मेरे निकाह मेरी कजिन के साथ
खानदानी निकाह
अपडेट 143
नौकर की बीवी के साथ सुहागरात में मुक्कमल मजे
इस सारी चूमा छाती में मेरी उत्तेजना बढ़ गयी थी और अब मैं जल्दी से जल्दी उसे चोदना चाहता था। जब मुझसे न रहा गया तो मैंने अफरोजा की चूची छोड़कर जल्दी-जल्दी अपने सारे कपड़े उतार फेंके। कोई इधर गिरा कोई उधर जाके पड़ा। मैं भी नंगा हो गया। 'हाय...हाय...अम्मा री...कितना लंबा और मोटा है हजूर आपका लंड ...मेरी तो इतनी छोटी-सी है यह तो मुझे फाड़ देगा नीचे... प्लीज़ हजूर ज़रा धीमे-धीमे करियेगा!'
'तेरी फाड़ूँगा बाद में, पहले इसे अच्छे से चूस... पूरा का पूरा अंदर जाना चाहिए!' इतना कह कर मैं बिस्तर पर बैठ गया और जैसे ही मैंने अफरोजा से लंड चूसने को कहा तो वह बड़ी हैरान हुई। मैंने उसे समझाया कि इसे चूसने के बाद ही सेक्स होता है। वह मना नहीं कर सकती थी क्योंकि उसकी मजबूरी थी और फिर मैंने उसे चूसने और चूमने के लिए कहा और अफरोजा का सर पकड़ कर उसका मुँह एकदम लण्ड से सटा दिया।
'अफरोजा ने झिझकते हुए पहले तो पूरे लौड़े को नीचे से ऊपर तक चूमा, फिर टट्टे सहलाये और फिर
अफरोजा ने लंड को नीचे ऊपर से पहले तो सूंघा और फिर प्यार से उसने जीभ इसके सब तरफ़ फिरानी शुरू कर दी, चाट-चाट के सुपारी को टुन्न कर डाला। मेरा लण्ड फुदक-फुदक के अपनी बेसबरी दिखा रहा था।
सुपारी को ख़ूब चाटने के बाद अफरोजा ने किसी तरह मुँह पूरा खोला और लण्ड मुँह में घुसा लिया और धीमे-धीमे पूरा का पूरा जड़ तक लण्ड मुँह में ले लिया। अब वह चटखारे ले-ले कर चूसने लगी जैसे लोग आम चूसते हैं।
लण्ड का टोपा, जो फूल के कुप्पा हो गया था, अफरोजा के मुँह के अन्दर गले से सटा हुआ था और वह लार निकाल के दबादब चूसे जा रही थी। जब वह मुँह आगे पीछे करती तो उसके महा उत्तेजक मम्मे भी फ़ड़क-फ़ड़क कर इधर उधर हिलते डुलते और मेरे मज़े को सैंकड़ों गुणा बढ़ा देते।
मस्ती में मैं चूर हो गया था!
अफरोजा लण्ड चूसने के साथ-साथ मेरे अंडे भी बड़े हल्के-हल्के हाथ से सहला रही थी। मेरे मुँह से अब आहें निकल रही थीं, -सी सी करता हुआ मैं झड़ने के क़रीब जाने लगा, मेरी उत्तेजना बढ़ी हुई थी जिससे मुझे लगा कहीं माल ना निकल जाए इसलिए मैंने सोचा कि सारी ज़िन्दगी पड़ी है लंड चुसवाने के लिए, आज पहले इसकी चूत फाड़ी जाये।
अफरोजा मेरे बग़ल में लेट गई और बड़े प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ घुमाने लगी।
' हजूर इसे मुँह में तो ले लिया जैसे तैसे लेकिन नीचे का छेद तो बहुत छोटा है। कैसे जायेगा ये मूसली जैसा भीतर? "
मैं उसके निप्पल उमेठता हुआ बोला-अरे बन्नो बड़े मज़े से घुसेगा... औरत की चूत हाथी का लण्ड भी लील सकती है... यह तो इंसान का है... अच्छा तो लगा तुझे, मज़ा आया? मैंने प्यार से उसकी चूचियाँ मसलीं।
'आह...हाय हजूर क्या करते हो? आप बहुत सताते हो। जब आप इन्हें दबाते हो तो पता नहीं क्यों मेरे बदन में बिजली दौड़ने लगती है मेरा दिल करता है कि आप मुझे जकड़ कर मेरी चटनी पीस दो। पूरा बदन ऐंठ जाता है, जी में आता है कि कोई मेरे शरीर को कुचल के रख दे। ऐसा क्यों होता है... बताओ ना हजूर?'
'अफरोजा ! मेरी जान यह इस बात की निशानी है कि तुझे वासना ने जकड़ लिया है... अब जब तक तेरी एक मोटे तगड़े लण्ड से, जम कर चुदाई नहीं होगी यह अकड़न और यह गर्मी यूँ ही तुझे दुखी करती रहेगी!'
और मैंने अफरोजा को खींच कर अपने ऊपर लिटा दिया।
आजा अफरोजा ...आज तेरा कचूमर बना ही दूँ! ' उसका सुन्दर मुखड़ा अपने मुँह से चिपका कर मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिये और साथ ही साथ उसकी चूचियाँ दबोच कर उन्हें पूरी ताक़त से मसलने लगा।
अफरोजा ने भी बड़े मज़े ले-ले के अपने होंठ चुसवाये और बीच-बीच में मुझे अपनी जीभ भी दे देती थी जिससे मेरे मुँह में उसकी लार भी आ जाती थी और मैं अपनी लार उसके मुँह में डाल देता था ऐसे ही रस का आदान प्रदान करता हुआ मैं उसका बदन सहलाते हुए मसलते हुए उसे चूमता रहा ।
फिर कुछ देर के बाद मैंने उसकी कमर पकड़ कर थोड़ा उसे ऊपर को घसीटा ताकि मम्मे मेरे मुँह के पास आ जाएँ। जैसे ही अफरोजा के बड़े-बड़े चुचुक जैसे ही मेरे मुँह के सामने आये, बूब्स सख्त हो चुके थे, मेरे बदन में वासना की आग भड़क उठी, मैंने बड़े ज़ोर से एक चूची में दांत गाड़ दिये और दूसरी चूची को पूरी ताक़त से हाथों से ऐसे निचोड़ा जैसे धुलने के बाद तौलिये को निचोड़ते हैं। चूचुक भी वाकई में बहुत सख्ताये हुए थे।
अब अफरोजा कराहती हुई गहरी-गहरी साँसें लेने लगी। बदल-बदल के मैंने चूचियों को चूसना, काटना और मसलना जारी रखा।
मैंने एक बार फिर अफरोजा के खूबसूरत नंगे जिस्म का मुआयना किया, सपाट पेट, लहराती हुई कमर, गहरी नाभि और गोल-गोल बड़े बड़े बूब्स पर तनी हुई निपल्स, आँखे अधमुंदी, सुंदर चेहरा, चिकनी शेव्ड हल्के ब्राउन कलर की चूत, केले के खंभे जैसी चिकनीजांघे और गोरा बदन। फिर उसके पेट, कमर। चाटते हुए उसकी नाभि की अपनी जीभ से ही चुदाई कर डाली, उसका सपाट पेट, लहराती हुई कमर, गहरी नाभि और बूब्स पर तनी हुई निपल्स, आँखे अधमुंदी चेहरा और गला मेरे चाटने के कारण गीला था ।
और केले के खंभे जैसी चिकनी जांघे और गोरा बदन हाथ से सहलाने लगा। चिकनी शेव्ड हल्के ब्राउन कलर की चूत पर हाथ फिराया जिससे अफरोजा अब तड़पने लगी थी, उस पर कामावेश पूरा चढ़ गया था। फिर में उठकर उनकी जाँघो के बीच में आ गया और अपने मुँह में उनकी निपल्स लेते हुए अपनी एक उंगली उनकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा, लेकिन उनकी टाईट चूत बहुत सख्त और तंग थी और मेरी ऊँगली घुसाने कोशिश पर अफरोजा चीखने लगती थी, लेकिन बड़ी मुश्किल से मेरी 1 उंगली उनकी चूत में अंदर जा पाई। जब मैंने एक उंगली उसकी चूत में डाली, चूत पूरी तरह रस से सराबोर थी।
उंगली घुसते ही अफरोजा एकदम से कंपकंपा उठी और हाय-हाय करने लगी, उसने मेरे बाल कस के जकड़ लिये थे और वहशियों की तरह वह मेरा मुँह अपने चूचुकों में ज़ोर-ज़ोर से रगड़ रही थी जैसे कि मेरा मुँह चूचियों में घुसेड़ देना चाहती हो। मैंने ऊँगली और आगे घुसेड़ी जैसे ही उंगली थोड़ी-सी अंदर घुसी, उसकी चूत का पर्दा रास्ते में आ गया, मैं भौंचक्क हो गया।
यह अफरोजा तो सच में अभी तक कुमारी थी। पर चुत के अंदर ऊँगली हिलाने से अब उसे एक तगड़े लण्ड से चुदवाने की गहरी इच्छा बावली बनाये जा रही थी।
जब मैंने चुत पर हाथ फेरा था और देखा अफरोजा की चुत सफाचट थी और वहाँ बालो या झांटो का नामोनिशान नहीं था मुझे लगा था कि तो वह चुद जाने के लिये पूरी तत्पर होकर आई थी। इसलिए शक हुआ की शायद चुदी चुदाई है । पर जब मेरी ऊँगली उसकी चुत के परदे से टकराई तब मुझे लगा की साफ़-साफ़ करके इसलिए आयी है शायद सोचा होगा कि एक ना एक दिन तो चुदना है ही, तो आज क्यों नहीं और चलो जब खसम भी राजी है तब आज मालिक को ही खुश कर देती हूँ।
मेरी तो अब ऐश लग गयी थी कि एक और कुमारी लड़की को चुदी हुई औरत बनाने का मौक़ा मिला। और फिर अनवर को अच्छी तरह मालूम था कि मुझे कुंवारी बुर मारने का कितना शौक है क्योंकि कुमारी टाइट फुद्दी या बुर को चोदने का मज़ा भी तो बेहिसाब आता है।
मैंने करवट लेकर अफरोजा को बेड पर पटक दिया और ख़ुद उसके ऊपर चढ़ गया, तुरंत उसने अपनी टांगें फैला लीं। एक तकिया मैंने उसके चूतड़ों के नीचे टिका दिया और पहले उसकी चुत पर हाथ फेरा। और मैंने लंड उसकी चूत पर रख दिया। फिर मैंने उसे चूमते हुए और बूब्स दबाते हुए अपना लंड उनकी चूत के मुँह पर सेट किया और उसे चूमता चाटता रहा। अब उसकी सुगंध से मेरा लंड जो कि अब पूरा 9 इंच लंबा और 3 इंच मोटा हो गया था, फंनफना कर चूत में घुसने की कोशिश करने लगा था। मैंने एक दो बार लंड उसकी चूत पर रगड़ा और उसकी भाग के दाने को मसला ।
लण्ड अफरोजा की चूत के मुहाने पर जमा के मैंने एक ज़ोर का धक्का दिया, फिर चूत के छेद को ऊँगली से खोल उसमे लंड लगा कर अंदर धकेला दो तीन बार ज़ोर लगाने से बड़ी मुश्किल से मेरा लंड अंदर घुसा ही था कि अफरोजा चीखने लगी, मेरा लौड़ा उस बारीक-सी झिल्ली को फाड़ता हुआ चूत में घुस गया। उसकी कुमारी बुर बहुत कसी थी जैसी अनचुदी चूतें होती हैं। फटे हुए पर्दे से गर्म-गर्म लहू निकलने लगा जिससे चूत में ख़ूब पिच-पिच मच गई जबकि लण्ड को उबलते उफनते खून की बौछार में भीग के तो बड़ा मज़ा आया!
फिर जैसे ही मैंने धक्का लगाया अफरोजा सिहर उठी। उसकी चूत कसी थी। जैसे ही मैंने ज़ोर लगाया वह रोने लगी। मैंने ज़ोर से धक्का लगाया, लंड पूरा नादर घुस गया और वह चीख पड़ी-मर गई अम्मी फाड़ दिया! मार दिया, बचाआआआओ! कोई है मुझे इस ज़ालिम से बचाओ! फाड़ दी मेरी, मैंने खा था हजूर धीरे डालो! पर आपने इतनी तेज घुसा दिया। अफरोजा कराहने लगी और रोते-रोते बोली-हजूर मैंने कहा था इतना बड़ा मेरे छोटे से छेद में कैसे घुसेगा...हाय...हाय... बहुत दर्द हो रहा हे... उई माँ...अब ना बचूंगी... आपने पूरा घुसेड़ के मुझे नीचे से फाड़ डाला... अब क्या होगा सर? ...हाय...मेरा क्या होगा? '
मैंने उसे बड़े प्यार से चूमा, अफरोजा के आँसू पौंछे और उसका पूरा मुँह पर बहुत सारी चुम्बन लिये।
मुझे पता था कुमारी लड़कियाँ चूत की झिल्ली फटने पर एक बार दहशत में आ जाती हैं, घबरा जाती हैं और उनको काफ़ी प्यार से हिम्मत देने की ज़रूरत होती है। अभी दस मिनट में ये पहली सभी लड़कियों की तरह ही मस्त होकर चूतड़ कुदा-कुदा के चुदवायेगी और बार-बार खुश होकर चूत मरवाएगी।
फिर लगा अफरोजा का दर्द ख़त्म हो गया था क्योंकि अब उसका सुबकना काम हो गया था और चूत दुबारा से रस बहाने लगी थी और अफरोजा भी मेरी चुम्मियों के जवाब में मुझे चूमने लगी थी।
अब मैंने हल्के-हल्के धक्के भी देने शुरू कर दिये। अब अफरोजा को दर्द न हुआ क्योंकि उसने भी मज़े लेते हुए अपने नितम्ब हिला कर धक्के के जवाब में धक्के लगाये।
मैंने फिर अफरोजा के होंठों को चूसते-चूसते धक्के थोड़ा तेज़ शुरू किये।
मेरे धक्के बढ़ने लगे और अफरोजा को भी स्वाद आने लगा। वह लगातार बोले जा रही थी-हाय री अम्मी, कैसी क़िस्मत दी भगवान ने मुझे, गाँव के मुश्टंडो और अपने मालिक से, नवाब साहब से बड़ी मुश्किल से जवानी बचा कर लाई थी, अपने खसम के लिए, यहाँ कोई और ऊपर चढ़ गया। हाय ज़ालिम हाय धीरे-धीरे कर। इतना क्यों जुलम कर रहे हो हजूर। मैं अब यहीं हूँ! आपके नीचे ही तो लेटना है हर रोज़!
ले अफरोजा मेरी जान, मेरा लंड खा, सारी ज़िन्दगी की किसी चीज़ की कमी नहीं आने दूंगा। ले-ले ले! वह भी बोले जा रही थी-धीरे! धीरे! हजूर! आज अम्मी चुद गई तेरी अफरोजा! फट गई कुंवारी चूत आह-आह आह आआआआआआआअह!
मैं- अफरोजा मेरी जान ... बिल्कुल फिकर न कर... अभी दर्द ठीक हो जायेगा... बस दो मिनट तसल्ली रख... हाँ मेरी रानी... बस दो मिनट... इतना कह कर मैंने उस पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। मैंने होंठ गीले कर-कर के उस बार-बार पलकों पर, होंठों पर, गालों पर और माथे पर चुम्मियाँ लीं, कान की लौ चूसी, दोनों गाल बारी-बारी से चूसे, फिर मैंने उसके कंधों के ऊपरी भाग पर जीभ फिराई, उसके बाज़ू ऊंचे करके बगलें चाटीं।
इतना प्यार भरे मधुर चुम्बन पा के अफरोजा की घबराहट फौरन कम हो गई और उसे भी मज़ा आने लगा।
इस दौरान मैंने लण्ड एकदम शांत रखा हुआ था, कोई धक्का नहीं मारा, बस थोड़ी-थोड़ी देर में एक दो तुनके मार देता था।
अफरोजा चीखे जा रही थी, मैं धक्के मारता चला जा रहा था। मज़ा दोनों को आ रहा था। मैं भी चिल्लाने लगा-हाय अफरोजा मेरी जान! मज़ा आ गया तेरी सील तोड़ कर! साली क्या जवानी है! फुद्दू था वह नवाब जिसने तुझे कुंवारी को ससुराल भेज दिया।
अफरोजा में भी वासना का आवेश बढ़ता जा रहा था, वह बड़े उत्साह से मुँह उचका-उचका के अपने होंठ चुसवा रही थी।
अफरोजा ने अपनी बाहें कस के मेरे बदन से लिपटा ली थीं और उसने अपनी मुलायम-मुलायम टांगें चौड़ा कर मेरी फैली हुई टांगों में लपेट रखी थीं, उसके पैर मेरे टखनों में फंसे हुए थे।
अफरोजा का रेशमी साटिन जैसा बदन मेरे बदन से चिपक के मेरी वासनाग्नि को अंधाधुंध भड़काए जा रहा था, मेरी सांस तेज़ हो चली थी, माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं।
मैंने अफरोजा के होंठ छोड़ कर उसकी तरफ़ देखा, वह भी अब पूरी गर्म हो चली थी, उसने आधी मुंदी हुई मस्त आँखों से मेरी तरफ़ बड़े प्यार से देखा, दोनों हाथों मेरा चेहरा पकड़ा और फिर अपनी तरफ़ खींच के मेरे होंठ चूसने लगी।
थोड़ी देर इसी प्रकार चूसने के बाद अफरोजा बोली-हजुर अआपने मुझे कितना मस्त कर दिया है... अब ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा... बड़ा मज़ा आ रहा है... हजूर मेरा बदन में फिर से अकड़न महसूस होने लगी है... ऐसा क्यों हो रहा है?
मैंने उसका एक चुम्बन लिया और कहा- अफरोजा रानी... तू चुदासी हो रही है... मैं सब अकड़न ठीक कर दूंगा... तुझे चोद-चोद के... अब तो दर्द होने का काम भी ख़त्म हो चुका... अब तो रानी बस मस्ती और बस मस्ती में डूबे रहना है।
इतना कह कर मैंने दोनों हाथों से अफरोजा के उरोज पकड़ लिये और उन्हें भींचे-भींचे ही धक्के पर धक्का लगाने लगा। धक्के के साथ-साथ चूचुक मर्दन भी ख़ूब ज़ोरों से हो रहा था।
फिर 10 मिनट की बेरहम चुदाई के बाद जब अफरोजा की चीखे कम हुई और सिसकारी में बदलने लगी तो मैंने अपना लंड आधा बाहर कर लिया और अंदर बाहर करने लगा। फिर अचानक से अफरोजा ने मुझे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया और झड़ गयी और मुझे चूमने लगी।
अफरोजा अब मस्तानी होकर चुदाये जा रही थी और साथ में सीत्कार भी भरती जाती थी, कामुकता के नशे में चूर होकर उसकी आँखें मुंद गई थीं, मुँह थोड़ा-सा खुल गया था और चूत दबादब रस छोड़े जा रही थी। अचानक मैंने धक्कों की स्पीड कम कर दी और बहुत ही हौले-हौले लण्ड पेलना शुरू किया।
मैं लौड़ा पूरा चूत के बाहर निकलता और फिर धीरे से जड़ तक बुर के अंदर घुसेड़ देता।
अब अफरोजा तड़प उठी, कहने लगी-हजूर बड़ा मज़ा आ रहा है... मेरा एसा दिल कर रहा है कि आप मेरा कचूमर निकल दो... आप धीरे हो जाते हो तो ये बदन काट खाने को हो रहा है... अब हजूर पूरी ताक़त से धक्के ठोको। मुझे पता नहीं क्या हो रहा है...बस जी कर रहा है कि आप मुझे दबोच कर मेरा मलीदा बना दो...
फिर अफरोजा की आवाज़ और ऊँची हो गई-हजूर ...तोड़ दो...अब पीस दो मेरा बदन... मैं दुखी आ गई इससे... हाय...हाय... अब मसलो ना... किस बात का इंतज़ार कर रहे हो... मेरी जान निकली जा रही है!
मुझे उसे तड़पाने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था। मैंने अफरोजा के होंठ चूसने शुरू कर दिये जिससे उसका मुँह बंद हो गया।
अब अफरोजा आराम से होंठ चुसाये जा रही थी, चुदाई करवाये जा रही थी और मुँह बंद होने के कारण अपनी तड़पन दूर करने के लिये पूरा बदन कसमसाये जा रही थी।
जब मैंने दस बारह ख़ूब तगड़े धक्के ठोके, तो अफरोजा पागल-सी होकर मुझ से पूरी ताक़त से लिपट गई, उसकी गर्म-गर्म तेज़ तेज़ चलती सांस सीधे मेरे नथुनों में आ रही थी, चूत से रस छूटे जा रहा था।
और फिर जैसे ही मैंने एक तगड़े धक्के के बाद लण्ड को रोक के तुनका मारा, अफरोजा चरम सीमा पर पहुँच गई, उसने मेरा सिर कस के भींच लिया और अपनी कमर उछालते हुए कुछ धक्के मारे।
अफरोजा झड़े जा रही थी। अब तक कई दफ़ा चरम आनन्द पा चुकी थी, झड़ती, गरम होती और ज़ोर का धक्का खा के फिर झड़ जाती।
ऐसा कई मर्तबा हुआ। अब तक मैं भी झड़ने को हो लिया था, मैंने अफरोजा के उरोज जकड़े-जकड़े ही कई ताक़तवर धक्के ठोके इस दौरान अफरोजा भी कई बार फिर से झड़ी।
15 मिनट की चुदाई के बाद मैं झड़ने जा रहा था। और झड़ गया। अफरोजा भी तीन बार झड़ चुकी थी।
हमारी साँसें बहुत तेज़ चल रही थीं। झड़ के मैं अफरोजा के ऊपर ही पड़ा हुआ था। अफरोजा आँखें मींचे चुप चाप पड़ी थी और अभी-अभी हुई विस्फोटक चुदाई का मज़ा भोग कर सुस्ता रही थी।
कुछ देर के बाद जब हमारी स्थिति सामान्य हुई तो मैंने अफरोजा के मुँह को प्यार से चूमा, उसके चहरे पर बहुत संतुष्टि का भाव था जैसे कोई बच्चा अपना मनपसंद खिलौना पाकर तृप्त दिखाई देता है।
चुदी हुई अफरोजा बड़ी प्यारी-सी गुड़िया-सी लग रही थी।
मैंने देखा चादर पर खून के धब्बे लग गए थे। वह वाकई कुंवारी थी और मैं खुशनसीब था जिसने उसकी जवानी का पहला रस पिया।
उस रात हवेली में मौजूद सभी लोग अनवर के सारे रिश्तेदार सोए नहीं। सारी रात हमारी चुदाई की बातें सुनते रहे। पूरी रात में मैंने अफरोजा को तीन बार चोदा। सुबह अफरोजा से ठीक तरीके से चला नहीं जा रहा था। उसकी सास (तर्रनुम खाला) बहुत खुश थी। अनवर भी बहुत खुश था। उसकी बीवी को पहली रात मैंने चोदा और वह फिर भी खुश था।
पूछने पर उसने बताया-"नवाब हजूर, अफरोजा को तो इक न इक दिन आपसे चुदना ही था, लेकिन कल रात मैंने अपनी बिचोलन, अफरोजा की बुआ" रुसी "जो वलीमा की दावत के लिए उसके साथ आई हुई थी उसको चोदा। क्या माल है हजूर, लंड को मुँह में लेकर छोड़ने का नाम ही नहीं लेती। उसकी बुआ की लड़की" महरीन "भी कुंवारी है और मुझे अफरोजा ने बताया की उसने आपकी और अफरोजा की पूरी चुदाई रात में छिप कर देखि है और वह भी आपकी चुदाई की दीवानी बन गयी है, आज दोपहर को ही हवेली पहुँचाता हूँ।"
हालाँकि लेकिन मेरा मूड नहीं था। मैं अफरोजा को ही चोदना चाहता था। मैंने मना करा और अनवर से रात को दोबारा अफरोजा को तैयार रखने के लिए कहा तब अनवर ने कहा"हजूर अफरोजा अब यहीं है आप उसे जब चाहे तब चोद लेना! आप से मेरी इल्तिजा है एक बार महरीन को देख लीजिये बहुत सुंदर है और ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते! " ,
"ठीक है जैसा तुम ठीक समझो वैसा करो" और ये बोल कर अपनी हवेली वापिस आ गया।
जारी रहेगी