• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


  • Total voters
    43

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
9,656
37,298
219
अध्याय 37

“अब बताइये रागिनी दीदी और सुशीला दीदी आप भी......... इस सब में हमारी क्या गलती थी... या हमने क्या गलत किया... किसी के भी साथ... आज क्या मुझे अपने ही बेटे को अपने सीने से लगाने का हक नहीं है” अपनी कहानी पूरी करने के बाद नीलिमा ने कहा

नीलिमा की कहानी सुनकर सभी की आँखों में आँसू भर आए थे। नीलिमा की बात सुनकर रागिनी ने प्रबल की पीठ पर हाथ रखकर उसे उठने का इशारा किया और खुद भी खड़ी हो गयी। प्रबल की पीठ पर हाथ रखे उसे लेकर रागिनी नीलिमा के पास पहुंची और दूसरे हाथ से नीलिमा का हाथ पकड़कर प्रबल के पास खींचा तो नीलिमा ने प्रबल को अपनी बाहों में भरकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी... प्रबल को नीलिमा की बाहों में अपने अलावा भी किसी का अहसास हुआ तो उसने देखा की समर भी नीलिमा की बाहों में समाया उसके साथ खड़ा है...

“भैया! आप कभी ऐसा मत सोचना कि माँ आपको नहीं चाहती, में तो हमेशा उनके साथ रहा.... लेकिन आप हमेशा उनके दिल में रहे....वो इतने सालों से आपको ही याद करती थीं। माँ और पिताजी ने मुझे भी कभी अपने साथ नहीं रखना चाहा लेकिन हम दोनों में से किसी एक को साथ रखना उनकी मजबूरी थी...वरना इन दोनों के ही देश की इंटेलिजेंस एजेन्सीज हमारे पीछे पड़ी रहतीं....” समर ने प्रबल से कहा और उसे अपने गले लगा लिया।

“चलो अब तुम सब एक दूसरे से मिल लिए... लेकिन मेरे भाई से मिले हुये मुझे जमाना हो गया। भाभी! भैया कहाँ पर हैं? कोई खबर मिली?” विक्रम ने आगे बढ़कर नीलिमा के कंधे पर हाथ रखते हुये सुशीला से कहा तो सुशीला के चेहरे पर एक दर्द उभर आया

“नहीं भैया.... वो खुद तो हमारी पल-पल की खबर रखते हैं.... लेकिन अपनी कोई खबर हम तक नहीं पहुँचने देते कभी भी। सही कहते थे वो... इस घर में कभी किसी ने उनकी अहमियत ही नहीं समझी... सारे घर को जब उन्होने छोड़ दिया था तब भी मुझे नहीं छोड़ा.... लेकिन मेंने तब भी उनसे ज्यादा इस घर को अहमियत दी.... और आज अकेली बैठकर सोचती हूँ कि एक उनके बिना ही कुछ नहीं मेरे पास....सबकुछ होते हुये भी.... जब वो थे तो न जाने कितनी मुश्किलों, कितनी मुसीबतों का सामना वो खुद करके भी मुझे कभी अहसास तक ना होने देते थे... तुमसे तो कितनी बार कहा है मेंने ........ तुमसे ज्यादा उनको कौन जानता है... तुम उनका पता लगा सकते हो” कहते हुये सुशीला कि आँखों से आँसू कि बूंदें पलकों के बंधन से निकालकर बाहर आ गईं

“चुप हो जाओ बेटी... वो जरूर कहीं हमारे आसपास ही होगा... उसने ज़िंदगी में बुरे से बुरे वक़्त का सामने खड़े होकर मुकाबला किया है.... हम सब मिलकर उसका पता लगायेंगे” मोहिनी देवी ने आगे बढ़कर सुशीला को अपने सीने से लगा लिया

“भाभी! में खुद उलझनों में फंसा हुआ था... अब सबकुछ सही कर दिया है... अब बस भैया का ही पता करना है.... बलराज चाचा जी भी अब पता नहीं कहाँ चले गए” विक्रम ने शर्मिंदा होकर नज़रें चुराते हुये कहा

“सही कहते थे तुम्हारे भैया... इस घर में सबने हमेशा अपने मन की उनसे कही....कभी किसी ने उनके मन की नहीं सुनी.... कभी किसी ने उनसे ये नहीं पूंछा कि उनके मन में क्या है.... औरों की तो क्या कहूँ... हम दोनों... तुम और में.... जिन्हें उन्होने अपनी ज़िंदगी में सबसे ज्यादा चाहा.... हमने भी कभी उनके मन की जानने कि कोशिश नहीं की” सुशीला ने पछतावे भरे स्वर में कहा तो विक्रम कि भी नज़रें शर्मिंदगी से झुक गईं

फिर किसी ने कुछ नहीं कहा.... बहुत रात हो गयी थी तो सबने फैसला किया कि खाना खाकर सोया जाए और सुबह से बलराज और रवि यानि राणा रविन्द्र प्रताप सिंह की तलाश शुरू की जाए। अनुराधा, प्रबल और अन अनुभूति को पढ़ाई करनी थी.... समर का एड्मिशन कराने की ज़िम्मेदारी ऋतु को सौंप दी गयी.... हालांकि ऋतु भी इन सबके साथ जाना चाहती थी लेकिन फैसला ये हुआ कि बच्चों के साथ शांति और ऋतु यहाँ रहेंगी... क्योंकि किसी भी बड़ी परेशानी को सम्हालना अकेली शांति के बस में नहीं है... वो सीधी-सादी घरेलू महिला है।

सुबह सुशीला ने सभी को जगाया और तैयार होकर हॉल में आने को कहा और स्वयं रसोई की ओर चली गयी और नाश्ता बनाने लगी। थोड़ी देर बाद ही नीलिमा भी फ्रेश होकर रसोई में पहुंची और सुशीला को हटाकर नाश्ता बनाने लगी।

“दीदी आप हटो .... मेरे होते हुये कोई और रसोई में काम करे मुझे पसंद नहीं है... और अपने से बड़ों को तो में बिलकुल पसंद नहीं करती”

“मातलब में तुम्हें पसंद नहीं” सुशीला ने घूरकर नीलिमा को देखते हुये कहा

“मेरा मतलब ये नहीं था दीदी... में कह रही थी की अपने से बड़ों का काम करना मुझे पसंद नहीं” हड्बड़ाकर नीलिमा ने कहा तो सुशीला ठहाका मारकर हंसने लगी। उन्हें हँसते देखकर नीलिमा भी शर्मा गयी और हंसने लगी

इधर उनके हंसने की आवाज सुनके ऋतु, अनुराधा, वैदेही और अनुभूति भी रसोई में आ गईं। ये चारों दूसरी मंजिल पर सोयीं थीं रात, भानु, प्रबल और समर तीसरी मंजिल पर रणविजय (विक्रमादित्य) के साथ थे शांति, सुशीला, मोहिनी और रागिनी चारों औरतें नीचे ही रहीं। पवन बहुत रोकने के बावजूद अपने घर चला गया... उसका घर ज्यादा दूर भी नहीं था वो अपने परिवार के साथ शालीमार गाँव में रहता था।

“क्या बात है मेरी प्यारी भाभियो.... कैसे इतना खिलखिला रही हो....” ऋतु ने नीलिमा और सुशीला को अपनी दोनों बाहों में भरते हुये कहा तो नीलिमा पलटकर उसे घूरने लगी... जिससे ऋतु की पकड़ उन पर ढीली पड़ गयी। साथ ही नीलिमा की भाव भंगिमा देखकर बाकी सब लड़कियों के चेहरे की मुस्कान भी उड़ गयी।

“राधा! कहाँ छुपा है तेरा भाई.... आज इतने मेहमान कैसे हैं घर में.... उसे कोई लड़की तो देखने नहीं आ रही” अभी ये सब नीलिमा से सहमे हुये ही थे कि पीछे से अनुपमा कि आवाज आयी और अनुराधा को हटाते हुये रसोईघर में अंदर घुस गयी.... लेकिन सामने ऋतु के साथ 2 अंजान औरतों को देखकर वो भी चुप हो गयी।

“ओ गॉडमदर क्यों डरा रही है इन बच्चों को.... और ये ले तेरे लाल को देखने लड़की भी आ गयी” सुशीला ने हँसते हुये नीलिमा के कंधे पर हाथ मारा और दोनों हंसने लगीं.... लेकिन ऋतु, अनुराधा, अनुभूति, वैदेही और अनुपमा सभी लड़कियां वैसे ही सहमी सी खड़ी रहीं

“ऋतु बेटा जरा अपने भैया और भतीजों को भी बुला ला.... बता देना प्रबल को देखने कोई लड़की आयी है” नीलिमा ने हँसते हुये ऋतु का हाथ पकड़कर अपने कंधे से हटाकर उसे बाहर कि ओर धकेलते हुये कहा, तो ऋतु भी मुस्कुरा दी और तीसरी मंजिल से उन लोगों को बुलाने चली गयी

“कमीनी जल्दी बता ये कौन हैं?” अनुपमा ने अनुराधा कि ओर पीछे मुड़कर फुसफुसाते हुये कहा तो अनुराधा भी मुस्कुरा दी

“अभी रुक जा तुझे सब पता चल जाएगा...” अनुराधा ने भी फुसफुसाते हुये कहा

“अनु ये क्या कानाफूसी हो रही है दोनों में.... हमें भी तो बताओ कि ये कौन है जो हमारे प्रबल से मिलने आयी है” सुशीला ने दोनों को आपस में फुसफुसाकर बात करते देखा तो कहा

“आंटी मेरा नाम अनु है... आपसे पहली बार मिल रही हूँ लेकिन रागिनी बुआ मुझे बचपन से जानती हैं... मेरा घर पड़ोस में ही है ..... हम एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं इसलिए में इन दोनों को बुलाने आयी थी कॉलेज चलने के लिए” अनुपमा ने अनुराधा को घूरते हुये कहा तो अनुराधा के पीछे किसी को देखकर उसकी आँखें खुली रह गईं। वहाँ विक्रम खड़ा था जिसके बारे में उसे पता था कि वो मर चुका है...

“विक्रम अंकल आप? लेकिन रागिनी बुआ तो कह रही थीं...” कहते हुये अनुपमा ने बात अधूरी छोड़ दी

“अनुराधा, अनुभूति तुम दोनों जाकर तैयार हो और भाभी आप दोनों नाश्ता लेकर हॉल में आ जाओ, अनुपमा तुम मेरे साथ आओ, में मिलवाती हूँ सबसे” पीछे से रागिनी ने कहा और सबको हॉल में आने का इशारा किया

थोड़ी देर बाद सब हॉल में बैठे नाश्ता करते हुये रागिनी की बातें सुन रहे थे

“अनुपमा! ये तो तुम्हें पता ही है कि में और विक्रम सगे भाई बहन हैं.... लेकिन एक बात तुम्हें नहीं पता.... मेरे 2 भाई हैं.... जुड़वां ..... बड़े भैया का नाम रणविजय सिंह है जो तुम्हारे सामने बैठे हैं .... ये बचपन से ही हमारे ताऊजी के पास रहे थे.... इसलिए हम सब से इनका कोई संपर्क नहीं रहा और ये इनकी पत्नी नीलिमा सिंह हैं.... इनके भी 2 बेटे हैं प्रबल और समर....और कमाल की बात ये हैं की इनके दोनों बेटे भी हमशक्ल हैं...पीछे देखो” कहते हुये रागिनी ने अनुपमा को पीछे देखने का इशारा किया

अनुपमा ने पीछे मुड़कर देखा तो आश्चर्य से उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं... ऋतु के साथ 3 लड़के हॉल में घुस रहे थे जिनमें से 2 की शक्ल प्रबल जैसी थी.... यानि उनमें से कोई एक प्रबल था....

“लेकिन बुआ... पहले तो विक्रम अंकल ने आपको जो लिफाफे दिये थे उनमें दी गयी जानकारी के मुताबिक तो प्रबल किसी पाकिस्तानी राणा शमशेर और नीलोफर जहां का बेटा था... और आपने कहा भी था कि ये राणा शमशेर विक्रम अंकल ही हैं....” अनुपमा ने सवाल किया तो अपनी बात को सही साबित करने के लिए रागिनी ने फिर से दलीलें देनी शुरू कर दीं।

“बेटा वो मुझे ऐसा लगा था क्योंकि विक्रम ने ऐसी जानकारी छोड़ी थी उन लिफाफों में.... लेकिन .... हाँ इनसे तो मेंने मिलवाया ही नहीं... ये हमारे परिवार में सबसे बड़ी हैं.... मेरी बड़ी भाभी.... सुशीला सिंह.... मेरे ताऊजी के बेटे राणा रवीन्द्र प्रताप सिंह की पत्नी, और ये हैं इनके बेटे भानु प्रताप सिंह और ये वैदेही सिंह... इनकी बेटी” अनुपमा ने सुशीला को नमस्ते किया और भानु-वैदेही को विश...

“लेकिन बुआ वो बात तो आपने बताई ही नहीं... जो मेंने पूंछी थी” अनुपमा ने फिर से अपना सवाल दोहराया...

“बेटा वही बता रही हूँ, थोड़ा धैर्य रखो, भानु, प्रबल, समर और ऋतु चलो बेटा तुम भी नाश्ता करो फिर तुम्हें भी कॉलेज जाना है” रागिनी ने दिमाग में अनुपमा के सवाल का जवाब सोचते हुये उन तीनों को भी नाश्ते के लिए कहा

“तुम्हारे इस सवाल का जवाब में देती हूँ, रागिनी दीदी को भी मेंने ही बताया था... वरना ये भी प्रबल को विक्रम का बेटा समझती थीं और समर को देखकर चौंक गईं थीं तुम्हारी ही तरह” सुशीला ने रागिनी को आँख से इशारा करते हुये बात को अपने हाथ में लिया

“असल में रणविजय हमारे साथ रहते थे और विक्रम देवराज चाचाजी की हवेली में कोटा.... जब रणविजय के जुड़वां बच्चे हुये तो विक्रम भी हमारे पास चंडीगढ़ आए और जुड़वां बच्चे देखकर बोले कि एक बच्चे को में पालूँगा हालांकि हम सभी ने माना किया लेकिन जब उन्होने कहा कि उनको शादी नहीं करनी और अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए वो प्रबल को पालेंगे... और साथ ही उन्होने ये भी बताया कि रागिनी दीदी भी उन्हीं के साथ रहती हैं तो प्रबल को दीदी ही पालेंगी... ये देखते हुये हमने प्रबल को विक्रम के हवाले कर दिया...../ अब रही वो पाकिस्तानी माँ-बाप कि कहानी.... तो विक्रम शुरू से ही खुराफाती था... उसे जिस लड़की से प्यार हुआ और भागकर शादी भी कर ली थी.... वो पाकिस्तानी निकली.... शायद उसको यहाँ लीगल तौर पर लाने के लिए विक्रम ने कोई चाल चली होगी प्रबल के नकली जन्म प्रमाण-पत्र और नकली माँ-बाप की” सुशीला ने अपनी बात खत्म की और अनुपमा के चेहरे के भाव पढ़ने लगीं... अनुपमा के चेहरे पर अब कोई उलझन नज़र नहीं आ रही थी

“चलो सारी कहानी इसी पर आज़माकर देख ली.... ये पूरी तरह से संतुष्ट हो गयी... अब यही कहानी सबको सुनानी है आगे चलकर.... जिससे विक्रम की कहानी खत्म हो जाए और रणविजय के परिवार को लोग जान जाएँ” सुशीला ने मन में सोचकर खुद ही अपनी पीठ थपथपा ली...... हे हे हे ... मन में ही थपथपाई

ये सारी बातें खत्म होने तक नाश्ता भी हो गया। नाश्ते के बाद अनुपमा और अनुराधा के साथ प्रबल, समर, वैदेही व भानु कॉलेज निकल गए और अनुभूति अपने स्कूल। कॉलेज में एड्मिशन के लिए ऋतु को साथ ले जाने की बजाय भानु ने कहा की वो कोई जूनियर क्लास में एड्मिशन लेने नहीं जा रहा जहां गुयार्डियन्स की जरूरत होती है.... वो अपना, समर और वैदेही का एड्मिशन खुद करा देगा। इन लोगों के जाने के बाद सुशीला ने सबको वहीं बैठने को कहा कि उसे कुछ जरूरी बात करनी है और आगे के कार्यक्रम में कुछ फेरबदल भी।

“रणविजय! पहली बात तो ये है कि में अब हमेशा के लिए गाँव में रहने जा रही हूँ.... और वहीं रहकर तुम्हारे भैया का इंतज़ार करूंगी.... जब तक वो लौटकर नहीं आते। में उन्हें उसी घर में वैसे ही मिलूँगी.... जैसे वो छोडकर गए थे। उनमें लाख कमियाँ हो, लाख बुराइयाँ हो.... लेकिन उन्होने मेरे ही साथ नहीं.... कभी किसी के साथ कुछ बुरा नहीं किया.... ये तो हम सब स्वार्थी थे जिनहोने हमेशा उनसे अपनी जरूरतें पूरी करनी चाहिए.... और मतलब निकलते ही उनसे दूर हट गए, तुम सब सोचते होगे कि वो अपनी मर्जी से मुझे छोडकर कहीं और भाग गए.... लेकिन ऐसा नहीं है, वो आजतक भी हम सबको जो चाहिए था उनसे ....वो दे रहे हैं... पैसा, नाम, रुतबा और सबसे बड़ी बात.... हर मुश्किल, परेशानी, मुसीबत से बचा देते हैं.... लेकिन हमने क्या दिया उन्हें..... जब और जैसी भी जरूरत हुई उन्हें.... हम ना तो तन से, ना मन से और ना धन से उनके साथ खड़े हुये.... जब वो गए थे... तब मेंने खुद अपने मुंह से उनसे कहा था कि में उनकी जरूरतें पूरी नहीं कर सकती, वो चाहें तो कहीं और से कर लें.... लेकिन मेरे घर में नहीं। पर उनका कहना था कि उन्होने मुझसे शादी के बाद एक प्रण किया था कि वो कभी किसी से सिर्फ जिस्म के लिए, हवस के लिए, वासना के लिए संबंध नहीं बनाएँगे.... बल्कि जिससे भी संबंध बनाएँगे.... हमेशा के लिए, जीवन भर के लिए संबंध बनाएँगे। हालांकि उनका ये भी कहना था कि कोई भी आ जाए, मेरा स्थान उन सबसे अलग और ऊपर रहेगा, मुझे या मेरे बच्चों को सिर्फ अधिकार ही नहीं सम्मान और प्यार भी वही मिलेगा जो हमेशा से रहा है.... लेकिन में नहीं मानी... तो उन्होने एक कठोर निर्णय लिया ............. कि ...... जैसे सारे परिवार का उन्होने त्याग कर दिया.... यहाँ तक कि अपनी माँ का भी.... उसी तरह वो मुझे भी त्याग कर अपनी नयी ज़िंदगी फिर से शुरू करेंगे.... हाँ! अपनी जिम्मेदारियों को वो हर हाल में पूरा करते रहेंगे.... मेरे लिए ही नहीं.... सबके लिए........और उन्होने ऐसा किया भी........................... हम सबको उनसे जरूरतें थीं......... बस उनकी ही जरूरत किसी को नहीं थी.........इसी लिए........ अब बस वो ही नहीं हैं... हमारी ज़िंदगियों में........... बाकी सबकुछ है...........उन्हीं का दिया हुआ”

सुशीला कि बातों को मोहिनी देवी, शांति, रणविजय (विक्रमादित्य), ऋतु, नीलिमा और रागिनी चुपचाप बैठे सुनते रहे....

“लेकिन भाभी अब करना क्या है? ये सब बातें तो रवि के मिलने के बाद भी हो सकती हैं” रागिनी ने कहा

“ये सब कहने कि वजह ये है............ में नहीं चाहती मेरी वजह से उनकी ज़िंदगी, उनका घर-परिवार... कुछ भी मुश्किल में पड़े.... इसलिए में यहीं रहूँगी बच्चों के साथ........... आप सब में से जो भी जाना चाहे.... जा सकता है.... लेकिन में उनसे मिलने नहीं जाऊँगी...बस एक प्रार्थना उन तक मेरी पहुंचा देना..... एक बार आकार मुझसे मिल लें... अपनी मौत से पहले उन्हें एक बार देख लेना चाहती हूँ...... और कुछ भी नहीं चाहिए उनसे .......” कहते हुये सुशीला रो पड़ी

.......................................
 

mahadev31

Active Member
1,207
3,361
144
mast update.... ravi kaha hai ,,kya usne shadi kar liya? jaanne ke liye wait karte hai....agle updates ka
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

firefox420

Well-Known Member
3,371
13,848
143
ab hui hai fursat..

********

*edit for review*
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
9,656
37,298
219
ab hui hai fursat..

********

*edit for review*
reader bhi to hu...........balki reader pahle hu................

rahi fursat ki baat........................
jab mood hota likhne ka tab likh nahin pata.................aur jab likhne baithta to samajh nahin ata ki likhun kya
isi chakkar mein latki rahi ye update..............
sirf last ke 2 paragraph complete karne mein 10 din lag gaye

lekin mujhe khud ko bhi pasand nahin aya.............. fir bhi iska makeup agle update mein karna shuru kar diya hai meine
 

Chutiyadr

Well-Known Member
16,912
41,652
259
bahut badiya lekin gap lamba ho raha hai updates ka , fir mood se utarte jati hai story :)
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

Chutiyadr

Well-Known Member
16,912
41,652
259
reader bhi to hu...........balki reader pahle hu................

rahi fursat ki baat........................
jab mood hota likhne ka tab likh nahin pata.................aur jab likhne baithta to samajh nahin ata ki likhun kya
isi chakkar mein latki rahi ye update..............
sirf last ke 2 paragraph complete karne mein 10 din lag gaye

lekin mujhe khud ko bhi pasand nahin aya.............. fir bhi iska makeup agle update mein karna shuru kar diya hai meine
lamba gap logo to aisa hi hoga , khud ke experiance se bata raha hu , bhabhi maa ka bura hal bhi isi ke karan hua ki gap bahut lambe ho gaye likhne ke liye ..
gap hota hai fir mood alag ho jata hai aur story khud ko hi samjh nahi aati ki kaisi honi chahiye , isliye ek flow me hi likho , har din ya do din me likho bhale hi use post bad me karna ..
aur saptah me kam se kam 2 update chhap do hamare liye taki hamara bhi intrest story ko lekar bana rahe :approve:
 
Top