Killerpanditji(pandit)
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Mast update broभाग-११
जादूगरनी शाही महल पहुँची और महल के चोर दरवाजे से, जहाँ से वह साधारणतः महल में जाया करती थी, प्रविष्ट हुई। बादशाह ने उसे अपने कमरे में बुलाया और दासों से एकांत करने को कहा। बादशाह ने कहा, तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ है। मालूम होता है कि इस बार भी तुम्हें सफलता नहीं मिली है। जादूगरनी ने कहा, नहीं सरकार, जिस काम के लिए मैं गई थी वह तो पूरी तरह कर आई। चेहरा उतरने का कारण कुछ और ही है।
फिर उसने विस्तारपूर्वक बताया कि चालाकी से शहजादा अहमद के मन में दया भाव उत्पन्न करके किस तरह उसने उसके निवास स्थान में प्रवेश पाया और वहाँ क्या- क्या देखा। उसने कहा, उस महल की मालिक जो परी है वह आपके बेटे की पत्नी की तरह रहती है। आप शायद यह सुन कर प्रसन्न हुए हों कि आपकी बहू परी है और अहमद को सुख प्राप्त हुआ है। मैं कहती हूँ कि इसके कारण आपका अहित होगा। यह बिल्कुल मुमकिन है कि अहमद आप से दुश्मनी करे। आप शायद यह सोचते होंगे कि अहमद सपूत है और ऐसा नहीं हो सकता कि वह आपसे दुश्मनी ठाने। अहमद स्वभाव का अच्छा है किंतु इस समय वह पूरी तरह परी के बस में है और उसके कहने पर कुछ भी कर सकता है। आप अपनी ओर से होशियार रहें। अब मुझे जाने की अनुमति दी जाए।
बादशाह ने कहा, मैं तुम पर दो कारणों से बहुत प्रसन्न हूँ। एक तो यह कि तुमने मेरे कहने पर वह काम किया जो किसी और व्यक्ति के लिए संभव नहीं था। दूसरे इस कारण कि तुमने मेरे हित के लिए मुझे परामर्श दिया। तुम जाओ, बीच-बीच में मैं तुम्हें जरूरत पड़ने पर बुलाया करूँगा। जादूगरनी ने फर्शी सलाम किया और अपने घर चली गई।
अब बादशाह ने महल के उस प्रमुख कर्मचारी को बुलाया जिसने उसके मन में अहमद के प्रति शंका डाली थी। उसने जादूगरनी द्वारा दी गई सूचना विस्तारपूर्वक उसे बताई और पूछा, अहमद अभी तो कुछ बुरा नहीं सोच रहा है किंतु वह इस स्थिति में है कि जब चाहे मुझ पर हमला कर दे। तुम्हारी राय में मुझे क्या करना चाहिए? प्रधान कर्मचारी ने कहा, हुजूर, मेरी राय में अहमद को मरवाना ठीक न होगा, इससे आपकी बदनामी हो जाएगी। मेरी राय में उसे कैद में डाल देना चाहिए। बादशाह ने कहा, अच्छा, मैं सोचूँगा। प्रधान कर्मचारी विदा हुआ तो बादशाह ने फिर जादूगरनी को उसके घर बुलाया। उसके आने पर कहा कि प्रधान कर्मचारी ने अहमद को कैद में डालने की सलाह दी है। जादूगरनी ने कहा, सरकार, इसमें बड़ा खतरा है। अहमद के साथ आप उसके साथ के अन्य सवारों को भी कैद करेंगे। लेकिन वे जिन्न हैं और जिन्नों को कोई कैद रोक नहीं सकती। वे जा कर परीबानू से कहेंगे और वह अपने पिता से कह कर जिन्नों की पूरी फौज आप पर हमला करने के लिए भिजवा सकती है। आप ऐसा करें कि साँप मरे और लाठी न टूटे। आप अहमद से कहें कि वह एक ऐसा लंबा-चौड़ा डेरा लाए जिसके नीचे सारी फौज आ जाए और वह इतना हलका भी हो कि उसे एक आदमी उठा ले। वह यह माँग पूरी न कर सकेगा और शर्म से आपके पास नहीं आएगा और फिर आप उसके संभावित उत्पात से बचे रहेंगे। और मान लिया कि उसने किसी प्रकार यदि कार्य भी कर दिया तो मैं आपको और चीजें बताऊँगी जिन्हें लाने की आप उससे फरमायश करें। इस तरह आपको जिन्नों द्वारा निर्मित बहुत-सी अजीब चीजें भी मिल जाएँगी और अहमद भी आपकी रोज-रोज की माँग से तंग आ कर आपके पास आना छोड़ देगा और आप उसे मारने या कैद करने की बदनामी से भी बचे रहेंगे।
दूसरे दिन बादशाह ने मंत्री से इस योजना के बारे में सलाह ली। मंत्री चुप रहा। वह जानता था कि बादशाह बुरे सलाहकारों के चक्कर में है और सत्परामर्श नहीं मानेगा। बादशाह ने मूर्खतावश उसकी चुप्पी को सहमति समझा और उसे विदा किया। फिर उसने अहमद को बुलाया जो उस समय तक वहीं ठहरा हुआ था। बादशाह ने हँसते हुए उससे कहा, बेटे, तुमने मुझे अपना भेद नहीं बताया, लेकिन बादशाहों की निगाहों से कोई चीज छुप नहीं सकती। तुम्हारी शादी परी से हुई है, यह सुन कर मुझे बड़ी खुशी हुई है। लेकिन भाई, तुम्हारी बीबी परी है इस बात का मुझे भी तो कुछ लाभ मिलना चाहिए। वह तुम्हें बहुत चाहती है और तुम उससे जो कुछ भी माँगोगे वह तुम्हें खुशी से दे दगी। यह तो तुम जानते ही हो कि मैं अकसर शिकार को जाता हूँ। कभी-कभी शत्रुओं का सामना करने के लिए बहुत-से तंबुओं की जरूरत पड़ती है। इनके ले जाने के लिए सैकड़ों ऊँट और डेरा लगानेवाले भी ले जाने पड़ते हैं। अगर तुम कहोगे तो परी तुम्हें लंबा-चौड़ा डेरा दे देगी कि उसके नीचे सारी फौज आ जाए। साथ ही ऐसा हलका भी होना चाहिए कि उसे एक आदमी, यहाँ तक कि हम-तुम भी उठा सकें।
अहमद ने कहा, मैं अपनी पत्नी से ऐसा डेरा माँगूँगा जरूर लेकिन अभी से यह नहीं कह सकता कि ऐसा डेरा उसके पास है या नहीं। अगर नहीं होगा तो मैं नहीं ला सकूँगा। बादशाह इस पर नाराज हो कर बोला, यह तुम टालमटोल कर रहे हो। तुमसे अपनी पत्नी से कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं है। या फिर उसे तुम्हारी कोई परवा ही नहीं है। वरना इतनी मामूली-सी चीज परी के पास न हो यह कैसे संभव है? अगर तुम डेरा न ला सको तो तुम्हें मेरे पास आने की भी कोई जरूरत नहीं है। मुझे ऐसे बेटे से मिलने में क्या खुशी हो सकती है जो अपनी स्त्री से इतना भयग्रस्त हो कि उससे अपने बाप की जरूरत की एक मामूली चीज भी माँग न सके। अब तुम जाओ, खड़े-खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो?
अहमद को अपने पिता का यह व्यवहार बहुत बुरा लगा। उसे अगले दिन वापस होना था किंतु वह उसी दिन परीबानू के महल को चल पड़ा। वहाँ जा कर भी उसका विषाद कायम रहा। परीबानू ने पूछा, तुम एक दिन जल्दी क्यों आ गए? तुम उदास भी मालूम होते हो। क्या बात है? शहजादा अहमद ने पूरी बात सुनाई। परीबानू की भौंहों पर बल पड़ गए। उसने कहा, उन्हें डेरा जरूर मिलेगा लेकिन जान पड़ता है उनका अंत काल निकट आ गया है। अहमद ने कहा, यह तुम क्या कह रही हो। अभी वे वर्षों तक राज करेंगे। उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा है और उन्हें कोई रोग-शोक नहीं है। वे बड़े चैतन्य भी हैं। तुम्हारे कहने के अनुसार मैंने यहाँ का हाल उन्हें या किसी को भी नहीं बताया था। फिर भी उन्हें मालूम है कि मेरा विवाह परी से हुआ है।
परीबानू बोली, प्यारे, तुम्हें याद है कि मैंने उस बुढ़िया को देख कर, जिसे तुम बीमार समझ कर उठा लाए थे, क्या कहा था, वह बीमार नहीं थी। वह बीमारी का बहाना बना करके यहाँ का हालचाल देखने के लिए आई थी। उसी ने यहाँ का सारा हाल बादशाह से कहा है। जब तुम उसे यहाँ छोड़ गए तो मैंने उसके लिए एक मामूली अर्क भेजा जो किसी रोग की दवा नहीं थी। वह उसे पीते ही उठ बैठी और कुछ देर बाद विदा लेने के लिए मेरे पास आई। मैंने उसकी और परीक्षा लेने के लिए उसे अपने सारे भवन विस्तारपूर्वक दिखाए। उसने बड़े ध्यान से सब कुछ देखा, मामूली बुढ़िया होती तो अपने गंतव्य स्थान को जाने की जल्दी में होती। यहाँ का हाल उसके सिवा किसी को मालूम ही नहीं हो सकता। उसी ने कहा होगा।
अहमद ने कहा, तुम वास्तव में बड़ी होशियार हो। लेकिन डेरे के लिए बताओ क्या करूँ। परीबानू ने कहा, मामूली चीज है, अभी मँगाती हूँ। उसके कहने पर एक दासी मुट्ठी में बंद करके डेरा ले आई। अहमद के हाथ में उसने उसे दिया तो अहमद परीबानू से बोला, मजाक क्यों करती हो? इसी डेरे के नीचे फौज आएगी? परीबानू ने मुस्कुरा कर दासी से कहा, नूरजहाँ, यह समझते हैं कि मैं इनसे मजाक कर रही हूँ। तू इन्हें बाहर ले जा कर डेरे का विस्तार तो दिखा दे। नूरजहाँ ने डेरा मुट्ठी में दबाया और शहजादे को ले कर महल से बहुत दूर एक लंबे-चौड़े मैदान में गई। उसने शहजादे को डेरा खड़ा करने की तरकीब बताई और फिर डेरे को खड़ा कर दिया। अहमद ने देखा कि उसने नीचे एक क्या दो फौजें आ जाएँ।
नूरजहाँ ने डेरा तह किया और शहजादे के साथ अंदर आई। अहमद ने कहा, कहो तो इसे अभी ले जा कर पिता को दे दूँ। परीबानू ने कहा, ऐसी क्या जल्दी है। अगले महीने अपने निश्चित समय पर जाना। शहजादा मान गया। अगले महीने वह राजधानी में गया तो महल के अंत:पुर में जाने के बजाय सीधे दरबार में पहुँचा। बादशाह ने व्यंग्यपूर्वक पूछा, मेरी चीज तो ले ही आए होगे। अहमद ने कहा, आपके चरणों के प्रताप से ले आया हूँ। अभी बाहर चल कर इसे देख लें। अभी आपको मेरी मुट्ठी देख कर विश्वास नहीं हो पा रहा होगा। बादशाह और दरबारी बड़े मैदान में गए जहाँ अहमद ने डेरा खड़ा कर दिया। सभी की आँखें फट गईं। बादशाह ने अहमद की बड़ी प्रशंसा की और उसे आराम करने को कहा।
किंतु वास्तव में उसकी घबराहट बढ़ गई थी। वह सोच रहा था कि वाकई अहमद की शक्ति अत्यधिक है और वह कुछ शंकित भी हो गया है। उसने महल में जा कर फिर जादूगरनी को बुलाया और कहा, अब क्या करूँ? अहमद तो अपनी मुट्ठी में ऐसा डेरा ले आया जिस में एक क्या दो सेनाएँ आसानी से समा जाएँ। उसने कुछ सोच कर कहा, अब की बार अहमद से चश्म-ए-शेराँ का पानी लाने को कहें जिसकी कुछ बूँदें पीने से आदमी हमेशा जवान और तंदुरुस्त रहता है।
दूसरे दिन उसने दरबार में अहमद को बुलाया और कहा, बेटे, तुमने बड़ा डेरा ला कर मेरी एक बड़ी जरूरत पूरी कर दी किंतु अब दूसरी जरूरत भी पूरी करो। मेरा बुढ़ापा आ रहा है और रोग भी उत्पन्न हो रहे हैं। अगर तुम अपनी पत्नी की सहायता से मेरे लिए चश्म-ए-शेराँ का स्वास्थ्यवर्धक पानी ला सको तो बड़ी अच्छी बात हो। अहमद कुढ़ गया कि एक चीज पाते ही दूसरी अलभ्य वस्तु माँग बैठे। वह यह भी सोच रहा था कि परीबानू के लिए असंभव तो यह भी न होगा लकिन वह इन फरमाइशों से चिढ़ेगी जरूर। उसने थोड़ी देर तक सोच कर कहा, आज्ञाकारी पुत्र की हैसियत से मुझे आपकी आज्ञा के पालन में खुशी होगी। लेकिन मैं वादा नहीं कर सकता। पत्नी से सलाह लूँगा और यदि संभव होगा तो वह जल आपकी सेवा में अर्पित करूँगा।
अहमद दूसरे दिन ही परीबानू के महल की ओर चल पड़ा। परीबानू के सामने जा कर बोला, डेरा पा कर मेरे पिता ने तुम्हारा बड़ा अहसान माना है। लेकिन एक नई फरमाइश भी कर दी है। उन्होंने चश्म-ए-शेराँ का स्वास्थ्यवर्धक जल माँगा है। मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि यह चश्माए-शेराँ क्या बला है। परीबानू ने कहा, मालूम होता है कि तुम्हारे पिता ने तुम्हें तंग करने पर कमर कस ली है। इसीलिए अजीब चीजें मँगाते हैं। अब की बार उन्होंने वह चीज मँगाई है जो जिन्न भी आसानी से न ला सकें। खैर तुम चिंता न करो। मैं तुम्हें बताऊँगी कि चश्म-ए-शेराँ तक कैसे पहुँचो और वह पानी कैसे लाओ।
Very nice updateभाग-११
जादूगरनी शाही महल पहुँची और महल के चोर दरवाजे से, जहाँ से वह साधारणतः महल में जाया करती थी, प्रविष्ट हुई। बादशाह ने उसे अपने कमरे में बुलाया और दासों से एकांत करने को कहा। बादशाह ने कहा, तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ है। मालूम होता है कि इस बार भी तुम्हें सफलता नहीं मिली है। जादूगरनी ने कहा, नहीं सरकार, जिस काम के लिए मैं गई थी वह तो पूरी तरह कर आई। चेहरा उतरने का कारण कुछ और ही है।
फिर उसने विस्तारपूर्वक बताया कि चालाकी से शहजादा अहमद के मन में दया भाव उत्पन्न करके किस तरह उसने उसके निवास स्थान में प्रवेश पाया और वहाँ क्या- क्या देखा। उसने कहा, उस महल की मालिक जो परी है वह आपके बेटे की पत्नी की तरह रहती है। आप शायद यह सुन कर प्रसन्न हुए हों कि आपकी बहू परी है और अहमद को सुख प्राप्त हुआ है। मैं कहती हूँ कि इसके कारण आपका अहित होगा। यह बिल्कुल मुमकिन है कि अहमद आप से दुश्मनी करे। आप शायद यह सोचते होंगे कि अहमद सपूत है और ऐसा नहीं हो सकता कि वह आपसे दुश्मनी ठाने। अहमद स्वभाव का अच्छा है किंतु इस समय वह पूरी तरह परी के बस में है और उसके कहने पर कुछ भी कर सकता है। आप अपनी ओर से होशियार रहें। अब मुझे जाने की अनुमति दी जाए।
बादशाह ने कहा, मैं तुम पर दो कारणों से बहुत प्रसन्न हूँ। एक तो यह कि तुमने मेरे कहने पर वह काम किया जो किसी और व्यक्ति के लिए संभव नहीं था। दूसरे इस कारण कि तुमने मेरे हित के लिए मुझे परामर्श दिया। तुम जाओ, बीच-बीच में मैं तुम्हें जरूरत पड़ने पर बुलाया करूँगा। जादूगरनी ने फर्शी सलाम किया और अपने घर चली गई।
अब बादशाह ने महल के उस प्रमुख कर्मचारी को बुलाया जिसने उसके मन में अहमद के प्रति शंका डाली थी। उसने जादूगरनी द्वारा दी गई सूचना विस्तारपूर्वक उसे बताई और पूछा, अहमद अभी तो कुछ बुरा नहीं सोच रहा है किंतु वह इस स्थिति में है कि जब चाहे मुझ पर हमला कर दे। तुम्हारी राय में मुझे क्या करना चाहिए? प्रधान कर्मचारी ने कहा, हुजूर, मेरी राय में अहमद को मरवाना ठीक न होगा, इससे आपकी बदनामी हो जाएगी। मेरी राय में उसे कैद में डाल देना चाहिए। बादशाह ने कहा, अच्छा, मैं सोचूँगा। प्रधान कर्मचारी विदा हुआ तो बादशाह ने फिर जादूगरनी को उसके घर बुलाया। उसके आने पर कहा कि प्रधान कर्मचारी ने अहमद को कैद में डालने की सलाह दी है। जादूगरनी ने कहा, सरकार, इसमें बड़ा खतरा है। अहमद के साथ आप उसके साथ के अन्य सवारों को भी कैद करेंगे। लेकिन वे जिन्न हैं और जिन्नों को कोई कैद रोक नहीं सकती। वे जा कर परीबानू से कहेंगे और वह अपने पिता से कह कर जिन्नों की पूरी फौज आप पर हमला करने के लिए भिजवा सकती है। आप ऐसा करें कि साँप मरे और लाठी न टूटे। आप अहमद से कहें कि वह एक ऐसा लंबा-चौड़ा डेरा लाए जिसके नीचे सारी फौज आ जाए और वह इतना हलका भी हो कि उसे एक आदमी उठा ले। वह यह माँग पूरी न कर सकेगा और शर्म से आपके पास नहीं आएगा और फिर आप उसके संभावित उत्पात से बचे रहेंगे। और मान लिया कि उसने किसी प्रकार यदि कार्य भी कर दिया तो मैं आपको और चीजें बताऊँगी जिन्हें लाने की आप उससे फरमायश करें। इस तरह आपको जिन्नों द्वारा निर्मित बहुत-सी अजीब चीजें भी मिल जाएँगी और अहमद भी आपकी रोज-रोज की माँग से तंग आ कर आपके पास आना छोड़ देगा और आप उसे मारने या कैद करने की बदनामी से भी बचे रहेंगे।
दूसरे दिन बादशाह ने मंत्री से इस योजना के बारे में सलाह ली। मंत्री चुप रहा। वह जानता था कि बादशाह बुरे सलाहकारों के चक्कर में है और सत्परामर्श नहीं मानेगा। बादशाह ने मूर्खतावश उसकी चुप्पी को सहमति समझा और उसे विदा किया। फिर उसने अहमद को बुलाया जो उस समय तक वहीं ठहरा हुआ था। बादशाह ने हँसते हुए उससे कहा, बेटे, तुमने मुझे अपना भेद नहीं बताया, लेकिन बादशाहों की निगाहों से कोई चीज छुप नहीं सकती। तुम्हारी शादी परी से हुई है, यह सुन कर मुझे बड़ी खुशी हुई है। लेकिन भाई, तुम्हारी बीबी परी है इस बात का मुझे भी तो कुछ लाभ मिलना चाहिए। वह तुम्हें बहुत चाहती है और तुम उससे जो कुछ भी माँगोगे वह तुम्हें खुशी से दे दगी। यह तो तुम जानते ही हो कि मैं अकसर शिकार को जाता हूँ। कभी-कभी शत्रुओं का सामना करने के लिए बहुत-से तंबुओं की जरूरत पड़ती है। इनके ले जाने के लिए सैकड़ों ऊँट और डेरा लगानेवाले भी ले जाने पड़ते हैं। अगर तुम कहोगे तो परी तुम्हें लंबा-चौड़ा डेरा दे देगी कि उसके नीचे सारी फौज आ जाए। साथ ही ऐसा हलका भी होना चाहिए कि उसे एक आदमी, यहाँ तक कि हम-तुम भी उठा सकें।
अहमद ने कहा, मैं अपनी पत्नी से ऐसा डेरा माँगूँगा जरूर लेकिन अभी से यह नहीं कह सकता कि ऐसा डेरा उसके पास है या नहीं। अगर नहीं होगा तो मैं नहीं ला सकूँगा। बादशाह इस पर नाराज हो कर बोला, यह तुम टालमटोल कर रहे हो। तुमसे अपनी पत्नी से कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं है। या फिर उसे तुम्हारी कोई परवा ही नहीं है। वरना इतनी मामूली-सी चीज परी के पास न हो यह कैसे संभव है? अगर तुम डेरा न ला सको तो तुम्हें मेरे पास आने की भी कोई जरूरत नहीं है। मुझे ऐसे बेटे से मिलने में क्या खुशी हो सकती है जो अपनी स्त्री से इतना भयग्रस्त हो कि उससे अपने बाप की जरूरत की एक मामूली चीज भी माँग न सके। अब तुम जाओ, खड़े-खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो?
अहमद को अपने पिता का यह व्यवहार बहुत बुरा लगा। उसे अगले दिन वापस होना था किंतु वह उसी दिन परीबानू के महल को चल पड़ा। वहाँ जा कर भी उसका विषाद कायम रहा। परीबानू ने पूछा, तुम एक दिन जल्दी क्यों आ गए? तुम उदास भी मालूम होते हो। क्या बात है? शहजादा अहमद ने पूरी बात सुनाई। परीबानू की भौंहों पर बल पड़ गए। उसने कहा, उन्हें डेरा जरूर मिलेगा लेकिन जान पड़ता है उनका अंत काल निकट आ गया है। अहमद ने कहा, यह तुम क्या कह रही हो। अभी वे वर्षों तक राज करेंगे। उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा है और उन्हें कोई रोग-शोक नहीं है। वे बड़े चैतन्य भी हैं। तुम्हारे कहने के अनुसार मैंने यहाँ का हाल उन्हें या किसी को भी नहीं बताया था। फिर भी उन्हें मालूम है कि मेरा विवाह परी से हुआ है।
परीबानू बोली, प्यारे, तुम्हें याद है कि मैंने उस बुढ़िया को देख कर, जिसे तुम बीमार समझ कर उठा लाए थे, क्या कहा था, वह बीमार नहीं थी। वह बीमारी का बहाना बना करके यहाँ का हालचाल देखने के लिए आई थी। उसी ने यहाँ का सारा हाल बादशाह से कहा है। जब तुम उसे यहाँ छोड़ गए तो मैंने उसके लिए एक मामूली अर्क भेजा जो किसी रोग की दवा नहीं थी। वह उसे पीते ही उठ बैठी और कुछ देर बाद विदा लेने के लिए मेरे पास आई। मैंने उसकी और परीक्षा लेने के लिए उसे अपने सारे भवन विस्तारपूर्वक दिखाए। उसने बड़े ध्यान से सब कुछ देखा, मामूली बुढ़िया होती तो अपने गंतव्य स्थान को जाने की जल्दी में होती। यहाँ का हाल उसके सिवा किसी को मालूम ही नहीं हो सकता। उसी ने कहा होगा।
अहमद ने कहा, तुम वास्तव में बड़ी होशियार हो। लेकिन डेरे के लिए बताओ क्या करूँ। परीबानू ने कहा, मामूली चीज है, अभी मँगाती हूँ। उसके कहने पर एक दासी मुट्ठी में बंद करके डेरा ले आई। अहमद के हाथ में उसने उसे दिया तो अहमद परीबानू से बोला, मजाक क्यों करती हो? इसी डेरे के नीचे फौज आएगी? परीबानू ने मुस्कुरा कर दासी से कहा, नूरजहाँ, यह समझते हैं कि मैं इनसे मजाक कर रही हूँ। तू इन्हें बाहर ले जा कर डेरे का विस्तार तो दिखा दे। नूरजहाँ ने डेरा मुट्ठी में दबाया और शहजादे को ले कर महल से बहुत दूर एक लंबे-चौड़े मैदान में गई। उसने शहजादे को डेरा खड़ा करने की तरकीब बताई और फिर डेरे को खड़ा कर दिया। अहमद ने देखा कि उसने नीचे एक क्या दो फौजें आ जाएँ।
नूरजहाँ ने डेरा तह किया और शहजादे के साथ अंदर आई। अहमद ने कहा, कहो तो इसे अभी ले जा कर पिता को दे दूँ। परीबानू ने कहा, ऐसी क्या जल्दी है। अगले महीने अपने निश्चित समय पर जाना। शहजादा मान गया। अगले महीने वह राजधानी में गया तो महल के अंत:पुर में जाने के बजाय सीधे दरबार में पहुँचा। बादशाह ने व्यंग्यपूर्वक पूछा, मेरी चीज तो ले ही आए होगे। अहमद ने कहा, आपके चरणों के प्रताप से ले आया हूँ। अभी बाहर चल कर इसे देख लें। अभी आपको मेरी मुट्ठी देख कर विश्वास नहीं हो पा रहा होगा। बादशाह और दरबारी बड़े मैदान में गए जहाँ अहमद ने डेरा खड़ा कर दिया। सभी की आँखें फट गईं। बादशाह ने अहमद की बड़ी प्रशंसा की और उसे आराम करने को कहा।
किंतु वास्तव में उसकी घबराहट बढ़ गई थी। वह सोच रहा था कि वाकई अहमद की शक्ति अत्यधिक है और वह कुछ शंकित भी हो गया है। उसने महल में जा कर फिर जादूगरनी को बुलाया और कहा, अब क्या करूँ? अहमद तो अपनी मुट्ठी में ऐसा डेरा ले आया जिस में एक क्या दो सेनाएँ आसानी से समा जाएँ। उसने कुछ सोच कर कहा, अब की बार अहमद से चश्म-ए-शेराँ का पानी लाने को कहें जिसकी कुछ बूँदें पीने से आदमी हमेशा जवान और तंदुरुस्त रहता है।
दूसरे दिन उसने दरबार में अहमद को बुलाया और कहा, बेटे, तुमने बड़ा डेरा ला कर मेरी एक बड़ी जरूरत पूरी कर दी किंतु अब दूसरी जरूरत भी पूरी करो। मेरा बुढ़ापा आ रहा है और रोग भी उत्पन्न हो रहे हैं। अगर तुम अपनी पत्नी की सहायता से मेरे लिए चश्म-ए-शेराँ का स्वास्थ्यवर्धक पानी ला सको तो बड़ी अच्छी बात हो। अहमद कुढ़ गया कि एक चीज पाते ही दूसरी अलभ्य वस्तु माँग बैठे। वह यह भी सोच रहा था कि परीबानू के लिए असंभव तो यह भी न होगा लकिन वह इन फरमाइशों से चिढ़ेगी जरूर। उसने थोड़ी देर तक सोच कर कहा, आज्ञाकारी पुत्र की हैसियत से मुझे आपकी आज्ञा के पालन में खुशी होगी। लेकिन मैं वादा नहीं कर सकता। पत्नी से सलाह लूँगा और यदि संभव होगा तो वह जल आपकी सेवा में अर्पित करूँगा।
अहमद दूसरे दिन ही परीबानू के महल की ओर चल पड़ा। परीबानू के सामने जा कर बोला, डेरा पा कर मेरे पिता ने तुम्हारा बड़ा अहसान माना है। लेकिन एक नई फरमाइश भी कर दी है। उन्होंने चश्म-ए-शेराँ का स्वास्थ्यवर्धक जल माँगा है। मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि यह चश्माए-शेराँ क्या बला है। परीबानू ने कहा, मालूम होता है कि तुम्हारे पिता ने तुम्हें तंग करने पर कमर कस ली है। इसीलिए अजीब चीजें मँगाते हैं। अब की बार उन्होंने वह चीज मँगाई है जो जिन्न भी आसानी से न ला सकें। खैर तुम चिंता न करो। मैं तुम्हें बताऊँगी कि चश्म-ए-शेराँ तक कैसे पहुँचो और वह पानी कैसे लाओ।