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Erotica मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर..

deeppreeti

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मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर..

  • by babasandy


अगले कई घंटों तक मेरी रूपाली दीदी घर के कामों में व्यस्त रही.. किचन में खाना तैयार करना, फिर सारे बर्तन साफ करना उसके बाद घर की साफ सफाई इत्यादि.. मैं हॉल में बैठा हुआ पढ़ाई कर रहा था आपने टेबल कुर्सी पर.. मेरे और मेरे दीदी के बीच में कोई बातचीत नहीं हो रही थी... मेरे जीजू अपने बेडरूम में आराम कर रहे थे.. ठाकुर साहब हर दिन की तरह अपने काम से घर से बाहर निकल चुके थे.. सोनिया को स्कूल छोड़ने के बाद वह उधर से ही चले गए...

दोपहर के बाद मेरी रूपाली दीदी सोनिया को स्कूल लेने गई.. सोनिया की स्कूल से आने के बाद हम सब ने मिलकर एक साथ लंच किया और फिर अपने अपने काम में लग चुके थे..
ठाकुर साहब के बेडरूम में मेरी रूपाली दीदी, मेरे जीजु और सोनिया उनके बेड पर ही आराम
कर रहे थे... वह सभी अंदर खेल रहे थे.. मैं हॉल में सोने की कोशिश कोशिश कर रहा था...
पर मुझे कुछ खास नींद नहीं आई थी...
शाम को तकरीबन 5:30 बजे हमारे घर की डोर बेल बजी तुम अपनी आधी नींद से जाग गया... डोरबेल बजते ही मेरी रूपाली दीदी बेडरूम से निकलकर आ गई... मैंने देखा मेरी दीदी ने एक बार फिर वही सुबह वाली पीली साड़ी पहन रखी थी और पीली वाली मैचिंग चोली, जो उन्होंने सुबह पहन रखी थी.. उनके चेहरे पर लाइट मेकअप, आंखों में काजल, और होठों पर लिपस्टिक लगी हुई थी.. आप दोस्तों को बताने की जरूरत नहीं है कि मेरी दीदी एक बार फिर कयामत ढा रही थी... मेरी बहन ने दरवाजा खोला तो सामने ठाकुर साहब ही खड़े थे..

ठाकुर साहब मेरी रुपाली दीदी को देख कर मुस्कुराए... मेरी बहन ने बाजू हट कर ठाकुर साहब को घर में के अंदर आने का रास्ता दिया... ठाकुर साहब ने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर अपने बेडरूम( वही बेडरूम जिसके अंदर मेरे जीजू सोते थे पहले, लेकिन एयर कंडीशन खराब होने के बाद वह ठाकुर साहब के बेडरूम में सोने लगे थे) के अंदर चले गए...

मेरी रूपाली दीदी किचन के अंदर चली गई चाय नाश्ता तैयार करने के लिए.. मैं अपने बेड से उठ कर अपने चेयर टेबल पर जाकर बैठ गया और पढ़ाई का झूठा नाटक करने लगा.... थोड़ी ही देर में मेरे जीजू भी बेडरूम से व्हीलचेयर पर निकलकर हॉल में आ गया मेरे पास... सोनिया अभी भी बेडरूम के अंदर ही थी और मेरे जीजू के मोबाइल में कुछ वीडियो देख रही थी.... ठाकुर साहब के बेडरूम से शावर की आवाज आ रही थी... शायद वह नहा रहे थे.. हॉल में आने के बाद जीजू ने टीवी चालू कर दिया और उस पर न्यूज़ देखने लगे... मेरी रूपाली दीदी किचन से ट्रेन में चाय और क्रीम बिस्किट लेकर किचन से बाहर निकल कर आई... मेरी दीदी ने चाय का एक प्याला मुझे और मेरे जीजू को देने के बाद जीजू के लिए दो क्रीम बिस्किट एक छोटे से प्लेट में रखकर उनको पकड़ा दी...

मेरी बहन ने क्रीम बिस्किट मुझे नहीं दी ... मैं समझ रहा था आखिर ऐसा क्यों है... वह अभी भी मुझसे नाराज लग रही थी... वैसे नाराज मुझे होना चाहिए था उनसे.... मेरी दीदी चाय का ट्रे लेकर ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चली गई, और एक झटके में धक्का देकर उन्होंने बेडरूम का दरवाजा भी बंद कर लिया अंदर से.. मेरी रूपाली दीदी की इस हरकत पर मेरी जीजू तो हैरान होकर देखने लगे मेरी तरफ... मैंने अपना चेहरा अपनी किताब के अंदर गड़ा दिया...

मैं अपने जीजा जी की निगाहों का सामना करना नहीं चाहता था... उनके चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी... उनको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था कि मेरी बहन ने ठाकुर साहब के कमरे के अंदर जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है... यह उनका चेहरा देखकर साफ पता चल रहा था.. लेकिन उन्होंने मुझसे कुछ भी नहीं कहा और अपना मन मार कर टीवी की तरफ देखने लगे...

मेरे मन के अंदर भी खलबली मचने लगी थी... बेडरूम के अंदर ना जाने क्या-क्या हो रहा है... क्योंकि तकरीबन 5 मिनट हो चुके थे... उस कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियों की खनक ने की आवाज आने लगी... और साथ में ही मेरी बहन की पायल भी खनखनआ रही थी... मैं अच्छी तरह समझ गया अंदर कमरे में क्या होने लगा है.. क्योंकि मैं पिछले कई रातों से ऐसी आवाजें सुन रहा था.... जब मेरे जीजू के कानों में यह आवाज गई तो उन्होंने टीवी का वॉल्यूम कम कर दिया.... और मेरी तरफ देखकर पूछने लगे..

मेरे जीजू: सैंडी तुमने सुना क्या.. यह क्या आवाज थी?

मैं: नहीं जीजू मैंने तो कुछ भी नहीं सुना... आपको क्या सुनाई दिया..

मेरे जीजू निराश होकर एक बार फिर टीवी की तरफ देखने लगे... और उन्होंने टीवी का वॉल्यूम तेज कर दिया... अंदर कमरे से एक बार फिर मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियों की खनखनआहट और पायल की छम छम और साथ में पलंग के हिलने और चरमरआने की आवाज भी लयबद्ध तरीके से आने लगी...

मन ही मन मैंने ठाकुर साहब के दिमाग का लोहा मान लिया... शायद वह टीवी का वॉल्यूम कम होने पर अपनी कामलीला को रोक दे रहे थे... और जैसे ही मेरे जीजू टीवी का वॉल्यूम तेज कर रहे थे ठाकुर साहब अंदर तेजी से झटके मार रहे थे मेरी बहन को... मुझे तो अंदर बेडरूम से आने वाली आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी... जाहिर है ठाकुर साहब अंदर मेरी बहन को नीचे लिटा कर उनके ऊपर सवार थे और ऊपर से जोर लगाकर हचक के लंड पेल रहे थे....

जब मैंने जीजू की तरफ देखा तो पाया कि वह अब टीवी की तरफ भी नहीं देख रहे थे... उनका सिर नीचे जमीन की तरफ झुका हुआ था.. उनके चेहरे पर गहरी चिंता के भाव दिखाई दे रहे थे... ना जाने क्यों उन्होंने टीवी का वॉल्यूम और भी थोड़ा तेज कर दिया था... तभी अचानक अंदर कमरे से एक तेज आवाज आई..

मेरी रूपाली दीदी: ऊऊऊऊऊईईईईई ...माम्मईईईई.. मर गई रे...

मेरे जीजू तपाक से मेरी तरफ मुड़ कर बोले: सैंडी तुमने सुना क्या... यह तुम्हारी रुपाली
दीदी की आवाज ही है ना..

मैं: नहीं जीजू मुझे तो कुछ भी सुनाई नहीं दिया... शायद आपके कान बज रहे होंगे... मेरी दीदी क्यों चिल्लाएगी... वह तो ठाकुर साहब के साथ उनके बेडरूम के अंदर है... शायद घर के बाहर किसी औरत औरत के चिल्लाने की आवाज थी...

मेरी बात सुनकर तो मेरे जीजू और भी असमंजस में पड़ गए... उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हो रहा है इस घर में... या हो सकता है कि उन्हें अच्छी तरह बताओ कि क्या हो रहा है इस घर में..

मैंने जीजू से ज्यादा बात करना ठीक नहीं समझा..

तकरीबन 25 मिनट हो चुके थे... और उस बेडरूम के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की कामुक सिसकियां रुक रुक कर मेरे कानों में आ रही थी.. जाहिर है मेरे जीजू के कानों में भी जा रही होंगी...

अब उस कमरे के अंदर का तूफान शांत हो गया था... मेरे जीजू भी अब ठीक लग रहे थे... उस बेडरूम का दरवाजा खुला... मेरी रूपाली दीदी निकल कर बाहर आ गई... दीदी जिस हालत में बेडरूम के अंदर गई थी लगभग उसी हालत में बाहर निकली थी... वही पीली साड़ी वही पीली चोली.... लेकिन जो फर्क मैंने देखा... वह मेरी जीजू देख पाए या नहीं वह तो मैं बता नहीं सकता.. लेकिन आप सभी दोस्तों को बता सकता हूं...

मेरी रूपाली दीदी के होठों की लिपस्टिक गायब थी... माथे पर पसीना था... मेरी बहन चलते हुए थोड़ी बहुत लड़खड़ा रही थी... और उनकी नाभि के बगल में कमर पर एक सफेद चिपचिपा पदार्थ लगा हुआ था... जो ठाकुर साहब का वीर्य ही हो सकता है मेरे मन में तो कोई संदेह नहीं था... मेरे जीजू का पता नहीं...

NOTE: ये कहानी मूल लेखक द्वारा ही लिखी गयी है परन्तु इस फोरम पर अधूरी है

मुझे इसके कुछ भाग अन्यत्र मिल गए तो उन्हें पोस्ट कर रहा हूँ

आशा है मूल लेखक इस कहानी को आगे लिख कर बढ़एंगे

 
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Dharmendra Kumar Patel

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बहुत ही रोमांचक कहानी
 

Meena1995

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Mast, acha hua aapne update diya, Is story ka to wait karte karte thak gai thi
 

Decentlove100

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Vary nice update bhai
 

Aviroy

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Update fast please
 

deeppreeti

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मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर..

  • by babasandy

जैसे ही मेरी मेरी रूपाली दीदी मेरे जीजू के पास पहुंच कर नीचे झुक कप प्लेट उठाने लगी उनका, मेरे जीजू की नजर मेरी बहन की कमर पर लगे हुए उस पदार्थ पर पड़ी...


मेरे जीजू( आश्चर्य से): अरे रूपाली... यह तुम्हारी कमर पर यह चिकना चिकना क्या लगा हुआ है...

मेरी रूपाली दीदी( मुस्कुराते हुए): नहीं कुछ नहीं है जी... वह तो मेरी कमर पर एक चींटी चल रही थी, उसी को हटाने के लिए मैंने अपने हाथ से छू लिया था ..मेरी हाथ में लगा हुआ बटर भी लग गया है यहां पर...

थोड़ा रुक कर मेरी रुपाली दीदी एक बार फिर बोली... अबकी बार उनके तेवर बहुत तेज हो गए थे: और हां.. मैंने बेडरूम का दरवाजा इसलिए बंद किया था कि ठाकुर साहब मुझसे बात करना चाहते थे... घर के खर्चे के बारे में और भी कुछ बातें थी... वह नहीं चाहते थे कि आप और सैंडी इस बारे में कुछ भी सुने, और किसी तरह का टेंशन ले.... इसीलिए ठाकुर साहब के कहने पर ही मैंने बेडरूम का दरवाजा अंदर से बंद किया था.... यह आखरी लाइन बोलते हुए मेरी दीदी मेरे जीजू की तरफ नफरत की निगाह से देख रही थी...

मेरे जीजू अपनी घबराहट और शर्मिंदगी के वजह से नीचे सर झुका कर देखने लगे.. मेरी रूपाली दीदी वहां से उठकर किचन में चली गई और काम करने लगी... थोड़ी देर में ही ठाकुर साहब अपने बेडरूम से बाहर निकले... उन्होंने सिर्फ एक लूंगी पहन रखी थी... उनका ऊपर का पूरा बदन नंगा था... उनकी चौड़ी छाती के ऊपर काले काले घने बाल थे, साथ ही साथ कुछ सफेद बाल भी दिखाई दे रहे थे... ठाकुर साहब की बॉडी और उनकी पर्सनैलिटी देखकर मैं घबरा उठा था.. और अपने किताब की तरफ देखने लगा था... मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी मैं उनकी आंखों से आंखें मिला कर देख सकूं..... मेरे जीजू की हालत भी कुछ वैसे ही थी... वैसे भी ठाकुर साहब ने हम दोनों पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया था और आकर सोफे पर बैठ गए थे और टीवी पर न्यूज़ देखने लगे थे..

अगले तकरीबन 1 घंटे तक कुछ भी नहीं हुआ... 7:00 बजे के आसपास सोनिया बाहर से खेल कर आई थी... सोनिया को ठाकुर साहब ने अपने पास बुलाया और उसको अपने गोद में बिठा कर उससे बात करने लगे.

ठाकुर साहब: मेरी सोनिया बेटी किसके साथ खेल रही थी..

सोनिया: अंकल.. अंकल मैं वह दूसरे बच्चों के साथ खेल रही थी.. बहुत मजा आ रहा था खेलने में आज...

ठाकुर साहब सोनिया से कुछ देर तक बात करते रहे, उसने आज दिन भर क्या क्या किया इसके बारे में पूछते रहे... सोनिया भी उनको बड़े प्यार से जवाब दे रही थी... मेरी भांजी भी ठाकुर साहब को पसंद करने लगी थी... और उनके अंदर अपने पिता की छवि देख रही थी...

थोड़ी देर में ही मेरी रूपाली दीदी किचन से निकलकर बाहर आई और सोनिया को को बोली...

मेरी रूपाली दीदी: अच्छा सोनिया... अब तुम अपने कमरे में जाओ और ठाकुर साहब को परेशान करना बंद कर दो... हाथ पैर धो कर पढ़ाई करना उसके बाद हम लोग डिनर करेंगे..

सोनिया: जी मम्मी... बोलकर ठाकुर साहब के बेडरूम में चली गई...

मेरे जीजू: ठाकुर साहब... आपने जो कुछ भी हमारे लिए और हमारे परिवार के लिए किया उसके लिए मैं किस तरह से आपका शुक्रिया अदा करूं मुझे समझ नहीं आ रहा है.... आपने जो कुछ भी किया है वह शायद ही कोई किसी के लिए करता है...

ठाकुर साहब: देखो विनोद... भले ही तुम लोग मुझे अपना नहीं समझते हो... पर मैं तो तुम लोगों को ही अपना परिवार समझता हूं... मैं सोनिया और नूपुर को अपनी बेटी की तरह ही समझता हूं... तुम्हारे, सैंडी और रूपाली की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है... मेरी रूपाली दीदी का नाम लेते हुए ठाकुर साहब मेरी दीदी की तरफ ही देख रहे थे और मुस्कुरा रहे थे... मेरी बहन भी मुस्कुरा कर उनकी तरफ देख रही थी..

अगले 1 घंटे में कुछ भी नहीं हुआ... मेरी रूपाली दीदी किचन में काम करती रही... किचन का काम खत्म करने के बाद मेरी रूपाली दीदी बाहर निकल कर आ गई और सोफे पर ठाकुर साहब के बगल में बैठ गई.. जब मैंने दीदी के ऊपर गौर किया तो मैंने पाया कि उन्होंने अपनी कमर के ऊपर लगा हुआ वह चिकना पदार्थ अभी तक साफ नहीं किया था.. साफ जाहिर है मेरी रूपाली दीदी के चरित्र में काफी परिवर्तन हो चुका था... मेरी बहन के मन में अब कुछ खास ज्यादा डर बचा नहीं था... जीजू ने भी गौर किया था मेरी बहन की कमर के ऊपर.. पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा.. तो फिर भला मेरी हिम्मत कैसे हो सकती थी कुछ कहने की... हम सब लोग अपनी अपनी जगह पर बैठकर चुपचाप टीवी की तरफ देख रहे थे...

रात के 9:00 बजे सोनिया बेडरूम से निकलकर बाहर आई... मम्मी मम्मी मुझे भूख लग गई है...

हम सब ने मिलकर एक साथ खाना खाया... खाना खाते वक्त हम लोगों के बीच में कुछ खास बातचीत नहीं हो रही थी... बस ठाकुर साहब ही मेरे जीजू से बात करते हुए मिल रुपाली दीदी की तरफ देख रहे थे... खाना खत्म होने के बाद सोनिया भागकर ठाकुर साहब के बेडरूम में चली गई और उनके बिस्तर पर सो गई.. नूपुर तो पहले से ही उसी कमरे में पालने में सो रही थी... बाकी हम चारों लोग हॉल में बैठे हुए बातचीत कर रहे थे..

मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के बगल में सोफे पर बैठी हुई थी और मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर... मैं अपने बेड पर बैठा हुआ था... मुझ पर तो कोई ध्यान भी नहीं दे रहा था..

मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब... आपने ऐसी रिपेयर करने वाले मकैनिक को बोला था क्या.. वह तो आज भी नहीं आया ठीक करने के लिए...

ठाकुर साहब: वह माफ करो रूपाली... काम के चक्कर में मैं भूल गया.. कल पक्का ठीक करवा दूंगा..


NOTE: ये कहानी मूल लेखक द्वारा ही लिखी गयी है परन्तु इस फोरम पर अधूरी है

मुझे इसके कुछ भाग अन्यत्र मिल गए तो उन्हें पोस्ट कर रहा हूँ

आशा है मूल लेखक इस कहानी को आगे लिख कर बढ़एंगे

 
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