maza agaya bahi bare dino bad update dena start kiy ho ab daily dena, or ha ek request hai ek bar sab jitne bhi ladies hai un sabko ek sath chudwo den bhar ek sath hero ke sath.---------------------------------------------------------अर्चना की कहानी उसकी जुबानी ----------------------------------------------------------
उस दिन के बाद से ये दोनों बाप बेटे मेरे शरीर से खेलने लगे। पापा को ये पता नहीं था की जतिन भी मेरे शरीर के मजे ले रहा है। पर ये सब ऊपर ऊपर से ही होता था। न जतिन , न ही पापा किसी को भी मैंने अपनी चूत में ऊँगली तक नहीं करने दी थी। पापा को तो दर्शन भी नहीं हुए थे पर ऊपर ही ऊपर उन्होंने बहुत सहलाया था। पापा को चूत न देने की वजह थी मेरे अंदर का डर। उन्होंने बहुत रंडीबाजी की थी। मुझे डर था कोई बिमारी ना लेकर बैठे हों। मुझमे ये डर अंदर तक समाया था। पापा ने भी सब्र रखा हुआ था। पर आदत से मजबूर थी। रंडीबाजी और दारूबाजी बंद नहीं हुई थी।
पापा को उनके कहने पर मैं मुठिया जरूर देती थी। उन्होंने कई बार लंड को मुँह में लेने को कहा पर डर से मैंने लिया नहीं। मैं हर बार यही कहती थी उसके लिए वो दोनों रंडी हैं ना। वो ये सु नाराज भी होते, एक आध बार मुझे मार भी देते पर जोर जबरदस्ती नहीं करते। एक लेवल की अंडरस्टैंडिंग बन गई थी। पर उन्हें मेरे गांड पर चढ़ कर माल निकलना पसंद आने लगा था। कभी लेटे लेटे तो कभी कुतिया बना कर वि मेरे गांड के फैंको के बीच अपना माल निकाल लेटे थी।
पर मेरे इस प्यारे छोटे भाई के साथ सम्बन्ध आगे बढ़ चुके थी। हम दोनों एक दुसरे के सामने नंगे रह लेते। मैं इसकी लुल्ली चूसने लगी थी और ये मेरा चूत चाटने लगा था। कभी कभी इससे चूत में ऊँगली करवा लेती थी। पापा ने कई बार मुझे चोदने की कोशिश की और मेरा मन करता भी था पर हर बार मैं मना कर देती। इस चक्कर में वो मुझसे मार पीट भी करते और जब ऐसा होता उनका दारू पीना बढ़ जाता।
आखिर में हुआ वही तो जिसका डर था पापा एक दिन शराब पीकर आ रहे थे और उनका एक्सीडेंट हो गया। एक्सीडेंट इतना भयंकर था की उनकी ऑन स्पॉट मौत हो गई।
मेरे ससुर पापा के ऑफिस में ही काम करते थे। उन लोगों से थोड़ी पहचान पहले भी थी। उन्हें हमारे घर के अंदुरुनी मसलों का पता तो नहीं था पर पापा की बुरी आदतों का पता था। उन्हें मुझ पर थोड़ा तरस आया और अपने लड़के से मेरी शादी करने का प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने वादा किया जैसे सी जतिन का कॉलेज पूरा होगा पापा की जगह नौकरी लगवा देंगे। मुझे ये लोग अच्छे लगे तो मैं भी हाँ कर दी।
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पर मुझे पता नहीं था की मेरे पति के लौड़े में दम नहीं है। साला जोर लगा कर चोदता तो है पर रिजल्ट कुछ नहीं है। पर ये लोग अपनी कमी नहीं मानते हैं। मैंने भी कंप्लेंट नहीं किया क्योंकि मुझे लगा जतिन ही कुछ कर लेगा पर इस साले में भी कोई दम नहीं है। मुझे बच्चा चाहिए , अब ये दोनों नहीं तो कोई और सही। तू लंबा चौड़ा है , तेरे में दम है। मुझे यकीन है तू मेरे अंदर जो बीज डालेगा उसका फल तगड़ा आएगा।
Super exciting update. Lund continuous hard ranker dard karne lagta hai.मेरा अगला हफ्ता बहुत बीजी रहा। माँ और दीदी के साथ शॉपिंग और दीदी के साथ जबरदस्त चुदाई। चुदाई जब होती तो दोनों ऐसे डूब जाते जैसे अगली बार नहीं होगी , यही आखिरी मौका है। जबकि ऐसा नहीं था। दीदी भले ही अपने ससुराल जा रही थी ,मैं वहां भी जाकर उनके साथ समय बिता सकता था , मस्ती कर सकता था। और उनके साथी की क्यों, उनकी सास और सोनिया भी थीं। पर हम दोनों जैसे पागल प्रेमी हो रखे थे।
वीकेंड आते आते जहाँ मैंने अपने आपको मजबूत किया दीदी का रोना धोना बढ़ गया। माँ ने ना जाने कैसे खुद को मजबूत बताया हुआ था। वो उन्हें समझाती रहती थी। दीदी के जाने के एक दिन पहले श्वेता भी आ गई थी। इतवार को सुबह सुबह जीजा जी और सोनिया दोनों आये। दोनों करीब एक घंटे तक हमारे यहाँ रुके थे। हम तीनो ने बड़े ही कड़े मन से दीदी को विदा किया। जाते वक़्त दीदी और बच्चा भी रोने लगा। उसे भी हमारी आदत थी। जीजा को तो वो पहचानता ही नहीं था। लड़की की विदाई का माहौळ ही ऐसा होता है की आँखे नम हो जाती हैं।
जो माँ ने खुद को अब तक संभाला हुआ था वो भी उस वक़्त रो पड़ी। खैर जो होना था वो होना था। दीदी दो घंटे बाद चली गईं। उनके जाने के बाद माँ भी फफक फफक कर रो पड़ी थी। मैं भी रोही रहा था। कहते हैं न जब सब कमजोर पड़ते हैं तो घहर का कोई सदस्य मजबूती से खड़ा रहता है। ऐसे टाइम पर श्वेता ने हम दोनों को संभाला। उसी ने शाम का खाना भी तैयार किया। माँ ने पहले तो मन किया पर किसी तरह श्वेता ने उन्हें मनाया। हम तीनो ने किसी तरह से खाना खाया। माँ ने कहा वो सोना चाहती हैं। श्वेता ने उन्हें रोक लिया।
माँ - जाने दे। आज कुछ करने का मन नहीं है।
श्वेता - आप कमरे में जाकर सो भी नहीं पाओगी। बैठो न। कोई पिक्चर देखते हैं।
माँ - मेरा मूड नहीं है।
श्वेता - इसका मतलब आपको सिर्फ सुधा दी से प्यार है। मैं आपकी बेटी नहीं ?
माँ ने ये सुनकर उसके गाल पर हाथ फेरते हुए कहा - तू तो बेटी भी है, बहु भी है और जान भी।
श्वेता - ये हुई ना बात। आपकी एक बेटी गई है। दूसरी आ गई। थोड़ा समय मेरे साथ भी बिता लो।
उसने मुँह बनाते हुए कहा - फिर मैं भी हॉस्टल चली जाउंगी।
ये सुन मैंने कहा - तू यही शिफ्ट हो जा। दीप्ति मैम से बात कर लेंगे।
श्वेता - उसके लिए तुम्हे उन्हें और उनकी बेटी दोनों की जबरदस्त चुदाई करनी पड़ेगी।
उसकी ये बात सुनकर मैं और माँ दोनों मुश्कुरा उठे।
बात आगे बढ़ाते हुए उसने कहा - माँ, इसकी तो चांदी है। घर में भी माल। बाहर भी माल। देखो कल ये चोदू राजा एक नए छूट को मारेगा
मैं - तू मान जाए तो किसी को न चोदू। शर्त तूने ही लगाई है। मुझे पूरा जिगोलो बना दिया है।
श्वेता - मेरे राजा इसमें तुम्हारा ही तो मजा है।
माँ का मूड हम दोनों की चुहलबाजी देख कर हल्का हुआ। उनके चेहरे पर थोड़ा इत्मीनान आया देख मैंने कहा - बियर पियोगी माँ ?
माँ का भी मूड बना हुआ था। उन्होंने कहा - कुछ हार्ड बना।
मैंने अपने लैंड पर हाथ रखते हुए कहा - हार्ड तो ये आलरेडी बन गया है।
माँ - तेरा तो ये हमेशा ही हार्ड बना रहता है। तुझे पता है श्वेता पिछले हफ्ते ये दोनों भाई बहन एक दुसरे सेएकदम चिपके रहते थे। इसके लौड़े ने जैसे सुधा के चूत को अपना घर ही बना लिया था।
मैं - चूत ही नहीं माँ गांड भी।
श्वेता चौंक कर बोली - क्या सुधा दी की गांड भी मार ली।
मैं - पहला उद्घाटन तो माँ का ही था।
श्वेता ने माँ की होठो को किस करके कहा - आखिर आपने अपने बेटे से सील तुड़वा ही ली
माँ - तेरी भी टूटेगी। तेरी गांड तो सुहागरात वाले दिन ही तुड़वाउंगी।
श्वेता - मेरी तो गांड किसी को नहीं मिलेगी।
माँ - यही सुधा भी कहती थी। पर पिछले हफ्ते इतना मरवाई है है की गांड न किला बन गया है।
श्वेता हँसते हुए बोली - आपका क्या बना।
तब तक मैं ड्रिंक और ग्लासेज लेकर आ गया था। मैंने कहा - माँ की तो शायद एक या दो बार ही मारी थी।
श्वेता ने एक बियर उठा ली। वो कम ही पीती थी। मैंने माँ के लिए ग्लास में कुछ पॉइंट्स डाले। माँ ने उसे नीट ही पी लिया।
माँ ने कहा - उफ्फ्फ , हार्ड तो है पर उतना नहीं।
मुझे ये सुन आश्चर्य हुआ। मैं उन दोनों के सामने खड़ा था। तभी श्वेता ने मेरे बरमूडा को खींच कर उतार दिया और अपने बियर के बोतल से मेरे लैंड पर बियर गिरा लिए और मेरे लैंड को चूम कर बोली - अब ऐसे ड्रिंक हार्ड लगेगी।
मैंने ये सुन अपना लैंड उसके मुँह में पूरा घुसा सिया और कहा - ड्रिंक हार्ड या सॉफ्ट ये तो अंदर लेने के बाद ही पता चलेगा।
श्वेता खांसने लगी। मैंने लैंड बाहर कर लिया। बोली - बलात्कार करेगा क्या ?
मैंने उसके गाल पर एक झापड़ मार दिया और कहा - मन तो कर रहा है।
श्वेता - भोसड़ी के माँ का कर ले। मेरे साथ कुछ भी जबरदस्ती की तो मुझे भूलना पड़ेगा।
माँ ने उसे अपने पार खींच लिया और मुझे हौले से कहा - मादरचोद , जो प्यार से मिले वही लेना चाहिए। देख फूल सी बच्ची का क्या कर दिया।
उन्होंने उसको अपने आगोश में भर लिया। माँ रात को अपने उसुअल ड्रेस में थी - एक ब्लॉउज और पेटीकोट। श्वेता ने एक शार्ट और टी शर्ट डाला हुआ था।
माँ ने उससे कहा - हार्ड ड्रिंक मेरे लिए है। मेरी बच्ची तो सॉफ्ट ड्रिंक लेती है।
माँ ने श्वेता की बियर की बोतल उठाई और अपने स्तनों पर थोड़ा सा गिरा लिया। श्वेता के मुँह उनके सीने से लगा ही हुआ था। उसने गिरती बूंदो को चाटना शुरू कर दिया।
माँ - पी जा मेरी बच्ची।
माँ ने मुझे देखते हुए कहा - लौड़े मुझे भी हार्ड ड्रिंक देगा ?
मैंने ग्लास में ड्रिंक उड़ेली और अपने लैंड को उसमे भिगो लिया और माँ के सामने आकर खड़ा हो गया। अब माँ बड़े चाव से मेरे लैंड को चूस रही थी।
श्वेता - और पिलाओ न।
मैंने माँ के हाथ से बोतल ली और उनके सीने पर गिराने लगा । श्वेता एक बिल्ली की तरह उसे चाटने लगी। मैं बीच बीच में कभी बियर तो कभी हार्ड ड्रिंक के घूँट ले रहा था। माँ का पूरा ब्लॉउस गिला हो रखा था। माँ का ही नहीं श्वेता का टी शर्ट भी पूरा गिला हो रखा था। माँ मेरे लैंड को बड़े आराम से लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी। मुझे दीप्ति मैम और सरला दी की याद आ रही थी। अगर उस दिन मैं दीप्ति मैम के यहाँ रुका होता तो शायद कुछ ऐसा ही माहौल होता।
कुछ देर बाद मैंने माँ से कहा - माँ मुझे भी सॉफ्ट ड्रिंक पीना है।
माँ ने प्यार से कहा - कहाँ भागी जा रही हूँ। पी लेना। श्वेता तू एक बार हार्ड ड्रिंक फिर से ट्राई कर न बड़ा टेस्टी हो गया है।
श्वेता ने मेरे लैंड की तरफ देखा और कहा - जबरदस्ती तो नहीं करेगा न ?
माँ - करेगा तो साले का लैंड काट दूंगी।
श्वेता - काट कर अपने चूत में रख लेना। मुझे चाहिए होगा तो दे देना। मैं अपने अंदर रख लुंगी।
दोनों नशे में आ चुकी थी। मैंने कहा - सॉरी अबकी नहीं करूँगा नहीं करूँगा। तूने ऐसे वादे में डाल रखा है की मैं क्या करूँ तू कुछ करती भी नहीं है।
श्वेता - उम्मम मेरा राजा ,आजा तेर लौड़े को प्यार करूँ।
मैं उसके पास चला गया। श्वेता ने मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया और मुँह में अंदर बाहर करने लगी। कुछ देर करते ही उसे फिर से खांसी आ गई। उसने लंड बाहर निकाल दिया और कहा - कैसे कर लेती हो आप लोग। मेरा तो दम घुटने लग रहा है।
माँ ने उसके होटों पर लगे ड्रिंक और मेरे प्री कम को चाटा और कहा - इस लिए कहती हूँ कुछ प्रैक्टिस कर ले। खैर जाने दे सब सीखा दूंगी।
माइन माँ से कहा - मुझे भी सॉफ्ट ड्रिंक पीना है।
माँ ने मेरे हाथ से गिलास लिया और अपने पेटीकोट की डोरी खोल दी और कहा - क्या करेगा सॉफ्ट ड्रिंक। चल तू भी हार्ड ड्रिंक पी।
मेरी तो चांदी हो गई। मैं झट से उनके चरणों में बैठ गया। माँ ने ड्रिंक की धार अपनी नाभि से गिरानी शुरू की। मैंने माँ की चूत की पार अपने जीभ को चम्मच जैसा बना रखा था। जैसे ही धार वहां तक पहुंची। माँ रुक गईं। मैंने एक एक बूँद ड्रिंक की चाटनी शुरू कर दी। माँ की गिरी चूत का रास और दरनी दोनों का मिश्रण का स्वाद अलग ही था। मैंने चूत ही नहीं बल्कि चूत की ऊपर से होते हुए उनके नाभि तक को चाट डाला। हमारे घर की औरतों की नाभि गहरी थी। माँ की सबसे गहरी। मैं उसमे जीभ घुसा कर ऐसे अंदर बाहर करने लगा जैसे उसे ही चोद रहा हूँ। तब तक श्वेता ने अपना टी शर्ट उतार दिया था और माँ का ब्लॉउज भी। मैं और माँ पूरी तरह से नंगे थे और श्वेता टॉपलेस। श्वेता मेरे सामने गाँव में नंगी हो चुकी थी पर सब छणिक ही था।
आज उसने अपना पेंट नहीं उतारा था। उसने बियर का एक बड़ा सिप लिया। कुछ घूँट खुद पिया और फिर अपने होतो को माँ की पास ले गई। माँ ने मुँह खोल दिया। श्वेता थोड़ा ऊपर हुई और उसने अपने मुँह से बियर माँ की मुँह में बूँद बूँद करके गिराना शुरू कर दिया। उसने कुछ घूँट माँ की घाटियों की बीच में भी गिरा दिया जो सीधे नाभि से होता हुआ नीचे आने लगा। मैं फिर से उसे चूत से लेता हुआ नाभि तक चाटने लगा। अबकी मैं उठ कर उनके स्तनों की घाटी को भी चाटने लगा। श्वेता सोफे पर घुटनो की बल कड़ी अवस्था में थे। उसके स्तन माँ की चेहरे की सामने थे। माँ ने अपने जीभ से उसके एक स्तन की घुंडी को सितार की तार की तरह हिला दिया। श्वेता की स्तन सुडौल थे। न बड़े न छोटे। शायद आम सफेदे आम से हल्का बड़ा। उस पर से भूरे रंग का जो घेरा। पर उसके स्तनों को सबसे अलग करते थे उसके निप्पल। इरेक्ट होने पर एकदम नुकीले हो जाते थे। कोई चाहे तो हाथ की अंगूठे और मिडिल फिंगर की कॉम्बिनेशन ( जैसे कैरम खेलते हैं ) उनको छेड़ सकता था। माँ अपने जीभ से वैसा ही कुछ कर रही थी। शायर ये उसका वीक पॉइंट था। माँ समझ गईं थी। वो कभी उन्हें निचोड़ती तो कभी उन्हें जीभ से हिलाती। श्वेता बेचैन हो गई।
श्वेता - उफ़ माँ। क्या कर रही हो। आग लगा दिया तुमने। उफ़ , मा माँ सम्भालो।
श्वेता का शरीर कांपने लगा और वो भरभरा कर माँ की ऊपर ही गिर पड़ी। माँ ने उसे बाँहों में भर लिया - मेरी बच्ची। प्यारी बच्ची। तू तो इतने से मस्त गई। लंड जायेगा तो क्या करेगी।
माँ ने उसके पेंट की अंदर हाथ डाल दिया था। उनकी उंगलिया उसके क्लीट से खेल रही थी। उधर मैं उनके क्लीट से। उन दोनों की लौडो को मजा था पर मेरा लौड़ा शिकायत की मूड में था।
मैंने माँ से कहा - अब मुझे चोदना है।
माँ - चोद न फिर किसने रोका है।
मैं भी मूड में था - तुम दोनों की रासलीला चल रही है।
माँ - वो तो चलेगी। हाथ आई लौंडिया न तू छोड़ेगा न मैं। और ये तो बहुत दिनों बाद आई है।
मैं - अब बर्दास्त नहीं होता।
माँ - रुक।
माँ ने श्वेता को सोफे पर ठीक से बिठा दिया। उन्होंने उसके पेंट को उतार दिया। खुद निचे मेरी तरह हो गईं। माने उसके सामने चौपाया। मैं थोड़ा पीछे हुआ। मेरा एक मन तो किया गांड ही मार लूँ।
माँ ने मेरा मन पढ़ लिया था। बोली - बहनचोद , पहले चूत की खुजली मिटा। इतने दिनों से बहन की चूत में घुसा था मेरी चूत बहुत प्यासी है। पहले उसकी प्यास बुझा।
मैंने माँ की चूत में पीछे से अपना लंड डाला और माँ को चोदना शुरु कर दिया। माँ ने श्वेता की चूत पर जीभी फिरानी शुरू कर दी। श्वेता फिर से होश खोने लगी थी। उसने अपने हाथों से ही अपने निप्पल खींचने शुरू कर दिए।
श्वेता - माँ उफ़ , आह। मजा आ गया। जीभ अंदर लो न। उफ़ हाँ ऐसे ही।
मैं माँ को चोद रहा था और उसके चेहरे की वासना देख रहा था। श्वेता फिर से छटपटाने लगी थी। उसने आँखे खोल दी और मेरी तरफ देखा।
नजरे मिलते ही उसने कहा - मादरचोद इधर क्या देख रहा है।
मैं - अपनी जान को देख रहा हूँ। कितनी सेक्सी लग रही हो। एकदम चुदास।
श्वेता - भोसड़ी की , चोद माँ को रहा है और सेक्सी मुझे कह रहा है।
मैं - माँ तो सेक्स की देवी हैं। उपमा से परे।
माँ - शायरी , कविता छोड़ तेजी से चोद। मेरा आने वाला है। तेजी से धक्के लगा। पेल दे मेरी चूत को बहा दे नदियां।
श्वेता भी बेशर्मी से बोली - चुद रही हो फिर भी चैन नहीं है। आज इनके चूत का भोसड़ा बना दो राज।
माँ ने कहा - पहले तेरी चूत की खबर लेती हूँ। 'हम दोनों अपने काम पर लग गए। श्वेता में पेअर सिकोड़ लिए थे और माँ की सर को जकड लिया था। वो एकटक मुझे देखे जा रही थी।
हम तीनो अपने चरम अवस्था पर पहुँचने वाले थे। माँ और श्वेता का शरीर कांपने लगा था। माँ की जंघे ताकत खो चुकी थी और बुरी तरह से थरथरा रही थी। वैसा ही हाल श्वेता का भी था। मैं भी उनके साथ ही स्खलित हुआ। मेरे लंड ने भी माँ की चूत में माल उड़ेल दिया। श्वेता सोफे पर सर पीछे करके हो गई। माँ ने अपना सर उसके जाँघि पर राखी दिया था और बैठ गई थी। मैं भी वहीँ जमीन पर उनके एक पेअर पर सर रख कर लेट गया। तीनो ने जबरदस्त ओर्गास्म पाया था। हमें होश नहीं था। हम तीनो अलग ही दुनिया में थे।
तभी फ़ोन की घंटी बजी। मैंने कहा - इस वक़्त किस बेटीचोद को हमारी याद आ गई।
माँ ने कहा - सुधा होगी।
मैंने फ़ोन उठा लिया और स्पीकर पर रख दिया। मैं - हाँ दीदी , कैसी हो ?
दीदी - तू हांफ क्यों रहा है ? माँ और श्वेता कहा हैं ?
माँ - हम यहीं है। ठीक हैं।
तभी उधर से हंसने की आवाज आई। दीदी ने धीरे से कहा - क्या करती है। थोड़ा सा सब्र नहीं है। फ़ोन पर हूँ।
उधर से सोनिय की आवाज आई - उधर भी खेल चल ही रहा है। चोदू लाल ने लगता है दोनों चूत बजा दी आज।
श्वेता - चुप रहो। मैंने अभी वादा नहीं तोडा है।
तभी दीदी की आवाज आई - अम्मा जी आप भी। रुकिए तो।
उधर से रत्न आंटी की आवाज आई - थोड़ा पीला दे न। प्लीज। बहुत मन है।
माँ ने हँसते हुए कहा - रत्ना जी चूस लीजियेगा अच्छे से। बहुत भरा हुआ होगा। दामाद जी को भी पीला दीजियेगा। हो सके तो उनके पापा को भी।
रत्न आंटी की आवाज आई - नमस्ते जी। वो दोनों तो अभी अभी पीकर गए है। एक साथ थन से ऐसे लटके थे जैसे कुटिया की बच्चे हों।
मैंने कहा - खबरदार जो मेरी बहन को कुटिया कहा त। आकर वही चोद दूंगा दोनों माँ बेटी को।
रत्ना आंटी हँसते हुए - फिर तो कुतिया ही कहना पड़ेगा।
ये सुन हम सब हंसने लगे। माँ ने कहा - मेरी बेटी को ज्यादा परेशान मत करियेगा। आराम आराम से।
सुधा दी - ठीक है माँ। आप लोग मजे में हैं ये सुन अब चिंता दूर हो गई। गुड नाइट।
हम तीनो ने भी कहा - गुड नाइट।
नाइट तो गुड हो गई थी। तसल्ली हुई की दीदी को वहां भी सुख देने वाले हैं। क्या हुआ लंड रोज नहीं मिले तो। एक औरत तो वास्तव में बाहर से ही खुश हो जाती है। वहां सोनिया और आंटी को ये हुनर आता था। यहाँ माँ ने श्वेता को खुश कर दिया था। बाकी दीदी का ससुराल कुछ घंटो की दुरी पर था। दुध और तीन चूत तो मैं कभी भी मार कर आ सकता था। यही सोच रहा था की माँ ने कहा - नशा भी उतर गया और भूख भी इलाज गई। शाम को कुछ ख़ास नहीं खाया था।
श्वेता ने अपनी पेंटी उठाई और पहन लिया। वो उठकर किचन में जाने लगी। उसने कहा - मैगी बनाती हूँ । आप बैठिये।
माँ सोफे पर बैठ गईं। मैं उनके गोद में सर रख कर लेट गया और श्वेता की थिरकते पिछवाड़े को देखने लगा।
माँ ने कहा - मस्त माल है। बच्चे ताकतवर होंगे।
उसकी जाँघे और हिप्स बहुत ही सुडौल थे। मजबूत पर पुरे शेप में। न बड़े न छोटे। श्वेता को पता था हम क्या देख रहे हैं। उसने वहीँ से कहा - सिर्फ देखने की लिए है। मारने की सोचना भी मत।
माँ - हाँ। सही बात है। गांड तो तेरा बेटा मारेगा।
ये सुन हम सब हंसने लगे। रात अभी ख़त्म नहीं हुई थी। बात अभी ख़त्म नहीं हुई थी। पर इस बची हुई रात की बात तो मैं बताऊंगा ही पर आने वाले कल या परसों भी एक धमाकेदार चुदाई होनी थी। उस पार्क वाली महिला की साथ।
maje hi maje hain.श्वेता हमारे साथ एक दिन और रही। उसका कॉलेज भी था वो चली गई। शुरू में तो घर एकदम काटने को दौड़ता था फिर मैंने भी खुद को व्यस्त कर लिया। मेरे भी फाइनल ईयर के एग्जाम सर पर थे। साथ ही एम् बीए में एडमिशन के प्रोसेस भी शुरू हो गए थे ।
उधर विक्की और सोनी ने भी सोनी के रेडीमेड गारमेंट की फैक्ट्री के लिए जगह देखनी शुरू कर दी थी। साथ ही विक्की ने एक माल में एक शॉप भी देख लिया था। मौसा और मैं दोनों पैसे के जुगाड़ में लगे थे। नई कंपनी के लिए पेपर वर्क भी शुरू कर दिया था।
सुधा दी भी धीरे धीरे सेटल होने लगीं थी। मैं बीच बीच में उनके यहाँ चला जाता। मेरा बच्चा मुझे देख कर खुश हो जाता था। उसने जीजा को पापा कहना शुरू कर दिया था।
एक दिन मैं ऐसे कॉलेज में बैठे बैठे सोच रहा था कि समय कैसे बीतता है पता ही नहीं चलता। दिन, महीने और साल कैसे बीत जाते हैं , कहाँ तीन चार साल पहले तक मैं एक बुद्धु लड़का था जिसे लड़कियों से दोस्ती तो छोड़िये बात करना भी नहीं आता था। और कहाँ बीते समय में मेरे पास चूतों की लाइन सी लग गई थी। मेरा एक बेटा भी है जो अब बोलने लगा है। बीते दिनों कितने मौसम आये और चले गए। इसी चक्र में अब अगले महीने होली भी आने वाली थी। पर ये होली शायद अकेले ही बीतेगी। सुधा दी का आना मुश्किल था। सरला दी के प्रेग्नेंसी का भी लास्ट टाइम चल रहा था। मैं इसी सोच में डूबा हुआ था की मेरे पास एक अनजान नंबर से फ़ोन आया।
उधर से एक लेडी की आवाज आई - और हीरो कैसा है ?
मैं - मैं ठीक हूँ आप कौन?
लेडी - भूल गया बहनचोद। उस दिन पार्क में मेरे मुम्मो पर माल निकला था।
मुझे उस लेडी की याद आ गई। बड़े बड़े मुम्मे वाली उसी औरत का फ़ोन था जो अपने भाई के साथ पार्क में आई थी।
मैं - ओह्ह , आप। बड़े दिनों बाद याद किया आप तो अगले हफ्ते ही बुलाने वाली थीं। और ये कौन सा नंबर है ?
लेडी - मत पूछो जानेमन। मैंने उसबार बहुत बहाने बनाये की फंक्शन में ना जाऊं पर कोई माना नहीं सो जाना पड़ा। नंबर बदल गया है।
मैं - हम्म्म। और बताइये कैसी हैं ? अभी कैसे याद किया ?
लेडी - आजकल अकेली हूँ।
मैं - आपके ससुराल वाले ?
लेडी - सास ससुर गाँव गए हैं और आज ही मेरे हस्बैंड एक हफ्ते के लिए ऑफिस के टूर पर गए हैं।
मैं - तो अकेलेपन में निचे खुजली हो रही है।
लेडी - खुजली तो भोसड़ीवाले मेरा मरद करके गया है। दो हफ्ते के लिए जा रहा था तो प्यार में नुनी लेकर घुस गया पर नामर्द एक ही मिनट में फारिग हो गया।
मैं हँसते हुए - तो छोटा कहा है ?
लेडी - वो तो साला इनके जाते ही मेरे पेटीकोट में घुस गया। पर जो काम लौड़ा कर सकता है वो जीभ और ऊँगली कितना करेगी।
मैं - हम्म , कल दोपहर आता हूँ फिर मैं।
लेडी - आज ही आजा।
मैं - आज ?
लेडी - हाँ। आज ख़ास वजह है।
मैं - ऐसा ख़ास क्या है ?
लेडी - आज ही मेरा मर्द चोद कर गया है। अभी मेरा सबसे फर्टाइल पीरियड चल रहा है। तू चोद कर माँ बना दे। मेरे मर्द के बस का नहीं है। माँ बन गई तो खुश हो जायेगा।
मैं - पर आपको देख कर लगा नहीं की आपके बच्चे नहीं होंगे।
लेडी थोड़ी उदास हो गई। उसने दुखी लहजे में कहा - यार, दो बार मिसकैरेज हो चूका है। ससुराल वाले सब समझते हैं मुझमे कमी है पर मेरी डॉक्टर का कहना है पति के स्पर्म में दम नहीं है।
मैं - पर ये बड़ा निर्णय है। आप मुझसे मिली ही एक बार हैं वो भी कुछ देर के लिए।
लेडी - मैंने ये निर्णय जल्दीबाजी में नहीं लिया है। पर हर बात फ़ोन पर नहीं कर सकती। रेडी हो तो आ जाओ।
मैं - मुझे माँ से बात करनी पड़ेगी।
लेडी - मादरचोद है क्या ? गर्लफ्रेंड से पूछने के बजाय माँ से पूछेगा ?
मैं हँसते हुए - सही समझा है। मैं बात करके बताता हूँ।
लेडी - मैं तेरा इंतजार करुँगी। और अपना एड्रेस और लोकेशन भेज रही हूँ ।
मैं - कोशिश करता हूँ।
मैंने माँ को फ़ोन करके सारी बात बताई। पूरी कहानी सुनने के बाद माँ ने कहा - जा करदे मदद। हुमच के पेलना और हाँ मेरे दूध की लाज रखना और उसके गर्भ में बच्चा देकर ही आना।
Super erotic update.मैं कुछ देर बाद उस महिला के दिए पते पर पहुँच गया। वहां मेरे पहुँचते ही दरवाजा उसके भाई ने खोला।
मुझे देखते ही वो गले लगकर बोला - धन्यवाद भाई। अब दीदी को असली मजा आएगा।
मैंने मन ही मन सोचा की कैसा चूतिया मर्द है , अपनी बहन को किसी और मर्द से चुदवायेगा और उस बात पर खुश भी हो रहा है। खैर मुझे क्या।
अंदर पहुंचा तो वो लेडी एक सुन्दर सी पिंक साडी पहने हुए मेरा इंतजार कर रही थी। उसने मेरे लिए कोल्ड ड्रिंक और कुछ स्नैक्स पहले से तैयार रखा हुआ था। पिंक साडी में वो बहुत ही सुन्दर लग रही थी। उसने साडी ऐसी पहनी हुई थी जिससे उसके स्तन पूरी तरह से ढके हुए थे। मैंने कोल्ड ड्रिंक पीते हुए कहा - क्या हो गया ? मुझे इतनी जल्दी में क्यों बुलाया ? और ये आप फ़ोन पर क्या क्या बता रही थी ?
लेडी - तुम्हारे बारे में बहुत दिनों से सोच रही थी मैं। उस हफ्ते मुझे भी जाना पड़ गया। पर अभी सही है। एक हफ्ते के लिए घर खाली है।
मैं - मैं यहाँ शिफ्ट होने नहीं आया हूँ। आप अपनी सुनाओ। क्या कह रही थी आप फ़ोन पर सब नहीं बता सकती। अब सामने हूँ बता दो।
लेडी - लगता है किस्से सुनने में बहुत मजा आता है।
मैं - हाँ। आता तो है।
लेडी तो फिर सुनो मेरी कहानी
---------------------------------------------अर्चना की कहानी उसकी जुबानी [फ्लैशबैक] --------------------------------------------------------
मेरा नाम अर्चना है। मेरे भाई जतिन से तुम मिल ही चुके हो। मेरे पापा सरकारी नौकरी में थे। अच्छी कमाई थी। उस पर से हमारी पहले से ही एक पुश्तैनी जमीन और मकान बना हुआ था। कहते हैं ना जब गलत तरीके से पैसा आता है तो बर्बादी भी लाता है। मैं जब पैदा हुई तो पापा नाखुश हो गए। उन्हें लड़का चाहिए था पर मैं हुई लड़की। उसके बाद से उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया था। साथ ही कभी कभी जुआ भी खेल लेते थे। शराब पीकर वो माँ को बहुत पीटते थे। माँ भी बीमार रहने लगी थी। जब मैं लगभग चार साल की हुई तो मेरा भाई पैदा हुआ। लगा की लड़का पाकर शायद वो खुश हो जाएँ और बुरी आदतें ख़त्म हो जाएँ पर लत कहाँ छुटती है। हुआ ये की जब मैं लगभग पंद्रह साल की हुई माँ अचानक से बीमार पड़ गई। पापा ने शुरू में तो इलाज करवाया फिर लापरवाही करने लगे। पापा उसका दोष भी मुझे ही देने लगे थे। अब वो माँ के साथ साथ मुझे भी पीटने लगे थे। माँ की बिमारी बढ़ने लगी और वो साल भर के अंदर ही ख़त्म हो गईं।
उनके जाने के वक़्त मैं जवाई की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। मेरी उम्र सत्रह से ऊपर थी और जतिन लगभग बारह का हो चूका था। पापा ने मेरी पढाई छुड़वा दी। माँ के जाने के बाद से तो शराब पीना और भी बढ़ गया। और उतना ही नहीं अब वो रंडीबाजी भी करने लगे थे। अब या तो अक्सर देर रात को आते। कई रात तो घर ही नहीं आते थे आते तो नशे में धुत्त। खाना कभी खाते कभी नहीं। मुझे देखते ही ना जाने क्यों किसने शुरू कर देते , भद्दी भद्दी गालिया और अक्सर मारना शुरू कर देते थे। जतिन तो डर के मारे उनके सामने जाता ही नहीं था।
उन्होंने अभी तक मेरे शरीर के साथ गलत नहीं किया था।
अब या तो माहौल का असर था या फिर वातावरण या फिर नैचुरली मेरे हार्मोन ही ऐसे थे की मेरा शरीर तेजी से भरने लगा। अठारह की होते होते मेरा पूरा बदन भर चूका था। मेरे मुम्मे बड़े हो गए थे , जंघाएँ मोटी हो गईं थी और गांड भी चौड़ी हो गई थी। पिता के डर से जतिन अब भी मेरे पास ही सोता था। हम दोनों भाई बहन एक ही बिस्तर पर सोते थे। होश में रहने पर पापा घर के खर्चे के लिए पैसे दे दिया करते थे। अक्सर ज्यादा ही देते थे। उस समय हम दोनों से वो कम ही बात करते थे। शायद उन्हें भी गिल्ट था। पर ऐसा कम ही होता था। पर हमें पैसे की दिक्कत नहीं आती थी।
एक बार देर रात जब वो नशे में घर लौटे तो काफी लड़खड़ा रहे थे। वैसे जतिन ही उनको सहारा देकर उनके कमरे में ले जाता पर उस दिन वो थका हुआ था तो सो गया था। मैंने दरवाजा खोला तो वो लड़खड़ा कर मेरे ऊपर ही गिर पड़े। मैंने किसी तरह दरवाजा बंद किया और उनको उनके कमरे की तरफ ले चली। उनका हाथ मैंने अपने कंधे पर रखा हुआ था जो की मेरे स्तनों से टकरा रहा था। मेरा दूसरा स्तन भी उनसे काफी सटा हुआ था। पापा नशे में थे पर उनको मेरे शरीर का अंदाजा हुआ तो थोड़ा बहकने लगे थे। जब मैं उनको बिस्तर पर लेटाने लगी तो वो लेटने के बजाय बैठ गए और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे अपने तरफ खींच कर अपने गोद में बिठा लिया। मुझे नहीं मालूम उनके दिमाग में क्या चल रहा था और वो मुझे क्या समझ रहे थे। पर मैं थोड़ा सहम गई।
पापा - बैठो। थोड़ा मेरे पास बैठो।
मैं - पापा , क्या कर रहे हैं , मुझे जाने दीजिये। मैं अर्चना हूँ , आपकी बेटी।
पापा - चुप , बैठ मेरे पास। हल्ला मत मचा वार्ना मार कर तेरी हालत ख़राब कर दूंगा। बेटी है तो मेरी। मेरी ही संपत्ति है। ये सब रूपया पैसा तुझे ही तो देता हूँ। बैठ मेरे पास।
मैं डर के मारे कुछ नहीं बोली। पापा ने मेरे बदन से खेलना शुरू कर दिया। मैंने सलवार कुरता पहना हुआ था। वो मेरे कुर्ते के ऊपर से ही मेरे मुम्मे दबाने लगे थे। उन्होंने मेरे दोनों मुम्मे जोर जोर से दबाने शुरू कर दिए। मेरे स्तनों पर पहली बार किसी मर्द का हाथ पड़ा था। मैं तकलीफ में थी। मैंने कुछ देर तो बर्दास्त किया फिर उनको धक्का देकर भाग आई। कमरे में आते ही मैंने पापना दरवाजा बंद कर लिया और फूट फूट कर रोने लगी। मेरी आवाज सुनकर जतिन भी जग गया था।
उसने पुछा - क्या हुआ दीदी ?
मैं क्या जवाब देती की मेरा बाप ही मुझसे जबरदस्ती कर रहा है।
मैंने कुछ यही कहा और उसके बगल में लेट गई। उसने मुझे जकड लिया और मैंने भी उसे। हम दोनों भाई बहन एक दुसरे के बाहों में रोते रोते सो गए। अगले दिन पापा ने ऐसे बिहैव किया जैसे कुछ हुआ ही न हो। मैंने भी शांति रखने में ही भलाई समझी।
उस रात पापा फिर नशे में देर से आये। पर लगता है नशा कम किया था। जतिन उन्हें सहारा देकर कमरे में ले जाने लगा तो उन्होंने उसे मना कर दिया और मुझे अपने कमरे में बुला लिया। मैं डर गई थी। पर मज़बूरी थी। मैं कमरे में घुसी तो उन्होंने कहा - दरवाजा बंद कर दे।
मैंने डरते डरते दरवाजा बंद कर दिया। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और फिर से पिछले रात की तरह गोद में बिठा लिया और मेरे बदन से खेलने लगे। इसका मरतलब उन्हें पिछले रात का सब याद था।
उन्होंने मेरे स्तन दबाते हुए कहा - किसी यार से दबवाती है क्या ? कितने बड़े हो रखे हैं ? इतने तो तेरी माँ के भी नहीं थे।
मेरे आँखों से आंसू गिरने लगे। उन्होंने मेरे बदन को दबाना जारी रखा।
पापा - बता न , किसने दबा कर इतने बड़े कर दिए ? कहीं साली अपने भाई से ही तो नहीं सेट हो गई ?
मैं सुबकते हुए - पापा , कैसी बात करते हो। प्लीज छोड़ दो। मैं आपकी बेटी हूँ।
पापा - मेरी है न। मेरी प्रॉपर्टी है तू। मुझे पता ही नहीं था इतना बढ़िया प्रॉपर्टी बनाई है मैंने।
उनके दबाने और सहलाने से मैं भी गरम होने लगी थी। उन्होंने मेरे कपडे उतारने की कोशिश की तो मैंने कल की तरह उन्हें धक्का दिया और रोते हुए कमरे से भाग गई। वहां जाकर मैंने जतिन से गले लग कर रोना शुरू कर दिया। उस रात भी हम दोनों भाई बहन वैसे ही लिपट कर रोते हुए सो गए।
अब पापा का ये अक्सर का हो गया। जिस दिन वो रंडीबाजी करके आते , जाकर सीधे सो जाते। वरना मेरे बदन से खेलते। शुरू में मैं रोती थी पर बाद में मैंने ये स्वीकार कर लिया। मुझे लगता था इसी बहाने पापा बाहर रंडीबाजी बंद कर देंगे। उन्होंने रंडीबाजी कम तो की पर बंद नहीं की। पर उनकी इन हरकतों से मेरे शरीर में हलचल होने लगी थी। अब मैं उनके पास से आकर अपने कमरे के बाथरूम में चली जाती थी और वहां खुद को सैटिस्फाई कर लेती थी। जतिन को भी धीरे धीरे सब समझ आने लगा था। अब मैं रोती नहीं थी।
एक दिन पापा ने मेरे कपडे उतारने की फिर से कोशिश की तो मैंने कहा - जो भी करना है ऊपर से करिय। मैं आपकी बेटी हूँ, इस बात का तो ख्याल रखिये। अब पापा मुझे गोद में बिठा कर मेरे लंड को मेरे गांड के फांको के बीच सेट कर देते और मेरे कमर को आगे पीछे करने लगते थे। शुरू के एक दो दिन तो मुझे समझ नहीं आया , फिर मैं समझ गई। अब वो मेरे ऊपर ऐसे ही अपना माल निकाल देते थे।
पापा ने एक दो बार मुझे चूमने की कोशिश भी की, वो भी मेरे मुँह पर तो मैंने मना कर दिया। मैंने कहा - बदबू आती है। मुझे ये पसंद नहीं।
उसके बाद एक रात पापा पुरे होश में आये। उन्होंने शराब नहीं पी थी। उस रात हम दोनों भाई बहन बहुत आश्चर्य में थे। उस रात उन्होंने घर पर ही खाना खाया। खाना खाने के बाद उन्होंने हम दोनों से कुछ देर बात की फिर जतिन से कहा - जा बेटा तू पढाई कर।
जतिन समझ गया। वो अपने कमरे में चला गया। पापा ने मुझसे कहा - कमरे में आ जाना।
मैं कुछ देर बाद उनके कमरे में पहुंची। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और एक पैकेट देकर कहा - ये तुम्हारे लिए है।
अंदर एक सुन्दर सी साडी थी। मैं खुश हो गई।
पापा ने कहा - पहन कर दिखाओ।
मैंने पहले तो संकोच में थी। फिर उठ कर बाथरूम की तरफ जाने लगी।
पापा ने कहा - यहीं बदल लो।
मैंने कहा - नहीं प्लीज। जाने दीजिये।
पापा होश में थे। कहा - ठीक है।
मैंने अंदर पहुँच कर देखा तो पूरा सेट था। ब्लॉउज भी पूरा मेरे नाप का था। मैं सोच में थी की मेरे नाप का अंदाजा उनको कैसे हुआ। सब कुछ लगभग परफेक्ट। फिर मुझे खुद पर हंसी आ गई। इतने दिनों से तो पापा मेरे नाप ले ही रहे थे। ऊपर से ही सही पूरा बदन नाप तो लिया ही था। इधर कुछ महीनो से पीते भी कम ही थे तो अंदाजा याद होगा।
मैंने अपने कपडे उतारे और साडी पहन ली और शर्माते हुए अंदर पहुंची।
पापा मुझे देखते ही खड़े हो गए। उन्होंने कहा - कितनी सुन्दर लग रही है तू। सब फिट आ गया ना ?
मैंने हाँ में गर्दन हिलाई। उन्होंने कहा - तनु वैसे तो रंडी है पर कमाल का सिलाई करती है। तेरु ब्लॉउज उसने ही सिला है।
मुझे अब समझ आया। एक औरत से ही पापा ये सब सिल्वा सकते थे वो भी अंदाजा बता कर। मुझे अजीब सी सिहरन हुई। क्या उन्होंने उस तनु नाम की रंडी से मेरे बारे में भी बता दिया है ?
पापा - क्या सोच रही है ? उसकी माँ और वो दोनों खिलाड़ी है। एक बीवी बनकर चुदती है और ये मेरी बेटी बनकर।
मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा - जब ये सब कर ही लेते हैं तो मेरे लिए ये सब क्यों ? और जाइये उन दोनों माँ बेटी को ही चोदिये। रंडीबाजी ही सही है आपके लिए।
मैं जाने लगी तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने तरफ खींच लिया और मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए। उनके मुँह से कोई बदबू नहीं थी। आज उनका चूमना मुझे अच्छा लगा। कुछ देर की आनाकानी के बाद मैं भी मान गई। हम दोनों एक दुसरे के बाहों में समां गए।
पापा - वो दोनों रंडी ही है। तू मेरी बेटी है। तुझ पर हक़ है। बेटी का मजा अलग ही है।
कुछ देर चूमने के बाद पापा मेरी साडी उतरने लगे।
मैं - जब उतारना ही था तो पहनाया क्यों ?
पापा - मैं देखना चाहता था की मेरी बेटी एक औरत की तरह कैसी दिखती है। वरना मेरा बस चले तो तुझे नंगे ही घुमाऊं।
मैं - अच्छा , और कैसी लगी आपकी बेटी एक औरत की तरह।
पापा - एकदम खूबसूरत। अपनी माँ से भी बढ़कर।
माँ की याद आते ही मेरे आँखों में आंसू आ गए। मैं - इसी लिए अब तक माँ को और हमें तड़पाया।
पापा - मुझे माफ़ कर दो। अब नहीं होगा।
मैं - पता नहीं। आप आज ऐसे हो। फिर कल क्या करो ?
पापा - ये तो सही कह रही हो। लत ही ऐसी लगी है। मजबूर हो गया हूँ। पर कोशिश करूँगा बदलने की।
पापा ने फिर मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे ब्लॉउज को खोल कर मेरे स्तनों से खेलने लगे। पहली बार मैंने उन्हें इस हद तक इजाजत दी थी। पापा मेरे स्तनों से खेलते रहे। उन्होंने मेरे निप्पल को खूब खींचा और फिर आखिर में चूसने लगे।
पापा - तेर माँ के इतने बड़े नहीं थे। तेरे मस्त बड़े हैं।
मैं - उफ्फ्फ पापा क्या करते हैं। आराम से पीजिये। महीनो से आप दबा रहे हैं। पहले से बड़े थे और आपने खींच खींच कर और बड़ा कर दिया है। आह उफ़।
पापा ने मेरे पेटीकोट को उतार कर मुझे चोदना चाहा पर मैंने मना कर दिया। मैंने कहा - पापा आप उन दोनों को पेल लीजियेगा। मेरे साथ बस इतना ही
पापा - पर।
मैं पेट के बल लेट गई और कहा - आप मेरे ऊपर लेट जाइए और फारिग कर लीजिये खुद को।
पापा मेरे ऊपर लेट गए। उन्होंने मेरे चौड़े गांड के फांको में अपना लंड फंसाया और मेरे ऊपर खुद को ऐसे आगे पीछे करने लगे जाइए मुझे चोद रहे हो।
पापा - उफ़ क्या मस्त गांड है तेरी। चूत न सही गांड ही दे दे।
मैं - इस्सस पापा आराम से। अभी जो मिल रहा है वही सही। जिस दिन आप अपने सारी बुरी आदत छोड़ देंगे तब सोचूंगी।
पापा - उफ़ , आह आह। अब तो करना पड़ेगा।
पापा कुछ ही देर में मेरे पेटीकोट पर अपना माल उड़ेल कर खाली हो गए। उसके बाद मेरे बगल में पलट कर लेट गए। मैं कुछ देर बाद उठी और बाथरूम में जाकर अपने कपडे बदल लिए। मैं कमरे से जाने लगी तो पापा बोले - गलास में थोड़ी बर्फ दे जा।
मैंने गुस्से में कहा - आप अब यहाँ लेंगे ?
पापा - मुझे अब पीना होगा वरना नींद नहीं आएगी। चूत दे तो अभी छोड़ दू
मैंने गुस्से में कहा - आप दारू ही पीलो मुझे भूल जाओ।
मैं जैसे ही कमरे से बाहर निकली देखा तो जतिन वही बाहर नंगा खड़ा था। उसका पेंट निकला हुआ था और माल निचे निकला हुआ था।
मैं गुस्से में चीखने वाली ही थी की उसने अपने कान पकड़ लिए और कहा - पापा मारेंगे।
उसकी हालत देख मुझे हंसी आ गई। मैंने कहा - पेंट पहन और भाग वरना मैं मरूंगी।
मैं किचन से एक जग में ठंढा पानी और एक बाउल में बर्फ लेकर पापा के कमरे में गई। उन्होंने बोतल खोल राखी थी। मैं उनके कमरे से निकल अपने कमरे में आ गई।
जतिन बिस्तर पर लेता हुआ था। मैंने कहा - तू कब से वहां ताका झांकी कर रहा था ?
जतिन - शुरू से ही ?
मैंने सर पकड़ लिया - ये कबसे कर रहा है ?
जतिन - जिस दिन पापा ने तुमसे पहली बार जबरदस्ती करि थी।
मैं - तबसे ?
जतिन - हाँ। पहले तो समझ नहीं आया था। पर अब मैं भी बड़ा हो गया हूँ। सब समझ आने लगा है।
मैं हँसते हुए उसके लंड पर हाथ रखते हुए बोली - साले , तेरी नुन्नी तो इतनी सी है और कहता है बड़ा हो गया है।
जतिन ने रोना सा मुँह बनाते हुए कहा - दीदी , आप मेरा मजाक मत उड़ाओ।
मैंने उसे सीने से लगा लिया और कहा - मेरे छोटा भाई , गुस्सा हो गया। उले ले।
वो भी मेरे सीने से चिपकता हुआ बोला - आपको अच्छा लगने लगा है न ?
मैं - बीस से ऊपर की हो गईं हूँ। साथ की कितनी तो माँ बन गईं। और पापा भी बदलने लगे हैं। अगर ऐसा करके वो बदल जाते है तो सही है न।
जतिन - हम्म्म।
मैं - पर ये सब किसी को कहना मत मेरे भाई।
जतिन - ठीक है पर इसमें मेरा क्या फायदा ?
मैंने अपने मुम्मे उसके मुँह पर लगा दिया और कहा - तेरा ख्याल तो मैंने बचपन से रखा है। माँ जैसे। तू मेरे बेटे जैसा है।
जतिन ने मेरे कुर्ते को ऊपर किया और मेरे स्तनों पर मुँह लगाता हुआ बोला - माँ।
मैंने उसे सीने से लगा लिया और कहा - बेटा।।
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अर्चना की गरमा गरम कहानी सुनकर मेरा लंड खड़ा हो चूका था। सोफे पर मैं उसके एक तरफ था तो दूसरी तरफ जतिन।
मैंने कहा - आपकी कहानी सुनकर तो मैं गरम हो चूका हूँ। अब ठंढा करो।
जतिन - मैं भी।
अर्चना सोफे से उठ कर निचे बैठ गई। उसने मेरा पेंट उतार दिया। जतिन ने अपना पैंट खुद बा खुद उतार दिया। अर्चना ने मेरा लौड़ा देखते ही कहा - कितना बड़ा है रे। तेरी माँ से मिलना पड़ेगा। क्या दूध पिलाया होगा जो इतना बड़ा लौड़े है तेरा ।
मैं - मिल लेना पहले मेरे लौड़े को तो शांत करो।
अर्चना ने मेरे लंड को एप हाथ में लिया और मुठ मारने लगी।
जतिन - मेरे भी करो न दीदी।
अर्चना - हाथ लगाते ही झाड़ जायेगा। जरा रुक पहले इसके हथियार से खेल लू। पर तू खुद पर काबू रख।
वो बड़ी सफाई से मेरे लंड से खेलने लगी। कभी हाथों से कभी मुँह में लेकर।
जतिन फिर से बोला - प्लीज
उसने उसका लंड भी दुसरे हाथ में लिया अब वो हम दोनों का मुठ मार रही थी। मेरा तो इतनी जल्दी होने वाला नहीं था। जतिन कुछ देर में खलास हो गया। उसके बाद अर्चना का पूरा फोकस मुझे पर था।
मैंने कहा - आगे की कहानी सुनाओ डार्लिंग। मेरे में बहुत स्टेमिना है।
अर्चना - पता है , तू शेर है इतनी जल्दी नहीं झड़ेगा । सुन आगे की कहानी भी सुन।
Ek aur ko maa banayega.---------------------------------------------------------अर्चना की कहानी उसकी जुबानी ----------------------------------------------------------
उस दिन के बाद से ये दोनों बाप बेटे मेरे शरीर से खेलने लगे। पापा को ये पता नहीं था की जतिन भी मेरे शरीर के मजे ले रहा है। पर ये सब ऊपर ऊपर से ही होता था। न जतिन , न ही पापा किसी को भी मैंने अपनी चूत में ऊँगली तक नहीं करने दी थी। पापा को तो दर्शन भी नहीं हुए थे पर ऊपर ही ऊपर उन्होंने बहुत सहलाया था। पापा को चूत न देने की वजह थी मेरे अंदर का डर। उन्होंने बहुत रंडीबाजी की थी। मुझे डर था कोई बिमारी ना लेकर बैठे हों। मुझमे ये डर अंदर तक समाया था। पापा ने भी सब्र रखा हुआ था। पर आदत से मजबूर थी। रंडीबाजी और दारूबाजी बंद नहीं हुई थी।
पापा को उनके कहने पर मैं मुठिया जरूर देती थी। उन्होंने कई बार लंड को मुँह में लेने को कहा पर डर से मैंने लिया नहीं। मैं हर बार यही कहती थी उसके लिए वो दोनों रंडी हैं ना। वो ये सु नाराज भी होते, एक आध बार मुझे मार भी देते पर जोर जबरदस्ती नहीं करते। एक लेवल की अंडरस्टैंडिंग बन गई थी। पर उन्हें मेरे गांड पर चढ़ कर माल निकलना पसंद आने लगा था। कभी लेटे लेटे तो कभी कुतिया बना कर वि मेरे गांड के फैंको के बीच अपना माल निकाल लेटे थी।
पर मेरे इस प्यारे छोटे भाई के साथ सम्बन्ध आगे बढ़ चुके थी। हम दोनों एक दुसरे के सामने नंगे रह लेते। मैं इसकी लुल्ली चूसने लगी थी और ये मेरा चूत चाटने लगा था। कभी कभी इससे चूत में ऊँगली करवा लेती थी। पापा ने कई बार मुझे चोदने की कोशिश की और मेरा मन करता भी था पर हर बार मैं मना कर देती। इस चक्कर में वो मुझसे मार पीट भी करते और जब ऐसा होता उनका दारू पीना बढ़ जाता।
आखिर में हुआ वही तो जिसका डर था पापा एक दिन शराब पीकर आ रहे थे और उनका एक्सीडेंट हो गया। एक्सीडेंट इतना भयंकर था की उनकी ऑन स्पॉट मौत हो गई।
मेरे ससुर पापा के ऑफिस में ही काम करते थे। उन लोगों से थोड़ी पहचान पहले भी थी। उन्हें हमारे घर के अंदुरुनी मसलों का पता तो नहीं था पर पापा की बुरी आदतों का पता था। उन्हें मुझ पर थोड़ा तरस आया और अपने लड़के से मेरी शादी करने का प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने वादा किया जैसे सी जतिन का कॉलेज पूरा होगा पापा की जगह नौकरी लगवा देंगे। मुझे ये लोग अच्छे लगे तो मैं भी हाँ कर दी।
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पर मुझे पता नहीं था की मेरे पति के लौड़े में दम नहीं है। साला जोर लगा कर चोदता तो है पर रिजल्ट कुछ नहीं है। पर ये लोग अपनी कमी नहीं मानते हैं। मैंने भी कंप्लेंट नहीं किया क्योंकि मुझे लगा जतिन ही कुछ कर लेगा पर इस साले में भी कोई दम नहीं है। मुझे बच्चा चाहिए , अब ये दोनों नहीं तो कोई और सही। तू लंबा चौड़ा है , तेरे में दम है। मुझे यकीन है तू मेरे अंदर जो बीज डालेगा उसका फल तगड़ा आएगा।