कुछ दिनों बाद की बात है एक चाचा और चाची गाओं से हमारे लिए अनाज लेकर आये। उनकी लड़की यहीं गर्ल्स कॉलेज के हॉस्टल में रहकर ग्रेजुएशन कर रही थी। उसके कॉलेज में सभी लड़कियां बोर्डिंग में रहकर ही पढ़ती थी। बाहर रहने की परमिशन नहीं थी। पर पेरेंट्स आकर मिल सकते थे। चाचा चाची ने सोचा था की यहाँ आकर श्वेता से भी मिल लेंगे। दोनों घर आकर श्वेता के हॉस्टल गए और उससे मिल भी आये। मैं भी उनके साथ गया था। हम सबसे मिल कर श्वेता बहुत खुश थी। मैं उसके कॉलेज में जाकर अचम्भे में था। चारों तरफ लड़कियां ही लड़कियां। वैसे तो मेरा कॉलेज को-एड था और मेरे यहाँ भी लड़कियां थी पर यहाँ तो सिर्फ लड़कियां ही लड़कियां। हर तरह की लड़कियां। छोटी, लम्बी , दुबली मोट। किसी का सीना सपाट तो किसी के वो बड़े बड़े मुम्मे। हमें हॉस्टल जाने की परमिशन नहीं थी। कॉलेज कैंपस में गेट के पास ही ऑफिस में मिलने दिया गया।
मुझे देख कर श्वेता काफी खुश हो गई। कहा - भैया कितने बड़े हो गए हैं ।
मैंने कहा - तू भी तो बड़ी हो गई है ।
वो चाचा और चाची से बातें कर रही थी और मैं बाहर दिख रही परियों को ताड़ रहा था। चाचा थोड़ी देर बाद बाहर चले गए । मैं और चाची बैठे श्वेता से बातें कर रहे थे।
श्वेता ने मुझे ताड़ते देख कर कहा - बस कर रे। भइआ आपके कॉलेज में भी लड़कियां होंगी। मन नहीं भरता जो यहाँ देख भूखे नंगे की तरह देख रहे है।
मै खोया हुआ था। न जाने क्या हुआ मैंने जवाब दिया - अरे वहां लड़कियां हैं यहाँ तो माल है। हर तरह का माल। और सच कहूँ इन्हे देख कर नंगे हो जाने का मन करता है।
मेरा जवाब देखा कर दोनों हक्के बक्के रह गए। श्वेता ने जोर की चपत मेरे सर पर लगाई और बोला - माँ भैया कितने बिगड़ गए है। चाची को बोलना कितनी घटिया बात करते हैं । इनकी तो पिटाई होनी चाहिए।
तब मुझे अहसास हुआ की मैं क्या बोल गया। पर तीर तो कमान से निकल पड़ा था।
चाची बोलीं - जाने दे , जवान हो रहा है। लड़का है लड़कों से गलती हो जाती है।
श्वेता - माँ, अगर मैं ऐसा कुछ बोल दूँ या कुछ गलत हरकत कर जाऊं तो तू तब भी मुझे माफ़ कर देगी।
चाची - भाई बालिग़ हो गई हो। मर्जी से जो करो। बस जो करो उसके लिए जिमेदार तुम ही होगी। बस प्रेग्नेंट मत हो जाना।
श्वेता और मैं चाची की बात सुन कर दांग थे। गाओं में रहने वाली इतनी खुले दिमाग की हो सकती है ये उम्मीद नहीं थी।
श्वेता - माँ आप निश्चिन्त रहो। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करुँगी। और जो भी करुँगी अपने होश में करुँगी आपको बता कर करुँगी। मेरी अच्छी माँ आपसे कुछ भी नहीं छुपाउंगी। पर इन भाई साहब पर भरोसा नहीं। ताऊ जी इतने अच्छे थे कहाँ से नालायक पैदा किया है।
मुझे सुन कर गुस्सा आ गया। मैंने कहा - बताऊँ कहाँ से पैदा किया है ?
चाची - बस करो लड़ना झगड़ना। वैसे भी तुझसे बड़ा है ये।
श्वेता - थोड़े ही तो बड़े हैं। और सिर्फ उम्र में बड़े हैं। कॉलेज में सेम ईयर में हैं।
मैं - न न तू तो मुझसे सीनियर है।
तभी चाचा आ गए। बोले - लड़ना , झगड़ना हो गया हो तो चलें।
निकलने से पहले दोनों हॉस्टल के वार्डन से मिले और मेरा परिचय करवा दिया। उन्होंने इस बात की परमिशन ले ली की कभी कभी श्वेता हमारे घर आ सकती है और मुझे अंदर आने की परमिशन भी कभी कभी मिल जाए ताकि घर का खाना पहुंचा सके।
अगले दिन चाचा गाओं चले गए। माँ ने चाची को रोक लिया था। कहा - हम दोनों सुधा और सरला के बाद से अकेले रह गए हैं। रह जाएँगी तो थोड़ा मन लग जायेगा। चाचा मान गए। उनके खेत में काम करने वाला एक परिवार वहीँ उनके घर में काम के लिए ही रहता था। तो खाने की दिक्कत नहीं थी। चाची ने कहा थोड़ी शॉपिंग भी कर लेंगी और श्वेता से एक आध बार और मिल लेंगी। माँ ने कहा उसे किसी दिन घर भी ले आएंगे।
चाची ने दुसरे ही दिन ताड़ लिया की माँ के अंदर बदलाव है। मुझसे नजदीकियां बढ़ने की वजह से वो खुश रहने लगी हैं। चेहरे में निखार भी आ गया है। मैं तो खैर सबका दुलारा था। सबके सामने माँ से लिपटता चिपटता था फिर भी अब मेरी हरकतों में थोड़ी वासना जुड़ चुकी थी। चाची ने गौर कर लिया था की मैं माँ को किस नज़रों से देखता हूँ।
एक दिन रात में खाना बताते समय चाची ने माँ से पूछ ही लिया - दीदी बड़ा निखर गई हो। लगता है प्यार हो गया है किसी से।
माँ - क्या रे छोटी , मुझ बुढ़िया से प्यार ? प्यार तो राज के पापा करते थे। उनके जाने के बाद तो अकेली रह गईं हूँ
चाची - अकेली कहा राज है न। अब तो वो भी बड़ा हो गया है
माँ - हाँ वही तो एक सहारा है। वो है तो मन लगा रहता है।
चाची - लगता है बहुत प्यार करता है तुमसे
माँ ने चाची की तरफ देखा उनके सवाल को समाजः तो गईं पर बोली - क्या मतलब है तेरा? बेटा है प्यार तो करेगा ही।
चाची - हाँ काश मेरा भी एक बेटा होता ऐसे ही प्यार करता।
माँ समझ गई चाची को शक है। पर चाची से कोई ख़ास परदा नहीं था। दोनों शुरू से सखी जैसी ही थी।
माँ बोली - कर ले एक बेटा। अभी तेरी उम्र ही क्या है। गाओं में वो फुलिया है न अब तक तो बच्चे पैदा कर रही है। पिछले साल ही तो उसकी बहु और उसने एक साथ बच्चा पैदा किया है। बहु को लड़की हुई और फ़ुलिआ ने तो लड़का जन दिया।
चाची - फुलिया की बात तो मत ही करो। पता नहीं किसका किसका पैदा कर रही है। उसके पति तो दिन भर नशे में रहते हैं। वो तो भला हो लड़के मेहनती हैं और घर में अनाज और पैसो की कमी नहीं रखते वार्ना इतने बच्चे कैसे सम्भले। सब अपने भाई को बच्चे जैसे ही पालते हैं।
माँ - कहीं उनके ही तो नहीं।
चाची - हाँ जिज्जी , फुलिया के दोनों लौंडे माँ के आजु बाजू ही तो रहते हैं। महारानी की तरह रहती है।। सुनते तो हैं बहुएं दासी की तरह हैं। दोनों बेटे जब मन करता है उनके पास रहते हैं नहीं तो माँ के पास।
माँ और चाची हंसने लगी। माँ बोली - तो क्या विचार है। अगले साल श्वेता के लिए भाई ला रही हो।
चाची - जिज्जी , ऐसे साधु से पला पड़ा है पूछो मत। मेरे पास तो कभी कभी आते हैं। मेरा मन भी करता है तो कहते हैं उम्र का लिहाज करो। अब बताओ भला क्या ही उम्र हुई है मेरी।
माँ - ओह्ह , कहीं कोई चक्कर तो नहीं
चाची - क्या पता। पर लगता नहीं है। अरे जो मन में आये वो करे पर मुझे खुश रखे , पर ससुरे से कुछ होता नहीं है।
माँ हँसते हुए बोली - ससुर होते तो तेरा काम हो जाता। अरे इतने लोग खेतों में काम पर लगा रखा है। किसी से अपने खेत की जुताई करवा ले। चलवा ले किसी का हल अपने ऊपर भी। फिर माँ हंस दी।
चाची - जिज्जीीीी। आप भी न। कितनी बदनामी होगी। इतनी इज्जत गाओं में है अब मजदुर ही बचे हैं इन सब के लिए। आपका बढ़िया है। बेटा ख्याल रख रहा है मेरा मजाक उड़ा रही हो।
माँ - राज तेरा भी तो बेटा है। रखवा ले ख्याल। मैंने तो जना है। कोख से पैदा किया है कुछ सीमाएं हैं। तेरा क्या पटा ले उसे।
चाची - तो मैं जो सोच रही थी सही है ?
माँ - तुझसे क्या छुपाना। लड़का जवान है। इधर उधर मुँह मारेगा ही। मैंने तो कहा की कोई पटा ले पर बेचारा अकेला ही है। बस कभी कभी बदन दबवा लेती हूँ। लड़का उससे ही खुश हो जाता है। वैसे भी बेटे से बदन दबवाने में कैसी शर्म। सुधा और सरला के बाद वही तो रहता है हमेशा मेरे साथ। माँ ने थोड़ा हिंट भी दे दिया और काफी कुछ छुपा भी लिया।
चाची - हाँ , आज श्वेता के कॉलेज में भी मुँह फाड़ लड़कियां देख रहा था। लग रहा था कोई न्योता दे दे तो चढ़ ही जाये।
माँ - इस उम्र में लड़की न मिले तो घायल शेर ही होते हैं। चढ़ा ले अपने ऊपर। मेरे बेटे की गर्मी भी निकल जाएगी। क्या पता बहार फिर काम मुँह मारे।
चाची - तुम्ही काहे नहीं दे देती।
माँ - मेरा अपना है वो तू भी कैसी बात करती है।
चाची - अगर मेरा होता तो चढ़ा लेती ?
माँ थोड़ी देर चुप रही फिर बोली - तुझे क्या पता कैसे अकेले रात काटती हूँ। भरी जवानी में अकेली हो गई। अंदर की आग बस जलती है और खुद ही बुझ जाती है।
चाची खामोश हो गईं। माँ के मन में ना जाने क्या था रात खाना खाने के बाद टीवी देखते समय बोली - सर दर्द कर रहा है।
मैं आदतन बोल पड़ा - मालिश कर दूँ
चाची बोलीं - मैं कर देती हूँ। जब मैं चली जाउंगी तो सर दबाना या मालीश करना या उनके ऊपर चढ़ जान। पर अभी मुझे करने दे।
मैं शर्मा गया और तेल लेकर दे दिया।
अब माँ सोफे के पास निचे बैठी थी और चाची उनके सोफे पर बैठ कर उनके सर पर तेल रख कर चम्पी करने लगीं। थोड़ी देर सर दबाने के बाद चाची ने माँ के कंधे और गर्दन की मालिश शुरू कर दी। माँ की साडी का पल्लू उन्होंने हटा दिया था। खुद भी चुकी झुक रही थी तो उनका पल्लू बार बार गिर जा रहा था। पल्लू की गिरते ही उनके बड़े बड़े मुम्मे साइड से लटक जाते। मेरे लिए नज़ारा बढ़िया था। दो दो भरी भरी बदन वाली सामने थी। माँ के मुम्मे मैंने चूस चूस कर और दबा दबा कर बड़े कर दिए थे। चाची के भी ठीक साइज के थे पर उतने बड़े नहीं थे। मुझे देख कर चाची अपने पल्लू ठीक भी कर लेती थी पर बार बार माँ के चेहरे पर गिर रहे थे।
माँ बोली - अरे हटा दे न पल्लू कौन सा ऐसा माल छुपाना है जो बार पल्लू ले रही हो।
चाची - माल तो आपका है। लगता है बढ़िया सेवा होती है। आपको तो सेवादार से छुपाना ही नहीं है। बड़े करने में उसी का हाथ है।
माँ - तेरे भी तो बड़े हैं। और बड़े करवाने हैं तो करा ले सेवा।
चाची - मेरे कहाँ आपके जितने बड़े।
तभी माँ मेरे से बोल पड़ी - राज ये बता चाची के मुम्मे बड़े नहीं हैं क्या ? मेरे ज्यादा बड़े हैं या उनके ?
चाची भी माँ के खेल में शामिल हो गईं। उन्होंने अपना पल्लू पूरा हटा लिया और पुछा - देख बता किसके ज्यादा बड़े हैं। मुझे तो जिज्जी के ज्यादा बड़े लगते हैं। तूने काफी साल तक उनका दूध पिया है।
माँ - हां बता।
मुझे अब मजा आने लगा था मै पहले तो माँ से डर रहा था पर लगा की उनके मन में कुछ है तभी ये ड्रामा हो रहा है।
मैंने शर्माते हुए कहा - दोनों के मुम्मे सुन्दर हैं और बड़े हैं।
चाची - पर जिज्जी के बड़े है न।
मैंने जान बुझ कर कहा - ऐसे कैसे पता चलेगा।
माँ - तो कैसे पता चलेगा। इंची टेप लेकर आ। नाप ही ले।
मैं भाग कर बेडरूम से इंच टेप लेकर आया। देखा तो दोनों साडी उतार कर सिर्फ ब्लॉउस और पेटीकोट में थीं।
मैंने सबसे पहले इंच टेप लिया और माँ के सीने का बूब्स के निचे का साइज लिया। उनका साइज ४४ निकल आया। फिर मैंने उनके ब्लाउज के ऊपर से ही बूब्स के ऊपर से साइज लिया सीने से लगभग ६ इंच ज्यादा था इ साइज़।
फिर मैं चाची के पास पहुंचा उनका साइज लेते समय मेरे हाथ कांप रहे थे। मैं थोड़ा घबराया सा था। माँ और बहनो के अलावा किसी के इतने नज़दीक नहीं आया था मैं।
चाची - अरे घबरा क्यों रहा है। सही से ले वर्ण साइज गड़बड़ आएगी।
मैंने उनके सीने का नाप लिया साइज ४२ था। अब बारी मुम्मो के ऊपर से लेने की थी।
माँ ने कहा - ठीक से लेना। मेरी जैसे ली वैसे ही। डर मत।
मैंने टेप उनके मुम्मो के ऊपर से लगाया और साइज लिया सीने से ५ इंच ज्यादा थे। डी साइज।
चाची फिर से बोली - अरे आराम से ले। ठीक से ले।
मैंने भी देर तक नाप लिया और उस चक्कर में उनके मुम्मे खूब छुए। माँ चाची को देख कर मुश्कुरा रही थी। चाची की धड़कने थोड़ी बढ़ गईं थी। उनके शरीर को शादी के बाद पहली बार चाचा के अलावा कोई छू रहा था। वो भी एक जवान मर्द।
खैर नपाई पूरी हुई। मैंने नाप बताया तो चाची उदास होकर बोली - देख लिया मैं न कहती थी आपके बड़े हैं।