ये सब सुनाते सुनाते अर्चना मेरे बगल में वापस बैठ गई थी। मेरा लंड अब भी फुफकारे मार रहा था और अर्चना उसके साथ खेल रही थी।
मैं - कब तक इससे खेलती रहोगी। इसे अपने घर का दरवाजा भी दिखाओ।
अर्चना - यही तो मेरे पापा भी चाहते थे। पर कर नहीं पाई। पापा को फिर ऐसे ही मुठियाना पसंद था।
मैं उसका खेल अब धीरे धीरे समझने लगा था। उसके अंदर की वासना अपने पिता के लिए थी जो कभी पूरी नहीं हो पाई थी। शायद वो अब मुझे पापा बना कर करना चाहती थी।
मैं - ऐसा करना पापा को पसंद था ये मेरी बिटिया को भी।
मेरे मुँह से बिटिया शब्द सुनते ही वो मुझसे लिपट पड़ी - मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ पापा। ये सब मुझे बहुत ही पसंद है।
मैं - मुझे भी पसंद है। पर मुझे और भी कुछ पसंद है।
तभी बगल में बैठा अर्चना का भाई बोला - पसंद तो मुझे भी है पापा।
उसके मुँह से पापा शब्द सुन मैं बोल पड़ा - बहनचोद , तू अब भी तक यही बैठा है। तुझे पढाई नहीं करनी है। भाग यहाँ से।
अर्चना - पापा आप इसे मत डांटा करो।
मैं - तू भी पिटेगी मेरे से। जतिन तू अभी तक यहीं है भाग यहाँ से।
जतिन ने मेरा चेहरा देखा और धीरे से चला गया। वो जाकर कोने में एक कुर्सी लेकर बैठ गया। वो देखना चाह रहा था कि मैं क्या करता हूँ।
मैंने अर्चना को कहा - इतनी दूर क्यों है ? जरा गोद में आकर बैठ।
अर्चना उठकर मेरे गोद में मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई
अर्चना - पापा आप इसे मत डांटा करो।
मैं - तू भी पिटेगी मेरे से। जतिन तू अभी तक यहीं है भाग यहाँ से।
अर्चना उठकर मेरे गोद में मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई। मैंने उसके कंधे पर किस किया , उसके पूरा बदन सिहर उठा। अर्चना एकदम गाडरी हुई औरत थी जिसका पूरा बदन भरा हुआ था। मैंने फिर उसका आँचल उसके कंधे से हटा दिया और अपने हाथ उसके बड़े मुम्मो पर रख दिए। उसके शता बहुत ही भारी थे। मेरे हाथों के स्पर्श से उसके निप्पल भी एकदम टाइट और और इतने इरेक्ट हो चुके थे की ब्रा होने के वावजूद एकदम नुकीले हो चुके थे। मैंने उसके मुम्मो को दबाते हुए उसके निप्पल को छेड़ना भी शुरू कर दिया।
अर्चना - उफ्फ्फ पापा।
मैं - लगता है इस जतिन ने खून चूसा हैं इन्हे।
अर्चना - हां पापा , उसे तो इन्हे चूसे बिना नींद नहीं आती है। खींच खींच कर खजूर जैसे लम्बा कर दिया है।
मैं - अब तो देखना पड़ेगा। तुम्हारे खजूर चखने का मन तो मेरा भी कर रहा है।
अर्चना - तो चख लीजिये।
उसके ब्लॉउज में पीछे की तरफ हुक था। मैंने एक हुक खोला , फिर ना जाने मेरे मन में क्या आया कि मैंने उसके ब्लॉउज को दोनों हाथो से पकड़ कर फाड़ना शुरू कर दिया।
अर्चना - अरे पापा , क्या कर रहे हैं। कपडे क्यों ख़राब कर रहे हैं।
मैं - चुप , मेरी मर्जी है। दोबारा दिला दूंगा।
बलौद को फाड़ कर मैंने अलग तो किया ही साथ ही साडी भी पूरी तरह से अलग कर दी। फिर उसे अपने तरफ घुमा लिया। इस चक्कर में उसका पेटीकोट कमर तक ऊपर आ गया। मैं अपने दोनों हाथ पीछे ले गया और हाथो से उसके भारी चौड़े चूतड़ों को सहलाने लगा। मैं उसे सामने से चूम भी रहा था। ऐसा लग रहा था की अर्चना को जबरदस्ती पसंद थी। उसे अपने पापा से प्यार तो था वो भी उसके वॉयलेंट रूप से। मैंने होठ चूमते हुए उसके पिछवाड़े को अपने हाथो से भींचना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद मैंने हाथ ऊपर करके उसके ब्रा का हुक खोल दिया। उसके दोनों स्तन मेरे सामने थे। गजब का माल अपने सीने से लगाए घूम रही थी वो। उसके स्तन सुधा दी और माँ के बराबर थे। शिखर पर गोल गहरा भूरे रंग का गोला और उस पर से तने हुए बड़े खजूर जैसे निप्पल। जैसे आमंत्रण दे रहे हों मुझे चूस लो। उसके मुम्मे बड़े थे पर एकदम टाइट थे। इतना चुसवाने के बाद भी उसने मेंटेन किया हुआ था। ये कमाल उसके ब्रा की वजह से था। उसने बढ़िया क्वालिटी का ब्रा पहना हुआ था जो उसके भारी स्तनों को अच्छे से संभाले हुए थे।
मैंने उसके स्तनों से खेलना शुरू कर दिया। मुझे उसके निप्पल उमेठने में मजा आ रहा था। और मेरी इस हरकत पर वो सिसकारियां ले रही थी। हम दोनों एक दुसरे से लिपटे हुए थे। मेरा लंड उसके चूत के फैंको के बीच फंसा हुआ था। तभी उसने अपनी जीभ निकाली और मेरे चेहरे को चाटने लगी। उसका ये व्यवहार अप्रत्यशित था। मैंने सरला दी और दीप्ति मैम को ऐसे करते हुए देखा था पर अर्चना का तरीका एकदम अलग था। उसने मेरे पुरे चेहरे को गिला कर दिया था। उसके रुकने के बाद मैंने भी वैसे भी वैसा ही करना शुरू कर दिया था। तभी उसने अपना मुँह खोला और कहा - पापा मुँह चोदो न , जैसे पहले करते थे।
मैंने अपना जीभ गोल सा बनाया और उसके मुँह में डाल दिया फिर उसने अपने सर को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। उसका कमर और सर इस अंदाज में हिल रहे थे जैसे मेरा लंड उसके चूत के फांको से मालिश करवा रहा हो और वो मेरे जीभ से चुद रही हो।
हम दोनों अपने आप में बीजी थे और ना जाने कब जतिन आकर हमारे पैरों के बीच बैठ गया था। वो अर्चना के चिकने गांड को चाट रहा था। लगता था अर्चना को अपने शरीर को चटवाने में मजा आता था। अब मेरे लंड को चूत रानी के अंदर जाना था। बहुत देर से बेचारा बाहर ही टहल रहा था। मैंने अर्चना से कहा - उठ मुझे मेरे लौड़े को अब अपने चूत की सैर करा। वो बड़ी अदा से मेरे ऊपर से उठ जाती है और मेरे तरफ पीठ करके अपने पेटीकोट का नाडा खोल कर नंगी हो जाती है। उसकी चिकनी गांड देख मेरा मन मचल गया। मैंने उसके गांड पर दो तीन थप्पड़ जड़ दिए।
अर्चना - आह पापा , कितने बेदर्द हो। इतने जोर से क्यों मार रहे हो।
मैंने उसे उसके कमर से पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया। वो लड़खड़ा कर मेरे लंड के ऊपर गिरी और फिर तुरंत चिहुंक कर खड़ी हो गई। शायद मेरा लंड उसके गांड में घुसने वाला था। उसके खड़े होते ही मुझे गुस्सा आ गया। मैं भी खड़ा हो गया और उसके बाल खींच कर उसके पिछवाड़े पर एक थप्पड़ और मारा। मैंने कहा - पापा से जबान लड़ाती है। अभी बताता हूँ।
मैंने फिर उसे सोफे पर गिरा दिया। वो सोफे पर लड़खड़ा कर पीठ के बल गिर पड़ी। उसने हाथ जोड़ते हुए कहा - पापा , मुझे माफ़ कर दो। मुझसे गलती हो गई।
मैंने अपना लंड उसके मुँह की तरफ किया और कहा - इसे चूम इससे माफ़ी मांगो।
उसने मेरे लंड के सुपाडे को चूम कर कहा - माफ़ कर दो। देखो मेरी चूत भी आंसू बहा रही है।
मैं - तेरी चूत के आंसू तो मेरा लंड पोछेगा।
मैंने अपना लंड उसके चूत में डाल दिया और उसे चोदने लगा। मेरे हर धक्के से मेरा लंड उसके चूत के एकदम अंदर तक जा रहा था। उसको एक टांग मैंने अपने कंधे पर रख रखी थी और दूसरा निचे जमीन छू रहा था।
अर्चना - उफ्फ्फ पापा। डाल दो अंदर तक। बहुत दिनों से मन था की चुदुँगी आज मेरी इच्छा पूरी कर दो। पेल के मेरी चूत को अपना बना लो।
मैं - मुझे पता नहीं था तू इतनी चुदासी है वार्ना पहले ही तेरी चूत फाड़ देता। पर कोई बात नहीं।
कुछ देर वैसे ही लिटा कर पेलने के बाद मैंने अपना लंड निकाल लिया। मैं उस अवस्था में उसे ढंग से चोद नहीं पा रहा था।
मेरे लंड के निकलते ही वो बोली - क्या हुआ पापा ?
मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा - चल कुतिया बन। तुझे कुतिया बना कर पेलुँगा।
वो बड़ी अदा से उठी और सोफे पर हाथ लगा कर झुक गई । उसने झटके देते हुए अपने गांड को लहराया लहराया। मैंने उसके गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा - एक दिन ये भी मरूंगा मेरी जान पार आज तुझे चोद कर माँ बना दूँ पहले।
अर्चना - हाँ पापा मुझे अपने भाई की माँ बनाना है। मेरे कोख से मेरा भाई निकलेगा। पेल कर माँ बना दो मुझे।
मैंने उसकी बातें सुनकर अपना लंड पीछे से उसके चूत में डाल दिया और उसे धकधक पेलने लगा , मैंने उसके बाल पीछे से पकड़ लिए । मैं उसे आपसे पेल रहा था जैसे घोड़े की सवारी करते हों।
अर्चना - आह इस्सस , मजा आ रहा है पापा। पहले पता होता तो मैं कब का चुद चुकी होती। आह उह्ह
अब मेरा एंड जवाब देने लगा था। किसी भी पल वो अपना माल छोड़ सकता था। मुझे माँ ki बात याद आ गई। मैंने अर्चना को खींच कर जमीन पर सीधा लिटा दिया और अब उसे मिशनरी अंदाज में पेलने लगा। मैं हर धक्का इतनी तेज लगा रहा था जिससे मेरा लंड एकदम अंदर तक जाए। आखिरकार मेरे लंड ने अपना माल उसके चूत में उलट दिया। मैं थक कर उसके ऊपर ही सो गया , वो अपने चूत को इस तरह से सिकोड़ रही थी जैसे उसे चूस रही हो। उसने मुझे अपने दोनों पैरों को मेरे कमर पर लपेट लिया था। उसने पूरा माल अपने अंदर में लिया। और मुझे तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे वीर्य का एक एक बूँद अंदर न निचोड़ लिया ।