा ने जादू का-सा असर किया है। अब वह आप को आशीर्वाद दे कर और आपसे विदा ले कर जाना चाहती है। दासियाँ उसे सारे सजे-सजाए कक्षों और दालानों से हो कर बाहरी मकान में तख्त पर बैठी परीबानू के पास ले गईं। जिस तख्त पर परीबानू बैठी थी वह रत्न-जटित था और उसके चारों ओर रूपवती दासियाँ परीबानू की सेवा में खड़ी थीं। जादूगरनी इस वैभव से इतनी अभिभूत हुई कि उसकी जबान बंद हो गई और वह परीबानू के पाँवों पर गिर पड़ी।


परीबानू ने जादूगरनी से मृदुल स्वर में कहा, तुम्हारे यहाँ आने से मैं प्रसन्न हुई हूँ। तुम अगर चाहो तो मेरे पूरे महल को देखो। मेरी दासियाँ तुम्हें हर चीज अच्छी तरह दिखाएँगी। जादूगरनी ने परीबानू के सामने की भूमि को चूमा और उससे विदा हुई। परीबानू की दासियों ने पहले उसे महल के सारे भवन विस्तारपूर्वक दिखाए। फिर उसे लोहे के दरवाजे से बाहर का रास्ता दिखाया। जादूगरनी कुछ कदम आगे बढ़ी। थोड़ी दूर जाने के बाद उसने पलट कर देखा ताकि लोहे के दरवाजे की स्थिति को अच्छी तरह याद रख सके लेकिन वह दरवाजा गायब हो गया। जादूगरनी ने इधर-उधर घूम कर उसका पता लगाने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता न मिलनी थी न मिली। इस बात से उसे बड़ी खीझ हुई
Bahut hi khubsurat posts hai Bhai
 

ashish_1982_in

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भाग-१०


बादशाह उसके बहकावे में आ गया और अहमद का हाल जानने के लिए उत्सुक रहने लगा। इसी कर्मचारी के कहने से उसने मंत्री की जानकारी के बगैर ही महल में चोर दरवाजे से जादूगरनी को बुला कर कहा, तुमने अहमद के जीवित होने की बात कहीं थी, वह तो ठीक निकली। अब तुम उसका पूरा हाल मालूम करो। यूँ तो वह हर महीने मुझसे मिलने आता है किंतु मेरे पूछने पर भी अपना हाल नहीं बताता कि कहाँ रहता है, क्या करता है। तुम इस बात का पता लगाओ, जादू से नहीं तो वैसे ही सही। महल के कर्मचारियों को कुछ मालूम नहीं। अहमद यहाँ आया हुआ है, कल सुबह वापस जाएगा। तुम उसके रास्ते में छुप कर बैठो और देखो कहाँ जाता है। फिर सारा हाल आ कर मुझे बताओ।

बादशाह से विदा हो कर जादूगरनी उस जगह पहुँची जहाँ अहमद को तीर मिला था। वह एक गुफा में बैठ कर अहमद के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। दूसरी सुबह अहमद अपने साथियों समेत महल से रवाना हुआ। जब उस गुफा के पास पहुँचा तो जादूगरनी ने देखा कि अहमद और उसके साथ के सवार एक दुर्गम पर्वत पर चढ़ कर दूसरी तरफ उतर रहे हैं। उस रास्ते कोई मनुष्य नहीं जा सकता। जादूगरनी ने सोचा कि निश्चय ही उस ओर कोई बड़ी गुफा हैं, जिसमें जिन्न आदि रहते हैं। वह यह सोच ही रही थी कि शहजादा और उसके सेवक अचानक निगाहों से गायब हो गए। जादूगरनी गुफा से निकल कर अपनी शक्ति भर इधर-उधर फिरी किंतु उसे कुछ पता न चला। उसे वह लोहे का दरवाजा भी नहीं मिला क्योंकि वह द्वार, जिसमें से हो कर परीबानू के महल को रास्ता जाता था, केवल उस व्यक्ति को मिलता था जिसे परीबानू बुलाना चाहती थी। जादूगरनी ने मन में सोचा कि इस बार का श्रम व्यर्थ ही गया।


उसने लौट कर बादशाह से भेंट की और कहा, सरकार मैंने बहुत कोशिश की लेकिन पूरी सफलता मुझे नहीं मिली। हाँ, मेरी तलाश की शुरुआत जरूर हो गई है। अगर आप अनुमति दें तो अगले महीने अहमद के यहाँ से वापस जाने के समय आपके आदेशों का पालन करूँ। आशा है इस बार मुझे पूरी सफलता मिलेगी। बादशाह ने कहा, अच्छा, अगले महीने ही सही। लेकिन ध्यान रहे कि अगले महीने तुम्हें पूरे तौर पर पता लगाना है कि अहमद कहाँ रहता है, कैसे रहता है और उसे इतना साज-सामान कहाँ से मिलता है। यह कह कर बादशाह ने एक कीमती हीरा जादूगरनी को दिया और कहा, जिस दिन तुमने अहमद का पूरा हाल मुझे बताया मैं सारी जिंदगी के लिए तुम्हें मालामाल कर दूँगा।


जादूगरनी ने एक महीने तक अपने घर में बैठ कर प्रतीक्षा की क्योंकि अहमद को अगले महीने ही आना था। इस बीच उसने अपनी योजना पूरी तरह बना ली क्योंकि अब उसे मालूम हो गया था कि शहजादे के साथ कुछ जिन्नों-परियों का चक्कर है। अगले महीने वह अहमद के आने के एक दिन पहले वह उस पहाड़ की चोटी पर चढ़ाव के बगल में बैठ गई। जब शहजादा अपने सेवकों के साथ लोहे के दरवाजे से हो कर जादूगरनी के पास से निकला तो उसे कोई प्रस्तर शिला समझा क्योंकि वह गुदड़ी ओढ़े गुड़ी-मुड़ी हुई पड़ी थी। अहमद पास आया तो वह जोरों से हाय-हाय करने लगी जैसे कोई दुखी व्यक्ति सहारा चाहता है। जादूगरनी महाधूर्त थी, वह और अधिक रोने-चिल्लाने लगी। शहजादे को उस पर और दया आई और उसके पास चला गया। जब उसने शहजादे की दया भावना को काफी उभार दिया तो ठंडी साँस ले कर बोलने लगी।


उसने कहा, मैं अपने घर से निकली थी इस इरादे से कि सामनेवाले गाँव में जाऊँ क्योंकि मुझे आवश्यक गृह कार्य करना था। रास्ते में मुझे जोर से सर्दी लग कर बुखार चढ़ आया और मैं विवश हो कर यहीं गिर पड़ी। मुझे लगता है कि मैं इसी निर्जन स्थान में प्राण दे दूँगी। शहजादे ने कहा, यहाँ आसपास कोई बस्ती नहीं है। पास में केवल एक भवन है। मैं तुझे वहाँ पहुँचा दूँगा। तू उठ कर मेरे पास आ जा। बुढ़िया ठंडी साँस भर कर बोली, मुझमें इतना दम नहीं है बेटा जो मैं खुद उठ सकूँ। मुझे तो कोई उठा कर ले चले तो ले चले। वह जानती थी कि किसी जिन्न के साथ ही वह उस रहस्यमय भवन में जा सकती है।


शहजादी ने एक सवार को आदेश दिया कि बुढ़िया को उठा कर अपने घोड़े पर रख लो और मेरे पीछे आओ। सवार ने बुढ़िया को उठा लिया तो अहमद ने परीबानू को आवाज दी। वह आई और पूछने लगी कि तुम तो पिता के घर के लिए जा रहे थे, वापस कैसे आ गए। उसने बताया कि रास्ते में सर्दी और ज्वर में मरती हुई यह बुढ़िया मिली और मुझे इस पर दया आई। इसलिए मैं इसे ले आया हूँ कि तुम इसकी देखभाल और इसका उपचार करो। परीबानू ने अपनी दासियों से कहा कि इस बुढ़िया को किसी अच्छी जगह आराम से लिटा दो और हकीम को बुला कर इसकी दवा-दारू करो।


दासियाँ बुढ़िया को उठा ले गईं तो परीबानू ने अहमद से कहा, प्रियतम, तुम्हारी दया भावना को देख कर मुझे बड़ी खुशी हुई और मैं तुम्हारे कहने से उसकी खबरगीरी भी करूँगी। किंतु मुझे डर है कि कहीं इस बुढ़िया के कारण तुम पर कोई मुसीबत न आए।


अहमद ने कारण पूछा तो परीबानू ने कहा, वह कहती तो है कि ऐसी बीमार है कि उठ कर नहीं चल सकती। किंतु उसके चेहरे पर किसी बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देते। मालूम होता है तुम्हारे किसी शत्रु ने तुम्हारे खिलाफ कोई षड्यंत्र किया है। अहमद ने कहा, मेरी प्यारी, भगवान करे तुम युग-युग जियो। किंतु तुम आश्वस्त रहो कि मेरे विरुद्ध कोई षड्यंत्र नहीं होगा। मैंने कभी किसी का बुरा किया ही नहीं तो कोई मेरे साथ शत्रुता क्यों करेगा। तुम मन से भय निकाल दो, मैं पिता के पास जा रहा हूँ।


यह कह कर अहमद अपने पिता के यहाँ पहुँचा। यद्यपि बादशाह पूरी तरह दुष्ट कर्मचारी के बहकावे में आ चुका था तथापि उसने प्रकट में अहमद के आने पर सदा की भाँति प्रसन्नता व्यक्त की।


उधर परीबानू के महल में वे दासियाँ जो बुढ़िया की सेवा के लिए नियुक्त की गई थीं उसे एक सुंदर आवास में ले गईं। उस मकान में बड़ा कीमती सजावट का सामान था।बुढ़िया ने ऐसा सुंदर दृश्य कभी नहीं देखा था। हर तरफ सोने चांदी की चमक थी। दासियों ने बुढ़िया को एक आरामदेह पलंग पर लिटा दिया। एक दासी उसका बदन दबाने लगी। दूसरी ने एक बर्तन से एक प्याले में एक विशेष अर्क निकाला जिसे ज्वर के रोगियों को पिलाया जाता है। दोनों दासियों ने उस बुढ़िया को उठा कर अर्क पिला दिया। फिर उसके शरीर पर एक लिहाफ डाल कर कहा, अम्मा, अब तुम आराम से सो जाओ। कुछ ही देर में तुम बिल्कुल स्वस्थ हो जाओगी।


दासियाँ यह कह कर चली गईं। बुढ़िया बीमार तो थी ही नहीं, सिर्फ अहमद का निवास स्थान देखने आई थी। दासियाँ थोड़ी देर में आईं तो वह उठ कर बैठ गई और बोली, तुम स्वामिनी से कह दो कि बुढ़िया बिल्कुल ठीक हो गई है। दवा ने जादू का-सा असर किया है। अब वह आप को आशीर्वाद दे कर और आपसे विदा ले कर जाना चाहती है। दासियाँ उसे सारे सजे-सजाए कक्षों और दालानों से हो कर बाहरी मकान में तख्त पर बैठी परीबानू के पास ले गईं। जिस तख्त पर परीबानू बैठी थी वह रत्न-जटित था और उसके चारों ओर रूपवती दासियाँ परीबानू की सेवा में खड़ी थीं। जादूगरनी इस वैभव से इतनी अभिभूत हुई कि उसकी जबान बंद हो गई और वह परीबानू के पाँवों पर गिर पड़ी।


परीबानू ने जादूगरनी से मृदुल स्वर में कहा, तुम्हारे यहाँ आने से मैं प्रसन्न हुई हूँ। तुम अगर चाहो तो मेरे पूरे महल को देखो। मेरी दासियाँ तुम्हें हर चीज अच्छी तरह दिखाएँगी। जादूगरनी ने परीबानू के सामने की भूमि को चूमा और उससे विदा हुई। परीबानू की दासियों ने पहले उसे महल के सारे भवन विस्तारपूर्वक दिखाए। फिर उसे लोहे के दरवाजे से बाहर का रास्ता दिखाया। जादूगरनी कुछ कदम आगे बढ़ी। थोड़ी दूर जाने के बाद उसने पलट कर देखा ताकि लोहे के दरवाजे की स्थिति को अच्छी तरह याद रख सके लेकिन वह दरवाजा गायब हो गया। जादूगरनी ने इधर-उधर घूम कर उसका पता लगाने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता न मिलनी थी न मिली। इस बात से उसे बड़ी खीझ हुई
nice update bhai
 
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