Shaandar update broपूरा माल निकल जाने पर उसने मुझे अपने पैरों के जकड से मुक्त किया , जिससे मैं उसके बगल में लुढ़क गया।
अर्चना - मजा आ गया आज तो। तुमने मेरी बरसों की तम्मन्ना पूरी कर दी।
अब जतिन भी आकर अर्चना के दुसरे साइड में लेट गया था और उसके मुम्मे को चूसने लगा था। अर्चना उसके बालों को सहला रही थी।
मैंने कहा - लगता है तुम्हारी और भी तमन्नाएँ हैं अपने पिता को लेकर। कहो तो वो भी पूरा कर दूँ।
अर्चना - सही कह रहे हो। पूरा हफ्ता है हमारे पास। सब पूरा करवाउंगी।
मैं कुछ और बोलता तभी मेरा फ़ोन बज उठा। माँ का फ़ोन था। कहानी के चक्कर में कितनी देर हो गई थी पता ही नहीं चला।
माँ - तेरा काम हो गया तो घर भी आजा। या आज रात वहीँ रुकने का इरादा है ?
मैं - नहीं माँ आ रहा हूँ। खाना बना कर रखना।
मैंने अर्चना से कहा - बहुत देर हो गई। घर पर माँ अकेली हैं। निकलता हूँ। फिर आऊंगा।
अर्चना - हमें भी माँ से मिलवाओ।
मैंने कहा - ठीक है। पूछता हूँ फिर बताऊंगा।
अर्चना - माँ को जब यहाँ का पता है तो मुझसे मिलने के लिए भी मना नहीं करेंगी।
मैं उसके आत्मविश्वास पर हैरान था। खैर मैंने तुरंत कपडे पहने और घर जा पहुंचा। घर पहुँचते ही माँ ने मुझे गले लगा लिया और कहा - हो गया काम ? भर दी उसकी कोख ?
मैं शर्मा गया । माँ ने कहा - एक बेटे का बाप बन चूका है और घर की लगभग हर औरतों को चोद चूका है और शर्मा ऐसे रहा है जैसे पहली बार किसी को पेला हो।
मैं - क्या माँ। तुम भी मेरी टांग खिंचाई करती रहती हो।
माँ - मैं तो तेरी हर टांग खींचूंगी। मेरे कोख से पैदा हुआ है। मेरा तुझ पर हक़ है। पर ये बता उसने तेरी तीसरी टांग खींची या नहीं।
माँ और उनकी हक़ की बात सुनकर मैंने कहा - माँ जानती हो उसकी भी एक कहानी है।
माँ ने कहा - चल पहले नहा ले , फिर कहानी सुनाना।
मने कहा - तुम भी चलो न।
माँ ने ना जाने क्या सोच कर कहा - चल आज मैं तुझे नहलाती हूँ।
मैं एकदम खुश हो गया। श्वेता के जाने के बाद से मैं काफी बीजी हो गया था। माँ के साथ भी सेक्स किये काफी दिन हो गए थे। शायद माँ ने मेरे और अर्चना के सेक्स के बारे में सोचा होगा इस लिए गरम हो गई होंगी। मैं और माँ उनके कमरे की तरफ चल पड़े। माँ ने कमरे में पहुँच कर मेरे सारे कपडे उतार दिए। सिर्फ अंडरवियर रहने दिया। उन्होंने साडी पहन रखी थी , जिसे उतार दिया। उन्होंने फिर अपना ब्लॉउज भी उतार दिया। मैंने उनके स्तनों पर हाथ लगाना चाहा तो उन्होंने रोक दिया और कहा - अभी रहने दे। फिर उन्होंने अपने पेटीकोट का नाडा खोलना शुरू किया मुझे लगा माँ पूरी नंगी हो जाएँगी। पर उन्होंने नाडा खोल कर अपने पेटीकोट को अपने सीने पर लेजाकर स्तनी के ऊपर बाँध लिया। अब उनके स्तन और कमर के निचे का हिस्सा दोनों ढक गए थे। माँ ऐसा नहाते वक़्त करती थी। नहाने जाते वक़्त और नाहाकर निकलते वक़्त उनका यही ड्रेस कोड रहता था।
माँ ने पहले से ही लगता है तैयारी कर रखी थी। उन्होंने बाथ टब में हल्का गुनगुना पानी भर रखा था। मुझे उन्होंने बाथटब में बिठा दिया और
खुद उसके किनारे बैठ गईं। उन्होंने मेरे पीठ पर साबुन लगाते हुए कहा - अब बता क्या कह रहा था उसके बारे में ? कैसी है वो ? श्वेता ने तो बड़ी तारीफ की थी उसकी। कह रही थी तेरे पसंद के हिसाब से ही गदराई बदन वाली है वो।
मैं - हाँ माँ। एकदम गदराई बदन वाली। भरा पूरा शरीर , बड़े बड़े स्तन और चौड़ी गांड। पता है उसके निप्पल खजूर से भी बड़े हैं ?
माँ - मतलब सुधा और मेरे से भी बड़े ?
मैं - अगर बड़े नहीं तो बराबर होंगे ही। पर तुम जैसी खूबसूरत नहीं है।
माँ - मतलब माल है।
मैं - हाँ एकदम चुदास माल। उसके पापा जवानी में शादी से पहले ही गुजर गए।
फिर मैंने माँ को अर्चना की सारी कहानी बतानी शुरू की। कुछ ही देर में माँ भी मेरे साथ टब में थी। अब टब के बीचो बीच बैठी थी और मैं उनके पीछे। कहानी सुनाते सुनाते मैं उनके शरीर पर साबुन लगा रहा था। साबुन क्या लगा रहा था मैं उसके शरीर से खेल रहा था। कभी उसके कंधे को चूमता हुआ मुम्मे दबाता तो कभी कान के लबों को चाटता हुआ पेट रगड़ता। माँ भी कभी अपने शरीर को आगे कर लेती तो कभी शरीर को पीछे करके मुझसे चिपका लेती। एकदम जबरदस्त रगड़ाई चल रही थी।
माँ ने बीच में मुझसे कहा - सामने आ जा। बहुत रगड़ लिया। अब मेरी चूत को शांत कर।
मैंने कहा - गोद में आ जाओ।
माँ - जैसे अर्चना अपने बाप से चुदती थी ?
मैं - हाँ। तुम भी तो नाना से ऐसे ही चुदती रही होगी ?
मां - बापू को सिर्फ तूने ह मात दिया है और कुछ हद तक तेरे पापा ने। वार्ना बापू ने कहाँ कहाँ नहीं चोदा है मुझे। जितने आसन लगाए हैं उनके साथ बस तूने ही किया है वैसा। और कुछ तो गाओं वाली बातें तो तू कर ही नहीं पाया।
मैं आगे हो गया और माँ से लिपट कर बोला - फिर चलो न गाओं कभी। चाची से मिले भी काफी दिन हो गया है।
माँ - सोच रही हूँ। या तो अपने गाँव या फिर नाना के यहाँ चलते हैं। वैसे भी होली आने वाली है। एकबार गाओं की होली खेलते हैं।
मैंने अपना लंड पकड़ कर हिलाते हुए कहा - मैं अपनी इसी पिचकारी से सबको रंग लगाऊंगा।
माँ ने भी मेरा लंड पकड़ लिया और कहा - तेरी पिचकारी पुरे गाओं भर में बड़ी होगी।
चल अब जरा इसी पिचकारी से मेरे अंदर रंग भर दे। इतने देर से पानी में हैं ठंढ लग रही है।
मैं माँ से चिपकता हुआ अपने लंड को उनके चूत में घुसा कर बोला - अभी पानी में आग लगाते हैं।
मां मेरे ऊपर चढ़ चुकी थी। हम दोनों के कमर ने एक लय पकड़ लिया था। एक साथ पीछे होते फिर एक साथ आगे। माँ ने कंधे से मुझे पकड़ रखा था। हम दोनों के हिलने से पानी में लहरे चलने लगीं थी। लग रहा था जैसे कोई ज्वार भाता सा आया हुआ हो। आग तो लग ही चुकी थी। पानी में हम दोनों की ये कुश्ती करीब पांच मिनट तक चली। हारने को कोई तैयार था ही नहीं । पर कब तक ऐसे चलता। आखिर में हम दोनों एक साथ धराशाही हुए। मेरा माल माँ के चूत में एकदम अंदर तक जा रहा था। कुछ देर वैसे लिपटे रहने के बाद माँ ने कहा - मजा आ गया। चल अब ठीक से नहाते हैं और खाना खाते है।
हम दोनों टब से निकल कर शावर के नीचे आ गए और गरम पानी से नहाकर फटाफट खाने के टेबल पर पहुँच गए।
खाना खाते खाते माँ ने कहा - ये बता , अपनी इस गदराई बिटिया से कब मिला रहा है ?
मैंने माँ का चेहरा देखते हुए कहा - वो भी मिलना चाह रही थी। मैं ही थोड़ा डर रहा था। कितना ही जानता हूँ उसे। दो बार ही तो मिला हूँ।
माँ ने हँसते हुए कहा - पहली बार में लंड मुँह में दिया और दूसरी बार में चोद लिया वो भी उसके घर में और कहता है सिर्फ दो बार मिला हूँ।
मैं हँसते हुए बोला - क्या माँ तुम भी ?
माँ - बेटीचोद शर्मा ऐसे रहा है जैसे चूत देखि ही ना हो।
मैंने - अच्छा रुको उसको कॉल करता हूँ।
माँ - लगा।
मैंने फ़ोन लगा दिया। मुश्किल से दो रिंग गई होगी की फ़ोन उठ गया। लगा जैसे फ़ोन लेकर बैठी हो। मैंने फ़ोन स्पीकर पर कर रखा था।
फ़ोन उठाते ही उसने कहा - हाय पापा , घर पहुँच गए।
मैं - हाँ।
अर्चना - और माँ चोद ली या आज रहने दिया ?
मैं कुछ बोलता उससे पहले माँ बोल पड़ी - हाँ चोद ली। माँ और बहन चोदने का रिकॉर्ड तो बना रखा था अब माँ और बेटी चोदने का भी रिकॉर्ड बनाएगा।
हँसते हुए अर्चना बोली - नमस्ते माँ जी। ऐसा बाप मिले तो हर लौंडिया चूत थाली में लेकर घूमेगी।
माँ - नमस्ते। फिर कब आ रही हो यहाँ ?
अर्चना - आपसे मिलने का बड़ा मन है। मेरा बस चले तो आज ही चली आऊं। पर लेट हो गया है। आप कहें तो कल आते हैं।
माँ - आजा कल लंच यहीं करना। अपने भाई को भी लेकर आना।
अर्चना - पर आपको माँ के रूप में ही देखूंगी ?
माँ - ठीक है।
अर्चना - नमस्ते माँ। कल मिलते हैं।
मैने माँ से कहा - क्या करना चाहती हो तुम?
माँ - मैं नाह तू करेगा। दारू पीकर हम दोनों से जबरजस्ती।
मैं - माँ , मुझसे नहीं होगा। वैसे भी आज उसको दो तीन बार मारा था।
माँ - मैं रेप करने को थोड़े ही कह रही हूँ। बस डोमिनेटिंग तरीके से प्यार कर। थोड़े थप्पड़ में मजा आता है।
मैं - पर।
माँ - कल की कल देख्नेगे। तेरा मन नहीं करेगा मत करना।
हम दोनों ने खाना ख़त्म किया और जाकर रजाई में घुस गए।
Shandaar updateपूरा माल निकल जाने पर उसने मुझे अपने पैरों के जकड से मुक्त किया , जिससे मैं उसके बगल में लुढ़क गया।
अर्चना - मजा आ गया आज तो। तुमने मेरी बरसों की तम्मन्ना पूरी कर दी।
अब जतिन भी आकर अर्चना के दुसरे साइड में लेट गया था और उसके मुम्मे को चूसने लगा था। अर्चना उसके बालों को सहला रही थी।
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अर्चना - सही कह रहे हो। पूरा हफ्ता है हमारे पास। सब पूरा करवाउंगी।
मैं कुछ और बोलता तभी मेरा फ़ोन बज उठा। माँ का फ़ोन था। कहानी के चक्कर में कितनी देर हो गई थी पता ही नहीं चला।
माँ - तेरा काम हो गया तो घर भी आजा। या आज रात वहीँ रुकने का इरादा है ?
मैं - नहीं माँ आ रहा हूँ। खाना बना कर रखना।
मैंने अर्चना से कहा - बहुत देर हो गई। घर पर माँ अकेली हैं। निकलता हूँ। फिर आऊंगा।
अर्चना - हमें भी माँ से मिलवाओ।
मैंने कहा - ठीक है। पूछता हूँ फिर बताऊंगा।
अर्चना - माँ को जब यहाँ का पता है तो मुझसे मिलने के लिए भी मना नहीं करेंगी।
मैं उसके आत्मविश्वास पर हैरान था। खैर मैंने तुरंत कपडे पहने और घर जा पहुंचा। घर पहुँचते ही माँ ने मुझे गले लगा लिया और कहा - हो गया काम ? भर दी उसकी कोख ?
मैं शर्मा गया । माँ ने कहा - एक बेटे का बाप बन चूका है और घर की लगभग हर औरतों को चोद चूका है और शर्मा ऐसे रहा है जैसे पहली बार किसी को पेला हो।
मैं - क्या माँ। तुम भी मेरी टांग खिंचाई करती रहती हो।
माँ - मैं तो तेरी हर टांग खींचूंगी। मेरे कोख से पैदा हुआ है। मेरा तुझ पर हक़ है। पर ये बता उसने तेरी तीसरी टांग खींची या नहीं।
माँ और उनकी हक़ की बात सुनकर मैंने कहा - माँ जानती हो उसकी भी एक कहानी है।
माँ ने कहा - चल पहले नहा ले , फिर कहानी सुनाना।
मने कहा - तुम भी चलो न।
माँ ने ना जाने क्या सोच कर कहा - चल आज मैं तुझे नहलाती हूँ।
मैं एकदम खुश हो गया। श्वेता के जाने के बाद से मैं काफी बीजी हो गया था। माँ के साथ भी सेक्स किये काफी दिन हो गए थे। शायद माँ ने मेरे और अर्चना के सेक्स के बारे में सोचा होगा इस लिए गरम हो गई होंगी। मैं और माँ उनके कमरे की तरफ चल पड़े। माँ ने कमरे में पहुँच कर मेरे सारे कपडे उतार दिए। सिर्फ अंडरवियर रहने दिया। उन्होंने साडी पहन रखी थी , जिसे उतार दिया। उन्होंने फिर अपना ब्लॉउज भी उतार दिया। मैंने उनके स्तनों पर हाथ लगाना चाहा तो उन्होंने रोक दिया और कहा - अभी रहने दे। फिर उन्होंने अपने पेटीकोट का नाडा खोलना शुरू किया मुझे लगा माँ पूरी नंगी हो जाएँगी। पर उन्होंने नाडा खोल कर अपने पेटीकोट को अपने सीने पर लेजाकर स्तनी के ऊपर बाँध लिया। अब उनके स्तन और कमर के निचे का हिस्सा दोनों ढक गए थे। माँ ऐसा नहाते वक़्त करती थी। नहाने जाते वक़्त और नाहाकर निकलते वक़्त उनका यही ड्रेस कोड रहता था।
माँ ने पहले से ही लगता है तैयारी कर रखी थी। उन्होंने बाथ टब में हल्का गुनगुना पानी भर रखा था। मुझे उन्होंने बाथटब में बिठा दिया और
खुद उसके किनारे बैठ गईं। उन्होंने मेरे पीठ पर साबुन लगाते हुए कहा - अब बता क्या कह रहा था उसके बारे में ? कैसी है वो ? श्वेता ने तो बड़ी तारीफ की थी उसकी। कह रही थी तेरे पसंद के हिसाब से ही गदराई बदन वाली है वो।
मैं - हाँ माँ। एकदम गदराई बदन वाली। भरा पूरा शरीर , बड़े बड़े स्तन और चौड़ी गांड। पता है उसके निप्पल खजूर से भी बड़े हैं ?
माँ - मतलब सुधा और मेरे से भी बड़े ?
मैं - अगर बड़े नहीं तो बराबर होंगे ही। पर तुम जैसी खूबसूरत नहीं है।
माँ - मतलब माल है।
मैं - हाँ एकदम चुदास माल। उसके पापा जवानी में शादी से पहले ही गुजर गए।
फिर मैंने माँ को अर्चना की सारी कहानी बतानी शुरू की। कुछ ही देर में माँ भी मेरे साथ टब में थी। अब टब के बीचो बीच बैठी थी और मैं उनके पीछे। कहानी सुनाते सुनाते मैं उनके शरीर पर साबुन लगा रहा था। साबुन क्या लगा रहा था मैं उसके शरीर से खेल रहा था। कभी उसके कंधे को चूमता हुआ मुम्मे दबाता तो कभी कान के लबों को चाटता हुआ पेट रगड़ता। माँ भी कभी अपने शरीर को आगे कर लेती तो कभी शरीर को पीछे करके मुझसे चिपका लेती। एकदम जबरदस्त रगड़ाई चल रही थी।
माँ ने बीच में मुझसे कहा - सामने आ जा। बहुत रगड़ लिया। अब मेरी चूत को शांत कर।
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माँ - जैसे अर्चना अपने बाप से चुदती थी ?
मैं - हाँ। तुम भी तो नाना से ऐसे ही चुदती रही होगी ?
मां - बापू को सिर्फ तूने ह मात दिया है और कुछ हद तक तेरे पापा ने। वार्ना बापू ने कहाँ कहाँ नहीं चोदा है मुझे। जितने आसन लगाए हैं उनके साथ बस तूने ही किया है वैसा। और कुछ तो गाओं वाली बातें तो तू कर ही नहीं पाया।
मैं आगे हो गया और माँ से लिपट कर बोला - फिर चलो न गाओं कभी। चाची से मिले भी काफी दिन हो गया है।
माँ - सोच रही हूँ। या तो अपने गाँव या फिर नाना के यहाँ चलते हैं। वैसे भी होली आने वाली है। एकबार गाओं की होली खेलते हैं।
मैंने अपना लंड पकड़ कर हिलाते हुए कहा - मैं अपनी इसी पिचकारी से सबको रंग लगाऊंगा।
माँ ने भी मेरा लंड पकड़ लिया और कहा - तेरी पिचकारी पुरे गाओं भर में बड़ी होगी।
चल अब जरा इसी पिचकारी से मेरे अंदर रंग भर दे। इतने देर से पानी में हैं ठंढ लग रही है।
मैं माँ से चिपकता हुआ अपने लंड को उनके चूत में घुसा कर बोला - अभी पानी में आग लगाते हैं।
मां मेरे ऊपर चढ़ चुकी थी। हम दोनों के कमर ने एक लय पकड़ लिया था। एक साथ पीछे होते फिर एक साथ आगे। माँ ने कंधे से मुझे पकड़ रखा था। हम दोनों के हिलने से पानी में लहरे चलने लगीं थी। लग रहा था जैसे कोई ज्वार भाता सा आया हुआ हो। आग तो लग ही चुकी थी। पानी में हम दोनों की ये कुश्ती करीब पांच मिनट तक चली। हारने को कोई तैयार था ही नहीं । पर कब तक ऐसे चलता। आखिर में हम दोनों एक साथ धराशाही हुए। मेरा माल माँ के चूत में एकदम अंदर तक जा रहा था। कुछ देर वैसे लिपटे रहने के बाद माँ ने कहा - मजा आ गया। चल अब ठीक से नहाते हैं और खाना खाते है।
हम दोनों टब से निकल कर शावर के नीचे आ गए और गरम पानी से नहाकर फटाफट खाने के टेबल पर पहुँच गए।
खाना खाते खाते माँ ने कहा - ये बता , अपनी इस गदराई बिटिया से कब मिला रहा है ?
मैंने माँ का चेहरा देखते हुए कहा - वो भी मिलना चाह रही थी। मैं ही थोड़ा डर रहा था। कितना ही जानता हूँ उसे। दो बार ही तो मिला हूँ।
माँ ने हँसते हुए कहा - पहली बार में लंड मुँह में दिया और दूसरी बार में चोद लिया वो भी उसके घर में और कहता है सिर्फ दो बार मिला हूँ।
मैं हँसते हुए बोला - क्या माँ तुम भी ?
माँ - बेटीचोद शर्मा ऐसे रहा है जैसे चूत देखि ही ना हो।
मैंने - अच्छा रुको उसको कॉल करता हूँ।
माँ - लगा।
मैंने फ़ोन लगा दिया। मुश्किल से दो रिंग गई होगी की फ़ोन उठ गया। लगा जैसे फ़ोन लेकर बैठी हो। मैंने फ़ोन स्पीकर पर कर रखा था।
फ़ोन उठाते ही उसने कहा - हाय पापा , घर पहुँच गए।
मैं - हाँ।
अर्चना - और माँ चोद ली या आज रहने दिया ?
मैं कुछ बोलता उससे पहले माँ बोल पड़ी - हाँ चोद ली। माँ और बहन चोदने का रिकॉर्ड तो बना रखा था अब माँ और बेटी चोदने का भी रिकॉर्ड बनाएगा।
हँसते हुए अर्चना बोली - नमस्ते माँ जी। ऐसा बाप मिले तो हर लौंडिया चूत थाली में लेकर घूमेगी।
माँ - नमस्ते। फिर कब आ रही हो यहाँ ?
अर्चना - आपसे मिलने का बड़ा मन है। मेरा बस चले तो आज ही चली आऊं। पर लेट हो गया है। आप कहें तो कल आते हैं।
माँ - आजा कल लंच यहीं करना। अपने भाई को भी लेकर आना।
अर्चना - पर आपको माँ के रूप में ही देखूंगी ?
माँ - ठीक है।
अर्चना - नमस्ते माँ। कल मिलते हैं।
मैने माँ से कहा - क्या करना चाहती हो तुम?
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माँ - मैं रेप करने को थोड़े ही कह रही हूँ। बस डोमिनेटिंग तरीके से प्यार कर। थोड़े थप्पड़ में मजा आता है।
मैं - पर।
माँ - कल की कल देख्नेगे। तेरा मन नहीं करेगा मत करना।
हम दोनों ने खाना ख़त्म किया और जाकर रजाई में घुस गए।
उनकी शादी के बाद मैं और माँ अकेले हो गए थे। थोड़े दिनों तक घर में अकेलापन तो रहता पर कुछ ही दिनों में सब सामान्य हो गया।
सुधा दीदी की शादी पास के ही शहर में हुई थी तो वो अक्सर यहाँ चली आती थी। पर अकेला होने का ये फायदा हुआ की मैं और माँ एकदम फ्री हो गए। स्कूल से आकर खाना खाने के बाद हम दोनों सोफे पर बैठ कर टीवी देखते थे और मेरा पसंद का काम था उस समय माँ के मुम्मो से खेलना। उनकी गोद में लेटते ही मैं उनके ब्लाउज के बटन खोल देता और फिर उनके मुम्मे चूसने लगता। चूसते चूसते मैं उनके मुम्मे जोर जोर से दबाता भी था जिस पर माँ डांट कर कहती - आराम से कर। न मैं भाग रही न मेरे मुम्मे।
फिर मैं आराम से पीने लगता। कभी कभी मैं उनके गोद में सीने से चिपक कर बैठ जाता और बन्दर के बच्चे की तरह पीने लगता था। इस आसन मैं दूध कम पीता उनके मुम्मो की मालिश खूब करता। मुझे उनके बड़े बड़े निप्पल बड़े अच्छे लगते। मैं उन्हें अपनी उँगलियों में दबा कर खींचता जैसे रबड़ हों। हम दोनों एक दुसरे को किस भी करते थे। पिछले साल जब मैंने कॉलेज में एडमिशन लिया था तब मेरा लंड पूर्णतया विक्सित हो चूका था। मैं मास्टरबेट भी करने लगा था। माँ के साथ लिपटा चिपटी में मेरा लंड एकदम खड़ा हो जाता तो मैं भागकर बाथरूम में चला जाता और मुठ मार लेता। माँ समझती थी। वो मुझे वापस देख कर मुस्कुराती थी। ये हम दोनों की आपस की समझ थी।
कॉलेज में मेर गर्लफ्रेंड नहीं बनी थी। ऐसा नहीं था की मैंने कोशिश नहीं की थी। एक आध लड़कियां पसंद आई पर उन्होंने मुझे रिजेक्ट कर दिया। मैंने दो तीन बार लड़कियां पटाने की और कोशिश की पर हर बार असफल ही रहा। फिर मैंने भी कोशिश छोड़ दी। घर पर माँ थी।
बल्कि एक दिन मेरे मास्टरबेट करने के बाद माँ ने टोक दिया की ये सब हरकतें करने के बजाय कोई लड़की पता लूँ। मैंने उन्हें बता दिया की कैसे मेरी कोशिश बेकार जा रही थी। मां को उस दन काफी दया आई मुझ पर और प्यार भी। उस दिन रात में माँ ने मुझे मालिश करने को बोला। मैं माँ के पैरों और कमर की मालिश करता रहता था तो कोई नई बात नहीं थी। मै तेल लेकर आया तो माँ ने कहा यहाँ नहीं बेड पर।
हम दोनों बैडरूम में पहुंच गए। माँ सीधे लेट गईं। मैंने उनके दोनों पैरो की खूब मालिश की। इस चक्कर में माँ का पेटीकोट उनके जांघो तक सिकुड़ गया था। फिर माँ ने अपने ब्लॉउस का बटन खोल कर ब्लॉउस उतार दिया और पेट के बल लेट गई। बोली - मेरे पीठ की मालिश कर दे। मैं उनके साइड में आ गया और हाथो से पीठ की मालिश करने लगा।
तभी माँ ने कहा - सुन ऐसा कर तू अपने शर्ट को उतार कर मेरे पीठ पर लेट जा। हाथो से तो दर्द नहीं जा रहा। शायद वजन पड़े तो राहत मिले।
ये सुन मैं एकदम से एक्साइट हो गया। मैंने झट से अपना टी-शर्ट उतार दिया। मैंने कहा - माँ मेरा बरमूडा खराब हो जायेगा इसे भी उतार दूँ।
माँ ने कहा - हूँह , ठीक है उतार दे। तेरा बरमुडा मुझे गड़ेगा भी नहीं।
मैं सिर्फ अंडरवियर में आ गया। अब मैंने अपने दोनों पैर माँ के दोनों तरफ कर लिया और उनके पिछवाड़े पर बैठ गया। मैंने माँ से पुछा - माँ भारी तो नहीं लग रहा न ?
माँ - नहीं जब लगेगा तो बोल दूंगी। आपको बता दूँ मेरी माँ का शरीर भरा पूरा सा था। उनके गांड उभरे उभरे गद्देदार से थे। उनके साइड में कोई चर्बी नहीं थी पर सीना भरा पूरा था। चूँकि मैं अब भी दूध पीता था। उनके मुम्मे बड़े ही होते जा रहे थे। उनका पेट निकला तो नहीं था पर भरा हुआ था। वो उतनी ही गोरी और चिकनी थी।
अब मैंने अपने शरीर को उनके शरीर पर लिटा दिया और अपना पेट और सीना उनके पीठ पर रगड़ने लगा। मैं अपने शरीर से उनके शरीर की मालिश कर रहा था। मेरे पहली बार ऐसा करते ही माँ की सिसकियाँ निकल गई। मैंने पोर्न फिल्म्स में ऐसी मालिश बहुत देखि थी। मैं एकदम वैसे ही कर रहा था। मैं कभी अपने शरीर को माँ के शरीर के निचले हिस्से से रगड़ते हुए ऊपर की तरफ ले जाता और कभी ऊपर से निचे। मां - हाँ , सही कर रहा है लाल। ऐसे ही क। अच्छा लग रहा है। दर्द कम रहा है। हम्म हम्म आह आह। रगड़ ऐसे ही रगड़।
मेरा लंड जो अपने पुरे शेप में आ गया था माँ के पिछवाड़े में अटक रहा था। मेरा लंड अब अंडरवियर के छेद से बाहर आ चूका था। मैं जब भी ऊपर जाता मेरा लंड माँ की गांड में घुसने को होता और मेरे नीचे आते ही बहार निकलता। माँ के भारी ऐस चीक्स के बीच में फंसा लंड पुरे मजे ले रहा था। कोई देखता तो यही समझता की मैं माँ की गांड मार रहा हूँ। पर मेरा लंड तो माँ के बड़े बड़े चूतड़ों के बीच फंसा हुआ था। अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा था। माँ भी पूरी तरह से गरमा गई थीं। मैंने अब मालिश करना छोड़ दिया और उनके ऊपर पूरी तरह से लेट गया। माँ ने भी अपने गांड को थोड़ा फैलने दिया। अब मेरा लंड पूरी तरह से उनके गांड में फंसा था। मैंने पुरे मजे में था। और मजे लेने के लिए मैं अपने हाथ उनके निचे लेजाने लगा। मैं उनके बूब्स को दबाना चाहता था। तभी माँ ने कहा - रुक जरा। कह कर उन्होंने एक ताकिया लिया और अपने सर के पास रख लिया फिर अपने केहुनी के सहारे अपने शरीर को थोड़ा उठा लिया। अब मेरा हाथ आसानी से निचे घुस गया। मैंने माँ के मुम्मे पकड़ लिए और दबाने लगा।
माँ - आह आह बड़ा आराम मिल रहा है। बहुत बढ़िया मालिश करने लगा है कहाँ से सीखा तूने। लगा रह।
मैं अब अपने हाथो से माँ के मुम्मे निचोड़ रहा था और उनकी गांड में फंसे अपने लंड को आगे पीछे कर रहा था। उनका पेटीकोट तो कब का हट चूका था और मेरा लंड उनकी नंगे गांड में फंसा हुआ था।
माँ - संभाल कर ऊपर ही रहना मेरे लाल। माँ हूँ तेरी अंदर मत डाल देना।
मैं समझ गया था माँ मुझे सीधे सीधे चोदने से मना कर रही थी।
मैं - हां माँ चिंता मत कर। सिर्फ मालिश करूँगा। तेरी गांड कितनी चिकनी है। अभी तक मुझे तेरे मुम्मो से ही प्यार था पर अब तो मस्त गांड भी मजे देती है। माँ मैं ऐसे ही तेरी मालिश किए करूँगा। करवाएगी न ?
माँ - हां बेटा। तू ही तो मेरे दर्द को दूर कर सकता है। तेरा जब मन करे चढ़ कर दर्द उतार दिया कर। इससे तेरी गर्मी भी निकल जाएगी।
कब तक हाथो के सहारे लगा रहेगा। कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं बन रही तेरी
मैं - तू है न मेरी दोस्त। मेरा हर दर्द समझती है।
माँ - क्या करूँ, मैं तुझे दुखी नहीं देख सकती। पर मैं तो बूढी हो गई हूँ। दो दो लड़कियों की शादी कर चुकी मुझे क्या फ्रेंड बनाएगा कोई ढूंढ ले
मैं - कोशिश तो की माँ पर क्या करूँ। शायद ऊपर वाला भी मुझे तेरे प्यार में ही रखना चाहता है। तू ही मेरी सबकुछ है
माँ - हाँ और तू मेरा। जरा जल्दी कर। अब माँ को मेरा वजन महसूस होने लगा था। मैंने अपने झटको की स्पीड बढ़ा दी। थोड़ी ही देर में मेरे लंड ने माँ की गांड पर ही अपना पानी उड़ेल दिया। पानी निकलते ही मुझे थोड़ी शर्म सी आई और मैं उठ कर बैठ गया।
माँ ने कहा - अरे पेटीकोट से मेरे पीछे साफ़ तो कर। मैंने माँ के पेटीकोट से उनके गांड और पीठ पर लगे अपने वीर्य को पोछ दिया। माँ वैसे ही लेटी रही। मैं भी बगल में लेट गया। माँ मुझे देख रही थ। उसने मेरे बाल सहलाने शुरू कर दिया। मैं शर्मा रहा था। माँ बोली - माँ से शर्मा रहा है ? गांड में अपना माल निकाल लिया और इनको देखो शर्म आ रही है।
मैंने मुश्कुराते हुए माँ को चूम लिया। हम दोनों वैसे ही लेते लेते सो गए।
कुछ दिनों बाद की बात है एक चाचा और चाची गाओं से हमारे लिए अनाज लेकर आये। उनकी लड़की यहीं गर्ल्स कॉलेज के हॉस्टल में रहकर ग्रेजुएशन कर रही थी। उसके कॉलेज में सभी लड़कियां बोर्डिंग में रहकर ही पढ़ती थी। बाहर रहने की परमिशन नहीं थी। पर पेरेंट्स आकर मिल सकते थे। चाचा चाची ने सोचा था की यहाँ आकर श्वेता से भी मिल लेंगे। दोनों घर आकर श्वेता के हॉस्टल गए और उससे मिल भी आये। मैं भी उनके साथ गया था। हम सबसे मिल कर श्वेता बहुत खुश थी। मैं उसके कॉलेज में जाकर अचम्भे में था। चारों तरफ लड़कियां ही लड़कियां। वैसे तो मेरा कॉलेज को-एड था और मेरे यहाँ भी लड़कियां थी पर यहाँ तो सिर्फ लड़कियां ही लड़कियां। हर तरह की लड़कियां। छोटी, लम्बी , दुबली मोट। किसी का सीना सपाट तो किसी के वो बड़े बड़े मुम्मे। हमें हॉस्टल जाने की परमिशन नहीं थी। कॉलेज कैंपस में गेट के पास ही ऑफिस में मिलने दिया गया।
मुझे देख कर श्वेता काफी खुश हो गई। कहा - भैया कितने बड़े हो गए हैं ।
मैंने कहा - तू भी तो बड़ी हो गई है ।
वो चाचा और चाची से बातें कर रही थी और मैं बाहर दिख रही परियों को ताड़ रहा था। चाचा थोड़ी देर बाद बाहर चले गए । मैं और चाची बैठे श्वेता से बातें कर रहे थे।
श्वेता ने मुझे ताड़ते देख कर कहा - बस कर रे। भइआ आपके कॉलेज में भी लड़कियां होंगी। मन नहीं भरता जो यहाँ देख भूखे नंगे की तरह देख रहे है।
मै खोया हुआ था। न जाने क्या हुआ मैंने जवाब दिया - अरे वहां लड़कियां हैं यहाँ तो माल है। हर तरह का माल। और सच कहूँ इन्हे देख कर नंगे हो जाने का मन करता है।
मेरा जवाब देखा कर दोनों हक्के बक्के रह गए। श्वेता ने जोर की चपत मेरे सर पर लगाई और बोला - माँ भैया कितने बिगड़ गए है। चाची को बोलना कितनी घटिया बात करते हैं । इनकी तो पिटाई होनी चाहिए।
तब मुझे अहसास हुआ की मैं क्या बोल गया। पर तीर तो कमान से निकल पड़ा था।
चाची बोलीं - जाने दे , जवान हो रहा है। लड़का है लड़कों से गलती हो जाती है।
श्वेता - माँ, अगर मैं ऐसा कुछ बोल दूँ या कुछ गलत हरकत कर जाऊं तो तू तब भी मुझे माफ़ कर देगी।
चाची - भाई बालिग़ हो गई हो। मर्जी से जो करो। बस जो करो उसके लिए जिमेदार तुम ही होगी। बस प्रेग्नेंट मत हो जाना।
श्वेता और मैं चाची की बात सुन कर दांग थे। गाओं में रहने वाली इतनी खुले दिमाग की हो सकती है ये उम्मीद नहीं थी।
श्वेता - माँ आप निश्चिन्त रहो। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करुँगी। और जो भी करुँगी अपने होश में करुँगी आपको बता कर करुँगी। मेरी अच्छी माँ आपसे कुछ भी नहीं छुपाउंगी। पर इन भाई साहब पर भरोसा नहीं। ताऊ जी इतने अच्छे थे कहाँ से नालायक पैदा किया है।
मुझे सुन कर गुस्सा आ गया। मैंने कहा - बताऊँ कहाँ से पैदा किया है ?
चाची - बस करो लड़ना झगड़ना। वैसे भी तुझसे बड़ा है ये।
श्वेता - थोड़े ही तो बड़े हैं। और सिर्फ उम्र में बड़े हैं। कॉलेज में सेम ईयर में हैं।
मैं - न न तू तो मुझसे सीनियर है।
तभी चाचा आ गए। बोले - लड़ना , झगड़ना हो गया हो तो चलें।
निकलने से पहले दोनों हॉस्टल के वार्डन से मिले और मेरा परिचय करवा दिया। उन्होंने इस बात की परमिशन ले ली की कभी कभी श्वेता हमारे घर आ सकती है और मुझे अंदर आने की परमिशन भी कभी कभी मिल जाए ताकि घर का खाना पहुंचा सके।
अगले दिन चाचा गाओं चले गए। माँ ने चाची को रोक लिया था। कहा - हम दोनों सुधा और सरला के बाद से अकेले रह गए हैं। रह जाएँगी तो थोड़ा मन लग जायेगा। चाचा मान गए। उनके खेत में काम करने वाला एक परिवार वहीँ उनके घर में काम के लिए ही रहता था। तो खाने की दिक्कत नहीं थी। चाची ने कहा थोड़ी शॉपिंग भी कर लेंगी और श्वेता से एक आध बार और मिल लेंगी। माँ ने कहा उसे किसी दिन घर भी ले आएंगे।
चाची ने दुसरे ही दिन ताड़ लिया की माँ के अंदर बदलाव है। मुझसे नजदीकियां बढ़ने की वजह से वो खुश रहने लगी हैं। चेहरे में निखार भी आ गया है। मैं तो खैर सबका दुलारा था। सबके सामने माँ से लिपटता चिपटता था फिर भी अब मेरी हरकतों में थोड़ी वासना जुड़ चुकी थी। चाची ने गौर कर लिया था की मैं माँ को किस नज़रों से देखता हूँ।
एक दिन रात में खाना बताते समय चाची ने माँ से पूछ ही लिया - दीदी बड़ा निखर गई हो। लगता है प्यार हो गया है किसी से।
माँ - क्या रे छोटी , मुझ बुढ़िया से प्यार ? प्यार तो राज के पापा करते थे। उनके जाने के बाद तो अकेली रह गईं हूँ
चाची - अकेली कहा राज है न। अब तो वो भी बड़ा हो गया है
माँ - हाँ वही तो एक सहारा है। वो है तो मन लगा रहता है।
चाची - लगता है बहुत प्यार करता है तुमसे
माँ ने चाची की तरफ देखा उनके सवाल को समाजः तो गईं पर बोली - क्या मतलब है तेरा? बेटा है प्यार तो करेगा ही।
चाची - हाँ काश मेरा भी एक बेटा होता ऐसे ही प्यार करता।
माँ समझ गई चाची को शक है। पर चाची से कोई ख़ास परदा नहीं था। दोनों शुरू से सखी जैसी ही थी।
माँ बोली - कर ले एक बेटा। अभी तेरी उम्र ही क्या है। गाओं में वो फुलिया है न अब तक तो बच्चे पैदा कर रही है। पिछले साल ही तो उसकी बहु और उसने एक साथ बच्चा पैदा किया है। बहु को लड़की हुई और फ़ुलिआ ने तो लड़का जन दिया।
चाची - फुलिया की बात तो मत ही करो। पता नहीं किसका किसका पैदा कर रही है। उसके पति तो दिन भर नशे में रहते हैं। वो तो भला हो लड़के मेहनती हैं और घर में अनाज और पैसो की कमी नहीं रखते वार्ना इतने बच्चे कैसे सम्भले। सब अपने भाई को बच्चे जैसे ही पालते हैं।
माँ - कहीं उनके ही तो नहीं।
चाची - हाँ जिज्जी , फुलिया के दोनों लौंडे माँ के आजु बाजू ही तो रहते हैं। महारानी की तरह रहती है।। सुनते तो हैं बहुएं दासी की तरह हैं। दोनों बेटे जब मन करता है उनके पास रहते हैं नहीं तो माँ के पास।
माँ और चाची हंसने लगी। माँ बोली - तो क्या विचार है। अगले साल श्वेता के लिए भाई ला रही हो।
चाची - जिज्जी , ऐसे साधु से पला पड़ा है पूछो मत। मेरे पास तो कभी कभी आते हैं। मेरा मन भी करता है तो कहते हैं उम्र का लिहाज करो। अब बताओ भला क्या ही उम्र हुई है मेरी।
माँ - ओह्ह , कहीं कोई चक्कर तो नहीं
चाची - क्या पता। पर लगता नहीं है। अरे जो मन में आये वो करे पर मुझे खुश रखे , पर ससुरे से कुछ होता नहीं है।
माँ हँसते हुए बोली - ससुर होते तो तेरा काम हो जाता। अरे इतने लोग खेतों में काम पर लगा रखा है। किसी से अपने खेत की जुताई करवा ले। चलवा ले किसी का हल अपने ऊपर भी। फिर माँ हंस दी।
चाची - जिज्जीीीी। आप भी न। कितनी बदनामी होगी। इतनी इज्जत गाओं में है अब मजदुर ही बचे हैं इन सब के लिए। आपका बढ़िया है। बेटा ख्याल रख रहा है मेरा मजाक उड़ा रही हो।
माँ - राज तेरा भी तो बेटा है। रखवा ले ख्याल। मैंने तो जना है। कोख से पैदा किया है कुछ सीमाएं हैं। तेरा क्या पटा ले उसे।
चाची - तो मैं जो सोच रही थी सही है ?
माँ - तुझसे क्या छुपाना। लड़का जवान है। इधर उधर मुँह मारेगा ही। मैंने तो कहा की कोई पटा ले पर बेचारा अकेला ही है। बस कभी कभी बदन दबवा लेती हूँ। लड़का उससे ही खुश हो जाता है। वैसे भी बेटे से बदन दबवाने में कैसी शर्म। सुधा और सरला के बाद वही तो रहता है हमेशा मेरे साथ। माँ ने थोड़ा हिंट भी दे दिया और काफी कुछ छुपा भी लिया।
चाची - हाँ , आज श्वेता के कॉलेज में भी मुँह फाड़ लड़कियां देख रहा था। लग रहा था कोई न्योता दे दे तो चढ़ ही जाये।
माँ - इस उम्र में लड़की न मिले तो घायल शेर ही होते हैं। चढ़ा ले अपने ऊपर। मेरे बेटे की गर्मी भी निकल जाएगी। क्या पता बहार फिर काम मुँह मारे।
चाची - तुम्ही काहे नहीं दे देती।
माँ - मेरा अपना है वो तू भी कैसी बात करती है।
चाची - अगर मेरा होता तो चढ़ा लेती ?
माँ थोड़ी देर चुप रही फिर बोली - तुझे क्या पता कैसे अकेले रात काटती हूँ। भरी जवानी में अकेली हो गई। अंदर की आग बस जलती है और खुद ही बुझ जाती है।
चाची खामोश हो गईं। माँ के मन में ना जाने क्या था रात खाना खाने के बाद टीवी देखते समय बोली - सर दर्द कर रहा है।
मैं आदतन बोल पड़ा - मालिश कर दूँ
चाची बोलीं - मैं कर देती हूँ। जब मैं चली जाउंगी तो सर दबाना या मालीश करना या उनके ऊपर चढ़ जान। पर अभी मुझे करने दे।
मैं शर्मा गया और तेल लेकर दे दिया।
अब माँ सोफे के पास निचे बैठी थी और चाची उनके सोफे पर बैठ कर उनके सर पर तेल रख कर चम्पी करने लगीं। थोड़ी देर सर दबाने के बाद चाची ने माँ के कंधे और गर्दन की मालिश शुरू कर दी। माँ की साडी का पल्लू उन्होंने हटा दिया था। खुद भी चुकी झुक रही थी तो उनका पल्लू बार बार गिर जा रहा था। पल्लू की गिरते ही उनके बड़े बड़े मुम्मे साइड से लटक जाते। मेरे लिए नज़ारा बढ़िया था। दो दो भरी भरी बदन वाली सामने थी। माँ के मुम्मे मैंने चूस चूस कर और दबा दबा कर बड़े कर दिए थे। चाची के भी ठीक साइज के थे पर उतने बड़े नहीं थे। मुझे देख कर चाची अपने पल्लू ठीक भी कर लेती थी पर बार बार माँ के चेहरे पर गिर रहे थे।
माँ बोली - अरे हटा दे न पल्लू कौन सा ऐसा माल छुपाना है जो बार पल्लू ले रही हो।
चाची - माल तो आपका है। लगता है बढ़िया सेवा होती है। आपको तो सेवादार से छुपाना ही नहीं है। बड़े करने में उसी का हाथ है।
माँ - तेरे भी तो बड़े हैं। और बड़े करवाने हैं तो करा ले सेवा।
चाची - मेरे कहाँ आपके जितने बड़े।
तभी माँ मेरे से बोल पड़ी - राज ये बता चाची के मुम्मे बड़े नहीं हैं क्या ? मेरे ज्यादा बड़े हैं या उनके ?
चाची भी माँ के खेल में शामिल हो गईं। उन्होंने अपना पल्लू पूरा हटा लिया और पुछा - देख बता किसके ज्यादा बड़े हैं। मुझे तो जिज्जी के ज्यादा बड़े लगते हैं। तूने काफी साल तक उनका दूध पिया है।
माँ - हां बता।
मुझे अब मजा आने लगा था मै पहले तो माँ से डर रहा था पर लगा की उनके मन में कुछ है तभी ये ड्रामा हो रहा है।
मैंने शर्माते हुए कहा - दोनों के मुम्मे सुन्दर हैं और बड़े हैं।
चाची - पर जिज्जी के बड़े है न।
मैंने जान बुझ कर कहा - ऐसे कैसे पता चलेगा।
माँ - तो कैसे पता चलेगा। इंची टेप लेकर आ। नाप ही ले।
मैं भाग कर बेडरूम से इंच टेप लेकर आया। देखा तो दोनों साडी उतार कर सिर्फ ब्लॉउस और पेटीकोट में थीं।
मैंने सबसे पहले इंच टेप लिया और माँ के सीने का बूब्स के निचे का साइज लिया। उनका साइज ४४ निकल आया। फिर मैंने उनके ब्लाउज के ऊपर से ही बूब्स के ऊपर से साइज लिया सीने से लगभग ६ इंच ज्यादा था इ साइज़।
फिर मैं चाची के पास पहुंचा उनका साइज लेते समय मेरे हाथ कांप रहे थे। मैं थोड़ा घबराया सा था। माँ और बहनो के अलावा किसी के इतने नज़दीक नहीं आया था मैं।
चाची - अरे घबरा क्यों रहा है। सही से ले वर्ण साइज गड़बड़ आएगी।
मैंने उनके सीने का नाप लिया साइज ४२ था। अब बारी मुम्मो के ऊपर से लेने की थी।
माँ ने कहा - ठीक से लेना। मेरी जैसे ली वैसे ही। डर मत।
मैंने टेप उनके मुम्मो के ऊपर से लगाया और साइज लिया सीने से ५ इंच ज्यादा थे। डी साइज।
चाची फिर से बोली - अरे आराम से ले। ठीक से ले।
मैंने भी देर तक नाप लिया और उस चक्कर में उनके मुम्मे खूब छुए। माँ चाची को देख कर मुश्कुरा रही थी। चाची की धड़कने थोड़ी बढ़ गईं थी। उनके शरीर को शादी के बाद पहली बार चाचा के अलावा कोई छू रहा था। वो भी एक जवान मर्द।
खैर नपाई पूरी हुई। मैंने नाप बताया तो चाची उदास होकर बोली - देख लिया मैं न कहती थी आपके बड़े हैं।