पूरा माल निकल जाने पर उसने मुझे अपने पैरों के जकड से मुक्त किया , जिससे मैं उसके बगल में लुढ़क गया।
अर्चना - मजा आ गया आज तो। तुमने मेरी बरसों की तम्मन्ना पूरी कर दी।
अब जतिन भी आकर अर्चना के दुसरे साइड में लेट गया था और उसके मुम्मे को चूसने लगा था। अर्चना उसके बालों को सहला रही थी।
मैंने कहा - लगता है तुम्हारी और भी तमन्नाएँ हैं अपने पिता को लेकर। कहो तो वो भी पूरा कर दूँ।
अर्चना - सही कह रहे हो। पूरा हफ्ता है हमारे पास। सब पूरा करवाउंगी।
मैं कुछ और बोलता तभी मेरा फ़ोन बज उठा। माँ का फ़ोन था। कहानी के चक्कर में कितनी देर हो गई थी पता ही नहीं चला।
माँ - तेरा काम हो गया तो घर भी आजा। या आज रात वहीँ रुकने का इरादा है ?
मैं - नहीं माँ आ रहा हूँ। खाना बना कर रखना।
मैंने अर्चना से कहा - बहुत देर हो गई। घर पर माँ अकेली हैं। निकलता हूँ। फिर आऊंगा।
अर्चना - हमें भी माँ से मिलवाओ।
मैंने कहा - ठीक है। पूछता हूँ फिर बताऊंगा।
अर्चना - माँ को जब यहाँ का पता है तो मुझसे मिलने के लिए भी मना नहीं करेंगी।
मैं उसके आत्मविश्वास पर हैरान था। खैर मैंने तुरंत कपडे पहने और घर जा पहुंचा। घर पहुँचते ही माँ ने मुझे गले लगा लिया और कहा - हो गया काम ? भर दी उसकी कोख ?
मैं शर्मा गया । माँ ने कहा - एक बेटे का बाप बन चूका है और घर की लगभग हर औरतों को चोद चूका है और शर्मा ऐसे रहा है जैसे पहली बार किसी को पेला हो।
मैं - क्या माँ। तुम भी मेरी टांग खिंचाई करती रहती हो।
माँ - मैं तो तेरी हर टांग खींचूंगी। मेरे कोख से पैदा हुआ है। मेरा तुझ पर हक़ है। पर ये बता उसने तेरी तीसरी टांग खींची या नहीं।
माँ और उनकी हक़ की बात सुनकर मैंने कहा - माँ जानती हो उसकी भी एक कहानी है।
माँ ने कहा - चल पहले नहा ले , फिर कहानी सुनाना।
मने कहा - तुम भी चलो न।
माँ ने ना जाने क्या सोच कर कहा - चल आज मैं तुझे नहलाती हूँ।
मैं एकदम खुश हो गया। श्वेता के जाने के बाद से मैं काफी बीजी हो गया था। माँ के साथ भी सेक्स किये काफी दिन हो गए थे। शायद माँ ने मेरे और अर्चना के सेक्स के बारे में सोचा होगा इस लिए गरम हो गई होंगी। मैं और माँ उनके कमरे की तरफ चल पड़े। माँ ने कमरे में पहुँच कर मेरे सारे कपडे उतार दिए। सिर्फ अंडरवियर रहने दिया। उन्होंने साडी पहन रखी थी , जिसे उतार दिया। उन्होंने फिर अपना ब्लॉउज भी उतार दिया। मैंने उनके स्तनों पर हाथ लगाना चाहा तो उन्होंने रोक दिया और कहा - अभी रहने दे। फिर उन्होंने अपने पेटीकोट का नाडा खोलना शुरू किया मुझे लगा माँ पूरी नंगी हो जाएँगी। पर उन्होंने नाडा खोल कर अपने पेटीकोट को अपने सीने पर लेजाकर स्तनी के ऊपर बाँध लिया। अब उनके स्तन और कमर के निचे का हिस्सा दोनों ढक गए थे। माँ ऐसा नहाते वक़्त करती थी। नहाने जाते वक़्त और नाहाकर निकलते वक़्त उनका यही ड्रेस कोड रहता था।
माँ ने पहले से ही लगता है तैयारी कर रखी थी। उन्होंने बाथ टब में हल्का गुनगुना पानी भर रखा था। मुझे उन्होंने बाथटब में बिठा दिया और
खुद उसके किनारे बैठ गईं। उन्होंने मेरे पीठ पर साबुन लगाते हुए कहा - अब बता क्या कह रहा था उसके बारे में ? कैसी है वो ? श्वेता ने तो बड़ी तारीफ की थी उसकी। कह रही थी तेरे पसंद के हिसाब से ही गदराई बदन वाली है वो।
मैं - हाँ माँ। एकदम गदराई बदन वाली। भरा पूरा शरीर , बड़े बड़े स्तन और चौड़ी गांड। पता है उसके निप्पल खजूर से भी बड़े हैं ?
माँ - मतलब सुधा और मेरे से भी बड़े ?
मैं - अगर बड़े नहीं तो बराबर होंगे ही। पर तुम जैसी खूबसूरत नहीं है।
माँ - मतलब माल है।
मैं - हाँ एकदम चुदास माल। उसके पापा जवानी में शादी से पहले ही गुजर गए।
फिर मैंने माँ को अर्चना की सारी कहानी बतानी शुरू की। कुछ ही देर में माँ भी मेरे साथ टब में थी। अब टब के बीचो बीच बैठी थी और मैं उनके पीछे। कहानी सुनाते सुनाते मैं उनके शरीर पर साबुन लगा रहा था। साबुन क्या लगा रहा था मैं उसके शरीर से खेल रहा था। कभी उसके कंधे को चूमता हुआ मुम्मे दबाता तो कभी कान के लबों को चाटता हुआ पेट रगड़ता। माँ भी कभी अपने शरीर को आगे कर लेती तो कभी शरीर को पीछे करके मुझसे चिपका लेती। एकदम जबरदस्त रगड़ाई चल रही थी।
माँ ने बीच में मुझसे कहा - सामने आ जा। बहुत रगड़ लिया। अब मेरी चूत को शांत कर।
मैंने कहा - गोद में आ जाओ।
माँ - जैसे अर्चना अपने बाप से चुदती थी ?
मैं - हाँ। तुम भी तो नाना से ऐसे ही चुदती रही होगी ?
मां - बापू को सिर्फ तूने ह मात दिया है और कुछ हद तक तेरे पापा ने। वार्ना बापू ने कहाँ कहाँ नहीं चोदा है मुझे। जितने आसन लगाए हैं उनके साथ बस तूने ही किया है वैसा। और कुछ तो गाओं वाली बातें तो तू कर ही नहीं पाया।
मैं आगे हो गया और माँ से लिपट कर बोला - फिर चलो न गाओं कभी। चाची से मिले भी काफी दिन हो गया है।
माँ - सोच रही हूँ। या तो अपने गाँव या फिर नाना के यहाँ चलते हैं। वैसे भी होली आने वाली है। एकबार गाओं की होली खेलते हैं।
मैंने अपना लंड पकड़ कर हिलाते हुए कहा - मैं अपनी इसी पिचकारी से सबको रंग लगाऊंगा।
माँ ने भी मेरा लंड पकड़ लिया और कहा - तेरी पिचकारी पुरे गाओं भर में बड़ी होगी।
चल अब जरा इसी पिचकारी से मेरे अंदर रंग भर दे। इतने देर से पानी में हैं ठंढ लग रही है।
मैं माँ से चिपकता हुआ अपने लंड को उनके चूत में घुसा कर बोला - अभी पानी में आग लगाते हैं।
मां मेरे ऊपर चढ़ चुकी थी। हम दोनों के कमर ने एक लय पकड़ लिया था। एक साथ पीछे होते फिर एक साथ आगे। माँ ने कंधे से मुझे पकड़ रखा था। हम दोनों के हिलने से पानी में लहरे चलने लगीं थी। लग रहा था जैसे कोई ज्वार भाता सा आया हुआ हो। आग तो लग ही चुकी थी। पानी में हम दोनों की ये कुश्ती करीब पांच मिनट तक चली। हारने को कोई तैयार था ही नहीं । पर कब तक ऐसे चलता। आखिर में हम दोनों एक साथ धराशाही हुए। मेरा माल माँ के चूत में एकदम अंदर तक जा रहा था। कुछ देर वैसे लिपटे रहने के बाद माँ ने कहा - मजा आ गया। चल अब ठीक से नहाते हैं और खाना खाते है।
हम दोनों टब से निकल कर शावर के नीचे आ गए और गरम पानी से नहाकर फटाफट खाने के टेबल पर पहुँच गए।
खाना खाते खाते माँ ने कहा - ये बता , अपनी इस गदराई बिटिया से कब मिला रहा है ?
मैंने माँ का चेहरा देखते हुए कहा - वो भी मिलना चाह रही थी। मैं ही थोड़ा डर रहा था। कितना ही जानता हूँ उसे। दो बार ही तो मिला हूँ।
माँ ने हँसते हुए कहा - पहली बार में लंड मुँह में दिया और दूसरी बार में चोद लिया वो भी उसके घर में और कहता है सिर्फ दो बार मिला हूँ।
मैं हँसते हुए बोला - क्या माँ तुम भी ?
माँ - बेटीचोद शर्मा ऐसे रहा है जैसे चूत देखि ही ना हो।
मैंने - अच्छा रुको उसको कॉल करता हूँ।
माँ - लगा।
मैंने फ़ोन लगा दिया। मुश्किल से दो रिंग गई होगी की फ़ोन उठ गया। लगा जैसे फ़ोन लेकर बैठी हो। मैंने फ़ोन स्पीकर पर कर रखा था।
फ़ोन उठाते ही उसने कहा - हाय पापा , घर पहुँच गए।
मैं - हाँ।
अर्चना - और माँ चोद ली या आज रहने दिया ?
मैं कुछ बोलता उससे पहले माँ बोल पड़ी - हाँ चोद ली। माँ और बहन चोदने का रिकॉर्ड तो बना रखा था अब माँ और बेटी चोदने का भी रिकॉर्ड बनाएगा।
हँसते हुए अर्चना बोली - नमस्ते माँ जी। ऐसा बाप मिले तो हर लौंडिया चूत थाली में लेकर घूमेगी।
माँ - नमस्ते। फिर कब आ रही हो यहाँ ?
अर्चना - आपसे मिलने का बड़ा मन है। मेरा बस चले तो आज ही चली आऊं। पर लेट हो गया है। आप कहें तो कल आते हैं।
माँ - आजा कल लंच यहीं करना। अपने भाई को भी लेकर आना।
अर्चना - पर आपको माँ के रूप में ही देखूंगी ?
माँ - ठीक है।
अर्चना - नमस्ते माँ। कल मिलते हैं।
मैने माँ से कहा - क्या करना चाहती हो तुम?
माँ - मैं नाह तू करेगा। दारू पीकर हम दोनों से जबरजस्ती।
मैं - माँ , मुझसे नहीं होगा। वैसे भी आज उसको दो तीन बार मारा था।
माँ - मैं रेप करने को थोड़े ही कह रही हूँ। बस डोमिनेटिंग तरीके से प्यार कर। थोड़े थप्पड़ में मजा आता है।
मैं - पर।
माँ - कल की कल देख्नेगे। तेरा मन नहीं करेगा मत करना।
हम दोनों ने खाना ख़त्म किया और जाकर रजाई में घुस गए।