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Romance मेरी प्यारी जिन्नी (Completed)

ashish_1982_in

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भाग - ९




सारे नगर निवासी और गणमान्य लोग शहजादे को देख कर बड़े प्रसन्न और आश्चर्य हुए। वे अपना कामकाज छोड़ कर शहजादे को देखने और उसे आशीर्वाद देने को आ गए। शहजादे की शान और शौकत देखकर सभी बड़े आश्चर्य में थे । दूर दूर तक शेहजादे से आ रही मधुर सुगंध हवा में फेल चुकी थी, अब शहजादे को जो भी देखता तो देखता ही रह जाता । शहजादा एक दम बदल गया था । शहजादे के लिबास इस तरह थे के उसकी चमक रात की काल स्याह में भी दिन का उजाला करदे। शहजादे का चेहरा एक दम नूर से जगमगा रहा था , और वहा खड़ी सभी स्त्रियां तो शहजादे कि एक झलक में ही दीवानी हो गई थी। शाही महल तक सड़क के दोनों ओर भीड़ लग गई। दरबार में पहुँच कर शहजादा पिता के चरणों में गिरा और बादशाह ने उसे उठा कर हृदय से लगाया। लेकिन जैसे ही बादशाह ने शहजादे को देखा तो देखता ही रह गया । तभी शहजादे ने शांति भंग करते हुए कहा, क्या हुआ पिताजी ऐसे क्या देख रहे है। तभी बादशाह का ध्यान भटका और उसने बात बदलती , बादशाह ने कहा, तुम नूरुन्निहार के न मिलने से इतने रुष्ट हुए कि घर छोड़ कर ही चले गए। अब कहाँ हो और अब तक कैसे रहे? अहमद ने कहा, मैं दुखी जरूर था कि नूरुन्निहार को नहीं पा सका किंतु रुष्ट नहीं था। मैं अपना फेंका हुआ तीर ढूँढ़ता हुआ उसी दिशा में बहुत दूर निकल गया। मैं आगे बढ़ता गया। यद्यपि मैं जानता था कि मेरा ही क्या संसार के किसी भी धनुर्धर का तीर इतनी दूर नहीं पहुँच सकता तथापि मैं तीर की तलाश में आगे बढ़ता गया क्योंकि यह भी स्पष्ट था कि तीर एक ही दिशा में गया होगा, दाएँ-बाएँ तो जा नहीं सकता। अंत में यहाँ से लगभग चार सौ कोस दूरी पर मैंने अपने तीर को एक चट्टान से चिपका हुआ पाया। यह देख कर मैं समझ गया कि तीर इतनी दूर अपने आप नहीं आया है, उसे किसी रहस्यमय शक्ति ने यहाँ किसी उद्देश्य से पहुँचाया है। उसी शक्ति ने प्रेरणा दे कर मुझे एक ऐसे स्थान पर पहुँचाया जहाँ मैं इस समय भी बड़े आनंद से रहता हूँ। इससे अधिक विवरण मैं नहीं दे सकूँगा। मैं केवल आपके मन को अपने संबंध में धैर्य देने के लिए आया हूँ, दो-एक दिन रह कर वापस चला जाऊँगा। कभी-कभी आपके दर्शन के लिए आया करूँगा।


बादशाह ने कहा, तुम्हारी खुशी है। तुम जहाँ चाहो आराम से रहो। मुझे इस बात से बड़ी प्रसन्नता है कि तुम जहाँ भी रह रहे हो प्रसन्नता से रह रहे हो। लेकिन अगर तुम्हें आने में देर लगी तो मैं तुम्हारा समाचार किस प्रकार प्राप्त कर सकूँगा? अहमद ने निवेदन किया, यदि आपका तात्पर्य यह है कि मैं अपने निवास आदि का रहस्य बताऊँ तो मैं पहले ही निवेदन कर चुका हूँ कि जितना मैंने बता दिया है उसके अतिरिक्त कुछ भी बताने की स्थिति में मैं नहीं हूँ। आप इत्मीनान रखें मैं जल्दी-जल्दी आया करूँगा।


बादशाह ने कहा, बेटा, मेरी इच्छा किसी रहस्य को जानने की नहीं है। मैं तो केवल तुम्हारी कुशलक्षेम से आश्वस्त होना चाहता था। तुम्हारा हाल मिलता रहे यही काफी है। तुम जब चाहो आओ जब चाहो जाओ। अतएव अहमद तीन दिन तक शाही महल में रहा।


महल में रहने के पश्चात उसने सभी का में मोह लिया था वहा पर मौजूद बड़ी बड़ी राजकुमारियां जो अत एवं आती रहती थी नुरुनन्निहार से मिलने के लिए , वो भी शहजादे के रंग रूप को अपने ह्रदय में उतार चुकी थी l सभी का दिल अब शहजादे पर आ चूका था , और अब शहजादा अहमद ही एक विषय था जिसपर सभी राजकुमारियां बाते करते नहीं थकती थी, तभी एक राजकुमारी ने नुरुनन्निहार से कहा, जब शहजादा इतना दिलनशीन है तो उससे विवाह जिसने किया होगा वो कितनी जानिसार होगी जिसपर नुरुनन्निहार जल भुन के रह गई और कुछ ना कह सकी। चौथे दिन शहजादा अपने निवास स्थान को रवाना हुआ। परीबानू उसकी वापसी पर बहुत प्रसन्न हुई। उसने फौरन ही जिन्नों को अकेले में बुलाया और शहजादे के साथ जो कुछ हुआ सब पूछा । जिसमें जिन्नों ने यह बताया कि कैसे राज्य की सभी राजकुमारियां शहजादे की दीवानी हो चली थी परन्तु शहजादे ने किसी एक कि और आंख उठाकर भी नहीं देखा । मालूम पड़ता है कि आपकी सुंदरता से ज्यादा वो आपकी मोहब्बत का कायल है। बहुत खुसनसीब है आप जो आपको ऐसा पति मिला जिसे सुनकर परीबानू को अपने आप पर गर्व महसूस हुआ । उस रात्रि ने परीबानू ने शहजादे को इतना प्यार किया की वो अपने अस्तित्व को ही भूल गया। परीबानू ने उस रात्रि शहजादे की सबसे लंबी और यादगार रात्रि बना दिया। उस रात के बाद अब वो अपने शहजादे को और ज्यादा प्यार और लाड करने लगी । ऐसे ही दोनों अपने प्रेमपूर्वक जीवन का आनंद उठाने लगे। एक महीना पूरा होने पर भी जब शहजादा अपने पिता से मिलने नहीं गया तो परीबानू ने पूछा कि तुम तो कहते थे कि महीने-महीने पिता से मिलने जाऊँगा, इस बार क्यों नहीं गए। अहमद ने कहा, मैंने सोचा शायद अबकी बार तुम जाने की अनुमति न दो।


परीबानू को अब अपने पति पर पूरा विश्वास हो चला था परीबानू हँस कर बोली, मेरी अनुमति पर इतना निर्भर न रहो। महीने-महीने मुझे पूछे बगैर ही पिता के पास हो आया करो। अतएव शहजादा दूसरे दिन सुबह बड़ी धूमधाम से अपने पिता के पास गया और तीन दिन वहाँ रहा। इसके बाद उसका नियम हो गया कि हर महीने शाही महल में जाता, तीन दिन वहाँ रहता और इसके बाद परीबानू के महल में आ जाता। उसके शाही महल में आगमन की तड़क-भड़क हर बार बढ़ती ही जाती थी।


यह देख कर महल का एक प्रधान कर्मचारी, जो बादशाह के मुँह लगा हुआ था, शहजादे की सवारी की बढ़ती हुई शान-शौकत से आश्चर्य में पड़ा। उसके एक घोड़े कि कीमत ही उस पूरे महल के बराबर थी । बह यह सोचने लगा कि शहजादे का विचित्र रहस्य मालूम होता है। कुछ पता नहीं कि वह कहाँ रहता है और वह ऐश्वर्य उसे कहाँ से मिला है। वह मन का नीच भी था इसलिए बादशाह को बहकाने लगा। उसने कहा, सरकार अपनी ओर से असावधान रहते हैं। आपने कभी ध्यान दिया है कि आपके पुत्र का ऐश्वर्य बढ़ता ही जाता है। उसकी शक्ति ऐसे ही बढ़ती रही तो एक दिन यह भी संभव है कि आप पर आक्रमण करके आपका राज्य हथिया ले और आपको कैद कर ले। जब से आपने नूरुन्निहार को शहजादा अली से ब्याहा है तब से शहजादा हुसैन और शहजादा अहमद अत्यंत अप्रसन्न हैं। शहजादा हुसैन ने तो फकीरी बाना ओढ़ लिया, वह चाहे भी तो आप की कुछ हानि नहीं कर सकता लेकिन कहीं अहमद आपसे बदला न ले। उसका तो एक घोड़ा तक आप अपने पूरे महल को बेचकर नहीं खरीद सकते, तो भला उसके सैनिकों से कैसे लड़ेंगे ।
very nice update bhai
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Bhai sahab abhi tak ki aspki kahani padhi. Badi hi rahasy-o romanch se bhari hui h. Maza aaya.
Agle update ke intzaar me..
 
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