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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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RAAZ

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Bhaisahab isay kahani ki jagah upanayas khaa jaaye to sahi hain. Jis tarah se kahan. Ghum jaati hain. Doctor sb ko bhi maat kar rakha hain aapne. College time me jo novel padte thay unki tarah story chal rahi hai plus waisay hi characters ki bheed hai aur unke utne hi pechida rishte. Lekin maza aaya hai story me.


अध्याय 34

अब तक अपने पढ़ा कि नीलोफर उर्फ नीलिमा अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में बताती है कि कैसे उसकी माँ नाज़िया ने मुसीबतों के साथ उसे पालकर पढ़ना शुरू किया.... एक दिन ……उसने अपने घर में माँ और मुन्नी आंटी के साथ एक लड़के-लड़की को देखा...

अब आगे...............

मेंने पीछे हटकर एकबार फिर से सोचा कि माँ इन्हें कैसे जानती हैं और यहाँ क्यूँ लाई हैं... ये जानते हुये भी कि ये मेरे कॉलेज में ही पढ़ते हैं... और इनके द्वारा कॉलेज तक सबको मेरे और माँ के बारे में पता चल जाएगा। तभी मुझे ध्यान आया कि शायद माँ को ये पता ही नहीं कि आज में कॉलेज नहीं गयी.... और इन दोनों का अपने घरों से लापता होना, माँ और मुन्नी आंटी के साथ यहाँ इस घर में होना.... ये साबित करता है कि नेहा और ये लड़का कहीं ना कहीं माँ के धंधे से जुड़े हैं.... यानि नेहा तो रंडी है ही.... ये लड़का दल्ला है इसका... और क्या पता ड्रग्स के कारोबार में भी माँ और विजय अंकल वगैरह शामिल हों। में तुरंत जाकर अपने कमरे में छुप गयी...और अपनी किताबें वगैरह सब उठाकर रख दीं इन लोगों के जाने का इंतज़ार करने लगी... अचानक मुझे ऐसा लगा कि कोई सीढ़ियों पर ऊपर आ रहा है... सीढ़ियों से ऊपर आने पर पहला कमरा माँ का था उसके बाद मेरा... नीचे हॉल, रसोई, और एक कमरा था जिसे माँ अपने काम के सिलसिले में बातचीत करने, कोई सामान या कागजात रखने, विजयराज अंकल, मुन्नी आंटी, विमला आंटी या उनके पति विजय सिंह के रुकने के लिए इस्तेमाल करती थी.... जब मेंने किसी के ऊपर आने कि आहात सुनी तो मुझे लगा कि अगर किसी ने भी मेरे दरवाजे को खोलने की कोशिश की तो उसे पता चल जाएगा कि में कमरे में हूँ ....इसलिए मेंने तुरन कमरे के अंदर से चिटकनी खोल दी जिससे किसी को मेरे यहाँ होने का शक ना हो और में धीरे से बेड के नीचे सरक गयी...

थोड़ी देर बाद वही हुआ जिसका मुझे डर था... मेरे कमरे का दरवाजा खुला और दो जोड़ी पैर अंदर आए... लेकिन पैरो और कपड़ों की झलक से ही मुझे पता चल गया कि इनमें माँ नहीं हैं... ये मुन्नी आंटी और नेहा हैं... कमरे में आकर मुन्नी आंटी सीधी मेरे कपड़ों की अलमारी खोलकर उसमें से कपड़े निकालने लगीं.... उन्होने 1 जोड़ी ब्रा-पैंटी और सलवार कमीज दुपट्टे के साथ निकालकर नेहा को दी और बोली कि ये ले और नहाकर पहन ले। नेहा कपड़े लेकर मेरे बाथरूम में चली गयी। में वहीं दम साधे पलंग के नीचे पड़ी रही तभी माँ भी कमरे में आ गयी और मुन्नी आंटी से नेहा के बारे में पूंछा तो उन्होने बाथरूम की ओर इशारा किया,

“अब इन दोनों का क्या करना है?” माँ ने कहा

“में क्या बताऊँ, विजय तो कह रहा है कि इस लड़के को गायब कर दो... और लड़की को छोड़ दो.... लड़की के मिलते ही...पुलिस भी शांत हो जाएगी और लड़की के घरवाले भी.... फिर इस लड़के को भी छोड़ देंगे... लेकिन पता नहीं क्या सोच के तू इन दोनों को अपने घर ले आयी?” मुन्नी आंटी ने कहा

“मुन्नी तुम समझती क्यों नहीं.... अगर ये लड़की अकेली पकड़ी गयी तो भी इसको साथ लेकर ये लोग हमारे सारे ठिकानों पर छापे मरेंगे... उसका ड्रग का मामला है.... नेहा के घरवाले कितना भी ज़ोर लगा लें... पुलिसवाले इसको जरूर तलाश करेंगे.........

और दूसरी बात.... इस लड़के के पूरे ड्रग रैकेट को हमारे हर ठिकाने का पता है.... इस लड़की की तलाश में सब जगह छापे पड रहे हैं.... तू तो खुद कल रात इन दोनों को आगरा की बस में बैठाकर आयी थी, जहां से ये सुबह फिर वापस लौटे हैं.... इस घर के अलावा और है कोई ठिकाना... जिसका किसी को ना पता हो” माँ ने झुँझलाते हुये कहा

“लेकिन यहाँ नीलो के होते हुये कैसे रखेगी इन्हें” मुन्नी आंटी ने फिर कहा

“में नीलों को तेरे यहाँ भेज दूँगी, उसे बोलना है कि में कहीं बाहर जा रही हूँ काम से...नीलों अकेली ना रहे इसलिए तुम्हारे साथ भेज रही हूँ। अभी के लिए ये दोनों नीचे वाले कमरे में छुपे रहेंगे... अब जल्दी से दोनों को लेकर उस कमरे में बंद कर दे.... नीलों आनेवाली होगी। तुम उसे साथ लेकर निकाल जाना और अपने घर छोड़ देना, वहाँ ममता और शांति के साथ बनी रहेगी फिर विजय को बुला कर ले आना यहीं बैठकर बात करते हैं.... क्या किया जाए” नाज़िया ने कहा तो मुन्नी को भी यही ठीक लगा

नेहा नहाकर बाहर निकल आयी तो उसे साथ लेकर वो दोनों वहाँ से नीचे चली गईं। अब मेरे सामने समस्या ये थी कि में अब माँ या मुन्नी आंटी के सामने भी नहीं आ सकती थी क्योंकि मेरे घर में मौजूद होने से ही वो समझ जाते कि मेंने सबकुछ जान-समझ लिया है

में भी उन लोगों के जाने के बाद बेड के नीचे से निकली और छुपते हुये नीचे झाँककर देखा तो वो चारों नीचे वाले कमरे में जा रहे थे। उनके जाने के बाद में नीचे उतरी और हॉल में पहुंची लेकिन अब समस्या ये थी कि घर से बाहर जाने के लिए मुझे उस कमरे के सामने से गुजरना था जिसमें वो सब थे, और कमरे का दरवाजा खुला हुआ था... क्योंकि उनको तो लगा था कि घर में सिर्फ वो हैं और में तो कॉलेज में हूँ.... तभी मेरे दिमाग में एक बात आयी रसोई कि खिड़की में कोई जाली या रुकावट नहीं थी में उससे घर के बाहर कूद सकती थी। लेकिन अगर बाहर कोई मौजूद होगा तो मुझे देख लेगा फिर पता नहीं वो चोर समझकर शोर ना मचा दे। लेकिन दूसरा कोई रास्ता नहीं था इसलिए में बिना कमरे कि ओर जाए रसोई में घुसी और खिड़की खोलकर बाहर झांकी तो घर के पीछेवाली पतली गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे। में आराम से खिड़की पर चढ़ी और बाहर को उन बच्चों कि ओर देखकर उतारने लगी... बच्चों कि नज़रें मुझ पर ही थी। में गली में उतरकर बच्चों के पास पहुंची

“यहाँ क्या कर रहे हो तुम लोग” मेंने उनके पास जाकर थोड़ा गुस्से से कहा

“दीदी हम तो यहाँ रोज खेलते हैं” एक बच्चे ने जवाब दिया

“सामने वाली चौड़ी सड़क पर खेला करो... यहाँ कूड़ा पड़ा रहता है” मेंने बात को आगे बढ़ते हुये कहा जिससे बच्चे मेरे इस तरह खिड़की से बाहर निकालने पर ध्यान न दें और यही समझें कि में उनको डांटने के लिए खिड़की से बाहर आयी हूँ

“दीदी... बाहर वाली सड़क पर लोग आते जाते हैं...तो हम वहाँ ढंग से खेल नहीं पते... पिछले महीने इसे एक साइकल से टकराकर चोट भी लग गयी थी... इसलिए हमारे घरवाले कहते हैं कि पीछे वाली गली में ही खेलने के लिए” लड़के ने नीलोफर को पूरी तरह संतुष्ट करने के लिए अपनी दलील दी

“अच्छा-अच्छा ठीक है तुम्हारे चक्कर में खिड़की से उतर आई अब घूम के वापस घर जाना होगा” कहते हुये में उस गली से बाहर निकली और मेन रोड से घर के दरवाजे पर पहुंची। दरवाजा अंदर से बंद था, मेंने घंटी बजाई तो माँ ने दरवाजा खोला...

“आ गयी नीलों... और ऐसे खाली हाथ... कॉलेज ही गयी थी? आजकल तेरे रंग बहुत बदल रहे हैं?” मुझे सामने खाली हाथ खड़े देखकर माँ का पारा चढ़ गया। मुझे भी अपनी गलती का अहसास हुआ की मुझे अपना कॉलेज बैग लेकर बाहर निकालना चाहिए था... जो में जल्दी-जल्दी में सोच ही नहीं पायी लेकिन अब क्या हो सकती है

“अब अंदर आएगी या वहीं खड़ी कोई नयी कहानी सोच रही है मुझे सुनाने के लिए” माँ ने दोबारा कहा तो में अपनी सोच से बाहर निकलकर होश में आयी। अंदर आकर मेंने दरवाजा बंद किया और देखा कि हॉल में सोफ़े पर मुन्नी आंटी बैठी हुई हैं

“आंटी नमस्ते!” मेंने कहा

“नमस्ते बेटा! आजा मेरे पास आ” उन्होने हाथ बढ़ाते हुये कहा तो में उनके पास जाकर बैठ गयी उनके दूसरी तरफ माँ गुस्से में बैठी हुई थी

“अरे नाज़िया क्यों गुस्सा होती है... स्कूल में थोड़े ही पढ़ रही है ये। कॉलेज में तो कभी-कभी घूमने भी चले जाते हैं... फिर पढ़ती तो है ही” कहते हुये मुन्नी आंटी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुये हुये मुझे खुद से चिपका लिया और माँ को आँखों-आँखों में कुछ इशारा किया

“अच्छा अब सुन! में किसी काम से कुछ दिन के लिए बाहर जा रही हूँ... तुझे अकेला कैसे छोड़ूँ... इसलिए मुन्नी दीदी को बुलाया है मेंने। तू इनके साथ रहेगी, जब तक में वापस नहीं आ जाती। और ध्यान रहे.... मुझे कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए। घर से कॉलेज और कॉलेज से घर... वक़्त से.... वरना ...” नाज़िया ने गुस्सा दिखते हुये नीलोफर से कहा

“अम्मी... में...” नीलोफर ने जवाब में कुछ कहना चाहा

“अब जा और अपने कपड़े किताबें रख ले और इनके साथ जा... जो कहना हो मेरे वापस आने के बाद कहना... मुझे भी अभी निकालना है” नाज़िया ने उसकी बात काटते हुये कहा

नीलोफर चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गयी और अपना बैग लेकर नीचे आकर मुन्नी के साथ उसके घर चली गयी। मुन्नी ने अपने घर जाकर नीलोफर और अपनी दोनों बेटियों को बिठाकर समझाया की वो नाज़िया के साथ किसी काम से जा रही है... बाहर, इसलिए तीनों यहीं साथ में रहेंगी। उस समय तक ममता की शादी हो चुकी थी विमला के बेटे दीपक से लेकिन वो अभी अपने मायके आयी हुई थी। बल्कि मुन्नी ने ही विमला को बोलकर ममता को अपने घर बुला लिया था... शांति अकेली न रहे मुन्नी के जाने के बाद इसीलिए।

ममता और शांति को चाहे पता ना हो लेकिन, नीलोफर को पता था कि नाज़िया और मुन्नी कहीं भी नहीं जा रहीं बल्कि नेहा के मामले को शहर में रहते हुये ही गुपचुप तरीके से निपटाने में लगीं हैं। विमला भी विजय के साथ नाज़िया के घर पहुँच गयी थी घर पर दीपक, कुलदीप और सिमरन को ये बताकर कि वो दोनों कहीं बाहर जा रहे हैं और कुछ दिन में आएंगे। यहाँ ये सब इकट्ठे हुये तो बात करके रास्ता निकालने से ज्यादा सबने अपनी हवस मिटाने के मौके तलाशने शुरू कर दिये....विजय, विमला, मुन्नी, नाज़िया तो थे ही पुराने पापी... नेहा और उसके साथ वाले लड़के ने भी उसी घाट का पानी पिया था। इनमें से कोई भी घर से बाहर तो निकलता नहीं था... घर में पड़े बस चुदाई, चुदाई और चुदाई।

इधर नीलोफर जब अगले दिन कॉलेज गयी तो वहाँ आज फिर वही हाल था पुलिस और नेहा के माँ-बाप कॉलेज आए हुये थे और शक के आधार पर पूंछताछ चल रही थी... नीलोफर को नेहा के माँ-बाप को देखकर बड़ा दुख हुआ, उनके हालत खासतौर पर नेहा की माँ बहुत ही ज्यादा हताश और दुखी थीं। विक्रम उन लोगों के साथ लगा हुआ था और उनको तसल्ली दे रहा था। अचानक नीलोफर के मन में ना जाने क्या आया कि उसने विक्रम के पास जाकर धीरे से उसे अकेले में मिलने को कहा। हालांकि नीलोफर और विक्रम एक दूसरे को उस दिन से जानते थे जब नाज़िया विजय से मिली और उसके घर में रुकी... फिर भी बाद में इन सब बच्चों का एक दूसरे के घर आना जाना कम ही होता गया और अब तो ये रहा कि एक ही कॉलेज में पढ़ते हुये भी नीलोफर और विक्रम ने कभी आपस में बात ही नहीं की।

“हाँ! नीलोफर क्या बात है? आज मुझपे ये मेहरबानी कैसे... प्यार का इजहार तो नही करनेवाली” कॉलेज पार्किंग में पहुँचकर नीलोफर के पास आते हुये विक्रम ने हँसते हुये कहा

“विक्रम कभी सोचना भी मत... बचपन में जब में तुम्हारे घर रही और मेरी माँ को तुम्हारे पापा ने उन झमेलों से बचाया तो मुझे तुम सब पसंद थे... लेकिन जैसे-जैसे मेरी माँ, तुम्हारे पापा और यहाँ कॉलेज में तुम्हारे कारनामे मेरे सामने आते गए... मुझे तुम सब से नफरत सी हो गयी है... हम सब में मुझे या तो रागिनी दीदी पसंद हैं या शांति... बाकी तुम सब एक से बढ़कर एक कमीने हो, विमला आंटी, ममता और मुन्नी आंटी व उनके बच्चे भी.... में तुम सब से बात करना भी पसंद नहीं करती............... अभी मुझे तुमसे कुछ कहना है... क्योंकि तुम करते कुछ भी हो लेकिन तुम्हारा ज़मीर अभी मरा नहीं है...इसीलिए तुम नेहा के माँ-बाप के साथ भी लगे हये हो” नीलोफर ने विक्रम की बात सुनकर अपने मन की भड़ास निकालते हुये कहा तो नीलोफर के गंभीर चेहरे को देखकर विक्रम भी गंभीर हो गया

“बताओ क्या कहना है? जरूर कोई खास बात ही होगी जो आज तुमने मुझसे इतने दिनों बाद बात की” विक्रम ने कहा

“मुझे पता है नेहा कहाँ है” नीलोफर ने धीरे से कहा

“क्या” विक्रम का मुंह खुला का खुला रह गया

“मतलब तुम्हें नेहा के बारे .....”विक्रम ने आगे कहना चाहा तो नीलोफर ने फौरन उसके मुंह पर हाथ रखते हुये उसे चुप करा दिया

“धीरे बोलो और मेरी बात सुनो.... फिर कुछ बोलना” नीलोफर ने कहा और उसके होठों पर से अपना हाथ हटाने लगी तो विक्रम ने उसका हाथ चूम लिया

“तुम नहीं सुधरोगे...अब सुनो नेहा इस समय उस लड़के के साथ हमारे घर पर है... मेरी माँ साथ में तुम्हारे पापा...विजय अंकल, विमला आंटी, मुन्नी आंटी भी हैं इन सबने जो रंडीबाजी का धंधा खोल रखा है उसमें कॉलेज से लड़कियां फंसा के उन्हें ड्रूग एडिक्ट बनाकर या ब्लैकमेल करके लड़कियों को लाया जाता है... वो लड़का भी नेहा को ड्रूग एडिक्ट बनाकर इस धंधे में लाया... अब अगर तुम नेहा को वहाँ से पकडवाते हो तो ना सिर्फ वो लड़का बल्कि ये सब भी पकड़े जाएंगे और हमारी भी बदनामी होगी, क्योंकि वो हमारे माँ-बाप हैं.... में ये चाहती हूँ की नेहा अपने माँ-बाप के पास पहुंचे और इस रंडीपने और ड्रूग की गंदगी से बाहर निकलकर अपनी ज़िंदगी जिये और शायद तुम भी यही चाहते हो जिसके लिए उन लोगों के साथ लगे हुये हो.... अगर में गलत नहीं हूँ तो” नीलोफर ने कहा तो विक्रम गहरी स में डूब गया

“ठीक है में देखता हूँ इस मामले में क्या किया जा सकता है, तुम अपने घर का पता मुझे दो। में एक बार खुद जाकर इन लोगों से बात करता हूँ... लेकिन तुम इन लोगों को कुछ नहीं बताओगी, कहीं ऐसा ना हो की जब में वहाँ पहुंचूँ तो कोई भी ना मिले” विक्रम ने कहा

“में घर का पता तो तुम्हें दे रही हूँ लेकिन बस ये ध्यान रखना कि किसी को भी साथ लेकर मत जाना... ऐसा कुछ मत करना कि मेरी माँ के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएँ... बड़ी ठोकरें खाने के बाद हमें ये सुकून की ज़िंदगी नसीब हुई है” नीलोफर ने अपने घर का पता विक्रम को देते हुये कहा

“तुम चिंता मत करो, में अपने या तुम्हारे किसी भी परिवार के लिए कोई परेशानी खड़ी नहीं होने दूंगा....फिर भी अगर मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हुई तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेते हुये तुम्हारा हर मुश्किल में साथ दूंगा... नीलोफर में इतना बुरा भी नहीं हूँ... ये तुम भी जानती हो... जैसे तुम्हारे सिर से बाप का साया हटा ऐसे ही मेरे सिर से भी माँ का साया क्या हटा, माँ-बाप दोनों ही नहीं रहे... ऐसे बाप को क्या कहूँ जिसे अपनी ऐश, अपनी हवस के आगे अपनी औलाद कि ही फिक्र नहीं...हालांकि अब तो परिवार ने मुझे सहारा दिया हुआ है... लेकिन उस दौर कि परिस्थितियों ने मुझे ऐसा बना दिया... जिससे तुम भी मुझे पसंद नहीं करती...” विक्रम ने भावुक होते हुये कहा

“ऐसा नहीं विक्रम...में बचपन से तुम्हें पसंद करती थी... बल्कि मेरी ज़िंदगी में तुम अकेले लड़के थे जिसे में पसंद करती थी... लेकिन पहले तो मुझे लगा कि तुम शांति को पसंद करते थे बाद में तुम घर ही छोडकर चले गए और अब जब दोबारा मिले तो ऐसे हो गए कि मुझे तो आज भी यहाँ तुमसे बात करते में डर लग रहा है कि अगर किसी ने देख लिया तो वो शायद मुझे भी तुम्हारे बिस्तर पर लेटने वाली लड़कियों में ना शुमार कर ले” नीलोफर ने भी अपने दिल का दर्द बाहर निकाल दिया

“नीलों! ये सच है कि में औरतों-लड़कियों के मामले में बदनाम हूँ... लेकिन मेंने किसी कि मजबूरी का कभी फायदा नहीं उठाया ना किसी पर दवाब डाला... और रही प्यार की बात.... में बचपन से.... शांति से ही प्यार करता था... जब हम छोटे-छोटे थे तो हर खेल में वो मेरी पत्नी बनती थी.... लेकिन वक़्त और हालात ने जैसा भी जो कुछ भी किया.... अगर ज़िंदगी ने मौका दिया तो फिर भी शांति के साथ ही ज़िंदगी जीने कि तमन्ना है मेरी... लेकिन अगर कहीं भी तुम्हारी ज़िंदगी में कोई मुसीबत आई तो तुम हमेशा मुझे अपने साथ खड़ा हुआ ही पाओगी.... चलो अभी तुम कॉलेज में जाओ... में तुम्हारे घर जा रहा हूँ...” कहते हुये विक्रम वहाँ से अपनी गाड़ी लेकर निकल गया

शाम को नीलोफर जब मुन्नी के घर पहुंची तो वहाँ मुन्नी के साथ-साथ नाज़िया भी मौजूद थी। नीलोफर को देखते ही उसने उठकर नीलोफर के मुंह पर थप्पड़ मारा तो ममता और मुन्नी ने आगे बढ़कर नाज़िया और नीलोफर को सम्हाला

“ये क्या किया तूने... पता है... विक्रम ने उन दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया और अब में या तू उस घर या इस शहर तो छोड़ इस देश में भी नहीं रह सकते... पुलिस ने उस पूरे मकान कि तलाशी ली और उन्हें मेरे बारे में सब पता चल गया... वो तो उस लड़के और लड़की को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी... इसलिए हम यहाँ बैठे हैं... वरना अब तक इन सब ठिकानों पर पुलिस पहुँचकर हमें और इन सबको ले गयी होती...” नाज़िया ने कुससे से नीलोफर को घूरते हुये धीरे से कहा

“तो क्या करतीं आप? कब तक उन दोनों को छिपाकर रखतीं... कभी न कभी तो उन्हें बाहर निकालना ही था...” नीलोफर ने भी गुस्से से ही कहा

“नाज़िया आंटी! पहले मेरी बात सुनो...फिर कुछ बोलना” तभी भिड़े हुये दरवाजे को खोलकर अंदर आते हुये विक्रम ने कहा

“बोलो अब क्या बोलना है तुम्हें... तुमने अपने बाप और बुआ को तो बचा लिया ... में ही कुर्बानी के लिए मिली...तुम बाप-बेटे ने भी हम माँ-बेटी की ज़िंदगी जहन्नुम बनाने में कोई कसर नहीं रखी....” गुस्से से भड़कते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी आपके बारे में नेहा ने भी कुछ नहीं कहा था... मेंने उसे समझा दिया था... लेकिन उस लड़के पर जब पुलिस ने अपना कहर ढाया तो वो तोते कि तरह सब बोलता चला गया... अब इसमें मेरी कोई गलती नहीं है... में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि आप यहाँ से कहीं गायब हो जाओ... इस बारे में पापा से बात करो... वो कुछ इंतजाम कर ही देंगे... लेकिन न जाने कैसे हालात हों... इसलिए में नीलोफर को अपने कोटा वाले घर में छोड़ देता हूँ.... अब ये न तो उस घर में रह सकती है और न ही उस कॉलेज में पढ़ सकती है... अगर इस शहर में भी रही तो पुलिस इसे पकड़कर आपको दबोचने की कोशिश करेगी .... आपको कोटा ले जाने में ये मुश्किल है कि परिवार के लोगों से में क्या कहूँगा... इसलिए आपके लिए जो करना होगा पापा ही कर सकते हैं” विक्रम ने कहा

“लेकिन में नीलोफर को ऐसे अकेला कैसे भेज सकती हूँ तुम्हारे साथ” नाज़िया बोली

“आंटी आपको मुझ पर भरोसा हो या न हो... नीलोफर पर तो भरोसा है... और नीलोफर को मुझ पर भरोसा है या नहीं ....ये आप उससे पूंछ लो” विक्रम ने कहा तो नीलोफर ने तुरंत कहा

“माँ में विक्रम के साथ कहीं भी जाने या रहने को तैयार हूँ.... आप मेरी चिंता मत करो.... अपना देखो कि इस मामले से कैसे निकलोगी” कहते हुये नीलोफर विक्रम के साथ जाकर खड़ी हो गयी

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nain11ster

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त्याग

मोक्ष की एक नकारात्मक अवधारणा त्याग है अर्थात समस्त तृष्णाओं का त्याग कर देना इसे भी कुछ व्यक्ति मोक्ष ही मानते हैं किन्तु ऐसा सत्य नहीं है.... त्याग एक भ्रम है जो आपकी नियति को नकारात्मक निर्धारित करता है. आपने जिस वस्तु को पूर्णतः प्राप्त ही नहीं किया उसका त्याग कैसे कर पायेंगे. त्याग केवल उसी का हो सकता है जिसको अपने प्राप्त कर लिया हो...जिस पर आपका अधिकार हो...जिस पर आपका स्वामित्व हो...

गहन चिंतन का विषय है। आप के लेख त्याग को लेकर काफी सराहनीय है किंतु ये मानवीय जीवन के एक पहलू को ही उजागर करता है।
 

RAAZ

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Bohat khoob vikram ka dimagh to. Chacha chodhry se bhi tez chal raha hain kia planning Kari hai usne lekin in sab me 18 saal ka time lag gaya.
Ab kia faisla karte hai ghar waley.
अध्याय 36

मुन्नी के घर के बाहर पहुँचकर विक्रम ने नीलोफर को अंदर जाने को कहा और खुद अपनी गाड़ी को एक ओर लगाकर आने का बताया। नीलोफर जब मुन्नी के घर पहुंची तो वहाँ मुन्नी के साथ-साथ नाज़िया भी मौजूद थी। नीलोफर को देखते ही उसने उठकर नीलोफर के मुंह पर थप्पड़ मारा तो ममता और मुन्नी ने आगे बढ़कर नाज़िया और नीलोफर को सम्हाला

“ये क्या किया तूने... पता है... विक्रम ने उन दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया और अब में या तू उस घर या इस शहर तो छोड़ इस देश में भी नहीं रह सकते... पुलिस ने उस पूरे मकान कि तलाशी ली और उन्हें मेरे बारे में सब पता चल गया... वो तो उस लड़के और लड़की को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी... इसलिए हम यहाँ बैठे हैं... वरना अब तक इन सब ठिकानों पर पुलिस पहुँचकर हमें और इन सबको ले गयी होती...” नाज़िया ने गुस्से से नीलोफर को घूरते हुये धीरे से कहा

“तो क्या करतीं आप? कब तक उन दोनों को छिपाकर रखतीं... कभी न कभी तो उन्हें बाहर निकालना ही था...” नीलोफर ने भी गुस्से से ही कहा

तब तक विक्रम भी गाड़ी खड़ी करके मुन्नी के फ्लॅट पर पहुँच गया जब उसने अंदर से नाज़िया और नीलोफर की तेज आवाजें सुनी तो दरवाजे को धकेलते हुये अंदर घुसा

“नाज़िया आंटी! पहले मेरी बात सुनो...फिर कुछ बोलना” भिड़े हुये दरवाजे को खोलकर अंदर आते हुये विक्रम ने कहा

“बोलो अब क्या बोलना है तुम्हें... तुमने अपने बाप और बुआ को तो बचा लिया ... में ही कुर्बानी के लिए मिली...तुम बाप-बेटे ने भी हम माँ-बेटी की ज़िंदगी जहन्नुम बनाने में कोई कसर नहीं रखी....” गुस्से से भड़कते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी आपके बारे में नेहा ने भी कुछ नहीं कहा था... मेंने उसे समझा दिया था... लेकिन उस लड़के पर जब पुलिस ने अपना कहर ढाया तो वो तोते कि तरह सब बोलता चला गया... अब इसमें मेरी कोई गलती नहीं है... में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि आप यहाँ से कहीं गायब हो जाओ... इस बारे में पापा से बात करो... वो कुछ इंतजाम कर ही देंगे... लेकिन न जाने कैसे हालात हों... इसलिए में नीलोफर को अपने कोटा वाले घर में छोड़ देता हूँ.... अब ये न तो उस घर में रह सकती है और न ही उस कॉलेज में पढ़ सकती है... अगर इस शहर में भी रही तो पुलिस इसे पकड़कर आपको दबोचने की कोशिश करेगी .... आपको कोटा ले जाने में ये मुश्किल है कि परिवार के लोगों से में क्या कहूँगा... इसलिए आपके लिए जो करना होगा पापा ही कर सकते हैं” विक्रम ने कहा

“लेकिन में नीलोफर को ऐसे अकेला कैसे भेज सकती हूँ तुम्हारे साथ” नाज़िया बोली

“आंटी आपको मुझ पर भरोसा हो या न हो... नीलोफर पर तो भरोसा है... और नीलोफर को मुझ पर भरोसा है या नहीं ....ये आप उससे पूंछ लो” विक्रम ने कहा तो नीलोफर ने तुरंत कहा

“माँ में विक्रम के साथ कहीं भी जाने या रहने को तैयार हूँ.... आप मेरी चिंता मत करो.... अपना देखो कि इस मामले से कैसे निकलोगी” कहते हुये नीलोफर विक्रम के साथ जाकर खड़ी हो गयी

“लेकिन जब तुम्हारी हमउम्र नीलोफर को साथ रखने पर तुम्हारे परिवार वालों को कोई ऐतराज नहीं तो मुझे साथ रखने में क्यों होगा... में तो तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ? कहीं इसमें तुम्हारी कोई चाल तो नहीं... मेरी बेटी को क्या घुट्टी पीला दी जो वो मुझे छोडकर तुम्हारे साथ जाने को मारी जा रही है” नाज़िया ने भड़कते हुये कहा और घूरकर विक्रम व नीलोफर को देखा

“आंटी मेंने आजतक आपको कोई नुकसान पहुंचाया है कभी? मेरे पापा के साथ आप अपनी मजबूरी में जुड़ीं लेकिन उन्होने भी आपको कुछ न कुछ सहारा ही दिया होगा... मुझे नहीं पता हमारे बारे में आपके मन में क्यों और कैसे ये जहर भर गया... में आपको इसलिए नहीं ले जा रहा क्योंकि इस धंधे सिर्फ लड़कियों के ही नहीं, ड्रग्स और पासपोर्ट के भी... हर उस धंधे से जुड़ा व्यक्ति जो आप और पापा चलते हो.... आपको जानता और पहचानता है.... उनमें से कुछ पुलिस के मुखबिर भी हैं.... जब मुझे पता चल गया कि आपके उस लड़के ने क्या बयान दिया है पुलिस के सामने, आपको भी पता चल गया ....तो कल को आपके बारे में भी कोई बता सकता है.... और पुलिस आपके पीछे पागलों की तरह पड़ी हुई है.... आपके पड़ोसी देश की नागरिक होने के कारण......... मामला बड़ा है... इसलिए आपको ले जाने का रिस्क में नहीं लूँगा............रहा नीलोफर का सवाल ...तो... नीलोफर का सिर्फ नाम पता है उन्हें... फोटो मिला है उन्हें.... लेकिन उनका कोई मुखबिर या आपके धंधों से जुड़ा कोई भी व्यक्ति नीलोफर को नहीं जानता... इसलिए में नहीं चाहता कि ऐसे माहौल में नीलोफर आपके साथ रहे और वो पुलिस या आपके धंधे से जुड़े लोगों की नज़र में आए, कुछ भी हो... लेकिन हम सब में, नीलोफर, ममता, शांति, दीपक, कुलदीप और रागिनी दीदी... सब बचपन से एक परिवार कि तरह किसी न किसी तरह आपस में जुड़े रहे हैं.... इसलिए मुझे नीलोफर कि इतनी चिंता है...” विक्रम कि बात सुनने के बाद ना सिर्फ नाज़िया बल्कि नीलोफर, ममता, शांति और मुन्नी देवी भी थोड़ी देर तक उसकी ओर देखती रह गईं और कुछ कह ना सकीं

“ठीक है... लेकिन मुझे वहाँ का पता और अगर कोई फोन नंबर हो तो वो भी, दे दो जिससे में तुमसे संपर्क में रहूँ” आखिर हथियार डालते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी में आपको कोई भी जानकारी नहीं दूँगा... हो सकता है कल को कोई आपके जरिये नीलोफर तक भी पहुँच जाए.... रही नीलोफर से मिलने की बात... तो जब सब कुछ शांत हो जाएगा तो पापा आपको मुझ तक पहुंचा देंगे या आपकी सूचना मुझ तक पहुंचा देंगे तो में नीलोफर को लेकर आ जाऊंगा.... बीच में भी आप पापा से बोलकर मुझसे नीलोफर कि जानकारी प्रपट कर सकती हैं...” विक्रम ने सपाट लहजे में नाज़िया को समझते हुये कहा

इस सारी बातचीत के दौरान जिकों लेकर ये सब बातें हो रही थीं... यानि नीलोफर... वो चुपचाप खड़ी उनकी बातें ही सुनती रही... खुद कुछ भी नहीं बोली। विक्रम ने बात खत्म कि और नीलोफर को अपना जरूरी सामान कपड़े आदि लेकर साथ आने के लिए कहा और नेचे जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गया

“विजय... अब विक्रम नीलोफर को अपने साथ ले जा रहा है... कह रहा है कि वो उसे कोटा में अपने घर में सुरक्शित रखेगा” नाज़िया ने विक्रम के जाते ही विजयराज को फोन मिलाया और सारी बात बता दी जो उसके और विक्रम के बीच हुई थी

“कोई बात नहीं ... ये तो और भी अच्छा रहा... तुम किसी बात कि चिंता मत करो कोटा के पास मेरे भाई देवराज की हवेली है वो वहीं ले जा रहा है... वहाँ मेरा भतीजा रविन्द्र रहता है... अगर कोई परेशानी हुई तो वो सबकुछ सम्हाल भी लेगा... किसी भी तरह से....... और तुम्हें जब भी नीलोफर से बात करनी हो में करवा दिया करूंगा” उधर से विजयराज ने कहा तभी अंदर से अपना बैग लेकर नीलोफर भी वहाँ आ गयी

“अब तो हो गयी तसल्ली आपको? विजयराज अंकल ने भी कह दिया... अब तो में जाऊँ?” नीलोफर ने कहा तो नाज़िया ने फोन रखते हुये सहमति में सिर हिलाया और आगे बढ़कर नीलोफर को गले लगा लिया

“आज पहली बार तू मुझसे दूर जा रही है? अपना ख्याल रखना। मेरा तेरे सिवा कोई भी नहीं इस दुनिया में। में ये ज़िंदगी सिर्फ तेरे लिए ही जी रही हूँ” नाज़िया ने नीलोफर को गले लगाकर कहा तो एक बार को तो नीलोफर का मन हुआ कि वो विक्रम से हुई सारी बात नाज़िया को बता दे... लेकिन फिर उसने सोचा कि पहले शादी हो जाए... तभी बताऊँगी तो आखिरकार इन्हें और विजयराज अंकल दोनों को ही ये रिश्ता कबूल करना ही पड़ेगा। फिर नीलोफर वहाँ से निकलकर विक्रम की गाड़ी में बैठी और चल दी एक अंजान सफर पर, अपने बचपन के प्यार के साथ।

नीलोफर को लेकर विक्रम चल दिया, नीलोफर अपने ख्यालों में खो गयी। नीलोफर सिर्फ प्यार या आकर्षण की वजह से विक्रम से शादी नहीं करना चाहती थी.... उसे भलीभाँति पता था कि उसकी माँ का पाकिस्तानी घुसपेथिया होना कभी भी ना सिर्फ उसकी माँ की ज़िंदगी में बल्कि उसकी अपनी ज़िंदगी में भी अस्थिरता ला सकता है। विक्रम से शादी करने से उसे ना सिर्फ यहाँ का नागरिक होने का प्रमाणन मिल जाना था बल्कि उसकी ऐसी सब पहचान भी खत्म हो जानी थीं जो उसके लिए परेशानी खड़ी करतीं।

अचानक नीलोफर ने देखा कि वो एक शहर से होकर निकल रहे हैं तो उसने वहाँ दुकानों पर लगे बोर्ड पर ध्यान दिया तो वहाँ बागपत उत्तर प्रदेश लिखा देखकर वो चौंक गयी। हालांकि वो कभी दिल्ली क्षेत्र से बाहर नहीं गयी थी लेकिन पढ़ लिखकर उसे ये तो मालूम ही चल गया था कि कौन सी जगह कहाँ पर है।

“ये हम इधर कहाँ जा रहे हैं... ये तो कोटा से बिलकुल उल्टी तरफ है” नीलोफर ने विक्रमादित्य से कहा

“अगर हम कोटा जाते तो वहाँ तुम्हारे माँ और मेरे पापा भी पहुँच जाते और शायद हमारे पीछे-पीछे ही पहुँच जाते... तब क्या करते... फिर तो वही दिल्ली वाली हालत हो जाती... इसलिए हम कहीं और जा रहे हैं... वहाँ चलकर शादी करते हैं फिर देखते हैं कहाँ रहना है, क्या करना है”

“ठीक है, जैसा तुम्हें सही लगे” नीलोफर ने कहा और विक्रम के कंधे से सिर टिकाकर गाना गाने लगी

तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है........

बांध लिया है...........

तेरे जुल्मो सितम सर आँखों पर


.............................................

इसी तरह इधर विक्रम और नीलोफर शहर-शहर बदलते इन लोगों कि नज़रों से छुपते फिरते रहे उधर विजयराज ने जब नाज़िया को बताया कि विक्रम और नीलोफर का कोई आता पता ही नहीं तो नाज़िया भी अपने छुपने के ठिकाने से बाहर निकलकर दिल्ली आ गयी और चुपचाप इन दोनों की तलाश करने लगी। जब किसी भी तरह से उसे कुछ पता नहीं चला तो नाज़िया ने विजय पर दवाब बनाना शुरू किया कि या तो वो नीलोफर को तलाश करके विक्रम से छुड़कर उसके हवाले करे या फिर बदले में अपनी बेटी रागिनी को नाज़िया कि जगह ये धंधा सम्हालने के लिए नाज़िया के हवाले करे वरना नाज़िया ना सिर्फ विजय बल्कि मुन्नी और विमला को भी अपने साथ जेल तक पहुंचा देगी। विजय शुरू में तो भड़क गया लेकिन मुन्नी और विमला ने जब डर कि वजह से नाज़िया के साथ मिलकर उसपर दवाब बनाना शुरू किया तो वो भी ना-नुकुर के बाद बेमन से तैयार हो गया... पर उसने अपनी एक शर्त राखी कि उसकी बेटी रागिनी के साथ कोई भी बाहरी आदमी कुछ नहीं करेगा...जो कुछ भी करना है वो खुद करेगा। इस बात पर नाज़िया सहमत तो हो गयी लेकिन उसने विजय को कोई चालाकी करने से रोकने और दवाब बनाए रखने के लिए मुन्नी की बेटी और विमला की बहू ममता को इस काम पर लगाया कि वो रागिनी को विजयराज के साथ चुदाई करने का इंतजाम करे और उसकी विडियो रिकॉर्डिंग करके नाज़िया को दे। ममता ने इस काम में रागिनी कि सहेली सुधा को शामिल करना चाहा और सुधा को ब्लैकमेल करके तैयार कर लिया... साथ ही उसने सोचा कि विजयराज के साथ-साथ अगर बलराज को भी इस मामले में शामिल कर लिया जाए तो सबूत और भी मजबूत बन जाएगा। आखिरकार ममता ने अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया इधर सुधा ने भी किसी तरह नेहा का पता लगाकर उसे ममता की इस योजना के बारे में विक्रम को खबर करने को कहा... सुधा का अंदाजा सही था, विक्रम दिल्ली की गतिविधियों की जानकारी के लिए सिर्फ नेहा के ही संपर्क में था। और किसी पर वो भरोसा भी नहीं कर सकता था क्योंकि नाज़िया को जननेवाला उसका हर परिचित... विजय का जानकार था...

विक्रम को ये खबर मिलते ही उसने अपने छुपने के ठिकाने से नीलोफर को लेकर वापसी की, उस समय नीलोफर के पेट में बच्चा होने की वजह से विक्रम उसे अकेला भी नहीं छोडना चाहता था। विक्रम ने दिल्ली आकर सुधा से मुलाक़ात की तो पता चला की विमला रागिनी को लेकर गायब है, विजय मुन्नी और नाज़िया विमला और रागिनी की तलाश कर रहे हैं। हुआ ये कि ऐन वक़्त पर जब विमला रागिनी को लेकर नाज़िया के हवाले करने जा रही थी जहां ममता विजयराज और बलराज को लेकर अनेवाली थी... तभी विमला कि अंतरात्मा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। विमला को याद आया कि कैसे उसे बचपन में उसकी भाभियों यानि रागिनी कि ताई और माँ ने अपनी बेटी कि तरह पाला... उसकी सगी माँ से ज्यादा ख्याल रखा... तो वो रागिनी को उनके हवाले करने की बजाय उसे लेकर अपनी ससुराल आगरा चली गयी।

इधर विक्रम ने सुधा के बताए अनुसार पहले ममता से मुलाक़ात की तो विक्रम के खौफ से ममता ने उसे सारा सच बता दिया। विक्रम, बलराज और नाज़िया सभी विमला और रागिनी की तलाश करने लगे... लेकिन विक्रम कि विजयराज और नाज़िया से मुलाक़ात नहीं हुई। इधर किसी तरह अंदाजा लगाकर अचानक ही विजयराज के दिमाग में विमला की ससुराल का ख्याल आया तो वो नाज़िया को लेकर वहाँ को चल दिया... इधर विक्रम के दिमाग में विमला को लेकर पहला ख्याल ही आगरा जाने का आया। इस तरह से सभी लगभग साथ-साथ ही विमला की ससुराल पहुंचे। वहाँ पहुँचकर जब सभी का आमना सामना हुआ तो विमला ने मौके कि नज़ाकत को देखते हुये रागिनी को विक्रम के हवाले कर दिया और खुद विजयराज व नाज़िया के साथ दिल्ली वापस लौटने को तैयार हो गयी। नाज़िया ने विक्रम के साथ रागिनी को जाने देने के लिए अपनी शर्त रख दी कि दिल्ली पहुँचकर विक्रम नीलोफर को उसके हवाले कर देगा। तो विक्रम ने नाज़िया को बताया कि उसने और नीलोफर ने शादी कर ली है साथ ही नीलोफर माँ बननेवाली है। नाज़िया ने कहा कि उसे इससे कोई ऐतराज नहीं है... लेकिन विक्रम एक बार नीलोफर से मिलवाये। इसके बाद वो सभी दिल्ली वापस आने लगे तो रास्ते में पलवल के पास मेवात इलाके के जंगल में उन्हें पाकिस्तानी इंटेलिजेंस के लोगों ने घेर लिया। वहाँ आपस में गोलीबारी हुई जिसमें विमला मारी गयी और रागिनी के सिर में चोट लगकर वो बेहोश हो गयी। आखिरकार इंटेलिजेंस वाले इन सबको मेवात के एक मुस्लिम गाँव में ले गए और विक्रम को इस शर्त पर छोड़ा कि वो नीलोफर को लेकर यहाँ वापस आए और रागिनी को ले जाए। रागिनी चोट लगने के बाद से ही बेहोश थी। विक्रम ने भी मौके की नज़ाकत और रागिनी की हालत को देखते हुये दिल्ली वापसी कि और नीलोफर को सबकुछ बता दिया तो नीलोफर ने भी उससे कहा कि अभी उसके हालात को देखते हुये उसके साथ कोई कुछ नहीं कर पाएगा जब तक कि उसके बच्चे का जन्म नहीं हो जाता, क्योंकि अगर उसके बच्चे को मरने कि कोशिश कि या उसके साथ जबरन बलात्कार करने कि कोशिश कि गयी तो बच्चे के साथ-साथ वो भी मारी जाएगी, अगर ऐसा हुआ तो नाज़िया उनके हाथ से निकल जाएगी...जो कि पाकिस्तानी इंटेलिजेंस नहीं चाहेगा। अभी विक्रम उसे उन लोगों के हवाले करे और रागिनी को बचाए उसके बाद अगर विक्रम को सच में नीलोफर से प्यार है तो वो लाहौर आकार उसे वापस लेकर आयेगा।

और हुआ भी ऐसे ही... बस कुछ तब्दीलियों के साथ

............. विक्रम और नीलोफर मेवात पहुंचे तो नीलोफर के हालात को देखते हुये इंटेलिजेंस वालों ने नीलोफर को गुपचुप तरीके से पाकिस्तान में घुसाने में असमर्थता जाहिर की और नीलोफर के बिना नाज़िया ने जाने से इंकार कर दिया। तब विक्रम ने कहा कि वो रागिनी को सुरक्षित जगह पर छोडकर यहाँ नीलोफर के साथ बच्चा होने तक रहेगा... बच्चा होने के बाद वो और नीलोफर बच्चे के साथ पाकिस्तान आ जाएंगे और फिर हमेशा वहीं रहेंगे.... नाज़िया के साथ। विक्रम को नए नाम राणा शमशेर अली के नाम से और नीलोफर को उसकी पत्नी के तौर पर पाकिस्तानी पासपोर्ट, भारतीय वीजा और उनके भारत में आने की जानकारी दर्ज करना पाकिस्तानी इंटेलिजेंस का काम होगा.... जिससे कि बच्चा होने के बाद वो लाहौर वापिस जा सकें।

इस तरह नाज़िया को लेकर वो लाहौर वापस लौट गए और विक्रम रागिनी व नीलोफर दोनों को लेकर दिल्ली वापस लौटा। दिल्ली आकर विक्रम ने ममता को रागिनी के अफरन और जान से मारने के मामले में पुलिस को ले जाकर गिरफ्तार करा दिया... विजय और मुन्नी पहले ही गायब हो गए मेवात से निकलते ही। रागिनी कि तबीयत ठीक होने पर जब उसे होश आया तो पता चला कि उसकी याददास्त चली गयी है तो विक्रम ने उसे ले जाकर कोटा में अपनी हवेली में छोड़ा... जहां पहले ही वो ममता की बेटी अनुराधा को पुलिस से अपनी कस्टडि में लेकर छोड़े हुये था...

इधर दिल्ली में जब नीलोफर को बच्चा पैदा होने के लिए भर्ती कराया गया तब तक लाहौर से कागजात आ चुके थे तो नाम पता राणा शमशेर आली और उसकी पत्नी जो उमेरकोट पाकिस्तान के रहने वाले थे दर्ज कराया गया। यहाँ एक रहस्योद्घाटन हुआ... नीलोफर के जुड़वां बच्चे थे.... इसकी जानकारी मिलते ही विक्रम ने अस्पताल के लोगों से मिलकर इस बात को दबा दिया और बच्चे पैदा होते ही रेकॉर्ड में केवल एक बच्चा दर्ज करवाया तथा दूसरे बच्चे को ले जाकर कोटा रागिनी के पास छोड़ आया।

अब नीलोफर कि वजह से विक्रम को पाकिस्तान तो जाना ही था... क्योंकि उन लोगों से बिगाड़कर वो नीलोफर को यहाँ नहीं रख सकता था वरना यहाँ की पुलिस नीलोफर को पकड़कर पाकिस्तान भेज देती...इन सब हालात को गौर करते हुये विक्रम उर्फ राणा शमशेर अली अपनी पत्नी नीलोफर और बेटे राणा समीर के साथ पाकिस्तान में रहने लगा... बीच-बीच में वो चुपके-चुपके घुसपैठिए के रूप में सरहद पार करके कोटा भी आता जाता रहता था।

फिर एक दिन नाज़िया अपनी ज़िंदगी से आज़ाद हो गयी... नाज़िया की मौत के बाद विक्रम ने वापस हिंदुस्तान लौटने के लिए एक योजना बनाई। विक्रम की नकली लाश श्रीगंगानगर में बरामद करा दी गयी जिससे यहाँ उसकी मौत प्रमाणित हो जाए साथ ही पाकिस्तान में उनका घर आतंकवादी हमले में बम से उड़ा दिया गया जीमें राणा शमशेर अली, नीलोफर जहां और राणा समीर मारे गए। विक्रम नीलोफर और समीर को लेकर गुपचुप तरीके से सरहद पार करके चंडीगढ़ पहुंचा और नए नामों... रणविजय सिंह, नीलम सिंह व समर प्रताप सिंह …….. के रूप में चंडीगढ़ में बस गया।

...............................................

“अब बताइये रागिनी दीदी और सुशीला दीदी आप भी......... इस सब में हमारी क्या गलती थी... या हमने क्या गलत किया... किसी के भी साथ... आज क्या मुझे अपने ही बेटे को अपने सीने से लगाने का हक नहीं है

.........................................
 

kamdev99008

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Bohat khoob vikram ka dimagh to. Chacha chodhry se bhi tez chal raha hain kia planning Kari hai usne lekin in sab me 18 saal ka time lag gaya.
Ab kia faisla karte hai ghar waley.
wo aj bhi itna hi shatir hai..........jaisa bachpan se tha...........kabhi seedhe raste to chala hi nahi
rat me ya subah tak complete karke post karta hu
 

RAAZ

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Intezar rahega.



wo aj bhi itna hi shatir hai..........jaisa bachpan se tha...........kabhi seedhe raste to chala hi nahi
rat me ya subah tak complete karke post karta hu
 

amita

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अध्याय 37

“अब बताइये रागिनी दीदी और सुशीला दीदी आप भी......... इस सब में हमारी क्या गलती थी... या हमने क्या गलत किया... किसी के भी साथ... आज क्या मुझे अपने ही बेटे को अपने सीने से लगाने का हक नहीं है” अपनी कहानी पूरी करने के बाद नीलिमा ने कहा

नीलिमा की कहानी सुनकर सभी की आँखों में आँसू भर आए थे। नीलिमा की बात सुनकर रागिनी ने प्रबल की पीठ पर हाथ रखकर उसे उठने का इशारा किया और खुद भी खड़ी हो गयी। प्रबल की पीठ पर हाथ रखे उसे लेकर रागिनी नीलिमा के पास पहुंची और दूसरे हाथ से नीलिमा का हाथ पकड़कर प्रबल के पास खींचा तो नीलिमा ने प्रबल को अपनी बाहों में भरकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी... प्रबल को नीलिमा की बाहों में अपने अलावा भी किसी का अहसास हुआ तो उसने देखा की समर भी नीलिमा की बाहों में समाया उसके साथ खड़ा है...

“भैया! आप कभी ऐसा मत सोचना कि माँ आपको नहीं चाहती, में तो हमेशा उनके साथ रहा.... लेकिन आप हमेशा उनके दिल में रहे....वो इतने सालों से आपको ही याद करती थीं। माँ और पिताजी ने मुझे भी कभी अपने साथ नहीं रखना चाहा लेकिन हम दोनों में से किसी एक को साथ रखना उनकी मजबूरी थी...वरना इन दोनों के ही देश की इंटेलिजेंस एजेन्सीज हमारे पीछे पड़ी रहतीं....” समर ने प्रबल से कहा और उसे अपने गले लगा लिया।

“चलो अब तुम सब एक दूसरे से मिल लिए... लेकिन मेरे भाई से मिले हुये मुझे जमाना हो गया। भाभी! भैया कहाँ पर हैं? कोई खबर मिली?” विक्रम ने आगे बढ़कर नीलिमा के कंधे पर हाथ रखते हुये सुशीला से कहा तो सुशीला के चेहरे पर एक दर्द उभर आया

“नहीं भैया.... वो खुद तो हमारी पल-पल की खबर रखते हैं.... लेकिन अपनी कोई खबर हम तक नहीं पहुँचने देते कभी भी। सही कहते थे वो... इस घर में कभी किसी ने उनकी अहमियत ही नहीं समझी... सारे घर को जब उन्होने छोड़ दिया था तब भी मुझे नहीं छोड़ा.... लेकिन मेंने तब भी उनसे ज्यादा इस घर को अहमियत दी.... और आज अकेली बैठकर सोचती हूँ कि एक उनके बिना ही कुछ नहीं मेरे पास....सबकुछ होते हुये भी.... जब वो थे तो न जाने कितनी मुश्किलों, कितनी मुसीबतों का सामना वो खुद करके भी मुझे कभी अहसास तक ना होने देते थे... तुमसे तो कितनी बार कहा है मेंने ........ तुमसे ज्यादा उनको कौन जानता है... तुम उनका पता लगा सकते हो” कहते हुये सुशीला कि आँखों से आँसू कि बूंदें पलकों के बंधन से निकालकर बाहर आ गईं

“चुप हो जाओ बेटी... वो जरूर कहीं हमारे आसपास ही होगा... उसने ज़िंदगी में बुरे से बुरे वक़्त का सामने खड़े होकर मुकाबला किया है.... हम सब मिलकर उसका पता लगायेंगे” मोहिनी देवी ने आगे बढ़कर सुशीला को अपने सीने से लगा लिया

“भाभी! में खुद उलझनों में फंसा हुआ था... अब सबकुछ सही कर दिया है... अब बस भैया का ही पता करना है.... बलराज चाचा जी भी अब पता नहीं कहाँ चले गए” विक्रम ने शर्मिंदा होकर नज़रें चुराते हुये कहा

“सही कहते थे तुम्हारे भैया... इस घर में सबने हमेशा अपने मन की उनसे कही....कभी किसी ने उनके मन की नहीं सुनी.... कभी किसी ने उनसे ये नहीं पूंछा कि उनके मन में क्या है.... औरों की तो क्या कहूँ... हम दोनों... तुम और में.... जिन्हें उन्होने अपनी ज़िंदगी में सबसे ज्यादा चाहा.... हमने भी कभी उनके मन की जानने कि कोशिश नहीं की” सुशीला ने पछतावे भरे स्वर में कहा तो विक्रम कि भी नज़रें शर्मिंदगी से झुक गईं

फिर किसी ने कुछ नहीं कहा.... बहुत रात हो गयी थी तो सबने फैसला किया कि खाना खाकर सोया जाए और सुबह से बलराज और रवि यानि राणा रविन्द्र प्रताप सिंह की तलाश शुरू की जाए। अनुराधा, प्रबल और अन अनुभूति को पढ़ाई करनी थी.... समर का एड्मिशन कराने की ज़िम्मेदारी ऋतु को सौंप दी गयी.... हालांकि ऋतु भी इन सबके साथ जाना चाहती थी लेकिन फैसला ये हुआ कि बच्चों के साथ शांति और ऋतु यहाँ रहेंगी... क्योंकि किसी भी बड़ी परेशानी को सम्हालना अकेली शांति के बस में नहीं है... वो सीधी-सादी घरेलू महिला है।

सुबह सुशीला ने सभी को जगाया और तैयार होकर हॉल में आने को कहा और स्वयं रसोई की ओर चली गयी और नाश्ता बनाने लगी। थोड़ी देर बाद ही नीलिमा भी फ्रेश होकर रसोई में पहुंची और सुशीला को हटाकर नाश्ता बनाने लगी।

“दीदी आप हटो .... मेरे होते हुये कोई और रसोई में काम करे मुझे पसंद नहीं है... और अपने से बड़ों को तो में बिलकुल पसंद नहीं करती”

“मातलब में तुम्हें पसंद नहीं” सुशीला ने घूरकर नीलिमा को देखते हुये कहा

“मेरा मतलब ये नहीं था दीदी... में कह रही थी की अपने से बड़ों का काम करना मुझे पसंद नहीं” हड्बड़ाकर नीलिमा ने कहा तो सुशीला ठहाका मारकर हंसने लगी। उन्हें हँसते देखकर नीलिमा भी शर्मा गयी और हंसने लगी

इधर उनके हंसने की आवाज सुनके ऋतु, अनुराधा, वैदेही और अनुभूति भी रसोई में आ गईं। ये चारों दूसरी मंजिल पर सोयीं थीं रात, भानु, प्रबल और समर तीसरी मंजिल पर रणविजय (विक्रमादित्य) के साथ थे शांति, सुशीला, मोहिनी और रागिनी चारों औरतें नीचे ही रहीं। पवन बहुत रोकने के बावजूद अपने घर चला गया... उसका घर ज्यादा दूर भी नहीं था वो अपने परिवार के साथ शालीमार गाँव में रहता था।

“क्या बात है मेरी प्यारी भाभियो.... कैसे इतना खिलखिला रही हो....” ऋतु ने नीलिमा और सुशीला को अपनी दोनों बाहों में भरते हुये कहा तो नीलिमा पलटकर उसे घूरने लगी... जिससे ऋतु की पकड़ उन पर ढीली पड़ गयी। साथ ही नीलिमा की भाव भंगिमा देखकर बाकी सब लड़कियों के चेहरे की मुस्कान भी उड़ गयी।

“राधा! कहाँ छुपा है तेरा भाई.... आज इतने मेहमान कैसे हैं घर में.... उसे कोई लड़की तो देखने नहीं आ रही” अभी ये सब नीलिमा से सहमे हुये ही थे कि पीछे से अनुपमा कि आवाज आयी और अनुराधा को हटाते हुये रसोईघर में अंदर घुस गयी.... लेकिन सामने ऋतु के साथ 2 अंजान औरतों को देखकर वो भी चुप हो गयी।

“ओ गॉडमदर क्यों डरा रही है इन बच्चों को.... और ये ले तेरे लाल को देखने लड़की भी आ गयी” सुशीला ने हँसते हुये नीलिमा के कंधे पर हाथ मारा और दोनों हंसने लगीं.... लेकिन ऋतु, अनुराधा, अनुभूति, वैदेही और अनुपमा सभी लड़कियां वैसे ही सहमी सी खड़ी रहीं

“ऋतु बेटा जरा अपने भैया और भतीजों को भी बुला ला.... बता देना प्रबल को देखने कोई लड़की आयी है” नीलिमा ने हँसते हुये ऋतु का हाथ पकड़कर अपने कंधे से हटाकर उसे बाहर कि ओर धकेलते हुये कहा, तो ऋतु भी मुस्कुरा दी और तीसरी मंजिल से उन लोगों को बुलाने चली गयी

“कमीनी जल्दी बता ये कौन हैं?” अनुपमा ने अनुराधा कि ओर पीछे मुड़कर फुसफुसाते हुये कहा तो अनुराधा भी मुस्कुरा दी

“अभी रुक जा तुझे सब पता चल जाएगा...” अनुराधा ने भी फुसफुसाते हुये कहा

“अनु ये क्या कानाफूसी हो रही है दोनों में.... हमें भी तो बताओ कि ये कौन है जो हमारे प्रबल से मिलने आयी है” सुशीला ने दोनों को आपस में फुसफुसाकर बात करते देखा तो कहा

“आंटी मेरा नाम अनु है... आपसे पहली बार मिल रही हूँ लेकिन रागिनी बुआ मुझे बचपन से जानती हैं... मेरा घर पड़ोस में ही है ..... हम एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं इसलिए में इन दोनों को बुलाने आयी थी कॉलेज चलने के लिए” अनुपमा ने अनुराधा को घूरते हुये कहा तो अनुराधा के पीछे किसी को देखकर उसकी आँखें खुली रह गईं। वहाँ विक्रम खड़ा था जिसके बारे में उसे पता था कि वो मर चुका है...

“विक्रम अंकल आप? लेकिन रागिनी बुआ तो कह रही थीं...” कहते हुये अनुपमा ने बात अधूरी छोड़ दी

“अनुराधा, अनुभूति तुम दोनों जाकर तैयार हो और भाभी आप दोनों नाश्ता लेकर हॉल में आ जाओ, अनुपमा तुम मेरे साथ आओ, में मिलवाती हूँ सबसे” पीछे से रागिनी ने कहा और सबको हॉल में आने का इशारा किया

थोड़ी देर बाद सब हॉल में बैठे नाश्ता करते हुये रागिनी की बातें सुन रहे थे

“अनुपमा! ये तो तुम्हें पता ही है कि में और विक्रम सगे भाई बहन हैं.... लेकिन एक बात तुम्हें नहीं पता.... मेरे 2 भाई हैं.... जुड़वां ..... बड़े भैया का नाम रणविजय सिंह है जो तुम्हारे सामने बैठे हैं .... ये बचपन से ही हमारे ताऊजी के पास रहे थे.... इसलिए हम सब से इनका कोई संपर्क नहीं रहा और ये इनकी पत्नी नीलिमा सिंह हैं.... इनके भी 2 बेटे हैं प्रबल और समर....और कमाल की बात ये हैं की इनके दोनों बेटे भी हमशक्ल हैं...पीछे देखो” कहते हुये रागिनी ने अनुपमा को पीछे देखने का इशारा किया

अनुपमा ने पीछे मुड़कर देखा तो आश्चर्य से उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं... ऋतु के साथ 3 लड़के हॉल में घुस रहे थे जिनमें से 2 की शक्ल प्रबल जैसी थी.... यानि उनमें से कोई एक प्रबल था....

“लेकिन बुआ... पहले तो विक्रम अंकल ने आपको जो लिफाफे दिये थे उनमें दी गयी जानकारी के मुताबिक तो प्रबल किसी पाकिस्तानी राणा शमशेर और नीलोफर जहां का बेटा था... और आपने कहा भी था कि ये राणा शमशेर विक्रम अंकल ही हैं....” अनुपमा ने सवाल किया तो अपनी बात को सही साबित करने के लिए रागिनी ने फिर से दलीलें देनी शुरू कर दीं।

“बेटा वो मुझे ऐसा लगा था क्योंकि विक्रम ने ऐसी जानकारी छोड़ी थी उन लिफाफों में.... लेकिन .... हाँ इनसे तो मेंने मिलवाया ही नहीं... ये हमारे परिवार में सबसे बड़ी हैं.... मेरी बड़ी भाभी.... सुशीला सिंह.... मेरे ताऊजी के बेटे राणा रवीन्द्र प्रताप सिंह की पत्नी, और ये हैं इनके बेटे भानु प्रताप सिंह और ये वैदेही सिंह... इनकी बेटी” अनुपमा ने सुशीला को नमस्ते किया और भानु-वैदेही को विश...

“लेकिन बुआ वो बात तो आपने बताई ही नहीं... जो मेंने पूंछी थी” अनुपमा ने फिर से अपना सवाल दोहराया...

“बेटा वही बता रही हूँ, थोड़ा धैर्य रखो, भानु, प्रबल, समर और ऋतु चलो बेटा तुम भी नाश्ता करो फिर तुम्हें भी कॉलेज जाना है” रागिनी ने दिमाग में अनुपमा के सवाल का जवाब सोचते हुये उन तीनों को भी नाश्ते के लिए कहा

“तुम्हारे इस सवाल का जवाब में देती हूँ, रागिनी दीदी को भी मेंने ही बताया था... वरना ये भी प्रबल को विक्रम का बेटा समझती थीं और समर को देखकर चौंक गईं थीं तुम्हारी ही तरह” सुशीला ने रागिनी को आँख से इशारा करते हुये बात को अपने हाथ में लिया

“असल में रणविजय हमारे साथ रहते थे और विक्रम देवराज चाचाजी की हवेली में कोटा.... जब रणविजय के जुड़वां बच्चे हुये तो विक्रम भी हमारे पास चंडीगढ़ आए और जुड़वां बच्चे देखकर बोले कि एक बच्चे को में पालूँगा हालांकि हम सभी ने माना किया लेकिन जब उन्होने कहा कि उनको शादी नहीं करनी और अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए वो प्रबल को पालेंगे... और साथ ही उन्होने ये भी बताया कि रागिनी दीदी भी उन्हीं के साथ रहती हैं तो प्रबल को दीदी ही पालेंगी... ये देखते हुये हमने प्रबल को विक्रम के हवाले कर दिया...../ अब रही वो पाकिस्तानी माँ-बाप कि कहानी.... तो विक्रम शुरू से ही खुराफाती था... उसे जिस लड़की से प्यार हुआ और भागकर शादी भी कर ली थी.... वो पाकिस्तानी निकली.... शायद उसको यहाँ लीगल तौर पर लाने के लिए विक्रम ने कोई चाल चली होगी प्रबल के नकली जन्म प्रमाण-पत्र और नकली माँ-बाप की” सुशीला ने अपनी बात खत्म की और अनुपमा के चेहरे के भाव पढ़ने लगीं... अनुपमा के चेहरे पर अब कोई उलझन नज़र नहीं आ रही थी

“चलो सारी कहानी इसी पर आज़माकर देख ली.... ये पूरी तरह से संतुष्ट हो गयी... अब यही कहानी सबको सुनानी है आगे चलकर.... जिससे विक्रम की कहानी खत्म हो जाए और रणविजय के परिवार को लोग जान जाएँ” सुशीला ने मन में सोचकर खुद ही अपनी पीठ थपथपा ली...... हे हे हे ... मन में ही थपथपाई

ये सारी बातें खत्म होने तक नाश्ता भी हो गया। नाश्ते के बाद अनुपमा और अनुराधा के साथ प्रबल, समर, वैदेही व भानु कॉलेज निकल गए और अनुभूति अपने स्कूल। कॉलेज में एड्मिशन के लिए ऋतु को साथ ले जाने की बजाय भानु ने कहा की वो कोई जूनियर क्लास में एड्मिशन लेने नहीं जा रहा जहां गुयार्डियन्स की जरूरत होती है.... वो अपना, समर और वैदेही का एड्मिशन खुद करा देगा। इन लोगों के जाने के बाद सुशीला ने सबको वहीं बैठने को कहा कि उसे कुछ जरूरी बात करनी है और आगे के कार्यक्रम में कुछ फेरबदल भी।

“रणविजय! पहली बात तो ये है कि में अब हमेशा के लिए गाँव में रहने जा रही हूँ.... और वहीं रहकर तुम्हारे भैया का इंतज़ार करूंगी.... जब तक वो लौटकर नहीं आते। में उन्हें उसी घर में वैसे ही मिलूँगी.... जैसे वो छोडकर गए थे। उनमें लाख कमियाँ हो, लाख बुराइयाँ हो.... लेकिन उन्होने मेरे ही साथ नहीं.... कभी किसी के साथ कुछ बुरा नहीं किया.... ये तो हम सब स्वार्थी थे जिनहोने हमेशा उनसे अपनी जरूरतें पूरी करनी चाहिए.... और मतलब निकलते ही उनसे दूर हट गए, तुम सब सोचते होगे कि वो अपनी मर्जी से मुझे छोडकर कहीं और भाग गए.... लेकिन ऐसा नहीं है, वो आजतक भी हम सबको जो चाहिए था उनसे ....वो दे रहे हैं... पैसा, नाम, रुतबा और सबसे बड़ी बात.... हर मुश्किल, परेशानी, मुसीबत से बचा देते हैं.... लेकिन हमने क्या दिया उन्हें..... जब और जैसी भी जरूरत हुई उन्हें.... हम ना तो तन से, ना मन से और ना धन से उनके साथ खड़े हुये.... जब वो गए थे... तब मेंने खुद अपने मुंह से उनसे कहा था कि में उनकी जरूरतें पूरी नहीं कर सकती, वो चाहें तो कहीं और से कर लें.... लेकिन मेरे घर में नहीं। पर उनका कहना था कि उन्होने मुझसे शादी के बाद एक प्रण किया था कि वो कभी किसी से सिर्फ जिस्म के लिए, हवस के लिए, वासना के लिए संबंध नहीं बनाएँगे.... बल्कि जिससे भी संबंध बनाएँगे.... हमेशा के लिए, जीवन भर के लिए संबंध बनाएँगे। हालांकि उनका ये भी कहना था कि कोई भी आ जाए, मेरा स्थान उन सबसे अलग और ऊपर रहेगा, मुझे या मेरे बच्चों को सिर्फ अधिकार ही नहीं सम्मान और प्यार भी वही मिलेगा जो हमेशा से रहा है.... लेकिन में नहीं मानी... तो उन्होने एक कठोर निर्णय लिया ............. कि ...... जैसे सारे परिवार का उन्होने त्याग कर दिया.... यहाँ तक कि अपनी माँ का भी.... उसी तरह वो मुझे भी त्याग कर अपनी नयी ज़िंदगी फिर से शुरू करेंगे.... हाँ! अपनी जिम्मेदारियों को वो हर हाल में पूरा करते रहेंगे.... मेरे लिए ही नहीं.... सबके लिए........और उन्होने ऐसा किया भी........................... हम सबको उनसे जरूरतें थीं......... बस उनकी ही जरूरत किसी को नहीं थी.........इसी लिए........ अब बस वो ही नहीं हैं... हमारी ज़िंदगियों में........... बाकी सबकुछ है...........उन्हीं का दिया हुआ”

सुशीला कि बातों को मोहिनी देवी, शांति, रणविजय (विक्रमादित्य), ऋतु, नीलिमा और रागिनी चुपचाप बैठे सुनते रहे....

“लेकिन भाभी अब करना क्या है? ये सब बातें तो रवि के मिलने के बाद भी हो सकती हैं” रागिनी ने कहा

“ये सब कहने कि वजह ये है............ में नहीं चाहती मेरी वजह से उनकी ज़िंदगी, उनका घर-परिवार... कुछ भी मुश्किल में पड़े.... इसलिए में यहीं रहूँगी बच्चों के साथ........... आप सब में से जो भी जाना चाहे.... जा सकता है.... लेकिन में उनसे मिलने नहीं जाऊँगी...बस एक प्रार्थना उन तक मेरी पहुंचा देना..... एक बार आकार मुझसे मिल लें... अपनी मौत से पहले उन्हें एक बार देख लेना चाहती हूँ...... और कुछ भी नहीं चाहिए उनसे .......” कहते हुये सुशीला रो पड़ी

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Awesome update
 
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wo aj bhi itna hi shatir hai..........jaisa bachpan se tha...........kabhi seedhe raste to chala hi nahi
rat me ya subah tak complete karke post karta hu

haan ye to bilkul sahi kaha .. chhote bado ka hi anusaran karte hai .. jiska bhai bada aapke jaisa .. nekdill insaan ho .. wo to aisa he banega ...

ab iss comment ko padhne ke baad aapko hasi aayegi .. jab has lo .. to uske paschyaat .. update bhi likh lena ...
 

kamdev99008

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haan ye to bilkul sahi kaha .. chhote bado ka hi anusaran karte hai .. jiska bhai bada aapke jaisa .. nekdill insaan ho .. wo to aisa he banega ...

ab iss comment ko padhne ke baad aapko hasi aayegi .. jab has lo .. to uske paschyaat .. update bhi likh lena ...
Bhai update roj likhta hu...Lekin pura nahi hua ab tak..... Abhi adha hi hai....Rat ko complete karke post kar hi dunga
Din me gaon me bijli nahi aati...Aur pichhle 1 week me 3 bar aandhi barish

Lekin gaon me rahne ki ek hi khushi hai....Corona aur lockdown ka koi asar nahin hua ab tak....Lekin bahar se ane jane walon ka effect shuru ho gaya... Hamare barabar wale gaon me kal 1 corona positive mila hai ......
Lockdown khulwane ki wakalat karnewale kameene ise gaon gaon tak pahuncha ke hi manenge....Shahar to pahle hi barbad kar liye in bhukkado ne
 
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