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Bhai ek esa plot do jisme rupali drawing room me sabke samne apne pero me mahawar alta ,laga rahi h aur hathi me mahandi jisko dekh ke ,teni mardo ka lund khara ho jata h aur rupali ke sath sab bari bari se hum bistar sex karte h. Rupali ka hud
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब... आपने ऐसी रिपेयर करने वाले मकैनिक को बोला था क्या.. वह तो आज भी नहीं आया ठीक करने के लिए...
ठाकुर साहब: वह माफ करो रूपाली... काम के चक्कर में मैं भूल गया.. कल पक्का ठीक करवा दूंगा..
मेरी रूपाली दीदी कुछ बोल पाती इसके पहले ही मेरे जीजू बीच में टपक पड़े...
मेरे जीजू: रूपाली तुम ठाकुर साहब को क्यों परेशान कर रही हो... मैं तो बिना एसी के ही सो जाऊंगा... मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है ठाकुर साहब...
मेरी रूपाली दीदी: नहीं विनोद आप कैसी बातें कर रहे हो... रात में आपको बहुत तकलीफ हो सकती है गर्मी के कारण... अगर हम लोगों को गर्मी लगेगी तो हम लोग तो उठकर हॉल में भी आ सकते हैं... आप तो नहीं आ सकते हो ना....
मेरी बहन की बातों की डबल मीनिंग को मैं अच्छी तरह समझ रहा था पर मेरा नासमझ जीजा, उसे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था.
मेरी रूपाली दीदी: एक काम कीजिए आप आज की रात भी ठाकुर साहब के बेडरूम में ही सो जाइए...
मेरी रूपाली दीदी की बात सुनकर ठाकुर साहब को पहले मन में गुस्सा आया.. फिर वह समझ गय और मुस्कुराने लगे मेरी तरफ देख कर... अपने मन के किसी कोने में ठाकुर साहब मुझे जलील करना चाहते थे... मैंने अपना सर नीचे झुका दिया था...
मेरी रूपाली दीदी मेरे जीजू को उनके व्हीलचेयर पर घसीटते हुए ठाकुर साहब के बेडरूम में लेकर गई और किसी तरह से उनको उठा कर ठाकुर साहब के बिस्तर पर लिटा दी... उनके माथे को चूम कर मेरी बहन बोली..
मेरी रूपाली दीदी: देखिए जी मैं तो आपके साथ ही सोना चाहती हूं.. मगर ठाकुर साहब को बहुत बुरा लगेगा... हम दोनों उनके ही घर में एयर कंडीशन में सो रहे हैं और वह गर्मी में पंखे के नीचे... इसलिए मैं ठाकुर साहब के पास जा रही हूं... प्लीज आप बुरा मत मानिए...
मेरे जीजू: इसमें बुरा मानने की क्या बात है रुपाली... ठाकुर साहब वैसे भी हम लोगों को अपना समझते हैं.. तुम जाओ और उनके पास सो जाओ... तुम दिनभर थक गई होगी काम कर करके... मुझे तुम दोनों पर पूरा भरोसा है.. मेरी बहन ने मेरी जीजू के होठों पर एक चुम्मा देकर कमरे की लाइट बंद कर दी... और उस बेडरूम से बाहर निकल कर आ गई..
ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर जाने से पहले मेरी दीदी ने मुझे तेज निगाहों से देख अपना गुस्सा जताया... ना जाने क्यों मेरी बहन मुझसे बहुत नाराज थी... डर के मारे मैंने भी हॉल की लाइट बंद कर दी और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया... मेरी रुपाली दीदी अब ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चली गई थी और उन्होंने दरवाजा भी बंद कर लिया था अंदर से... मैं अपनी सांसे रोककर बेडरूम के अंदर होने वाली हलचल को सुनने का प्रयास कर रहा था...
कमरे के अंदर ठाकुर साहब बिस्तर पर लेटे हुए थे...
मेरी रूपाली दीदी को अपने कमरे के अंदर आते हुए देखकर ठाकुर साहब अपनी शराब की बोतल को नीचे रख दिय... वह दारू पी रहे थे पहले से... लेकिन उनको आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने मेरी दीदी को अच्छी तरह देखा... आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक, चेहरे पर हल्का मगर प्यार मेकअप, मेरी रूपाली दीदी सजधज के तैयार थी...
ठाकुर साहब( अपना मुसल अपने हाथ में पकड़े हुए): इतनी देर क्यों लगा दी तुमने रूपाली?
मेरी रूपाली दीदी: वह ...वह.. मैं विनोद को सुलाने की कोशिश कर रही थी.. इसीलिए देर हो गई...
ठाकुर साहब: उसको सुलाने में तुमको इतना टाइम लग गया?
मेरी रूपाली दीदी अब ठाकुर साहब के बगल में जाकर लेट चुकी थी.
मेरी रूपाली दीदी: मैं उनकी बीवी हूं... बस उनको सुलाना ही मेरा काम नहीं है.. उनके साथ सोना भी मेरा धर्म है.. अगर उनको सुलाने में थोड़ा वक्त लगा दी तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिए ठाकुर साहब...
ठाकुर साहब ने मेरी बहन की एक चूची पकड़कर कसके मसल दिया..
मेरी रुपाली दीदी: "हाईई... मर गई .... ऑईईई... उहह... उम्म्म्म..
ठाकुर साहब: ऐसे मत करो रूपाली... तुम्हारा भाई बाहर ही सो रहा है... तुम्हारा पति अभी भी जगा हुआ ही होगा...
मेरी रूपाली दीदी: उम्म्म्म... अपने आप को फ्रेश करने में और मेकअप करने में इतना टाइम लग गया... अपने पति को सुलाने में नहीं..
ठाकुर साहब: तुमको मेकअप करने की क्या जरूरत है... रूपाली.. तुम तो दुनिया की सबसे हसीन औरत हो...
मेरी रूपाली दीदी: आप मेरी झूठी तारीफ करते हैं...उहह... उम्म्म्म हाय मां... धीरे.....
कुछ ही देर में ठाकुर साहब मेरे रूपाली दीदी को नंगी कर चुके थे और खुद भी नंगे होकर मेरी बहन के ऊपर सवार हो गए थे..
बेदर्दी से सुपर स्पीड से चोद रहे ठाकुर साहब मेरी बहन के मुंह से कामुक सिसकियां निकलवा रहे थे... मैं दरवाजे के बाहर खड़ा होकर कान लगाकर सुन रहा था...
मेरी रूपाली दीदी की चूत तो आग की भट्ठी बन ... इतनी तेज ठुकाई से चूत की दीवारे जलने लगी थी... बिना कुछ सोचे समझे मैं अपना छोटा चेतन पकड़ कर हिला रहा था... अपनी सगी बहन की ठुकाई की आवाजें सुनकर मैं अपना हिला रहा था..
कमरे के अंदर मेरी रूपाली दीदी की साड़ी चोली उनका पेटीकोट नीचे जमीन पर पड़ा हुआ था... दीदी की ब्रा और पेंटी बिस्तर पर ही थी... ठाकुर साहब की लूंगी के ऊपर... और मेरी बहन ठाकुर साहब के नीचे पड़ी हुई सिसकारियां मार रही थी... आज पहली बार मैं अपनी बहन के नाम की मुठ मार रहा था..
… आह्ह मर गई … ओह्ह, उफ्फ … उई माँ, .. थोड़ा धीरे, हाँ अब ठीक है.. थोड़ा जोर से …” रूपाली दीदी बोल रही थी.
अंदर से मेरी रूपाली दीदी के कराहने की आवाज के साथ फच-फच जैसी आवाज भी आ रही थी जो मैं अच्छी तरह समझ रहा था..
मैं भी जोर जोर से अपना छोटा चेतन हिलाने लगा था.. बाहर खड़े हुए मैं अपने आप को कंट्रोल नहीं कर सका और मेरा लंड वहीं पर खड़े हुए ही झड़ गया. पता नहीं क्या हो गया था कि इतनी उत्तेजना हो गई थी कि मेरा पानी वहीं पर निकल गया. मैं जल्दी से बिस्तर पर आकर लेट गया.
NOTE: ये कहानी मूल लेखक babasandy द्वारा ही लिखी गयी है परन्तु इस फोरम पर अधूरी है
मुझे इसके कुछ भाग अन्यत्र मिल गए तो उन्हें पोस्ट कर रहा हूँ
आशा है मूल लेखक babasandy इस कहानी को आगे लिख कर बढ़एंगे
रात भर मेरी बहन ठाकुर साहब के नीचे पड़ी हुई चुदती रही ..
सुबह जब मेरी दीदी की नींद खुली.. तो उन्हें खुद पर ही शर्म आने लगी थी.... मेरी रूपाली दीदी नंगी ठाकुर साहब के सीने पर लेटी हुई थी.... ठाकुर साहब का खड़ा मुसल देखकर मेरी बहन के मुंह में पानी आ रहा था.. मेरी बहन उनका पकड़ कर हिलाने लगी थी... ठाकुर साहब की आंख खुल गई थी... मेरी रूपाली दीदी शर्म से पानी पानी हो गई..
मेरी रूपाली दीदी: आज तो संडे है ना ठाकुर साहब... आप तो घर पर ही रहोगे.... क्या आप सोनिया को बाल कटवाने के लिए हजाम के पास ले जा सकते हो प्लीज...
ठाकुर साहब: नहीं रुपाली मैं नहीं जा सकता हूं आज.. बहुत काम है मुझे आज के दिन.. तुम चली जाओ ना..
मेरी दीदी: मैं कैसे जाऊंगी.. इतना सारा काम होता है घर में..
मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के लंड को ऊपर नीचे करते हुए बोल रही थी.. उनका मुट्ठ मार रही थी...
ठाकुर साहब: एक काम करो रूपाली.. तुम भीमा के पास चली जाओ... वह सोनिया के बाल अच्छी तरह काट देगा...
मेरी रूपाली दीदी: यह भीमा कौन है ठाकुर साहब..
ठाकुर साहब: भीमा मेरा खास आदमी है.. नाई की दुकान चलाता है यहीं पर बगल में.. तुम सोनिया को लेकर उसके पास चले जाना दिन में.. आज मुझे बहुत काम है ...मैं उसको बोल दूंगा...
"इस्स्स... आहह... ... आहह.." मेरी रूपाली दीदी ने अपने हाथों से ही ठाकुर साहब के मुसल से उनका मक्खन निकाल लिया था..
तुम बड़ी मस्त माल रुपाली.. ठाकुर साहब चीखने लगे थे...
मेरी रूपाली दीदी उठकर बाथरूम में चली गई थी नंगी अपने बदन को साफ करने के लिए...
आज सुबह-सुबह ही मेरी रूपाली दीदी नहा धोकर तैयार हो चुकी थी और बिल्कुल फ्रेश महसूस कर रही थी... ठाकुर साहब तो अपने काम से जल्द ही घर से निकल गए थे... आज मेरी बहन को भीमा नाई की दुकान पर जाना था सोनिया के बाल कटवाने के लिए... घर के सारे काम निपटाने के बाद मेरी दीदी अपने बेडरूम में गई और तैयार होने लगी..
10:00 बज चुके थे... मेरी रूपाली दीदी अपने बेडरूम में खड़ी अपने आदमकद आईने के सामने में खुद को निहार रही थी.. मेरी बहन आज बदली बदली सी लग रही थी.. कुछ दिनों पहले की एक पतिव्रता सीधी साधी औरत क्या से क्या बन चुकी थी... दीदी अपने आपको आईने में देख कर हैरान थी... मेरी बहना आज बेहद खूबसूरत लग रही थी, जैसे स्वर्ग से उतर के कोई अप्सरा धरती पर आ गई हो.... मेरी रूपाली दीदी, छोटे कद की मगर फिर भी बेहद उत्तेजक और आकर्षक लग रही थी आज ....
मेरी रूपाली दीदी के मादक शरीर से निकल रही खुशबू पूरे घर के वातावरण को कामुक बना रही थी... मेरी बहन आदम कद आईने के सामने एक स्टूल पर बैठ कर अपने एक-एक अंग को निहार रही थी.. कल रात को जिस तरह से ठाकुर साहब ने मेरी बहन को रगड़ा था..पेला था.. उसकी मस्ती अभी भी मेरी बहन के चेहरे पर साफ साफ दिखाई दे रही थी ... मेरी रूपाली दीदी के गुलाबी चिकने छेद में अभी भी मीठा मीठा दर्द हो रहा था.. ठाकुर साहब के मुसल ने रात भर मेरी बहन को बहुत तकलीफ दी थी... मेरी बहन का छेद रात भर की कुटाई से अभी भी जलन का अनुभव कर रहा था..
मेरी दीदी लाल रंग की साड़ी में और स्लीवलेस चोली में खुद को देखकर ही शर्म आ रही थी... मेरे जीजू के एक्सीडेंट होने के बाद आज मेरी बहन पहली बार इतनी सज धज के तैयार हुई थी... वह भीमा के बारे में सोच रही थी ..जिस इंसान से आज तक वह कभी नहीं मिली थी... मेरी बहन एक पतिव्रता नारी की तरह नहीं बल्कि एक कामुक वेश्या की तरह सोच रही थी...
मेरी दीदी उठ कर खड़ी हो गई.. मेरी रूपाली दीदी अपने हाथों से अपनी चूचियों को पकड़ कर दबाने लगी थी और मन ही मन: - कितने बड़े बड़े हैं मेरे.... हाय मां... 36 के हो चुके होंगे..... अब इसमें मेरा क्या कसूर है... इतने बड़े बड़े हो गए हैं तो मैं क्या करूं... पिछले 1 महीने से ठाकुर साहब भी तो इतनी मेहनत कर रहे हैं इनके ऊपर... जब से 18 साल की हुई थी... तभी से मर्दों की गंदी नजर से बचाती आ रही हूं... बस अपने पति के लिए... जो अपाहिज हो चुका है..
मेरे रुपाली दीदी: ठाकुर साहब... हा हा... आप नहीं होते तो क्या होता मेरे इन गुब्बारों का... कौन चूसता इनको.. कौन दबाता इनको... कौन इनको अपने मुंह में लेकर प्यार करता..... मेरा नाकारा पति तो अपने व्हील चेयर पर बैठा हुआ है.. मेरे पति का खड़ा भी नहीं होता.. - "हाय री... मेरी किस्मत... सुहागरात में ही सारी कसर निकलने के बाद पति तो अपाहिज होकर व्हीलचेयर के ऊपर बैठ गया... दो बेटियां ... कैसे संभालू मैं इन दोनों को... मेरा भाई भी तो नाकारा है.. किसी काम का नहीं है.....
मेरी रुपाली दीदी अपनी चुचियों को अपने कोमल हाथों से मसल रही थी.. रुपाली दीदी सिसक रही थी.. मेरी बहन ठाकुर साहब के मर्दाना हाथों की कमी को महसूस कर रही थी..
अब कम से कम दूसरे मर्द को दिखा दिखा कर मेरी यह दोनों बड़ी बड़ी ... कम से कम लोगों का खड़ा तो कर देती होगी.. तो इसमें बुरा क्या है... किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए..... आईईई उईईई... मेरी रूपाली दीदी अपनी साड़ी उठाकर अपने छेद में अपनी बीच वाली उंगली से अंदर बाहर कर रही थी...नाजुक गुलाबी चूत से रस का फव्वारा निकलने लगा था जो शीशे के ऊपर जाकर टकरा रहा था..
NOTE: ये कहानी मूल लेखक babasandy द्वारा ही लिखी गयी है परन्तु इस फोरम पर अधूरी है .... मुझे इसके कुछ भाग अन्यत्र मिल गए तो उन्हें पोस्ट कर रहा हूँ