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Romance मेरी प्यारी जिन्नी (Completed)

ashish_1982_in

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भाग ८




शहजादा बहुत ही समझदार था उसे पता था कि परीबानू को केसे अपनी बातों में लेना है। शहजादे ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और चूम कर कहा, ऐसी बात मेरे मन में आ नहीं सकती। मुझे सिर्फ यह ख्याल है कि मेरे बूढ़े बाप मेरे अचानक गायब हो जाने से बहुत परेशान होंगे। मैंने तो पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ कि जीवन भर तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा। मुझे सिर्फ अपने पिता के दुख का ख्याल है इसलिए जाना चाहता था। अगर तुम नहीं चाहती तो जाने दो, वहाँ नहीं जाऊँगा। परीबानू ने देखा कि शहजादा सच्चे दिल से यह बातें कर रहा है और पत्नी का प्यार उसके दिल से कम नहीं हुआ है। उसने बड़े प्यार से कहा । मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। सचमुच ही तुम्हारे पिता तुम्हारी अनुपस्थिति से बहुत दुखी होंगे। तुम उन्हें देखने जरूर जाओ किंतु जल्दी लौटना।
अगर तुम यहां ना आए तो में वहा आ जाऊंगी और इसका परिणाम सभी भुगतेंगे। अहमद ने इस बात पे अपनी हामी भरदी।



उधर अहमद के पिता यानी हिंदोस्तान के बादशाह का हृदय वास्तव में बहुत दुखी रहता था। उसका एक बेटा नूरुन्निहार से विवाह करके अति सुख से रहता था और इसका बादशाह को संतोष था किंतु हुसैन और अहमद के चले जाने से उसे हृदयविदारक कष्ट भी था। अली के विवाह के दो-चार दिन बाद उसने महल के कर्मचारियों से पूछा कि हुसैन और अहमद क्यों नहीं दिखाई देते। उन्होंने कहा, शहजादा हुसैन तो संसार त्याग करके ईश्वर की खोज में फकीर बन कर निकल गए हैं लेकिन शहजादा अहमद अचानक न मालूम कहाँ गायब हो गए हैं। बादशाह ने शहजादा अहमद की खोज में बहुत घौदे दौड़ाए किंतु शहजादे का पता किसी को न चल सका। बादशाह बड़ा चिंतित हुआ।


एक दिन उसे मालूम हुआ कि इसी शहर में एक होशियार जादूगरनी रहती है जो तंत्र-विद्या से अज्ञात बातें जान लेती है। बादशाह ने उसे बुला कर कहा, जब से मैंने नूरुन्निहार से शहजादा अली का विवाह किया है शहजादा अहमद का कुछ पता नहीं चलता। मैं इससे बहुत परेशान हूँ। तुम अपने जादू से मुझे बताओ कि अहमद जीवित है या नहीं, जीवित है तो किस दिशा में है और मुझसे उसकी भेंट होगी या नहीं। जादूगरनी ने कहा, इसी क्षण तो मैं कुछ भी न बता सकूँगी। कई क्रियाएँ करनी होती हैं। कल जरूर मैं आपके प्रश्नों का उत्तर दूँगी। बादशाह ने कहा, तुमने ठीक सूचना दी तो तुम्हें मालामाल कर दूँगा। इस समय तुम घर जाओ और जो क्रियाएँ जरूरी हैं वह करो। जादूगरनी दूसरे दिन आ कर बोली, मैंने जादू से यह तो जान लिया है कि शहजादा अहमद सही-सलामत हैं। किंतु वे कहाँ हैं इसका पता नहीं लग सका। मालूम होता है कि कहीं बड़े रहस्यमय स्थान में हैं जिससे मुझे कुछ पता नहीं चलता। बादशाह को इतने से ही बहुत संतोष हुआ कि अहमद जिंदा है।



इधर शहजादा अहमद अपने पिता के घर आने को तैयार हुआ तो परीबानू ने कहा, तुम एक बात का ध्यान जरूर रखना। अपने पिता तथा अन्य संबंधियों, मित्र आदि को यह हरगिज न बताना कि तुम कहाँ रहते हो और कैसे यहाँ पर पहुँचे। तुम सिर्फ यह कहना कि मेरा विवाह हो गया है और मैं जहाँ भी रहता हूँ बड़े सुख और संतोष के साथ रहता हूँ। किसी विचित्र बात का उल्लेख न करना और इसके अलावा कुछ न कहना कि दो-चार दिन के लिए पिता के मन को धैर्य देने को आया हूँ। शहजादे ने इसे स्वीकार किया।


परीबानू ने एक बढ़िया घोड़ा, जिसका साज-सामान रत्न-जटित था, शहजादे की सवारी के लिए मँगाया। यात्रा के लिए अन्य उपयुक्त और आवश्यक सामग्री का प्रबंध किया और बीस सवार, जो सब के सब जिन्न थे, शहजादे के साथ चलने के लिए बुलाए। विदाई के समय शहजादे ने फिर परीबानू से हर रहस्य को गुप्त रखने का वादा किया और अपने साथी सवारों को ले कर अपने पिता के महल की ओर चल पड़ा। महल अधिक दूर था। परन्तु जिन्नों की ताकत से यह लोग घंटे-आधे घंटे में राजधानी पहुँच गए।
nice update bhai
 

Yash420

👉 कुछ तुम कहो कुछ हम कहें 👈
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भाग ८




शहजादा बहुत ही समझदार था उसे पता था कि परीबानू को केसे अपनी बातों में लेना है। शहजादे ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और चूम कर कहा, ऐसी बात मेरे मन में आ नहीं सकती। मुझे सिर्फ यह ख्याल है कि मेरे बूढ़े बाप मेरे अचानक गायब हो जाने से बहुत परेशान होंगे। मैंने तो पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ कि जीवन भर तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा। मुझे सिर्फ अपने पिता के दुख का ख्याल है इसलिए जाना चाहता था। अगर तुम नहीं चाहती तो जाने दो, वहाँ नहीं जाऊँगा। परीबानू ने देखा कि शहजादा सच्चे दिल से यह बातें कर रहा है और पत्नी का प्यार उसके दिल से कम नहीं हुआ है। उसने बड़े प्यार से कहा । मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। सचमुच ही तुम्हारे पिता तुम्हारी अनुपस्थिति से बहुत दुखी होंगे। तुम उन्हें देखने जरूर जाओ किंतु जल्दी लौटना।
अगर तुम यहां ना आए तो में वहा आ जाऊंगी और इसका परिणाम सभी भुगतेंगे। अहमद ने इस बात पे अपनी हामी भरदी।



उधर अहमद के पिता यानी हिंदोस्तान के बादशाह का हृदय वास्तव में बहुत दुखी रहता था। उसका एक बेटा नूरुन्निहार से विवाह करके अति सुख से रहता था और इसका बादशाह को संतोष था किंतु हुसैन और अहमद के चले जाने से उसे हृदयविदारक कष्ट भी था। अली के विवाह के दो-चार दिन बाद उसने महल के कर्मचारियों से पूछा कि हुसैन और अहमद क्यों नहीं दिखाई देते। उन्होंने कहा, शहजादा हुसैन तो संसार त्याग करके ईश्वर की खोज में फकीर बन कर निकल गए हैं लेकिन शहजादा अहमद अचानक न मालूम कहाँ गायब हो गए हैं। बादशाह ने शहजादा अहमद की खोज में बहुत घौदे दौड़ाए किंतु शहजादे का पता किसी को न चल सका। बादशाह बड़ा चिंतित हुआ।


एक दिन उसे मालूम हुआ कि इसी शहर में एक होशियार जादूगरनी रहती है जो तंत्र-विद्या से अज्ञात बातें जान लेती है। बादशाह ने उसे बुला कर कहा, जब से मैंने नूरुन्निहार से शहजादा अली का विवाह किया है शहजादा अहमद का कुछ पता नहीं चलता। मैं इससे बहुत परेशान हूँ। तुम अपने जादू से मुझे बताओ कि अहमद जीवित है या नहीं, जीवित है तो किस दिशा में है और मुझसे उसकी भेंट होगी या नहीं। जादूगरनी ने कहा, इसी क्षण तो मैं कुछ भी न बता सकूँगी। कई क्रियाएँ करनी होती हैं। कल जरूर मैं आपके प्रश्नों का उत्तर दूँगी। बादशाह ने कहा, तुमने ठीक सूचना दी तो तुम्हें मालामाल कर दूँगा। इस समय तुम घर जाओ और जो क्रियाएँ जरूरी हैं वह करो। जादूगरनी दूसरे दिन आ कर बोली, मैंने जादू से यह तो जान लिया है कि शहजादा अहमद सही-सलामत हैं। किंतु वे कहाँ हैं इसका पता नहीं लग सका। मालूम होता है कि कहीं बड़े रहस्यमय स्थान में हैं जिससे मुझे कुछ पता नहीं चलता। बादशाह को इतने से ही बहुत संतोष हुआ कि अहमद जिंदा है।



इधर शहजादा अहमद अपने पिता के घर आने को तैयार हुआ तो परीबानू ने कहा, तुम एक बात का ध्यान जरूर रखना। अपने पिता तथा अन्य संबंधियों, मित्र आदि को यह हरगिज न बताना कि तुम कहाँ रहते हो और कैसे यहाँ पर पहुँचे। तुम सिर्फ यह कहना कि मेरा विवाह हो गया है और मैं जहाँ भी रहता हूँ बड़े सुख और संतोष के साथ रहता हूँ। किसी विचित्र बात का उल्लेख न करना और इसके अलावा कुछ न कहना कि दो-चार दिन के लिए पिता के मन को धैर्य देने को आया हूँ। शहजादे ने इसे स्वीकार किया।


परीबानू ने एक बढ़िया घोड़ा, जिसका साज-सामान रत्न-जटित था, शहजादे की सवारी के लिए मँगाया। यात्रा के लिए अन्य उपयुक्त और आवश्यक सामग्री का प्रबंध किया और बीस सवार, जो सब के सब जिन्न थे, शहजादे के साथ चलने के लिए बुलाए। विदाई के समय शहजादे ने फिर परीबानू से हर रहस्य को गुप्त रखने का वादा किया और अपने साथी सवारों को ले कर अपने पिता के महल की ओर चल पड़ा। महल अधिक दूर था। परन्तु जिन्नों की ताकत से यह लोग घंटे-आधे घंटे में राजधानी पहुँच गए।
लाजवाब अपडेट मित्र
आप की कहानी को पढ़ कर मज़ा आ रहा है
 

Manisha48

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भाग - ९




सारे नगर निवासी और गणमान्य लोग शहजादे को देख कर बड़े प्रसन्न और आश्चर्य हुए। वे अपना कामकाज छोड़ कर शहजादे को देखने और उसे आशीर्वाद देने को आ गए। शहजादे की शान और शौकत देखकर सभी बड़े आश्चर्य में थे । दूर दूर तक शेहजादे से आ रही मधुर सुगंध हवा में फेल चुकी थी, अब शहजादे को जो भी देखता तो देखता ही रह जाता । शहजादा एक दम बदल गया था । शहजादे के लिबास इस तरह थे के उसकी चमक रात की काल स्याह में भी दिन का उजाला करदे। शहजादे का चेहरा एक दम नूर से जगमगा रहा था , और वहा खड़ी सभी स्त्रियां तो शहजादे कि एक झलक में ही दीवानी हो गई थी। शाही महल तक सड़क के दोनों ओर भीड़ लग गई। दरबार में पहुँच कर शहजादा पिता के चरणों में गिरा और बादशाह ने उसे उठा कर हृदय से लगाया। लेकिन जैसे ही बादशाह ने शहजादे को देखा तो देखता ही रह गया । तभी शहजादे ने शांति भंग करते हुए कहा, क्या हुआ पिताजी ऐसे क्या देख रहे है। तभी बादशाह का ध्यान भटका और उसने बात बदलती , बादशाह ने कहा, तुम नूरुन्निहार के न मिलने से इतने रुष्ट हुए कि घर छोड़ कर ही चले गए। अब कहाँ हो और अब तक कैसे रहे? अहमद ने कहा, मैं दुखी जरूर था कि नूरुन्निहार को नहीं पा सका किंतु रुष्ट नहीं था। मैं अपना फेंका हुआ तीर ढूँढ़ता हुआ उसी दिशा में बहुत दूर निकल गया। मैं आगे बढ़ता गया। यद्यपि मैं जानता था कि मेरा ही क्या संसार के किसी भी धनुर्धर का तीर इतनी दूर नहीं पहुँच सकता तथापि मैं तीर की तलाश में आगे बढ़ता गया क्योंकि यह भी स्पष्ट था कि तीर एक ही दिशा में गया होगा, दाएँ-बाएँ तो जा नहीं सकता। अंत में यहाँ से लगभग चार सौ कोस दूरी पर मैंने अपने तीर को एक चट्टान से चिपका हुआ पाया। यह देख कर मैं समझ गया कि तीर इतनी दूर अपने आप नहीं आया है, उसे किसी रहस्यमय शक्ति ने यहाँ किसी उद्देश्य से पहुँचाया है। उसी शक्ति ने प्रेरणा दे कर मुझे एक ऐसे स्थान पर पहुँचाया जहाँ मैं इस समय भी बड़े आनंद से रहता हूँ। इससे अधिक विवरण मैं नहीं दे सकूँगा। मैं केवल आपके मन को अपने संबंध में धैर्य देने के लिए आया हूँ, दो-एक दिन रह कर वापस चला जाऊँगा। कभी-कभी आपके दर्शन के लिए आया करूँगा।


बादशाह ने कहा, तुम्हारी खुशी है। तुम जहाँ चाहो आराम से रहो। मुझे इस बात से बड़ी प्रसन्नता है कि तुम जहाँ भी रह रहे हो प्रसन्नता से रह रहे हो। लेकिन अगर तुम्हें आने में देर लगी तो मैं तुम्हारा समाचार किस प्रकार प्राप्त कर सकूँगा? अहमद ने निवेदन किया, यदि आपका तात्पर्य यह है कि मैं अपने निवास आदि का रहस्य बताऊँ तो मैं पहले ही निवेदन कर चुका हूँ कि जितना मैंने बता दिया है उसके अतिरिक्त कुछ भी बताने की स्थिति में मैं नहीं हूँ। आप इत्मीनान रखें मैं जल्दी-जल्दी आया करूँगा।


बादशाह ने कहा, बेटा, मेरी इच्छा किसी रहस्य को जानने की नहीं है। मैं तो केवल तुम्हारी कुशलक्षेम से आश्वस्त होना चाहता था। तुम्हारा हाल मिलता रहे यही काफी है। तुम जब चाहो आओ जब चाहो जाओ। अतएव अहमद तीन दिन तक शाही महल में रहा।


महल में रहने के पश्चात उसने सभी का में मोह लिया था वहा पर मौजूद बड़ी बड़ी राजकुमारियां जो अत एवं आती रहती थी नुरुनन्निहार से मिलने के लिए , वो भी शहजादे के रंग रूप को अपने ह्रदय में उतार चुकी थी l सभी का दिल अब शहजादे पर आ चूका था , और अब शहजादा अहमद ही एक विषय था जिसपर सभी राजकुमारियां बाते करते नहीं थकती थी, तभी एक राजकुमारी ने नुरुनन्निहार से कहा, जब शहजादा इतना दिलनशीन है तो उससे विवाह जिसने किया होगा वो कितनी जानिसार होगी जिसपर नुरुनन्निहार जल भुन के रह गई और कुछ ना कह सकी। चौथे दिन शहजादा अपने निवास स्थान को रवाना हुआ। परीबानू उसकी वापसी पर बहुत प्रसन्न हुई। उसने फौरन ही जिन्नों को अकेले में बुलाया और शहजादे के साथ जो कुछ हुआ सब पूछा । जिसमें जिन्नों ने यह बताया कि कैसे राज्य की सभी राजकुमारियां शहजादे की दीवानी हो चली थी परन्तु शहजादे ने किसी एक कि और आंख उठाकर भी नहीं देखा । मालूम पड़ता है कि आपकी सुंदरता से ज्यादा वो आपकी मोहब्बत का कायल है। बहुत खुसनसीब है आप जो आपको ऐसा पति मिला जिसे सुनकर परीबानू को अपने आप पर गर्व महसूस हुआ । उस रात्रि ने परीबानू ने शहजादे को इतना प्यार किया की वो अपने अस्तित्व को ही भूल गया। परीबानू ने उस रात्रि शहजादे की सबसे लंबी और यादगार रात्रि बना दिया। उस रात के बाद अब वो अपने शहजादे को और ज्यादा प्यार और लाड करने लगी । ऐसे ही दोनों अपने प्रेमपूर्वक जीवन का आनंद उठाने लगे। एक महीना पूरा होने पर भी जब शहजादा अपने पिता से मिलने नहीं गया तो परीबानू ने पूछा कि तुम तो कहते थे कि महीने-महीने पिता से मिलने जाऊँगा, इस बार क्यों नहीं गए। अहमद ने कहा, मैंने सोचा शायद अबकी बार तुम जाने की अनुमति न दो।


परीबानू को अब अपने पति पर पूरा विश्वास हो चला था परीबानू हँस कर बोली, मेरी अनुमति पर इतना निर्भर न रहो। महीने-महीने मुझे पूछे बगैर ही पिता के पास हो आया करो। अतएव शहजादा दूसरे दिन सुबह बड़ी धूमधाम से अपने पिता के पास गया और तीन दिन वहाँ रहा। इसके बाद उसका नियम हो गया कि हर महीने शाही महल में जाता, तीन दिन वहाँ रहता और इसके बाद परीबानू के महल में आ जाता। उसके शाही महल में आगमन की तड़क-भड़क हर बार बढ़ती ही जाती थी।


यह देख कर महल का एक प्रधान कर्मचारी, जो बादशाह के मुँह लगा हुआ था, शहजादे की सवारी की बढ़ती हुई शान-शौकत से आश्चर्य में पड़ा। उसके एक घोड़े कि कीमत ही उस पूरे महल के बराबर थी । बह यह सोचने लगा कि शहजादे का विचित्र रहस्य मालूम होता है। कुछ पता नहीं कि वह कहाँ रहता है और वह ऐश्वर्य उसे कहाँ से मिला है। वह मन का नीच भी था इसलिए बादशाह को बहकाने लगा। उसने कहा, सरकार अपनी ओर से असावधान रहते हैं। आपने कभी ध्यान दिया है कि आपके पुत्र का ऐश्वर्य बढ़ता ही जाता है। उसकी शक्ति ऐसे ही बढ़ती रही तो एक दिन यह भी संभव है कि आप पर आक्रमण करके आपका राज्य हथिया ले और आपको कैद कर ले। जब से आपने नूरुन्निहार को शहजादा अली से ब्याहा है तब से शहजादा हुसैन और शहजादा अहमद अत्यंत अप्रसन्न हैं। शहजादा हुसैन ने तो फकीरी बाना ओढ़ लिया, वह चाहे भी तो आप की कुछ हानि नहीं कर सकता लेकिन कहीं अहमद आपसे बदला न ले। उसका तो एक घोड़ा तक आप अपने पूरे महल को बेचकर नहीं खरीद सकते, तो भला उसके सैनिकों से कैसे लड़ेंगे ।
 
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