हेलो दोस्तों मेरा नाम राज है। ये कहानी मेरी और मेरे परिवार की है। मेरे परिवार में मेरी माँ और दो बहने हैं। मेरी माँ का नाम सरोज है और उनकी उम्र ५० के आस पास है। मेरे पिता एक सरकारी अफसर थे पर उनका देहांत तभी हो गया था जब मैं हाई स्कूल में था। पर पिता ने काफी कमाई की थी। हमारी गाओं में भी काफी जमीन थी। गाओं की जमीन मेरे चाचा देखा करते थे। वो बहुत पढ़े लिखे नहीं थे तो गाओं में ही रहकर खेती बाड़ी करवाया करते थे। जब पिता जी जिन्दा थे तो वो उनकी काफी मदद कर दिया करते थे। अनपढ़ होने के साथ साथ वो लल्लू किस्म के भी थे। वो तो चाची स्मार्ट थीं तो सब सम्भला हुआ था। हमें गाओं से ही काफी अनाज आ जाता था। उनकी एक ही लड़की थी जो मुझसे थोड़ी ही छोटी थी। अभी स्कूल में ही पढ़ती थी। मेरे पिता ने अपनी कमाई से शहर में एक बड़ा घर और दो दो फ्लैट कर रखा था। उन्होंने बहनो की शादी के लिए भी अच्छा ख़ासा पैसा छोड़ रखा था।
पिता के मौत के बाद माँ थोड़ी अकेली तो पड़ी थी पर मेरे ननिहाल के लोग काफी अच्छे थे। वो हमारे शहर में ही रहते थे।
मेरे मामा, मौसियां और नाना ने हमारी बहुत मदद की। समय रहते उन्होंने बहनो की शादी भी करवा दी। मेरे एक ही मामा थे पर दो दो मौसियां थी। उनमे से एक माँ से बड़ी थी और एक छोटी। मेरे मामा की शादी हो चुकी थी। उन्होंने लव मैरिज की थी।
अब मैं अपनी बहनो और उनके परिवार के बारे में बताता हूँ। मेरी बड़ी बहन का नाम सुधा है। उसकी उम्र ३० साल है और उसकी शादी हो चुकी है। मेरे जीजा का नाम राजीव है। उनके परिवार में उनकी माँ रत्ना , छोटी बहन सोनिया और पिता रमेश हैं। सोनिया लगभग मेरी ही उम्र की है और इसी साल मैंने और उसने कॉलेज ज्वाइन किया है। सुधा दीदी का परिवार पास के ही दुसरे शहर में रहता है। शादी के कुछ महीनो बाद ही सुधा दीदी के ससुर का एक रोड एक्सीडेंट हो गया था जिसकी वजह से घुटनो के नीचे दोनों पैर काम नहीं करते थे। वो व्हीलचेयर पर ही रहा करते थे।
मेरी दूसरी बहन का नाम सरला है। उनकी उम्र २८ साल है और उनके पति का नाम शलभ है। उनके घर में उनकी माँ जया, पिता सुरेश और एक छोटा भाई सर्वेश है। सर्वेश ने कॉलेज पास कर लिया है और पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा है। सरला दीदी का ससुराल राजस्थान के एक शहर में है जो मेरे शहर से काफी दूर है। राजीव जीजा का अपना बिज़नेस है वहीँ शलभ जीजा जी एक फर्म में अकाउंटेंट हैं। उनके पिता एक टीचर थे पर अब रिटायर हो चुके है। सरला दी के सास ससुर बहुत ही स्ट्रिक्ट थे। पर शलभ जीजा उन्हें बहुत प्यार करते थे। पर सबके चाहते सर्वेश भाई थे। मजाकिया और मस्तमौला।
अब मैं वापस अपने घर पर आता हूँ। छोटा होने से बचपन से ही मैं सबका दुलारा था। पिता का देहांत भी जल्दी हो गया था इस लिए मुझ पर वैसे ही सब ज्यादा प्यार लुटाते थे। पापा की मौत के बाद शुरू में तो घर का माहौल ग़मगीन रहा पर साल भर के अंदर सब नार्मल हो गए। तीन तीन महिलाओं के बीच मैं अकेला लड़का था उस पर से छोटा तो सब मुझे बच्चा ही ट्रीट करते थे। मेरी बहने और माँ मेरे सामने कपडे बदल लिया करती थी। मैं भी नंग धडंग होकर उनके सामने कपडे बदल लेता था। गर्मियों में तो मैं सिर्फ एक छोटे से चड्डी में रहता था और मेरी बहने छोटी सी पेंट और हलके पतले से टी-शर्ट में रहती थी। मेरी माँ अधिकांश तौर पर पेटीकोट ब्लॉउस में रहती या एक पतले से नाइटी में जिसके अंदर वो कुछ भी नहीं पहनती थी। रात में मैं माँ के पास सोता था और दोनों बहने एक कमरे में। कभी कभी हम सब एक ही कमरे में सो जाया करते थे। सर्दियों में सब एक कमरे में एक बड़े से रजाई में होते। वजह था माँ चाहती थी की एक ही कमरे में हीटर चले जिससे बिजली की बचत हो। हम सब समय के साथ बड़े तो हो रहे थे पर परिवार में खुलापन बरकरार था। मेरे सामने ही मेरी बहने और माँ पीरियड , पैड्स की भी बात कर लेते थे। ब्रा पैंटी भी मुझसे छुपी नहीं रहती थी। अगर नहाने में कोई बहन या माँ कपडे भूल जाता तो मुझसे मांग लिया करती थी। अक्सर बहने तो तौलिया लपेट कर बाहर आती और मेरे सामने ही निचे पैंटी फिट पेंट पहनती थी। जब थोड़ी बड़ी हुईं तो मेरी तरफ पीठ करके ब्रा और टी-शर्ट पहन लेती थी। कई बार ब्रा का हुक लगाने को भी बोदेती थी। माँ नहाने के बाद सिर्फ पेटीकोट में बाहर आती थी जिसे वो अपने स्तनों तक चढ़ा रखती थी। कमरे में आकर वो ब्लॉउस पहनती थी। ब्रा तो वो शायद ही पहनती थी। माँ मुझसे ज्यादा पर्दा नहीं करती थी। ब्लाउज पहने समय मेरे सामने रह कर भी पहन लेती थी। मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो बड़ी दीदी सुधा ने माँ को एक आध बार टोका भी पर माँ ये कह देती थी मेरा बेटा ही तो है। अभी कुछ सालों तक तो मेरे दूध को चूसता रहता था उससे कैसा पर्दा। दरअसल मैंने माँ का दूध काफी बड़े होने तक पिया है। अगर कोई टोकता तो कहती मेरा लाल दूध पीकर ताकतवर बनेगा। बाद में उनका दूध बंद हो गया तब भी मैं उनकी चूचियों को चूसता था। मुझे उनकी बड़ी बड़ी चूचिया चूसने में बड़ा मजा आता था। मेरे पिता ने एक आध बार टोका भी पर माँ को कुछ नहीं बोलते थे। माँ की इन बातों से बहने भी मुझसे फ्री थी। माँ उन्हें कुछ नहीं कहती थी।
मैं माँ के साथ बहुत लिपटता था उतना ही बहनो के साथ भी। मुझे माँ की बड़ी बड़ी नाभि बहुत सुन्दर लगती थी। अक्सर सोफे पर जब सब टीवी देख रहे होते तो मैं माँ के गोद में सर रख लेता और उनके पेट से खेलने लगता। कई बार उनके पेट पर मुँह रख कर हवा मारता जिससे अजीब सी आवाज निकलती थी। मुझे वो आवाज निकलने में बड़ा मजा आता था। अक्सर इस खेल में मेरी बहने भी शामिल होती और हम तीनो माँ के शरीर के अलग अलग हिस्सों पर मुँह लगाकर आवाज निकालते थे। एक दिन खेल खेल में मैंने सुधा दी के पेट पर भी मुँह रख कर आवाज निकाली। उन्होंने कुछ नहीं कहा। फिर मैं और सरला दी माँ के साथ साथ सुधा दी के पेट से भी खेलते। माँ के साथ इस मस्ती में मेरी एक और मस्ती भी शामिल थी जो मेरी बहनो को पता नहीं था। मेरे बड़े होने के बाद माँ ने सबके सामने दूध पिलाना तो बंद कर दिया था पर अकेले में अब भी कभी कभी मुँह लगाने देती थी। ये बात मेरी बहनो को पता नहीं थी।
दरअसल हुआ ये था की एक बार मेरी तबियत काफी ज्यादा खराब थी। मुझे बहुत हाई फीवर था। उस वजह से मैं घर पर ही था पर बहने स्कूल गई थी। मैं बुखार में माँ की गोद में ही सर रख कर सोया हुआ था। बुखार के वजह से मैं एकदम बेहाल था। माँ परेशान थी। मैंने उनके गोद में सिमटा हुआ था।
तभी मैंने माँ को बोलै - माँ भूख लगी है।
माँ उठा कर जाने लगी तो मैंने उनके दूध को पकड़ कर बोला - मुझे दूधु चाहिए। माँ को ना जाने क्या सुझा उन्होंने ब्लाउज के निचे का दो बटन खोल कर अपना एक मुम्मा मेरे मुँह में दे दिया। मैं लपक कर उसे चूसने लगा। माँ के मुम्मे चूसते चूसते मुझे कब नींद आ गई पता भी नहीं चला। शाम तक मेरा बुखार भी उतर गया। रात को मैं और माँ अकेले ही सोये और माँ ने मुझे रात में भी अपने मुम्मे चूसने दिए। माँ ने मुझे ये बात बहनो को बताने से मना कर दिया था। फिर तो ये सिलसिला सा चल निकला। मैं आज भी माँ के मुम्मे पीता हूँ। बल्कि बहनो की शादी के बाद तो कोई रोक टोक नहीं है।